भारत में बारिश के लिए आम तौर पर जिम्मेदार दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के
दौर में इस साल अब तक सामान्य से 5 फीसदी कम बारिश हुई है लेकिन अगले कुछ
दिनों में पश्चिमोत्तर और मध्य भारत में बारिश के दोबारा रफ्तार पकडऩे की
संभावना है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने इस साल मॉनसून की दीर्घावधि औसत
बारिश (एलपीए) के 106 फीसदी रहने का पूर्वानुमान जताते हुए कहा था कि उसके
अनुमान में 4 फीसदी की घट-बढ़ हो सकती है। इसके आसपास पहुंचने के लिए
बारिश के सितंबर में फिर से जोर पकडऩा जरूरी है।
हालांकि मौसम विभाग ने एलपीए में कटौती की संभावना से इनकार किया है।
वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि एलपीए पूर्वानुमान के निचले स्तर यानी 102
फीसदी तक पहुंच जाएगा। अगर औसत बारिश 102 फीसदी के स्तर पर रहती है तो भी
वह सामान्य से 2 फीसदी ज्यादा होगी। इसके लिए उनकी उम्मीदें सितंबर के
दूसरे पखवाड़े में बारिश के फिर से जोर पकडऩे पर टिकी हुई हैं।
मौसम विभाग का कहना है कि पूर्वी तट पर निम्न दबाव का क्षेत्र बन रहा
है जिससे अगले तीन-चार दिनों में ओडिशा, तटीय आंध्र प्रदेश, पूर्वी मध्य
प्रदेश और तेलंगाना में अच्छी बारिश हो सकती है। लेकिन इससे एलपीए के
सामान्य स्तर तक भी पहुंच पाना मुमकिन नहीं हो पाएगा। मॉनसूनी बारिश के
सामान्य स्तर तक भी पहुंचने के लिए यह जरूरी है कि सितंबर में बारिश औसत
स्तर से 50 फीसदी ज्यादा हो। यह अलग बात है कि सितंबर के पहले 10 दिनों में
बारिश औसत से 18-19 फीसदी कम रही है।
ऐसी स्थिति में मौसम विभाग को तगड़ा झटका लग सकता है। एक वरिष्ठ मौसम
वैज्ञानिक ने कहा, 'सितंबर में भी बारिश के रफ्तार नहीं पकडऩे पर कुल बारिश
एलपीए का 97-98 फीसदी ही रह सकती है। अगर ऐसा होता है तो इस साल मौसम
विभाग का पूर्वानुमान सांख्यिकीय गलती की गुंजाइश वाले स्तर से भी कम रह
जाएगा।' यह पिछले एक दशक में तीसरा मौका होगा जब मौसम विभाग पूर्वानुमान
लगाने में बुरी तरह नाकाम रहा। इससे पहले वर्ष 2009 में मौसम विभाग ने
बारिश के सामान्य रहने का अनुमान जताया था लेकिन उस साल भयंकर सूखा पड़ा
था। उसके बाद 2011 में भी मौसम विभाग बारिश के स्तर को लेकर मात खा गया।
माना जाता है कि हिंद महासागर पर ला नीना के असर का ठीक से अंदाजा नहीं लगा
पाने से ऐसी स्थिति पैदा हुई थी।
बहरहाल भारत के लिए राहत की बात यह है कि बारिश के सामान्य स्तर पर भी
रहने का खरीफ फसलों की बुआई पर किसी तरह का नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा।
देश के अधिकांश इलाकों में फसलों की बुआई का काम जुलाई में ही पूरा कर लिया
गया था और अब तक फसलों का विकास भी अच्छे तरीके से होता आ रहा है। इस साल
बुआई का रकबा भी पिछले साल के मुकाबले 4 फीसदी अधिक रहा है। (BS Hindi)
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