कृषि और गैर-कृषि जिंसों की बढ़ती कीमतों के कारण थोक मूल्य सूचकांक
(डब्ल्यूपीआई) तीन साल के सर्वोच्च स्तर पर पहुंचने का अनुमान है।
डब्ल्यूपीआई लगातार 17 महीने तक ऋणात्मक रहने के बाद अप्रैल में धनात्मक
हुआ था। दालों, सब्जियों और चीनी की कीमतों में भारी तेजी के चलते अप्रैल
में डब्ल्यूपीआई का रुख पलटा था। इस मॉनसून सीजन में बारिश सामान्य से अधिक
रहने का अनुमान है। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि गर्मियों में बोई
जाने वाली फसलें (खरीफ) इस साल अगस्त तक मंडियों में आएंगी और तब तक कृषि
जिंसों के दाम ऊंचे बने रहेंगे। पिछले दो वर्षों में सूखा रहा है, जिससे
दालों, चीनी और सब्जियों का कम उत्पादन हुआ है। इसकी वजह से ही अप्रैल में
डब्ल्यूपीआई 0.34 फीसदी रहा।
डेलॉयट में वरिष्ठ अर्थशास्त्री रिचा गुप्ता कहती हैं, 'डब्ल्यूपीआई
सूचकांक का विनिर्माण उत्पाद खंड वैश्विक जिंसों की कीमतों से कदम से कदम
मिलाता है, इसलिए आने वाले महीनों में इसमें कुछ तेजी देखने को मिल सकती
है। हमारा आकलन दर्शाता है कि डब्ल्यूपीआई ईंधन सूचकांक में कुछ बढ़ोतरी हो
सकती है क्योंकि नया कैलेंडर वर्ष शुरू होने से लेकर अब तक भारतीय क्रूड
बास्केट की कीमत ईंधन सूचकांक से ज्यादा बढ़ी हैं। दूसरी ओर पिछले दो
वर्षों में पर्याप्त बारिश नहीं होने और कृषि अर्थव्यवस्था में ढांचागत
समस्याओं से कुछ खाद्य उत्पादों की कीमतों में असामान्य बढ़ोतरी हुई है।
दालें इसका अच्छा उदाहरण है। वर्तमान स्थिति को देखते हुए हमारा अनुमान है
कि डब्ल्यूपीआई में वर्षभर बढ़ोतरी जारी रहेगी और यह इस दौरान 3 फीसदी का
आंकड़ा पार कर सकता है।'
पिछले एक महीने में कृषि जिंसों की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। सरकार ने
जमाखोरी रोकने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसके बावजूद दालों की कीमतें बढ़ी
हैं। अप्रैल में चना दाल के दाम करीब 25 फीसदी बढ़कर 5,720 रुपये प्रति
क्विंटल हो गए। दालों का डब्ल्यूपीआई में भारांश 0.72 फीसदी है। मुंबई की
दाल आयातक पंचम इंटरनैशनल के प्रबंध निदेशक बिमल कोठारी ने कहा, 'अलनीनो की
वजह से मॉनसून की कम बारिश के कारण पिछले दो साल में दालों का वैश्विक
उत्पादन कम रहा। संयोग से भारत में भी उत्पादन कम रहा। अगस्त में अगले सीजन
की फसल आने तक ग्राहकों ऊंची कीमतों का सामना करना पड़ेगा।' (BS Hindi)
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