27 जून 2013
आम प्रेमी ऐसे फलों से रहें सावधान!
लों का राजा माने जाने वाले आम का मौसम निकट आ गया है.
इसके मद्देनज़र सलाह दी गई है कि इस फल के प्रेमी प्राकृतिक रूप से पकाए गई आम की अल्फांसो किस्म की पहचान करने के लिए उसकी विशिष्ट सुगंध और सिकुडन रहित छिलके पर ध्यान दें.
पुणे स्थित राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला के ‘फूड केमिस्ट्री जरनल’ में प्रकाशित शोध लेख के अनुसार सिंधुदुर्ग जिले के देवगढ तालुक में पाए जाने वाले अल्फांसो आम को उसकी प्राकृतिक सुगंध से पहचाना जा सकता है. कृत्रिम रूप से पकाए गए आम में यह सुगंध नहीं होती.
देवगढ़ तालुक आम उत्पादक सहकारी सोसाइटी के निदेशक एवं अध्यक्ष अजित गोगाटे ने कहा, ‘‘रासायनिक तत्व का इस्तेमाल करके पकाए गए आमों में इस प्रकार की सुगंध नहीं होती. इसे सूंघने के लिए आपको आम को अपनी नाक से जोर से दबाना होगा.’’
कृत्रिम रूप से पकाए गए आम में सुगंध नहीं होती
महाराष्ट्र में खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने पिछले कुछ समय में ऐसे व्यापारियों के यहां छापे मारे हैं जिन्होंने प्रतिबंधित रासायनिक तत्व कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल करके कृत्रिम रूप से आम को पकाया था. यह रासायनिक तत्व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है.
प्राकृतिक रूप से पके आम का छिलका पतला और कोमल होता है जबकि कृत्रिम ढंग से पके आम का छिलका पीला और कठोर होता है. रासायनिक रूप से पके आम का रंग एक सा होता है. इसके विपरीत प्राकृतिक रूप से पके आम में पीले और हरे रंगों का मिश्रण होता है.
आम का छिलका सिकुड़ा हुआ न हो
गोगाटे ने कहा, ‘‘आम का छिलका सिकुड़ा हुआ नहीं लगना चाहिए. कई लोगों का मानना है कि यदि आम का छिलका सिकुड़ा हुआ हो तो वह अच्छा होता है. लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसा तभी होता है जब आम जरूरत से ज्यादा पका हो. यदि आम का छिलका सिकुड़ा हुआ है और फिर भी उसका रंग हरा है तो उसे न खरीदें. इसका मतलब है कि उसे बिना पके ही तोड़ा गया है.’’
उन्होंने बताया कि 700 किसानों की 25 वर्ष पुरानी सहकारी सोसाइटी अल्फांसो को अपने सदस्यों के बागों से उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए ई-कॉमर्स का सहारा लेने जा रही है और इसके लिए वेबसाइट पर ऑर्डर दिए जाएंगे.
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