मुंबई : तिलहन फसलों का कटाई सीजन करीब होने और खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट के चलते व्यापारिक संगठनों के अधिकारियों ने सरकार से मांग की है कि आयात शुल्क संरचना में परिवर्तन किया जाए। उन्होंने यह भी कहा है कि स्टॉक सीमा पर से आदेश वापस लिया जाएं जिससे मंदी और किसानों पर पड़ने वाले इसके असर को रोका जा सके। खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों को रोकने के लिए इस साल अप्रैल में सरकार ने क्रूड और रिफाइंड ऑयल पर आयात कर को घटाकर क्रमश : 0 और 7.5 परसेंट कर दिया था , लेकिन अब विभिन्न प्रकार के तेलों के दाम में गिरावट आने लगी है और सितंबर अंत तक कई फसलों का कटाई सीजन भी है , इस कारण शुल्क में कटौती कीमतों को और कम कर देगी। साल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर बी वी मेहता का कहना है , ' अगर कदम न उठाए गए तो किसानों को उनकी फसलों के लिए अच्छी कीमत नहीं मिलेगी। ' पिछले दो महीनों के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में गिरावट का रुख है। पॉम की कीमतों में प्रति टन 400 डॉलर , सोयाबीन में 300 डॉलर और सूरजमुखी की कीमतों में प्रति टन 700 डॉलर की गिरावट आई है। इससे पता चलता है कि विभिन्न खाद्य तेलों की कीमतों में 5000-13,000 रुपए प्रति टन की गिरावट आई है। शुल्क में कटौती के कारण आयात में भी बढ़ोतरी हो रही है और इससे भी कीमतों में नरमी आई है। नवंबर 2007- जुलाई 2008 के दौरान भारत में खाद्य तेलों के आयात में 9 परसेंट की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान 36.3 लाख टन का आयात हुआ जबकि पिछले वर्ष इसी दौरान आयात 33 लाख टन का था। तिलहन कीमतों में बढ़ोतरी के घरेलू और वैश्विक कारकों में नरमी आई है। 2008-09 में दुनिया भर में 41.6 करोड़ टन तिलहन उत्पादन का अनुमान लगाया गया है जबकि पिछली बार उत्पादन 38.7 करोड़ टन था। घरेलू बाजार में भी अगस्त 2008 तक सोयाबीन और तिलहन का उत्पादन क्षेत्र बढ़कर 173 लाख हेक्टेयर हो गया जबकि एक साल पहले उत्पादन क्षेत्र 170 लाख हेक्टेयर था। इंदौर के सोयाबीन ऑयल प्रोसेसर्स एसोसिएशन ( एसओपीए ) के राजेश अग्रवाल का भी मानना है कि कीमतों को लागत से भी कम के स्तर पर जाने से रोकने के लिए सरकार को शुल्क संरचना पर ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा , ' इस समय अक्टूबर डिलीवरी के लिए सोयाबीन का भाव प्रति क्विंटल 2100 रुपए चल रहा है। बंपर फसल और वैश्विक बाजार के ट्रेंड के अनुसार इसमें और गिरावट आ सकती है। ' इसके अलावा सरकार ने कई कमोडिटीज के लिए स्टॉक सीमा भी निर्धारित की है। इसमें खाद्य तेल और तिलहन शामिल हैं। इसके तहत कोई भी निर्माता अपनी सालाना तिलहन पेराई क्षमता का 1/12 से ज्यादा का भंडार नहीं कर सकता है। मेहता का कहना है , ' इससे निर्माता तिलहन का भंडारण नहीं कर सकते हैं। परिणामस्वरूप किसानों को फसल बेचने में दिक्कत आएगी और यदि कीमतों में और गिरावट आई तो उनकी मुसीबतें बढ़ सकती हैं। ' (ET Hindi)
01 सितंबर 2008
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