29 जनवरी 2013
चीनी कंपनियों की बढ़ेगी मिठास
चीनी मिल मालिकों को सरकार ने बड़ी राहत दी है। कई साल बाद इस बार सरकार ने फैसला किया है कि खुले बाजार के लिए रखी गई जो चीनी (गैर लेवी चीनी) इस चीनी सत्र के शुरुआती छह महीनों में नहीं बिक सकी है, उसे लेवी चीनी (राशन की दुकानों में बिकने वाली चीनी) में तब्दील नहीं किया जाएगा।
इस सरकारी फैसले से चीनी उद्योग खिल गया है। भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, 'सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है और हमारे हिसाब से छह महीने का कोटा कुछ ज्यादा ही था। चूंकि बिना बिकी चीनी पर मिलों से 31 मार्च के बाद कोई भी जुर्माना नहीं वसूला जाएगा, इसलिए मिलों के पास सरकारी दबाव के कारण नहीं बल्कि बाजार की जरूरतों के हिसाब से चीनी बेचने की छूट होगी।' उद्योग के एक दूसरे वरिष्ठï अधिकारी ने कहा, 'असल में सरकार ने भी एक तरह से यह कबूल किया है कि अक्टूबर से मार्च तक का कोटा कुछ ज्यादा ही था।'
अधिकारियों ने बताया कि मिलों को अक्टूबर 2012 से मार्च 2013 के बीच खुले बाजार में 108 लाख टन चीनी बेचने का निर्देश दिया गया था। लेकिन सरकार ने इसमें भी 1.5 लाख टन कटौती कर दी है और अब 106.5 लाख टन चीनी ही बेची जानी है। पिछले तीन सालों में सरकार ने चीनी बिक्री सत्र के पहले 6 महीनों में औसतन 90.4 लाख टन चीनी जारी की थी।
मिल मालिकों ने बताया कि जो कदम उठाए गए हैं, उनकी सख्त दरकार थी क्योंकि जरूरत से ज्यादा आपूर्ति के कारण देश के ज्यादातर इलाकों में चीनी के भाव (एक्स मिल) उत्पादन की लागत से भी नीचे चले गए हैं। इसकी वजह से किसानों का गन्ने का बकाया भी बढ़ता जा रहा है। भारत में सरकार की तय करती है कि एक तिमाही या छमाही में कोई चीनी मिल कितनी चीनी खुले बाजार में बेच सकती है। सरकार ने यह फरमान भी जारी किया है कि कोई चीनी मिल अगर इस मियाद में बताई गई चीनी नहीं बेच पाती है तो बची चीनी खुद-ब-खुद लेवी चीनी में तब्दील हो जाएगी।
2012-13 के चीनी बिक्री सत्र की शुरुआत अक्टूबर 2012 में हुई और पहले छह महीने के लिए सरकार ने 110 लाख टन चीनी का कोटा तय किया। लेकिन मिल मालिकों ने शिकायत की कि यह मांग से बहुत ज्यादा है और इसकी वजह से चीनी के एक्स मिल भाव धड़ाम हो जाएंगे।
चीनी उद्योग के प्रतिनिधियों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में चीनी की कीमत (एक्स मिल) उत्पादन मूल्य के मुकाबले तकरीबन 6 से 6.50 रुपये प्रति किलोग्राम तक घट चुकी है। महाराष्ट्र में यह उत्पादन मूल्य से तकरीबन 3 रुपये प्रति किलो कम है। (BS Hindi)
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