आर एस राणा
नई दिल्ली। रबी तिलहनी फसलों सरसों और मूंगफली की आवक उत्पादक मंडियों में चालू हो गई है, जबकि इनके भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे बने हुए हैं, अत: भाव में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार ने आयातित क्रुड पॉम तेल और रिफाइंड पॉम तेल के आयात शुल्क में 14 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है।
केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार क्रुड पॉम तेल (सीपीओ) के आयात पर शुल्क को 30 फीसदी से बढ़ाकर 44 फीसदी और रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क को 40 फीसदी से बढ़ाकर 54 फीसदी कर दिया है। जिससे घरेलू बाजार में खाद्य तेलों के साथ ही तिलहनों की कीमतों में सुधार आने का अनुमान है।
एमएसपी से नीचे बने हुए हैं भाव
उत्पादक राज्यों में किसानों को मूंगफली 3,900 से 4,000 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचनी पड़ रही है जबकि चालू फसल विपणन सीजन 2017-18 के लिए केंद्र सरकार ने इसका न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 4,450 रुपये प्रति क्विंटल (बोनस सहित) तय किया हुआ है। इसी तरह से सरसों के भाव उत्पादक मंडियों में 3,600 से 3,700 रुपये प्रति क्विंटल हैं जबकि सरसों का एमएसपी 4,000 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है।
किसानों को मिल सकेगा उचित भाव
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन आॅफ इंडिया (एसईए) के कार्यकारी निदेशक डॉ. बी वी मेहता ने बताया कि केंद्र सरकार ने क्रुड पॉम और रिफाइंड पॉम तेल पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी करके तिलहन किसानों के लिए अच्छा काम किया है, इससे किसानों को उनकी उपज का उचित भाव मिल सकेगा। उन्होंने कहां कि अगर केंद्र सरकार कच्चे तेल और रिफाइंड तेल के आयात शुल्क केे अंतर को बढ़ा देती तो इससे घरेलू उद्योग को भी राहत मिल जाती। भाव में अंतर कम होने के कारण रिफाइंड तेलों के आयात में बढ़ोतरी हो रही है। जनवरी में क्रुड पॉम तेल और रिफाइंड पॉम तेल के औसत भाव भारीतय बंदरगाह पर 669 डॉलर प्रति टन रहे।
आयात में हुई बढ़ोतरी
एसईए के अनुसार चालू तेल वर्ष नवंबर-17 से अक्टूबर-18 के पहले तीन महीनों नवंबर से जनवरी के दौरान खाद्य एवं अखाद्य तेलों के आयात में 25 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 36,28,734 टन का हो चुका है जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 34,14,008 टन का ही हुआ था।
कुल खपत के 65 फीसदी से ज्यादा आयात
देश में खाद्य तेलों की सालाना खपत 225 लाख टन से ज्यादा है। फसल सीजन 2016-17 के दौरान कुल खपत के 65 फीसदी से ज्यादा खाद्य तेलों का आयात हुआ था। इस दौरान 150.8 लाख टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था जबकि घरेलू उत्पादन केवल 79.1 लाख टन का ही हुआ था।
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