September 17, 2008
पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन ओपेक के 13 सदस्यों में से ईरान और वेनेजुएला दो ऐसे देश हैं जिन्होंने कीमत को लेकर आक्रामक रुख अख्तियार कर रखा है।
इन देशों ने तेल की बेंचमार्क कीमत को 100 डॉलर प्रति बैरल पर बनाए रखने की ठान ली है। ये दोनों देश तेल की कीमतों के छह महीने के न्यूनतम स्तर तक चले जाने से आक्रामक हो गए हैं। हालांकि वे इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि कीमतों में बढ़ोतरी और ऋण संकट के कारण हर जगह तेल की मांग में कमी हुई है।इस समय जिंस के साथ-साथ तेल बाजार में भी मंदी आई है। आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) का अनुमान है कि इस साल के अंत तक आर्थिक विकास की गाड़ी धीमी रहेगी। वित्त और आवास बाजार के संकट के अलावा जिंसों की अधिक कीमतें 'वैश्विक विकास की मंदी' को बरकरार रखे हुए है। ओपेक सदस्य इस संभावना से इंकार नहीं कर रहे कि मांग में होती कमी के बावजूद यदि पहले के तय कोटे के अनुसार उत्पादन जारी रहा तो तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जरूर चली जाएगी। चीन सहित भारत और कुछ अन्य उभरते देशों में तेल की मांग अभी भी मजबूत रहने के आसार हैं लेकिन विकसित देशों की मांग में हुई कमी की भरपाई करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है।ईरान और वेनेजुएला की परेशानी इस बात को लेकर है कि 2005 से अब तक प्रति दन 8.60 करोड़ बैरल तेल का उत्पादन किया जा रहा है। 11 जुलाई को रेकॉर्ड 147 डॉलर प्रति बैरल तक चले जाने के बाद कच्चे तेल की कीमत में काफी तेजी से कमी हुई है। ईरान के तेल मंत्री अपनी आधिकारिक घोषणा में पहले ही कह चुके हैं कि ज्यादा आपूर्ति के चलते तेल की कीमतों में कमजोरी आई है।उन्होंने कहा था कि तेल की आपूर्ति मांग के अनुपात में ही होनी चाहिए। तेल की अतिरिक्त आपूर्ति पर नियंत्रण करना वाकई में ओपेक के लिए एक मुद्दा है। वास्तव में तेल बाजार का यह संकट मांग के लगातार कमजोर होते जाने का मामला है। गौरतलब है कि सऊदी अरब ने जून से दो चरणों में तेल का उत्पादन 5 लाख बैरल बढ़ाकर 95 लाख बैरल प्रति दिन कर दिया था। कहने की जरूरत नहीं कि ईरान का संदेश ओपेक के सभी सदस्यों के लिए यह है कि यदि वे पश्चिमी देशों के लिए अतिरिक्त उत्पादन कर रहे हैं तो उसे बंद कर दें। इस साल जब तेल की कीमतों में असामान्य बढ़ोतरी हो रही थी तब ओपेक इस बात पर कायम था कि ऊर्जा की अधिक कीमतें बुनियादी तत्वों के प्रतिकूल हैं। ओपेक ने तब उत्पादन बढ़ाने से इंकार करते हुए इसके लिए सटोरियों को जिम्मेदार ठहराया था। ज्यादातर विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्विक उत्पादन में आई गिरावट, खास तौर से गैर-ओपेक देशों में हुई गिरावट इसके लिए सही मायने में दोषी है। गैर-ओपेक तेल का उत्पादन चरम पर हो सकता है पर ओपेक के तेल भंडार के संदर्भ में किए गए दावों पर संदेह होता है। मामला बिल्कुल साफ है। ईरान का मकसद चाहे जो भी हो लेकिन ओपेक भी अपने उत्पादन की भौतिक सीमा तक पहुंच रहा है।मशहूर तेल विशेषज्ञ डेविड स्ट्रैहान ने सभी चीजों को बिल्कुल सही दिशा में रखा। वह कहते हैं कि 98 तेल उत्पादक देशों में से 60 में तेल उत्पादन में आंशिक कमी आई है। उत्पादन में आ रही कमी की सैध्दांतिक वजह यह है कि पिछले 40 सालों में विश्व में नए तेल भंडार बहुत ही कम मिले हैं। स्ट्रैहान कहते हैं कि इस समय एक बैरल तेल की खोज पर तीन बैरल की खपत हो रही है।वैश्विक तौर पर तेल की कीमतें डॉलर में आंकी जाती है। इसलिए यह स्वाभाविक था कि कारोबारियों जिसमें हेज फंड भी शामिल हैं, ने जब यह देखा कि डॉलर में कमजोरी आ रही है तो उन्होंने तेल को सुरक्षित विकल्प समझते हुए इसमें निवेश करना शुरू कर दिया। अब परिस्थितियां डॉलर के पक्ष में हैं इसलिए कारोबारी तेल से बाहर हो रहे हैं।तेल बाजार में आगे चाहे जो भी हो लेकिन इस बात पर मतैक्यता है कि तेल की कीमतें अब पहले की तरह कम नहीं होंगी। नई घटनाओं को इस वास्तविकता से समझा जा सकता है कि जब तेल की कीमतें आसमान छू रही थीं तब जिस तरह से ड्रिलिंग और परिशोधन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए निवेश किया गया था अब उस तरह का निवेश मौजूदा दौर में नहीं हो रहा है। पिछले दिनों नई क्षमताएं तब बनी जब मांग में कमी आनी शुरू हो गई जिससे कीमतों में कमी आई है। नए उत्पादन संयंत्र अभी उत्पादन शुरू करने को तैयार नहीं है, इसलिए आपूर्ति में किसी तरह की बढ़ोतरी हमें नहीं दिख रही है। थोड़े समय के लिए चीन और भारत की तेल मांग में भले ही कुछ कमी आ जाए लेकिन दीर्घावधि में इनके आयात में तेजी से वृद्धि होगी। कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाने के बावजूद ईरान और वेनेजुएला के शिकायत को कोई मतलब नहीं बनता। क्या यह सही नहीं कि एक साल पहले कच्चा तेल लगभग 75 डॉलर प्रति बैरल की दर से बिक रहा था। (BS Hindi)
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