16 मार्च 2011
सोनिया बनाम सरकार
केंद्र सरकार (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) और नैशनल अडवाइजरी काउंसिल (एनएसी) के बीच कई महत्वपूर्ण विधेयकों को लेकर मतभेद हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच बढ़ते टकराव के तौर पर देख रहे हैं। केंद्र और एनएसी में प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत न्यूनतम मजदूरी, आरटीआई एक्ट में संशोधनों और लोकपाल बिल को लेकर मतभेद हैं। आइये एक नजर डालते हैं उन विषयों पर, जिन्हें लेकर दोनों के संबंधों में कड़वाहट बढ़ती जा रही है : फूड सिक्युरिटी पर सरकार का क्या था रुख : केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई सी. रंगराजन कमिटी ने नैशनल अडवाइजरी काउंसिल (एनएसी) की सिफारिशों में कुछ बदलाव सुझाए हैं, जिनका संबंध प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के मसौदे से है। कमिटी ने प्रस्तावित बिल में एपीएल तबके को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा घटाकर आधा करने की बात कही है। ऐसा होने पर उसे प्रति माह 10 किलोग्राम अनाज मिलेगा। दूसरे विकल्प के तौर पर उसने इस तबके को बिल के मसौदे से हटा देने का सुझाव भी दिया है। सरकार भी एपीएल कैटिगरी को खाद्यान्न वितरण प्रणाली से हटाने की पक्षधर है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने एपीएल को दिए जाने वाले अनाज के दाम बढ़ाने का फैसला किया है। उसने अपनी रिपोर्ट में माना है कि एनएसी ने खाद्यान्न की उपलब्धता और सब्सिडी की जरूरत को बेहद कम करके आंका। कमिटी एनएसी की इस बात से सहमत है कि सरकारी अनाज की खरीद बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि हर हाल में आबादी के 75 फीसदी हिस्से को सब्सिडी आधारित अनाज मुहैया कराया जा सके। उसका मानना है कि इस लक्ष्य को पाने के लिए अतिरिक्त सब्सिडी की जरूरत होगी, जो कि कम से कम 10 हजार करोड़ रुपये होगी। एनएसी का कहना : एनएसी का कहना है कि फूड सिक्युरिटी से जुड़े कार्यक्रमों को पूरी तरह से लागू करने के लिए 6.5 करोड़ टन अनाज की सरकारी खरीद कोई मुश्किल काम नहीं है। उसने अपनी सिफारिश में बीपीएल परिवारों को प्रतिमाह 35 किलोग्राम अनाज देने को कहा है। इससे पहले उसने कहा था कि पहले चरण में कुल आबादी के 72 फीसदी हिस्से को अनाज मुहैया कराने में 71,837 करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी होगी। दूसरे चरण में 75 फीसदी आबादी को खाद्यान्न मुहैया कराने में 79,931 करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी होगी। एनएसी के मेंबर और अनुभवी अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने रंगराजन कमिटी के सुझावों की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि रंगराजन कमिटी का यह तर्क कि सरकारी खरीद बढ़ाने से खुले बाजार में खाद्यान्न की उपलब्धता में कमी आ जाएगी, जिसके चलते दाम बढ़ जाएंगे, पूरी तरह से गलत है। सरकारी खरीद बढ़ने का मतलब होगा वितरण बढ़ना। इन दोनों के बढ़ने से सैद्धांतिक रूप से बाजार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। एनएसी ने की आपत्ति : नैशनल अडवाइजरी काउंसिल के सब गु्रप की चीफ और सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने आरटीआई पर डीओपीटी के मसौदे की कड़ी आलोचना की थी। उन्होंने इसे आरटीआई एक्ट की मूल भावना के खिलाफ उठाया जाने वाला कदम करार दिया। काउंसिल ने कहा कि डीओपीटी के मसौदे में शामिल नियम 16 से आरटीआई एक्ट के तहत आवेदन करने वालों की हत्या का खतरा बढ़ जाएगा। सरकार के रुख में नरमी : आरटीआई एक्ट के तहत आवेदन की शब्द सीमा 250 शब्दों तक सीमित करने पर अड़ी सरकार के रुख में नरमी आई है। अब उसने यह सीमा 500 शब्दों तक बढ़ाने की बात कही है। साथ ही किसी आवेदक की मौत हो जाने पर उसके द्वारा मांगी गई जानकारी से जुड़ी जांच भी बंद नहीं होगी। डीओपीटी के मसौदे से ऐसी धारा हटाई जाएगी। हालांकि सरकार अभी भी इस अड़ी हुई है कि आवेदक को एक विषय से जुड़ी जानकारी मांगनी चाहिए , लेकिन एनएसी इसके खिलाफ है। काउंसिल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस मसले पर सरकार से बात की जाएगी। वनाधिकार अधिनियम पर एनएसी का रुख : एनएसी का मानना है कि वनाधिकार अधिनियम अच्छी तरह से काम कर रहा है। बावजूद इसके वह जनजातियों को लालफीताशाही से बचाना चाहती है। इसलिए वह ग्रामसभा की बैठक के लिए जरूरी संख्या को दो - तिहाई से घटाकर आधा करने के पक्ष में है , ताकि दावों का निपटारा तेज गति किया जा सके। इसी तरह वनाधिकार समिति में जनजातीय प्रतिनिधित्व एक - तिहाई से बढ़कर दो - तिहाई हो सकता है , ताकि इस एक्ट के तहत उन्हें और अधिकार मिल सकें। केंद्र का नजरिया : केंद्र सरकार आदिवासियों को लघु वन उत्पादों को लाने - ले जाने और उनकी निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिक्री के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकती है। लोकपाल बिल पर एनएसी : केंद्र के प्रस्तावित लोकपाल बिल पर सोनिया की अध्यक्षता वाली एनएसी भी सिफारिशें पेश करेगी। शनिवार को हुई बैठक में तय हुआ कि काउंसिल का पारदर्शिता और जवाबदेही से जुड़ा कार्यसमूह सरकार के महत्वाकांक्षी लोकपाल बिल पर भी काम करेगा , जिस पर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अगुआई में एक जीओएम मंथन कर रह ा है। (Nababharat Times)
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