12 जनवरी 2013
कपास किसानों के पक्ष में कारोबारी जगत
घटती कीमतों और ऊंची लागत से कपास किसान परेशान हैं। वैश्विक हालात ऐसे हैं कि कपास की कीमतें और लुढ़क सकती हैं, लेकिन मौजूदा दर से कम पर कपास बेचना किसानों के लिए मुश्किल है। कारोबारियों का मानना है कि लागत से कम दाम पर बिक्री करने पर किसानों को घटा हो रहा है और घाटे का काम कोई करना नहीं चाहेगा। इसका असर आगे हो सकता है।
राज्य के कई हिस्सों में 4000 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर कपास की खरीद की जा रही है जबकि किसानों की उत्पादन लागत 5000 रुपये प्रति क्विंटल है। किसान नेता राजू शेट्टी ने इस मुद्दे को लेकर आंदोलन भी किया जिसमें न्यूनतम समर्थन मूल्य 6000-7000 रुपये करने की मांग की गई थी। लगभग सभी दलों ने भी सरकार से अनुरोध किया था कि वह कपास किसानों को सब्सिडी दे या फिर 6000-7000 रुपये से कम पर कपास न बिकने दे। पिछले एक साल में कपास की कीमतें 50 फीसदी से भी ज्यादा गिर चुकी हैं। देश के कई हिस्सों में किसान लागत से भी कम पर माल बेचने को मजबूर हैं। वायदा बाजार में भी एक साल में कपास की कीमतें 30 फीसदी तक गिर चुकी हैं। कपास मामलों के जानकार शंकर केजरीवाल कहते हैं कि बाजार में मंदी का असर साफ दिखता है और घरेलू के साथ विदेशी मांग भी घटी है। अमेरिकी कृषि विभाग की ताजा रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा विपणन वर्ष 2012-13 में भारत का कपास निर्यात 60 फीसदी गिरकर 57 लाख गांठ (एक गाठ में 170 किलो) रह जाएगा जबकि 2011-12 में भारत ने 147 लाख गांठ कपास निर्यात की थी।
कारोबार जगत में भी कपास किसानों की मांग को जायज माना जा रहा है। एनआईसीए भटिंडा के अध्यक्ष महेश शारदा का कहना है कि कपास के लिए मानव निर्मित रेशे (मैनमेड फाइबर) चुनौती हैं। इसलिए जरुरी है कि कपास का बाजर बढ़ाया जाए। कपड़ा बाजार में कपास की मांग बढ़ाकर यह समस्या रोकी जा सकती है। आरटीएमए के चेयरमैन आरएल नवलखा का मानना है कि जिनिंग के लिए अच्छी कपास की जरुरत है जिससे जिनिंग प्रक्रिया और तेज हो सकती है। देश के प्रमुख कमोडिटी एक्सचेंज एमसीएक्स, एनसीडीईएक्स और आईसीई इस मसले पर पिछले एक महीने में करीब एक दर्जन सेमीनार कर चुके हैं। (BS Hindi(
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