आर एस राणा
नई
दिल्ली। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म होने के बाद यह तो तय है
कि आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में किसानों की कर्जमाफी और अन्य मांगों की
अनदेखी नहीं की जा सकती। यही कारण है कि तीन राज्यों में कांग्रेस की सरकार
बनने के बाद कर्जमाफी की प्रक्रिया शुरू कर दी, साथ ही असम, गुजरात और
छत्तीसगढ़ की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकारों ने भी अपने-अपने
राज्यों में किसानों को राहत देनी शुरू कर दी है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल
गांधी बार-बार यह संदेश दे रहे हैं कि आगे भी कांग्रेस इस मुद्दे पर चुनाव
लड़ेगी। ऐसे में जानकारों का मानना है कि कर्जमाफी फौरी राहत तो है, लेकिन
समस्या के स्थाई समाधान के लिए राज्य और केंद्र सरकारों को ठोस रणनीति
बनानी होगी।
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (आईकेएससीसी)
के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि कर्जमाफी किसानों के लिए फौरी राहत है,
फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने के साथ ही हर किसान को उसकी
फसल का एमएसपी मिले यह सुनिश्चित करना जरुरी है। किसानों की समस्या के
स्थाई समाधान के लिए इन दोनों कामों को एक साथ करना होगा। इसीलिए
आईकेएससीसी दो केंद्रीय कानूनों के माध्यम से इन दोनों को सभी किसानों का
वैधानिक अधिकार बनाना चाहती है।
एमएसपी पर खरीद कानूनी अधिकार हो
उन्होंने
कहा कि किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा साबित हो रही है, अत: अगली पीढ़ी
को खेती से जोड़ने के लिए किसानों के दोनों प्रावइेट बिलों को पारित कराने
के लिए संयुक्त रुप से संसद का विशेष सत्र बुलाना चाहिए। उन्होंने कहा कि
पहले बिल में स्पष्ट कहा गया है कि कर्जमाफी केवल एकबारगी है, इससे उन सभी
किसानों को फायदा होगा, जो कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं। साथ ही जो किसान
कर्ज चुका चुके हैं उनको भी इसका लाभ मिले। दूसरा प्राइवेट बिल स्वामीनाथन
रिपोर्ट के मुताबिक फसलों का एमएसपी निर्धारण सुनिश्चित करता है, यानि
उत्पादन लागत का डेढ़ गुना ज्यादा। विधेयक यह भी गांरटी देता है कि कोई भी
व्यक्ति एमएसपी से कम कीमत पर उत्पाद नहीं खरीद सकता है, और अगर कोई ऐसा
करता है तो उसे जेल की सजा तो होगी ही, साथ ही जुर्माने के रुप में भुगतान
की गई राशि और एमएसपी के अंतर की दोगुना राशि भी किसान को चुकानी होगी।
देशभर के किसानों को पटरी पर लाने के लिए यह एक मात्र उपाय है।
देश के 52.5 फीसदी किसान कर्जदार
राष्ट्रीय
कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) ने अगस्त 2018 में एक रिपोर्ट में
बताया था कि देश में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 फीसदी किसान कर्जे में
दबे हुए हैं। यानि की देश के आधे से ज्यादा किसान कर्जदार हैं। यही कारण
है कि विपक्ष हो या फिर सत्ताधारी पार्टी कर्जमाफी को मुद्दा बना रही हैं।
हर राज्य का किसान कर्जवान
भाजपा
के किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नरेश सिरोही ने बताया कि हमारी
कृषि नीति और कृषि पद्धति ऐसी है कि इससे उद्योग को तो फायदा हो रहा है,
लेकिन किसान कर्जवान बनता जा रहा है। उन्होंने कहा आज हर राज्य में किसान
कर्ज के नीचे दबा हुआ है, चाहे हरित क्रांति में अहम योदगदान देने वाले
राज्य के किसान ही हों। ऐसे में कर्जमाफी योजना से किसानों को फौरी राहत तो
मिल सकती है, लेकिन स्थाई समाधान के लिए कृषि नीति और कृषि पद्धति में
आमूलचूल परिवर्तन करना होगा।
उपभोक्ता जो दाम चुकाता है, उसमें किसान की हिस्सेदारी मात्र 20-25 फीसदी
किसान
के खेत छोटे होते जा रहे हैं, साथ ही खेती की लागत बढ़ती जा रही है।
उन्होंने कहा कि कर्ज माफी से केवल उन्हीं किसानों को फायदा होगा, जिन
किसानों ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से कर्ज ले रखा है। अत: कर्जमाफी पर हल्ला
ज्यादा किया जा रहा है, जबकि इसका लाभ केवल कुछ किसानों को ही मिलेगा।
राष्ट्रीयकृत बैंक ज्यादातर बड़े किसानों को ही ऋण देते हैं, अत: मजबूरीवश
छोटे किसानों को साहूकारों से या फिर अन्य जगहों से मोटे कर्ज पर ऋण लेना
पड़ता है। इसलिए छोटे किसानों को जिन्होंने साहूकारों या फिर अन्य जगहों से
कर्ज लिया है, उन्हें इसका फायदा नहीं मिल पायेगा। उन्होंने कहा कि
खाद्यान्न हो या फिर फल सब्जियों के जो भाव उपभोक्ता चुकाता है, उसमें से
किसान को केवल 20 से 25 फीसदी हिस्सा ही मिल पाता है। अत: बिचौलियां ही
ज्यादा लाभ उठाते हैं, इसी तरह से दूध की बात करें, तो किसान लागत से भी 8
से 10 रुपये प्रति लीटर नीचे दाम पर दूध बेचने पर मजबूर है। ऐसे में खेती
को लाभ का सौदा बनाने के लिए नीतियां में बदलाव जरुरी है।
देश में 41.6 फीसदी ऋण गैर-संस्थागत स्रोतों से लिया जाता है
नेशनल
सेम्पल सर्वे आर्गनाइजेशन (एनएसएसओ) के सर्वेक्षण (31 मार्च 2017 तक की
स्थिति) से पता चलता है कि किसानों के कुल कर्ज का 58.4 फीसदी संस्थागत ऋण
है और 41.6 फीसदी ऋण गैर-संस्थागत स्रोतों से लिया गया है। इससे साफ है कि
किसान बैंकों के अलावा साहूकारों तथा महाजनों तथा अन्य स्रोतों से कर्ज
लेते हैं।
किसानों के कर्ज के लिए केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार
स्वाभिमान
शेतकारी संगठन के नेता और लोकसभा सदस्य राजू शेट्टी ने कहा कि देश का
किसान कर्ज तले दबा हुआ है, इसके लिए केंद्र सरकार की नीतियां जिम्मेदार
है। अत: देशभर के किसानों की पूर्ण कर्जमाफी केंद्र सरकार को करनी चाहिए।
राज्य सरकारें जो कर्जमाफी कर रही है, उसका लाभ कुछ ही किसानों को मिल पाता
है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार की नीतियां चाहे आयात-निर्यात नीति हो
या फिर, फसलों की खरीद नीति के अलावा फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य तय
करने में किसानों के हितों की हमेशा अनदेखी की जाती है।
बैंकों के बजाए साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है किसान को
देश
के अधिकांश किसान या तो साहूकारों से कर्ज लेते हैं या फिर महाजनों से।
अत: राज्य सरकारों द्वारा की जा रही कर्जमाफी का इन किसानों को लाभ नहीं
मिल पाता है। किसान साहूकार या महाजन से उंची ब्याजदर पर कर्ज ले लेता है,
जबकि अधिकांश बार उसे फसल का उचित दाम नहीं मिल पाता, या फिर प्रतिकूल मौसम
से फसल खराब हो जाती है जिस कारण किसान कर्ज नहीं चुका पाता है। कई बार
परिस्थितियां ऐसी हो जाती हैं कि किसान को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ता
है। इसलिए केंद्र सरकार को राज्यों के साथ मिलकर देशभर के किसानों के लिए
कोई ठोस नीति बनाने की जरुरत है। ............. आर एस राणा