आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू गन्ना पेराई सीजन 2019-20 (अक्टूबर से सितंबर) में गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया बढ़कर 17,134 करोड़ रुपये पर पहुंच चुका है।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के अनुसार गन्ना के बकाया की राशि की गणना केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाने वाले उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के आधार पर की जाती है। गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत, गन्ना खरीदने के 14 दिनों के अंदर चीनी मिलों को किसानों को भुगतान करना होता है, अगर इस अवधि में चीनी मिलें भुगतान नहीं कर पाती है तो उन्हें बकाया पर 15 फीसदी सालाना की दर से ब्याज का भी भुगतान करना होगा।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के अनुसार चालू पेराई सीजन 2019-20 में 28 मई तक चीनी मिलों ने 64,261 करोड़ रुपये का गन्ना किसानों से खरीदा है जिसमें से भुगतान केवल 47,127 करोड़ रुपये का ही किया है। अत: चीनी मिलों पर किसानों का बकाया 17,134 करोड़ रुपये है। पेराई सीजन 2018—19 की समान अवधि में गन्ने का बकाया 18,140 करोड़ रुपये था।
केंद्र सरकार बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए कई उपाय कर रही है - केंद्रीय खाद्य सचिव
केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने कहा कि किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं। उन्होंने बताया कि पेराई सीजन 2017-18 एवं 2019-19 में चीनी का उत्पादन ज्यादा होने के कारण चीनी की कीमतों में आई कमी के कारण गन्ना के बकाया में बढ़ोतरी हुई। उन्होंने बताया कि इथेनॉल उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी के लिए बैंकों ने करीब 18,600 करोड़ रुपये के सॉफ्ट लोन को मंजूरी दी है, जिससे 362 चीनी मिलों को डिस्टलरीज में बदला जा रहा है, जिसके लिए केंद्र सरकार द्वारा लगभग 4,080 करोड़ रुपये का ब्याज वहन किया जा रहा है।
सरकार 40 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक के रख-रखाव की लागत कर रही है वहन
उन्होंने बताया कि सरकार 40 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक के रख-रखाव के लिए 1,674 करोड़ रुपये की लागत वहन कर रही है। इसके अलावा सरकार 60 लाख टन चीनी के निर्यात पर चीनी मिलों को 10,448 रुपये प्रति टन की दर से सहायता दे रही है, जिस पर लगभग 6,268 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि चालू पेराई सीजन में निर्यात के लिए तय कोटे 60 लाख टन में से करीब 36 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है तथा आने वाले महीनों में और 24 लाख टन का निर्यात चीनी मिलें करने की कोशिश कर रही हैं।.... आर एस राणा
नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2019 से शुरू हुए चालू गन्ना पेराई सीजन 2019-20 (अक्टूबर से सितंबर) में गन्ना किसानों का चीनी मिलों पर बकाया बढ़कर 17,134 करोड़ रुपये पर पहुंच चुका है।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के अनुसार गन्ना के बकाया की राशि की गणना केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाने वाले उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के आधार पर की जाती है। गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत, गन्ना खरीदने के 14 दिनों के अंदर चीनी मिलों को किसानों को भुगतान करना होता है, अगर इस अवधि में चीनी मिलें भुगतान नहीं कर पाती है तो उन्हें बकाया पर 15 फीसदी सालाना की दर से ब्याज का भी भुगतान करना होगा।
केंद्रीय खाद्य मंत्रालय के अनुसार चालू पेराई सीजन 2019-20 में 28 मई तक चीनी मिलों ने 64,261 करोड़ रुपये का गन्ना किसानों से खरीदा है जिसमें से भुगतान केवल 47,127 करोड़ रुपये का ही किया है। अत: चीनी मिलों पर किसानों का बकाया 17,134 करोड़ रुपये है। पेराई सीजन 2018—19 की समान अवधि में गन्ने का बकाया 18,140 करोड़ रुपये था।
केंद्र सरकार बकाया भुगतान में तेजी लाने के लिए कई उपाय कर रही है - केंद्रीय खाद्य सचिव
केंद्रीय खाद्य सचिव सुधांशु पांडे ने कहा कि किसानों को गन्ना मूल्य भुगतान सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई उपाय किए हैं। उन्होंने बताया कि पेराई सीजन 2017-18 एवं 2019-19 में चीनी का उत्पादन ज्यादा होने के कारण चीनी की कीमतों में आई कमी के कारण गन्ना के बकाया में बढ़ोतरी हुई। उन्होंने बताया कि इथेनॉल उत्पादन क्षमता में बढ़ोतरी के लिए बैंकों ने करीब 18,600 करोड़ रुपये के सॉफ्ट लोन को मंजूरी दी है, जिससे 362 चीनी मिलों को डिस्टलरीज में बदला जा रहा है, जिसके लिए केंद्र सरकार द्वारा लगभग 4,080 करोड़ रुपये का ब्याज वहन किया जा रहा है।
सरकार 40 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक के रख-रखाव की लागत कर रही है वहन
उन्होंने बताया कि सरकार 40 लाख टन चीनी के बफर स्टॉक के रख-रखाव के लिए 1,674 करोड़ रुपये की लागत वहन कर रही है। इसके अलावा सरकार 60 लाख टन चीनी के निर्यात पर चीनी मिलों को 10,448 रुपये प्रति टन की दर से सहायता दे रही है, जिस पर लगभग 6,268 करोड़ रुपये खर्च आने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि चालू पेराई सीजन में निर्यात के लिए तय कोटे 60 लाख टन में से करीब 36 लाख टन चीनी का निर्यात हो चुका है तथा आने वाले महीनों में और 24 लाख टन का निर्यात चीनी मिलें करने की कोशिश कर रही हैं।.... आर एस राणा
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