Soybean production may rise upto 11 million tonnes (MT) this year, which is 10 per cent more than the government estimate of 9.94 MT, traders said.
“The government’s estimate is conservative. The production will be 5-10 per cent higher than the official projection,” an Indore-based soyabean processor said on Monday.
He said the crop condition was good and the production would be between 10.5-11 MT. Harvesting of soybean crops, which was sown early, has already started in some parts of Madhya Pradesh, he added.
Another soybean trader said the output would have been even more had there been good crop in Maharashtra. Many crops in the state were affected due to scanty rainfall during the crucial period.
In the first advance estimate for 2008-09 released by the Agriculture Ministry last week, soybean production is pegged at 9.94 MT against 9.99 MT in the fourth advance estimates for 2007-08.
The production has been estimated at lower levels despite higher acreage of soybean this year. The area under coverage for soybean, a crop grown only in the Kharif season, has increased to 96.24 lakh hectare till last week in the ongoing season as against 87.6 lakh hectares in the year-ago period.
The soybean processor pointed out that the government last year had revised the first estimate by 950,000 tonnes by the time it released the fourth estimate. In the first estimate for 2007-08, soybean output was projected at 9.04 MT.
Soyabean Processors Association is likely to announce the trade estimate of the crop this week. (PTI)
30 सितंबर 2008
पंजाब में धान के बंपर उत्पादन की आशा, खरीद शुरू
गेंहूं की बंपर फसल के बाद पंजाब में इस वर्ष धान की भी रिकार्ड पैदावार होने के पूर आसार हैं। पंजाब की मंडियों मंे आज से धान की सरकारी खरीद आरंभ होने से पहले ही मंडियों में 4.39 लाख मीट्रिक टन धान पहुंच चुका है हालांकि पिछले वर्ष 29 सितंबर तक मंडियों में हुई आवक के मुकाबले यह मात्रा काफी कम है। इस वर्ष राज्य में धान की बुवाई देरी से होने के बाद सरकारी खरीद भी तीन दिन की देरी से आरंभ हुई है।धान की सरकारी खरीद आरंभ होने के अवसर पर पंजाब मंडी बोर्ड के चेयरमैन अजमेर सिंह लक्खोवाल ने कहा कि राज्य के कुछ इलाकों में बाढ़ के बावजूद इस वर्ष धान की फसल पिछले वर्ष से बेहतर होने के पूर आसार हैं। लक्खोवाल के मुताबिक राज्य में पिछले वर्ष 146.06 लाख मीट्रिक टन धान की फसल पैदा हुई थी जो कि इस वर्ष 150 लाख मीट्रिक टन से अधिक होने की पूरी संभावना है। उनके मुताबिक राज्य में इस बार फसल की मात्रा अधिक होने के साथ-साथ धान की क्वालिटी भी काफी अच्छी होगी और इस बार फसल को बीमारी लगने की संभावना भी काफी कम है। लक्खोवाल ने माना कि धान की कटाई और खरीद देर से आरंभ होने के चलते मंडियों में अब तेजी से एक साथ धान आने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि मंडी बोर्ड ने धान की खरीद के लिए पुख्ता प्रबंध कर लिए है। राज्य में मंडी बोर्ड के अधीन 1622 खरीद केंद्र है। धान की 1121 किस्म का निर्यात खोले जाने के विषय पर उन्होंने कहा कि राज्य में इस बार कुल धान की फसल में से करीब 12 से 13 प्रतिशत रकबे में 1121 की फसल है परंतु इस बार इसके लिए चावल व्यापारियों द्वारा काफी कम दाम दिए जाने के चलते इसका निर्यात खोले जाने का लाभ किसान को नहीं मिल पा रहा। लक्खोवाल ने कहा कि पिछले वर्ष 1121 किस्म के लिए जहां 23क्क् रुपए प्रति क्विंटल का दाम किसानों को मिल रहा था, वहीं इस वर्ष सिर्फ 11क्क् से 12क्क् के बीच रह गया है। (Business Bhaskar)
नई आवक के बावजूद फुटकर में दालें महंगी
दालों में उड़द व मूंग की नई फसल की आवक उत्पादक मंडियों में शुरू हो चुकी है लेकिन आम उपभोक्ता को दालों की ऊंची कीमत ही चुकानी पड़ रही है। उत्पादक मंडियों के साथ दिल्ली बाजार में पिछले पंद्रह-बीस दिनों में दालों की कीमतें थोक में तो घटी हैं लेकिन खुदरा बाजार में ज्यादातर दालों की कीमत ज्यों की त्यों बनी हुई हैं। जानकारों का मानना है कि चालू खरीफ सीजन में दलहन के उत्पादन में आई कमी से निकट भविष्य में उपभोक्ता को सस्ती दालें मिलने के आसार कम ही है।महाराष्ट्र की अकोला मंडी के दाल व्यापारी बिजेंद्र गोयल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि चालू सीजन में महाराष्ट्र, कर्नाटक व आंध्रप्रदेश, जिनका खरीफ दलहन उत्पादन में 60 से 65 फीसदी का योगदान होता है, में बुवाई के समय मौसम प्रतिकूल मौसम होने से बुवाई तो प्रभावित हुई ही थी साथ ही कटाई के समय वर्षा होने से महाराष्ट्र व राजस्थान में मूंग व उड़द की क्वालिटी भी प्रभावित हुई है। मूंग व उड़द की दैनिक आवक महाराष्ट्र की उत्पादक मंडियों में क्रमश: 40 हजार व 20 हजार बोरियों की हो रही है लेकिन पिछले दिनों हुई वर्षा से हल्के माल ज्यादा आ रहे हैं। वर्तमान में मौसम साफ चल रहा है जिससे उम्मीद है कि आगामी दिनों में उड़द की आवक तो बढ़ेगी लेकिन मूंग की आवक बढ़ने के आसार नहीं हैं। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र की मंडियों में चने के भाव 2300 से 2325 रुपये, उड़द के भाव 2700 से 3000 रुपये, मूंग के भाव 2800 से 2900 रुपये तथा तुअर के भाव 3000 से 3225 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। खरीफ सीजन की प्रमुख दलहन तुअर की नई आवक महाराष्ट्र की मंडियों में जनवरी के प्रथम पखवाड़े में शुरू होगी तथा कर्नाटक की मंडियों में नई फसल की आवक दिसंबर माह के आखिर में शुरू होगी।केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी अग्रिम अनुमान में देश में तुअर का उत्पादन 23 लाख टन होने के आसार है जो कि गत वर्ष के मुकाबले करीब 7 लाख टन कम है। इसी तरह से मूंग व उड़द के उत्पादन में भी भारी गिरावट के आसार हैं। इन हालातों में उपभोक्ता को अभी दालों की ऊंची कीमतें ही चुकानी पड़ेंगी। चालू खरीफ सीजन में दलहन का कुल उत्पादन 47 लाख टन होने की उम्मीद है जबकि गत वर्ष 64 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था।लारेंस रोड के दालों के प्रमुख व्यापारी दुर्गाप्रसाद ने बताया कि दिल्ली में चने के भाव 2425 से 2475 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। चने की आवक मध्य प्रदेश व राजस्थान से हो रही है तथा इसके भावों में चालू माह में करीब 50 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। उड़द के भाव 2000 से 3000 रुपये, मूंग के भाव 2000 से 3300 रुपये, तुअर के भाव 2700 से 3000 रुपये व मसूर के भाव 4000 से 4200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। इनके भावों में चालू माह में करीब 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। थोक बाजार में दलहन के भावों में आई गिरावट का फायदा उपभोक्ता को नहीं मिल रहा है। सोमवार को खुदरा बाजार में चना दाल के भाव 36 रुपये, उड़द दाल 44 रुपये, तुअर दाल 48 रुपये, मसूर दाल 54 रुपये व मूंग दाल के भाव 48 रुपये प्रति किलो बोले गए। (Business Bhaskar......R S Rana)
छह साल बाद इलायची के भाव में तेजी का दौर
इडुक्की (केरल)। करीब छह माह के बाद इलायची के भाव में जोरदार तेजी का दौर आ गया है। इलायची के भाव 625 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गए हैं। इलायची के भाव में यह तेजी इसका घरलू उत्पादन कम होना बताया जा रहा है। इसके अलावा दुनिया के सबसे बड़े उत्पादक देश ग्वाटेमाला में भी उत्पादन तेजी से गिरा है। पिछले सप्ताह सबसे अज्छी क्वालिटी की इलायची (9 एमएम बोल्ड) के भाव 1000 रुपये तक चले गए थे।इलायची के औसत भाव 600 से बढ़कर 625 रुपये तक पहुंच गए। रमजान और दीवाली जल्द आने के कारण इसकी मांग अज्छी निकाल रही है। इलायची के भाव पिछले साल 200-250 रुपये से बढ़कर 350-400 रुपये किलो तक चढ़ गए थे। केरल के इडुक्की जिले में राज्य की 70 फीसदी इलायची का उत्पादन होता है। वहां कुल चार हजार हैक्टेयर क्षेत्र में इलायची का उत्पादन होता है। मूल्य बढ़ने की मुख्य वजह बारिश हल्की होने के कारण उत्पादन में गिरावट आना रही है। (Business Bhaskar)
चीनी पर सरकार व उद्योग के अनुमान अलग-अलग
अक्टूबर से शुरू हो रहे पेराई सीजन (2008-09) के दौरान चीनी उत्पादन को लेकर उद्योग और केंद्र सरकार की राय एक दूसरे से काफी अलग है। सोमवार को नेशनल फेडरेशन ऑफ कोआपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफएल) की सालाना बैठक में कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि 2008-09 में देश में चीनी का उत्पादन 220 लाख टन होगा। दूसरी ओर फेडरेशन ने 200 लाख टन चीनी के उत्पादन की बात कही है। चालू सीजन में 263 लाख टन और उसके पहले साल 2006-07 में 283.28 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। 283.28 लाख टन उत्पादन अपने में रिकार्ड था। पवार ने कहा कि पहली अक्टूबर को नए सीजन की शुरूआत में 110 लाख टन का बकाया स्टॉक होगा और उत्पादन 220 लाख टन होगा। इन दोनों को मिलाकर कुल उपलब्धता देश की जरूरत के हिसाब से पूरी हो जाएगी और हमें आयात कोई जरूरत नहीं है। उधर एनएफसीएसएफएल के अध्यक्ष जयंती पटेल ने इसके विपरीत कहा कि वर्ष 2008-09 में देश में चीनी का उत्पादन 200 लाख टन होने की उम्मीद है जबकि घरेलू खपत के लिए हमें करीब 225 लाख टन चीनी की आवश्यकता होगी। निजी क्षेत्र की मिलें तो 200 लाख टन से भी कम उत्पादन की बात कर रही हैं। वहीं उनके मुताबिक नए सीजन की शुरूआत में बकाया स्टॉक मात्र 80-90 लाख टन रहने का अनुमान है। उत्पादन में कमी का प्रमुख कारण हाल में उत्तर प्रदेश के गन्ना उत्पादक क्षेत्रों में आई बाढ़ है। देश के कुल गन्ना उत्पादन 220 लाख टन में जहां उत्तर प्रदेश का योगदान 70 लाख टन का होता है वहीं उत्तर प्रदेश के मिलर नए साल में 55 से 58 लाख टन उत्पादन होने का अनुमान लगा रहे हैं। इसी तरह से महाराष्ट्र में भी इसका उत्पादन 55 से 57 लाख टन होने की उम्मीद है जबकि केंद्र 61 लाख टन का उत्पादन मान रहा है।इस स्थिति में पटेल ने केंद्र सरकार से एडवांस लाइसेंस के तहत मिलों को शुल्क मुक्त रॉ शुगर आयात की इजाजत टन-टू-टन के आधार पर देने की मांग की है। इस समय वही मिल रॉ शुगर का आयात कर सकती है जो रिफाइंड करके उसका निर्यात करें। यह आयात शुल्क मुक्त है लेकिन इसके लिए त्नग्रेन टू ग्रेनत्न की शर्त लागू है। इसके तहत आयातित चीनी को ही निर्यात करना होता है। 21 अगस्त, 2004 को स्पेशल आदेश के तहत पहली बार मिलों को शुल्क मुक्त रॉ शुगर आयात करने की अनुमति दी गई थी तथा उसे प्रोसेस कर घरेलू बाजारों में बेचने की अनुमति दी गई थी। उसमें शर्त थी कि एक टन व्हाइट शुगर के बदले में 1.05 टन रॉ शुगर का आयात कर सकते हैं। यह सुविधा शुगर उद्योग से इस साल 16 अप्रैल को डीजीएफटी ने एक सकरुलर जारी कर वापिस ले ली। मिलें चाहती हैं घरेलू सप्लाई को सुगम बनाने हेतु व मिलों पर अतिरिक्त दबाव न पड़े इसलिए इसकी अनुमति दी जाए। (Business Bhaskar)
इकॉनमी में बदहाली से गोल्ड की चमक बढ़ी
मुंबई: इकॉनमी का हाल बुरा है , बैंक तबाह हो रहे हैं , शेयर बाजार गिर रहे हैं , लेकिन गोल्ड में तेजी है। एमसीएक्स में सोने का अक्टूबर कॉन्ट्रेक्ट 13,478 रुपए प्रति दस ग्राम पर है यानी 23 रुपए की तेजी। अमेरिकी बाजारों में सोना सोमवार को लगभग 5 परसेंट चढ़ गया। इसने 914 डॉलर प्रति औंस का दिन का सबसे ऊपर का स्तर भी बनाया। मंगलवार सुबह सोना न्यूयॉर्क की नोशनल क्लोजिंग से थोड़ा ऊपर 903.35 डॉलर प्रति औंस पर चल रहा था। पढ़े: ग्लोबल क्राइसिस में सोना है सही इनवेस्टमेंट हालांकि सोना अभी भी लाइफटाइम हाई 1,030 से नीचे चल रहा है। गोल्ड ने ये लेवल इसी साल मार्च में बनाया था। अमेरिकन प्रेसस मेटल्स एडवाइजर्स के एमडी जैफ्री निकोलस के मुताबिक , गोल्ड में तेजी इस बात का सबूत है कि विश्व की अर्थव्यवस्था बुरे हाल में है। अब अमेरिका और दूसरे देशों की सरकारें अगर इस संकट से बचने का कोई तरीका निकालती हैं , तो सोने में करेक्शन देखा जा सकता है। लेकिन लॉग टर्म व्यू देखें तो गोल्ड में अभी मजबूती बनी रहेगी। निकोलस कहते हैं कि सोना इस साल के आखिर तक या अगले साल की शुरूआत में 1 , 000 के स्तर पर जा सकता है। सोने में तेजी की सबसे बड़ी वजह ये है कि निवेशक जोखिम वाले इंस्ट्रूमेंट से पैसे हटाकर गोल्ड जैसे सुरक्षित निवेश में पैसे लगा रहे हैं। (ET Hindi)
29 सितंबर 2008
हरियाणा में धान और बाजरा की आवक बढ़ी
हरियाणा की मंडियों में चालू खरीफ खरीद विपणन मौसम के लिए धान व बाजरे की आवक जोर पकड़ने लगी है। अब तक 69595 मीट्रिक टन धान व 119370 मीट्रिक टन बाजरा की आवक हो चुकी है।खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के एक प्रवक्ता ने बताया कि धान की कुल आवक में से 28776 मीट्रिक टन की खरीद राज्य की विभिन्न छह सरकारी एजेंसियों द्वारा तथा शेष 40819 मीट्रिक टन धान की खरीद प्राइवेट मिल मालिकों एवं व्यापारियों द्वारा की गई जिसमें से 14532 टन लेवी तथा 26287 टन गैर लेवी धान शामिल है। इसी प्रकार बाजरा की कुल आवक में से सरकारी एजेंसियों द्वारा 101434 मीट्रिक टन की खरीद तथा शेष 17936 मीट्रिक टन बाजरा की खरीद व्यापारियों द्वारा की गई।विभिन्न सरकारी खरीद एजेंसियों द्वारा की गई बाजरा व धान की खरीद की विस्तृत जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि हैफेड ने 38949 मीट्रिक टन बाजरा तथा 9514 मीट्रिक टन धान की, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने 15010 मीट्रिक टन बाजरा व 10465 मीट्रिक टन धान, हरियाणा कृषि उद्योग निगम ने 18,913 मीट्रिक टन बाजरा तथा 5050 मीट्रिक टन धान, कानफैड ने 16,219 मीट्रिक टन बाजरा व 3747 मीट्रिक टन धान तथा हरियाणा भंडागार निगम ने 12343 मीट्रिक टन बाजरा की खरीद की।उन्होंने बताया कि राज्य में सोनीपत जिला 16965 मीट्रिक टन बाजरा की आवक के साथ अग्रणी स्थान पर है जबकि महेंद्रगढ़ (नारनौल) जिला में 16601 मीट्रिक टन, रेवाड़ी जिला में 15524 मीट्रिक टन, जिला हिसार में 15340 मीट्रिक टन, रोहतक में 12422 मीट्रिक टन, जींद में 9730 मीट्रिक टन, भिवानी में 8623 मीट्रिक टन, मेवात में 7494 मीट्रिक टन, फरीदाबाद में 2800 मीट्रिक टन तथा कैथल जिले में 3673 मीट्रिक टन बाजरे की आवक हुई है।उन्होंने बताया कि इसी प्रकार कुरुक्षेत्र जिला 29625 मीट्रिक टन धान की आवक के साथ राज्य में पहले स्थान पर बना हुआ है जबकि करनाल जिला 20179 मीट्रिक टन के साथ दूसरे, कैथल जिला 6853 मीट्रिक टन के साथ तीसरे, फतेहाबाद 5910 मीट्रिक टन के साथ चौथे तथा यमुनानगर जिला 4858 मीट्रिक टन धान की आवक के साथ पांचवे स्थान पर बना हुआ है। (Business Bhaskar)
अनाजों के समर्थन मूल्य लगातार बढ़े
केंद्र सरकार पिछले चार सालों से लगातार अनाजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में इजाफा करती आई है। इस दौरान विभिन्न अनाजों के एमएसपी में करीब 39-79 फीसदी का इजाफा हो चुका है। मुख्य रुप से अनाजों का उत्पादन बढ़ाने की इस सरकारी कोशिश में सबसे ज्यादा फायदा किसानों को हुआ है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य में करीब 49 फीसदी का इजाफा होने से ए ग्रेड धान का दाम 880 रुपये `िंटल हो गया है। जबकि चार साल पहले इसका एमएसपी 590 रुपये `िंटल था। सरकार ने साल 1999-2000 और 2003-2004 के दौरान धान के एमएसपी में महज 60 रुपये `िंटल का इजाफा किया है। जबकि गेहूं का एमएसपी इस दौरान करीब 50 रुपये `िंटल बढ़ा है। सूत्रों के मताबिक एमएसपी बढ़ने का असर अनाजों के उत्पादन पर पड़ा। लिहाजा साल 2007-08 के दौरान देश में रिकार्ड स्तर पर खाद्यान्नों का उत्पादन हुआ है। सरकार द्वारा एमएसपी बढ़ाने से इस साल किसानों का रुझान धान की खेती में भी बढ़ा है। ऐसे में इस साल पिछले साल के मुकाबले करीब 12 लाख हैक्टेयर बढ़ने से धान का रकबा करीब 379.7 लाख हैक्टेयर हो गया है। इसी तरह से सरकार द्वारा गेहूं के एमएसपी को भी बढ़ाकर एक हजार रुपये `िंटल करने से इस साल उत्पादन बढ़कर 7.84 करोड़ टन रहा। साल 2004-05 के बाद से गेहूं का एमएसपी करीब 56 फीसदी बढ़ चुका है। साल 2004-05 में गेहूं का एमएसपी 640 रुपये `िंटल था। इस दौरान मक्के के एमएसपी में 60 फीसदी का इजाफा होने से यह 840 रुपये `िंटल हो गया है। ऐसे में इस साल मक्के का उत्पादन बढ़कर 1.931 करोड़ टन हो गया है। पिछले चार सालों में मूंग की एमएसपी में 79 फीसदी का इजाफा होने से यह 2520 रुपये `िंटल हो गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल मूंग का उत्पादन करीब डेढ़ करोड़ टन रहा है। सरकार ने पिछले चार सालों के सोयाबीन और मूंगफली के एमएसपी को भी बढ़ाया है। सोयाबीन के एमएसपी में सरकार ने करीब 39 फीसदी और मूंगफली के एमएसपी में 40 फीसदी का इजाफा किया है। उल्लेखनीय है कि सकल घरलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र का करीब 18 फीसदी योगदान है। जबकि देश की करीब 60 फीसदी जनसंख्या के लिए आजीविका का आधार है। (Business Bhaskar)
निर्यात में भारी बढ़ोतरी के बावजूद जीरे के भाव गिरे
निर्यात मांग में भारी बढ़ोतरी व उत्पादक मंडियों में स्टॉक कम होने के बावजूद भी पिछले डेढ़-दो महीने में जीरे के भावों में 450 से 500 रुपये प्रति 20 किलो की भारी गिरावट आ चुकी है। जानकारों का मानना है कि आगामी महीने खपत के होने व साथ ही ब्याह-शादी का सीजन शुरू होने से इसके भावों में तेजी बन सकती है। जीरे की प्रमुख मंडी ऊंझा स्थित मैसर्स बी टी कोमोडिटी के कुनाल शाह ने बिजनेस भास्कर को बताया कि इस समय मंडी में जीरे का 8 लाख बोरी (एक बोरी 55 किलो) का स्टॉक बचा हुआ है जबकि बीते वर्ष की समान अवधि में करीब 11 लाख बोरी का स्टॉक था। वर्तमान में जीरे की प्रतिदिन छ: हजार बोरी की खपत (घरेलू व निर्यात मिलाकर) हो रही है तथा नई फसल की आवक फरवरी के आखिर व मार्च के प्रथम सप्ताह में ही बन पायेगी। नई फसल की आवक बनने में अभी पांच माह का समय शेष है तथा वर्तमान में हो रही दैनिक खपत आगे बढ़ने की आशा है। इन हालातों में नई फसल पर जीरे का बकाया स्टॉक न के बराबर बचने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से अगस्त तक जीरे का 21,250 टन का निर्यात हो चुका है जबकि बीते वर्ष की समान अवधि में इसका निर्यात मात्र 8,260 टन का ही हुआ था। वैसे भी आगे सर्दियों के साथ ही ब्याह-शादियों का सीजन शुरू होने से मसालों की मांग बढ़ेगी जिससे जीरे के भावों में तेजी का रूख बन सकता है। कुनाल शाह ने बताया कि सिरिया व टर्की में जीरे के उत्पादन में कमी आई है जिसके परिणामस्वरूप भारत से निर्यात मांग में भारी बढ़ोतरी देखी जा रही है। भारतीय जीरे की क्वालिटी उम्दा होने व घरेलू बाजार में भावों में आई गिरावट से आगामी दिनों में इसके निर्यात में और भी बढ़ोतरी की उम्मीद है। भारतीय जीरे में सबसे ज्यादा मांग खाड़ी देशों से निकल रही है। ऊंझा मंडी में शनिवार को निर्यात क्वालिटी जीरे के भाव 2150 से 2200 रुपये प्रति 20 किलोग्राम बोले गये। दिल्ली के जीरा व्यापारी हितेश कुमार ने बताया कि दिल्ली बाजार में पिछले डेढ़-दो महीने में जीरे के भावों में 25 से 30 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। जुलाई में दिल्ली बाजार में जीरे के भाव ऊपर में 144 से 145 रुपये प्रति किलो हो गये थे लेकिन उसके बाद से लगातार भावों में गिरावट आई है। शनिवार को दिल्ली किराना बाजार में जीरे के भाव 108 से 109 रुपये प्रति किलो बोले गये। (Business Bhaskar...........R S Rana)
निर्यात मांग घटने से बासमती के भाव गिरे
बासमती चावल की मांग कम होने से इसके भाव में गिरावट देखी जा रही है। नई फसल आने पर इसके मूल्य और कम होने की उम्मीद में निर्यातकों की ओर से बासमती चावल की खरीदारी कम हो रही है। जिससे बीते दो सप्ताह में इसके भाव 10 फीसदी तक गिर चुके हैं। वहीं बासमती चावल कारोबारियों का कहना है कि त्योहारों के अवसर पर मांग बढ सकती है। हालांकि नई फसल के आने से मूल्यों में और नरमी आएगी।ग्रेन मर्चेट एसोसिएशन के प्रधान नरेश कुमार गुप्ता ने बिÊानेस भास्कर को बताया कि बीते दो सप्ताह में निर्यात मांग कमजोर पड़ने से बासमती चावल के मूल्यों में 12 फीसदी तक की गिरावट आई है। राजधानी के ग्रेन बाजार में इस दौरान बासमती चावल 8500 रुपये गिरकर 6500 से 7400 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिक रहा है। बाजार में बासमती के अलावा गैर-बासमती की प्रीमियम क्वालिटी वाले चावल के भाव में भी नरमी आई है। सुगंध और शरबती चावल के भाव में गिरावट की वजह नयी फसल की सप्लाई होना और डीबी चावल में जल्दी आने वाली नई फसल है।बासमती चावल कारोबारियों का कहना है कि इसके भाव में गिरावट निर्यातकों की ओर से मांग कम होने के कारण आई। हालांकि आने वाले दिनों में मांग में बढ़ोतरी हो सकती है। हनुमान राइस ट्रेडर के सुशील गुप्ता का कहना है कि आने वाले दिनों में बासमती चावल की नई सप्लाई के दबाव में भाव में और नरमी आएगी। ज्ञानचंद महिंदर कुमार के कर्मदत्त शर्मा बताते है कि आगे नई फसल आने से भाव में नरमी की आशा के चलते निर्यातक चावल की खरीदारी कम कर रहे है।सरकारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2008 के मध्य अप्रैल और सितंबर माह के दौरान बासमती चावल का निर्यात 20000 हजार टन घटकर 4.7 लाख टन रह गया है जबकि पिछले साल समान अवधि में इसका निर्यात 4.9 लाख टन हुआ था। (Business Bhaskar)
इनवेस्टर्स गाइड: सोना है उम्मीद की किरण
हाल तक ग्लोबल इकॉनमी के रास्ते में कोई बड़ा रोड़ा नजर नहीं आ रहा था। बाजार में लगातार उछाल का रुख रहा , प्रॉपर्टी की कीमतों में इजाफा हुआ और कमोडिटी की कीमतें भी तेजी की तस्दीक कर रही थीं। लेकिन क्रेडिट संकट के भूचाल से वॉल स्ट्रीट के थर्राते ही हालात नाटकीय तेजी से बदलने लगे। कुछ ही दिनों में स्थिति पूरी तरह बदल गई है। बाजार त्राहि-त्राहि कर रहे हैं , रियल एस्टेट में कीमतें कमजोरी की दुहाई दे रही हैं और ज्यादातर कमोडिटी में जारी तेजी का रुख अब बुझता दिखाई दे रहा है। अगले लक्ष्य पर निशाना साधने के लिए मंदी के सौदे करने वाले कारोबारी बाजार की तरफ टकटकी लगाए हैं , ताकि मौका मिलते ही शिकार ढेर कर दिया जाए। निवेशक हर उत्पाद को लेकर कई सवाल खड़े कर रहे हैं। जो लोग नकदी हाथ में लिए बैठे हैं , उनके लिए भी बाजार कोई खास अवसर दिखाई नहीं दे रहे हैं। तमाम उथल-पुथल के बीच सोना अकेला ऐसी श्रेणी है , जिसने कीमतों में बढ़ोतरी दर्ज की है। यह इस बात का संकेत है कि दिनोंदिन ज्यादा से ज्यादा निवेशक स्टॉक , बॉन्ड और डेरिवेटिव से दूरी बनाकर सोने का दामन थाम रहे हैं। सुनहरी धातु अचानक सुरक्षित किले में तब्दील हो गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के दाम एक पखवाड़े से भी कम वक्त में 17 फीसदी से ज्यादा बढ़त के साथ 870 डॉलर प्रति आउंस पर पहुंच गए हैं और संभावना जताई जा रही है कि आगे भी इनमें तेजी देखने को मिलेगी। क्रेडिट संकट ने इस साल ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि तमाम निवेशक अब शेयरों के बजाए सोने से चांदी काटने के ख्वाब देखने में लगे हैं। (ET Hindi)
केएस ऑयल सरसों तेल के 2 ब्रैंड लॉन्च करेगी
मुंबई : कमोडिटी क्षेत्र की बड़ी कंपनी केएस ऑयल अब राष्ट्रीय स्तर पर सरसों तेल के 2 ब्रैंड बाजार में उतारने को तैयार है। 2,000 करोड़ रुपए की पूंजी वाली केएस ऑयल अपने 2 ब्रैंड कैलाश और डबल शेर के साथ सरसों तेल बाजार में राष्ट्रीय स्तर पर छाने की तैयारी कर रही है। कंपनी ने पूरे भारत में दोनों ब्रैंडों के प्रमोशन के लिए आक्रामक रणनीति अपनाने का फैसला किया है। केएस ऑयल के मैनेजिंग डायरेक्टर संजय अग्रवाल ने बताया कि कंपनी अपने 2 ब्रैंडों के साथ देश के ब्रैंडेड सरसों तेल बाजार पर पकड़ मजबूत करेगी। सरसों तेल बाजार में ब्रैंड की पहचान बनाने के अलावा कंपनी खाद्य तेलों की अन्य श्रेणियों में भी उतर सकती है। अग्रवाल ने कहा, 'सरसों तेल बाजार में राष्ट्रीय स्तर पर ब्रैंडेड कंपनी नहीं है। केएस ऑयल इस मौके को भुनाने के लिए इस क्षेत्र में उतर रही है। कंपनी बड़े पैमाने पर आक्रामक मार्केटिंग गतिविधियों के साथ उत्कृष्ट पैकेजिंग और मजबूत विपणन श्रृंखला तैयार करना है ताकि प्रमुख एफएमसीजी कंपनियों के बीच खाद्य तेल के बाजार में अपनी मजबूत जगह बनाई जा सके।' एसकेए एडवाइजर्स के चेयरमैन सुनील अलघ ने कहा कि कंपनी दोनों ब्रैंडों को बाजार में स्थापित करने के एफएमसीजी रूट को अपनाएगी। उन्होंने कहा कि सरसों तेल बाजार में कैलाश को केएस ऑयल का प्रीमियम ब्रैंड बनाना है। वहीं अपनी प्रतिस्पर्धी मूल्य की वजह से डबल शेर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय बाजार के सरसों तेल कंपनियों को कड़ी टक्कर देने का इरादा है। विश्लेषकों का मानना है कि देश में सरसों तेल का बड़ा बाजार है, बावजूद इसके किसी भी ब्रैंड को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है। देश के पूर्व और उत्तर के बाजारों में सरसों तेल की खपत बड़े पैमाने पर होती है। एक एफएमसीजी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरसों तेल को स्थापित करने में स्वाद भी एक प्रमुख मुद्दा है, इसलिए नए उत्पाद को स्थापित करना आसान नहीं (ET Hindi)
28 सितंबर 2008
प्याज के भाव में भारी गिरावट
नई दिल्ली। चालू माह में अब तक प्याज के भाव महाराष्ट्र के उत्पादक क्षेत्रों में करीब 200 रुपये प्रति क्विंटल तक गिर चुके हैं। हालांकि कारोबारियों का कहना है कि नवंबर व दिसंबर में सप्लाई घटने पर भाव बढ़ सकते हैं। पिछला स्टॉक खत्म हो रहा है जबकि खरीफ सीजन की नई आवक में देरी होगी।नासिक स्थित नेशनल हार्टीकल्चरल रिसर्च एंड डवलपमेंट फाउंडेशन के अनुसार महाराष्ट्र के लासलगांव और पिंपलगांव में प्याज के भाव 700 रुपये क्विंटल तक गिर चुके हैं जबकि एक सितंबर को इसके भाव 870 रुपये चल रहे थे। लेकिन कारोबारियों और विशेषज्ञों का मानना है कि नवंबर व दिसंबर में सप्लाई घटने पर भाव तेजी से बढ़ सकते हैं।नेशनल एग्रीकल्चरल कोआपरटिव मार्केटिंग फेडरशन के उपाध्यक्ष सी. बी. होल्कर का कहना है कि खरीफ की फसल आने में देरी होगी। इससे अगले महीनों में प्याज 1000 रुपये के स्तर को भी पार कर सकती है। उनके अनुसार किसान अप्रैल की फसल से 60 फीसदी से ज्यादा प्याज बेच चुके हैं। बाकी चालीस फीसदी माल अक्टूबर अंत तक बाजार में आ जाएगा। इसके बाद बचे प्याज की क्वालिटी भी खराब होने लगेगी।होल्कर के अनुसार नासिक क्षेत्र से खरीफ फसल की प्याज की सप्लाई लेट हो सकती है। पूरी तरह से इसकी आवक जनवरी से ही शुरू हो पाएगी। महाराष्ट्र में हर साल खरीफ सीजन में करीब तीन-चार लाख टन प्याज का उत्पादन होता है। नवंबर में सप्लाई घटने पर प्याज के भाव हर हाल में बढ़ने लगेंगे। हालांकि तब तक राजस्थान व हरियाणा का प्याज बाजार में आने लगेगा। मध्य अक्टूबर से कर्नाटक से भी प्याज की आवक होने लगेगी। फेडरशन के अतिरिक्त निदेशक सतीश भोंडे के अनुसार सतारा, अहमदनगर जिलों के किसान खरीफ सीजन में ज्यादा रकबा में प्याज की बुवाई की है। लेकिन इससे नासिक क्षेत्र की फसल में संभावित देरी से उत्पादन में होने वाले नुकसान की ही भरपाई हो सकेगी। (Business Bhaskar)
बाजरा एमएसपी से 290 रुपये क्विंटल नीचे उतरा
राजस्थान की मंडियों में नई फसल की आवक बढ़ने से पिछले दो दिन के दौरान बाजरा सौ रुपए क्विंटल गिरकर शुक्रवार को 550 रुपए क्विंटल तक के भाव पर उतर आया। इस तरह राज्य में बाजरा के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 290 रुपए क्विंटल नीचे आ गए हैं। कृषि निदेशालय ने इस वर्ष राज्य में बाजरा उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले 25 फीसदी बढ़कर 38.35 लाख टन के पार होने का अनुमान लगाया है। पिछले वर्ष राज्य में 29.91 लाख टन बाजरा का उत्पादन हुआ था। दूसरी तरफ व्यापारी बाजरा उत्पादन चालीस लाख टन के पार होने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं। इन दिनों मंडियों में रोजाना लगभग 80000 बोरी बाजरा की आवक हो रही है। जयपुर मंडी के अनाज कारोबारी के. जी. झालानी ने बताया कि मौसम खुलने के बाद उत्पादक मंडियों में बाजरा की आवक रोजाना 500-700 बोरी बढ़ रही है। अलवर मंडी के अनाज व्यवसायी सूरजमल के अनुसार भरतपुर संभाग में बाजरा की बंपर पैदावार से खरीददारों का टोटा हो गया है। इस कारण हिंडन जैसी मंडियों में बाजरा लुढ़ककर 550 रुपए क्विंटल रह गया है। अलवर तथा भरतपुर मंडी में बाजरा के भाव 600 से 700 रुपए क्विंटल है। भावों में लगातार गिरावट से भरतपुर और अलवर इलाके के काश्तगार हरियाणा में बाजरा बेचने जा रहे हैं। जयपुर मंडी में बाजरा के भाव 700 से 710 और जोधपुर में 750 रुपए क्विंटल के ऊपर है। गौरतलब है कि सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण राज्य में एमएसपी पर बाजर की खरीद निर्धारित तिथि एक अक्टूबर को शुरू होने की संभावना कम है। उधर मंडियों में एमएसपी से कम भाव पर बाजरा बिकने से किसानों में नाराजगी बढ़ रही है। हालांकि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को पत्र लिखकर बाजरा की खरीद के लिए एफसीआई को नोडल एजेंसी नियुक्त करने का आग्रह किया है और जैसे ही एफसीआई को निर्देश मिलेंगे, वह स्टेट एजेंसियों के साथ मिलकर बाजरा की खरीद शुरू कर देगी लेकिन तमाम कोशिश के बावजूद एक सप्ताह से पहले बाजरा की खरीद शुरू नहीं हो पाएगी। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने भी इस बात को माना है। केंद्र सरकार ने इस साल बाजरा का समर्थन मूल्य 240 रुपए बढ़ाकर 840 रुपए क्विंटल कर दिया था। (Business Bhaskar)
चने की त्यौहारी मांग फीकी
स्टॉकिस्टों की बिकवाली के दबाव से चना दाल व बेसन में त्यौहारी मांग होने के बावजूद भी चने में तेजी नहीं आ रही है। कर्नाटक व महाराष्ट्र में नई फसल की बुवाई शुरू हो चुकी है तथा मध्य प्रदेश, राजस्थान व अन्य उत्पादक राज्यों में अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में बुवाई शुरू हो जाएगी। पिछले दिनों चने के उत्पादक लगभग सभी राज्यों में अच्छी वर्षा हुई है जिससे इसके बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी होना तय माना जा रहा है। इन हालातों में जानकारों का मानना है कि चने में लंबी तेजी के आसार अब लगभग समाप्त हो गए हैं।मध्य प्रदेश के छत्तरपुर स्थित सुनील ट्रेडिंग कंपनी के सुनील अग्रवाल ने बिजनेस भास्कर को बताया कि बीते वर्ष फसल के समय बड़ी कंपनियों की खरीद के साथ ही स्टॉकिस्टों की सक्रियता बनने से चने के भाव राज्य की मंडियों में ऊपर में 2600 से 2700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे लेकिन जैसे ही महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश व दिल्ली में दालों पर स्टॉक लिमिट लगाई गई, मिलों की मांग में कमी आ गई। उन्होंने बताया कि बीते वर्ष मध्य प्रदेश में चने का करीब 21-22 लाख टन का उत्पादन हुआ था जबकि इस समय राज्य की मंडियों में चने का अच्छा-खासा स्टॉक बचा हुआ है। वैसे भी मंडियों में खरीफ फसलों की आवक शुरू हो चुकी है अत: स्टॉकिस्टों को मजबूरन भाव घटाकर बिकवाली करनी पड़ रही है। उनका मानना है कि दशहरे-दीवाली के बाद इसके भावों में 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ सकती है।महाराष्ट्र के अकोला के चना व्यापारी बिजेंद्र गोयल ने बताया कि कर्नाटक में चने की बुवाई जोर-शोर से चल रही है जबकि महाराष्ट्र में बुवाई शुरू हो चुकी है। अक्टूबर के शुरू में मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश व अन्य राज्यों में बुवाई शुरू हो जाएगी। इन सभी राज्यों में चालू माह में अच्छी वर्षा हुई है जिससे इसके बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र की मंडियों में तो चने का स्टॉक बचा ही हुआ है, साथ ही तंजानिया चने के भाव 2300 रुपये प्रति क्विंटल (मुंबई पहुंच) 15 अक्टूबर के बाद डिलीवरी के सौदे हो रहे हैं।दिल्ली लारेंस रोड स्थित चना व्यापारी निरंजन ने बताया कि वर्तमान में दिल्ली में चने की दैनिक आवक 35 से 40 मोटरों की हो रही है तथा इसमें से 25 से 30 मोटर चना मध्य प्रदेश का है। लारेंस रोड़ पर राजस्थान के चने के भाव 2475 से 2500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे है जबकि मध्य प्रदेश के चने के भाव 2450 से 2475 रुपये प्रति क्विंटल बोले जा रहे हैं। मध्य प्रदेश की मंडियों में चने के भाव 2200 से 2300 रुपये व महाराष्ट्र की मंडियों में इसके भाव 2300 से 2325 रुपये तथा राजस्थान की मंडियों में 2300 से 2350 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। (R S Rana.............Business Bhaskar)
ऊंची कीमतों के चलते घटेगा कपास का निर्यात
अहमदाबाद September 25, 2008
पिछले साल की तुलना में इस साल देश के कपास निर्यात में कमी हो सकती है। गुजरात के कारोबारियों के मुताबिक, दुनियाभर के कपड़ा मिलों के सामने खड़ी नई मुसीबतों और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की ऊंची कीमतों के चलते कपास का निर्यात इस बार कम रहने की उम्मीद है।हालांकि कारोबारियों को उम्मीद है कि कपास की आवक शुरू हो जाने के बाद इसकी कीमतों में जरूर कमी होगी। साउथ गुजरात कॉटन डीलर्स एसोसियशन (एसजीसीडीए) के अध्यक्ष किशोर शाह ने बताया कि 2007-08 में जहां एक करोड़ बेल (1 बेल=170 किलोग्राम) कपास का निर्यात होने का अनुमान रहा है तो मौजूदा सीजन में लगभग 85 लाख बेल कपास निर्यात हो सकता है। मालूम हो कि भारत से ज्यादातर कपास चीन को भेजे जाते हैं लेकिन चीन के तकरीबन 20 फीसदी चीनी मिल खस्ताहाल हैं। उद्योग जगत के मुताबिक, पिछले सीजन में कपास के रेकॉर्ड मूल्यों के चलते इन मिलों का मुनाफा काफी कम हो गया था। इसके चलते 2008-09 में संभावना जतायी जा रही है कि कपास की वैश्विक खपत में कमी होगी। अहमदाबाद के कारोबारी फर्म अरुण दलाल एंड कंपनी के प्रमुख अरुण दलाल ने भी कहा कि इस सीजन में देश से कपास के निर्यात में कमी होगी। दलाल की मानें तो 2007-08 में कपास निर्यात 85 लाख बेल ही रहा था जो इस साल घटकर 50 लाख तक सिमट जाएगा।भारत में कपास की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार से 5 से 7 सेंट प्रति पौंड ज्यादा रह रही है जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक पौंड कपास 62 से 65 सेंट में मिल रहा है। अहमदाबाद के स्थानीय कपास कारोबारी का कहना है कि इस साल कपास निर्यात में तकरीबन 20 से 30 फीसदी की कमी होने का अनुमान है। कारोबारियों के मुताबिक देश से कपास का निर्यात तभी व्यावहारिक हो पाएगा जब इसकी कीमतें 23,000 रुपये प्रति कैंडी से नीचे चली जाएगी। शाह ने बताया कि फिलहाल कपास के महंगे होने की कोई वजह नहीं है। (BS Hindi)
पिछले साल की तुलना में इस साल देश के कपास निर्यात में कमी हो सकती है। गुजरात के कारोबारियों के मुताबिक, दुनियाभर के कपड़ा मिलों के सामने खड़ी नई मुसीबतों और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की ऊंची कीमतों के चलते कपास का निर्यात इस बार कम रहने की उम्मीद है।हालांकि कारोबारियों को उम्मीद है कि कपास की आवक शुरू हो जाने के बाद इसकी कीमतों में जरूर कमी होगी। साउथ गुजरात कॉटन डीलर्स एसोसियशन (एसजीसीडीए) के अध्यक्ष किशोर शाह ने बताया कि 2007-08 में जहां एक करोड़ बेल (1 बेल=170 किलोग्राम) कपास का निर्यात होने का अनुमान रहा है तो मौजूदा सीजन में लगभग 85 लाख बेल कपास निर्यात हो सकता है। मालूम हो कि भारत से ज्यादातर कपास चीन को भेजे जाते हैं लेकिन चीन के तकरीबन 20 फीसदी चीनी मिल खस्ताहाल हैं। उद्योग जगत के मुताबिक, पिछले सीजन में कपास के रेकॉर्ड मूल्यों के चलते इन मिलों का मुनाफा काफी कम हो गया था। इसके चलते 2008-09 में संभावना जतायी जा रही है कि कपास की वैश्विक खपत में कमी होगी। अहमदाबाद के कारोबारी फर्म अरुण दलाल एंड कंपनी के प्रमुख अरुण दलाल ने भी कहा कि इस सीजन में देश से कपास के निर्यात में कमी होगी। दलाल की मानें तो 2007-08 में कपास निर्यात 85 लाख बेल ही रहा था जो इस साल घटकर 50 लाख तक सिमट जाएगा।भारत में कपास की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार से 5 से 7 सेंट प्रति पौंड ज्यादा रह रही है जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक पौंड कपास 62 से 65 सेंट में मिल रहा है। अहमदाबाद के स्थानीय कपास कारोबारी का कहना है कि इस साल कपास निर्यात में तकरीबन 20 से 30 फीसदी की कमी होने का अनुमान है। कारोबारियों के मुताबिक देश से कपास का निर्यात तभी व्यावहारिक हो पाएगा जब इसकी कीमतें 23,000 रुपये प्रति कैंडी से नीचे चली जाएगी। शाह ने बताया कि फिलहाल कपास के महंगे होने की कोई वजह नहीं है। (BS Hindi)
इस साल धान की बंपर फसल की उम्मीद
मुंबई September 25, 2008
कई राज्यों के बाढ़ प्रभावित होने और सीजन के अंत में अत्यधिक बारिश होने से परिपक्व होती धान की फसल की क्षति के बावजूद देश में धान के उत्पादन में 15 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है।औद्योगिक सूत्रों के अनुसार, इस वर्ष रेकॉर्ड 1,100 लाख टन चावल के कुल उत्पादन की संभावना है जबकि पिछले वर्ष यह 963.5 लाख टन था। भारत के कुल चावल उत्पादन का 87 प्रतिशत खरीफ सीजन में होता है जबकि रबी सीजन के दौरान शेष 13 प्रतिशत का उत्पादन होता है।मुंबई स्थित धान और गेहूं प्रसंस्करण कंपनी अशर एग्रो लिमिटेड के प्रबंध निदेशक वी के चतुर्वेदी ने कहा, 'चावल बारिश पर आधारित फसल है और इसे बुआई से लेकर कटाई तक अधिक नमी की जरूरत होती है। इस साल का मौसम धान की फसल के लिए बहुत अच्छा था। इसलिए, न केवल हम बंपर फसल की उम्मीद कर रहे हैं बल्कि हमें अनाज के बेहतर किस्म की भी आशा है जो सामान्य आकार के दानों की तुलना में भारी होगा।'लेकिन अधिकांश धान उत्पादक राज्यों में हाल में आई विनाशकारी बाढ़ को देखते हुए कारोबारी सूत्रों को फसल के नुकसान की भी आशा कर रहे हैं। हालांकि, बाढ़ के कारण लगभग 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसल के डूब जाने के कारण उत्पादन में मामूली, लगभग 6 लाख टन की कमी आएगी।चतुर्वेंदी ने कहा, 'देश के कुल उत्पादन को देखते हुए क्षति की मात्रा लगभग नहीं के बाराबर होगी।'धान की फसल की कटाई से पहले लगभग 15 दिनों तक बारिश नहीं होनी चाहिए। लेकिन, धान उत्पादक सभी प्रमुख राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, पजाब आदि में हो रही भारी बारिश से कटाई के वर्तमान सीजन में कटाई में लगभग एक पखवाड़े का विलंब हो सकता है। उन्होंने कहा कि सामान्य परिस्थितियों के अंतर्गत धान के खरीफ फसल की कटाई अक्टूबर के पहले पखवाड़े में शुरू हो जाती है लेकिन अत्यधिक बारिश के कारण यह इस साल 20 अक्टूबर से शुरू हो सकता है। भारत में इस साल 1,400 लाख धान के उत्पादन होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल1,180 लाख टन का उत्पादन हुआ था।ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विजय सेटिया का विश्वास है कि बाढ़ और अत्यधिक बारिश के कारण 10 प्रतिशत शुरुआती कटाई वाली फसल का केवल 5 फीसदी गुणात्मक दृष्टि से प्रभावित होगा जो कुल धान की फसल का 0.2 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, 'बाढ़ के पानी में एक सप्ताह से अधिक तक धान की फसल के डूबे रहने से गुणवत्ता प्रभावित होगी, और अनाज के विकास पर प्रभाव पड़ेगा। कम से कम कुल परिमाण का एक प्रतिशत प्रभावित होगा।' उद्योग जगत सामान्य नियम के मुताबिक चल रहा है जसके अनुसार, 'अत्यधिक बारिश, फसल को कम नुकसान जबकि बारिश के नहीं होने से धान की फसल को अधिकतम नुकसान होता है।'कृषि मंत्रालय के आकलन के अनुसार धान के रकबा इस साल 21 लाख हेक्टेयर बढ़ कर 324.60 लाख हेक्टेयर हो गया है जबकि पिछले साल 22 जुलाई तक यह 303.60 लाख हेक्टेयर था। (BS Hindi)
कई राज्यों के बाढ़ प्रभावित होने और सीजन के अंत में अत्यधिक बारिश होने से परिपक्व होती धान की फसल की क्षति के बावजूद देश में धान के उत्पादन में 15 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है।औद्योगिक सूत्रों के अनुसार, इस वर्ष रेकॉर्ड 1,100 लाख टन चावल के कुल उत्पादन की संभावना है जबकि पिछले वर्ष यह 963.5 लाख टन था। भारत के कुल चावल उत्पादन का 87 प्रतिशत खरीफ सीजन में होता है जबकि रबी सीजन के दौरान शेष 13 प्रतिशत का उत्पादन होता है।मुंबई स्थित धान और गेहूं प्रसंस्करण कंपनी अशर एग्रो लिमिटेड के प्रबंध निदेशक वी के चतुर्वेदी ने कहा, 'चावल बारिश पर आधारित फसल है और इसे बुआई से लेकर कटाई तक अधिक नमी की जरूरत होती है। इस साल का मौसम धान की फसल के लिए बहुत अच्छा था। इसलिए, न केवल हम बंपर फसल की उम्मीद कर रहे हैं बल्कि हमें अनाज के बेहतर किस्म की भी आशा है जो सामान्य आकार के दानों की तुलना में भारी होगा।'लेकिन अधिकांश धान उत्पादक राज्यों में हाल में आई विनाशकारी बाढ़ को देखते हुए कारोबारी सूत्रों को फसल के नुकसान की भी आशा कर रहे हैं। हालांकि, बाढ़ के कारण लगभग 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसल के डूब जाने के कारण उत्पादन में मामूली, लगभग 6 लाख टन की कमी आएगी।चतुर्वेंदी ने कहा, 'देश के कुल उत्पादन को देखते हुए क्षति की मात्रा लगभग नहीं के बाराबर होगी।'धान की फसल की कटाई से पहले लगभग 15 दिनों तक बारिश नहीं होनी चाहिए। लेकिन, धान उत्पादक सभी प्रमुख राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, पजाब आदि में हो रही भारी बारिश से कटाई के वर्तमान सीजन में कटाई में लगभग एक पखवाड़े का विलंब हो सकता है। उन्होंने कहा कि सामान्य परिस्थितियों के अंतर्गत धान के खरीफ फसल की कटाई अक्टूबर के पहले पखवाड़े में शुरू हो जाती है लेकिन अत्यधिक बारिश के कारण यह इस साल 20 अक्टूबर से शुरू हो सकता है। भारत में इस साल 1,400 लाख धान के उत्पादन होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल1,180 लाख टन का उत्पादन हुआ था।ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विजय सेटिया का विश्वास है कि बाढ़ और अत्यधिक बारिश के कारण 10 प्रतिशत शुरुआती कटाई वाली फसल का केवल 5 फीसदी गुणात्मक दृष्टि से प्रभावित होगा जो कुल धान की फसल का 0.2 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, 'बाढ़ के पानी में एक सप्ताह से अधिक तक धान की फसल के डूबे रहने से गुणवत्ता प्रभावित होगी, और अनाज के विकास पर प्रभाव पड़ेगा। कम से कम कुल परिमाण का एक प्रतिशत प्रभावित होगा।' उद्योग जगत सामान्य नियम के मुताबिक चल रहा है जसके अनुसार, 'अत्यधिक बारिश, फसल को कम नुकसान जबकि बारिश के नहीं होने से धान की फसल को अधिकतम नुकसान होता है।'कृषि मंत्रालय के आकलन के अनुसार धान के रकबा इस साल 21 लाख हेक्टेयर बढ़ कर 324.60 लाख हेक्टेयर हो गया है जबकि पिछले साल 22 जुलाई तक यह 303.60 लाख हेक्टेयर था। (BS Hindi)
रेकॉर्ड पैदावार से गेहूं की कीमतों में आएगी नरमी
नई दिल्ली : अंतरराष्ट्रीय खाद्यान्न परिषद (आईजीसी) ने वर्ष 2008-09 के लिए वैश्विक गेहूं उत्पादन का लक्ष्य 67.6 करोड़ टन रखा है। यह पिछले साल से 11 फीसदी अधिक है। आईजीसी की इस घोषणा से एक दिन पहले ही भारत ने अधिक गेहूं उत्पादन का लक्ष्य तय किया था। भारत ने साल 2008-09 के दौरान 7.85 करोड़ टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है। पिछले साल भारत में 7.84 करोड़ टन गेहूं पैदा हुआ था। आईजीसी ने वर्ष 2008-09 के लिए पिछले महीने के अनुमान की तुलना में इस बार का उत्पादन लक्ष्य 40 लाख टन बढ़ा दिया है। आईजीसी की खाद्यान्न रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोपीय संघ, रूस और उक्रेन में उम्मीद से अधिक गेहूं की पैदावार होने की उम्मीद है। इससे वैश्विक स्तर पर स्थिति बेहतर रहेगी। उधर, कम बारिश से ऑस्ट्रेलिया में पैदावार कम रह सकती है। अर्जंटीना और कुछ अन्य देशों में खराब मौसम और कम बारिश के कारण गेहूं की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। अब इन देशों के गेहूं का इस्तेमाल पशुओं के चारे के रूप में किया जाएगा। गेहूं की कीमतों पर आईजीसी ने कहा, 'वित्तीय बाजार के उथल-पुथल ने गेहूं के वायदा कारोबार पर भी असर डाला है। इस वर्ष वैश्विक स्तर पर रेकॉर्ड गेहूं उत्पादन अनुमान से सितंबर में कीमतें कम हुई हैं।' (ET Hindi)
खाद्यान कीमतों में वृद्धि से विकासशील देशों का संबंध नहीं: चिदंबरम
न्यूयॉर्क : भारत ने इस आरोप को सिरे से खारिज कर दिया है कि विकासशील देशों में खाद्यान्न की खपत ज्यादा हो रही है। भारत ने इस तर्क को भी खारिज किया कि विकासशील देशों की वजह से खाद्यान्न की कीमतें बढ़ रही हैं। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा, 'अक्सर तर्क दिया जाता है कि बड़े विकासशील देशों में खाद्यान्न की ज्यादा खपत हो रही है। इस तर्क में कोई दम नहीं है। विकासशील देश अभी भी कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं।' विकासशील देशों में खाद्यान्न की अत्यधिक खपत से खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी विषय पर आयोजित वाद-विवाद में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने नकारते हुए कहा कि इसमें जरा भी सच्चाई नहीं है। न्यूयॉर्क में आयोजित 'गरीबी और भूख' विषय पर राउंड टेबल में वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि भारत के समक्ष कुपोषण बड़ी चुनौती है और 11 वीं पंचवर्षीय योजना में 0-3 साल के बच्चों में कुपोषण को कम करने की योजना है। (ET Hindi)
26 सितंबर 2008
बिचौलियों के खेल में पिसने से बचेंगे किसान
राजधानी की आजादपुर मंडी में सब्जियों और फल की बोली प्रक्रिया अब पारदर्शी बन जाएगी। पहले आढ़ती और खरीदार रूमाल के अंदर हाथ डालकर फल और सब्जियों के दाम तय करते थे। मंडी में यह तरीका बरसों से चला आ रहा था। लेकिन अब इसमें पारदर्शिता की कमी देखी जा रही है। किसान और कारोबारी अब इसमें बेईमानी की शिकायत कर रहे हैं। बोली प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) आजादपुर, इलेक्ट्रॉनिक बोली की व्यवस्था लाने जा रही है। मंडी में इस समय अपनाई जा रही बोली की प्रक्रिया में किसानों को समझ में नहीं आता है कि आढ़तिये और खरीदार बीच सौदा कितने में तय हो रहा है। शिमला से सेब बेचने आए किसान मनोज बताते हैं, हमें अंत में पता चलता है कि सौदा कितने में तय हुआ। इस प्रक्रिया में बेईमानी तो होती ही है। इलेक्ट्रॉनिक प्रक्रिया लागू होने से बेईमानी खत्म हो सकती है। कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) आजादपुर की सचिव मधु के गर्ग ने बिजनेस भास्कर को बताया कि बोली की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिए एपीएमसी इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था करने जा रही है। इसको लागू करने में छह महीने लग सकती है। आलू कारोबारी सूरज कुमार का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था होने से बेईमानी पर लगाम लगने की उम्मीद तो है। किसान-व्यापारी वेलफेयर एसोसिएशन के डायरेक्टर संजय त्यागी बोली की इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था को किसानों के लिए बेहतर मान रहे हैं। वहीं कश्मीर एपल मर्च्ेट एसोसिएशन के अध्यक्ष मेथाराम कृपलानी के मुताबिक बोली की नई प्रक्रिया मंडी में कारोबार के आधुनिक होने की निशानी है। एशिया की सबसे बड़ी फल और सब्जी मंडी आजादपुर में सालाना करीब 45 लाख टन की आवक और करीब पांच हजार वाहनों की आवाजाही रहती है। एपीएमसी ने मार्केट फीस के रूप एक फीसदी के हिसाब से 2006-07 में 37.36 करोड़ में प्राप्त किए थे। (Business Bhaskar)
55 लाख टन सोयामील निर्यात की संभावना
मुंबई। सितंबर के बाकी दिनों में भारत से करीब तीन लाख टन और सोयामील निर्यात हो सकता है। इस तरह समाप्त हो रहे मौजूदा सोयाबीन सीजन में कुल 55 लाख टन सोयामील निर्यात हो जाएगा। 30 सितंबर के बाद अगला सोया सीजन शुरू हो जाएगा।प्रेस्टीज फीड मील के प्रबंध निदेशक देवीश जैन ने बताया कि अगले सीजन के दौरान भारत में बंपर सोयाबीन का उत्पादन होने जा रहा है जिससे पड़ोसी देशों की भी भी जरूरत पूरी हो सकेगी। ऐसे में भारत से सोयामील का निर्यात बढ़ना तय है। उन्होंने बताया कि अगले सीजन के लिए भी निर्यात सौदे होने लगे हैं जिसका शिपमेंट नवंबर मध्य से दिसंबर तक होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि अक्टूबर से जनवरी के दौरान यहां से करीब बीस लाख टन सोयामील निर्यात होने की संभावना है। हालांकि सोयाबीन की नई आवक के साथ ही कारोबार काफी कमजोर हो गया है। ऐसे में कीमतों को लेकर किसी भी तरह का पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। कुछ इलाकों में कटाई में देरी होने की वजह से मध्य अक्टूबर तक मंडियों में आवक बढ़ने की संभावना जताई जा रही है।एमपी की मंडियों में सोयाबीन आवक बढ़ीइंदौर। स्थानीय मंडी समेत मध्य प्रदेश की अन्य प्रमुख मंडियों में गुरुवार को सोयाबीन की आवक बढ़कर 85000 बोरी रही। मौसम खुलने के साथ ही आवक का दबाव और बढ़ने की संभावना है। इस बीच आवक का दबाव बढ़ने के बावजूद भावों में गिरावट नहीं आ पाई है। प्लांटों और स्टाकिस्टों की खरीदी बनी रहने से भाव अच्छे मिल रहे हैं। बंपर उत्पादन को देखते हुए भावों में गिरावट आने की संभावना थी लेकिन अमेरिका सहित अन्य यूरोपीय देशों में सोया खली की भारी मांग निकलने से इस बार प्लांटों की डीओसी भी अच्छे भावों पर बिकने की उम्मीद है। इंदौर में आज नया सोयाबीन 1750 से 2100 रुपए के भाव पर बिका। (Business Bhaskar)
सप्लाई बढ़ने से मेंथा की मांग पर दबाव, भाव गिरे
मेंथा ऑयल की मांग कम होने और सप्लाई बढ़ने का असर इसकी कीमतों पर देखा जा रहा है। जिससे मेंथा ऑयल के मूल्यों में पांच फीसदी तक की गिरावट आई है। मेंथा कारोबारियों को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इसकी मांग बढ़ने पर भाव में बढ़ोतरी हो सकती है। बताते हैं कि इन दिनों फार्मा कंपनियों और कन्फैक्शनरी कंपनियों की लिवाली हल्की चल रही है।मेंथा ऑयल में कारोबार करने वाले सुधीर गावा ने बिÊानेस भास्कर को बताया कि बीते दो सप्ताह के दौरान इसकी मांग में सुस्ती देखी जा रही है जिससे इसके भाव में पांच फीसदी तक की गिरावट आई है। दिल्ली के मेंथा ऑयल बाजार में मेंथा ऑयल सस्ता होने से मैंथोल क्रिस्टल बोल्ड 745 से गिरकर 725 रुपये, मेंथोल फ्लैक्स 705 से गिरकर 650 रुपये और डीएमओ 510 गिरकर 485 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। जबकि मेंथा ऑयल 650 से कम होकर 625 रुपये प्रति किलो रह गया है। कारोबारियों के अनुसार उत्पादक क्षेत्रों में किसानों की ओर से सप्लाई काफी बढ़ गई है। इसका मूल्य पर दबाव पड़ रहा है।हालांकि कारोबारियों के मुताबिक मेंथा ऑयल की मांग बढ़ने पर कीमतों में बढ़ोतरी होने की संभावना है। तिलक राज एंड संस के तिलक राज ने बताया कि आने वाले एक-डेढ़ माह में इनकी मांग बढ़ने की उम्मीद की जा रही है जिससे इसके मूल्यों में बढ़ोतरी हो सकती है। उत्पादक राज्यों में कटाई के दौरान वर्षा होने से इसके उत्पादन में कमी आई है। बिजाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी के बावजूद प्रतिकूल मौसम से उत्पादन में गिरावट आई है। जयश्री केमिकल्स संभल के प्रबंध निदेशक प्रवीन रस्तोगी ने बताया कि इस साल मेंथा की 40000 टन फसल होने का अनुमान लगाया जा रहा था लेकिन बारिश होने से मेंथा का उत्पादन घटकर 32000 टन रहने का अमुमान है। उनका कहना है कि उत्पादन कम होने और मांग बढ़ने पर इसके भाव में तेजी आने की उम्मीद की जा रही है। उत्पादक मंडी संभल में मेंथा ऑयल 630 रुपये, मेंथोल क्रिस्टल बोल्ड 718 रुपये, फ्लैक 702 रुपये और डीएमओ 485 रुपये जबकि चंदौसी मंदी में मेंथा ऑयल 632 रुपसे, मेंथोल क्रिस्टल बोल्ड 715 रुपये, फ्लैक 690 रुपये और डीएमओ 470 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक रहा है। गौरतलब है कि दो माह पहले सट्टेबाजी के चलते इसके भाव 750 रुपये प्रति किलो से भी ऊपर चले गए थे लेकिन अब इसके कम होने से भाव गिरने लगे है। (Business Bhaskar)
राजस्थान की मंडियों में मूंगफली की आवक शुरू
राजस्थान में इस साल मूंगफली की पैदावार पिछले वर्ष के मुकाबले दस फीसदी बढ़कर साढ़े पांच लाख टन के पार होने का अनुमान है। इस बीच राज्य की मंडियों में नई मूंगफली की आवक शुरू हो गई है।कृषि निदेशालय के अनुसार इस साल राज्य में 3.28 लाख हैक्टेयर में मूंगफली की बुवाई की गई थी जबकि पिछले सीजन में 3.14 लाख हैक्टेयर में मूंगफली की पैदावार हुई थी। कारोबारियों का अनुमान है कि रकबे में बढ़ोतरी और मानसून बेहतर रहने से इस साल राज्य में मूंगफली की पैदावार में दस फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। हालांकि कृषि विभाग ने हाल ही जारी पूर्वानुमानों में बताया है कि इस साल राज्य में मूंगफली का उत्पादन 5.50 लाख टन होगा जबकि पिछले वर्ष राज्य में 5.21 लाख टन मूंगफली का उत्पादन हुआ था। इस लिहाज से पिछले वर्ष के मुकाबले मूंगफली उत्पादन में करीब पांच फीसदी की बढ़त होगी। दूसरी तरफ व्यापारियों के अनुसार इस वर्ष जयपुर, बीकानेर और भरतपुर संभाग में मूंगफली की बंपर पैदावार होने की उम्मीद है। इससे राज्य में मूंगफली उत्पादन पिछले वर्ष के मुकाबले दस फीसदी से ज्यादा बढ़ेगा। जयपुर मंडी में मूंगफली के कारोबारी राजेंद्र ने बताया कि जयपुर और चौमू मंडी में मूंगफली की आवक शुरू हो गई है। जयपुर मंडी में इस समय रोजाना करीब एक हजार बोरी (प्रति बोरी 40 किलो) और चौमू मंडी चार हजार बोरी मूंगफली की आवक हो रही है। इस समय राज्य में मूंगफली के भाव 2300 से 2800 रुपए प्रति क्विंटल हैं लेकिन आवक बढ़ने के साथ ही इनमें गिरावट आने की संभावना है। व्यापारियों का कहना है कि नवरात्रि में मूंगफली की आवक बढ़ेगी इससे बाद भावों पर दबाव आ जाएगा। फिलहाल मंडी में मूंगफली में नरमी की धारणा है। (Business Bhaskar)
खाद्यान्न पैदावार 4.7 फीसदी घटने का अंदेशा
देश कुछ हिस्सों में जुलाई के दौरान सूखा पड़ने और अगस्त व सितंबर में कुछ हिस्सों में बाढ़ आने का प्रतिकूल असर चालू खरीफ सीजन (2008-09) की लगभग सभी फसलों के उत्पादन पर पड़ने की आशंका है। इसके चलते जहां खरीफ सीजन में खाद्यान्न उत्पादन में 4.7 फीसदी की गिरावट आने का अनुमान है। वहीं केवल चावल की आधा फीसदी बढ़ोतरी को छोड़कर दालों, तिलहन, गन्ना और कपास सहित अधिकांश नकदी फसलों के उत्पादन में आधा फीसदी से 30.1 फीसदी तक की गिरावट का अनुमान है। इस स्थिति के चलते खरीफ की बेहतर फसल के सहारे महंगाई पर काबू पाने की सरकार की कोशिश पर पानी फिर सकता है। गुरुवार को कृषि मंत्रालय द्वारा जारी किए गये चालू खरीफ सीजन के उत्पादन के पहले आरंभिक अनुमानों में यह जानकारी दी गई है। मंत्रालय ने रबी सीजन की तैयारियों के लिए आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के समापन पर राज्यों से मिली जानकारी के आधार पर खरीफ सीजन के अनुमान जारी किये है। आंकड़े जारी करते हुए कृषि सचिव टी. नंदकुमार ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बाढ़ से हुए नुकसान को आंकड़े तैयार करते समय ध्यान में रखा गया है। उन्होंने कहा कि रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा अक्टूबर में हो सकती है।खरीफ के पहले आरंभिक अनुमानों के मुताबिक चावल उत्पादन आधा फीसदी बढ़कर अभी तक के रिकार्ड 8.32 करोड़ टन रहने का अनुमान लगाया गया है। पिछले साल के ताजा आंकड़ों (चौथे आरंभिक अनुमानों) के मुताबिक 2007-08 खरीफ में चावल उत्पादन 8.28 करोड़ टन रहा था। चालू खरीफ सीजन में कुल खाद्यान्न का उत्पादन 11.53 करोड़ टन होने का अनुमान लगाया गया है जो कि गत वर्ष के चौथे अनुमान के मुकाबले 56 लाख टन कम है। बीते वर्ष केंद्र सरकार द्वारा जारी चौथे अनुमान के अनुसार देश में खाद्यान्न का कुल उत्पादन 12.09 करोड़ टन का हुआ था। मोटे अनाजों में मक्का का उत्पादन चालू वर्ष में 130 लाख टन होने की उम्मीद है जबकि बीते वर्ष इसका उत्पादन 151 लाख़ टन हुआ था। इसी तरह से ज्वार के उत्पादन में 25 फीसदी की कमी आकर उत्पादन 30 लाख टन होने के आसार हैं जबकि बाजरा का उत्पादन गत वर्ष के 97 लाख टन से घटकर 91 लाख टन होने की संभावना है।खरीफ दलहन की प्रमुख फसल तुअर का उत्पादन गत वर्ष के 30 लाख टन के मुकाबले घटकर 23 लाख टन व अन्य दालों के उत्पादन में भी गत वर्ष के मुकाबले 30 फीसदी की कमी आकर उत्पादन 23 लाख टन होने की संभावना है। चालू खरीफ में दालों का कुल उत्पादन 47 लाख टन होने का अनुमान है तथा इसमें गत वर्ष के मुकाबले 26.8 फीसदी की गिरावट आएगी। खरीफ तिलहन की प्रमुख फसल सोयाबीन के उत्पादन में गत वर्ष के मुकाबले 0.5 फीसदी की कमी आकर उत्पादन 99 लाख टन होने का अनुमान है हालांकि सोयाबीन के बुवाई क्षेत्रफल में गत वर्ष के मुकाबले बढ़ोतरी हुई है लेकिन बुवाई के समय खासकर महाराष्ट्र के विदर्भ व मराठवाड़ा में मौसम अनुकूल न होने से प्रति हैक्टेयर उत्पादन घटने की बात खुद कृषि सचिव ने स्वीकार की। मूंगफली के उत्पादन में गत वर्ष के मुकाबले 18.4 फीसदी की गिरावट आकर उत्पादन 61 लाख टन रहने के आसार हैं। कुल तिलहन उत्पादन गत वर्ष के 198 लाख टन के मुकाबले घटकर 179 लाख टन होने की आशा है। (Business Bhaskar....)
सोने की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में नरमी
न्यूयॉर्क : गुरुवार को सोने के भाव में नरमी रही। हालांकि इस समय सोने की कीमत पर असर डालने वाला सबसे बड़ा फैक्टर अमेरिकी सरकार का 700 अरब डॉलर का फाइनांशियल रेसक्यू प्लान है। इस समय सोने में खरीदारी बढ़ी है। फाइनांशियल उथलपुथल के बीच निवेशक गोल्ड को सुरक्षित निवेश मान रहे हैं। अमेरिकी मिंट ने कुछ पॉपुलर गोल्ड क्वाइन की बिक्री रोक दी है क्योंकि उनकी बिक्री का कोटा पूरा हो गया है। गोल्ड स्पॉट प्राइस की बात करें तो बुधवार को बंद भाव के मुकाबले इसमें 0.9 परसेंट की गिरावट देखी गई और ये 873.20 /876.20 डॉलर प्रति औंस पर चल रहा था। नाइमैक्स पर दिसंबर डिलिवरी की बात करें तो सोना 1.5 परसेंट नीचे 882 डॉलर प्रति औंस पर चल रहा था। (ET Hindi)
बारिश की तबाही के बावजूद खाद्यान उत्पादन बढ़ने का दावा
नई दिल्ली : उड़ीसा, बिहार और असम में आई बाढ़ से खरीफ फसलों को भारी क्षति पहुंची है। करीब 20 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में धान और मक्के की खड़ी फसल बर्बाद हो गई। इसके बावजूद पिछले साल की तुलना में वित्त वर्ष 2008-09 के पहले पूर्वानुमान में 8.325 करोड़ टन चावल उत्पादन की बात कही गई है। यह पिछले साल के 8.821 करोड़ टन से ज्यादा है। गुरुवार को पूरे साल के लिए पहला पूर्वानुमान जारी किया गया। इसमें वित्त वर्ष 2008-09 के लिए कुल खाद्यान्न पैदावार 11.533 करोड़ टन होने का अनुमान है। हालांकि, वर्ष 2007-08 के चौथे पूर्वानुमान में 12.096 करोड़ टन खाद्यान्न पैदावार रहने का अनुमान लगाया था। इस साल के पूर्वानुमान में पांच फीसदी कम पैदावार होने की बात कही गई। कृषि सचिव टी नंद कुमार इस बात को लेकर बेहद आशान्वित थे कि अच्छा मानसून रहने से मिट्टी में नमी बढ़ेगी और इससे रबी फसलों की पैदावार बढ़ेगी। उन्होंने कहा, 'फिलहाल जो आकलन है, उससे कहीं से भी खाद्य सुरक्षा खतरे में नहीं दिखाई पड़ती है।' उन्होंने कहा कि अक्टूबर में रबी फसलों जैसे गेहूं, चना, और सरसों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की घोषणा की जाएगी। उन्होंने सभी राज्यों से रबी फसलों की बुआई से पहले फटिर्लाइजर और दूसरे जरूरी समान उपलब्ध कराने के लिए कहा है। वैसे कुछ राज्यों में फटिर्लाइजर की कमी बड़ी समस्या है। उन राज्यों में इसकी उपलब्धता बढ़ाने संबंधी सभी कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस ऑन एग्रीकल्चर फॉर रबी कैम्पेन: २००८ के अवसर पर कहा, 'अच्छी गुणवत्ता वाले बीज जरूरी मात्रा में उपलब्ध है और इस मोचेर् पर किसी तरह की चिंता की बात नहीं है।' (ET Hindi)
चीन से दुग्ध उत्पादों के आयात पर पाबंदी-एजेंसियां
नई दिल्ली / September 25, 2008
चीन में विषाक्त दूध पीने से हुई अनेक मौतों के बाद भारत ने वहां से दूध सहित डेयरी के तमाम उत्पादों के आयात को तीन महीने के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। इस तरह अब तक भारत सहित दुनिया के 25 देशों ने अपने यहां चीन से मंगाए जाने वाले दूध उत्पादों के आयात पर तात्कालिक रोक लगा चुकी है।चीन से विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, चीन से दूध और दूध उत्पादों का आयात तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है। खबरों में कहा गया था कि संक्रमित दूध के सेवन से चीन में कम से कम चार नवजातों की मौत हो गई जबकि 13 हजार से ज्यादा बच्चे बीमार पड़ गए। हफ्ते की शुरुआत में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन से दूध उत्पादों का आयात करने वाले देशों को सतर्क रहने के लिए कहा था। यह प्रतिबंध अगले तीन महीने तक प्रभावी रहेगा। हालांकि भारत चीन से दूध या दूध पाउडर का आयात नहीं करता लेकिन पनीर जैसे प्रसंस्कृत उत्पादों का आयात जरूर होता है। पिछले वित्तीय वर्ष में तो भारत ने करीब 10 टन पनीर का चीन से आयात किया था। जांच के बाद चीन की 22 डेयरी फर्मों के दूध उत्पादों में प्लास्टिक और उवर्रक बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले घातक रसायन मेलामाइन के अंश पाए गए थे। यह रसायन गुर्दे में रसौली बना सकता है। (BS Hindi)
चीन में विषाक्त दूध पीने से हुई अनेक मौतों के बाद भारत ने वहां से दूध सहित डेयरी के तमाम उत्पादों के आयात को तीन महीने के लिए प्रतिबंधित कर दिया है। इस तरह अब तक भारत सहित दुनिया के 25 देशों ने अपने यहां चीन से मंगाए जाने वाले दूध उत्पादों के आयात पर तात्कालिक रोक लगा चुकी है।चीन से विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा जारी एक अधिसूचना के मुताबिक, चीन से दूध और दूध उत्पादों का आयात तत्काल प्रभाव से रोक दिया गया है। खबरों में कहा गया था कि संक्रमित दूध के सेवन से चीन में कम से कम चार नवजातों की मौत हो गई जबकि 13 हजार से ज्यादा बच्चे बीमार पड़ गए। हफ्ते की शुरुआत में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चीन से दूध उत्पादों का आयात करने वाले देशों को सतर्क रहने के लिए कहा था। यह प्रतिबंध अगले तीन महीने तक प्रभावी रहेगा। हालांकि भारत चीन से दूध या दूध पाउडर का आयात नहीं करता लेकिन पनीर जैसे प्रसंस्कृत उत्पादों का आयात जरूर होता है। पिछले वित्तीय वर्ष में तो भारत ने करीब 10 टन पनीर का चीन से आयात किया था। जांच के बाद चीन की 22 डेयरी फर्मों के दूध उत्पादों में प्लास्टिक और उवर्रक बनाने में इस्तेमाल किए जाने वाले घातक रसायन मेलामाइन के अंश पाए गए थे। यह रसायन गुर्दे में रसौली बना सकता है। (BS Hindi)
ऊंची कीमतों के चलते घटेगा कपास का निर्यात
अहमदाबाद September 25, 2008
पिछले साल की तुलना में इस साल देश के कपास निर्यात में कमी हो सकती है। गुजरात के कारोबारियों के मुताबिक, दुनियाभर के कपड़ा मिलों के सामने खड़ी नई मुसीबतों और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की ऊंची कीमतों के चलते कपास का निर्यात इस बार कम रहने की उम्मीद है।हालांकि कारोबारियों को उम्मीद है कि कपास की आवक शुरू हो जाने के बाद इसकी कीमतों में जरूर कमी होगी। साउथ गुजरात कॉटन डीलर्स एसोसियशन (एसजीसीडीए) के अध्यक्ष किशोर शाह ने बताया कि 2007-08 में जहां एक करोड़ बेल (1 बेल=170 किलोग्राम) कपास का निर्यात होने का अनुमान रहा है तो मौजूदा सीजन में लगभग 85 लाख बेल कपास निर्यात हो सकता है। मालूम हो कि भारत से ज्यादातर कपास चीन को भेजे जाते हैं लेकिन चीन के तकरीबन 20 फीसदी चीनी मिल खस्ताहाल हैं। उद्योग जगत के मुताबिक, पिछले सीजन में कपास के रेकॉर्ड मूल्यों के चलते इन मिलों का मुनाफा काफी कम हो गया था। इसके चलते 2008-09 में संभावना जतायी जा रही है कि कपास की वैश्विक खपत में कमी होगी। अहमदाबाद के कारोबारी फर्म अरुण दलाल एंड कंपनी के प्रमुख अरुण दलाल ने भी कहा कि इस सीजन में देश से कपास के निर्यात में कमी होगी। दलाल की मानें तो 2007-08 में कपास निर्यात 85 लाख बेल ही रहा था जो इस साल घटकर 50 लाख तक सिमट जाएगा।भारत में कपास की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार से 5 से 7 सेंट प्रति पौंड ज्यादा रह रही है जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक पौंड कपास 62 से 65 सेंट में मिल रहा है। अहमदाबाद के स्थानीय कपास कारोबारी का कहना है कि इस साल कपास निर्यात में तकरीबन 20 से 30 फीसदी की कमी होने का अनुमान है। कारोबारियों के मुताबिक देश से कपास का निर्यात तभी व्यावहारिक हो पाएगा जब इसकी कीमतें 23,000 रुपये प्रति कैंडी से नीचे चली जाएगी। शाह ने बताया कि फिलहाल कपास के महंगे होने की कोई वजह नहीं है। (BS Hindi)
पिछले साल की तुलना में इस साल देश के कपास निर्यात में कमी हो सकती है। गुजरात के कारोबारियों के मुताबिक, दुनियाभर के कपड़ा मिलों के सामने खड़ी नई मुसीबतों और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास की ऊंची कीमतों के चलते कपास का निर्यात इस बार कम रहने की उम्मीद है।हालांकि कारोबारियों को उम्मीद है कि कपास की आवक शुरू हो जाने के बाद इसकी कीमतों में जरूर कमी होगी। साउथ गुजरात कॉटन डीलर्स एसोसियशन (एसजीसीडीए) के अध्यक्ष किशोर शाह ने बताया कि 2007-08 में जहां एक करोड़ बेल (1 बेल=170 किलोग्राम) कपास का निर्यात होने का अनुमान रहा है तो मौजूदा सीजन में लगभग 85 लाख बेल कपास निर्यात हो सकता है। मालूम हो कि भारत से ज्यादातर कपास चीन को भेजे जाते हैं लेकिन चीन के तकरीबन 20 फीसदी चीनी मिल खस्ताहाल हैं। उद्योग जगत के मुताबिक, पिछले सीजन में कपास के रेकॉर्ड मूल्यों के चलते इन मिलों का मुनाफा काफी कम हो गया था। इसके चलते 2008-09 में संभावना जतायी जा रही है कि कपास की वैश्विक खपत में कमी होगी। अहमदाबाद के कारोबारी फर्म अरुण दलाल एंड कंपनी के प्रमुख अरुण दलाल ने भी कहा कि इस सीजन में देश से कपास के निर्यात में कमी होगी। दलाल की मानें तो 2007-08 में कपास निर्यात 85 लाख बेल ही रहा था जो इस साल घटकर 50 लाख तक सिमट जाएगा।भारत में कपास की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार से 5 से 7 सेंट प्रति पौंड ज्यादा रह रही है जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक पौंड कपास 62 से 65 सेंट में मिल रहा है। अहमदाबाद के स्थानीय कपास कारोबारी का कहना है कि इस साल कपास निर्यात में तकरीबन 20 से 30 फीसदी की कमी होने का अनुमान है। कारोबारियों के मुताबिक देश से कपास का निर्यात तभी व्यावहारिक हो पाएगा जब इसकी कीमतें 23,000 रुपये प्रति कैंडी से नीचे चली जाएगी। शाह ने बताया कि फिलहाल कपास के महंगे होने की कोई वजह नहीं है। (BS Hindi)
इस साल धान की बंपर फसल की उम्मीद
मुंबई September 25, 2008
कई राज्यों के बाढ़ प्रभावित होने और सीजन के अंत में अत्यधिक बारिश होने से परिपक्व होती धान की फसल की क्षति के बावजूद देश में धान के उत्पादन में 15 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है।औद्योगिक सूत्रों के अनुसार, इस वर्ष रेकॉर्ड 1,100 लाख टन चावल के कुल उत्पादन की संभावना है जबकि पिछले वर्ष यह 963.5 लाख टन था। भारत के कुल चावल उत्पादन का 87 प्रतिशत खरीफ सीजन में होता है जबकि रबी सीजन के दौरान शेष 13 प्रतिशत का उत्पादन होता है।मुंबई स्थित धान और गेहूं प्रसंस्करण कंपनी अशर एग्रो लिमिटेड के प्रबंध निदेशक वी के चतुर्वेदी ने कहा, 'चावल बारिश पर आधारित फसल है और इसे बुआई से लेकर कटाई तक अधिक नमी की जरूरत होती है। इस साल का मौसम धान की फसल के लिए बहुत अच्छा था। इसलिए, न केवल हम बंपर फसल की उम्मीद कर रहे हैं बल्कि हमें अनाज के बेहतर किस्म की भी आशा है जो सामान्य आकार के दानों की तुलना में भारी होगा।'लेकिन अधिकांश धान उत्पादक राज्यों में हाल में आई विनाशकारी बाढ़ को देखते हुए कारोबारी सूत्रों को फसल के नुकसान की भी आशा कर रहे हैं। हालांकि, बाढ़ के कारण लगभग 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसल के डूब जाने के कारण उत्पादन में मामूली, लगभग 6 लाख टन की कमी आएगी।चतुर्वेंदी ने कहा, 'देश के कुल उत्पादन को देखते हुए क्षति की मात्रा लगभग नहीं के बाराबर होगी।'धान की फसल की कटाई से पहले लगभग 15 दिनों तक बारिश नहीं होनी चाहिए। लेकिन, धान उत्पादक सभी प्रमुख राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, पजाब आदि में हो रही भारी बारिश से कटाई के वर्तमान सीजन में कटाई में लगभग एक पखवाड़े का विलंब हो सकता है। उन्होंने कहा कि सामान्य परिस्थितियों के अंतर्गत धान के खरीफ फसल की कटाई अक्टूबर के पहले पखवाड़े में शुरू हो जाती है लेकिन अत्यधिक बारिश के कारण यह इस साल 20 अक्टूबर से शुरू हो सकता है। भारत में इस साल 1,400 लाख धान के उत्पादन होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल1,180 लाख टन का उत्पादन हुआ था।ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विजय सेटिया का विश्वास है कि बाढ़ और अत्यधिक बारिश के कारण 10 प्रतिशत शुरुआती कटाई वाली फसल का केवल 5 फीसदी गुणात्मक दृष्टि से प्रभावित होगा जो कुल धान की फसल का 0.2 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, 'बाढ़ के पानी में एक सप्ताह से अधिक तक धान की फसल के डूबे रहने से गुणवत्ता प्रभावित होगी, और अनाज के विकास पर प्रभाव पड़ेगा। कम से कम कुल परिमाण का एक प्रतिशत प्रभावित होगा।' उद्योग जगत सामान्य नियम के मुताबिक चल रहा है जसके अनुसार, 'अत्यधिक बारिश, फसल को कम नुकसान जबकि बारिश के नहीं होने से धान की फसल को अधिकतम नुकसान होता है।'कृषि मंत्रालय के आकलन के अनुसार धान के रकबा इस साल 21 लाख हेक्टेयर बढ़ कर 324.60 लाख हेक्टेयर हो गया है जबकि पिछले साल 22 जुलाई तक यह 303.60 लाख हेक्टेयर था। (BS Hindi)
कई राज्यों के बाढ़ प्रभावित होने और सीजन के अंत में अत्यधिक बारिश होने से परिपक्व होती धान की फसल की क्षति के बावजूद देश में धान के उत्पादन में 15 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है।औद्योगिक सूत्रों के अनुसार, इस वर्ष रेकॉर्ड 1,100 लाख टन चावल के कुल उत्पादन की संभावना है जबकि पिछले वर्ष यह 963.5 लाख टन था। भारत के कुल चावल उत्पादन का 87 प्रतिशत खरीफ सीजन में होता है जबकि रबी सीजन के दौरान शेष 13 प्रतिशत का उत्पादन होता है।मुंबई स्थित धान और गेहूं प्रसंस्करण कंपनी अशर एग्रो लिमिटेड के प्रबंध निदेशक वी के चतुर्वेदी ने कहा, 'चावल बारिश पर आधारित फसल है और इसे बुआई से लेकर कटाई तक अधिक नमी की जरूरत होती है। इस साल का मौसम धान की फसल के लिए बहुत अच्छा था। इसलिए, न केवल हम बंपर फसल की उम्मीद कर रहे हैं बल्कि हमें अनाज के बेहतर किस्म की भी आशा है जो सामान्य आकार के दानों की तुलना में भारी होगा।'लेकिन अधिकांश धान उत्पादक राज्यों में हाल में आई विनाशकारी बाढ़ को देखते हुए कारोबारी सूत्रों को फसल के नुकसान की भी आशा कर रहे हैं। हालांकि, बाढ़ के कारण लगभग 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र की फसल के डूब जाने के कारण उत्पादन में मामूली, लगभग 6 लाख टन की कमी आएगी।चतुर्वेंदी ने कहा, 'देश के कुल उत्पादन को देखते हुए क्षति की मात्रा लगभग नहीं के बाराबर होगी।'धान की फसल की कटाई से पहले लगभग 15 दिनों तक बारिश नहीं होनी चाहिए। लेकिन, धान उत्पादक सभी प्रमुख राज्यों जैसे बिहार, उत्तर प्रदेश, पजाब आदि में हो रही भारी बारिश से कटाई के वर्तमान सीजन में कटाई में लगभग एक पखवाड़े का विलंब हो सकता है। उन्होंने कहा कि सामान्य परिस्थितियों के अंतर्गत धान के खरीफ फसल की कटाई अक्टूबर के पहले पखवाड़े में शुरू हो जाती है लेकिन अत्यधिक बारिश के कारण यह इस साल 20 अक्टूबर से शुरू हो सकता है। भारत में इस साल 1,400 लाख धान के उत्पादन होने की उम्मीद है जबकि पिछले साल1,180 लाख टन का उत्पादन हुआ था।ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट विजय सेटिया का विश्वास है कि बाढ़ और अत्यधिक बारिश के कारण 10 प्रतिशत शुरुआती कटाई वाली फसल का केवल 5 फीसदी गुणात्मक दृष्टि से प्रभावित होगा जो कुल धान की फसल का 0.2 प्रतिशत है। उन्होंने कहा, 'बाढ़ के पानी में एक सप्ताह से अधिक तक धान की फसल के डूबे रहने से गुणवत्ता प्रभावित होगी, और अनाज के विकास पर प्रभाव पड़ेगा। कम से कम कुल परिमाण का एक प्रतिशत प्रभावित होगा।' उद्योग जगत सामान्य नियम के मुताबिक चल रहा है जसके अनुसार, 'अत्यधिक बारिश, फसल को कम नुकसान जबकि बारिश के नहीं होने से धान की फसल को अधिकतम नुकसान होता है।'कृषि मंत्रालय के आकलन के अनुसार धान के रकबा इस साल 21 लाख हेक्टेयर बढ़ कर 324.60 लाख हेक्टेयर हो गया है जबकि पिछले साल 22 जुलाई तक यह 303.60 लाख हेक्टेयर था। (BS Hindi)
15 अक्टूबर तक आएगी सुपारी की नयी फसल
नई दिल्ली September 25, 2008
वायदा कारोबार शुरू होने के बाद से सुपारी का भाव काफी समय तक नीचे उतरता रहा, लेकिन पिछले एक हफ्ते से यह 'पॉजिटिव जोन'में प्रवेश कर चुका है। गुरुवार को इसके अक्टूबर और नवंबर कॉन्ट्रैक्ट के वायदा भाव में क्रमश: 1.78 और 2.06 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। एमसीएक्स में दिसंबर अनुबंध उपलब्ध तो है लेकिन इसमें कारोबार नहीं हो रहा यानी भागीदार इस अनुबंध में हाथ नहीं लगा रहे। शिमोगा हाजिर मंडी में पुरानी सुपारी का भाव 108-09 रुपये प्रति किलो रहा जबकि नई सुपारी का भाव 100-102 रुपये। यह जानकारी एमसीएक्स के सूत्रों ने दी। गुरुवार को एमसीएक्स में कुल 190 लॉट और दो करोड़ का कारोबार हुआ। एक हफ्ते पहले एमसीएक्स में एक दिन में करीब 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार हो चुका है और यह सुपारी वायदा का अब तक का रेकॉर्ड है।गुरुवार को कुल ओपन इंटरेस्ट 140 लॉट का रहा। अक्टूबर वायदा 103 रुपये प्रति किलो पर खुला और 1.78 फीसदी के उछाल के साथ बंद हुआ जबकि नवंबर वायदा 107.10 रुपये प्रति किलो पर खुलकर 2.06 फीसदी के इजाफे के साथ बंद हुआ। उधर, दिसंबर वायदा में गुरुवार को भी कोई कारोबार नहीं हुआ। सुपारी के उत्पादक क्षेत्र दक्षिणी राज्यों में बारिश के कारण नई फसल अब 15 अक्टूबर तक आएगी। पहले नई फसल के सितंबर के आखिरी हफ्ते तक आने की उम्मीद थी।विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश की वजह से सुपारी की पैदावार पिछले साल से 15-20 फीसदी कम रहेगी। फिलहाल सुपारी की सबसे बड़ी मंडी शिमोगा (कर्नाटक) में हर हफ्ते 600-700 बैग (70 किलो प्रति बैग) की आवक हो रही है। कारोबारियों का कहना है कि नई फसल की गुणवत्ता फिलहाल अच्छी नहीं है। सुपारी में अगर एक फीसदी से ज्यादा नमी पाई जाए तो उसकी क्वॉलिटी अच्छी नहीं मानी जाती। कारोबारी फिलहाल 'देखो और इंतजार करो' की नीति अपना रहे हैं। उनका कहना है कि नई फसल के आने तक इस कारोबार में तेजी नहीं आएगी। (BS Hindi)
वायदा कारोबार शुरू होने के बाद से सुपारी का भाव काफी समय तक नीचे उतरता रहा, लेकिन पिछले एक हफ्ते से यह 'पॉजिटिव जोन'में प्रवेश कर चुका है। गुरुवार को इसके अक्टूबर और नवंबर कॉन्ट्रैक्ट के वायदा भाव में क्रमश: 1.78 और 2.06 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। एमसीएक्स में दिसंबर अनुबंध उपलब्ध तो है लेकिन इसमें कारोबार नहीं हो रहा यानी भागीदार इस अनुबंध में हाथ नहीं लगा रहे। शिमोगा हाजिर मंडी में पुरानी सुपारी का भाव 108-09 रुपये प्रति किलो रहा जबकि नई सुपारी का भाव 100-102 रुपये। यह जानकारी एमसीएक्स के सूत्रों ने दी। गुरुवार को एमसीएक्स में कुल 190 लॉट और दो करोड़ का कारोबार हुआ। एक हफ्ते पहले एमसीएक्स में एक दिन में करीब 2.5 करोड़ रुपये का कारोबार हो चुका है और यह सुपारी वायदा का अब तक का रेकॉर्ड है।गुरुवार को कुल ओपन इंटरेस्ट 140 लॉट का रहा। अक्टूबर वायदा 103 रुपये प्रति किलो पर खुला और 1.78 फीसदी के उछाल के साथ बंद हुआ जबकि नवंबर वायदा 107.10 रुपये प्रति किलो पर खुलकर 2.06 फीसदी के इजाफे के साथ बंद हुआ। उधर, दिसंबर वायदा में गुरुवार को भी कोई कारोबार नहीं हुआ। सुपारी के उत्पादक क्षेत्र दक्षिणी राज्यों में बारिश के कारण नई फसल अब 15 अक्टूबर तक आएगी। पहले नई फसल के सितंबर के आखिरी हफ्ते तक आने की उम्मीद थी।विशेषज्ञों का कहना है कि बारिश की वजह से सुपारी की पैदावार पिछले साल से 15-20 फीसदी कम रहेगी। फिलहाल सुपारी की सबसे बड़ी मंडी शिमोगा (कर्नाटक) में हर हफ्ते 600-700 बैग (70 किलो प्रति बैग) की आवक हो रही है। कारोबारियों का कहना है कि नई फसल की गुणवत्ता फिलहाल अच्छी नहीं है। सुपारी में अगर एक फीसदी से ज्यादा नमी पाई जाए तो उसकी क्वॉलिटी अच्छी नहीं मानी जाती। कारोबारी फिलहाल 'देखो और इंतजार करो' की नीति अपना रहे हैं। उनका कहना है कि नई फसल के आने तक इस कारोबार में तेजी नहीं आएगी। (BS Hindi)
25 सितंबर 2008
रफ्ता-रफ्ता बदल रही श्रद्धानंद बाजार की तस्वीर
दिल्ली का दिल, यानी पुरानी दिल्ली। और पुरानी दिल्ली में बसा खाद्य तेल और घी का बाजार- श्रद्धानंद मार्केट। कंधे से कंधा टकराना, जुगाली करते बैल, हटा बाबू जी-हटा जा भाई साहब की आवाजें और तेलों की महक। बाजार में यह नजारा आम होता है। बंटवार के बाद पाकिस्तान से जो लोग आए, उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नई दिल्ली और पुरानी दिल्ली रलवे स्टेशन के बीच व्यापार करने के लिए जगह दी थी। तब लोग यहां पटरी लगा कर सामान बेचते थे। बाजार की स्थापना 1951 में हुई। 62 साल के सरदार अजीत सिंह यहां तेल के एक प्रमुख व्यापारी हैं। 1968 से वह इस धंधे में हैं। 1947 में उनके पिता स्वर्गीय सरदार अतर सिंह ने यहां पटरी पर सामान बेचना शुरू किया था। बाजार बना तो उन्हें सात फुट चौड़ी व 14 फुट लम्बी एक दुकान किराए पर मिली। तब किराया महज दो रुपये प्रति माह था। समय के साथ किराया बढ़ा और बढ़ते-बढ़ते 24 रुपये रुपये प्रति माह हो गया।पहले यहां माल ऊंटों पर लाया जाता था। बाद में उनकी जगह बैलगाड़ी व तांगे ने ले ली। अब ट्रकों, टैंकरों और रेलगाड़ियों से सामान लाया जाता है। हालांकि मार्किट में भीड़-भाड़ होने के कारण अंदर गलियों में अब भी हाथ ठेले ही चलते हैं। मेन रोड पर भी बैलगाड़ी से सामान उतारते पल्लेदार मिलेंगे। पिछले 40 सालों में सरदार अजीत सिंह ने यहां काफी कुछ बदलते देखा है, अगर कुछ नहीं बदला है तो वो हैं पल्लेदार। ये पल्लेदार मिनटों में गाड़ी लोड करते हैं और मिनटों में ही खाली कर देते हैं। सरदार अजीत सिंह ने बताया कि आज भी यहां दुकानों का किराया 16 से 24 रुपये है। एक फर्क जरूर आया है। पहले दुकानों का मालिकाना हक बदलने में एमसीडी को 1000 रुपये देने पड़ते थे, अब इसके लिए 25 हजार रुपये देने पड़ते हैं। श्रद्धानंद रोड और इसके आसपास तेल-तिलहन और घी की करीब 100 दुकानें हैं। आपको यहां स्कूटर, बाबा, कलश, इंजन, पी-मार्का, ध्रुव जैसे खाद्य तेल और पनघट, झूला, मुरली, अंबुजा जैसे रिफाइंड तेल के सभी ब्रांड थोक भाव में मिल जाएंगे।यह बाजार नई दिल्ली रलवे स्टेशन से महज एक किलोमीटर और पुरानी दिल्ली से डेढ़ किलोमीटर के फासले पर है। अंतर्राष्ट्रीय बस अड्डे से इसकी दूरी करीब तीन किलोमीटर है। राजधानी के दूसरे इलाकों से यहां आने का सबसे बढ़िया साधन है मेट्रो रेल। चावड़ी बाजार, अजमेरी गेट, चांदनी चौक व तीस हजारी के मेट्रो स्टेशनों से इसकी दूरी चंद मिनटों की है। समय के साथ बदला तो बहुत कुछ, नहीं बदलीं तो मूलभूत सुविधाएं। गंदगी का आलम ये है कि आपको जगह-जगह नाक पर रूमाल रखना पड़ेगा। जहां-तहां कूड़े का ढेर। पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं। एमसीडी व दिल्ली सरकार को यहां के व्यापारियों से करोड़ों की कमाई तो हो रही है, लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है। सरआम अपराध की खबरें भी अक्सर सुनने को मिलती रहती हैं। लाहोरी गेट थाना बाजार के बीच में है, इसके बावजूद यहां नशेड़ियों व उठाइगीरों का बोलबाला रहता है। नबी करीम तांगा स्टैंड के पीछे हजारों झुग्गी-झोपड़ी हैं, जहां सर आम नशे का कारोबार होता है।पार्किग की कोई जगह न होने के कारण आपको जहां-तहां आड़ी-तिरछी गाड़ियां मिल जाएंगी। जब यहां व्यापार शुरू हुआ तो दिल्ली के आसपास के लोग ही तेल व घी खरीदने यहां आते थे। आज यहां रोजाना लाखों लोग दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से कारोबार के सिलसिले में आते हैं। वर्तमान में यहां से लगभग पूर भारत में व्यापार हो रहा है। एक तरह से कहा जाये तो दिल्ली बाजार में खुलने वाले घी व तेल के भावों को देखकर ही अन्य राज्यों के भाव तय होते हैं। एक और व्यापारी हेंमत गुप्ता ने बताया कि दूसरे शहरों को व्यापारी पहले चिटठी के माध्यम से माल मंगवाते थे। उसके बाद लैंड लाइन फोन का जमाना आया और अब मोबाइल और इंटरनेट के जरिए बुकिंग होती है। 1960 में दिल्ली वैजिटेबल ऑयल ट्रेडर्स एसोसिएशन (डिवोटा) का गठन किया गया। तब 30-40 व्यापारी ही इसके सदस्य थे। अब यह संख्या बढ़कर करीब 400 हो गई है। भारत में हर साल तेल-तिलहन पर दो सम्मेलन रबी व खरीफ सीजन में किये जाते हैं। इसमें डिवोटा का अहम योगदान होता है। (Business Bhaskar.......R S Rana)
रबी का रकबा 30 लाख हैक्टेयर बढ़ाने के प्रयास
खरीफ फसलों के बुवाई क्षेत्रफल में आई कमी की भरपाई के लिए रबी सीजन की बुवाई का लक्ष्य 30 लाख हैक्टेयर बढ़ाकर 532.94 लाखहैक्टेयर तय किया गया है। बीते वर्ष देश में 502.87 लाख हैक्टेयर में रबी फसलों की बुवाई हुई थी। यह जानकारी केंद्रीय कृषि आयुक्त एन बी सिंह ने दी है। गेहूं की बुवाई का लक्ष्य तीन लाख हैक्टेयर बढ़ाकर 285 लाख हैक्टेयर, दलहन का 15 लाख हैक्टेयर बढ़ाकर 137.16 लाख हैक्टेयर, मक्का का पांच लाख हैक्टेयर बढ़ाकर 16.28 लाख हैक्टेयर तथा ज्वार का सात लाख हैक्टेयर बढ़ाकर 50.62 लाख हैक्टेयर रखा गया है। धान का बुवाई का लक्ष्य रबी सीजन में गत वर्ष के समान 43.80 लाख हैक्टेयर ही है।एन बी सिंह ने बताया कि वर्ष 1998-99 के बाद से अभी तक रबी फसलों का उत्पादन 109.70 मिलियन टन के आसपास ही ठहरा हुआ है जबकि खरीफ सीजन में जरूर 18 मिलियन टन की बढ़ोतरी होकर उत्पादन 120.97 मिलियन टन हो गया। पूरे देश में मानसून अच्छा होने से जमीन में नमी होने के कारण रबी में अच्छे उत्पादन की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि मध्य और पश्चिमी भारत में जल्दी बुवाई शुरू होने के कारण दलहन व तिलहनों के उत्पादन में बढ़ोतरी हो सकती है। हालांकि कुछेक क्षेत्रों में नमी की मात्रा ज्यादा होने के कारण बुवाई देर से शुरू हो पाएगी। इस मौके पर कृषि सचिव टी नंद कुमार ने कहा कि खरीफ सीजन के बुवाई क्षेत्रफल में आई कमी की भरपाई रबी सीजन में पूरी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि खरीफ में जो 20-30 लाख हैक्टेयर की कमी आई है उसकी पूर्ति रबी में कर सकते हैं।देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी तथा बाढ़ प्रबंधन प्रणाली की सख्त आवश्यकता है। बाढ़ से बिहार में तीन लाख हैक्टेयर मक्का की फसल तबाह हो गई, तथा बाढ़ ने मक्का व धान को काफी नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि इस बार ज्यादा किसानों को ऋण उपलब्ध कराया जाएगा। इसके अलावा 67000 करोड़ रुपये पहले ही ऋण प्रदान किए गए हैं तथा इसमें 364 करोड़ की किसानों को राहत मिलेगी।मंत्रालय गेहूं, चावल व दलहन उत्पादन की बढ़ोतरी में होने वाली चुनौतियों का अध्ययन कर रहा है। जिन राज्यों में हाईब्रिड किस्म के चावल की कमी है उनकी पहचान की जा रही है। इसी तरह से गेहूं के बीज जोकि पिछले 10 साल से बदले नहीं गए हैं तथा दालों में भी उत्पादन कैसे बढ़े, ये देखने की बात है। इस मौके पर पशुपालन सचिव प्रदीप कुमार पशुओं की उत्पादकता में सुधार लाने के लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना में जोर देने की बात कही। पशुचारे को मुख्य फसलों में शामिल करना चाहिए। (Business Bhaskar)
पंजाब में 29 सितंबर से शुरू होगी धान खरीद
नई दिल्ली। केंद्र सरकार इस महीने की 29 तारीख से पंजाब में धान की सरकारी खरीद शुरू कर देगा। सरकार हरियाणा में इससे पहले से ही खरीद शुरू कर चुकी है। मंडियों में नई फसल की आवक शुरू हो जाने से सरकारी खरीद पिछले साल के मुकाबले पहले शुरू हो रही है। आमतौर पर राज्य में वर्ष के एक अक्टूबर से धान की खरीद शुरू होती है और यह अगले साल सितंबर तक जारी रहती है। दूसर राज्यों में खरीद का काम उन राज्यों की मंडियों में आवक के साथ शुरू किया जाएगा। हाल की हुई बारिश की वजह से कुछ राज्यों में फसल खराब हो सकती है। लेकिन यह नुकसान कितना है, इसके बार में सही रिपोर्ट राज्यों सरकारों के आंकलन के बाद ही मिल पाएगा। पंजाब में आवक शुरू होने की वजह से ही सरकार को यह कदम उठाना पड़ा है। हालांकि यह आवक काफी कम हो रही है।राज्य की मंडियों में 17 अक्टूबर के बाद से आवक में तेजी आने की संभावना है। राज्य के कुछ इलाकों में देर हुई धान की रोपाई की वजह से कुछ देरी हो सकती है। दरअसल राज्य के उत्पादक इलाकों में भूमिगत जल का सतह नीचे जाने की वजह से राज्य सरकार ने दस जून से पहले धान की बुवाई पर रोक लगाई थी। इस वजह से कुछ किस्मों को तैयार होने में देरी हो सकती है। चालू साल के दौरान केंद्र सरकार ने करीब 277 लाख टन धान की खरीद कर चुकी है। फूड कारपोरशन ऑफ इंडिया के सूत्रों के मुताबिक इस साल 30 सितंबर तक सरकार करीब 278 लाख टन धान की खरीद कर सकती है। (Business Bhaskar)
कम स्टॉक और त्यौहारी मांग से सरसों में तेजी
उत्पादक मंडियों में स्टॉक कम होने के साथ ही त्यौहारी मांग निकलने से सरसों व सरसों तेल के भावों में तेजी का रुख बना हुआ है। स्थानीय बाजार में पिछले एक सप्ताह में जहां 42 प्रतिशत कंडीशन की सरसों के भावों में 175 रुपये की तेजी के साथ भाव 3150 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। वहीं सरसों तेल के भावों में इस दौरान 500 रुपये की तेजी आकर भाव 6700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। बिहार, पश्चिम बंगाल व असम की मांग अक्टूबर में भी जारी रहने की उम्मीद है जिससे इसके भावों में अभी तेजी कायम रह सकती है।लारेंस रोड स्थित मैसर्स अशोका ट्रेडर्स के अशोक कुमार ने बिजनेस भास्कर को बताया कि गत वर्ष देश में सरसों का उत्पादन 50 लाख टन का हुआ था जबकि बकाया स्टॉक मात्र 4 लाख टन ही होने के कारण कुल उपलब्धता 54 लाख टन थी। देश में सरसों की औसतन खपत हर माह 5 लाख टन की मानी जाती है, इस हिसाब से नई फसल आने के बाद से अभी तक करीब 34 से 35 लाख टन सरसों की पिराई हो चुकी है तथा मंडियों में मात्र 19 से 20 लाख टन का स्टॉक ही बचा हुआ है जबकि नई फसल की आवक 15 फरवरी के बाद ही बन पाएगी। अत: नई फसल आने तक घरेलू खपत के लिए 22 से 25 लाख टन सरसों की आवश्यकता होगी। इसके परिणाम स्वरूप ही स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम आने व त्यौहारी मांग निकलने से सरसों व सरसों तेल में तेजी बनी हुई है।उन्होंने बताया कि सरसों के प्रमुख उत्पादक राज्यों राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश व गुजरात में सितंबर में अच्छी वर्षा हुई है जिससे इसके बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी होना निश्चित है। वैसे भी सरसों के वर्तमान भाव किसानों को इसकी बुवाई की तरफ आकर्षित करेंगे। उत्पादक राज्यों में मौसम अनुकूल बना हुआ है तथा नवरात्रों के बाद सरसों की बुवाई शुरू हो जाएगी। पश्चिम बंगाल के सरसों तेल मिल मालिक आलोक चौधरी ने बताया कि उत्पादक राज्यों की मंडियों में सरसों के भावों में आई तेजी का असर पश्चिम बंगाल में भी देखा जा रहा है। पिछले एक सप्ताह में यहां सरसों के भावों में 150 रुपये की तेजी आकर नॉन कंडीशन सरसों के भाव 3250 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। उन्होंने बताया कि अक्टूबर तक त्यौहारी मांग जारी रहने से इसमें तेजी तो बनी रह सकती है लेकिन नवंबर में बुवाई की खबरें आनी शुरू हो जाएगी, चूंकि उत्पादक राज्यों में मौसम बुवाई के अनुकूल है इसलिए बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी हो सकती है। अत: फिर भावों में गिरावट आने की संभावना है। (Business Bhaskar...R S Rana)
रबी के बीजों की हो सकती है भारी कमी
नई दिल्ली : रबी की फसल की बुआई के समय इस बार देश के कई राज्यों को प्रमाणित बीजों की भारी कमी से दो-चार होना पड़ सकता है। राष्ट्रीय बीज योजना के तहत रबी की फसल के लिए इस साल जितनी बीजों की जरूरत बताई गई थी, उसके मुकाबले काफी कम बीजों की सप्लाई की आशंका जताई जा रही है। गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम और मेघालय में बीजों की किल्लत सबसे ज्यादा हो सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके कारण अच्छे मानसून, खाद की बढ़ती खपत और कृषि योग्य जमीन में नमी के बावजूद रबी की पैदावार में भारी कमी का खतरा पैदा हो गया है। कुल मिलाकर इस साल रबी की फसल की बुआई के समय 258,87 लाख क्विंटल बीजों की जरूरत होगी, जबकि आपूतिर् में इससे 44.90 लाख क्विंटल की कमी रह सकती है। धान, ज्वार और दालों (चना, मसूर, अरहर) में यह कमी सबसे ज्यादा होगी, जबकि उड़द, तिल और दूसरे तिलहनों में भी बीजों की आंशिक कमी होने का अनुमान है। रबी की बुआई में केवल अनाज की फसलों के लिए 184.77 लाख क्विंटल बीजों की जरूरत होने का अनुमान है, जबकि इसमें 34.47 लाख क्विंटल बीजों की कमी का सामना करना पड़ेगा। यह स्थिति तब है जब वर्ष 2005-06 के मुकाबले अनाज के इन बीजों की खपत दोगुनी हो गई है। तिलहन फसलों में सबसे ज्यादा सूरजमुखी के बीजों की कमी होगी। जो कुछ कसर बाकी रह गई थी वह लगातार दूसरे साल आयोजित 2 दिवसीय रबी कैंपेन ने पूरी कर दी। कैंपेन में पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में गेहूं की पैदावार में आ रहे ठहराव को लेकर चेतावनी दी गई। जहां पिछले कुछ सालों तक रबी की फसल के कुल उत्पादन में गेहूं की हिस्सेदारी 73 फीसदी से ज्यादा होती थी, उसके अब 72 फीसदी या इससे रहने का अनुमान है। (ET Hindi)
20 फीसदी महंगा हो सकता है खाद्य तेल
मुंबई September 24, 2008
आगामी पर्व-त्योहारों के मद्देनजर मांग बढ़ने और कड़ी आपूर्ति के चलते खाद्य तेलों की लगभग सभी किस्मों में 20 फीसदी की तेजी की उम्मीद है।उल्लेखनीय है कि दीवाली, दशहरा और ईद के वक्त देश में विभिन्न उत्पादों की मांग कई गुनी बढ़ जाती है जो नए साल आने तक चलती रहती है। इस बार तो खाद्य तेल की आपूर्ति भी सीमित रह रही है। ऐसे में पूरी उम्मीद है कि तेल की कीमतें तेज रहेगी। धारा वेजिटेबल ऑयल एंड फूड्स कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एच. सी. विरमानी ने बताया कि फिलहाल तेल की कीमत अपेक्षाकृत कम है जिसके निकट भविष्य में चढ़ने की उम्मीद है।आयात के जरिए लोगों की जरूरतें पूरी करने वाले जिंसों में सबसे संवेदनशील खाद्य तेल की कीमतें पिछले चार-पांच महीनों में 25 से 30 फीसदी तक लुढ़क चुकी है। जानकारों के अनुसार, दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के सुस्त होने से लोगों की खरीदने की क्षमता में कमी हुई है जिससे तेल की कीमतें घटी हैं।लेकिन भारत से मांग में हुई जबरदस्त बढ़ोतरी से तेल अब फिर से मजबूत होने लगा है खासकर मलयेशिया और इंडोनेशिया में।मलयेशिया में दिसंबर डिलिवरी के पाम तेल में एक पखवाड़ा पहले की तुलना में 5 फीसदी की मजबूती दर्ज हुई। मलयेशियाई डेरिवेटिव एक्सचेंज में मंगलवार को मजबूती के बाद तेल के भाव 706 डॉलर प्रति टन तक चले गए। जानकारों के अनुसार, न्यू यॉर्क मकर्टाइल एक्सचेंज में कच्चे तेल की कीमतों में 9 फीसदी की मजबूती हुई और तेल के भाव 108 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए। पाम तेल में मजबूती की एक और वजह मलयेशिया में ऑर्डर का लगभग सभी जगहों से आना है। निर्यात के ऑर्डर इंडोनेशिया को भी खूब मिल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इन दोनों देशों में पूरी दुनिया के कुल 90 फीसदी वनस्पति तेल का उत्पादन होता है। जानकारों के मुताबिक, मलेशिया में पाम तेल का उत्पादन 2008 सीजन के दौरान घटने की उम्मीद है। लेकिन बायोईंधन बनाने के लिए पाम तेल की मांग बढ़ने और जिंसों के भाव चढ़ने से पाम तेल के मूल्य बढ़ने की उम्मीद है। भारत में आपूर्ति बढ़ाने और बढ़ी कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की फर्म एमएमटीसी लिमिटेड 18,500 टन पाम तेल के आयात की निविदाएं जारी कर चुकी है।देश में सालाना 1.25 से 1.3 करोड़ टन खाद्य तेलों की खपत पूरा करने के लिए करीब 55 लाख टन खाद्य तेल मंगाए जाते हैं।हालांकि इस साल खरीफ सीजन के तिलहनों के बंपर उत्पादन अनुमान के बावजूद तेल के आयात में कोई कमी होने के आसार नहीं हैं। मानूसन के बेहतर रहने से इस साल खाद्य तेलों के रकबे में खासी वृद्धि हुई है। पिछले साल के मुकाबले तिलहन का रकबा इस साल 2.51 प्रतिशत यानी 4.5 लाख हेक्टेयर बढ़ा है और यह 179 लाख हेक्टेयर तक चले जाने का अनुमान है। कारगिल इंडिया लिमिटेड के खाद्य तेलों के सीईओ सीरज चौधरी का मानना है कि अभी ज्यादातर अनुबंधों में डिफॉल्ट हो रहा है क्योंकि जब कारोबार बूम पर चल रहा हो तब कारोबारी ऊंची बोली लगा रहे हैं। दूसरी बात कि वितरक कीमतों के गिरने के चलते ऑर्डर नहीं उठा रहे हैं। ऐसे में त्योहारों के बाद तात्कालिक उछाल थम सा जाएगा। जब वितरक अपने सुरक्षित भंडार को खपाएंगे तब बाजार में इसकी उपलब्धता बढ़ेगी। (BS Hindi)
आगामी पर्व-त्योहारों के मद्देनजर मांग बढ़ने और कड़ी आपूर्ति के चलते खाद्य तेलों की लगभग सभी किस्मों में 20 फीसदी की तेजी की उम्मीद है।उल्लेखनीय है कि दीवाली, दशहरा और ईद के वक्त देश में विभिन्न उत्पादों की मांग कई गुनी बढ़ जाती है जो नए साल आने तक चलती रहती है। इस बार तो खाद्य तेल की आपूर्ति भी सीमित रह रही है। ऐसे में पूरी उम्मीद है कि तेल की कीमतें तेज रहेगी। धारा वेजिटेबल ऑयल एंड फूड्स कंपनी लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एच. सी. विरमानी ने बताया कि फिलहाल तेल की कीमत अपेक्षाकृत कम है जिसके निकट भविष्य में चढ़ने की उम्मीद है।आयात के जरिए लोगों की जरूरतें पूरी करने वाले जिंसों में सबसे संवेदनशील खाद्य तेल की कीमतें पिछले चार-पांच महीनों में 25 से 30 फीसदी तक लुढ़क चुकी है। जानकारों के अनुसार, दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं के सुस्त होने से लोगों की खरीदने की क्षमता में कमी हुई है जिससे तेल की कीमतें घटी हैं।लेकिन भारत से मांग में हुई जबरदस्त बढ़ोतरी से तेल अब फिर से मजबूत होने लगा है खासकर मलयेशिया और इंडोनेशिया में।मलयेशिया में दिसंबर डिलिवरी के पाम तेल में एक पखवाड़ा पहले की तुलना में 5 फीसदी की मजबूती दर्ज हुई। मलयेशियाई डेरिवेटिव एक्सचेंज में मंगलवार को मजबूती के बाद तेल के भाव 706 डॉलर प्रति टन तक चले गए। जानकारों के अनुसार, न्यू यॉर्क मकर्टाइल एक्सचेंज में कच्चे तेल की कीमतों में 9 फीसदी की मजबूती हुई और तेल के भाव 108 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए। पाम तेल में मजबूती की एक और वजह मलयेशिया में ऑर्डर का लगभग सभी जगहों से आना है। निर्यात के ऑर्डर इंडोनेशिया को भी खूब मिल रहे हैं। उल्लेखनीय है कि इन दोनों देशों में पूरी दुनिया के कुल 90 फीसदी वनस्पति तेल का उत्पादन होता है। जानकारों के मुताबिक, मलेशिया में पाम तेल का उत्पादन 2008 सीजन के दौरान घटने की उम्मीद है। लेकिन बायोईंधन बनाने के लिए पाम तेल की मांग बढ़ने और जिंसों के भाव चढ़ने से पाम तेल के मूल्य बढ़ने की उम्मीद है। भारत में आपूर्ति बढ़ाने और बढ़ी कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की फर्म एमएमटीसी लिमिटेड 18,500 टन पाम तेल के आयात की निविदाएं जारी कर चुकी है।देश में सालाना 1.25 से 1.3 करोड़ टन खाद्य तेलों की खपत पूरा करने के लिए करीब 55 लाख टन खाद्य तेल मंगाए जाते हैं।हालांकि इस साल खरीफ सीजन के तिलहनों के बंपर उत्पादन अनुमान के बावजूद तेल के आयात में कोई कमी होने के आसार नहीं हैं। मानूसन के बेहतर रहने से इस साल खाद्य तेलों के रकबे में खासी वृद्धि हुई है। पिछले साल के मुकाबले तिलहन का रकबा इस साल 2.51 प्रतिशत यानी 4.5 लाख हेक्टेयर बढ़ा है और यह 179 लाख हेक्टेयर तक चले जाने का अनुमान है। कारगिल इंडिया लिमिटेड के खाद्य तेलों के सीईओ सीरज चौधरी का मानना है कि अभी ज्यादातर अनुबंधों में डिफॉल्ट हो रहा है क्योंकि जब कारोबार बूम पर चल रहा हो तब कारोबारी ऊंची बोली लगा रहे हैं। दूसरी बात कि वितरक कीमतों के गिरने के चलते ऑर्डर नहीं उठा रहे हैं। ऐसे में त्योहारों के बाद तात्कालिक उछाल थम सा जाएगा। जब वितरक अपने सुरक्षित भंडार को खपाएंगे तब बाजार में इसकी उपलब्धता बढ़ेगी। (BS Hindi)
3 महीने में 25 फीसदी लुढ़की हल्दी
डुग्गीरला September 24, 2008
आंध्र प्रदेश में हल्दी की कीमतों में पिछले तीन महीनों में जबरदस्त कमी हुई है। इसके भाव प्रति क्विंटल 1,000 रुपये गिरकर 3,000 से 3,200 रुपये तक पहुंच गए हैं। उल्लेखनीय है कि जून में इसका भाव 3,900 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल के बीच था। ऑनलाइन सट्टेबाजों को इस गिरावट के लिए दोषी ठहराते हुए किसानों का कहना है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बाजारों में सितंबर अंत तक गर्मी बनी रह सकती है और कीमतें तब तक चढ़ती रहेंगी। इसके अलावा, अक्टूबर में बांग्लादेश से भी निर्यात ऑर्डर मिलने की गुंजाइश है जबकि दुबई के निर्यात का हाल भी अच्छा है। अनुमान है कि नवंबर और दिसंबर में हल्दी की कीमतें 5,100 से 5,200 रुपये तक चली जाएंगी। प्रारंभिक अनुमानों के मुताबिक, आने वाले सीजन में 44 लाख बोरी (1 बोरी=70 किलोग्राम) हल्दी पैदा हो सकती है।मौजूदा सीजन में भी लगभग इतनी ही हल्दी पैदा हुई है। आंध्र प्रदेश के निजामाबाद और वारंगल में हल्दी जहां 3,500 से 3,600 रुपये में बिक रहा है वहीं कडप्पा में हल्दी 3,400 से 3,500 रुपये प्रति क्विंटल में उपलब्ध है।हालांकि दूसरे राज्यों में हल्दी की कीमतों में तेजी देखी जा रही है। तमिलनाडु के इरोड में हल्दी की कीमतें 4,500 से 4,700 रुपये प्रति क्विंटल जबकि महाराष्ट्र में 3,500 से 4,500 रुपये के बीच चल रही है। इरोड में इस बार हल्दी की कीमत पिछले साल से 15 फीसदी ऊंचे चल रहे हैं। उड़ीसा में हल्दी की कीमतें 3,000 रुपये के आसपास चल रही है।किसानों का मक्का और कपास की ओर रुख करने से हल्दी की कीमतें इस बार पिछले पांच सालों में सबसे अच्छी चल रही है। (BS Hindi)
आंध्र प्रदेश में हल्दी की कीमतों में पिछले तीन महीनों में जबरदस्त कमी हुई है। इसके भाव प्रति क्विंटल 1,000 रुपये गिरकर 3,000 से 3,200 रुपये तक पहुंच गए हैं। उल्लेखनीय है कि जून में इसका भाव 3,900 से 4,200 रुपये प्रति क्विंटल के बीच था। ऑनलाइन सट्टेबाजों को इस गिरावट के लिए दोषी ठहराते हुए किसानों का कहना है कि उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बाजारों में सितंबर अंत तक गर्मी बनी रह सकती है और कीमतें तब तक चढ़ती रहेंगी। इसके अलावा, अक्टूबर में बांग्लादेश से भी निर्यात ऑर्डर मिलने की गुंजाइश है जबकि दुबई के निर्यात का हाल भी अच्छा है। अनुमान है कि नवंबर और दिसंबर में हल्दी की कीमतें 5,100 से 5,200 रुपये तक चली जाएंगी। प्रारंभिक अनुमानों के मुताबिक, आने वाले सीजन में 44 लाख बोरी (1 बोरी=70 किलोग्राम) हल्दी पैदा हो सकती है।मौजूदा सीजन में भी लगभग इतनी ही हल्दी पैदा हुई है। आंध्र प्रदेश के निजामाबाद और वारंगल में हल्दी जहां 3,500 से 3,600 रुपये में बिक रहा है वहीं कडप्पा में हल्दी 3,400 से 3,500 रुपये प्रति क्विंटल में उपलब्ध है।हालांकि दूसरे राज्यों में हल्दी की कीमतों में तेजी देखी जा रही है। तमिलनाडु के इरोड में हल्दी की कीमतें 4,500 से 4,700 रुपये प्रति क्विंटल जबकि महाराष्ट्र में 3,500 से 4,500 रुपये के बीच चल रही है। इरोड में इस बार हल्दी की कीमत पिछले साल से 15 फीसदी ऊंचे चल रहे हैं। उड़ीसा में हल्दी की कीमतें 3,000 रुपये के आसपास चल रही है।किसानों का मक्का और कपास की ओर रुख करने से हल्दी की कीमतें इस बार पिछले पांच सालों में सबसे अच्छी चल रही है। (BS Hindi)
30 फीसदी बढ़ेगा ग्वारसीड का उत्पादन!
मुंबई September 24, 2008
अच्छी बारिश और बेहतर पैदावर के कारण इस सीजन के दौरान देश में ग्वारसीड के उत्पादन में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। कारोबारी सूत्रों और कमोडिटी विश्लेषकों के अनुसार कुल उत्पादन 100 लाख बैग (1 बैग=100 किलो) होने की उम्मीद है जबकि पिछले वर्ष 75 लाख बैग का उत्पादन हुआ था। ग्वारसीड की बेहतर फसल की उम्मीद से वायदा बाजार के साथ-साथ हाजिर बाजार भी प्रभावित हुआ है। वायदा मूल्यों में इस महीने की शुरुआत से 8.4 प्रतिशत की कमी आई है। राजस्थान के श्रीगंगानगर में अभी बहुत कम परिमाण में आवक की शुरुआत हुई है जो लगभग 3,000 बैग का है। अक्टूबर मध्य से आवक में तेजी आने की उम्मीद है।बिकानेर के एक ग्वारसीड कारोबारी संजय पेरीवाल ने कहा, 'इस साल हमें उम्मीदहै कि फसल लगभग 110 लाख बैग का होगा। इस सीजन में हरियाणा का योगदान अहम है और बाजार को उम्मीद है कि इस राज्य से 40 लाख बैग आएंगे।' विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार इस सीजन में ग्वारसीड की गुणवत्ता और पैदावार बेहतर होगी। हालांकि, कमोडिटी विशेषज्ञों के अनुसार ग्वारसीड उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों में पिछले सप्ताह हुई अत्यधिक बारिश से फसल को कुछ क्षति पहुंच सकती है।एग्रीवाच कमोडिटीज के कमोडिटी विश्लेषक श्रीराम अय्यर ने कहा, 'फसल लगभग 100 लाख बैग होने की उम्मीद है।' राजस्थान में बारिश की कमी के कारण जुलाई मध्य तक बुआई नहीं हुई थी।उल्लेखनीय है कि राजस्थान ग्वारसीड का प्रमुख उत्पादक राज्य है। लेकिन जुलाई के अंत में जब बारिश की शुरुआत हुई तो अगस्त महीने में अच्छी बुआई हुई। राजस्थान, गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ग्वारसीड उत्पादक राज्य हैं। अनुमान है कि राजस्थान अकेले 50 लाख बैग का उत्पादन करेगा और शेष योगदान गुजरात एवं अन्य राज्यों का होगा।कारोबारियों के अनुसार, कुल मिलाकर ग्वारसीड के बाजार में ज्यादा नरमी नहीं आएगी। पेरीवाल ने कहा, 'ग्वारगम (ग्वारसीड का अंतिम उत्पाद) के निर्यात की मांग चीन और यूरोपीय बाजारों से अच्छी है। घरेलू बाजार के साथ-साथ निर्यात बाजार की खपत 100 लाख बैग की है। अगर ग्वारगम की कीमत 4,200 से 4,600 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहती है तो ग्वारसीड की कीमत 1,800 से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल तक जाएगी।' बीकानेर के भौतिक बाजार में ग्वारसीड की कीमत 1,630 रुपये प्रति क्विंटल के इर्द-गिर्द है जबकि जोधपुर के हाजिर बाजार में इसका कारोबार 1,750 रुपये प्रति क्विंटल पर किया जा रहा है। (BS Hindi)
अच्छी बारिश और बेहतर पैदावर के कारण इस सीजन के दौरान देश में ग्वारसीड के उत्पादन में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की उम्मीद है। कारोबारी सूत्रों और कमोडिटी विश्लेषकों के अनुसार कुल उत्पादन 100 लाख बैग (1 बैग=100 किलो) होने की उम्मीद है जबकि पिछले वर्ष 75 लाख बैग का उत्पादन हुआ था। ग्वारसीड की बेहतर फसल की उम्मीद से वायदा बाजार के साथ-साथ हाजिर बाजार भी प्रभावित हुआ है। वायदा मूल्यों में इस महीने की शुरुआत से 8.4 प्रतिशत की कमी आई है। राजस्थान के श्रीगंगानगर में अभी बहुत कम परिमाण में आवक की शुरुआत हुई है जो लगभग 3,000 बैग का है। अक्टूबर मध्य से आवक में तेजी आने की उम्मीद है।बिकानेर के एक ग्वारसीड कारोबारी संजय पेरीवाल ने कहा, 'इस साल हमें उम्मीदहै कि फसल लगभग 110 लाख बैग का होगा। इस सीजन में हरियाणा का योगदान अहम है और बाजार को उम्मीद है कि इस राज्य से 40 लाख बैग आएंगे।' विभिन्न रिपोर्ट के अनुसार इस सीजन में ग्वारसीड की गुणवत्ता और पैदावार बेहतर होगी। हालांकि, कमोडिटी विशेषज्ञों के अनुसार ग्वारसीड उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों में पिछले सप्ताह हुई अत्यधिक बारिश से फसल को कुछ क्षति पहुंच सकती है।एग्रीवाच कमोडिटीज के कमोडिटी विश्लेषक श्रीराम अय्यर ने कहा, 'फसल लगभग 100 लाख बैग होने की उम्मीद है।' राजस्थान में बारिश की कमी के कारण जुलाई मध्य तक बुआई नहीं हुई थी।उल्लेखनीय है कि राजस्थान ग्वारसीड का प्रमुख उत्पादक राज्य है। लेकिन जुलाई के अंत में जब बारिश की शुरुआत हुई तो अगस्त महीने में अच्छी बुआई हुई। राजस्थान, गुजरात, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश ग्वारसीड उत्पादक राज्य हैं। अनुमान है कि राजस्थान अकेले 50 लाख बैग का उत्पादन करेगा और शेष योगदान गुजरात एवं अन्य राज्यों का होगा।कारोबारियों के अनुसार, कुल मिलाकर ग्वारसीड के बाजार में ज्यादा नरमी नहीं आएगी। पेरीवाल ने कहा, 'ग्वारगम (ग्वारसीड का अंतिम उत्पाद) के निर्यात की मांग चीन और यूरोपीय बाजारों से अच्छी है। घरेलू बाजार के साथ-साथ निर्यात बाजार की खपत 100 लाख बैग की है। अगर ग्वारगम की कीमत 4,200 से 4,600 रुपये प्रति क्विंटल के बीच रहती है तो ग्वारसीड की कीमत 1,800 से 1,900 रुपये प्रति क्विंटल तक जाएगी।' बीकानेर के भौतिक बाजार में ग्वारसीड की कीमत 1,630 रुपये प्रति क्विंटल के इर्द-गिर्द है जबकि जोधपुर के हाजिर बाजार में इसका कारोबार 1,750 रुपये प्रति क्विंटल पर किया जा रहा है। (BS Hindi)
काली मिर्च की जबरदस्त किल्लत
कोच्चि September 24, 2008
काली मिर्च का बाजार पिछले तीन-चार सप्ताह से आपूर्ति की भारी कमी के दौर से गुजर रहा है, यद्यपि इस मसाले का कारोबार वायदा एक्सचेंजों में सक्रिय रूप से हो रहा है और इंडिया पीपर ऐंड स्पाइस ट्रेड एसोसिएशन (आईपीएसटीए) द्वारा हाजिर मूल्यों की सूचना दैनिक आधार पर उपलब्ध कराई जा रही है।छोटे और मंझोले किसानों तथा स्टॉकिस्टों के काली मिर्च का भंडार ख्त्म हो चुका है क्योंकि उनके पूरे भंडार की बिक्री पहले ही हो चुकी है। किसानों के अनुसार, केवल धनी किसान, जिन्हें अपने भंडार को खाली करने की कोई जल्दी नहीं है, ने काली मिर्च बचा कर रखा हुआ है। वास्तव में उनकी योजना फसल के अगले सीजन के दौरान मूल्य में होने वाली अनुमानित भारी बढ़ोतरी से लाभ कमाना है।इसके अतिरिक्त, नैशनल कमोडिटी एक्सचेंज के भंडार में सितंबर डिलिवरी के बाद 3,500 टन की कमी आई है और तबसे फार्मगेट काली मिर्च की उपलब्धता नहीं के बराबर है। दिसंबर तक, जब अगले सीजन की कटाई शुरू होती है, तब तक एक्सचेंज के भंडारगृहों में और काली मिर्च पहुंचने की उम्मीद कम है।आईपीएसटीए में कोई स्पॉट कारोबार नहीं चल रहा है और क्षेत्रीय एक्सचेंज पिछले कुछ महीनों से केवल सांकेतिक मूल्य उपलब्ध करा रहे हैं। इसकी वजह भारत में काली मिर्च के प्रमुख बाजार कोच्चि में आवक का कम होना है।एक बड़ी कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने बताया, 'अपने 25 सालों के कारोबारी अनुभव में मैंने इस तरह की परिस्थिति नहीं देखी है जहां हाजिर बाजार में कोई बेचने वाला नहीं है और स्टॉकिस्ट कीमतों के बारे में बात भी नहीं करना चाहते हैं। निकट माह के वायदा सौदों की कीमत आईपीएसटीए द्वारा प्रकाशित कीमतों की तुलना में काफी नीचे के स्तर पर आ गई थी।' उन्होंने कहा कि 20 साल पहले हम ऐसी परिस्थिति से रुबरू हुए थे जब वायदा कारोबार हाजिर मूल्यों से कम कीमत पर किया जा रहा था। (BS Hindi)
काली मिर्च का बाजार पिछले तीन-चार सप्ताह से आपूर्ति की भारी कमी के दौर से गुजर रहा है, यद्यपि इस मसाले का कारोबार वायदा एक्सचेंजों में सक्रिय रूप से हो रहा है और इंडिया पीपर ऐंड स्पाइस ट्रेड एसोसिएशन (आईपीएसटीए) द्वारा हाजिर मूल्यों की सूचना दैनिक आधार पर उपलब्ध कराई जा रही है।छोटे और मंझोले किसानों तथा स्टॉकिस्टों के काली मिर्च का भंडार ख्त्म हो चुका है क्योंकि उनके पूरे भंडार की बिक्री पहले ही हो चुकी है। किसानों के अनुसार, केवल धनी किसान, जिन्हें अपने भंडार को खाली करने की कोई जल्दी नहीं है, ने काली मिर्च बचा कर रखा हुआ है। वास्तव में उनकी योजना फसल के अगले सीजन के दौरान मूल्य में होने वाली अनुमानित भारी बढ़ोतरी से लाभ कमाना है।इसके अतिरिक्त, नैशनल कमोडिटी एक्सचेंज के भंडार में सितंबर डिलिवरी के बाद 3,500 टन की कमी आई है और तबसे फार्मगेट काली मिर्च की उपलब्धता नहीं के बराबर है। दिसंबर तक, जब अगले सीजन की कटाई शुरू होती है, तब तक एक्सचेंज के भंडारगृहों में और काली मिर्च पहुंचने की उम्मीद कम है।आईपीएसटीए में कोई स्पॉट कारोबार नहीं चल रहा है और क्षेत्रीय एक्सचेंज पिछले कुछ महीनों से केवल सांकेतिक मूल्य उपलब्ध करा रहे हैं। इसकी वजह भारत में काली मिर्च के प्रमुख बाजार कोच्चि में आवक का कम होना है।एक बड़ी कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने बताया, 'अपने 25 सालों के कारोबारी अनुभव में मैंने इस तरह की परिस्थिति नहीं देखी है जहां हाजिर बाजार में कोई बेचने वाला नहीं है और स्टॉकिस्ट कीमतों के बारे में बात भी नहीं करना चाहते हैं। निकट माह के वायदा सौदों की कीमत आईपीएसटीए द्वारा प्रकाशित कीमतों की तुलना में काफी नीचे के स्तर पर आ गई थी।' उन्होंने कहा कि 20 साल पहले हम ऐसी परिस्थिति से रुबरू हुए थे जब वायदा कारोबार हाजिर मूल्यों से कम कीमत पर किया जा रहा था। (BS Hindi)
चावल खरीद ने बनाया रेकॉर्ड
नई दिल्ली September 24, 2008
वर्ष 2007-08 के खरीफ मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर से सितंबर) में चावल की सरकारी खरीद अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर चली गई है। सरकार का लक्ष्य इस दौरान 2.76 करोड़ टन चावल खरीदने का था लेकिन इसकी खरीद लक्ष्य से कहीं अधिक हुई है। अब तक करीब 2.79 करोड़ टन चावल खरीदा जा चुका है। भारतीय खाद्य निगम के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आलोक सिन्हा ने बताया कि सीजन खत्म होने में अभी हफ्ते भर की देर है लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि इस सीजन में 2.8 करोड़ टन चावल की खरीद हो जाएगी।2005-06 में जहां 2.76 करोड़ टन चावल सरकार ने खरीदा था वहीं 2006-07 में महज 2.51 करोड़ टन चावल की खरीद हो पाई थी।इस साल रबी सीजन में गेहूं ने भी खरीद का रेकॉर्ड बनाया जब तकरीबन 2.254 करोड़ टन गेहूं सरकारी एजेंसियों ने किसानों से खरीदे। इस तरह खाद्यान्न की कुल खरीद मौजूदा सीजन में 5.044 करोड़ टन तक पहुंच गई है। मालूम हो कि खरीदे गए अनाज का इस्तेमाल जनवितरण प्रणाली के जरिए कई कल्याणकारी लोगों को सस्ते दर पर मुहैया कराने में होता है। जानकारों के मुताबिक, चावल की रेकॉर्ड खरीद से गेहूं की तरह चावल की भी खुली बिक्री कर सकेगी। मालूम हो कि ओपेन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के तहत सरकार बाजार में गेहूं की बिक्री कर रही है। 21 अगस्त को केंद्र की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गेहूं के साथ-साथ चावल की भी खुली बिक्री की इजाजत दे दी थी।हालांकि हस्तक्षेप का समय और मात्रा तय करने की जिम्मेदारी सरकार ने सचिवों की समिति पर छोड़ दी। चावल की खरीद हरियाणा और छत्तीसगढ़ को छोड़ बाकी सारे राज्यों में पिछले साल से ज्यादा रही है। हरियाणा में पिछले साल जहां 17.7 लाख टन चावल खरीदा गया वहीं इस साल महज 15.7 लाख टन की ही खरीद हो पायी। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 26.6 लाख टन चावल खरीदा गया है जबकि पिछले साल यहां 28.4 लाख टन चावल खरीदा गया था।केंद्रीय पूल में सबसे ज्यादा योगदान इस बार भी पंजाब ने दिया है। राज्य ने मौजूदा सीजन में 79 लाख टन चावल खरीदे हैं तो उससे ठीक पीछे आंध्र प्रदेश रहा है। आंध्र प्रदेश में 71.6 लाख टन चावल की खरीद हुई है। उत्तर प्रदेश का स्थान इसके बाद है जहां 28 लाख टन चावल खरीदा गया है।उल्लेखनीय है कि थोक मूल्य सूचकांक में चावल की हिस्सेदारी 25 से 30 फीसदी की है। इसकी कीमतों में 25 से 30 फीसदी का उछाल होने से महंगाई दर पर असर पड़ा जिसके चलते सरकार को गैर-बासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी के लिए मजबूर होना पड़ा।हालांकि इस महीने की शुरुआत में पूसा-1121 चावल के निर्यात को सरकार ने मंजूरी दे दी। 2007-08 खरीफ सीजन में नियम बनाया गया कि 10 हजार टन से अधिक चावल खरीदने पर राज्य सरकार को इसकी सूचना देनी होगी जबकि 25 हजार टन से अधिक खरीदारी करने पर सूचना केंद्रीय खाद्य विभाग को देने का नियम बना दिया गया। (BS Hindi)
वर्ष 2007-08 के खरीफ मार्केटिंग सीजन (अक्टूबर से सितंबर) में चावल की सरकारी खरीद अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर चली गई है। सरकार का लक्ष्य इस दौरान 2.76 करोड़ टन चावल खरीदने का था लेकिन इसकी खरीद लक्ष्य से कहीं अधिक हुई है। अब तक करीब 2.79 करोड़ टन चावल खरीदा जा चुका है। भारतीय खाद्य निगम के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आलोक सिन्हा ने बताया कि सीजन खत्म होने में अभी हफ्ते भर की देर है लिहाजा उम्मीद की जा रही है कि इस सीजन में 2.8 करोड़ टन चावल की खरीद हो जाएगी।2005-06 में जहां 2.76 करोड़ टन चावल सरकार ने खरीदा था वहीं 2006-07 में महज 2.51 करोड़ टन चावल की खरीद हो पाई थी।इस साल रबी सीजन में गेहूं ने भी खरीद का रेकॉर्ड बनाया जब तकरीबन 2.254 करोड़ टन गेहूं सरकारी एजेंसियों ने किसानों से खरीदे। इस तरह खाद्यान्न की कुल खरीद मौजूदा सीजन में 5.044 करोड़ टन तक पहुंच गई है। मालूम हो कि खरीदे गए अनाज का इस्तेमाल जनवितरण प्रणाली के जरिए कई कल्याणकारी लोगों को सस्ते दर पर मुहैया कराने में होता है। जानकारों के मुताबिक, चावल की रेकॉर्ड खरीद से गेहूं की तरह चावल की भी खुली बिक्री कर सकेगी। मालूम हो कि ओपेन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के तहत सरकार बाजार में गेहूं की बिक्री कर रही है। 21 अगस्त को केंद्र की आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने गेहूं के साथ-साथ चावल की भी खुली बिक्री की इजाजत दे दी थी।हालांकि हस्तक्षेप का समय और मात्रा तय करने की जिम्मेदारी सरकार ने सचिवों की समिति पर छोड़ दी। चावल की खरीद हरियाणा और छत्तीसगढ़ को छोड़ बाकी सारे राज्यों में पिछले साल से ज्यादा रही है। हरियाणा में पिछले साल जहां 17.7 लाख टन चावल खरीदा गया वहीं इस साल महज 15.7 लाख टन की ही खरीद हो पायी। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां 26.6 लाख टन चावल खरीदा गया है जबकि पिछले साल यहां 28.4 लाख टन चावल खरीदा गया था।केंद्रीय पूल में सबसे ज्यादा योगदान इस बार भी पंजाब ने दिया है। राज्य ने मौजूदा सीजन में 79 लाख टन चावल खरीदे हैं तो उससे ठीक पीछे आंध्र प्रदेश रहा है। आंध्र प्रदेश में 71.6 लाख टन चावल की खरीद हुई है। उत्तर प्रदेश का स्थान इसके बाद है जहां 28 लाख टन चावल खरीदा गया है।उल्लेखनीय है कि थोक मूल्य सूचकांक में चावल की हिस्सेदारी 25 से 30 फीसदी की है। इसकी कीमतों में 25 से 30 फीसदी का उछाल होने से महंगाई दर पर असर पड़ा जिसके चलते सरकार को गैर-बासमती चावल के निर्यात पर पाबंदी के लिए मजबूर होना पड़ा।हालांकि इस महीने की शुरुआत में पूसा-1121 चावल के निर्यात को सरकार ने मंजूरी दे दी। 2007-08 खरीफ सीजन में नियम बनाया गया कि 10 हजार टन से अधिक चावल खरीदने पर राज्य सरकार को इसकी सूचना देनी होगी जबकि 25 हजार टन से अधिक खरीदारी करने पर सूचना केंद्रीय खाद्य विभाग को देने का नियम बना दिया गया। (BS Hindi)
साल के अंत तक 115 डॉलर पर होगा कच्चा तेल : एसोचैम
नई दिल्ली September 24, 2008
इस साल के अंत तक कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर 115 डॉलर के आसपास चली जाएगी। यह अनुमान एसोचैम ने जारी किए हैं। एसोचैम का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतें मौजूदा 100 डॉलर पर ही नहीं रुकेगी। इसमें वृद्धि की पूरी गुंजाइश है।इस उद्योग संगठन के प्रमुख सान जिंदल ने संभावना जताई कि निकट भविष्य में तेल का बाजार बहुत ज्यादा अस्थिर रहेगा। इसकी मुख्य वजह तेल उत्पादक देशों के बीच तनाव पैदा होने की उम्मीद है। इसके चलते सट्टेबाजी गतिविधियां बढ़ सकती हैं। एसोचैम को उम्मीद है कि कड़ी मांग और आपूर्ति के चलते लंबी अवधि के लिए कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आएगी। पिछले कुछ सालों में भारत और चीन जैसे विकासशील देशों से कच्चे तेल की मांग खासी बढ़ी है और उम्मीद है कि इसमें आगे भी तेजी बनी रहेगी।हालांकि एसोचैम का मानना है कि अमेरिकी मंदी से कई दूसरे देश खासकर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होगी जिससे तेल की मांग पर असर पड़ेगा। तेल की कीमतें बढ़ने से कई अर्थव्यवस्थाओं की तेल मांग घट सकती है। इसका तात्कालिक असर यह होगा कि कच्चा तेल 90 डॉलर तक गिर जाएगा। (BS Hindi)
इस साल के अंत तक कच्चे तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल को पार कर 115 डॉलर के आसपास चली जाएगी। यह अनुमान एसोचैम ने जारी किए हैं। एसोचैम का कहना है कि कच्चे तेल की कीमतें मौजूदा 100 डॉलर पर ही नहीं रुकेगी। इसमें वृद्धि की पूरी गुंजाइश है।इस उद्योग संगठन के प्रमुख सान जिंदल ने संभावना जताई कि निकट भविष्य में तेल का बाजार बहुत ज्यादा अस्थिर रहेगा। इसकी मुख्य वजह तेल उत्पादक देशों के बीच तनाव पैदा होने की उम्मीद है। इसके चलते सट्टेबाजी गतिविधियां बढ़ सकती हैं। एसोचैम को उम्मीद है कि कड़ी मांग और आपूर्ति के चलते लंबी अवधि के लिए कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आएगी। पिछले कुछ सालों में भारत और चीन जैसे विकासशील देशों से कच्चे तेल की मांग खासी बढ़ी है और उम्मीद है कि इसमें आगे भी तेजी बनी रहेगी।हालांकि एसोचैम का मानना है कि अमेरिकी मंदी से कई दूसरे देश खासकर विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होगी जिससे तेल की मांग पर असर पड़ेगा। तेल की कीमतें बढ़ने से कई अर्थव्यवस्थाओं की तेल मांग घट सकती है। इसका तात्कालिक असर यह होगा कि कच्चा तेल 90 डॉलर तक गिर जाएगा। (BS Hindi)
बर्ड फ्लू प्रभावित देशों से पोल्ट्री उत्पादों के आयात पर पाबंदी
नई दिल्ली September 24, 2008
भारत ने बर्ड फ्लू प्रभावित देशों से कुक्कुट, मांस और कई अन्य पशु उत्पादों के आयात पर पाबंदी लगा दी है। हालांकि, पक्षियों के मांस से तैयार होने वाले पालतू पशु आहार को इस पाबंदी से दूर रखा गया है। विदेश व्यापार महानिदेशालय के मुताबिक, बर्ड फ्लू प्रभावित देशों से जीवित कुक्कुट, चूजों, बत्तख और अन्य पक्षियों के मांस, अंडा, पंख सहित जीवित सुअर और अप्रसंस्कृत सुअर उत्पादों के आयात पर पाबंदी लगा दी गई है।वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रभावित देशों से आयात के लिए प्रतिबंधित अधिसूचित उत्पादों में पक्षियों और जानवरों के वे उत्पाद हैं जिनका इस्तेमाल जानवरों के आहार, कृषि या औद्योगिक कार्यों में किया जाता है।पाबंदी इनके पैथोलॉजिकल तथा जैव उत्पादों पर लगाई गई है। 2007 में भी इंडोनेशिया, ब्रिटेन, मिस्र, कंबोडिया, चीन, लाओस, नाइजीरिया से पक्षी फ्लू फैलने की खबरें आई थीं। हालांकि, यह प्रतिबंध सार्क देशों से आयात किए जाने वाले पैथोलॉजिकल और जैव उत्पादों पर लागू नहीं होगा, जिनका इस्तेमाल निदान और शोध के लिए किया जाता है। प्रभावित देशों से आयात पर प्रतिबंध के अलावा सरकार ने कई और चीजों के आयात पर रोक लगाई है। इनमें घरेलू और जंगली पक्षी (कुक्कुट आदि को छोड़कर), अप्रसंस्कृत मांस और पक्षियों के मांस और घरेलू तथा वन्य पक्षियों के शुक्र शामिल हैं। (BS Hindi)
भारत ने बर्ड फ्लू प्रभावित देशों से कुक्कुट, मांस और कई अन्य पशु उत्पादों के आयात पर पाबंदी लगा दी है। हालांकि, पक्षियों के मांस से तैयार होने वाले पालतू पशु आहार को इस पाबंदी से दूर रखा गया है। विदेश व्यापार महानिदेशालय के मुताबिक, बर्ड फ्लू प्रभावित देशों से जीवित कुक्कुट, चूजों, बत्तख और अन्य पक्षियों के मांस, अंडा, पंख सहित जीवित सुअर और अप्रसंस्कृत सुअर उत्पादों के आयात पर पाबंदी लगा दी गई है।वाणिज्य मंत्रालय द्वारा प्रभावित देशों से आयात के लिए प्रतिबंधित अधिसूचित उत्पादों में पक्षियों और जानवरों के वे उत्पाद हैं जिनका इस्तेमाल जानवरों के आहार, कृषि या औद्योगिक कार्यों में किया जाता है।पाबंदी इनके पैथोलॉजिकल तथा जैव उत्पादों पर लगाई गई है। 2007 में भी इंडोनेशिया, ब्रिटेन, मिस्र, कंबोडिया, चीन, लाओस, नाइजीरिया से पक्षी फ्लू फैलने की खबरें आई थीं। हालांकि, यह प्रतिबंध सार्क देशों से आयात किए जाने वाले पैथोलॉजिकल और जैव उत्पादों पर लागू नहीं होगा, जिनका इस्तेमाल निदान और शोध के लिए किया जाता है। प्रभावित देशों से आयात पर प्रतिबंध के अलावा सरकार ने कई और चीजों के आयात पर रोक लगाई है। इनमें घरेलू और जंगली पक्षी (कुक्कुट आदि को छोड़कर), अप्रसंस्कृत मांस और पक्षियों के मांस और घरेलू तथा वन्य पक्षियों के शुक्र शामिल हैं। (BS Hindi)
24 सितंबर 2008
बाहरी बाजरा बेचने वाले व्यापारियों पर होगी कार्रवाई
दूसर प्रदेशों से बाजरा लाकर हरियाणा की मंडियों में बेचने में लगे व्यापारियों पर सरकार ने पूरी तरह से नकेल कसने के लिए सख्त कदम उठा लिए हैं। क्षेत्र के किसानों के हक को दरकिनार कर बाजरा की खरीद फरोख्त से मुनाफाखोरी में लगे व्यापारियों पर राज्य काजिला प्रशासन न केवल पैनी नजर रखेंगे बल्कि पकड़ में आने पर व्यापारियों पर कार्रवाई की जाएगी। उनके वाहन जब्त किए जा सकते हैं और ऐसे व्यापारियों का बाजरा बिकवाने वाले आढ़तियों के लाइसेंस भी मौके पर निरस्त किए जाएंगे।इस संदर्भ में रोहतक के उपायुक्त आरएस दून ने बाकयदा धारा 144 लगाकर दूसरे प्रदेशों का बाजरा जिले की मंडियों में बेचने वालों से निपटने के लिए सख्ती के निर्देश दिए हैं। उपायुक्त ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से लगातार सूचनाएं मिल रही हैं कि कुछ व्यापारी सीमावर्ती प्रदेशों से सस्ते दामों पर बाजरा खरीद कर जिले की मंडियों में बेचकर मुनाफाखोरी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की हेराफेरी से स्थानीय किसानों की बाजरा खरीद में किसी तरह की रुकावट न आए, इसके लिए अब बाजरा खरीद के समय जमाबंदी की कापी भी दिखानी होगी ताकि बाजरा खरीद में हर बिंदु पर पारदर्शिता बनी रहे। संबंधित किसान को बाजरा बेचने के लिए संबंधित पटवारी की तस्दीक भी कराकर लानी होगी। पटवारी तस्दीक में यह स्पष्ट करेगा कि किसान ने कितने एकड़ भूमि में बाजरा की फसल की पैदावार की है। (Business Bhaskar)
मसालों के भाव में दस फीसदी की मंदी
मसालों की मांग कम होने का असर इनके भावों पर देखा जा रहा है। राजधानी के किराना बाजार में बीते दो सप्ताह के दौरान इनके भाव में 10 फीसदी तक की कमी आई है। किराना कारोबारियों के मुताबिक आने वाले दिनों में इसकी मांग बढ़ने की उम्मीद की जा रही है।दिल्ली किराना कमेटी के प्रधान प्रेम कुमार अरोड़ा ने बिज़नेस भास्कर को बताया कि मसालों की कीमतों में नरमी का कारण मांग में कमी व इसके कारोबार में होने वाली अटकलें भी हैं। राष्ट्रीय राजधानी की खारी बावली मंडी के किराना कारोबारियों ने बताया कि 13500 रुपये तक बिक चुका जीरा फिलहाल 10000 से 12000 रुपये प्रति क्विंटल, हल्दी 4900 से गिरकर 4400 से 4500 रुपये और धनिया 10 फीसदी गिरकर 8500 से 11500 रुपये प्रति क्विंटल तक आ चुकी है। इसके अलावा काली मिर्च में भी 10 फीसदी की गिरावट आई है । इसका भाव 13500 से 15000 रुपये प्रति क्विंटल है। वहीं लाल मिर्च की मांग कमजोर होने का असर इसके भाव पर नहीं पड़ा है। लाल मिर्च में कारोबार करने वाले धर्मेश कुमार का कहना है कि मांग कमजोर होने के बावजूद इसके भाव 6500 से 8200 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने हुए है।आरके ओवरसीज के रविंदर कुमार अग्रवाल ने बताया कि लौंग की मांग कम होने और रुपये के डॉलर के मुकाबले कमजोर पड़ने से जंजीबार (तंजानिया) में लौंग की बुकिंग 5200 की बजाय 4700 से 4800 डालर प्रति टन में हो रही है। इससे इसके भाव 30000 -36000 रुपये प्रति क्विंटल से गिरकर 26000 से 30000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। किराना कारोबारियों को उम्मीद है कि त्योहारों पर मसालों की मांग बढ़ सकती है। अरोड़ा ने बताया कि त्योहारों के अवसर को देखते हुए इनकी मांग बढ़ने की उम्मीद की जा रही है। अप्रैल से अगस्त के दौरान 2.23 लाख टन मसाला निर्यातइस साल अप्रैल से अगस्त महीने के दौरान करीब 2.23 लाख टन मसालों का निर्यात होने की संभावना है। जिसकी कीमत करीब 2265.25 करोड़ रुपये हो सकती है। पिछले साल इस अवधि के दौरान करीब 1950.09 करोड़ रुपये के 198,985 टन मसालों का निर्यात हुआ था। अत: पिछले साल में अप्रैल से अगस्त महीने में हुए मसाला निर्यात की तुलना में इस साल करीब 12 फीसदी ज्यादा मसालों का निर्यात होने का अनुमान है जबकि कीमत के मामले में निर्यात 16 फीसदी बढ़ रहा है। मसाला बोर्ड के मुताबिक इस साल अगस्त महीने में करीब 35,555 टन मसालों का निर्यात हुआ है। इस साल अगस्त तक हुए पूर मसालों के निर्यात में लाल मिर्च की हिस्सेदारी करीब 22 फीसदी है जबकि जीर की नौ फीसदी, काली मिर्च की आठ फीसदी और हल्दी की हिस्सेदारी करीब पांच फीसदी है। अगस्त महीने के दौरान करीब 417.28 करोड़ रुपये के मसालों का निर्यात हुआ है। पिछले साल अगस्त महीने में करीब 423.59 करोड़ रुपये के 37,395 टन मसालों का निर्यात हुआ था। इस साल अगस्त महीने के दौरान मुख्य रूप से लाल मिर्च, जीरा, काली मिर्च और हल्दी का निर्यात हुआ है। अप्रैल से अगस्त के दौरान करीब 190.65 करोड़ रुपये मूल्य की 11,250 टन काली मिर्च का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल इस अवधि के दौरान करीब 226.44 करोड़ रुपये का 15,620 टन का निर्यात हुआ था। (Business Bhaskar)
आवक घटने व फ्लोर मिलों की मांग बढ़ने से गेहूं महंगा
केंद्र सरकार द्वारा गेहूं की खुले बाजार में बिक्री के लिए मूल्य तय किए जाने के बाद खुले बाजार में इसके भाव बढ़ गए हैं। उत्पादक मंडियों में आवक घटने व फ्लोर मिलों की मांग बढ़ने से पिछले तीन-चार दिनों में गेहूं के भावों में 20 से 25 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज हुई है। इससे स्थानीय बाजार में गेहूं के भाव 1070 से 1080 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। गेहूं की दैनिक आवक गत सप्ताह तक दिल्ली बाजार में 14000 से 15000 बोरियों की हो रही थी जबकि मंगलवार को इसकी आवक घटकर 10000 से 11000 बोरियों की रह गई। आगामी दिनों में गेहूं उत्पादों आटा, मैदा व सूजी में त्यौहारी मांग निकलने से इसके भावों में मजबूती कायम रह सकती है। लारेंस रोड स्थित मैसर्स कमलेश कुमार एंड कंपनी के कमलेश जैन ने बिजनेस भास्कर को बताया कि गत सप्ताह केंद्र सरकार ने राज्यों को 9.03 लाख टन गेहूं देने की घोषणा की थी। चूंकि राज्य सरकारों द्वारा दिए जाने वाले गेहूं के भाव हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश की मंडियों में चल रहे भावों के मुकाबले 40-50 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा हैं इसलिए स्टॉकिस्टों ने बिकवाली कम कर दी है। उन्हें आगे भाव और बढ़ने की उम्मीद है। हल्की बिकवाली से गेहूं के भावों में तेजी देखी गई। वर्तमान में गेहूं का सबसे ज्यादा स्टॉक उत्तर प्रदेश में ही बचा हुआ है जबकि पंजाब व हरियाणा में स्टॉक सीमित मात्रा में है।उन्होंने बताया कि अक्टूबर माह में गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाण, पंजाब व राजस्थान तथा मध्य प्रदेश में बुवाई का कार्य प्रारंभ हो जाएगा। चूंकि चालू माह में इन राज्यों में अच्छी वर्षा हुई है जिससे गेहूं के बुवाई क्षेत्रफल में बढ़ोतरी होने की उम्मीद तो है लेकिन किसानों की नजर नई फसल के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर भी रहेगी। अगले साल लोकसभा के साथ ही कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने हैं इसलिए केंद्र सरकार पर गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोत्तरी का दबाव भी होगा। बीते वर्ष रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा अक्टूबर में कर दी थी तथा किसानों को उम्मीद है कि अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े तक एमएसपी घोषित हो सकते हैं। गेहूं का एमएसपी 1000 रुपये प्रति क्विंटल है तथा जानकारों का मानना है कि नई फसल के लिए इसमें 100 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी हो सकती है। केंद्र सरकार ने वर्ष 2008-09 में 785 लाख टन गेहूं उत्पादन का लक्ष्य रखा है जबकि इस वर्ष देश में उत्पादन 784 लाख टन हुआ है। भारतीय खाद्य निगम ने चालू वर्ष में एमएसपी पर 226 लाख टन गेहूं की खरीद की है तथा केंद्र सरकार को उम्मीद है पहली अप्रैल 2009 को बफर स्टॉक 40 लाख टन के मुकाबले देश में गेहूं का वास्तविक स्टॉक 60.04 लाख टन का होगा। बंगलुरू के गेहूं व्यापारी प्रवीन कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं के भावों में आई तेजी से दक्षिण भारत में भी इसके भावों में 20 से 30 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी देखी गई। बंगलुरू में मंगलवार को गेहूं के भाव बढ़कर 1210-1215 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। हैदराबाद में इसके भाव बढ़कर 1230-1235 रुपये प्रति क्विंटल बोले गए। उत्तर प्रदेश व हरियाण की मंडियों में भी पिछले दो-तीन दिनों में गेहूं के भावों में 20 से 25 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आकर भाव 980 से 990 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। उत्तर प्रदेश की एटा, शांहजानपुर व कानपुर लाइनों से हर सप्ताह दक्षिण भारत के लिए करीब पांच से छह रैकों का लदान हो रहा है।गेहूं उत्पादन में बढ़त बड़ी चुनौतीनई दिल्ली। वर्ष 2007-08 में देश में गेहूं के रिकार्ड उत्पादन 784 लाख टन को अगले साल बरकरार रखकर इसमें बढ़ोतरी करना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। सरकार राज्यों के साथ मिलकर प्रति हैक्टेयर उत्पादन बढ़ाने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। उत्तर भारत के राज्यों में अच्छी वर्षा हुई है इसके बावजूद गेहूं के प्रति हैक्टेयर उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद कम है। कृषि मंत्रालय ने नए साल में गेहूं उत्पादन का लक्ष्य 785 लाख टन का रखा है। कृषि वैज्ञानिक व नीति निर्माता केंद्र के साथ राज्यों से भी प्रति हैक्टेयर उत्पादन में बढ़ोतरी पर चर्चा करेंगे। इस बैठक के महत्वपूर्ण मुद्दों में मिट्टी की कम होती उर्वरता शक्ति, कार्बन में वृद्वि व पोषक तत्वों की कमी होना होगा। देश में गत वर्ष गेहूं का रिकार्ड उत्पादन हुआ जोकि 2006-07 के मुकाबले करीब 30 लाख टन ज्यादा है। उत्पादन में बढ़ोतरी के कारण ही सरकार 226 लाख टन गेहूं की खरीद कर पाई तथा इससे सार्वजनिक वितरण की आवश्यकताओं की पूर्ति होगी ही, साथ ही सरकार 30 लाख टन का बफर स्टॉक भी बना पाई है। जानकारों के अनुसार बढ़ती मांग को देखते हुए उत्पादन में बढ़ोतरी को कायम रखना चुनौती होगी। महंगाई की दर 12 फीसदी से ऊपर बनी हुई है तथा खाद्यान्न की कीमतें इसमें महत्वपूर्ण हैं। (प्रेट्र) (Business Bhaskar ...R S Rana)
मसालों के वायदा भाव में तेजी
नई दिल्ली : निर्यात और घरेलू मांग में तेजी के कारण कमोडिटी एक्सचेजों पर कई मसालों के वायदा भाव में तेजी रही। इसमें निर्यात मांग बढ़ने से जीरा में तेजी आई, वहीं धनिया और काली मिर्च में शॉर्ट कवरिंग के कारण तेजी देखी गई। सटोरियों की शॉर्ट कवरिंग और हाजिर बाजार में कम आवक के कारण भी जीरा की वायदा कीमतों को समर्थन मिला। एनसीडीईएक्स में जीरा का सर्वाधिक सक्रिय अक्टूबर कॉन्ट्रैक्ट 1.4 फीसदी चढ़कर 10,751 रुपए प्रति क्विंटल पर चला गया। इसमें 550 टन के लिए कारोबार हुआ। जीरे का नवंबर कॉन्ट्रैक्ट 1.35 फीसदी चढ़कर 10,785 रुपए प्रति क्विंटल हो गया और इसमें 635 टन का कारोबार हुआ। बाजार विश्लेषकों ने कहा कि निर्यात और घरेलू मांग बढ़ने के साथ सौदों की कमी को पूरा करने के लिए की गई लिवाली के चलते वायदा बाजार में जीरा की कीमतों में तेजी आई। वहीं, कम आवक और हाजिर बाजार में मांग बढ़ने के कारण व्यापारियों की शॉर्ट कवरिंग से काली मिर्च के वायदा भाव में तेजी आई। एनसीडीईएक्स में काली मिर्च का सर्वाधिक सक्रिय अक्टूबर कॉन्ट्रैक्ट का भाव 1.6 फीसदी की तेजी के साथ 13,320 रुपए प्रति क्विंटल हो गया। इस कॉन्ट्रैक्ट में 756 टन का कारोबार हुआ। इसी तरह से नवंबर कॉन्ट्रैक्ट की कीमत 1.5 फीसदी की तेजी के साथ 13,581 रुपए प्रति क्विंटल हो गई, इसमें 888 टन का कारोबार हुआ। विश्लेषकों ने बताया कि त्योहारों से पहले मांग बढ़ने और आवक के कमजोर पड़ने से भी वायदा कीमतें प्रभावित हुई। एमसीएक्स पर शॉर्ट कवरिंग की वजह से धनिया के वायदा भाव में 1.43 फीसदी की तेजी आई। धनिया का अक्टूबर वायदा 1.43 फीसदी चढ़कर 8,425 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गया। वहीं, नवंबर वायदा 0.90 फीसदी चढ़कर 8,305 रुपए प्रति क्विंटल पर चला गया। विश्लेषकों ने बताया कि डॉलर की तुलना में रुपए के कमजोर पड़ने से भी वायदा भाव को समर्थन मिला। (ET Hindi)
एक बार फिर कच्चे तेल में फिसलन
नई दिल्ली September 23, 2008
वित्तीय संस्थानों को मंदी से उबारने के अमेरिकी प्रयासों पर उभरे संदेह के बादल के चलते कच्चे तेल में मंगलवार को तीन डॉलर से ज्यादा की कमी हुई और यह 107 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाकर बंद हुआ। उल्लेखनीय है कि सोमवार को इस अनुमान के बाद कि सरकार के आर्थिक कदमों से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और कच्चे तेल की खपत में वृद्धि होगी, कच्चे तेल की कीमतों में ऐतिहासिक उछाल देखा गया। मंगलवार को संदेह पैदा होने के बाद पूरा माहौल ही बदल गया और निवेशकों ने अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए। एक दलाल ने बताया कि कच्चे तेल में तेजी सकारात्मक माहौल के चलते रही जबकि कमी वास्तविकताआ से पाला पड़ने से हुई। अमेरिकी क्रूड ऑयल के नवंबर डिलिवरी का भाव 3.01 डॉलर की कमी से 106.36 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ जबकि ब्रेंट क्रूड ऑयल में 3.12 डॉलर की कमी के बाद भाव 102.92 डॉलर पर बंद हुआ।गौरतलब है कि सोमवार को यूएस क्रूड ऑयल के नवंबर डिलिवरी में करीब 7 डॉलर की तेजी दर्ज की गई थी। अक्टूबर डिलिवरी में तो कल 15.7 फीसदी की तेजी देखी गई जो एक दिन में होने वाली सबसे जबरदस्त बढ़ोतरी रही है। इस तेजी के बाद तेल के भाव 25 डॉलर की मजबूती से 120.92 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे। एक जानकार ने बताया कि मंगलवार की नरमी असल में कल अक्टूबर और नवंबर अनुबंध में हुई रेकॉर्ड तेजी के बाद निवेशकों की मुनाफावसूली के चलते हुई है।उनके अनुसार, अमेरिकी वित्तीय संस्थानों को खतरे से बचाने के लिए सरकार के 700 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता को लेकर तमाम तरह के सवाल पैदा हो रहे हैं जबकि अभी और सवाल पैदा होने का अनुमान है। जानकारों के मुताबिक, सोमवार को कच्चे तेल में आए उछाल के पीछे डॉलर की मजबूती का समर्थन रहा है। (BS Hindi)
वित्तीय संस्थानों को मंदी से उबारने के अमेरिकी प्रयासों पर उभरे संदेह के बादल के चलते कच्चे तेल में मंगलवार को तीन डॉलर से ज्यादा की कमी हुई और यह 107 डॉलर प्रति बैरल से नीचे जाकर बंद हुआ। उल्लेखनीय है कि सोमवार को इस अनुमान के बाद कि सरकार के आर्थिक कदमों से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी और कच्चे तेल की खपत में वृद्धि होगी, कच्चे तेल की कीमतों में ऐतिहासिक उछाल देखा गया। मंगलवार को संदेह पैदा होने के बाद पूरा माहौल ही बदल गया और निवेशकों ने अपने हाथ खींचने शुरू कर दिए। एक दलाल ने बताया कि कच्चे तेल में तेजी सकारात्मक माहौल के चलते रही जबकि कमी वास्तविकताआ से पाला पड़ने से हुई। अमेरिकी क्रूड ऑयल के नवंबर डिलिवरी का भाव 3.01 डॉलर की कमी से 106.36 डॉलर प्रति बैरल पर बंद हुआ जबकि ब्रेंट क्रूड ऑयल में 3.12 डॉलर की कमी के बाद भाव 102.92 डॉलर पर बंद हुआ।गौरतलब है कि सोमवार को यूएस क्रूड ऑयल के नवंबर डिलिवरी में करीब 7 डॉलर की तेजी दर्ज की गई थी। अक्टूबर डिलिवरी में तो कल 15.7 फीसदी की तेजी देखी गई जो एक दिन में होने वाली सबसे जबरदस्त बढ़ोतरी रही है। इस तेजी के बाद तेल के भाव 25 डॉलर की मजबूती से 120.92 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे। एक जानकार ने बताया कि मंगलवार की नरमी असल में कल अक्टूबर और नवंबर अनुबंध में हुई रेकॉर्ड तेजी के बाद निवेशकों की मुनाफावसूली के चलते हुई है।उनके अनुसार, अमेरिकी वित्तीय संस्थानों को खतरे से बचाने के लिए सरकार के 700 अरब डॉलर की आर्थिक सहायता को लेकर तमाम तरह के सवाल पैदा हो रहे हैं जबकि अभी और सवाल पैदा होने का अनुमान है। जानकारों के मुताबिक, सोमवार को कच्चे तेल में आए उछाल के पीछे डॉलर की मजबूती का समर्थन रहा है। (BS Hindi)
पंजाब में मक्के का उत्पादन बना सकता है रेकॉर्ड
चंडीगढ़ September 23, 2008
मक्के के रकबे में हुई बढ़ोतरी से पंजाब में खरीफ विपणन सीजन के दौरान रेकॉर्ड 5.70 लाख टन के उत्पादन होने की उम्मीद है। पंजाब मक्का विकास अधिकारी अशोक चौधरी ने आज कहा, 'धिक से अधिक किसानों का रुझान मक्के की फसल के तरफ होने से हमें विश्वास है कि इस सीजन में 5.70 लाख टन मक्के का उत्पादन होगा जो 13 सालों में सबसे अधिक होगा।'मक्के की खेती की प्रमुख बात यह है कि इस साल किसानों ने रेकॉर्ड 1.75 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की है जो एक दशक में सर्वाधिक है। उन्होंने कहा, 'साल 1995-96 में राज्य में 1.71 लाख हेक्टेयर में मक्के की खेती की गई थी लेकिन उत्पादन मात्र 3.07 लाख टन का हुआ था।' इसके अतिरिक्त, इस साल मक्के का रकबा पिछले तीन सालों की तुलना में 14 प्रतिशत अधिक था और राज्य को उम्मीद है कि पिछले सीजन के 5.21 लाख टन उत्पादन की तुलना में इस बार फसल के उत्पदन में 13 प्रतिशत का उछाल आ सकता है।पंजाब स्टेट फार्मर्स कमीशन अर्थशास्त्री पी एस रांगी ने कहा, 'मक्के के रकबे में बढ़ोतरी की मुख्य वजह पिछले साल इसकी बेहतर कीमत मिलना है, इससे उत्साहित होकर किसानों ने मक्के की खेती की है।' उन्होंने कहा, 'इस फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती है इस कारण लागत मूल्य महत्वपूर्ण रूप से कम हो जाता है।'उन्होंने कहा कि मुख्यत: पॉल्ट्री, डेयरी और कृषि-प्रसंस्करण के क्षेत्रों से किसानों को पिछले साल 850 रुपये प्रति क्विंटल की पेशकश की गई थी। केंद्र सरकार मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 640 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ा कर 840 रुपये प्रति क्विंटल कर रही है।रांगी ने कहा कि राज्य सरकार की पंजाब एग्रो और मार्कफेड को निर्देश दिया गया था कि अगर अगले महीने सूखे मक्के का हाजिर भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम हो जाता है तो वे न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली दर पर मक्के की खरीदारी करें। रकबे में बढ़ोतरी के अतिरिक्त किसानों द्वारा हाइब्रिड किस्म के बीजों की बुआई से भी उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। राज्य में मक्के की खेती के कुल रकबे के 85 से 90 प्रतिशत में हाइब्रिड बीजों का प्रयोग किया गया है।उन्होंने कहा, 'ज्यादा हिस्से में हाइब्रिड किस्म के बीजों के इस्तेमाल से फसल का उत्पादन बढ़ कर प्रति हेक्टेयर 35 क्विंटल से अधिक होगा जबकि पिछले सीजन में यह 34.08 क्विंटल था।'आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मक्के की फसल के 75 प्रतिशत से अधिक की कटाई हो चुकी है और शेष बचे फसल की कटाई अगले कुछ दिनों में हो जाएगी। खन्ना अनाज बाजार में 29,233 क्विंटल मक्के की आवक हो चुकी है और इसकी कीमतें 755 रुपये प्रति क्विंटल चल रही हैं। (BS Hindi)
मक्के के रकबे में हुई बढ़ोतरी से पंजाब में खरीफ विपणन सीजन के दौरान रेकॉर्ड 5.70 लाख टन के उत्पादन होने की उम्मीद है। पंजाब मक्का विकास अधिकारी अशोक चौधरी ने आज कहा, 'धिक से अधिक किसानों का रुझान मक्के की फसल के तरफ होने से हमें विश्वास है कि इस सीजन में 5.70 लाख टन मक्के का उत्पादन होगा जो 13 सालों में सबसे अधिक होगा।'मक्के की खेती की प्रमुख बात यह है कि इस साल किसानों ने रेकॉर्ड 1.75 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बुआई की है जो एक दशक में सर्वाधिक है। उन्होंने कहा, 'साल 1995-96 में राज्य में 1.71 लाख हेक्टेयर में मक्के की खेती की गई थी लेकिन उत्पादन मात्र 3.07 लाख टन का हुआ था।' इसके अतिरिक्त, इस साल मक्के का रकबा पिछले तीन सालों की तुलना में 14 प्रतिशत अधिक था और राज्य को उम्मीद है कि पिछले सीजन के 5.21 लाख टन उत्पादन की तुलना में इस बार फसल के उत्पदन में 13 प्रतिशत का उछाल आ सकता है।पंजाब स्टेट फार्मर्स कमीशन अर्थशास्त्री पी एस रांगी ने कहा, 'मक्के के रकबे में बढ़ोतरी की मुख्य वजह पिछले साल इसकी बेहतर कीमत मिलना है, इससे उत्साहित होकर किसानों ने मक्के की खेती की है।' उन्होंने कहा, 'इस फसल को सिंचाई की जरूरत नहीं होती है इस कारण लागत मूल्य महत्वपूर्ण रूप से कम हो जाता है।'उन्होंने कहा कि मुख्यत: पॉल्ट्री, डेयरी और कृषि-प्रसंस्करण के क्षेत्रों से किसानों को पिछले साल 850 रुपये प्रति क्विंटल की पेशकश की गई थी। केंद्र सरकार मक्के का न्यूनतम समर्थन मूल्य 640 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ा कर 840 रुपये प्रति क्विंटल कर रही है।रांगी ने कहा कि राज्य सरकार की पंजाब एग्रो और मार्कफेड को निर्देश दिया गया था कि अगर अगले महीने सूखे मक्के का हाजिर भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम हो जाता है तो वे न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली दर पर मक्के की खरीदारी करें। रकबे में बढ़ोतरी के अतिरिक्त किसानों द्वारा हाइब्रिड किस्म के बीजों की बुआई से भी उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। राज्य में मक्के की खेती के कुल रकबे के 85 से 90 प्रतिशत में हाइब्रिड बीजों का प्रयोग किया गया है।उन्होंने कहा, 'ज्यादा हिस्से में हाइब्रिड किस्म के बीजों के इस्तेमाल से फसल का उत्पादन बढ़ कर प्रति हेक्टेयर 35 क्विंटल से अधिक होगा जबकि पिछले सीजन में यह 34.08 क्विंटल था।'आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि मक्के की फसल के 75 प्रतिशत से अधिक की कटाई हो चुकी है और शेष बचे फसल की कटाई अगले कुछ दिनों में हो जाएगी। खन्ना अनाज बाजार में 29,233 क्विंटल मक्के की आवक हो चुकी है और इसकी कीमतें 755 रुपये प्रति क्विंटल चल रही हैं। (BS Hindi)
उत्पादक क्षेत्रों में बारिश के कारण टमाटर हुआ 'लाल'
नई दिल्ली September 23, 2008
नासिक एवं हिमाचल की बारिश के कारण टमाटर की कीमत में पिछले दस दिनों के दौरान दोगुनी बढ़ोतरी हो गयी है। मंडी में टमाटर की आवक काफी कम हो गयी है और जो आ रहे हैं उनमें से 20 फीसदी सड़े होते हैं। अगले 15 दिनों तक टमाटर के दाम की लाली कम नहीं होने जा रही। उधर, दिल्ली में यमुना किनारे बाढ़ की आशंका से सब्जियों के भाव आसमान पर पहुंच गये है। आलू-प्याज को छोड़ हर सब्जी की कीमत पिछले सप्ताह के मुकाबले दोगुनी हो गयी है।टमाटर के थोक विक्रेताओं के मुताबिक दिल्ली में इन दिनों सबसे ज्यादा टमाटर नासिक से आ रहा है। लेकिन वहां बारिश होने के कारण टमाटर की आवक काफी कम हो गयी है। मंगलवार को आजादपुर मंडी में टमाटर की कुल आवक मात्र 7 गाड़ी रही। एक गाड़ी से अधिकतम 10 टन की आपूर्ति होती है। टमाटर विक्रेता संघ के पदाधिकारी अनिल मल्होत्रा कहते हैं, 'टमाटर का इतना बुरा हाल है कि एक कैरट में 2-5 किलोग्राम तक सड़े टमाटर निकल रहे हैं। बाढ़ के कारण नासिक में टमाटर 20 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिक रहा है।' नासिक से आने वाले टमाटर की थोक कीमत मंगलवार को 300-400 रुपये प्रति कैरट रही। (BS Hindi)
नासिक एवं हिमाचल की बारिश के कारण टमाटर की कीमत में पिछले दस दिनों के दौरान दोगुनी बढ़ोतरी हो गयी है। मंडी में टमाटर की आवक काफी कम हो गयी है और जो आ रहे हैं उनमें से 20 फीसदी सड़े होते हैं। अगले 15 दिनों तक टमाटर के दाम की लाली कम नहीं होने जा रही। उधर, दिल्ली में यमुना किनारे बाढ़ की आशंका से सब्जियों के भाव आसमान पर पहुंच गये है। आलू-प्याज को छोड़ हर सब्जी की कीमत पिछले सप्ताह के मुकाबले दोगुनी हो गयी है।टमाटर के थोक विक्रेताओं के मुताबिक दिल्ली में इन दिनों सबसे ज्यादा टमाटर नासिक से आ रहा है। लेकिन वहां बारिश होने के कारण टमाटर की आवक काफी कम हो गयी है। मंगलवार को आजादपुर मंडी में टमाटर की कुल आवक मात्र 7 गाड़ी रही। एक गाड़ी से अधिकतम 10 टन की आपूर्ति होती है। टमाटर विक्रेता संघ के पदाधिकारी अनिल मल्होत्रा कहते हैं, 'टमाटर का इतना बुरा हाल है कि एक कैरट में 2-5 किलोग्राम तक सड़े टमाटर निकल रहे हैं। बाढ़ के कारण नासिक में टमाटर 20 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिक रहा है।' नासिक से आने वाले टमाटर की थोक कीमत मंगलवार को 300-400 रुपये प्रति कैरट रही। (BS Hindi)
पंजाब-हरियाणा में होगी खरीफ की बंपर फसल!
चंडीगढ़ September 22, 2008
खरीफ के विपणन सीजन के दौरान पंजाब और हरियाणा में धान का बंपर उत्पादन, 220 लाख टन तक, होने की उम्मीद है जिसकी वजह धान के रकबे में हुई वृध्दि और हाइब्रिड किस्म के बीजों का इस्तेमाल किया जाना है। पंजाब कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'पंजाब में पिछले साल के 156.55 लाख टन उत्पादन की तुलना में इस साल हम उम्मीद कर रहे हैं कि 160 लाख टन धान का उत्पादन होगा।' इसी तरह हरियाणा कृषि विभाग को भी इस वर्ष 60 लाख टन धान के उत्पादन की उम्मीद है जबकि पिछले साल 54 लाख टन धान का उत्पादन हुआ था।यद्यपि इस साल आई बाढ़ ने दोनों राज्यों में फसलों को क्षति पहुंचाई है लेकिन विशेषज्ञों को आशा है कि दोनों राज्यों में पिछले वर्ष की अपेक्षा बेहतर उत्पादन होगा।केंद्रीय पूल में धान का योगदान करने वालं प्रमुख राज्य पंजाब में इस साल रेकॉर्ड 26.60 लाख हेक्टेयर में धान की खेती गई है जबकि लक्ष्य 24.75 लाख हेक्टेयर का था। इसी प्रकार हरियाणा में भी धान के रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस साल 11.50 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की गई है जबकि लक्ष्य 10.50 लाख हेक्टेयर का था।एक कृषि अर्थशास्त्री ने कहा, 'इन दोनों राज्यों के किसानों ने इस बार कपास और गन्ने की जगह अधिकतम क्षेत्र में धान की खेती की है क्योंकि उन्हें केंद्र से अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की उम्मीद है।'खेती के रकबे में बढ़ोतरी के अतिरिक्त, इन दोनों राज्यों में हाइब्रिड बीजों के प्रयोग से उत्पादन में भारी भिन्नता देखी जाएगी क्योंकि धान की खेती के एक बड़े हिस्से में किसानों ने हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल किया है।एक विशेषज्ञ ने कहा, 'पारंपरिक किस्म के बीजों की तुलना में हाइब्रिड बीजों का उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत अधिक होता है।' विशेषज्ञों ने बताया कि पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पूसा 1121 किस्म की खेती की गई है जो उत्पादन के मामले में अव्वल होने के साथ-साथ किसानों को अच्छी कीमत भी दिलाता है।इस साल हरियाणा में 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बासमती की खेती की गई है जबकि पंजाब में तीन लाख हेक्टेयर में।इस खरीफ सीजन के दौरान उत्तरी क्षेत्र में बारिश अच्छी होने से भी फसलों का उत्पादन बेहतर होगा। यद्यपि पंजाब इस साल पिछले वर्ष की भांति ही 60 क्विंटन प्रति हेक्टेयर उत्पादन की आशा रखता है जबकि हरियाणा को उम्मीद है कि पिछले साल के 33.16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस वर्ष 34.50 लाख टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होगा। (BS Hindi)
खरीफ के विपणन सीजन के दौरान पंजाब और हरियाणा में धान का बंपर उत्पादन, 220 लाख टन तक, होने की उम्मीद है जिसकी वजह धान के रकबे में हुई वृध्दि और हाइब्रिड किस्म के बीजों का इस्तेमाल किया जाना है। पंजाब कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'पंजाब में पिछले साल के 156.55 लाख टन उत्पादन की तुलना में इस साल हम उम्मीद कर रहे हैं कि 160 लाख टन धान का उत्पादन होगा।' इसी तरह हरियाणा कृषि विभाग को भी इस वर्ष 60 लाख टन धान के उत्पादन की उम्मीद है जबकि पिछले साल 54 लाख टन धान का उत्पादन हुआ था।यद्यपि इस साल आई बाढ़ ने दोनों राज्यों में फसलों को क्षति पहुंचाई है लेकिन विशेषज्ञों को आशा है कि दोनों राज्यों में पिछले वर्ष की अपेक्षा बेहतर उत्पादन होगा।केंद्रीय पूल में धान का योगदान करने वालं प्रमुख राज्य पंजाब में इस साल रेकॉर्ड 26.60 लाख हेक्टेयर में धान की खेती गई है जबकि लक्ष्य 24.75 लाख हेक्टेयर का था। इसी प्रकार हरियाणा में भी धान के रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस साल 11.50 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की गई है जबकि लक्ष्य 10.50 लाख हेक्टेयर का था।एक कृषि अर्थशास्त्री ने कहा, 'इन दोनों राज्यों के किसानों ने इस बार कपास और गन्ने की जगह अधिकतम क्षेत्र में धान की खेती की है क्योंकि उन्हें केंद्र से अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की उम्मीद है।'खेती के रकबे में बढ़ोतरी के अतिरिक्त, इन दोनों राज्यों में हाइब्रिड बीजों के प्रयोग से उत्पादन में भारी भिन्नता देखी जाएगी क्योंकि धान की खेती के एक बड़े हिस्से में किसानों ने हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल किया है।एक विशेषज्ञ ने कहा, 'पारंपरिक किस्म के बीजों की तुलना में हाइब्रिड बीजों का उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत अधिक होता है।' विशेषज्ञों ने बताया कि पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पूसा 1121 किस्म की खेती की गई है जो उत्पादन के मामले में अव्वल होने के साथ-साथ किसानों को अच्छी कीमत भी दिलाता है।इस साल हरियाणा में 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बासमती की खेती की गई है जबकि पंजाब में तीन लाख हेक्टेयर में।इस खरीफ सीजन के दौरान उत्तरी क्षेत्र में बारिश अच्छी होने से भी फसलों का उत्पादन बेहतर होगा। यद्यपि पंजाब इस साल पिछले वर्ष की भांति ही 60 क्विंटन प्रति हेक्टेयर उत्पादन की आशा रखता है जबकि हरियाणा को उम्मीद है कि पिछले साल के 33.16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस वर्ष 34.50 लाख टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होगा। (BS Hindi)
23 सितंबर 2008
Govt targets to produce 78.50 MT wheat production
New Delhi (PTI): Amid good supply of seed and better monsoon, the government hopes to harvest 78.50 million tonnes of wheat this year, a million tonnes more than the previous year.
The government has released the agenda for Rabi conference to be held during September 24-25, where it has announced the target production for wheat and other rabi crops.
Production of wheat, which is the major Rabi crop accounting for nearly 72 per cent of total foodgrain production in the country, is estimated to be 78.40 MT in 2007-08 season.
The target for rice production is set at 14 MT, jowar at 3.9 MT and barely at 1.5 MT.
However, the exact target would be decided after taking views from the state government officials, who are expected to attend the two-day conference, a senior government official said.
The good rainfall during June-September has provided hope for better harvest of Rabi crops as there would not be problems in availability of water, the official added.
According to an estimate, the Agriculture Ministry hopes that the availability of seeds for wheat cultivation would be more than 38 per cent at 8.76 lakh tonnes than the required demand.
Due to decline in soil fertility and high yields in Punjab and Haryana, the Centre has said timely sowing of wheat and location specific high yielding varieties would overcome the problem of stagnating productivity.
"Ensuring timely and adequate availability of certified and quality seeds of location specific high yielding varieties in wheat growing areas" will be helpful in increasing wheat yeilds in the country, the official said. (PTI)
The government has released the agenda for Rabi conference to be held during September 24-25, where it has announced the target production for wheat and other rabi crops.
Production of wheat, which is the major Rabi crop accounting for nearly 72 per cent of total foodgrain production in the country, is estimated to be 78.40 MT in 2007-08 season.
The target for rice production is set at 14 MT, jowar at 3.9 MT and barely at 1.5 MT.
However, the exact target would be decided after taking views from the state government officials, who are expected to attend the two-day conference, a senior government official said.
The good rainfall during June-September has provided hope for better harvest of Rabi crops as there would not be problems in availability of water, the official added.
According to an estimate, the Agriculture Ministry hopes that the availability of seeds for wheat cultivation would be more than 38 per cent at 8.76 lakh tonnes than the required demand.
Due to decline in soil fertility and high yields in Punjab and Haryana, the Centre has said timely sowing of wheat and location specific high yielding varieties would overcome the problem of stagnating productivity.
"Ensuring timely and adequate availability of certified and quality seeds of location specific high yielding varieties in wheat growing areas" will be helpful in increasing wheat yeilds in the country, the official said. (PTI)
बीटी कपास के रकबे में इस साल 30 फीसदी वृध्दि
पारंपरिक कपास के बीजों की तुलना में बैसिलस थ्यूरेनजिएन्सिस (बीटी) कपास के बीजों के प्रयोग से किसानों को आय अधिक होने के कारण साल 2008 में बीटी कपास के बुआई क्षेत्र में 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।तकनीक की आपूर्ति करने वाली कंपनी मैहिको मोन्सैंटो बायोटेक (एमएमबी) इंडिया के आकलन के अनुसार लगभग 40 लाख किसानों ने बॉलगार्ड-2 और बॉलगार्ड बीटी कपास की खेती 172 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में की है जो भारत के खरीफ कपास के कुल रकबे, 225 लाख हेक्टेयर, का 76 प्रतिशत है।बीटी कपास के रकबे में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। साल 2006 में 87 लाख एकड़ में बीटी कपास की खेती की गई थी जो साल 2007 में बढ़ कर 144 लाख एकड़ हो गया। किसानों के पास 150 से अधिक बॉलगार्ड-2 और बॉलगार्ड बीटी कपास हाइब्रिड बीजों का विकल्प है।चालू फसल सीजन के दौरान बॉलगार्ड-2 का रकबा बढ़ कर 45 लाख एकड़ हो गया है जबकि पिछले सीजन में यह 12.2 लाख एकड़ था। उसी प्रकार बॉलगार्ड की खेती भी 172 लाख एकड़ में की गई है। बॉलगार्ड-2 एक उन्नत डबल जीन तकनीक है जो किसानों को बेहतर इन्सेक्ट रेजिस्टेंस मैनेजमेंट (आईआरएम) उपलब्ध कराता है। इसके साथ-साथ अधिक उत्पादन और कीटनाशकों पर होने वाले खर्च में बचत से किसानों को अपेक्षाकृत अधिक आय होती है। मैहिको मॉन्सैंटो बायोटेक के उप प्रबंध निदेशक राज केतकर ने कहा, 'वर्ष 2002 में बॉलगार्ड बीटी कपास के लॉन्च होने के छह वर्षों के भीतर भारत मे कपास उत्पादन दोगुना हो गया और यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनने के साथ-साथ कपास का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया।'बॉलगार्ड के इस्तेमाल में सबसे अधिक वृध्दि महाराष्ट्र में हुई है जहां 21.6 लाख एकड़ में (वर्ष 2007 के 6.3 लाख एकड़ से 70 प्रतिशत अधिक) इसकी खेती की गई है। उसके बाद आंध्र प्रदेश 8.4 एकड़ (साल 2007 के 1.01 एकड़ की तुलना में 88 प्रतिशत अधिक) और गुजरात 5.3 लाख एकड़ (साल 2007 के 3.1 लाख एकड़ की तुलना में 42 प्रतिशत अधिक) का स्थान आता है।महाराष्ट्र कृषि विश्वविद्यालय, परभानी, के एंटोमोलॉजी विभाग के प्रोफेसर एवं प्रमुख डॉ बी बी भोसले ने कहा, 'बॉलगार्ड-2 डबल जीन तकनीक में दो बीटी प्रोटीन हैं, सीआरवाई1एसी तथा सीआरवाई2एबी जो बेहतर कीट प्रतिरोध प्रबंधन (आईआरएम) उपलब्ध कराते हैं। इन दोनों बीटी प्रोटीन के काम करने के तरीके भिन्न हैं। बॉलगार्ड-2 में दोनों प्रोटीन के प्रतिरोध की संभावना लगभग नहीं के बराबर है और इस कारण कीट प्रतिरोध प्रबंधन (आईआरएम) में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यूएस ईपीए ने बॉलगार्ड-2 के लिए 20 प्रतिशत रिफ्यूज की जरूरत को हटा दिया है और अगर हम भारत में ऐसा करते हैं तो कपास की उत्पादकता में और अधिक इजाफा कर सकते हैं।'बॉलगार्ड बीटी कपास (एकल जीन तकनीक) भारत का पहला बायोटेक फसल तकनीक है जिसे साल 2002 में जेनेटिक इंजीनियरिंग एप्रूवल कमिटी (जीईएसी) द्वारा भारत में ब्यापारीकरण की अनुमति मिली। (BS Hindi)
धान के समर्थन मूल्य पर 50 रुपये का बोनस देगी सरकार!
नई दिल्ली September 22, 2008
केंद्र सरकार धान उगाने वाले किसानों को 50 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देने की योजना बना रही है। सरकारी अधिकारी ने बताया कि धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य 850 रुपये प्रति क्विंटल पर सरकार 50 रुपये का बोनस दे सकती है और इस बाबत गहनता से विचार-विमर्श चल रहा है। उन्होंने कहा कि अगले हफ्ते इसके ऐलान की उम्मीद है।गौरतलब है कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 900 रुपये प्रति क्विंटल करने का सुझाव दिया था। अधिकारी ने कहा कि बोनस देकर सरकार किसानों की सहायता करना चाहती है। 21 अगस्त को कैबिनेट की हुई बैठक में अन्य फसलों के साथ-साथ धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फैसला लिया गया था और फिर इसका ऐलान किया गया था। वैसे 12 जून को सरकार ने अस्थायी तौर पर धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 850 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया था। इसके बाद मामले को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद को सौंपा गया था और उन्हें इस बाबत सिफारिश करने को कहा गया था क्योंकि धान उत्पादन के मामले में प्रमुख राज्यों (दक्षिणी इलाके) ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य गेहूं की तरह 1000 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग की थी।कृषि लागत और कीमत आयोग (सीएसीपी) ने हालांकि अपनी सिफारिश में कहा था कि 2008-09 के सीजन में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य एक हजार रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए। पिछले साल धान का एमएसपी बोनस समेत 745 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि ए ग्रेड वाले धान का एमएसपी 775 रुपये घोषित किया गया था। इस साल मकई, ज्वार और बाजरा का एमएसपी 840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है जबकि कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2500 रुपये और 3 हजार रुपये तय किया गया है।इस बीच, खरीफ सीजन में अब तक धान का रकबा 19 सितंबर तक 373.51 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है जबकि पिछले साल यह 361.81 लाख हेक्टेयर था। एक सरकारी अधिकारी ने दावा किया कि इस साल धान का रकबा पिछले पांच साल के औसत 389.66 लाख हेक्टेयर को पार कर जाएगा।उनका कहना है कि अभी बुआई पूरी नहीं हुई है, लिहाजा इस बात की पूरी संभावना है। पिछले साल किसानों ने कुल 393.83 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई की थी। (BS Hindi)
केंद्र सरकार धान उगाने वाले किसानों को 50 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस देने की योजना बना रही है। सरकारी अधिकारी ने बताया कि धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य 850 रुपये प्रति क्विंटल पर सरकार 50 रुपये का बोनस दे सकती है और इस बाबत गहनता से विचार-विमर्श चल रहा है। उन्होंने कहा कि अगले हफ्ते इसके ऐलान की उम्मीद है।गौरतलब है कि प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 900 रुपये प्रति क्विंटल करने का सुझाव दिया था। अधिकारी ने कहा कि बोनस देकर सरकार किसानों की सहायता करना चाहती है। 21 अगस्त को कैबिनेट की हुई बैठक में अन्य फसलों के साथ-साथ धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फैसला लिया गया था और फिर इसका ऐलान किया गया था। वैसे 12 जून को सरकार ने अस्थायी तौर पर धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 850 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया था। इसके बाद मामले को प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद को सौंपा गया था और उन्हें इस बाबत सिफारिश करने को कहा गया था क्योंकि धान उत्पादन के मामले में प्रमुख राज्यों (दक्षिणी इलाके) ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य गेहूं की तरह 1000 रुपये प्रति क्विंटल करने की मांग की थी।कृषि लागत और कीमत आयोग (सीएसीपी) ने हालांकि अपनी सिफारिश में कहा था कि 2008-09 के सीजन में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य एक हजार रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए। पिछले साल धान का एमएसपी बोनस समेत 745 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि ए ग्रेड वाले धान का एमएसपी 775 रुपये घोषित किया गया था। इस साल मकई, ज्वार और बाजरा का एमएसपी 840 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है जबकि कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2500 रुपये और 3 हजार रुपये तय किया गया है।इस बीच, खरीफ सीजन में अब तक धान का रकबा 19 सितंबर तक 373.51 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है जबकि पिछले साल यह 361.81 लाख हेक्टेयर था। एक सरकारी अधिकारी ने दावा किया कि इस साल धान का रकबा पिछले पांच साल के औसत 389.66 लाख हेक्टेयर को पार कर जाएगा।उनका कहना है कि अभी बुआई पूरी नहीं हुई है, लिहाजा इस बात की पूरी संभावना है। पिछले साल किसानों ने कुल 393.83 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई की थी। (BS Hindi)
पंजाब-हरियाणा में होगी खरीफ की बंपर फसल!
चंडीगढ़ September 22, 2008
खरीफ के विपणन सीजन के दौरान पंजाब और हरियाणा में धान का बंपर उत्पादन, 220 लाख टन तक, होने की उम्मीद है जिसकी वजह धान के रकबे में हुई वृध्दि और हाइब्रिड किस्म के बीजों का इस्तेमाल किया जाना है। पंजाब कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'पंजाब में पिछले साल के 156.55 लाख टन उत्पादन की तुलना में इस साल हम उम्मीद कर रहे हैं कि 160 लाख टन धान का उत्पादन होगा।' इसी तरह हरियाणा कृषि विभाग को भी इस वर्ष 60 लाख टन धान के उत्पादन की उम्मीद है जबकि पिछले साल 54 लाख टन धान का उत्पादन हुआ था।यद्यपि इस साल आई बाढ़ ने दोनों राज्यों में फसलों को क्षति पहुंचाई है लेकिन विशेषज्ञों को आशा है कि दोनों राज्यों में पिछले वर्ष की अपेक्षा बेहतर उत्पादन होगा।केंद्रीय पूल में धान का योगदान करने वालं प्रमुख राज्य पंजाब में इस साल रेकॉर्ड 26.60 लाख हेक्टेयर में धान की खेती गई है जबकि लक्ष्य 24.75 लाख हेक्टेयर का था। इसी प्रकार हरियाणा में भी धान के रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस साल 11.50 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की गई है जबकि लक्ष्य 10.50 लाख हेक्टेयर का था।एक कृषि अर्थशास्त्री ने कहा, 'इन दोनों राज्यों के किसानों ने इस बार कपास और गन्ने की जगह अधिकतम क्षेत्र में धान की खेती की है क्योंकि उन्हें केंद्र से अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की उम्मीद है।'खेती के रकबे में बढ़ोतरी के अतिरिक्त, इन दोनों राज्यों में हाइब्रिड बीजों के प्रयोग से उत्पादन में भारी भिन्नता देखी जाएगी क्योंकि धान की खेती के एक बड़े हिस्से में किसानों ने हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल किया है।एक विशेषज्ञ ने कहा, 'पारंपरिक किस्म के बीजों की तुलना में हाइब्रिड बीजों का उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत अधिक होता है।' विशेषज्ञों ने बताया कि पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पूसा 1121 किस्म की खेती की गई है जो उत्पादन के मामले में अव्वल होने के साथ-साथ किसानों को अच्छी कीमत भी दिलाता है।इस साल हरियाणा में 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बासमती की खेती की गई है जबकि पंजाब में तीन लाख हेक्टेयर में।इस खरीफ सीजन के दौरान उत्तरी क्षेत्र में बारिश अच्छी होने से भी फसलों का उत्पादन बेहतर होगा। यद्यपि पंजाब इस साल पिछले वर्ष की भांति ही 60 क्विंटन प्रति हेक्टेयर उत्पादन की आशा रखता है जबकि हरियाणा को उम्मीद है कि पिछले साल के 33.16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस वर्ष 34.50 लाख टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होगा। (BS Hindi)
खरीफ के विपणन सीजन के दौरान पंजाब और हरियाणा में धान का बंपर उत्पादन, 220 लाख टन तक, होने की उम्मीद है जिसकी वजह धान के रकबे में हुई वृध्दि और हाइब्रिड किस्म के बीजों का इस्तेमाल किया जाना है। पंजाब कृषि विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'पंजाब में पिछले साल के 156.55 लाख टन उत्पादन की तुलना में इस साल हम उम्मीद कर रहे हैं कि 160 लाख टन धान का उत्पादन होगा।' इसी तरह हरियाणा कृषि विभाग को भी इस वर्ष 60 लाख टन धान के उत्पादन की उम्मीद है जबकि पिछले साल 54 लाख टन धान का उत्पादन हुआ था।यद्यपि इस साल आई बाढ़ ने दोनों राज्यों में फसलों को क्षति पहुंचाई है लेकिन विशेषज्ञों को आशा है कि दोनों राज्यों में पिछले वर्ष की अपेक्षा बेहतर उत्पादन होगा।केंद्रीय पूल में धान का योगदान करने वालं प्रमुख राज्य पंजाब में इस साल रेकॉर्ड 26.60 लाख हेक्टेयर में धान की खेती गई है जबकि लक्ष्य 24.75 लाख हेक्टेयर का था। इसी प्रकार हरियाणा में भी धान के रकबे में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस साल 11.50 लाख हेक्टेयर में धान की खेती की गई है जबकि लक्ष्य 10.50 लाख हेक्टेयर का था।एक कृषि अर्थशास्त्री ने कहा, 'इन दोनों राज्यों के किसानों ने इस बार कपास और गन्ने की जगह अधिकतम क्षेत्र में धान की खेती की है क्योंकि उन्हें केंद्र से अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की उम्मीद है।'खेती के रकबे में बढ़ोतरी के अतिरिक्त, इन दोनों राज्यों में हाइब्रिड बीजों के प्रयोग से उत्पादन में भारी भिन्नता देखी जाएगी क्योंकि धान की खेती के एक बड़े हिस्से में किसानों ने हाइब्रिड बीजों का इस्तेमाल किया है।एक विशेषज्ञ ने कहा, 'पारंपरिक किस्म के बीजों की तुलना में हाइब्रिड बीजों का उत्पादन 10 से 15 प्रतिशत अधिक होता है।' विशेषज्ञों ने बताया कि पंजाब और हरियाणा दोनों राज्यों में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में पूसा 1121 किस्म की खेती की गई है जो उत्पादन के मामले में अव्वल होने के साथ-साथ किसानों को अच्छी कीमत भी दिलाता है।इस साल हरियाणा में 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में बासमती की खेती की गई है जबकि पंजाब में तीन लाख हेक्टेयर में।इस खरीफ सीजन के दौरान उत्तरी क्षेत्र में बारिश अच्छी होने से भी फसलों का उत्पादन बेहतर होगा। यद्यपि पंजाब इस साल पिछले वर्ष की भांति ही 60 क्विंटन प्रति हेक्टेयर उत्पादन की आशा रखता है जबकि हरियाणा को उम्मीद है कि पिछले साल के 33.16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस वर्ष 34.50 लाख टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन होगा। (BS Hindi)
हरियाणा में बाजरा एमएसपी से नीचे
हरियाणा में समय से पहले बाजरा की सरकारी खरीद शुरू होने से भी किसानों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। सरकारी खरीद एजेंसियां किसानों की बाजरा की फसल क्वालिटी के नाम पर खरीदने से टालमटोल कर रही हैं जिससे वे खुले बाजार में एमएसपी से काफी कम भाव पर बाजरा बेचने को मजबूर हैं। हरियाणा के सीमावर्ती क्षेत्रों से लगे उत्तर प्रदेश व राजस्थान के इलाकों से भी किसान बाजरा बेचने के लिए यहां आ रहे हैं। इससे खुले बाजार में सप्लाई बढ़ने से भाव 25 फीसदी तक नीचे चले गए हैं।गत 12 सितंबर से यहां शुरू हुई सरकारी खरीद के चलते राजस्थान व फरीदाबाद से लगते यूपी के कई इलाक ों से हरियाणा की मंडियों में बाजरा आने लगा है जिसके कारण यहां मंडियों में बाजरा का भाव एमएसपी से नीचे चला गया है। इन राज्यों में बाजरा की सरकारी खरीद अक्टूबर के पहले हफ्ते में शुरू होनी है। बाजरा का एमएसपी 840 रुपये `िंटल है जबकि मंडियों में आढ़तियांे के यहां भाव 650 से 700 रुपये `िंटल बिक रह रहा है। बाजरा की सरकारी खरीद करने वाली एजेंसियां किसानों से बाजरा खरीदने में टालमटोल कर रही हैं। उनके अधिकारी व कर्मचारी फसल के लिए निर्धारित मानकों का हवाला देकर खरीद से इंकार कर रहे हैं। इस कारण किसानों को मजबूरन खुले बाजार में फसल ले जानी पड़ रही हैं। यूपी व राजस्थान से आ रहे किसानों के साथ भी यहीं हो रहा है। इस कारण खुले बाजार में सप्लाई बढ़ गई है। इस कारण भाव तेजी से घट गए।हरियाणा के खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों ने बताया कि 20 सितंबर तक यहां क ी मंडियों में 61323 टन बाजरा की आवक हुई है जिसमें से 14775 टन की खरीद व्यापारियों ने की है जबकि सरकारी एजेंसियों ने 46548 टन बाजरा की खरीददारी की है। सरकारी खरीद एजेंसियों में हैफेड, कानफेड, एचडब्लयूसी, हरियाणा एग्रो, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग शामिल हैं। (Business Bhaskar)
लाल मिर्च में तेजी की संभावना
अच्छी क्वालिटी की लालमिर्च के स्टॉक में कमी के साथ ही निर्यात मांग में बढ़ोतरी हो रही है जबकि मध्य प्रदेश,महाराष्ट्र तथा आंध्र प्रदेश में आने वाली नई फसल के उत्पादन में कमी की आशंका से दशहरे, दीवाली के बाद इसके मौजूदा भावों में पांच प्रतिशत तक की तेजी आने की संभावना है।गुंटूर मंडी के प्रमुख लालमिर्च व्यापारी मांगीलाल मुंदड़ा ने बिजनेस भास्कर को बताया कि मंडी में लालमिर्च का 28 लाख बोरी (प्रति बोरी 45 किलो) का स्टॉक बचा हुआ है तथा इसमें से 10 लाख बोरी फटकी क्वालिटी है। दूसरी ओर दो से ढ़ाई लाख बोरी का स्टॉक बड़ी कंपनियों व वायदा एक्सचेंजों का है जिसकी मंडी में आवक के बार में कोई तय समय नहीं है। ऐसे में बाजार में उपलब्ध बढ़िया क्वालिटी का स्टॉक मात्र 16 से 16.50 लाख बोरियों का ही बचा हुआ है। उधर मध्य प्रदेश में किसानों द्वारा लाल मिर्च के बजाय सोयाबीन की बुवाई को प्राथमिकता देने से उत्पादन में गत वर्ष के मुकाबले कमी आ सकती है। इसके परिणाम स्वरूप दीवाली के बाद घरेलू व निर्यात मांग बढ़ने की संभावना से इसके भावों में तेजी आ सकती है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में गुंटूर मंडी से लालमिर्च की 25 से 27 हजार बोरी की दैनिक मांग देखी जा रही है जबकि आंध्र प्रदेश के गुंटूर, खम्माम, वारंगल व कृष्णानगर जिलों में इसकी बुवाई में गत वर्ष के मुकाबले 18 से 20 फीसदी की कमी आई है तथा बुवाई में देरी के कारण नई फसल की आवक भी एक माह लेट होने की संभावना है।आमतौर पर आंध्र प्रदेश की मंडियों में लाल मिर्च की आवक जनवरी के मध्य में शुरू हो जाती है लेकिन इस बार नई फसल की आवक फरवरी के मध्य में ही बनने की आसार है। गुंटूर में तेजा क्वालिटी की लाल मिर्च के भाव 6700-7300 रुपये, 334 क्वालिटी के भाव 4700-5600 रुपये, सनम के भाव 5700-6200 रुपये, ब्याड़गी क्वालिटी के भाव 6200-7400 रुपये, 273 क्वालिटी के भाव 5600-6400 रुपये व फटकी क्वालिटी के भाव 1100-1800 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। मुंबई से लाल मिर्च के निर्यातक अशोक दत्तानी ने बताया कि चालू वर्ष में लाल मिर्च के निर्यात में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है तथा अभी तक इसका निर्यात 85000 टन तक पहुंच चुका है। वर्तमान में मलेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड व इंडोनेशिया के साथ खाड़ी देशों की अच्छी मांग बनी हुई है तथा रमजान के बाद बांगलादेश की मांग भी निकलने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि दशहरे-दीवाली के बाद घरेलू मांग में तो इजाफा होगा ही, साथ ही निर्यात में बढ़ोतरी होने से इसके भावों में तेजी की ही उम्मीद है। डॉलर के मुकाबले रुपये में आई गिरावट से निर्यातकों को अच्छा फायदा हो रहा है।इंदौर मंडी स्थित लाल मिर्च के व्यापारी खोजरमल प्रजापति ने बताया कि मध्य प्रदेश में लाल मिर्च का उत्पादन गत वर्ष के 35 लाख बोरी के मुकाबले घटकर 30 से 31 लाख बोरी होने की संभावना है जबकि नई फसल की आवक नवंबर माह में आएगी। उनके अनुसार बढ़िया माल की शार्टेज से नई फसल की आवक बनने के बावजूद भावों में गिरावट की उम्मीद नहीं है। मध्य प्रदेश के खंडवा, खरगौन, धार व बड़वानी में लाल मिर्च का उत्पादन होता है। (R S Rana....Business Bhaskar)
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