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26 मार्च 2011

दाल निर्यात पर रोक की अवधि बढ़ी

वर्ष २०११-१२ के दौरान १६५.१ लाख टन दाल उत्पादन की संभावना है।सरकार ने दाल निर्यात पर लगी रोक को एक साल के लिए बढ़ाकर, मार्च २०१२ तक कर दिया है। डीजीएफटी द्वारा जारी नोटिफि केशन के मुताबिक दाल निर्यात पर रोक की अवधि ३१ मार्च २०११ को समाप्त हो रही है। घरेलू मांग के चलते अब तक ३४ लाख टन दाल का आयात किया जा चुका है। दाल निर्यात पर जून २००६ में प्रतिबंध लगा दिया गया था। उस समय घरेलू सप्लाई प्रभावित होने के कारण दाल के दामों में तेजी आ गई थी। होलसेल आधारित मंहगाई दर में फरवरी माह के दौरान दाल की महंगाई दर १.८९ फीसदी पर रही। बीते वर्ष की समान अवधि में यह दर १२.७२ फीसदी थी। हालांकि यह रोक काबुली चने और १० हजार टन ऑर्गेनिक दालों पर लागू नहीं है। सरकार ने हाल ही में कहा था कि वर्ष २०११-१२ के दौरान देश में बंपर दाल उत्पादन होने की संभावना है। बावजूद इसके ३४ लाख टन दाल का आयात किया जा चुका है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे एडवांस इस्टीमेट के अनुसार वर्ष २०११-१२ के दौरान देश का दाल उत्पादन १६५.१ लाख टन होने का अनुमान लगाया है। हालांकि योजना आयोग ने इस अवधि के दौरान १९१.१ लाख टन दालों की खपत होने का अनुमान लगाया है। उधर आईसीआरआईएसएटी के निदेशक विलियम डार का कहना है कि भारत आने वाले ३-५ वर्षों में दाल के मामलें में आत्मनिर्भर हो जाएगा। अभी भारत विश्व का सबसे बड़ा दाल आयातक देश है। यह आत्मनिर्भरता अच्छी गुणवत्ता युक्त बीजों और सरकारी योजनाओं के कारण आएगी। देश में उत्पादन और मांग के बीच अंतर के चलते हर साल दालों का आयात किया जाता है। उन्होने कहा कि संस्थान दालों के इस तरह के बीजों का विकास कर रहा जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को सहने में सक्षम हो। (Business Bhaskar....R S Rana)

चांदी अब 60 हजार रुपये किलो की ओर

अंतरराष्ट्रीय बाजार के साथ-साथ घरेलू बाजार में चांदी की कीमतें नई ऊंचाइयां छू रही हैं। गुरुवार को दिल्ली सराफा बाजार में चांदी का भाव बढ़कर 56,700 रुपये प्रति किलो के नए रिकार्ड पर पहुंच गया। मध्य पूर्व एशियाई देशों में चल रही राजनीति उठापटक के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में निवेशक चांदी में निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुरुवार को चांदी 37.36 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच गई जबकि दो मार्च 2010 को इसका भाव 16.50 डॉलर प्रति औंस था। घरेलू बाजार में इसके 60,000 रुपये प्रति किलो तक पहुंचने का अनुमान लगाया जा रहा है।
जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष राजीव जैन ने बताया कि मध्य पूर्व एशियाई देशों में चल रही राजनीतिक उठापटक के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में निवेशक चांदी में निवेश को प्राथमिकता दे रहे हैं। इसी वजह से एक्सचेंज ट्रेड फंड (ईटीएफ) में 20,000 टन का स्टॉक हो चुका है। वर्तमान हालात को देखते हुए अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम घटने की संभावना नहीं है। ऐसे में घरेलू बाजार में चांदी का भाव बढ़कर 60,000 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंचने की संभावना है।
दिल्ली बुलियन वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी.के. गोयल ने बताया कि घरेलू बाजार में चांदी की तेजी-मंदी अंतरराष्ट्रीय कीमतों के आधार पर होती है। विदेशी बाजार में आई तेजी से घरेलू बाजार में भी पिछले एक साल में इसकी कीमतों में 116.5 फीसदी की तेजी आ चुकी है। दिल्ली सराफा बाजार में गुरुवार को चांदी का भाव बढ़कर 56,700 रुपये प्रति किलो के नए रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया जबकि दो मार्च 2010 में इसका भाव 26,050 रुपये प्रति किलो था। (Business Bhaskar....R S Rana)

बढ़ेगा जिंसों का अवैध कारोबार

मुंबई March 25, 2011
महाराष्ट्र सरकार द्वारा स्टांप ड्यूटी में प्रस्तावित बढ़ोतरी की वजह से जिंस वायदा से जुड़ी ब्रोकिंग कंपनियां अपने पंजीकृत कार्यालय राज्य से बाहर स्थापित करने पर विचार कर रही हैं। कांग्रेस की अगुआई वाली राज्य सरकार ने बुधवार को घोषित बजट 2011-12 में कमोडिटी ट्रांजेक्शन टैक्स में 400 फीसदी की बढ़ोतरी का प्रस्ताव किया है। अगर बजट पारित हो जाता है तो स्टांप ड्यूटी मौजूदा प्रति करोड़ 100 रुपये से बढ़कर 500 रुपये प्रति करोड़ हो जाएगा।ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक (कमोडिटीज ऐंड करेंसी) नवीन माथुर ने कहा - ट्रांजेक्शन लागत में बढ़ोतरी से ब्रोकिंग कंपनियां अपने पंजीकृत कार्यालय दूसरी जगह स्थापित करने के लिए बाध्य हो सकती हैं, हालांकि उनका फैसला क्लाइंट के प्रोफाइल पर भी निर्भर करेगा। उन्होंने कहा किस्टांप ड््यूटी बढ़ाने का फैसला कुल मिलाकर जिंस वायदा कारोबार पर नकारात्मक असर डालेगा। स्टांप ड्यूटी में बढ़ोतरी से शुरुआती तौर पर जिंस एक्सचेंजों का कारोबार घटेगा। 200 रुपये के ट्रांजेक्शन शुल्क से महाराष्ट्र में क्लाइंट के हर कारोबार की लागत 300 रुपये बैठेगी। प्रस्तावित शुल्क से हालांकि प्रति करोड़ पर ट्रांजेक्शन लागत 700 रुपये हो जाएगा, यानी इसमें कुल 133 फीसदी की बढ़ोतरी हो जाएगी।देश के सबसे बड़े जिंस एक्सचेंज एमसीएक्स के प्रबंध निदेशक लेमन रूटेन ने कहा - निश्चित तौर पर ट्रांजेक्शन लागत में बढ़ोतरी से कारोबारी महाराष्ट्र के आसपास के इलाके में चले जाएंगे। चूंकि स्टांप ड्यूटी का भुगतान उस राज्य को होता है, जहां मुख्यालय पंजीकृत होता है, ऐसे में इस बात की संभावना बन रही है कि छोटी व मध्यम आकार की ब्रोकिंग कंपनियां गुजरात जैसे राज्यों का रुख कर ले, जहां स्टांप ड््यूटी शून्य के करीब है। उन्होंने कहा कि ट्रांजेक्शन लागत में बढ़ोतरी से जिंसों में अवैध कारोबार को बढ़ावा मिलेगा। इसके अतिरिक्त एक ऐसे समय में कारोबार पड़ोसी राज्यों को स्थानांतरित हो जाएगा जब एमएसीक्स राज्य को इंटरनैशनल फाइनेंशल हब बनाने में मदद करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा - मुझे भरोसा है कि हमारे मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री को इसकी समझ है और वैश्विक अनुभव भी है, लिहाजा वे अपने फैसले पर पुनर्विचार करेंगे।राज्य में 300 ब्रोकर सदस्य पंजीकृत हैं और यहां 30 हजार लोगों को रोजगार मिला हुआ है। डेरिवेटिव एक्सचेंज में होने वाले कुल कारोबार में महाराष्ट्र करीब 25 फीसदी की भागीदारी करता है। पिछले कैलंडर वर्ष में सभी एक्सचेंजों का कुल टर्नओवर 107 लाख करोड़ रुपये रिकॉर्ड किया गया था।रूटेन के रुख का समर्थन करते हुए एस डेरिवेटिव ऐंड कमोडिटी एक्सचेंज के सीईओ दिलीप भाटिया ने कहा - चूंकि ब्रोकर दूसरे राज्यों का रुख करने के बारे में सोच रहे हैं, लिहाजा स्थानीय सरकार मौजूदा स्टांप ड््यूटी भी दूसरे राज्यों के हाथों गंवा देगी। गुजरात, दिल्ली और पश्चिम बंगाल को इस कदम से सबसे ज्यादा फायदा होने वाला है क्योंकि इन राज्यों में स्टांप ड्यूटी काफी कम है। दमन व सिल्वासा को छोड़कर (जहां स्टांप ड्यूटी कुछ भी नहीं है) गुजरात में स्टांप ड्यूटी शून्य के करीब है। पश्चिम बंगाल एक और राज्य है जहां स्टांप ड्यूटी नहीं चुकाना पड़ता है। इसलिए इन दोनोंं राज्यों में महाराष्ट्र से सबसे ज्यादा कारोबार का हस्तांतरण होने की संभावना है। दिल्ली ने कुछ साल पहले स्टांप ड््यूटी को शून्य से बढ़ाकर 130 रुपये प्रति करोड़ कर दिया था, इसके परिणामस्वरूप कमोडिटी कारोबार नजदीकी राज्य गुडग़ांव स्थानांतरित हो गया था। इस बीच, समाचार एजेंसी के मुताबिक देश के प्रमुख जिंस एक्सचेंज एमसीएक्स ने कहा है कि महाराष्ट्र सरकार के बजट में जिंसों के लेनदेन पर ऊंचा स्टांप शुल्क वसूलने के प्रस्ताव के बावजूद वह सौदों पर बाजार शुल्क कम नहीं करेगा। मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) के प्रबंध निदेशक और सीईओ लेमन रूटेन ने कहा, 'स्टांप शुल्क में बढ़ोतरी जिंस एक्सचेंजों से विचार-विमर्श के बिना की गई है। अभी एमसीएक्स के सदस्यों से 250 करोड़ रुपये के कारोबार तक प्रति लाख 2.5 रुपये और 250 से 1,000 करोड़ रुपये तक के कारोबार पर 1.25 रुपये प्रति लाख शुल्क वसूला जाता है। (BS Hindi)

50 चीनी मिलें बंद, फिर भी उत्पादन बेहतर

लखनऊ March 25, 2011
गन्ना आपूर्ति में कमी के चलते 50 चीनी मिलों के बंद रहने के बावजूद इस पेराई सीजन में उत्तर प्रदेश में चीनी का उत्पादन करीब 56 लाख टन पर पहुंच गया है। पिछले सीजन में 51.8 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था।पेराई सीजन धीरे-धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रहा है, खास तौर से पूर्वी उत्तर प्रदेश में। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कुछ मिलों का संचालन 15 अप्रैल तक जारी रहने की संभावना है, हालांकि यह गन्ने की वास्तविक आपूर्ति पर निर्भर करेगी।गन्ने की कम उपलब्धता की वजह से पिछले साल 15 मार्च के आसपास पेराई सत्र समाप्त हो गया था। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस साल पेराई सीजन में उत्तर प्रदेश में अब तक 125 मिलों ने भागीदारी की है और यहां 613 लाख टन गन्ने की पेराई हुई है। इस पेराई से शुगर रिकवरी 9.10 फीसदी की हुई है।इस बीच, राज्य के किसानों को मौजूदा सीजन में किया गया भुगतान 11000 करोड़ रुपये को पार कर गया है जबकि उनकी संयुक्त बकाया रकम 12372 करोड़ रुपये है। नियमों के मुताबिक, मिलें बिना किसी अर्थदंड के भुगतान में 14 दिन का समय ले सकते हैं।साल 2008-09 और 2009-10 में क्रमश: 5900 करोड़ रुपये और 13000 करोड़ रुपये (रिकॉर्ड स्तर) का भुगतान गन्ना किसानों को किया गया था। गन्ना के भुगतान में बढ़ोतरी की वजह से पिछले कुछ सालों में गन्ने का रकबा बढ़ा है। चीनी उïद्योग के एक प्रवक्ता ने कहा - इस साल गन्ने का भुगतान बेहतर व जल्दी हुआ है, जो किसानों को गन्ने की खेती जारी रखने के लिए उत्साहित करेगा। उन्होंने कहा कि अगर किसान उत्साहित होंगे तो गन्ने का रकबा भी बढ़ेगा।इस साल राज्य सरकार ने गन्ने के लिए प्रदेश परामर्श मूल्य (एसएपी) में 40 रुपये की बढ़ोतरी की है। साल 2010-11 में गन्ने का रकबा और उत्पादन क्रमश: 20 लाख हेक्टेयर और 1.2 करोड़ टन रहने का अनुमान है।प्रदेश में करीब 40 लाख किसान गन्ना उत्पादन से जुड़े हैं, जो गन्ने की उपज के मामले में देश में सबसे बड़ा है और चीनी उत्पादन के मामले में महाराष्ट्र के बाद दूसरे सबसे बड़ा प्रदेश है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की सालाना खपत 50 लाख टन है। (BS Hindi)

24 मार्च 2011

Silver Imports Soar in India

As a follow up to a thread I started the other day on increasing silver demand in India - MUMBAI (Commodity Online): The historic high price of gold is driving investors in India to take solace in silver. Demand for silver is surging in the country as investors, traders and families are shifting to the white metal thanks to the soaring prices of gold. “Demand for silver products like silver coins, jewellery etc has soared in India as many people in rural areas cannot afford to think of buying gold at these high prices,” Suresh Vaid, a bullion dealer in Mumbai said. India is the largest consumer and importer of silver in the world. According to commodities brokerage Karvy Comtrade silver imports by India soared more than six times to $1.7 billion in the first-half of 2010. Vaid says rising gold price is certainly one reason why silver imports are going up in India. “People in rural India are these days buying more silver than gold because they can not simply afford to buy gold,” he said. India is the largest importer of the silver in the world and the country consumes more than 4000 tons of silver annually with the bulk of sale being made in rural areas. India has emerged as the third largest industrial user of silver in the world after US and Japan.Know all the facts and figures on India's booming silver market here: The vast majority of silver in India is used in production of ornamental items like jewelry, utensils and gift articles. Industrial use account for about 1300-1500 tons. In rural areas, silver is considered as hedge against inflation and thus provides an investment avenue. Indians are known to spend substantial part of their income on purchase of silver, partly as an unavoidable expenditure for weddings and other family celebrations and partly as investment. Demand for ornamental silver is affected by the festive season and marriage season in February, April, June and December as well as the monsoons between June and August. While the demand has increased substantially, annual consumption is dictated both by monsoon, with its effect on the harvest, and the marriage season. In a significant move, the government has also liberalised the import of Gold and Silver. This will provide freedom to procure inputs by jewellery exporters and add to the cost competitiveness of the Indian jewellery exports. The Indian demand for silver is very different from the global pattern of silver demand, where 65% of the demand comes for Jewellery, Ornaments and gift articles. Industrial demand forms a minor share. Indian demand plays a major role on the global silver demand. Industrial demand for silver in India is in the range of 1300-1500 tons per annum, the bulk of which is in pharmaceuticals, plating, electrical, foils, jari, soldering and brazing. Rural areas remain the heartlands of silver purchases in India. Out of the 4000 tons that India imports around 2600 tons is used as jewelry and ornaments the demand for which mainly comes from rural India. In rural communities, silver, considered a hedge against inflation, also provides an investment function. Far more affordable than gold, it is purchased by small families in the form of jewellery. Indian silver jewellery must have a minimum purity of 50 %, the rest being made up of alloys that differ from state to state, but commonly involve copper and zinc. The demand in rural India depends largely on the agricultural income which in turn is depended on Monsoon. So a good monsoon is very much the basis of a demand in rural India. Jewellery designs can carry a special significance: some are only worn by young children, others denote marriage and still others widowhood. There are also regional variations, so that the style of jewellery worn in one part of the country is completely unknown in another. Even communities living side by side will possess their own distinct pattern. This is clearly visible in places like Banni, Kutch in the west Indian state of Rajasthan, where a huge conglomeration of castes and sub-castes has an enormous range of designs, some of the most spectacular in the country. One tradition among Indian village communities is the wearing of extremely chunky silver jewellery, and the evolution of this style reveals a great deal about Indian village life. The silversmith tosses repurchased items into the melting pot, from which they will be fashioned into new pieces. By contrast with United States and Japan, Indian industrial offtake for fabrication in hardcore industrial applications like electronics and brazing alloys accounts for only 15 % and the rest being for foils for use in the decorative covering of food, plating of jewelry and silverware and Jari. India produce a negligible amount of silver with the production coming as the by product of other metal extraction. The total production in India is around 60 tonnes which is just 1.5% of the total demand.

Silver

A soft white precious univalent metallic element having the highest electrical and thermal conductivity of any metal; occurs in argentite and in free form; used in coins and jewelry and tableware and photography coins made of silver Uses of silverSilver's unique properties include its strength, malleability, ductility, electrical and thermal conductivity, sensitivity to high reflectance of light and despite it being classified as a precious metal, its reactivity which is the basis for its use in catalysts and photography. World Markets
London Bullion Market is the global hub of OTC (Over-The-Counter) trading in silver.
Comex futures in New York is where most fund activity is focused Indian Scenario
Silver imports into India for domestic consumption in 2002 was 3,400 tons down 25 % from record 4,540 tons in 2001.
Open General License (OGL) imports are the only significant source of supply to the Indian market.
Non-duty paid silver for the export sector rose sharply in 2002, up by close to 200% year-on-year to 150 tons.
Around 50% of India's silver requirements last year were met through imports of Chinese silver and other important sources of supply being UK, CIS, Australia and Dubai.
Indian industrial demand in 2002 is estimated at 1375 tons down by 13 % from 1,579 tons in 2001. In spite of this fall, India is still one of the largest users of silver in the world, ranking alongside those Industrial giants, Japan and the United States.
By contrast with United States and Japan, Indian industrial offtake for fabrication in hardcore industrial applications like electronics and brazing alloys accounts for only 15 % and the rest being for foils for use in the decorative covering of food, plating of jewelry and silverware and jari.
In India silver price volatility is also an important determinant of silver demand as it is for gold. World Silver Supply from Above-ground Stocks
Million Ounces

2001
2002
Implied Net Disinvestment
-9.5
20.9
Producer Hedging
18.9
-24.8
Net Government Sales
87.2
71.3
Sub-total Bullion
96.6
67.4
Scrap
182.7
184,9
Total
279.3
252.3India Industrial Fabrication , 2002
Percentage
Pharmacy & Chemicals
22.4
Foil
9
Plating
13.7
Solders & Brazing
5.4
Electrical
13.5
Photography
0.85
Jari
17.1Frequency Distribution of Silver London Fixing Volatility from 1995 till date
Percentage Change
> 7%
5 - 7 %
3 - 5%
<3%
Daily




Number of times
7
10
85
2086
Percentage times
0.3
0.5
3.9
95.3
Weekly




Number of times
9
15
50
363
Percentage times
21
3.4
11.4
83.1Biggest Price Movement since 1995Between February 4 - 6, 1998, daily prices rocketed by 22.3%, based on a noted US financier had accumulated nearly 130 ounces of physical silver. Note: Post September 1999 daily silver prices have shown more than 5% movement not once and weekly silver prices only once.

चांदी की मजबूत चाल से चकरा रहे हैं लोग

मुंबई March 07, 2011
वैश्विक बाजार में चल रही तेजी, मजबूत घरेलू मांग और निवेशकों की दरियादिली के चलते चांदी की कीमतें हर दिन नए रिकॉर्ड बना रही हैं। वायदा बाजार में चांदी की कीमतें चौकाने वाले स्तर 57,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई। उधर घरेलू हाजिर बाजार में चांदी 1370 रुपये बढ़कर 54970 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गई। जबकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चांदी के दाम बढ़कर 35.67 डॉलर प्रति आउंस पर पहुंच गए, जो पिछले 31 साल का उच्चतम स्तर है। सोने की भी कीमतें 21 हजार रुपये प्रति 10 ग्राम के स्तर को पार कर गई।कच्चे तेल में चल रही तेजी का असर चांदी की कीमतों पर साफ तौर पर दिखाई पड़ रहा है। एमसीएक्स दिसंबर अनुबंध में चांदी कारोबार के दौरान 57,050 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई, जो बाद में 1757 रुपये (3.19 फीसदी) की बढ़त के साथ 56,757 रुपये प्रति किलोग्राम पर बंद हुई। हालांकि इस अनुंबध में कारोबार कम होने की वजह से बाजार विशेषज्ञ इस अनुबंध की कीमतों को ज्यादा महत्व नहीं दे रहे हैं। एमसीएक्स मई अनुबंध का उच्चतम स्तर 54,710 रुपये प्रति किलोग्राम था, जो 1217 रुपये की बढ़त के साथ 54,634 पर बंद हुआ। विशेषज्ञों की राय में चांदी की कीमतें 55,300 या फिर 55,700 रुपये प्रति किलोग्राम तक जा सकती हैं। वायदा बाजार की तरह सर्राफा बाजार में भी चांदी की कीमतें अब तक के सारे रिकॉर्डों को तोड़ते हुए 54,970 रुपये पर बंद हुई। जो कारोबार के दौरान 55,000 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर को पार कर गई थी।चांदी की बढ़ती कीमतों की प्रमुख वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार को बताते हुए ऐंजल ब्रोकिंग केनवीन माथुर कहते हैं कि कच्चे तेल की कीमतें ऊपर की तरफ जा रही हैं। पश्चिम एशिया का संकट गहराता जा रहा है, जिससे निवेशक कीमती धातुओं को प्राथमिकता दे रहे हैं। सोने की बढ़ती कीमतें भी चांदी को सपोर्ट कर रही हैं। माथुर कहते हैं कि हालांकि चांदी की कीमतें सोने से ज्यादा तेजी से बढ़ रही हैं। इसकी प्रमुख वजह पिछले कुछ सालों में चांदी से मिलने वाला बेहतरीन रिटर्न है। सोने की अपेक्षा चांदी की कीमतें कम हैं, जिससे रिटेल निवेशक भी चांदी में दाव लगा रहे हैं। निवेशकों की बढ़ती संख्या चांदी की कीमतों को आसमान पर लेकर जा रही है।ज्वैलर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष कुमार जैन कीमतें बढऩे की एक प्रमुख वजह वायदा बाजार को मानते हैं। जैन का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी की कीमतों में लगातार तेजी का रुख बना हुआ है और घरेलू बाजार में वायदा बाजार कीमतों को हवा दे रहा है जिसका प्रभाव सर्राफा बाजार की कीमतों पर पड़ रहा है। जैन कहते हैं कि अब तो चांदी की कीमत भी किलोग्राम में न बताकर ग्राम में बतानी चाहिए क्योंकि खुदरा ग्राहक अब चांदी किलोग्राम में खरीदने की स्थिति में नहीं बचे हुए हैं। कारोबारियों की मानी जाए तो अरब देशों में चल रहे हिंसक आंदोलन के कारण छोटे-बड़े सभी ग्राहक चांदी में दिल खोलकर पैसा लगा रहे हैं। इसका असर चांदी की कीमतों पर साफ तौर पर दिख रहा है। जिससे बाजार में चांदी की मांग तेजी से बढ़ रही है, मांग बढऩे से कीमतें भी बढ़ रही हैं। (BS Hindi)

23 मार्च 2011

FCI begins lifting wheat, targets record 26 mt buy

New Delhi: With the government anticipating a record wheat output, the Food Corporation of India (FCI) has begun buying from farmers in Madhya Pradesh for the current season. It will start purchase operations in the key growing states of Punjab and Haryana from April 1.
According to the latest data, the FCI, which commenced its buying operation last week, had lifted more than 47,000 tonne of wheat in Madhya Pradesh by Monday, against 36,000 tonne achieved during same period last year.
Thanks to favourable cold weather conditions prevailing during the last few months and prompt government measures to control the yellow rust disease that had threatened to destroy wheat crop in parts of Jammu and Kashmir and Punjab, the country is all set to harvest a record wheat output in the current season.
The government has set a record wheat production target of 81.47 million tonne in 2010-11 against 80.8 million tonne in the previous year. Due to the bumper wheat harvest of 8 million tonnes in Madhya Pradesh last year, the state government has registered a twofold rise in procurement to 3.42 million tonne from 1.67 million tonne a year ago.
Official sources told FE that the FCI would commence lifting operations in Gujarat in next few days as farmers have already brought 24,000 tonne of wheat to the various procurement centres in the state.
The government has hiked this year’s procurement target by more than 16% to a new high of 26 million tonne. Last year, the FCI in collaboration with state agencies had purchased 22.52 million tonne of wheat from farmers.
Last year, Punjab contributed the highest quantity of 10.17 million tonne of wheat to the central pool and FCI had procured 6.33 million tonne from Haryana.
The government procures wheat and rice from farmers at the minimum support price, which this year has been set at R1,120 per quintal for wheat.
Meanwhile, the FCI, which is facing an acute shortage of storage space, has initiated measures to move 2.4 million tonne of existing wheat stocks from Punjab and Haryana and 8 lakh tonne of stocks from other states to southern and western states for creating space for the fresh crop.
“We have large stocks of wheat and rice, which is far above strategic reserve and buffer stocks norms,” a food ministry official said. As on March 1, the FCI had 28.72 million tonnes of rice and 17.15 million tonne of wheat stocks, while the strategic reserve and buffer stocks norms stipulate foodgrain stocks of 5 million tonne of wheat and 20 million tonne of rice.
The FCI procures grain for allocation to states under the PDS and also adheres to buffer and strategic reserve norms. (Financial Express)

UP to procure 3.9 MT wheat

Uttar Pradesh, India’s leading wheat producer, is targeting to procure 3.9 million tonnes (MT) of wheat in the 2011-12 season beginning April 2011.
This comes in the backdrop of bumper wheat production estimates for the coming season. According to the state agriculture department, the state wheat production is likely to increase by 4.5 per cent to 28.83 MT compared to 27.5 MT last year. The wheat acreage is estimated at 9.61 million hectares.
The procurement season would start from June 30 and the government has directed food department officials to meet the target and ensure payment of minimum support price (MSP) of Rs 1,120 per quintal to farmers. A major portion of wheat produced is retained by farmers for personal consumption and only a portion of rabi crop gets to the market.
Food Corporation of India (FCI) will procure another 100,000 tonnes of wheat. Last year, the wheat procurement by government agencies was rather poor and only 50 per cent of the 4 MT target was met. MSP then stood at Rs 1,100, but the state farmers had received payments at Rs 1,056 per quintal due to shrivelled crop following excess heat. However, the market rate last year revolved around Rs 1,200 per quintal.
Meanwhile, Food Minister Ram Prasad Chaudhary directed the setting up of procurement centres for ensuring minimum commutation by farmers for selling wheat, and operationalise a ‘single window’ system towards that end for facilitating receipt, issue of coupon and acknowledgement are processed by one official at one place. (BS)

रबी मौसम (2009-10) हेतु मौसम आधारित फसल बीमा योजना (WBCIS)

योजना के अंतर्गत आनेवाले राज्य
इस योजना को निम्न 20 राज्यों में लागू किये जाने का प्रस्ताव है। ये राज्य हैं- आँध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल।
योजना के लक्ष्य
इस योजना का लक्ष्य वर्षा की कमी या अधिकता जैसे विपरीत मौसम की स्थिति में होनेवाले दुर्घटना के फलस्वरूप प्रत्याशित आर्थिक क्षति की संभावनाओं से बचाव करना है

योजना की प्रमुख विशेषता
रबी मौसम में गैर-मौसमी वर्षा, ताप, कुहासा, आर्द्रता आदि जैसे मापदंड कुछ ऐसे कारक हैं जो फसल को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
यह योजना रबी मौसम के दौरान होने वाले प्रमुख अनाज, बाजरा, दाल, तिलहन और व्यापारिक/बागवानी फसलों पर लागू होगी।
कर्जदार या कर्जहीन सभी प्रकार के किसान इस योजना के तहत लाभ पाने के हकदार होंगे। कर्जदार किसान के लिए बीमा आवश्यक होगी जबकि कर्जहीन के लिए यह वैकल्पिक होगी।
यह योजना भारतीय कृषि बीमा कंपनी लिमिटेड (AIC) और निजी बीमा कंपनी अर्थात् आईसीआईसीआई-लॉम्बार्ड जेनरल बीमा कंपनी, ईफको-टोकियो जेनरल बीमा कंपनी और चोलामंडलम् एमएस जेनरल बीमा कंपनी द्वारा लागू की जाएगी।
योजना में भाग लेने वाले सभी बीमा कंपनियों (सरकारी और निजी) को कर्जदार व कर्जमुक्त किसानों के लिए इस योजना को लागू करने की अनुमति दी जाएगी।
जिन क्षेत्रों में मौसम आधारित फसल बीमा योजना लागू की जाएगी उसे बाद में सूचित किया जाएगा।
जिन क्षेत्रों में मौसम आधारित फसल बीमा योजना लागू की गई है उस क्षेत्र के कर्जदार किसानों के लिए राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) लागू नहीं की जाएगी। हालांकि कर्जहीन किसान राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और मौसम आधारित फसल बीमा योजना और बीमा कंपनी में से किसी एक को चुन सकते हैं।
कर्जदार किसानों के लिए उनकी पसंद/प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए संबंधित राज्य प्रत्येक कार्यकारी एजेंसी के लिए योजना के कार्यान्वयन क्षेत्र निर्धारित करेगा। मेसर्स चोलामंडलम् एमएस जेनरल बीमा कंपनी को अन्य कार्यकारी एजेंसी के अलावा सिर्फ तमिलनाडु और झारखंड राज्य के लिए कार्य करेंगे।
प्रीमियम दर, शुल्क, जोखिम कवरेज, कुल बीमा राशि, दावों के भुगतान और प्रीमियम सब्सिडी के संबंध में बीमा कंपनियाँ, बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण से अनुमोदन के बाद और भारत सरकार द्वारा समय-समय पर जारी दिशा-निर्देंशों के अनुरूप करेगा।
बीमा राशि की अधिकतम सीमा, जो कि लगभग खेती में कुल लागत के बराबर होगा, बनाये रखने के लिए कर्जहीन किसान को यह सुविधा होगी कि वे अधिकतम सीमा के अंदर छोटी राशि के लिए बीमा करवाये। लेकिन यह बीमा राशि अधिकतम सीमा के 50% से नीचे नहीं होनी चाहिए।
प्रीमियम के बीमांकन (एक्चुरियल) दर का निर्धारण प्रामाणिक प्रीमियम रेटिंग विधि द्वारा कृषि बीमा कंपनी (एआईसी) सहित सभी बीमा कंपनियों द्वारा किया जाएगा और अनाज फसल व तिलहन के लिए दर 8% की सीमा निर्धारित की गई है। रबी मौसम में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के वर्तमान दर के अनुसार अनाज व तिलहन फसल के लिए किसान मूलतः प्रीमियम का भुगतान करेंगे। अनाज व तिलहन फसल के संदर्भ में बीमांकन दर और उचित दर के बीच का अंतर, केंद्र और राज्य सरकार के बीच 50:50 अनुपात में बाँटा जाएगा।
वार्षिक व्यापारिक/बागवानी फसलों के मामलों में किसानों द्वारा भुगतान किये जाने वाले 6% की अधिकतम सीमा को निम्नानुसार प्रदर्शित किया गया हैः
क्रम संख्या
प्रीमियम खंड
केंद्र और राज्य सरकार द्वारा 50:50 अनुपात में सब्सिडी और किसान द्वारा भुगतान किये जाने वाले प्रीमियम
1
2% तक
कोई सब्सिडी नहीं
2
> 2 - 5%
किसान द्वारा भुगतान किये जानेवाले न्यूनतम 2% शुद्ध प्रीमियम के अधीन 25% सब्सिडी।
3
> 5-8 %
किसान द्वारा भुगतान किये जानेवाले न्यूनतम 3.75% शुद्ध प्रीमियम के अधीन 40% सब्सिडी।
4
> 8%
किसान द्वारा भुगतान किये जानेवाले न्यूनतम 4.8% शुद्ध प्रीमियम के अधीन 50% सब्सिडी।
वार्षिक व्यापारिक/बागवानी फसलों के मामलों में प्रीमियम के बीमांकन दर की 12% की सीमा लागू होगी।
बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के विनियमों के अनुसार जोखिम कवरेज को स्वीकार्य बनाने के लिए निजी बीमा कंपनियाँ (आईसीआईसीआई-लॉम्बार्ड, ईफ्फको-टोकियो और चोला एमएस) कृषि बीमा कंपनी से निधि (प्रीमियम का सब्सिडी भाग) प्राप्त कर सकती हैं और बाद में कृषि बीमा कंपनी वह राशि भारत सरकार व संबंधित राज्य सरकार से प्राप्त करेगी।
सभी प्रकार के दावों का उत्तरदायित्व संबंधित बीमा कंपनियों का होगा।
निजी बीमा कंपनियाँ उसी स्तर के सब्सिडी के लिए पात्र होंगे जो कि कृषि बीमा कंपनी के लिए लागू होगा और यह उसे कृषि बीमा कंपनी के माध्यम से प्राप्त होगा। स्रोतः http://agricoop.nic.in

दस साल में सवा चार करोड़ किसानों को फसल बीमा, दिए गए 15521 करोड़

भारत के शहरों में रहनेवाले साढ़े पांच करोड़ परिवारों को गांवों में रहनेवाले 14 करोड़ से ज्यादा परिवारों का होश हो या न हो, लेकिन वहां भी बीमा जैसी वित्तीय सुविधाएं पहुंच रही हैं। भारत सरकार के कृषि मंत्रालय से मिली जानकारी पर यकीन करें तो पिछले दस सालों में देश के 4.27 करोड़ किसानों ने फसल बीमा का लाभ उठाया है और यही नहीं, इस दौरान फसल बीमा के दावे के रूप में उन्हें कुल 15,521 करोड़ रुपए का भुगतान भी किया गया है। यह अलग बात है कि सबसे ज्यादा दावा पानेवाले राज्यों में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख कृषि-प्रधान राज्यों का नाम शामिल नहीं है।
कृषि मंत्रालय की तरफ से गुरुवार को जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार 24 जून 2010 तक फसल बीमा के दावे के रूप में 15,521 करोड़ रुपए अदा किए गए हैं। इसमें से सबसे ज्यादा दावे की रकम 3041 करोड़ रुपए के साथ गुजरात पहले नंबर पर है। इसके बाद 2600 करोड़ रुपए के साथ आंध्र प्रदेश दूसरे नंबर पर, 1481 करोड़ रुपए के साथ महाराष्ट्र तीसरे नंबर, 1406 करोड़ रुपए के साथ कनार्टक चौथे नंबर पर और 1236 करोड़ रुपए के दावा भुगतान के साथ बिहार पांचवे नंबर पर है। चालू वित्त वर्ष 2010-11 के बजट में फसल बीमा के लिए 950 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
गौरतलब है कि देश में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (एनएआईएस) के अंतर्गत फसल बीमा का काम 1999-2000 की रबी फसल से शुरू किया गया। तब से लेकर साल 2009 की खरीफ फसल तक कुल 4.27 किसान इसका फायदा उठा चुके हैं। इस योजना से लाभ लेनेवाले किसानों की संख्या के मामले में महाराष्ट्र 85 लाख किसानों के साथ सबसे ऊपर है। इसके बाद राजस्थान (51 लाख किसान), कर्नाटक (43 लाख किसान), आंध्र प्रदेश (39 लाख किसान) और गुजरात व मध्य प्रदेश (36-36 लाख किसान) का नंबर आता है।
राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना पर अमल का काम एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड (एआईसी) देखती है। इस कंपनी की अधिकृत पूंजी 1500 करोड़ रुपए और चुकता शेयर पूंजी 200 करोड़ रुपए है। इसमें 35 फीसदी हिस्सेदारी साधारण बीमा निगम (जीआईसी) की, 35 फीसदी हिस्सेदारी जीआईसी की चार सहायक कंपनियों की और बाकी 30 फीसदी हिस्सेदारी राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की है। योजना का घोषित मकसद राष्ट्रीय आपदा, कीड़े-मकोड़ों और रोगों से फसल को हुए नुकसान से किसानों को बचाना है। इसमें अधिया-बटाई पर खेती करनेवाले किसानों को भी लाभ दिया जाता है।
योजना में अनाज, दलहन और तिलहन जैसी फसलों के अलावा व्यावसायिक व हार्टीकल्चर फसलें भी शामिल हैं। बीमा के लिए प्रीमियम की रकम फसल के अनुमानित मूल्य का 1.5 से 3.5 फीसदी होती है। लघु व सीमांत (एक हेक्टेयर या ढाई एकड़ जोतवाले) किसानों को सरकार की तरफ से प्रीमियम में 10 फीसदी सब्सिडी दी जाती है। बैंकों से कर्ज लेनेवाले किसानों के लिए फसल बीमा लेना अनिवार्य है, जबकि दूसरे किसानों के लिए यह उनकी मर्जी पर निर्भर करता है।
आखिर में बता दें कि 2001 की जनगणना के अनुसार देश में कुल घरों (हाउसहोल्ड) की संख्या 19,19,63,935 है। इसमें से ग्रामीण घरों की संख्या 13,82,71,559 है, जबकि शहरी घरों की संख्या 5,36,92,376 है। इसके बाद के सालों में इसमें लगभग 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। (O Cam)

21 मार्च 2011

नई फसल के दबाव से घटने लगे खाद्य तेलों के दाम

थोक बाजार :- पिछले दस दिनों में थोक बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में 30 से 35 रुपये प्रति दस किलो की गिरावट आ चुकी है। खुदरा बाजार :-थोक भाव में आई गिरावट से आगामी दिनों में फुटकर में भी खाद्य तेल सस्ते होंगे। इससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी।विदेश के साथ घरेलू तिलहनों की फसल आने से खाद्य तेलों की थोक कीमतों में गिरावट आने लगी है। खाद्य तेलों की थोक कीमतों में पिछले दस दिनों में तीन से साढ़े तीन रुपये प्रति किलो की गिरावट आ चुकी है। आगामी दिनों में इनके दाम तीन से चार रुपये प्रति किलो और घटने की संभावना है। फुटकर में इस समय सरसों तेल का भाव 78-80 रुपये, मूंगफली तेल का 128-130 रुपये, सोया रिफाइंड तेल का 79-81 रुपये किलो चल रहा है। थोक भाव में आई गिरावट से आगामी दिनों में उपभोक्ताओं को सस्ते खाद्य तेल मिल सकेंगे। दिल्ली वेजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन के सचिव हेमंत गुप्ता ने बताया कि अर्जेंटीना, ब्राजील के साथ भारत में तिलहनों की आवक बनने से खाद्य तेलों के दाम घटने शुरू हो गए हैं। पिछले दस दिनों में थोक बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में 30 से 35 रुपये प्रति दस किलो की गिरावट आ चुकी है। शुक्रवार को इंदौर में सोया रिफाइंड तेल 600 रुपये, हरियाणा में बिनौला तेल 550 रुपये, दादरी में सरसों तेल 585 रुपये, कांडला बंदरगाह पर पाम तेल 515 रुपये, आरबीडी पाम तेल 540 रुपये और राजकोट में मूंगफली तेल 735 रुपये प्रति 10 दस किलो रह गया। होली के बाद मांग और कम हो जाएगी, जिससे मौजूदा कीमतों में और भी 30 से 40 रुपये प्रति दस किलो का मंदा आने की संभावना है। अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) के भारत में स्थित एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ब्राजील में सोयाबीन का उत्पादन फरवरी के अनुमान के मुकाबले 15 लाख टन ज्यादा करीब 700 लाख टन होने की संभावना है। जबकि अर्जेंटीना में 495 लाख टन पैदावार होने का अनुमान है। एंजेल कमोडिटी के सीनियर एग्री विश्लेषक बद्दरुद्दीन ने बताया कि पाम तेल का मुंबई पहुंच भाव शुक्रवार को घटकर 1,140 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) रह गया जबकि 21 फरवरी को इसका भाव 1,255 डॉलर प्रति टन था। आरबीडी पामोलीन का मुंबई पहुंच भाव इस दौरान 1,300 डॉलर से घटकर 1,210 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) रह गए। एमसीएक्स में अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में सोया तेल का भाव पांच मार्च को 653.80 रुपये प्रति दस किलो था जो 16 मार्च को घटकर 595 रुपये प्रति दस किलो रह गया। हालांकि नीचे भावों में मुनाफावसूली से शुक्रवार को 616 रुपये प्रति दस किलो पर कारोबार करते देखा गया लेकिन भविष्य में दाम घटने की ही संभावना है। साई सिमरन फूड लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि घरेलू तिलहनों की आवक मंडियों में शुरू हो गई है जबकि आयातित खाद्य तेलों के दाम घटे हैं। इसीलिए आगामी दिनों में खाद्य तेलों की कीमतों में मंदे की ही संभावना है। कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में 182.19 लाख टन तिलहनों का उत्पादन होगा जबकि वर्ष 2009-10 में 157.29 लाख टन का उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar.....R S Rana)

पीईसी करेगी दाल आयात

मुंबई March 18, 2011
देश में दलहन की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी पीईसी लिमिटेड ने 10,000 टन दाल आयात करने के लिए निविदाएं आमंत्रित की है। आयात की जाने वाली दालों में 4,000 टन उड़द, 4,000 टन मूंग और 2,000 टन छोला चना दाल होगी। जिसका शिपमेंट अप्रैल-मई महीने में किया जाएगा। आयात के लिए बोली 24 मार्च तक मांगी गई है। पीईसी के निदेशक रवि कुमार ने दाल आयात के इस खबर की पुष्टिï की। उन्होंने बताया, 'कंपनी ने 4000 टन उड़द के लिए निविदा मंगाई है। इसमें से 2000 टन मुंबई पोर्ट पर और 2000 टन चेन्नई में देना होगा। यह दाल म्यांमार से आएगी। 4,000 टन मूंग दाल का भी आयात किया जाएगा। इसमें से 2,000 टन अमेरिका और 2,000 टन कनाडा से आयात किया जाएगा। जबकि 2,000 टन छोला चना का अस्ट्रेलिया से आयात किया जाएगा। इसे मुंबई पोर्ट पर पहुचाना होगा।Óकृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार इस बार देश में दलहन का उत्पादन 13.2 फीसदी बढ़कर 165 लाख टन पहुंचने की संभावना है। ऐंजल ब्रोकिंग की नलिनी राय के अनुसार सरकारी प्रयास और दलहनों की बढ़ती कीमत की वजह से देश में दलहन का रकबा बढ़ा है जिससे उत्पादन भी पहले से ज्यादा हो रहा है लेकिन उत्पादन बढऩे के बावजूद मांग पूरी नहीं की जा सकती है जिसकेलिए आयात का सहारा लेना पड़ रहा है। इस समय दलहन की सालाना खपत तकरीबन 192 लाख टन है जबकि उत्पादन 165 लाख टन होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। इसका मतलब यह हुआ कि उत्पादन बढऩे के बावजूद तकरीबन 27 लाख टन दाल की कमी बनी हुई है।फसल सीजन के बावजूद कुछ दिनों से दालों में दोबारा तेजी दिख रही है। इसकी मुख्य वजह बढ़ती मांग को बताया जा रहा है। बाजार के जानकारों का कहना है कि इस साल दालों की कीमतें रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच चुकी थीं जिसको देखते हुए स्टॉकिस्ट इस समय जमकर खरीदारी कर रहे हैं। इस वजह से बाजार में मांग में तेजी बनी हुई है और इसी वजह से कीमतेंं बढ़ रही हैं। किसान इस समय बाजार में उतना ही माल लेकर आ रहे हैं जितना माल बेचने से उनका खर्च चलने वाला है बाकी की बिक्री वह ऑफ सीजन में ऊंची दर पर कर पैसा बनाना चाहते हैं। भाव चढऩे की एक वजह इसे भी माना जा रहा है। (BS Hindi)

पूंजी आधार बढ़ाएगा एस कमोडिटी एक्सचेंज

मुंबई March 18, 2011
जिंसों के वायदा कारोबार में हाल ही में कदम रखने वाले एस कमोडिटी एक्सचेंज ने जुलाई-अगस्त तक अपने पूंजी आधार को 20 फीसदी बढ़ाने की योजना बनाई है। इस एक्सचेंज में मुख्य हिस्सेदार कोटक है। इस प्रक्रिया में एक्सचेंज के पूंजी आधार में तकरीबन 20 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी। इसके बाद कोटक की हिस्सेदारी 51 फीसदी से घटकर 40 फीसदी रह जाएगी और इससे नियामक के नियमों का भी पालन होगा। अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज को कोटक महिंद्रा बैंक की मदद से अपग्रेड करके राष्टï्रीय एक्सचेंज बनाया गया है और एस कमोडिटी एक्सचेंज में इसकी 51 फीसदी हिस्सेदारी है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के नियमों के मुताबिक शुरू होने से साल भर के अंदर इसे घटाकर 40 फीसदी करना होगा। एस के मुख्य कार्याधिकारी दिलीप भाटिया ने बताया, 'एफएमसी के दिशानिर्देशों के मुताबिक कोटक की हिस्सेदारी घटाकर 40 फीसदी करने के लिए नए इक्विटी जारी किए जाएंगे। हालांकि, अभी समय बचा हुआ है और अब तक हमने कोई आखिरी फैसला नहीं किया है।Óएक्सचेंज की शुरुआत 100 करोड़ रुपये की पूंजी के साथ की गई थी। इसमें 10 फीसदी हिस्सेदारी पुराने अहमदाबाद कमोडिटी एक्सचेंज और 15 फीसदी हिस्सेदारी हरियाणा एग्रीकल्चर मार्केटिंग फेडरेशन समेत कुछ बैंकों के पास है। इस बार जुटाए जाने वाले पैसे का इस्तेमाल एक्सचेंज के उत्पाद आधार को बढ़ाने और बेहतर सेवा मुहैया कराने के लिए तकनीकी उन्नयन में किया जाएगा।अभी इस एक्सचेंज के जरिए 6 कृषि उत्पादों का कारोबार होता है। (BS Hindi)

18 मार्च 2011

पीडीएस में तेल व दाल की सुलभता बढ़ेगी

आर.एस. राणा नई दिल्ली

बात पते की :- 31 मार्च को समाप्त हो रही सस्ती दाल व खाद्य तेल वितरण की स्कीम एक साल के लिए बढ़ाने की सिफारिश की गई है। ईजीओएम की बैठक में इस पर निर्णय लिया जाएगा।महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए सरकार राज्यों में पीडीएस यानि राशन की दुकानों के जरिये सस्ती दालों और खाद्य तेल की उपलब्धता बढ़ाने की कोशिश कर रही है। इसके लिए वित्त वर्ष 2011-12 के लिए आवंटित राशि में 66.6 फीसदी की बढ़ोतरी कर 500 करोड़ रुपये करने की सिफारिश की गई है। उपभोक्ता मामले विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू वित्त वर्ष 2010-11 के लिए 300 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी, जो समाप्त हो चुकी है।
इसके तरह सरकार बीपीएल परिवारों को दाल और खाद्य तेल सस्ते दामों पर राशन की दुकानों के जरिये सुलभ कराती है। उन्होंने बताया कि राज्यों को सब्सिडी युक्त दालों एवं खाद्य तेलों के आवंटन की अवधि 31 मार्च 2011 को समाप्त हो रही है, जिसे एक साल के लिए बढ़ाने की सिफारिश की गई है।
खाद्य मामलों पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की आगामी बैठक में इस पर निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि सब्सिडी की इस योजना के तहत खाद्य मंत्रालय दालों एवं खाद्य तेलों का वितरण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिये करता है।
दालों पर 10 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से और खाद्य तेलों पर 15 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी दी जाती है। हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र की राज्य सरकारें चालू वित्त वर्ष में पीडीएस में आवंटित करने के लिए दालों और खाद्य तेलों का उठान कर रही हैं।
उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष में 15 फरवरी, 2011 तक सार्वजनिक कंपनियों पीईसी, एमएमटीसी, एसटीसी और नेफेड तीन लाख टन आयातित दालों की सप्लाई पीडीएस में कर चुकी हैं। जबकि चालू वित्त वर्ष में अभी तक सार्वजनिक कंपनियों ने कुल 6.1 लाख टन दालों के आयात सौदे किए हैं तथा इसमें से 5.56 लाख टन दालेें भारतीय बंदरगाहों पर पहुंच चुकी हैं। इसीलिए आवंटित राशि समाप्त हो चुकी है।
वर्ष 2010-11 में देश में दलहन का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान है जबकि तिलहन उत्पादन भी बढऩे की संभावना है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक दालों का उत्पादन बढ़कर 165.1 लाख टन होने का अनुमान है। वर्ष 2009-10 में देश में दालों का 146.6 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
तिलहन उत्पादन दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार पिछले साल के 248.82 लाख टन से बढ़कर 278.48 लाख टन होने का अनुमान है। घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत हर साल करीब 35 से 40 लाख टन दालों और 75 से 80 लाख टन खाद्य तेलों का आयात करता है। (Business Bhaskar....R S Rana)

नेफेड जौ, मक्का, चना व मसूर की भी खरीद करेगी

भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (नेफेड) रबी में गेहूं के साथ जौ, मक्का, चना और मसूर की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर करेगी। जबकि इस समय नेफेड धान की सरकारी खरीद उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में पहले से ही कर रही है।
नेफेड के जरनल मैनेजर (फूड ग्रेन) एस. के. सिंह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि रबी में गेहूं की एमएसपी पर खरीद के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार में राज्य सरकारों से बात चल रही है। जबकि गेहूं के अन्य प्रमुख उत्पादक राज्यों हरियाणा, पंजाब, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश से भी खरीद करने की योजना है। इसके अलावा चालू रबी में जौ और मक्का की खरीद भी एमएसपी पर की जाएगी। आवक बढऩे पर अप्रैल के पहले सप्ताह से खरीद शुरू होने की संभावना है।
उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से चने और मसूर की खरीद भी एमएसपी पर की जाएगी। चालू विपणन सीजन के लिए सरकार ने चने का एमएसपी 2,100 रुपये और मसूर का 2,250 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
मौसम साफ होने के बाद इन राज्यों की मंडियों में आवक बढऩे की संभावना है। खरीफ विपणन सीजन 2010-11 में कंपनी अभी तक 3.25 लाख टन धान की सरकारी खरीद कर चुकी है। इसके अलावा 129 टन उड़द, 254 टन अरहर की खरीद की जा चुकी है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

निर्यात शुरू न होने से चीनी में गिरावट का दौर

चीनी का घरेलू उत्पादन बढऩे के बावजूद सरकार द्वारा ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) में निर्यात की अनुमति नहीं दिए जाने से इसकी कीमतों में अभी तेजी की संभावना नहीं है। उत्पादक मंडियों में जनवरी से अभी तक चीनी की कीमतों में 7.2 फीसदी और वायदा बाजार में 11.7 फीसदी की गिरावट आ चुकी है।
चालू पेराई सीजन 2010-2011 (अक्टूबर से नवंबर) के दौरान चीनी उत्पादन में 29 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। जबकि व्यापारियों पर चीनी की स्टॉक लिमिट 200 क्विंटल सरकार ने तय की हुई है। ऐसे में ओजीएल में निर्यात खुलने के बाद ही मौजूदा कीमतों में तेजी आने की संभावना है। कोआपरेटिव चीनी मिलों के संगठन एनएफसीएसएफ ने भी मांग की है कि सरकार को ओजीएल में पांच लाख टन चीनी निर्यात की तुरंत अनुमति देनी चाहिए। इससे मिलों की खराब होती वित्तीय स्थिति सुधरेगी।
चीनी के थोक कारोबारी सुधीर भालोठिया ने बताया कि पिछले दो महीने में चीनी की एक्स-फैक्ट्री कीमतों में 225-250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स-फैक्ट्री भाव घटकर शुक्रवार को 2,800 से 2,875 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। दिल्ली थोक बाजार में इसके दाम घटकर 2,950-3,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। उधर महाराष्ट्र में चीनी के एक्स-फैक्ट्री भाव घटकर इस दौरान 2,550-2,600 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गए हैं।
एनसीडीईएक्स पर चीनी के मार्च महीने के वायदा अनुबंध में निवेशकों की मुनाफावसूली से गिरावट बनी हुई है। जनवरी से अभी तक मार्च महीने के वायदा अनुबंध में चीनी की कीमतें 11.7 फीसदी तक घट चुकी हैं। शुक्रवार को मार्च महीने के वायदा अनुबंध में इसकी कीमतें घटकर 2,777 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुई जबकि पहली जनवरी को इसका भाव 3,103 रुपये प्रति क्विंटल था।
मार्च महीने के वायदा अनुबंध में 28,890 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं। कमोडिटी विश्लेषक अभय लाखवान ने बताया कि मिलों की बिकवाली ज्यादा आ रही है जबकि व्यापारियों पर स्टॉक रखने की सीमा तय की हुई है। इसीलिए स्टॉकिस्टों की मांग भी कमजोर है। ओजीएल में अभी तक सरकार ने चीनी निर्यात पर कोई फैसला नहीं किया है। इसीलिए मौजूदा कीमतों में अभी तेजी की संभावना नहीं है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू पेराई सीजन (अक्टूबर से नवंबर ) के दौरान चीनी का उत्पादन 245 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि पेराई सीजन के शुरू में लगभग 50 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। ऐसे में चीनी की कुल उपलब्धता चालू सीजन में 295 लाख टन की बैठेगी जबकि देश में चीनी की सालाना खपत 225 लाख टन की होती है। उन्होंने बताया कि चीनी निर्यात की अनुमति पर खाद्य मामलों पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह की आगामी बैठक में विचार हो सकता है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू पेराई सीजन में पंद्रह फरवरी तक 138 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा है।
पिछले पेराई सीजन में गन्ने की कमी के कारण 15 अप्रैल तक ही मिलों में पेराई चली थी लेकिन चालू सीजन में मई के आखिर तक मिलों में पेराई चालू रहने की संभावना है। ऐसे में उत्पादन 250 लाख टन होने का अनुमान है। पिछले पेराई सीजन में देश में चीनी का उत्पादन 190 लाख टन का ही हुआ था।
चीनी के व्यापारियों पर लगी स्टॉक लिमिट की अवधि को एक साल के लिए बढ़ाने की सिफारिश की गई है। उपभोक्ता मामले विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक चीनी पर स्टॉक लिमिट की अवधि को बढ़ाकर 31 मार्च 2012 तक किए जाने की सिफारिश की गई है।
इस समय व्यापारी 200 क्विंटल चीनी का स्टॉक ही रख सकते हैं। ईजीओएम की आगामी बैठक में इस पर निर्णय लिया जायेगा। चीनी व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट की अवधि 31 मार्च 2011 तक के लिए लगी हुई है। ऊंची कीमतों से उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए सरकार ने फरवरी 2009 में चीनी के व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट लगाई थी। (Business Bhaskar....R S Rana)

खाद्य सुरक्षा सहित कई मसलों पर ईजीओएम में होगी चर्चा

चीनी और गेहूं के निर्यात के साथ ही प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल पर इस सप्ताह होने वाली खाद्य मामलों पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक में चर्चा होने की संभावना है। इसके अलावा राज्यों को सस्ते दाम पर वितरित किए जाने वाली दालों और खाद्य तेलों की समय सीमा तथा चीनी पर लगी स्टॉक लिमिट की अवधि को एक साल के लिए बढ़ाए जाने की सिफारिश की गई है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस बैठक में चीनी निर्यात को मंजूरी देने के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है। सरकार ने ओपन जरनल लाइसेंस स्कीम (ओजीएल) के तहत पांच लाख टन चीनी निर्यात की मंजूरी को टाल रखा है।
सूत्रों के मुताबिक कृषि मंत्रालय चीनी निर्यात को मंजूरी दिए जाने के पक्ष में है लेकिन खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों के कारण वाणिज्य मंत्रालय चीनी उत्पादन की तस्वीर साफ होने तक निर्यात को मंजूरी देने के हक में नहीं है। फुटकर बाजार में इस समय चीनी का भाव 31 से 33 रुपये प्रति किलो चल रहा है। गेहूं का बंपर उत्पादन और केंद्रीय पूल में भारी स्टॉक को देखते हुए मात्रा तय करके गेहूं के निर्यात को अनुमति देने पर भी चर्चा होने की संभावना है।
उन्होंनें बताया कि प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा विधेयक पर इस बैठक में चर्चा होने की संभावना है। केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई सी. रंगराजन कमेटी ने नेशनल अडवाइजरी काउंसिल (एनएसी) की सिफारिशों में कुछ बदलाव सुझाए हैं। कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार एनएसी ने खाद्यान्न की उपलब्धता और सब्सिडी की जरुरत को बेहद कम करके आंका है। इसके अलावा कमेटी ने प्रस्तावित बिल में एपीएल तबके को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा घटाकर आधा करने की बात कही है।
उपभोक्ता मामले विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक राज्यों को सब्सिडी युक्त दालों और खाद्य तेलों के आवंटन की अवधि 31 मार्च 2011 को समाप्त हो रही है इसको एक साल के लिए बढ़ाने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा वित्त वर्ष 2011-12 के लिए आवंटित राशि 300 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये करने की सिफारिश की गई है।
ताकि ज्यादा से ज्यादा परिवारों को इसका लाभ मिल सके। खाद्य मंत्रालय दालों एंव खाद्य तेलों का वितरण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिए करता है। दालों पर 10 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से और खाद्य तेलों पर 15 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी दी जाती है। उन्होंने बताया कि चीनी के व्यापारियों पर लगी स्टॉक लिमिट की अवधि को एक साल के लिए बढ़ाने की सिफारिश की गई है।
चीनी पर स्टॉक लिमिट की अवधि 31 मार्च 2011 को समाप्त हो रही है इसको बढ़ाकर 31 मार्च 2012 तक किए जाने की सिफारिश की गई है। इस समय व्यापारी 200 क्विंटल चीनी का स्टॉक ही रख सकते हैं। ऊंची कीमतों से उपभोक्ताओं को राहत दिलाने के लिए सरकार ने फरवरी 2009 में चीनी के व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट लगाई थी।बात पते की :- वित्त वर्ष 2011-12 के लिए आवंटित राशि 300 करोड़ से बढ़ाकर 500 करोड़ रुपये करने की सिफारिश की गई है। ताकि ज्यादा से ज्यादा परिवारों को इसका लाभ मिल सके। इस समय दालों पर 10 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से और खाद्य तेलों पर 15 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी दी जा रही है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

गेहूं के दाम गिरे, मध्य प्रदेश और राजस्थान में नई फसल की आवक शुरू

गुजरात के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान की मंडियों में नए गेहूं की आवक शुरू हो गई है। लेकिन फ्लोर मिलों और स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर होने के कारण गुजरात की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,120 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे 1,100 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। दिल्ली में इस समय गेहूं की कीमतें 1,320-1,325 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है।
चालू सीजन में देश में गेहूं का 814.7 लाख टन बंपर उत्पादन होने का अनुमान है। इसीलिए अप्रैल में आवक बढऩे पर इसकी कीमतों में 250 से 300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है।
महादेव कनवेसिंग एजेंट के पार्टनर राजकुमार ने बताया कि गुजरात की मंडियों में गेहूं की दैनिक आवक बढ़कर 45 से 50 हजार क्विंटल की हो गई है। जबकि फ्लोर मिलों के साथ ही स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर है, इसीलिए मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,100 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है। अहमदाबाद से बेंगलूरु फ्लोर मिल पहुंच गेहूं के भाव घटकर 1,400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है।पिछले सप्ताह भर के दौरान इसमें करीब 75 रुपये प्रति क्विंटल की नरमी आ चुकी है। प्रवीन कॉमर्शियल कंपनी के डायरेक्टर नवीन गुप्ता ने बताया कि मध्य प्रदेश से दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों में पहुंच गेहूं का भाव 1,440 रुपये और राजस्थान की कोटा लाईन से 1,450 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।
उत्तर प्रदेश की मंडियों से अप्रैल डिलीवरी के अगाऊ सौदे 1,350 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोले जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश से बेंगलूरु के लिए 310 रुपये प्रति क्विंटल का परिवहन खर्च आ जाता है। ऐसे में अप्रैल में आवक बढऩे पर उत्तर प्रदेश की मंडियों में भी गेहूं के भाव घटकर 1,000 से 1,050 रुपये प्रति रहने की संभावना है।निवेशकों की बिकवाली से एनसीडीईएक्स पर अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में गेहूं की कीमतों में पिछले महीने भर में 4.7 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। 14 मार्च को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में गेहूं का भाव 1,233 रुपये प्रति क्विंटल था, जो मंगलवार को घटकर 1,174 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। कमोडिटी विश£ेश्क अभय लाखवान ने बताया कि चालू सीजन में गेहूं का बंपर उत्पादन होने का अनुमान है। इसीलिए निवेशकों की बिकवाली से वायदा में और भी आठ से दस फीसदी की गिरावट आने की संभावना है।कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 814.7 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में एक मार्च को 171.57 लाख टन गेहूं का स्टॉक बचा हुआ है। जबकि नए विपणन सीजन में एमएसपी पर 260 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है। इसीलिए फ्लोर मिलों और स्टॉकिस्टों की खरीद सीमित मात्रा में बनी हुई है।बात पते की :-गुजरात की मंडियों में गेहूं की दैनिक आवक बढ़कर 45-50 हजार क्विंटल हो गई है। इसीलिए मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,100 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है। (Business Bhaskar....R S Rana)

भारतीय गेहूं पर यूजी-९९ बीमारी का असर नहीं

विश्व के कई देशों में खाद्यान्न के लिए खतरा बन रही फंफूदी संबधी बीमारी यूजी-९९ से भारतीय गेहूं पूरी तरह सुरक्षित है। अफ्रीकी देशों सहित विश्व के दूसरे कई हिस्सों में फफूंदी संबधी बीमारियों के चलते खाद्य पदार्थों को नुकसान पहुंचने की खबरें है। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री अरुण यादव ने बताया कि भारत में उगाई जाने वाली गेहूं की ज्यादातर किस्मों में फंफूदी संबधी रोगों से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता है। केंन्या और यूथोपिया में यूजी-९९ नामक फंफूदी रोग फैल गया है।
यादव ने कहा कि भारत में किसी भी हिस्से में यूजी-९९ नामक फंफूदी रोग के फैलने की कोई सूचना नहीं है, और सर्वे के मुताबिक देश की गेहूं फसल इस रोग से पूरी तरह सुरक्षित है। उन्होने बताया कि के न्या में गेहूं की भारतीय किस्मों का मूल्यांकन किया गया है, जिसमें ३० से ज्यादा किस्मों में यूजी -९९ फ फूंदी रोग से लडऩे की प्रतिरोधक क्षमता पाई गई है। इसके साथ ही सरकार इस बीमारी से निपटने के लिए सभी जरूरी उपाय करने पर विचार कर रही है।
भारत में मौजूद गेंहू की किस्मों के प्रतिरोधक सिस्टम में यूजी ९९ से लडऩे की पूरी क्षमता का और विकास किया जा रहा है। सरकार द्वारा जारी दूसरे अतिरिक्त अनुमान के मुताबिक चालू सीजन के दौरान देश के गेहूं उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। सरकारी अनुमान के मुताबिक चालू रबी सीजन के दौरान देश का गेहूं उत्पादन ८१४.७ लाख टन के स्तर पर पहुंच जाने की संभावना है।
हालांकि सरकार यह भी कह रही है कि यह उत्पादन ८४० लाख टन के स्तर पर भी पहुंच सकता है। देश के उत्तरी इलाकों में गेहूं फसल की कटाई अप्रैल माह में शुरू हो जाने की संभावना है। गेहूं शोध प्रोजेक्ट के महानिदेशक एसएस सिंह ने बताया कि पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गेहूं फसल की कटाई मध्य अप्रैल तक शुरु हो जाने की संभावना है।बात पते की :- चालू रबी सीजन में देश का गेहूं उत्पादन ८१४.७ लाख टन पहुंच जाने की संभावना है। हालांकि सरकार यह भी कह रही है कि यह उत्पादन ८४० लाख टन के स्तर पर भी पहुंच सकता है। (Business Bhaskar)

गन्ने का एफआरपी 145 रुपये हुआ

केंद्र सरकार ने अगले पेराई सत्र २०११-१२ के लिए गन्ने का फेयर एंड रिम्यूनरेटिव प्राइस (एफआरपी) ४.२ फीसदी बढ़ाने का फैसला किया है। इस बढ़ोतरी के साथ आगामी पेराई सीजन में गन्ने का एफआरपी १४५ रुपये प्रति क्ंिवटल होगा। चालू पेराई सीजन 2010-11 में एफआरपी १३९.१२ रुपये प्रति क्विंटल है।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय द्वारा महाराष्ट्र और दूसरे गन्ना उत्पादक राज्यों को लिखे पत्र में बताया है कि पेराई सत्र २०११-१२ के लिए एफआरपी की दर १४५ रुपये प्रति क्ंिवटल तय की गई है। यह निर्णय आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की पिछले सप्ताह आयोजित हुई बैठक में लिया गया। एफआरपी वैधानिक रूप से किसानों को दिए जाने वाला गन्ने का न्यूनतम मूल्य होता है।
हालांकि चीनी मिल इससे ज्यादा दाम दे सकते हैं। सरकार ने एफआरपी की व्यवस्था वर्ष २००९-१० से लागू की थी। इससे पहले केंद्र सरकार गन्ने का एसएमपी तय करती थी। एफआरपी को गन्ने की रिकवरी के आधार पर तय किया जाता है। सरकार गन्ने की ९.५ फीसदी रिकवरी के आधार पर एफआरपी तय करती है। इसके साथ ही प्रति ०.१ फीसदी अतिरिक्त रिकवरी के अनुसार किसानों को १.४६ रुपये अतिरिक्त मूल्य देने का प्रावधान है।
सरकार एफआरपी तय करने से पहले किसानों की लागत और उनके लाभ के बारे में भी विचार करती है। साथ ही गन्ने की ढुलाई लागत को भी ध्यान में रखा जाता है। इसमें अखिल भारतीय स्तर पर गन्ना उत्पादन की औसत लागत के साथ ४५ फीसदी तक लाभ जोड़कर एफआरपी तय होता है। साथ ही इसमें मिल गेट तक गन्ने की ढुलाई की कीमत भी शामिल होती है। (Business Bhaskar)

केसर की पैदावार बढ़ाने के प्रयास

जम्मू .जम्मू और कश्मीर सरकार ने राज्य में केसर की पैदावार बढ़ाने के लिए व्यापक योजना बनाई है। इसके लिए ३७२.१८ करोड़ रुपये का निवेश करने की घोषणा की गई है। यह निवेश केसर उत्पादन बढ़ाने के लिए चलाई गई राष्ट्रीय योजना के तहत किया जा रहा है। राज्य के कृषि मंत्री जी एच मीर ने कहा कि राज्य सरकार ने केसर उत्पादन बढ़ाने की राष्ट्रीय योजना को सफल बनाने के लिए ३७२.१८ करोड़ रुपये का निवेश किया है।
उन्होने कहा कि इस निवेश के द्वारा राज्य के किसानों को अगले चार सालों के दौरान केसर उत्पादन दोगुना करने में मदद मिलेगी। मीर ने बताया कि सरकार राज्य में पैदा होने वाले आर एस पुरा बासमती चावल के निर्यात को बढ़ावा देने का भी प्रयास कर रही है। इसके लिए सरकार ने केंद्र सरकार की तरफ से ५४०.३५ करोड़ रुपये दिए गए हैं। (Business Bhaskar)

प्याज का निर्यात मूल्य और घटाया केन्द्र सरकार ने

सरकार ने घरेलू बाजार में प्याज के मूल्य में आ रही गिरावट थामने के लिए इसके निर्यात का न्यूनतम मूल्य (एमईपी) और घटा दिया है। प्याज का निर्यात मूल्य घटाकर २७५ डॉलर प्रति टन कर दिया है। पहले यह दाम ३५० डॉलर प्रति टन था। सरकार ने मार्च माह में तीसरी बार प्याज का एमईपी घटाया है।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि बैंगलोर रोज और कृष्णापुरम किस्म के प्याज का निर्यात मूल्य नहीं घटाया गया है। इसका एमईपी 1400 डॉलर प्रति टन है। सरकार ने एक मार्च को प्याज का निर्यात मूल्य ६०० डॉलर प्रति टन से घटाकर ४५० डॉलर प्रति टन कर दिया था। फिर ८ मार्च को प्याज का निर्यात मूल्य घटाकर ३५० डॉलर कर दिया। सरकार ने पिछले महीने ही प्याज के निर्यात पर लगी रोक को हटाया था।
किसानों ने घरेलू बाजार में प्याज के दाम गिरने के चलते प्याज निर्यात पर लगी रोक को हटाने की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था। हालांकि तब सरकार ने तब प्याज के निर्यात मूल्य को ६०० डॉलर प्रति टन ही रखा था। उस समय निर्यात मूल्य को उच्च स्तर पर रखने का निर्णय घरेलू बाजार में प्याज की कीमतों को नियंत्रण में रखने के लिए लिया गया था। कुछ दिनों पहले घरेलू फुटकर बाजार में प्याज की कीमतें ७०-८० रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गई थी।
उस समय केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने संकेत किया था कि प्याज का ६०० डॉलर प्रति टन मूल्य वैश्विक बाजार में चल रहे मूल्य के लगभग दोगुना है। बैंगलोर रोज ओनियन का निर्यात मूल्य वर्तमान में १,४०० डॉलर प्रति टन है। सरकार ने घरेलू बाजार में दाम बढऩे के चलते प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी थी। वर्ष २०१०-११ के दौरान देश का प्याज उत्पादन १०५ लाख टन रहने की संभावना है। जबकि बीते वर्ष १२० लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar)

अनाज की जगह नकद सब्सिडी के हक में खाद्य मंत्रालय

नई दिल्ली March 16, 2011
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत जरूरी खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता पर प्रधानमंत्री द्वारा डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ पैनल और सोनिया गांधी की अगुआई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के बीच की खाई पाटने के लिए खाद्य मंत्रालय ने अनाज की जगह नकद सब्सिडी के वितरण का समर्थन किया है, अगर पर्याप्त मात्रा में अनाज उपलब्ध न हो।मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि अगर किसी वर्ष में जरूरत के मुताबिक खरीद न हो पाए तो अधिनियम के तहत मंत्रालय ने नकद सब्सिडी के वितरण का प्रस्ताव रखा है। खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा - खाद्य सुरक्षा अधिनियम को वास्तविकता में बदलने के लिए यह विचार सामने रखा गया है और ऐसा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। पिछले महीने खाद्य राज्य मंत्री के. वी. थॉमस ने कहा था कि उनका मंत्रालय देश की 65 से 70 फीसदी आबादी को रियायती दर पर अनाज उपलब्ध करा सकता है और इनमें सामान्य व प्राथमिकता वाले परिवार शामिल हैं। एनएसी ने प्राथमिकता व सामान्य परिवारों की 75 फीसदी आबादी को कानूनी तौर पर रियायती दर पर अनाज उपलब्ध कराने की सिफारिश की थी। प्राथमिकता वाले परिवारों में 46 फीसदी शहरी आबादी और 28 फीसदी ग्रामीण आबादी शामिल है जबकि सामान्य वर्ग में 44 फीसदी शहरी आबादी और 22 फीसदी ग्रामीण आबादी शामिल है। डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह ने प्राथमिकता वाले परिवारों की बाबत एनएसी की सिफारिशों का समर्थन किया था, लेकिन यह भी कहा था कि अगर पर्याप्त अनाज उपलब्ध हो तभी सामान्य श्रेणी के परिवारों को सस्ते अनाज का वितरण किया जाए। विशेषज्ञ समूह ने कहा है कि एनएसी की सिफारिशों के मुताबिक सभी चरणों के लिए खाद्यान्न के अधिकार लागू करना संभव नहीं है।इसने तर्क दिया है कि अगर एनएसी की सिफारिशों को अपना लिया जाता है तो फिर इससे सरकार पर सब्सिडी का भारी बोझ पड़ेगा, साथ ही यह बाजार को भी नष्ट कर सकता है, अगर खरीद का स्तर अकारण बढ़ाया जाता है। पैनल ने कहा है कि प्रस्तावित अधिनियम अनाज की मांग पूरी करने की बाबत सरकार पर कानूनी बाध्यता आरोपित करता है। उन्होंने कहा है कि विधेयक के मसौदे को अंतिम रूप देने से पहले कुछ परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए मसलन, अगर लगातार दो साल तक सूखा पड़े तो फिर इसे कैसे पूरा किया जाएगा। अधिकारी ने कहा कि यही वजह है कि हम आबादी के उस वर्ग के लिए नकद सब्सिडी की बात कर रहे हैं जिनकी कानूनी तौर पर अनाज की मांग पूरी न हो।मौजूदा समय में सरकार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 6.52 करोड़ परिवारों को राशन दुकानों के जरिए 35 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराती है। इन परिवारों को 4.15 रुपये प्रति किलोग्राम पर गेहूं और 5.65 रुपये प्रति किलोग्राम पर चावल उपलब्ध कराया जाता है। गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों को सरकार 15 से 35 किलोग्राम अनाज हर महीने उपलब्ध कराती है।प्रधानमंत्री द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह का अनुमान है कि भारत का खाद्यान्न सब्सिडी खर्च बढ़कर करीब 92,060 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा, अगर 75 फीसदी परिवारों को अनाज उपलब्ध कराने की एनएसी की सिफारिशें मान ली जाती हैं। वहीं यह खर्च घटकर करीब 83,000 करोड़ पर आ सकती है अगर गरीबी रेखा के ऊपर रहने वाले परिवारों को इससे अलग करने के उनके सुझाव को मान लिया जाता है या फिर उनके आवंटन में कमी की उनकी सिफारिशें मान ली जाती हैं। विशेषज्ञ समूह ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम की जरूरतों के अलावा सब्सिडी में निर्धन वरिष्ठ नागरिकों के लिए चलाई जाने वाली कल्याणकारी अन्नपूर्णा योजना के लिए आवंटन शामिल होगा। (BS Hindi)

पैदावार में आया दम तो गेहूं होगा नरम

चंडीगढ़/ मुंबई March 17, 2011
देश भर में गेहूं की बंपर फसल होने और गुजरात की मंडियों में नए गेहूं की आवक शुरू होने के कारण कारोबारियों को इसके दाम घटने के आसार दिखाई दे रहे हैं। कारोबारियों की मानें तो अप्रैल-मई में गेहूं की आवक बढऩे पर इसके दाम 10 फीसदी गिर सकते हैं।फिलहाल दिल्ली में गेहूं का भाव 1,285-1,300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है और अगले दो महीनों में इसका भाव गिरकर 1,175 रुपये हो सकते हैं। गुजरात की मंडियों में तो गेहूं का भाव 1,120 रुपये प्रति क्विंटल के एमएसपी से भी कम चल रहा है। वायदा बाजार में भी आने वाले समय में गेहूं के भाव गिरने के संकेत मिल रहे हैं। मई वायदा का दाम 1,185 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है जबकि दिल्ली डिलिवरी के लिए आज का हाजिर भाव 1,300 रुपये प्रति क्विंटल रहा। बठिंडा मंडी के एक कारोबारी मनीष मोंगा ने बताया, 'इस बार कृषि जिंसों के भाव को लेकर सरकारी एजेंसियां भी सतर्क रहेंगी। आने वाले समय में गेहूं के दाम गिरने के कारण निजी कारोबारी भी इसे खरीदने को तैयार नहीं हैं।Ó चालू वर्ष के लिए दूसरे कृषि अग्रिम अनुमान की घोषणा करते हुए कृषि मंत्रालय ने पिछले महीने कहा था कि इस साल गेहूं का रकबा 8.15 करोड़ टन रह सकता है। पिछले साल यह रकबा 8.07 करोड़ टन था। हालांकि गेहूं शोध संस्थान करनाल के निदेशक एस एस सिंह के अनुसार फसल के लिहाज से बेहतरीन मौसम रहने के कारण इसका रकबा 8.4 करोड़ टन हो सकता है। गेहूं के निर्यात पर पाबंदी लगी होने के कारण अधिक उत्पादन होने पर गेहूं के भाव नीचे गिर सकते हैं। गेहूं निर्यात को अनुमति मिली तो भी अंतरराष्टï्रीय भाव के कारण यह फायदे का सौदा नहीं होगा।नवी मुंबई के फै्रंडशिप टे्रडर्स के देवेंद्र वोरा का कहना है, 'गुजरात के गेहूं को बेहतर माना जाता है। बाजार में इसकी आवक शुरू हो गई है और सौराष्टï्र क्षेत्र की मंडियों में इसका भाव 1,025 रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 1,100 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर गए हैं। अब इसके दाम एमएसपी से भी कम हैं और किसानों को नुकसान हो रहा है। (BS Hindi)

आवक से अदरक बीमार

भोपाल March 17, 2011
अदरक उत्पादक राज्यों में अदरक की भारी मात्रा में आवक दर्ज की जा रही है। इससे किसानों को लागत न निकलने का डर सताने लगा है। नवंबर-दिसंबर में 220 रुपये किलो बिकने वाला अदरक मार्च में 25 से 50 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है। इसके चलते किसानों को लागत से कम दाम होने का डर सताने लगा है। जानकारों के अनुसार केरल, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, असम जैसे राज्यों में अदरक की आवक बेहतर है। ऐसे में आवक के दबाव से दाम में और कमी की संभावना बनी हुई है। इंदौर के अदरक निर्यातक सुरेंद्र तिवारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि सभी राज्यों में नए अदरक की आवक में तेजी है। फसल भी इस बार काफी अच्छी रही है। इसके चलते अदरक पर 220 रुपये प्रति किलो तक पाने वाला किसान डर गया है। हालांकि मंडियों में अप्रैल तक अदरक की आवक बढ़ी रहेगी। ऐसे में भावों में दबाव आने पर इसके और टूटने का की आशंका बनी हुई है। बड़े उत्पादक क्षेत्रों में शामिल कोच्चि के कारोबारी भी इसको लेकर परेशान हैं। मसाला बोर्ड के अनुसार, अक्टूबर-नवबंर में अदरक के दाम 200 से 220 रुपये प्रति किलो तक थे। इसके बाद अच्छी फसल के संकेतों से दाम में 50 रुपये तक गिरावट आई थी। 15 जनवरी को खत्म होने वाले हफ्ते में दाम 155 रुपये के आस-पास बने हुए थे। वहीं 12 फरवरी को खत्म होने वाले हफ्ते में दाम 20 रुपये कम होकर 135 रुपये पर टिके थे।कोच्चि के अदरक निर्यातक और उत्पादक कोरम मुथूट का कहना है कि केरल में इस बार अदरक की फसल काफी बेहतर रही है। ऐसे में किसानों को मुनाफा देने वाली फसल की आवक बढ़ी हुई है। कोच्चि में भी दाम में 50 फीसदी से ज्यादा की कमी आई है। कीमतों में कमी दूसरे बाजारों में भी दिख रही है। इससे किसानों को इस बार की अदरक फसल घाटे का सौदा लग रही है। वहीं मंदसौर के अदरक उत्पादन किसान रफीक लाल का कहना है कि फरवरी तक अदरक उत्पादक किसान दाम बढऩे के लालच में मंडियों तक अदरक नहीं ला रहे थे। हालांकि, मार्च में नए अदरक की आवक ने दाम में और भी कमी कर दी है। ऐसे में पहले से भी कम दाम पर किसान मंडियों में अदरक बेचने को मजबूर हैं।भारत में 2.75 लाख टन अदरक का वार्षिक उत्पादन होता है। 33 फीसदी उत्पादन के साथ विश्व मेंं भारत पहले स्थान पर बना हुआ है। 2008-09 में 3.82 लाख टन अदरक उत्पादन हुआ था, जो वर्ष 2009 में घटकर 3.81 लाख टन रह गया। हालांकि 2010-11 में भी उत्पादन में भारी वृद्घि दर्ज हुई है। देश में केरल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, हिमाचल, असम और कर्नाटक जैसे राज्यों में भारी मात्रा में अदरक उत्पादन होता है। मध्य प्रदेश में नीमच, सिवनी, नरसिंहपुर, मंदसौर, टीकमगढ़ और छिंदवाड़ा जैसे जिले अदरक उत्पादन के लिहाज से अहम हैं। (BS Hindi)

प्याज उत्पादन 80 लाख टन होने का अनुमान

नई दिल्ली 03 18, 2011
महाराष्ट्र, गुजरात एवं प्याज के अन्य राज्यों के किसानों ने रबी फसल की प्याज की खुदाई शुरू कर दी है और इस बार बेहतर फसल होने उत्पादन 80 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान है।
नासिक के नैशनल हार्टीकल्चर रिसर्च एवं डेवलपमेंट फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्याज की नई फसल बहुत अच्छी है और प्रमुख उत्पादक राज्यों में इसकी खुदाई शुरू हो गई है। रबी की प्याज खुदाई मार्च के मध्य तक चलती है। अधिकारी ने कहा फरवरी में हुई बारिश के कारण बीच में कुछ चिंता हुई थी लेकिन इससे प्याज की फसल ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा।
अधिकारी ने कहा कि इस बार रबी में अस्सी लाख टन प्याज पैदा होने की उम्मीद है, जो पिछले साल से 10 फीसद अधिक होगी। इससे पिछले साल 73 लाख टन प्याज की पैदावार हुई थी। देश में प्याज के कुल प्याज उत्पादन में 60 फीसदी रबी की प्याज होती है। भारत में साल में प्याज की तीन फसलें ली जाती है। (BS Hindi)

16 मार्च 2011

सोनिया बनाम सरकार

केंद्र सरकार (प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह) और नैशनल अडवाइजरी काउंसिल (एनएसी) के बीच कई महत्वपूर्ण विधेयकों को लेकर मतभेद हैं। राजनीतिक विश्लेषक इसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के बीच बढ़ते टकराव के तौर पर देख रहे हैं। केंद्र और एनएसी में प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत न्यूनतम मजदूरी, आरटीआई एक्ट में संशोधनों और लोकपाल बिल को लेकर मतभेद हैं। आइये एक नजर डालते हैं उन विषयों पर, जिन्हें लेकर दोनों के संबंधों में कड़वाहट बढ़ती जा रही है : फूड सिक्युरिटी पर सरकार का क्या था रुख : केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई सी. रंगराजन कमिटी ने नैशनल अडवाइजरी काउंसिल (एनएसी) की सिफारिशों में कुछ बदलाव सुझाए हैं, जिनका संबंध प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के मसौदे से है। कमिटी ने प्रस्तावित बिल में एपीएल तबके को दिए जाने वाले अनाज की मात्रा घटाकर आधा करने की बात कही है। ऐसा होने पर उसे प्रति माह 10 किलोग्राम अनाज मिलेगा। दूसरे विकल्प के तौर पर उसने इस तबके को बिल के मसौदे से हटा देने का सुझाव भी दिया है। सरकार भी एपीएल कैटिगरी को खाद्यान्न वितरण प्रणाली से हटाने की पक्षधर है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने एपीएल को दिए जाने वाले अनाज के दाम बढ़ाने का फैसला किया है। उसने अपनी रिपोर्ट में माना है कि एनएसी ने खाद्यान्न की उपलब्धता और सब्सिडी की जरूरत को बेहद कम करके आंका। कमिटी एनएसी की इस बात से सहमत है कि सरकारी अनाज की खरीद बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि हर हाल में आबादी के 75 फीसदी हिस्से को सब्सिडी आधारित अनाज मुहैया कराया जा सके। उसका मानना है कि इस लक्ष्य को पाने के लिए अतिरिक्त सब्सिडी की जरूरत होगी, जो कि कम से कम 10 हजार करोड़ रुपये होगी। एनएसी का कहना : एनएसी का कहना है कि फूड सिक्युरिटी से जुड़े कार्यक्रमों को पूरी तरह से लागू करने के लिए 6.5 करोड़ टन अनाज की सरकारी खरीद कोई मुश्किल काम नहीं है। उसने अपनी सिफारिश में बीपीएल परिवारों को प्रतिमाह 35 किलोग्राम अनाज देने को कहा है। इससे पहले उसने कहा था कि पहले चरण में कुल आबादी के 72 फीसदी हिस्से को अनाज मुहैया कराने में 71,837 करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी होगी। दूसरे चरण में 75 फीसदी आबादी को खाद्यान्न मुहैया कराने में 79,931 करोड़ रुपये की सब्सिडी देनी होगी। एनएसी के मेंबर और अनुभवी अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने रंगराजन कमिटी के सुझावों की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि रंगराजन कमिटी का यह तर्क कि सरकारी खरीद बढ़ाने से खुले बाजार में खाद्यान्न की उपलब्धता में कमी आ जाएगी, जिसके चलते दाम बढ़ जाएंगे, पूरी तरह से गलत है। सरकारी खरीद बढ़ने का मतलब होगा वितरण बढ़ना। इन दोनों के बढ़ने से सैद्धांतिक रूप से बाजार पर कोई असर नहीं पड़ेगा। एनएसी ने की आपत्ति : नैशनल अडवाइजरी काउंसिल के सब गु्रप की चीफ और सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय ने आरटीआई पर डीओपीटी के मसौदे की कड़ी आलोचना की थी। उन्होंने इसे आरटीआई एक्ट की मूल भावना के खिलाफ उठाया जाने वाला कदम करार दिया। काउंसिल ने कहा कि डीओपीटी के मसौदे में शामिल नियम 16 से आरटीआई एक्ट के तहत आवेदन करने वालों की हत्या का खतरा बढ़ जाएगा। सरकार के रुख में नरमी : आरटीआई एक्ट के तहत आवेदन की शब्द सीमा 250 शब्दों तक सीमित करने पर अड़ी सरकार के रुख में नरमी आई है। अब उसने यह सीमा 500 शब्दों तक बढ़ाने की बात कही है। साथ ही किसी आवेदक की मौत हो जाने पर उसके द्वारा मांगी गई जानकारी से जुड़ी जांच भी बंद नहीं होगी। डीओपीटी के मसौदे से ऐसी धारा हटाई जाएगी। हालांकि सरकार अभी भी इस अड़ी हुई है कि आवेदक को एक विषय से जुड़ी जानकारी मांगनी चाहिए , लेकिन एनएसी इसके खिलाफ है। काउंसिल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस मसले पर सरकार से बात की जाएगी। वनाधिकार अधिनियम पर एनएसी का रुख : एनएसी का मानना है कि वनाधिकार अधिनियम अच्छी तरह से काम कर रहा है। बावजूद इसके वह जनजातियों को लालफीताशाही से बचाना चाहती है। इसलिए वह ग्रामसभा की बैठक के लिए जरूरी संख्या को दो - तिहाई से घटाकर आधा करने के पक्ष में है , ताकि दावों का निपटारा तेज गति किया जा सके। इसी तरह वनाधिकार समिति में जनजातीय प्रतिनिधित्व एक - तिहाई से बढ़कर दो - तिहाई हो सकता है , ताकि इस एक्ट के तहत उन्हें और अधिकार मिल सकें। केंद्र का नजरिया : केंद्र सरकार आदिवासियों को लघु वन उत्पादों को लाने - ले जाने और उनकी निश्चित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बिक्री के लिए दिशानिर्देश जारी कर सकती है। लोकपाल बिल पर एनएसी : केंद्र के प्रस्तावित लोकपाल बिल पर सोनिया की अध्यक्षता वाली एनएसी भी सिफारिशें पेश करेगी। शनिवार को हुई बैठक में तय हुआ कि काउंसिल का पारदर्शिता और जवाबदेही से जुड़ा कार्यसमूह सरकार के महत्वाकांक्षी लोकपाल बिल पर भी काम करेगा , जिस पर वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अगुआई में एक जीओएम मंथन कर रह ा है। (Nababharat Times)

चीनी निर्यात पर 17 को चर्चा होने की संभावना

बात पते की - चीनी मिलों से जुड़ी संस्थाओं के अनुसार चालू सीजन में चीनी उत्पादन २५० लाख टन होगा, जबकि सरकार के मुताबिक यह उत्पादन २४५ लाख टन होने का अनुमान है।आगामी १७ मार्च को आयोजित होने वाली अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह की बैठक में चीनी निर्यात के मामले पर चर्चा होने की संभावना है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि इस बैठक में चीनी निर्यात को मंजूरी देने के मुद्दे पर चर्चा हो सकती है। इस संबध में पिछले माह एक नोट अंतर मंत्री स्तरीय स्तर पर दिया गया था। इसे अब इस बैठक में अधिकार प्राप्त मंत्रियों के समूह के सामने रखा जाएगा। सूत्र के मुताबिक कें द्रीय कृषि मंत्रालय चीनी निर्यात को मंजूरी दिए जाने के पक्ष में है, जबकि वाणिज्य मंत्रालय इस मामलें पर अभी और ज्यादा जानकारी जुटाना चाह रहा है। अभी सरकार ने चीनी निर्यात पर अपने निर्णय को टाल रखा है। सरकार ने ओपन जनरल लाइसेंस स्कीम (ओजीएल)के तहत पांच लाख टन चीनी निर्यात की मंजूरी को टाल रखा है। इसका कारण देश में खाद्य पदार्थों की बढ़ रही मंहगाई को बताया जा रहा है। सरकार को चिंता है कि कहीं फिर से चीनी के दाम आसमान न छूने लगे। बीते वर्ष राजधानी दिल्ली में चीनी के फुटकर दाम ४८ रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गए थे। हालांकि वर्तमान में चीनी के फुटकर ३० -३२ रुपये प्रति किलो के स्तर पर चल रहे है। उधर चीनी मिलों से जुड़ी संस्थाओं ने सरकार पर निर्यात को जल्द से जल्द खोलने का दबाव बना रखा है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा), नेशनल फेडरेशन ऑफ कॉपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज (एनएफसीएसएफ) जैसी संस्थाओं ने सरकार से चीनी निर्यात को खोलने की मांग की है। इन संस्थाओं का कहना है कि चीनी निर्यात पर रोक लगने के कारण मिलों को काफी नुकसान हो रहा है। इस्मा का कहना है कि घरेलू बाजार में मिलों को चीनी बेचने पर १५० रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है। इन संस्थाओं के अनुसार वर्ष २०१०-११ के दौरान देश का चीनी उत्पादन २५० लाख टन होने की संभावना है। ऐसे में सरकार को चीनी निर्यात की मंजूरी देनी चाहिए। हालांकि सरकार ने अपने अनुमानों में चालू पेराई सत्र के दौरान २४५ लाख टन चीनी उत्पादन होने का अनुमान लगाया है। चीनी मिलों से जुड़ी सस्थाओं का कहना है कि चालू वर्ष में देश का घरेलू चीनी उपभोग २२० लाख टन रहने की संभावना है। ऐसे में अतिरिक्त चीनी उत्पादन होने के चलते निर्यात को मंजूरी दी जाए। (Business Bhaskar)

सीड बिल के विरोध में उतरे किसान संगठन

सरकार द्वारा प्रस्तावित सीड बिल का किसान संगठनों ने विरोध किया है और इसे यूरोपीय संघ के दबाव में उठाए गए कदम की संज्ञा दी है। किसान संगठनों का कहना है कि इस बिल के द्वारा बीजों की गुणवत्ता को नियंत्रित करने का प्रयास किया जा रहा है। इस सप्ताह संसद में सीड बिल 2004 का संशोधित मसौदा पेश किया जाएगा। इन संगठनों के संयोजक आईजे खान ने कहा कि यह स्वतंत्रता पर हमला करने के समान है। इस बिल में बीजों के असफल रहने पर किसानों को किसी तरह की क्षतिपूर्ति करने का कोई प्रावधान नहीं है। इसके साथ ही इसके लागू हो जाने से किसान स्वतंत्र रूप से अपने उत्पादों की बिक्री नहीं कर सकेंगे। इसके साथ ही किसान संगठनों ने इंडोसल्फान के प्रयोग पर रोक लगाने के प्रयास की भी निंदा की है।अमेरिका स्थित एक स्वयं सेवी संगठन के खान आर. हरिहरण ने बताया कि इंडोसल्फान पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव यूरोपीय संघ के हितों की पूर्ति के लिए उठाया गया कदम है। यह कम कीमत वाला कीटनाशक है, जिसे भारतीय किसान बड़े पैमाने पर प्रयोग करते है। इन संगठनों की एक बैठक के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर एक संस्था बनाने का निर्णय लिया गया। इस संस्था का काम किसान विरोधी नीतियों का मुकाबला करना होगा।उधर, कुछ किसान यूनियनों और नागरिक संगठनों ने बायो-टेक बिल का भी विरोध किया है। इन संगठनों ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से बायोटेक्नालॉजी रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (बीआरएआई) बिल को संसद में पेश न करने का आग्रह किया है। प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में इन्होंने कहा है कि उनके पास इस बात के पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण हंै, जो यह सिद्ध करते हंै कि जीएम फसलें लोगों के लिए ठीक नहीं हैं। मालूम हो कि सरकार बीआरएआई बिल २००९ को संसद में पेश करने की तैयारी में है।बात पते की :- किसान संगठनों ने सीड बिल को यूरोपीय संघ के दबाव में उठाया जा रहा कदम बताया है। इसके अलावा कीटनाशक इंडोसल्फान पर प्रतिबंध लगाने के प्रयास का भी विरोध किया गया है। (Business Bhaskar)

जापान में भूकंप व सुनामी से डीओसी का निर्यात प्रभावित

जापान में आए विनाशकारी भूंकप और सुनामी के कारण भारत से जापान को होने वाला डीओसी निर्यात प्रभावित होने की आशंका है। इसका असर घरेलू बाजार में डीओसी और तिलहनों की कीमतों पर पडऩे भी लगा है। पिछले चार दिनों में सोया डीओसी की कीमतों में करीब चार फीसदी और सरसों तथा सोयाबीन की कीमतों में क्रमश: 100 और 125 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। 11 मार्च को कांडला बंदरगाह पर सोयाबीन डीओसी का भाव 402-406 डॉलर प्रति टन था, जबकि सोमवार को भाव घटकर 385-390 डॉलर प्रति टन रह गया।
साई सिमरन फूडस लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि जापान में आए विनाशकारी भूंकप के कारण भारत से होने वाले डीओसी के निर्यात पर प्रभाव पडऩा शुरू हो गया है। पिछले चार दिनों में सोया डीओसी की कीमतों में करीब 16-17 डॉलर प्रति टन की गिरावट आ चुकी है। सोमवार को कांडला बंदरगाह पर सोया डीओसी का भाव घटकर 385-390 डॉलर प्रति टन रह गया।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बताया कि जापान भारत से सबसे ज्यादा सोयाबीन डीओसी का आयात करता है। मौजूदा परिस्थितियों में करीब महीना भर निर्यात प्रभावित रहने की आशंका है। इससे घरेलू बाजार में डीओसी और सोयाबीन की कीमतों में गिरावट आई है। सोया डीओसी की कीमतों में 500 रुपये की गिरावट के साथ भाव 18,000 रुपये प्रति टन और सोयाबीन की कीमतों में 100 रुपये की गिरावट आकर भाव 2,300 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। सोयाबीन की कीमतों में 100 रुपये प्रति क्विंटल और डीओसी की कीमतों में करीब 500 रुपये प्रति टन की और गिरावट आने की आशंका है।
सॉलवेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार फरवरी महीने में भारत से सोया डीओसी का 3.88 लाख टन का निर्यात हुआ था। इसमें से 1.35 लाख टन जापान ने आयात किया है। जबकि चालू वित्त वर्ष में (अप्रैल-10 से फरवरी-11) के दौरान डीओसी का कुल निर्यात 37.34 लाख टन का हुआ है इसमें से जापान ने 11.13 लाख टन का आयात किया है।
इसमें करीब 10.94 लाख टन सोया डीओसी और 18,547 टन सरसों डीओसी है। एसईए के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने बताया कि घरेलू बाजार में डीओसी और तिलहनों की कीमतों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ रहा है। इससे दाम और भी घटने की आशंका है। तिलहन कारोबारी सुरेश अग्रवाल ने बताया कि सरसों की कीमतों में पिछले चार दिनों में 125 रुपये की गिरावट आ चुकी है।
उत्पादक मंडियों में 42 प्रतिशत कंडीशन की सरसों का भाव घटकर 2,575- 2,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। इसकी कीमतों में और भी 100-150 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की आशंका है। वैसे भी आगामी दिनों में सरसों की दैनिक आवक बढ़ेगी। सोयाबीन की कीमतें भी प्लांट डिलीवरी घटकर सोमवार को 2,300-2,320 रुपये प्रति क्विंटल रह गई।बात पते की :- मौजूदा परिस्थितियों में करीब महीना भर निर्यात प्रभावित रहने की आशंका है। सोया डीओसी की कीमतों में 500 रुपये की गिरावट के साथ भाव 18,000 रुपये प्रति टन रह गए। कीमतों में तकरीबन 500 रुपये प्रति टन की और गिरावट आने की आशंका है। (Business Bhaskar....R S Rana)

मध्य प्रदेश और राजस्थान में नए गेहूं की आवक शुरू

गुजरात के बाद मध्य प्रदेश और राजस्थान की मंडियों में नए गेहूं की आवक शुरू हो गई है। लेकिन फ्लोर मिलों और स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर होने के कारण गुजरात की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,120 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे 1,100 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। दिल्ली में इस समय गेहूं की कीमतें 1,320-1,325 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है।चालू सीजन में देश में गेहूं का 814.7 लाख टन बंपर उत्पादन होने का अनुमान है। इसीलिए अप्रैल में आवक बढऩे पर इसकी कीमतों में 250 से 300 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है।
महादेव कनवेसिंग एजेंट के पार्टनर राजकुमार ने बताया कि गुजरात की मंडियों में गेहूं की दैनिक आवक बढ़कर 45 से 50 हजार क्विंटल की हो गई है। जबकि फ्लोर मिलों के साथ ही स्टॉकिस्टों की मांग कमजोर है, इसीलिए मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,100 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है। अहमदाबाद से बेंगलूरु फ्लोर मिल पहुंच गेहूं के भाव घटकर 1,400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है।
पिछले सप्ताह भर के दौरान इसमें करीब 75 रुपये प्रति क्विंटल की नरमी आ चुकी है। प्रवीन कॉमर्शियल कंपनी के डायरेक्टर नवीन गुप्ता ने बताया कि मध्य प्रदेश से दक्षिण भारत की फ्लोर मिलों में पहुंच गेहूं का भाव 1,440 रुपये और राजस्थान की कोटा लाईन से 1,450 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है।
उत्तर प्रदेश की मंडियों से अप्रैल डिलीवरी के अगाऊ सौदे 1,350 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बोले जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश से बेंगलूरु के लिए 310 रुपये प्रति क्विंटल का परिवहन खर्च आ जाता है। ऐसे में अप्रैल में आवक बढऩे पर उत्तर प्रदेश की मंडियों में भी गेहूं के भाव घटकर 1,000 से 1,050 रुपये प्रति रहने की संभावना है।
निवेशकों की बिकवाली से एनसीडीईएक्स पर अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में गेहूं की कीमतों में पिछले महीने भर में 4.7 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। 14 मार्च को अप्रैल महीने के वायदा अनुबंध में गेहूं का भाव 1,233 रुपये प्रति क्विंटल था, जो मंगलवार को घटकर 1,174 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। कमोडिटी विश£ेश्क अभय लाखवान ने बताया कि चालू सीजन में गेहूं का बंपर उत्पादन होने का अनुमान है। इसीलिए निवेशकों की बिकवाली से वायदा में और भी आठ से दस फीसदी की गिरावट आने की संभावना है।
कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 814.7 लाख टन होने का अनुमान है। केंद्रीय पूल में एक मार्च को 171.57 लाख टन गेहूं का स्टॉक बचा हुआ है। जबकि नए विपणन सीजन में एमएसपी पर 260 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य रखा है। इसीलिए फ्लोर मिलों और स्टॉकिस्टों की खरीद सीमित मात्रा में बनी हुई है।बात पते की :- गुजरात की मंडियों में गेहूं की दैनिक आवक बढ़कर 45-50 हजार क्विंटल हो गई है। इसीलिए मंडियों में गेहूं का भाव घटकर 1,100 रुपये प्रति क्विंटल रह गए है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

15 मार्च 2011

उपभोक्‍ता अधिकार एवं शिकायत प्रणाली – डॉ. शीतल कपूर डॉ.शीतल कपूर Options

उपभोक्‍ता अधिकार एवं शिकायत प्रणाली डॉ.शीतल कपूर (डा कपूर उपभोक्ता क्लब की संयोजक हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कालेंज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।) वैश्वीकरण एवं भारतीय बाजार को विदेशी कंपनियों के लिए खोले जाने के कारण आज भारतीय उपभोक्ताओं की कई ब्रांडों तक पहुंच कायम हो गयी है। हर उद्योग में, चाहे वह त्वरित इस्तेमाल होने वाली उपभोक्ता वस्तु (एफएमसीजी) हो या अधिक दिनों तक चलने वाले सामान हों या फिर सेवा क्षेत्र हो, उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर 20 से अधिक ब्रांड हैं। पर्याप्त उपलब्धता की यह स्थिति उपभोक्ता को विविध प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं में से कोई एक चुनने का अवसर प्रदान करती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या उपभोक्ता को उसकी धनराशि की कीमत मिल रही है? आज के परिदृश्य में उपभोक्ता संरक्षण क्यों जरूरी हो गया है? क्या खरीददार को जागरूक बनाएं की अवधारणा अब भी कायम है या फिर हम उपभोक्ता संप्रुभता की ओर आगे बढ रहे हैं। उपभोक्ता कल्याण की महत्ता उपभोक्तावाद, बाजार में उपभोक्ता का महत्व और उपभोक्ताओं के बीच जागरूकता भारत में उपभोक्ता मामले के विकास में कुछ मील के पत्थर हैं। दरअसल किसी भी देश की अर्थव्यवस्था उसके बाजार के चारों ओर घूमती है। जब यह विक्रेता का बाजार होता है तो उपभोक्ताओं का अधिकतम शोषण होता है। जब तक क्रेता और विक्रेता बड़ी संख्या में होते हैं तब उपभोक्ताओं के पास कई विकल्प होते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 बनने से पहले तक भारत में विक्रेता बाजार था। इस प्रकार वर्ष 1986 एक ऐतिहासिक वर्ष था क्योंकि उसके बाद से उपभोक्ता संरक्षण भारत में गति पकड़ने लगा था। 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण ने भारतीय उपभोक्ताओं को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद पाने का अवसर प्रदान किया। उसके पहले सरकार ने हमारे अपने उद्योग जगत को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विदेशी प्रतिस्पर्धा पर रोक लगा दी थी। इससे ऐसी स्थिति पैदा हुई जहां उपभोक्ता को बहुत कम विकल्प मिल रहे थे और गुणवत्ता की दृष्टि से भी हमारे उत्पाद बहुत ही घटिया थे। एक कार खरीदने के लिए बहुत पहले बुकिंग करनी पड़ती थी और केवल दो ब्रांड उपलब्ध थे। किसी को भी उपभोक्ता के हितों की परवाह नहीं थी और हमारे उद्योग को संरक्षण देने का ही रुख था। इस प्रकार इस कानून के जरिए उपभोक्ता संतुष्टि और उपभोक्ता संरक्षण को मान्यता मिली। उपभोक्ता को सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक प्रणाली का अपरिहार्य हिस्सा समझा जाने लगा, जहां दो पक्षों यानि क्रेता और विक्रेता के बीच विनिमय का तीसरे पक्ष यानी कि समाज पर असर होता है। हालांकि बड़े पैमाने पर होने वाले उत्पादन एवं बिक्री में लाभ की स्वभाविक मंशा कई विनिर्माताओं एवं डीलरों को उपभोक्ताओं का शोषण करने का अवसर भी प्रदान करती है। खराब सामान, सेवाओं में कमी, जाली और नकली ब्रांड, गुमराह करने वाले विज्ञापन जैसी बातें आम हो गयीं हैं और भोले-भाले उपभोक्ता अक्सर इनके शिकार बन जाते हैं। संक्षिप्त इतिहास 9 अप्रैल, 1985 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए कुछ दिशानिर्देशों को अपनाते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था और संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को सदस्य देशों खासकर विकासशील देशों को उपभोक्ताओं के हितों के बेहतर संरक्षण के लिए नीतिंयां और कानून अपनाने के लिए राजी करने का जिम्मा सौंपा था। उपभोक्ता आज अपने पैसे की कीमत चाहता है। वह चाहता है कि उत्पाद या सेवा ऐसी हो जो तर्कसंगत उम्मीदों पर खरी उतरे और इस्तेमाल में सुरक्षित हो। वह संबंधित उत्पाद की खासियत को भी जानना चाहता है। इन आकांक्षाओं को उपभोक्ता अधिकार का नाम दिया गया। 15 मार्च को विश्व उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है। इस तारीख का ऐतिहासिक महत्व है क्योंकि यह वही दिन है जब 1962 में अमेरिकी संसद कांग्रेस में उपभोक्ता अधिकार विधेयक पेश किया गया था। अपने भाषण में राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने कहा था, न्नन्न यदि उपभोक्ता को घटिया सामान दिया जाता है, यदि कीमतें बहुत अधिक है, यदि दवाएं असुरक्षित और बेकार हैं, यदि उपभोक्ता सूचना के आधार पर चुनने में असमर्थ है तो उसका डालर बर्बाद चला जाता है, उसकी सेहत और सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और राष्ट्रीय हित का भी नुकसान होता है। उपभोक्ता अंतर्राष्ट्रीय (सीआई), जो पहले अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता यूनियन संगठन (आईओसीयू) के नाम से जाना जाता था, ने अमेरिकी विधेयक में संलग्न उपभोक्ता अधिकार के घोषणापत्र के तत्वों को बढा क़र आठ कर दिया जो इस प्रकार है- 1.मूल जरूरत 2.सुरक्षा, 3. सूचना, 4. विकल्पपसंद 5. अभ्यावेदन 6. निवारण 7. उपभोक्ता शिक्षण और 8. अच्छा माहौल। सीआई एक बहुत बड़ा संगठन है और इससे 100 से अधिक देशों के 240 संगठन जुड़े हुए हैं। इस घोषणापत्र का सार्वभौमिक महत्व है क्योंकि यह गरीबों और सुविधाहीनों की आकांक्षाओं का प्रतीक है। इसके आधार पर संयुक्त राष्ट्र ने अप्रैल, 1985 को उपभोक्ता संरक्षण के लिए अपना दिशानिर्देश संबंधी एक प्रस्ताव पारित किया। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 भारत ने इस प्रस्ताव के हस्ताक्षरकर्ता देश के तौर पर इसके दायित्व को पूरा करने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 बनाया। संसद ने दिसंबर, 1986 को यह कानून बनाया जो 15 अप्रैल, 1987 से लागू हो गया। इस कानून का मुख्य उद्देश्य उपभोक्ताओं के हितों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करना है। इसके तहत उपभोक्ता विवादों के निवारण के लिए उपभोक्ता परिषदों और अन्य प्राधिकरणों की स्थापना का प्रावधान है। यह अधिनियम उपभोक्ताओं को अनुचित सौदों और शोषण के खिलाफ प्रभावी, जनोन्मुख और कुशल उपचार उपलब्ध कराता है। अधिनियम सभी सामानों और सेवाओं, चाहें वे निजी, सार्वजनिक या सहकारी क्षेत्र की हों, पर लागू होता है बशर्ते कि वह केंद्र सरकार द्वारा अधिकारिक गजट में विशेष अधिसूचना द्वारा मुक्त न कर दिया गया हो। अधिनियम उपभोक्ताओं के लिये पहले से मौजूदा कानूनों में एक सुधार है क्योंकि यह क्षतिपूर्ति प्रकृति का है, जबकि अन्य कानून मूलत: दंडाधारित है और उसे विशेष स्थितियों में राहत प्रदान करने लायक बनाया गया है। इस अधिनियम के तहत उपचार की सुविधा पहले से लागू अन्य कानूनों के अतिरिक्त है और वह अन्य कानूनों का उल्लंघन नहीं करता। अधिनियम उपभोक्ताओं के छह अधिकारों को कानूनी अमली जामा पहनाता है वे हैं- सुरक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, चुनाव का अधिकार, अपनी बात कहने का अधिकार, शिकायत निवारण का अधिकार और उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार। अधिनियम में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए सलाहकार एवं न्याय निकायों के गठन का प्रावधान भी है। इसके सलाहकार स्वरूप के तहत केंद्र, राज्य और जिला स्तर पर उपभोक्ता सुरक्षा परिषद आते हैं। परिषदों का गठन निजी-सार्वजनिक साझेदारी के आधार पर किया जाता है। इन निकायों का उद्देश्य सरकार की उपभोक्ता संबंधी नीतियों की समीक्षा करना और उनमें सुधार के लिए उपाय सुझाना है। अधिनियम में तीन स्तरों जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर जिला फोरम, राज्य उपभोक्ता शिकायत निवारण आयोग और राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग जैसे अर्ध्दन्यायिक निकाय मशीनरी का भी प्रावधान है। फिलहाल देश में 621 जिला फोरम, 35 राज्य आयोग और एक राष्ट्रीय आयोग है। जिला फोरम उन मामलों में फैसले करता है जहां 20 लाख रूपए तक का दावा होता है। राज्य आयोग 20 लाख से ऊपर एक करोड़ रूपए तक के मामलों की सुनवाई करता है जबकि राष्ट्रीय आयोग एक करोड़ रूपए से अधिक की राशि के दावे वाले मामलों की सुनवाई करता है। ये निकाय अर्ध्द-न्यायिक होते हैं और प्राकृतिक न्याय के सिध्दांतों से संचालित होते हैं। उन्हें नोटिस के तीन महीनों के अंदर शिकायतों का निवारण करना होता है और इस अवधि के दौरान कोई जांच नहीं होती है जबकि यदि मामले की सुनवाई पांच महीने तक चलती है तो उसमें जांच भी की जाती है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 समेकित एवं प्रभावी तरीके से उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा और संवर्ध्दन से संबंधित सामाजिक-आर्थिक कानून है। अधिनियम उपभोक्ताओं के लिए विक्रेताओं, विनिर्माताओं और व्यापारियों द्वारा शोषण जैसे खराब सामान, सेवाओं में कमी, अनुचित व्यापारिक परिपाटी आदि के खिलाफ एक हथियार है। अपनी स्थापना से लेकर 01 जनवरी, 2010 तक राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर की उपभोक्ता अदालतों में 33,30,237 मामले दर्ज हुए और 29,58,875 मामले निपटाए गए।
(डा कपूर उपभोक्ता क्लब की संयोजक हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कालेंज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

14 मार्च 2011

गेहूं निर्यात पर लगी पाबंदी हटेगी!

नई दिल्ली March 11, 2011
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की किल्लत को देखते हुए गेहूं पर लगी पाबंदी हटाई जा सकती है। रूस में सूखा पडऩे के बाद वैश्विक बाजार में गेहूं की आपूर्ति प्रभावित हुई है। गौरतलब है कि साल 2007 से गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगी हुई है। खाद्य मंत्रालय गेहूं निर्यात को फिर से खोलने की बाबत क्षमता का आकलन कर रहा है, लेकिन इस पर अंतिम फैसला इस साल की पैदावार की सही तस्वीर आने के बाद ही लिया जाएगा। खाद्यान्न की महंगाई पर वित्त मंत्रालय में मुख्य आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु की अगुआई में प्रधानमंत्री द्वारा गठित अंतर-मंत्रालय समूह (आईएमजी) गेहूं निर्यात की अनुमति देने के मामले में इच्छित प्रभाव की खातिर विभिन्न सरकारी मंत्रालयों से सूचना मांग रहा है। आईएमजी का गठन बढ़ती कीमतों की पृष्ठभूमि में दिसंबर महीने में हुआ था।खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा - आईएमजी को यह मामला सुपुर्द करने से पहले हम स्टॉक और उपलब्धता की बाबत सभी जरूरी सूचनाएं इकट्ठा करने की प्रक्रिया में हैं और उसके बाद आईएमजी सचिवों की समिति को सिफारिश करेगा कि निर्यात की अनुमति दी जा सकती है या नहीं। उन्होंने कहा कि इस महीने मौजूदा फसल की कटाई शुरू होगी और जल्दी ही रफ्तार पकड़ लेगी। अधिकारी ने कहा कि फसल का आकलन निर्यात की बाबत फैसले लेने में मदद करेगा।इससे पहले खाद्य मंत्री प्रो. के. वी. थॉमस ने कृषि मंत्री शरद पवार के साथ रिकॉर्ड उत्पादन के अनुमान के बाद गेहूं निर्यात से पाबंदी हटाने की वकालत की थी। वाणिज्य मंत्रालय ने भी मौजूदा कटाई सीजन में अंतरराष्ट्रीय बाजार की उच्च कीमतों का लाभ उठाने की गरज से गेहूं निर्यात की वकालत की है। भारत ने साल 2007 में तब गेहूं निर्यात पर पाबंदी लगा दी थी जब कम उपज के चलते सरकारी खरीद में कमी आई थी। वास्तव में स्थानीय स्तर पर खरीद में कमी के चलते सरकार साल को 2006 व 2007 में करीब 73 लाख टन गेहूं आयात करना पड़ा था। कारोबारी सूत्रों ने कहा कि 10 से 30 लाख टन गेहूं का निर्यात भारत आसानी से कर सकता है और इससे सरकारी अनाज भंडार और अनाज की उपलब्धता पर कोई असर नहीं पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय ट्रेडिंग हाउस के एक अधिकारी ने कहा कि गेहूं निर्यात की अनुमति देने का यह सही समय है क्योंकि भारतीय गेहूं की तुलना ऑस्ट्रेलियाई गेहूं से की जा सकती है और इसकी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 15 से 16 रुपये प्रति किलोग्राम मिलेगी, जबकि घरेलू बाजार में कीमतें 12 रुपये प्रति किलोग्राम है। उन्होंने कहा कि रूस में सूखे के चलते वैश्विक बाजार में गेहूं की किल्लत हो गई है, लिहाजा भारत से गेहूं निर्यात होने पर वैश्विक बाजार इसे हाथोंहाथ लेगा। कृषि मंत्रालय ने साल 2010-11 के फसल विपणन वर्ष में रिकॉर्ड 814.7 लाख टन गेहूं उत्पादन का अनुमान जताया है। पिछले साल करीब 808 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था।वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2007 में गेहूं निर्यात पर पाबंदी से पहले देश ने 2006-07 में 47000 टन गेहूं का निर्यात किया था जबकि 2004-05 में 20 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ था। अनुमान है कि 1 मार्च को 172 लाख टन गेहूं का स्टॉक था, जो पिछले साल इस दौरान 82 लाख टन के स्टॉक की जरूरत से ज्यादा है। (BS Hindi)

जापानी भूकंप से रबर वायदा में हड़कंप

अहमदाबाद March 11, 2011
जापान में आए भीषण भूकंप से न सिर्फ वहां के रबर निवेशकों में घबराहट फैली है बल्कि इससे भारत में भी रबर के निवेशक प्रभावित हुए हैं। जापान की परिस्थितियों को देखते हुए देश में रबर के निवेशकों ने बिकवाली शुरू कर दी, लिहाजा नैशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एनएमसीई) में कारोबार के दौरान कीमतें करीब 3 फीसदी फिसल गई।जापान के जिंस बाजार से संकेत लेते हुए भारत में एनएमसीई पर रबर की कीमतों में कारोबारी सत्र के दौरान 890 रुपये प्रति क्विंटल तक की गिरावट दर्ज की गई। भारतीय रबर बाजार इसकी कीमतों की बाबत जापान के टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज से संकेत लेता है। जापान के जिंस एक्सचेंज में जब रबर की कीमतों में गिरावट शुरू हुई तो भारतीय बाजार में भी रबर की कीमतों में फिसलन देखी गई।टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज (रबर के कारोबार के मामले में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा एक्सचेंज) में अप्रैल वायदा में शुरुआत में 410 येन प्रति किलो से गिरकर 396 येन पर आ गया और इस तरह से दोपहर तक इसमें कुल मिलाकर 14 येन की गिरावट दर्ज की गई जो विगत में हुई गिरावट में सबसे बड़ी है। एनएमसीई में अप्रैल वायदा शुक्रवार को 21409 रुपये प्रति क्विंटल पर आ गया, जबकि गुरुवार को यह 22301 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ था।एनएमसीई के प्रबंध निदेशक अनिल मिश्रा ने कहा - ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि भारतीय रबर बाजार टोक्यो कमोडिटी एक्सचेंज से कीमत की बाबत संकेत ग्रहण करता है और भारत में भी कीमतें दोपहर तक करीब 3 फीसदी तक लुढ़क गई। उन्होंने कहा कि यह स्थिति किसी खास जिंस तक सीमित नहीं रह सकती है, लेकिन घबराहट का वातावरण दूसरे बाजारोंं में भी देखा जा सकता है।मिश्रा ने कहा कि भूकंप जैसे संकट का असर व्यवस्था में मौजूद नकदी पर ज्यादा पड़ता है। इसलिए लोग वित्तीय सुरक्षा के लिए दौड़ पड़ते हैं और जिंस बाजार जैसे वित्तीय बाजारों से बाहर निकलना शुरू कर देते हैं। भूकंप और सुनामी ने निवेशकों में घबराहट पैदा की है और इन चीजों ने रबर की कीमतों को काफी नीचे धकेल दिया है। विदेश व्यापार महानिदेशालय के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने साल 2009-10 में 777.32 करोड़ रुपये का रबर व इससे बने उत्पादों का आयात किया, जो साल 2008-09 के 499.11 करोड़ रुपये के मुकाबले 55.74 फीसदी ज्यादा है। निर्यात के मोर्चे पर भारत ने साल 2009-10 में जापान को 25.61 करोड़ रुपये के रबर और रबर उत्पादों का निर्यात किया। (BS Hindi)

ब्याज दरों से तांबा बेदम

नई दिल्ली March 11, 2011
महंगाई नियंत्रित करने के लिए कई देशों द्वारा बढ़ाई गई ब्याज दरों और यूरो की मजबूती का असर तांबे की कीमतों पर देखा जा रहा है। क्षेत्र के विश्लेषकों का कहना है कि कुछ देशों ने मौद्रिक नीति समीक्षा में ब्याज दरें बढ़ा दी हैं जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में धातुओं की खरीद कम होने लगी है। मुख्य उपभोक्ता देश चीन में फरवरी महीने में तांबे के आयात में 35 फीसदी की गिरावट आई है। इसके साथ ही डॉलर भी यूरो के मुकाबले मजबूत हुआ है। इस माह ही तांबे की कीमतों में 10 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी हैं। खरीद घटने से लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) में तांबे की इन्वेंट्री में भी कमी आई है। एलएमई में यह दो माह के निम्न स्तर पर आ गया है।इस माह एलएमई में तांबे के दाम 9,919 डॉलर से घटकर करीब 9,040 डॉलर प्रति टन रह गए हैं। वहीं मल्टीकमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) में 1 मार्च को तांबे का अप्रैल अनुबंध 450.90 रुपये प्रति किलो पर बंद हुआ था, जो 11 मार्च को घटकर 413 रुपये प्रति किलो पर आ गया। एलएमई में इस दौरान तांबे की इन्वेंट्री 6,000 टन से अधिक बढ़कर 4.25 लाख टन हो गई।धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा ने बताया कि चीन, भारत, थाईलैंड, कोरिया, बैंकाक और ब्रिटेन सहित अन्य देशों ने महंगाई को काबू में करने के लिए मौद्रिक नीति कठोर करते हुए ब्याज दरें बढाई है। तांबे की खरीद में कमी के चलते पिछले माह तांबे में 10190 डॉलर प्रति टन का रिकॉर्ड बनाने के बाद 10 फीसदी से अधिक गिरावट आ चुकी है। ऐंजल ब्रोकिंग के वरिष्ठï धातु विश्लेषक अनुज गुप्ता का कहना है कि तांबे की गिरावट की प्रमुख वजह चीन के आयात में भारी कमी आना है। फरवरी महीने में चीन में तांबे का आयात 35 फीसदी गिरकर 2,35469 लाख टन रह गया। गुप्ता बताते है कि मिस्र के बाद लीबिया में संकट का असर भी धातु बाजार पर पड़ा है। इसके अलावा पहले के मुकाबले डॉलर भी मजबूत हुआ है। शर्मा इस संबंध में बताते है कि यूरो के मुकाबले डॉलर मजबूत होने से भी तांबे की कीमतों में गिरावट को बल मिला है। दिल्ली के तांबा कारोबारी सुरेशचंद गुप्ता का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिस तरह से तांबे के दाम गिरे है, उसे देखते हुए घरेलू बाजार में भी आगे इसकी कीमतों में और गिरावट आ सकती है। बकौल शर्मा हाजिर बाजार में तांबे की मांग मजबूत बनी हुई है। इंटरनैशनल कॉपर स्टडी ग्रुप (आईसीएसजी) के मुताबिक वर्ष 2010 के पहले 11 माह के दौरान तांबे की खपत 7.2 फीसदी बढ़ी है। (BS Hindi)

ब्रांडेड आभूषणों पर उत्पाद शुल्क की वापसी नहीं होगी

नई दिल्ली/मुंबई March 13, 2011
किसी ब्रांड के नाम से बेचे जाने वाले आभूषणों पर 1 फीसदी के उत्पाद कर से 1 लाख करोड़ रुपये वाले जेम्स ऐंड ज्वैलरी उद्योग को राहत नहीं मिलेगी। वित्त मंत्रालय इस उद्योग की उत्पाद कर की वापसी की मांग से सहमत नहीं हुआ और ब्रांडेड आभूषण बनाने वाले अग्रणी निर्माताओं ने उत्पाद शुल्क का भुगतान करना शुरू भी कर दिया है।वित्त मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा - हम ब्रांडेड आभूषणों पर प्रस्तावित उत्पाद करों की समीक्षा नहीं कर रहे हैं। वित्त मंत्रालय ने ब्रांडेड आभूषणों के साथ-साथ सोने, चांदी, प्लैटिनम, पैलेडियम, रोडियम, इरिडियम, ओस्मियम से बने किसी अन्य सामानों या किसी ब्रांड केनाम से बेचे जाने वाले सामानों पर 1 फीसदी का उत्पाद शुल्क लगाने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि कुछ लोगों ने हमसे ब्रांडेड आभूषणों के बारे में पूछा था और हमने उन्हें इस बाबत विस्तार से जानकारी दी थी। उन्होंने कहा कि अगर उद्योग को किसी तरह का संदेह हो तो हम स्पष्टीकरण जारी कर सकते हैं।मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में हॉलमार्क और हाउस-मार्क को छूट दी गई है, जो किसी ज्वैलर या ऐसा काम करने वालों की पहचान को प्रतिबिंबित करता है और इसे ब्रांड नहीं माना जाएगा। इसे ब्रांडेड ज्वैलरी के तौर पर तभी वर्गीकृत किया जाएगा अगर आप इसे उदाहरण के तौर तनिष्क के लिए टी का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि कारोबारी समुदाय ने कहा है कि उत्पाद कर सिर्फ महंगे ब्रांड पर लगाया जाना चाहिए।कई ज्वैलर अपने नाम से आभूषण बेच रहे हैं और उनमें से कई ब्रांड बन चुके हैं। लेकिन जेम्स ऐंड ज्वैलरी ट्रेड फेडरेशन के प्रतिनिधियों ने पिछले हफ्ते वित्त मंत्रालय के साथ हुई बैठक में कहा था कि ज्वैलर के नाम को ब्रांड नहीं माना जाना चाहिए। वास्तविकता यह है कि उद्योग मोटे तौर पर असंगठित है और छोटे ज्वैलर छोटे कारीगरों के हाथ से आभूषण बनवाते हैं। तनिष्क जैसी कुछ चुनिंदा कंपनियों ने पहले ही उत्पाद कर चुकाना शुरू कर दिया है। टाइटन इंडस्ट्रीज (ज्वैलरी डिविजन) के सीईओ सी. के. वेंकटरामन ने कहा - टाइटन ने शुल्क चुकाना शुरू कर दिया है और उम्मीद कर रहा है कि सरकार प्रतिष्ठित स्थानीय ज्वैलरों को भी ब्रांड के तौर पर देखेगी, जो कि वे हैं।जेम्स ऐंड ज्वैलरी फेडरेशन (जीजेएफ) के चेयरमैन विनोद हेग्रीव ने हालांकि कहा कि ज्यादातर छोटे ज्वैलर छोटे कारीगरों से आभूषण बनवाते हैं जो कारीगर की तरह काम करते हैं, लेकिन वे छोटे व असंगठित हैं। इसके बाद आभूषणों को खुदरा दुकानदारों को बेचा जाता है। कारीगरों की संख्या छोटी है, ऐसे में दुकानों पर उत्पाद शुल्क नहीं लगाया जा सकता क्योंकि इसका भुगतान विनिर्माताओं द्वारा होना चाहिए, न कि कारोबारियों द्वारा। ये चीजें क्रियान्वयन को जटिल बनाती हैं।वास्तव में बेंगलुरु जैसे उत्पाद कर के कार्यालयों ने ज्वैलरों को नोटिस भेजना शुरू कर दिया है कि ब्रांड नाम से बेचे जाने वाले आभूषणों पर वे उत्पाद कर चुकाएं। चूंकि यह उद्योग असंगठित क्षेत्र में है, लिहाजा कुछ के ही पास सही मायने में विनिर्माण की सुविधा है। ऐसे में इसका क्रियान्वयन मुश्किल है और आभूषण की बिक्री सोने की कीमत, श्रमिक लागत और वैट के आधार पर होती है। यह शायद इकलौता उत्पाद है जो इस तरह बेचा जाता है, ऐसे में वैट संग्रह की उचित व्यवस्था भी मुश्किल है।सरकार ने कहा है कि ब्रांडेड उत्पाद पर कर चुकाने की जिम्मेदारी ब्रांड के मालिक की है और काम करने वाले मालिक के बदले कर चुका सकता है। हालांकि ज्वैलरी उद्योग में काम करने वाले कारीगर होते हैं, जो औपचारिक तौर पर रिकॉर्ड नहीं रखते। कारोबारी के बदले कर चुकाने के लिए उन्हें जिम्मेदार बनाने के परिणामस्वरूप ये कारीगर इस कारोबार से तौबा कर सकते हैं कि उत्पाद कर विभाग उन्हें परेशान कर सकता है। (BS Hindi)

भाव बढऩे से विभिन्न राज्यों के आलू किसानों को मिली राहत

नई दिल्ली March 13, 2011
आलू के भाव बढऩे से किसानों को बड़ी राहत मिली है। इस वर्ष जनवरी तक आलू के दाम लागत से नीचे चले गए थे। इस वजह से किसानों को भारी नुकसान हो रहा था, लेकिन अब कीमतों में आई तेजी से किसानों को फायदा होने लगा है। दाम बढऩे और कोल्ड स्टोर में आलू चले जाने की प्रमुख वजह इसकी आवक कम होना है। फिलहाल करीब 45 फीसदी आलू कोल्ड स्टोर में जा चुका है। इस साल देश में आलू का उत्पादन भी अधिक रहने का अनुमान है। साथ ही कोल्ड स्टोर का किराया भी पिछले साल से 9 फीसदी अधिक है।आलू का प्रमुख उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में एक महीने के दौरान आलू के दाम 200 रुपये तक बढ़कर 500-600 रुपये, पश्चिम बंगाल में 360-370 रुपये से बढ़कर 490-550 रुपये, पंजाब में 150 रुपये बढ़कर 500-550 रुपये और दिल्ली में आलू के भाव 350-400 रुपये से बढ़कर 500-660 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं।गाजीपुर जिले (उत्तर प्रदेश) के सरैया छावनी गांव में आलू की खेती करने वाले किसान बटुकनारायण मिश्र ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि जनवरी में आलू का भाव 350 रुपये प्रति क्विंटल के करीब था और इस भाव पर किसान नुकसान उठा रहे थे, लेकिन अब आलू के दाम बढऩे से किसानों को राहत मिली है। पश्चिम बंगाल आलू-बीज व्यवसायी समिति के सदस्य अरुण कुमार घोष भी दाम बढऩे को किसानों के लिए अच्छा मानते हैं। घोष बताते है कि आगे भी यही भाव रहने पर पिछले दिनों हुए नुकसान की भरपाई हो जाएगी। साथ ही आगे वे फायदे में रहेंगे। कांफेडेरेशन ऑफ पोटैेटो सीड फारमर्स (पॉस्कोन), पंजाब के महासचिव जंगबहादुर सिंह ने बताया कि आलू की कीमतों में तेजी से घाटा झेल चुके किसानों की स्थिति सुधरी है। दाम बढऩे की वजह के बारे में दिल्ली स्थित पोटेटो ऑनियन मर्चेंट ट्रेडर्स एसोसिएशन (पोमा), आजादपुर के अध्यक्ष त्रिलोकचंद शर्मा कहते हैं कि कोल्ड स्टोर में आलू जाने के बाद बाजार में इसकी आवक घटी है, जिससे दाम बढ़ रहे हैं। उनके मुताबिक महीने भर में आजादपुर मंडी में आलू की आवक 150 ट्रक से घटकर 110 ट्रक रह गई है। आगरा कोल्ड स्टोर एसोसिएशन के अध्यक्ष सुदर्शन सिंघला ने बताया कि अब तक 45 फीसदी आलू कोल्ड स्टोर में जा चुका है। आगरा के कोल्ड स्टारों की भंडारण क्षमता 4 करोड़ कट्टïा (50 किलोग्राम) है। राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के अनुसार वर्ष 2010-11 में 4 करोड़ टन से अधिक आलू उत्पादन होने का अनुमान है। इसमें से उत्तर प्रदेश में करीब 140 लाख टन, पश्चिम बंगाल में 88 लाख, पंजाब में 21 लाख और बिहार में 56 लाख टन आलू पैदा होने का अनुमान है। (BS Hindi)

जागरूक उपभोक्‍ता

एक प्रबुद्ध उपभोक्‍ता एक सशक्‍तीकृत उपभोक्‍ता है। एक जागरूक उपभोक्‍ता न केवल अपने आप को शोषण से बचाता है, बल्कि पूरे विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में दक्षता, पारदर्शिता और उत्‍तरदायित्‍व को समावेशित करता है। उपभोक्‍ता सशक्‍तीकरण के महत्‍व को स्‍वीकारते हुए सरकार ने उपभोक्‍ता शिक्षा, उपभोक्‍ता संरक्षण और उपभोक्‍ता जागरूकता को शीर्ष प्राथमिकता दी है।
भारत एक ऐसा देश है जो उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए प्रगतिशील कानून लागू करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए यह ऐसा देश है, जो उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए प्रगतिशील कानून लागू करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम 1986 को लागू करना, देश में उपभोक्‍ता आंदोलन का एक सबसे महत्‍वपूर्ण मील का पत्‍थर रहा है। इस अधिनियम ने उपभोक्‍ता अधिकारों के क्षेत्र में एक आंदोलन को तेज किया है और संभवत: विश्‍व में कहीं भी इस प्रकार का कोई अधिनियम नहीं है। यह अधिनियम सभी क्षेत्रों निजी, सार्वजनिक अथवा सहकारी में केंद्र सरकार द्वारा विशेष छूट वाली जींसों और सेवाओं को छोड़कर अन्‍य सभी जींसों और सेवाओं पर लागू है।उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए आधारभूत ढांचासरकार द्वारा उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए किए गए उपाय मुख्‍यत: तीन आधारभूत मानकों के इर्द-गिर्द घूमते हैं। सबसे पहला, एक कानूनी ढ़ांचा तैयार करना, जिसमें उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम शामिल है। दूसरा, विभिन्‍न उत्‍पादों के लिए मानक विकसित करना ताकि उपभोक्‍ताओं को विभिन्‍न उत्‍पादों के बारे में विकल्‍पों की जानकारी हो सके। वैसे मानक जो गुणवत्‍ता संरचना में अनिवार्य हैं, वे उपभोक्‍ता संरक्षण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। ये मानक तकनीकी आवश्‍यकता, उन्‍नत विशेष मानक पद, व्‍यवहार के कोड अथवा जांच प्रणालियों अथवा प्रबंधन प्रणाली के मानकों पर आधारित हो सकते हैं। ये मानक सामान्‍य तौर पर सरकारी अथवा अंतर-सरकारी निकायों द्वारा निर्धारित किए जाते हैं, किंतु विश्‍व भर में यह माना जाता है कि मानकों की स्‍वैच्छिक स्‍थापना उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए एक समान महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है। तीसरा, उपभोक्‍ता जागरूकता और शिक्षा उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए मुख्‍य संरचना है।उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986इस अधिनियम में शामिल सभी उपभोक्‍ता अधिकारी अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर स्‍वीकार्य हैं। अधिनियम के अधीन एक भिन्‍न त्रिस्‍तरीय न्‍यायिक उपभोक्‍ता विवाद निपटारा तंत्र स्‍थापित किया गया है। इसे उपभोक्‍ता अदालत अथवा उपभोक्‍ता फॉरम के रूप में जाना जाता है। यह राष्‍ट्रीय, राज्‍य और जिला स्‍तर पर स्‍थापित किया गया है ताकि प्रतिबंधित/पक्षपातपूर्ण व्‍यापार सहित खराब जींसों, सेवाओं में कमी के विरूद्ध उपभोक्‍ताओं की शिकायतों को सहज, शीघ्र और किफायती ढंग से निपटारा जा सके।उपभोक्‍ता फॉरम का नेटवर्कराष्‍ट्रीय आयोग, 35 राज्‍य आयोगों और 607 जिला फॉरमों से बने उपभोक्‍ता अदालतों के बीच कम्‍प्‍यूटर नेटवर्क स्‍थापित करने के क्रम में विभाग की और से सभी उपभोक्‍ता फॉरमों के कम्‍प्‍यूटरीकरण के साथ ही उन्‍हें आपस में जोड़ने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसके बल पर उनकी देखरेख हो सकेगी और विभिन्‍न प्रकार के आंकड़ो तक पहुंच कायम हो सकेगी। उपभोक्‍ता जागरूकता और शिक्षा की दिशा में कदमभारत जैसे किसी देश में जहां आर्थिक असमानता और शिक्षा तथा उपेक्षा के परिदृश्य में उपभोक्‍ताओं को शिक्षित करना एक वृहद कार्य है। इसके लिए प्रत्‍येक व्‍यक्ति की और से एकजुट प्रयास की जरूरत है। सरकार ने देश में उपभोक्‍ता जागरूकता पैदा करने के लिए कई प्रयास किए हैं। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने जनवरी 2008 में 11वीं योजना के दौरान उपभोक्‍ता जागरूकता योजना के लिए कुल 409 करोड़ रूपए मंजूर किए गए हैं।पिछले चार वर्षों में चलाए गए प्रचार अभियान के परिणामस्‍वरूप ‘’जागो ग्राहक जागो’’ का नारा घर-घर तक पहुंचा। सरकार ने 11वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान विशेष जोर देकर आम आदमी को एक उपभोक्‍ता के रूप में उसके अधिकारों के बारे में जानकारी देने का प्रयास किया है। उपभोक्‍ता जागरूकता योजना के हिस्‍से के रूप में ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों को उच्‍च प्राथमिकता दी जा रही है।बहुविध मीडिया प्रचार अभियान पत्र-पत्रिकाओं और इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया के माध्‍यम से आईएसआई, हॉलमार्क, लेबलिंग, एमआरपी, माप और तौल आदि जैसे विभागों की भूमिका से सीधे तौर पर जुड़े मुद्दों पर बहुविध मीडिया प्रचार अभियान चलाए जा रहे हैं। देशभर में राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय समाचार पत्रों के नेटवर्क के माध्‍यम से प्रत्‍येक विज्ञापन जारी किया जाता है। इसी प्रकार दूरसंचार रियल एस्‍टेट, क्रेडिट कार्डों, वित्‍तीय उत्‍पादों, औषधियों, बीमा, यात्रा सेवाओं, दवाओं आदि जैसे उभरते हुए नये क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर जोर देते हुए कई महत्‍वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। ये कदम संबंधित विभागों के साथ संयुक्‍त अभियानों अथवा संयुक्‍त परामर्शों के माध्‍यम से उठाए गए हैं।उपभोक्‍ता कार्य विभाग के पास उपभोक्‍ताओं से संबंधित विभिन्‍न मुद्दों पर 30 सेकेंड के वीडियो स्‍पॉट उपलब्‍ध हैं, जिन्‍हें केबल और उपग्रह चैनलों के जरिये दिखाया जाता है। उपभोक्‍ता जागरूकता से संबंधित मुद्दों पर जोर देने के लिए लोक सभा टीवी और दूरर्शन पर विशेष कार्यक्रम भी प्रसारित किए जा रहे हैं। विभिन्‍न विज्ञापनों में ग्रामीण और सुदूर क्षेत्रों में संबंधित मुद्दों को प्रमुखता दी जा रही है।मेघदूत पोस्‍टकार्डडाक विभाग के साथ संपर्क से पूर्वोत्‍तर राज्‍यों सहित सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक भी मेघदूत पोस्‍टकार्डों के माध्‍यम से उपभोक्‍ता जागरूकता के संदेश प्रचारित किए जाते हैं। देशभर में 1.55 लाख ग्रामीण डाकघरों और 25,000 से भी अधिक शहरी डाकघरों में उपभोक्‍ता जागरूकता के संदेश वाले पोस्‍टर लगाए गए हैं।राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता हेल्‍पलाइनविभाग ने एक राष्‍ट्रीय हेल्‍पलाइन शुरू किया है। टॉल फ्री नंबर 1800-11-4000 की सुविधा सभी कार्यदिवसों में 09.30 बजे सुबह से लेकर 05.30 बजे शाम तक उपलब्‍ध है।कोर सेंटरविभाग ने उपभोक्‍ताओं की कानूनी सहायता देने और उनकी शिकायतों के निपटारे के लिए 15 मार्च, 2005 को वेबसाइट www.core.nic.in पर एक कोर सेंटर शुरू किया है। उपभोक्‍ता जागरूकता से संबंधित विभिन्‍न विज्ञापनों के द्वारा कोर की गतिविधियों और इसकी वेबसाइट के बारे में काफी विज्ञापन दिए जा रहे हैं ताकि उपभोक्‍ता इसके द्वारा उपलब्‍ध ऑनलाइन परामर्श की सहायता प्राप्‍त कर सके।भारत अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार मेला-2010 में भागीदारीविभाग की ओर से उपभोक्‍ता जागरूकता संबंधी प्रयासों को दर्शाने के लिए प्रदर्शनियों और व्‍यापार मेलों का भी इस्‍तेमाल किया जाता है। विभाग ने नई दिल्‍ली में 14 से 27 नवंबर, 2010 तक आयोजित भारत-अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार मेले में भागीदारी की। व्‍यापार मेले के दौरान लाखों की संख्‍या में दर्शकों ने ‘जागो ग्राहक जागो’ स्‍टॉल को देखा। मेले के दौरान उपभोक्‍ता फॉरम, राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता हेल्‍पलाइन, शिकायत निपटारा तंत्र तथा रियल एस्‍टेट, दूरसंचार, वित्‍तीय उत्‍पादों आदि जैसे क्षेत्र-विशेष के बारे में जानकारी देते हुए प्रचार सामग्रियां दर्शकों के बीच मुफ्त वितरित की गई। स्‍टॉल पर आनेवाले दर्शकों के बीच उपभोक्‍ताओं से जुड़े मुद्दों पर जागरूकता फैलाने के उद्देश्‍य से ‘जागो ग्राहक जागो’ अभियान के हिस्‍से के रूप में दृश्‍य विज्ञापन भी लगातार दिखाए गए। व्‍यापार मेले के दौरान दर्शकों को तत्‍काल मार्गदर्शन देने के उद्देश्‍य से राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता हेल्‍पलाइन के प्रतिनिधि भी तैनात किए गए थे। विभाग अक्‍तूबर, 2010 में तमिलनाडु के वरहीस कॉलेज, वेल्‍लोर में आयोजित एक प्रदर्शनी में भी भाग लिया।खेल आयोजनों का इस्‍तेमालअधिकतम संख्‍या में उपभोक्‍ताओं तक पहुंच कायम करने के क्रम में विभाग ने लोकप्रिय खेल आयोजनों के दौरान सूचना से संबंधित जानकारी वाले दृश्‍य विज्ञापन प्रसारित किए जिसमें दर्शकों की अधिकतम रूचि होती है। संयुक्‍त प्रचार अभियानसंयुक्‍त प्रचार अभियान के हिस्‍से के रूप में उपभोक्‍ताओं को शिक्षित करने के उद्देश्‍य से रियल एस्‍टेट, क्रेडिट कार्डों, औषधियों, बीमा, खाद्य सुरक्षा आदि जैसे विशेष उपभोक्‍ता मुद्दों पर अनेक विज्ञापन जारी किए गए हैं।उपभोक्‍ता जागरूकता के लिए इंटरनेट का इस्‍तेमालइस बात को ध्‍यान में रखते हुए कि 35 वर्ष से कम उम्र की जनसंख्‍या का 70 प्रतिशत से अधिक भाग बड़े पैमाने पर इंटरनेट का इस्‍तेमाल कर रही है, इंटरनेट के माध्‍यम से उपभोक्‍ता जागरूकता फैलाने के उद्देश्‍य से एक प्रमुख कदम उठाया जा रहा है। विभाग के सभी मुद्रित विज्ञापनों के साथ ही श्रव्‍य-दृश्‍य विज्ञापनों को मंत्रालय की वेबसाइट : www.fcamin.nic.in. पर रखा गया है।राज्‍य/केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों की सहायता हेतु विशेष योजनाउपभोक्‍ता आंदोलन को ग्रामीण, सुदूर और पिछड़े क्षेत्रों तक ले जाने के मामले में राज्‍य और केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों की सक्रिय भागीदारी काफी महत्‍वपूर्ण मानी जाती है। उपभोक्‍ता जागरूकता के संदेश को फैलाने में राज्‍य/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासन को प्रमुखता दी जा रही है। स्‍थानीय भाषा के इस्‍तेमाल से स्‍थानीय मीडिया में उपभोक्‍ता जागरूकता संबंधी गतिविधियों के संचालन के लिए राज्‍यों/केंद्रशासित प्रदेशों को अनुदान सहायता दी गई है और उपभोक्‍ता जागरूकता अभियान में पंचायती राज संस्‍थाओं को शामिल करने पर जोर दिया गया है।प्रकाशन विभाग की पत्रिकाओं में विज्ञापनविभाग ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के अधीन प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित योजना, कुरूक्षेत्र, बाल भारती, आजकल जैसी पत्रिकाओं और उनके क्षेत्रीय संस्‍करणों में विज्ञापनों के प्रकाशनों के लिए उससे हाथ मिलाया है। उनके पाठक समूह को देखते हुए इन पत्रिकाओं में उपभोक्‍ता जागरूकता पर आधारित मुद्दों पर जोर देने वाले लेख भी छापे जाते है।तकनीकी सहायता के लिए जर्मन कंपनी से सहयोगविभाग ने प्रचार सामग्रियों को तैयार करने और उन्‍हें विकसित करने के बारे में जर्मन कंपनी जीटी जेड से सहयोग प्राप्‍त किया है। जीटी जेड परियोजनाओं के अधीन घटिया व्‍यापारिक प्रचलनों के बारे में एमआरपी और उपभोक्‍ता जागरूकता के क्षेत्र में इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया के लिए विज्ञापन तैयार किए गए। भारत-जर्मन तकनीकी सहयोग के अधीन विभाग द्वारा प्रकाशित प्रचार सामग्री का विश्‍लेषण किया गया है और नई प्रचार सामग्रियों के लिए सुझाव दिए गए हैं। इस परियोजना के अधीन एक ‘उपभोक्‍ता डायरी’ भी तैयार की जा रही है।प्रचार अभियान का एकीकृत मूल्‍यांकनभारतीय जन-संचार संस्‍थान (आईआईएमसी) द्वारा 12 राज्‍यों और 144 जिलों को शामिल करते हुए एक व्‍यापक सर्वेक्षण किया गया था। इस सर्वेक्षण से इस बात का पता चला कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में प्रश्‍नों के उत्‍तर देने वालों में लगभग 62.56 प्रतिशत लोग विभाग द्वारा संचालित प्रचार अभियान से अवगत थे। आईआईएससी के सर्वेक्षण नतीजों पर विचार करके उन्‍हें उपभोक्‍ता जागरूकता से जुड़ी गतिविधियों को संचालित करने के लिए मीडिया आयोजना को अंतिम रूप देते समय लागू किया गया। योजना आयोग की एक पैनल एजेंसी द्वारा अभियान का एक मध्‍यकालिक मूल्‍यांकन भी किया गया है और ‘जागो ग्राहक जागो’ अभियान के बारे में इसकी अध्‍ययन रिपोर्ट उत्‍साहवर्द्धक पायी गई है।उपभोक्‍ता संरक्षण के लिए सकारात्‍मक विधानइस विभाग द्वारा देश में कानूनी माप विज्ञान के विकास पर जोर देने के बाद एक व्‍यापक वैधानिक माप-विज्ञान विधेयक लागू किया गया है, जो माप और तौल मानक अधिनियम, 1976 और माप और तौल मानक (प्रत्‍यर्पण) अधिनियम, 1985 का स्‍थान ले रहा है। इसका उद्देश्‍य देश में मौजूदा वैधानिक माप-विज्ञान सुविधाओं के मनमुताबिक इस्‍तेमाल करना और अंतर-राज्‍य व्‍यापार में माप और तौल की जरूरतों को अधिकाधिक सरल बनाना और राज्‍यों/केंद्रशासित प्रदेशों में वैधानिक माप विज्ञान के मुद्दे को संचालित करने के लिए बदलती जरूरतों के अनुसार बेहतर कार्मिक उपलब्‍ध कराना है।राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता संरक्षण प्राधिकरण विभाग द्वारा नीति संबंधी एक अन्‍य पहल के रूप में राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता संरक्षण प्राधिकरण की स्‍थापना का प्रस्‍ताव किया गया है। यह प्राधिकरण सामान्‍य तौर पर उपभोक्‍ताओं के हितों का बेहतर संरक्षण करने के लिए एक सहायक निकाय होगा, जो इस दिशा में कार्रवाई करने के लिए अधिकृत होगा। यह विभाग एक राष्‍ट्रीय उपभोक्‍ता नीति के निर्माण की प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा है, जिससे देश में उपभोक्‍ता आंदोलन का भविष्‍य संवरेगा। इस नीति के अधीन देश में उपभोक्‍ता आंदोलन को तेज करने का प्रस्‍ताव किया गया है, जो उपभोक्‍ता संरक्षण पर संयुक्‍त राष्‍ट्रसंघ के मार्गनिर्देशों के अनुसार है।मानकों का उन्‍नयनउपभोक्‍ताओं को अपने अधिकारों के इस्‍तेमाल में गुणवत्‍ता और मानकों की निर्णायक भूमिका है। मानकों के माध्‍यम से उपभोक्‍ताओं को गुणवत्‍ता की विश्‍वसनीयता उपलब्‍ध होती है। जिस प्रकार पश्चिमी देशों में उत्‍पादों गुणवत्‍ता के प्रति जागरूकता है, वैसा अब तक भारतीय जीवन में नहीं हो पाया है। इसे ध्‍यान में रखते हुए विभाग ने गुणवत्‍ता को बढ़ावा देने के लिए एक आर्थिक ढ़ांचा तैयार करने में सफलता प्राप्‍त की है। बीआईएस ने विदेशी निर्माताओं और आयातित जींसों के लिए एक प्रमाणन प्रणाली की शुरूआत करने के नया प्रचार किया है, जिसमें आईएसओ मानकों के अनुसार खाद्य सुरक्षा प्रमाणन शामिल है। उपभोक्‍ता हितों की रक्षा करने के संदर्भ में सोने के आभूषणों और चाँदी की कलाकृतियों के हॉलमार्क के लिए प्रमाणन योजना बीआईएस का एक महत्‍वपूर्ण योगदान है।भविष्‍य के लिए दिशानिर्देशउपभोक्‍ताओं को शिक्षित करने और उन्‍हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक बनाने के लिए मल्‍टी-मीडिया प्रचार का न केवल अंतिम अपभोक्‍ताओं पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा, बल्कि पूरे विनिर्माण और सेवा क्षेत्र पर भी पड़ेगा। इससे सार्वजनिक और निजी क्षेत्र द्वारा प्रदत सेवाओं का उत्‍तरदायित्‍व और उसकी पारदर्शिता भी काफी बढ़ेगी, चूंकि अंतिम उपभोक्‍ता शिक्षित होगा और जागरूक होकर अपनी गाढ़ी कमाई के धन के बदले सर्वोत्‍तम सेवा की मांग करेगा। इसलिए अब वह दिन दूर नहीं जब उपभोक्‍ता सचमुच सशक्‍त होंगे।