आर एस राणा
नई दिल्ली। दलहन की उंची कीमतों से दो-चार हो रही मोदी सरकार के कृषि मंत्री ने इसका समाधान विदेषों में खेती करके निकालने की कवायद तेज कर दी है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का मानना है कि भारतीय कंपनियों को म्यांमार और अफ्रीका में कांट्रैक्ट फार्मिंग करनी चाहिए। ऐसे में अब यह तय है कि मोदी सरकार का भारतीय किसानों पर से भरोसा उठ गया है, तथा इसका समाधान केवल और केवल विदेषी में ही छिपा है।
कृषि सचिव (भारत सरकार) ने इस मुद्दे पर 19 मई 2016 को एक अहम बैठक की है, इस बैठक में म्यांमार और अफ्रीकी देषों में खेती कराने के बारे में चर्चा की गई। यह कवायद पिछले 9 महीने से कृषि मंत्रालय में चल रही है। यह अलग बात है कि अभी तक इस मुद्दे पर करीब पांच से छह बैठके तो हो चुकी है लेकिन किसी एक भी बैठक में दलहन पैदावार करने वाले किसी किसान या उनके संगठन को षामिल नहीं किया है। सूत्रों के अभी तक किसी भी बैठक में देष के किसी भी किसान संगठन को षामिल नहीं किया है। इसका मतलब साफ है कि देष के किसानों पर कृषि मंत्री और मोदी सरकार को भरोसा ही नहीं है।
सूत्रों के अनुसार दलहन उत्पादन और खपत आदि पर 14 सितंबर 2015 को सचिवों की एक समिति की बैठक में चर्चा की गई। इस बैठक में कृषि मंत्रालय को विदेषी मंत्रालय और कामर्स मंत्रालय के साथ बातचीत कर अफ्रीकी देषों में दलहन उत्पादन के विकल्प खोजने के लिए कहा गया। इसके बाद 5 नवंबर 2015 को एक अंतरमंत्रालयी बैठक भी हुई। इस बैठक में विदेषी मंत्रालय, डिपार्टमेंट आफ इंडस्ट्रीयल पॉलिसी एंड प्रमोषन के अलावा नैफेड, स्माल फार्मर्स एग्रीबिजनेस कंसोर्सियम, एसटीसी के अलावा पंजाब एग्रो इंडस्ट्रीज जैसी सार्वजनिक संस्थाओं के अलावा कारपोरेट संगठन सीआईआई और महेंद्रा एंड महेंद्रा जैसी निजी कंपनियों के पदाधिकारियों ने भी भाग लिया। इस बैठक में वैसे तो सभी वर्गो को बुलाया गया लेकिन किसान जोकि दलहन पैदा करता है उसके किसी भी संगठन को भुलाया ही नहीं गया।
इस मुद्दे पर 15 दिसंबर 2015 को भी एक अंतरमंत्रालयी बैठक हुई जिसमें सरकार के मंत्रालय के अलावा निजी संगठनों के पदाधिकारियों को भुलाया गया। सीआईआईए ने अफ्रीकी देषों में दलहन उत्पादन के मुद्दे पर एक वर्कषाप भी आयोजित की, जिसमें कृषि मंत्रालय के अलावा विदेष मंत्रालय के अधिकारियों ने भी भाग लिया। सीआईआई के अलावा फिक्की और एसोचैम को भी अफ्रीकी देषों में जमीन तलाषनें में सहयोग के लिए कहां गया।
सीआईआई ने एग्रीबिजनेस में षामिल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिलकर 20 जनवरी 2016 को एक वर्कषॉप आयोजित की। इसके बाद 11 अप्रैल 2016 को कृषि मंत्री ने विदेष मंत्री को पत्र लिखकर सुझाव दिया कि अफ्रीकी देषों को भारत द्वारा दी जा रही सहायता के तहत इस प्रोजेक्ट को षामिल किया जा सकता है। इस संबंध में सहकारी संस्थाओं इफको और कृभको से भी सुझाव मांगे। इसके अलावा पेस्टीसाईड कंपनी हिंदुस्तान इसेंक्टिसाइड लिमिटेड और नेषनल सीड कापोरेषन को भी इस संबंध में चर्चा करने के लिए मंत्रालय ने लिखा।......आर एस राणा
नई दिल्ली। दलहन की उंची कीमतों से दो-चार हो रही मोदी सरकार के कृषि मंत्री ने इसका समाधान विदेषों में खेती करके निकालने की कवायद तेज कर दी है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का मानना है कि भारतीय कंपनियों को म्यांमार और अफ्रीका में कांट्रैक्ट फार्मिंग करनी चाहिए। ऐसे में अब यह तय है कि मोदी सरकार का भारतीय किसानों पर से भरोसा उठ गया है, तथा इसका समाधान केवल और केवल विदेषी में ही छिपा है।
कृषि सचिव (भारत सरकार) ने इस मुद्दे पर 19 मई 2016 को एक अहम बैठक की है, इस बैठक में म्यांमार और अफ्रीकी देषों में खेती कराने के बारे में चर्चा की गई। यह कवायद पिछले 9 महीने से कृषि मंत्रालय में चल रही है। यह अलग बात है कि अभी तक इस मुद्दे पर करीब पांच से छह बैठके तो हो चुकी है लेकिन किसी एक भी बैठक में दलहन पैदावार करने वाले किसी किसान या उनके संगठन को षामिल नहीं किया है। सूत्रों के अभी तक किसी भी बैठक में देष के किसी भी किसान संगठन को षामिल नहीं किया है। इसका मतलब साफ है कि देष के किसानों पर कृषि मंत्री और मोदी सरकार को भरोसा ही नहीं है।
सूत्रों के अनुसार दलहन उत्पादन और खपत आदि पर 14 सितंबर 2015 को सचिवों की एक समिति की बैठक में चर्चा की गई। इस बैठक में कृषि मंत्रालय को विदेषी मंत्रालय और कामर्स मंत्रालय के साथ बातचीत कर अफ्रीकी देषों में दलहन उत्पादन के विकल्प खोजने के लिए कहा गया। इसके बाद 5 नवंबर 2015 को एक अंतरमंत्रालयी बैठक भी हुई। इस बैठक में विदेषी मंत्रालय, डिपार्टमेंट आफ इंडस्ट्रीयल पॉलिसी एंड प्रमोषन के अलावा नैफेड, स्माल फार्मर्स एग्रीबिजनेस कंसोर्सियम, एसटीसी के अलावा पंजाब एग्रो इंडस्ट्रीज जैसी सार्वजनिक संस्थाओं के अलावा कारपोरेट संगठन सीआईआई और महेंद्रा एंड महेंद्रा जैसी निजी कंपनियों के पदाधिकारियों ने भी भाग लिया। इस बैठक में वैसे तो सभी वर्गो को बुलाया गया लेकिन किसान जोकि दलहन पैदा करता है उसके किसी भी संगठन को भुलाया ही नहीं गया।
इस मुद्दे पर 15 दिसंबर 2015 को भी एक अंतरमंत्रालयी बैठक हुई जिसमें सरकार के मंत्रालय के अलावा निजी संगठनों के पदाधिकारियों को भुलाया गया। सीआईआईए ने अफ्रीकी देषों में दलहन उत्पादन के मुद्दे पर एक वर्कषाप भी आयोजित की, जिसमें कृषि मंत्रालय के अलावा विदेष मंत्रालय के अधिकारियों ने भी भाग लिया। सीआईआई के अलावा फिक्की और एसोचैम को भी अफ्रीकी देषों में जमीन तलाषनें में सहयोग के लिए कहां गया।
सीआईआई ने एग्रीबिजनेस में षामिल बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिलकर 20 जनवरी 2016 को एक वर्कषॉप आयोजित की। इसके बाद 11 अप्रैल 2016 को कृषि मंत्री ने विदेष मंत्री को पत्र लिखकर सुझाव दिया कि अफ्रीकी देषों को भारत द्वारा दी जा रही सहायता के तहत इस प्रोजेक्ट को षामिल किया जा सकता है। इस संबंध में सहकारी संस्थाओं इफको और कृभको से भी सुझाव मांगे। इसके अलावा पेस्टीसाईड कंपनी हिंदुस्तान इसेंक्टिसाइड लिमिटेड और नेषनल सीड कापोरेषन को भी इस संबंध में चर्चा करने के लिए मंत्रालय ने लिखा।......आर एस राणा
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