29 जनवरी 2013
चाय उत्पादक देशों का कार्टेल बनाना बेहद कठिन
चुनौतियां
: दूसरी कमोडिटी की तरह चाय का मूल्य तय करना मुश्किल
: चाय के उत्पादन और क्वालिटी में विविधता बड़ी चुनौती
: चाय उत्पादन का कोटा तय करना भी मंजूर नहीं होगा
: मूल्य निर्धारण के लिए वायदा व्यापार का बेंचमार्क नहीं
चाय उत्पादक देशों भारत, केन्या, इंडोनेशिया, मलावी, रवांडा और श्रीलंका मिलकर भले ही संगठन खड़ा कर लिया है। लेकिन चाय के विश्व बाजार को नियंत्रित करने के लिए कोई उपाय करना आसान नहीं है। पिछले दिनों कोलंबो में इन देशों ने इंटरनेशनल टी प्रोड्यूसर्स फोरम (आईटीपीएफ) बनाने की घोषणा की है।
फोरम के गठन के पीछे स्पष्ट योजना का खुलासा नहीं किया गया है। हालांकि फोरम के गठन के साथ जारी बयान में कहा गया कि यह संगठन चाय के मूल्य में स्थिरता, इसके विकास और बेहतर उत्पादन के लिए काम करेगा।
घोषणा पत्र के अनुसार इस साल नवंबर में फोरम की एक्जीक्यूटिव का गठन किया जाएगा। लेकिन उद्योग के जानकारों का कहना है कि एक कार्टेल की तरह काम कर पाना इस फोरम के लिए आसान नहीं होगा।
चाय उद्योग की विषमताओं और असंगठित किस्म का स्वभाव होने के कारण मूल्य नियंत्रित करने और उत्पादन सीमित करने में बाधाएं आएंगी। फोरम के संस्थापक देश कुल मिलाकर करीब 190 करोड़ किलो चाय का कुल उत्पादन करते हैं। ये देश श्रमिकों की कमी और जलवायु परिवर्तन की समस्याओं से जूझ रहे हैं। चाय की खेती करने की पद्धति में सुधार करना भी उनके लिए बड़ी चुनौती है।
इन देशों के बीच चाय उत्पादन का कोटा तय करने मूल्य निर्धारण की व्यवस्था पर सहमति बनना खासा मुश्किल है क्योंकि चाय की किस्म में खासी विभिन्नता है और उनके उत्पादन में भी भारी अंतर है।
भारत के दूसरे सबसे बड़े चाय उत्पादक व दुनिया के तीसरे सबसे बड़े निर्यातक एमेल्गमेटेड प्लांटेशन्स के मैनेजिंग डायरेक्टर दीपक अटल ने कहा कि कोटा सिस्टम किसी को मंजूर नहीं होगा। जितना चाय का उत्पादन होता है, उसकी बिक्री करनी ही होगा क्योंकि चाय सडऩे वाली कमोडिटी है।
हर उत्पादक को बाजार में होड़ करनी है और अपनी उपज बेचनी है। यूएन फूड ऑर्गनाइजेशन के अनुसार केन्या दुनिया का सबसे बड़ा चाय निर्यातक देश है। दूसरे नंबर पर चीन आता है। फोरम में चीन को पर्यवेक्षक के तौर पर शामिल होने का निमंत्रण दिया गया है। आज से 80 साल पहले इसी तरह का फोरम बनाया गया था ताकि चाय के मूल्य में सुधार हो सके।
उस समय चाय के दाम छह माह के भीतर करीब 25 फीसदी बढ$़ गए थे क्योंकि उस समय चाय के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर ब्रिटिश कंपनी फिनलेज जैसी चुनिंदा बड़ी कंपनियों का कब्जा था। लेकिन आज तमाम किस्मों की चाय का उत्पादन हो रहा है और चाय की सप्लाई करने वाली कंपनियों और संगठन की बड़ी संख्या है, जो बाजार में हर समय हिस्सेदारी बढ़ाने की फिराक में रहती हैं।
रबर और चीनी की तरह चाय का वायदा कारोबार नहीं होता है। इस वजह से इसका कोई बेंचमार्क मूल्य नहीं है। चाय की कीमत काफी हद तक एकतरफा तौर पर तय होता है। साप्ताहिक नीलामी में ही चाय का मूल्य तय होता है। भारतीय टी बोर्ड के अनुसार पिछले पांच वर्षों में चाय के दाम करीब 40 फीसदी बढ़े हैं जबकि इस दौरान रबर, गेहूं और चीनी के दाम दोगुने से ज्यादा हो गए। (Business Bhaskar)
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