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16 अक्टूबर 2013

एथनॉल बिक्री से चीनी मिलों को राहत की आस

चीनी के कम भाव होने के कारण मिलों के सामने वित्तीय कठिनाई चीनी के काफी नीचे भाव होने के कारण वित्तीय कठिनाई के दौर से गुजर रही चीनी मिलें गन्ने की पेराई करके एथनॉल का उत्पादन करके कुछ राहत पाने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार क्रूड ऑयल आयात का खर्च घटाने के लिए ऑयल मार्केटिंग कंपनियों पर बायोफ्यूल का मिश्रण करने के लिए दबाव बना रही है। क्रूड ऑयल के आयात पर हर साल करीब 20 अरब डॉलर से भी ज्यादा विदेशी मुद्रा खर्च हो रही है। इससे सरकार का करेंट एकाउंट डेफिशिट (सीएडी) रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है। अगर सरकार अपने लक्ष्य के अनुसार पेट्रोल में पांच फीसदी एथनॉल का मिश्रण करने का अभियान पूरा कर पाती है तो उसे एक अरब डॉलर की बचत हो सकती है। सरकार ने छह साल पहले एथनॉल का मिश्रण करने की शुरूआत की थी। यह लक्ष्य वर्ष 2013-14 तक हासिल होता है तो चीनी मिलों को अपनी आय सुधारने में मदद मिल सकती है। भारत चीनी उत्पादन में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। लेकिन यहां के उत्पादन में बार-बार भारी उतार-चढ़ाव आता है। भारतीय मिलें चीनी उत्पादन के बाय-प्रोडक्ट के रूप में शीरे का उत्पादन करती हैं। अगर इसका उत्पादन बढ़ता है तो चीनी के उत्पादन में स्थिरता आएगी। इससे भारत में चीनी के आयात और निर्यात की स्थिति बार-बार नहीं बदलेगी। मुंबई स्थित आईसीआईसीआई डायरेक्टर के एनालिस्ट संजय मन्याल ने कहा कि तेल कंपनियों ने गन्ने का पेराई सीजन शुरू होने से पहले एथनॉल खरीद के लिए टेंडर जारी किए हैं। इस साल एथनॉल के मूल्य को लेकर भी कोई विवाद नहीं है। इस साल पांच फीसदी एथनॉल मिश्रण का लक्ष्य इस साल हासिल किया जा सकता है। प्राइवेट फर्म एथनॉल इंडिया के चीफ कंसल्टेंट दीपक देसाई का कहना है कि तेल कंपनियों को पिछले साल से ज्यादा एथनॉल मूल्य देने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए क्योंकि उन्हें क्रूड ऑयल कहीं ज्यादा मूल्य पर आयात करना पड़ रहा है। पिछले टेंडर के अनुसार मिलें 38 रुपये प्रति लीटर के मूल्य पर एथनॉल की सप्लाई कर रही हैं। जबकि आयातित पेट्रोल 46 रुपये प्रति लीटर पड़ रहा है। (Business Bhaskar)

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