25 सितंबर 2012
जानिए क्या है एफडीआई के नफे-नुकसान
भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौधरी राकेश टिकैत ने रिटेल में एफडीआई को किसानों के हित में न कहते हुए इसका विरोध करने की बात कही है। उनका तर्क है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नीयत साफ न होने की वजह से किसानों के उत्पादों के सही दाम नहीं मिल पाएंगे। निष्कर्ष निकालने से पहले एफडीआई के बारे में जानना बहुत जरूरी है। आइए आपको समझाते हैं कि क्या है एफडीआई और इसके नफे-नुकसान का गणित।
ये है एफडीआई
सामान्य शब्दों में किसी एक देश की कंपनी का दूसरे देश में किया गया निवेश, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई कहलाता है। ऐसे निवेश से निवेशकों को दूसरे देश की उस कंपनी के प्रबंधन में कुछ हिस्सा हासिल हो जाता है जिसमें उसका पैसा लगता है। आमतौर पर माना यह जाता है कि किसी निवेश को एफडीआई का दर्जा दिलाने के लिए कम-से-कम कंपनी में विदेशी निवेशक को 10 फीसदी शेयर खरीदना पड़ता है। इसके साथ उसे निवेश वाली कंपनी में मताधिकार भी हासिल करना पड़ता है।
एफडीआई का स्ट्रक्चर
इनवार्ड एफडीआई में विदेशी निवेशक भारत में कंपनी शुरू कर यहां के बाजार में प्रवेश कर सकता है। इसके लिए वह किसी भारतीय कंपनी के साथ संयुक्त उद्यम बना सकता है या पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी यानी सब्सिडियरी शुरू कर सकता है। अगर वह ऐसा नहीं करना चाहता तो यहां इकाई का विदेशी कंपनी का दर्जा बरकरार रखते हुए भारत में संपर्क, परियोजना या शाखा कार्यालय खोल सकता है। आमतौर पर यह भी उम्मीद की जाती है कि एफडीआई निवेशक का दीर्घावधि निवेश होगा। इसमें उनका वित्त के अलावा दूसरी तरह का भी योगदान होगा। किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारत स्थित किसी कंपनी में अपनी शाखा, प्रतिनिधि कार्यालय या सहायक कंपनी द्वारा निवेश करने को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) कहते हैं।
रिटेल का मतलब क्या होता है?
रिटेल स्टोर वह है, जहां से तैयार चीजें सीधे कन्ज़यूमर तक पहुंचती हैं।
सिंगल ब्रैंड रिटेल स्टोर का मतलब क्या होता है?
ऐसा स्टोर जहां...
- इंटरनेशनल लेवल पर स्थापित एक ब्रैंड का एक ही प्रॉडक्ट बेचा जाएगा।
- एक ही कंपनी के मल्टीप्रॉडक्ट भी एक स्टोर में नहीं बेचे जा सकते।
- तैयार चीजें ही बिकेंगी। उसमें कोई बदलाव कर नए सिरे से बेचने की इजाजत नहीं है।
मल्टीब्रैंड रिटेल स्टोर का मतलब क्या होता है?
-मल्टीब्रैंड रिटेल स्टोर उसे कहेंगे, जिसमें एक छत के नीचे आपको कई ब्रैंड के प्रॉडक्ट मिल जाते हैं। कह सकते हैं कि आसपास मौजूद किराना दुकान का ही यह सुधरा हुआ रूप होगा।
मल्टीब्रैंड रिटेल स्टोर में काम करने वाली बड़ी कंपनियां कौन-कौन सी हैं?
- वॉलमार्ट, टिस्को, केयरफोर जैसी बड़ी कंपनियों के स्टोर दुनिया भर में फैले हुए हैं।
मल्टीब्रैंड रीटेल में एफडीआई के क्या फायदे हैं?
- इससे भारत में पूंजी का प्रवाह तेज होगा और मुल्क की इकॉनमी मजबूत होगी।
- इससे लगभग 1.5 करोड़ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नौकरियां पैदा होंगी।
- किसानों को बेहतर मुनाफा मिलेगा। उन्हें बिचौलिये से छुटकारा मिल जाएगा। उनसे माल सीधा खरीदा जाएगा, जिसके बदले उन्हें सही कीमत मिलेगी।
- ग्राहकों के पास सस्ती दरों पर प्रॉडक्ट खरीदने के कई विकल्प होंगे। कॉम्पिटिशन से कन्ज़यूमर को फायदा मिलेगा।
एफडीआई के नुकसान में दिए जाने वाले तर्क
- देसी बाजार पूरी तरह ध्वस्त हो जाएगा। छोटे और मंझोले दुकानदार कॉपिटिशन में नहीं टिक पाएंगे। उनका रोजगार ठप हो जाएगा।
- देसी बाजार से जुड़े लाखों लोगों से रोजगार छीन लिया जाएगा।
- भारत से कमाई कर विदेशी कंपनियां अपना मुनाफा तो कमाएंगी, देश को आमदनी नहीं होगी।
भारतीय इकॉनमी में रिटेल इंडस्ट्री की क्या अहमियत है?
- देश में असंगठित रीटेल इंडस्ट्री कुल जीडीपी का 14 फीसदी और कुल रोजगार का 7 फीसदी कवर करता है।
रिटेल में एफडीआई यह हो सकता है फायदा
- एफडीआई से अगले तीन साल में रिटेल सेक्टर में एक करोड़ नई नौकरियां मिलने की संभावना है।
- ऐसा माना जा रहा है कि किसानों को बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी और अपने सामान की सही कीमत भी।
- सरकार मानती है कि रिटेल में एफडीआई से लोगों को कम दामों पर मिलेगा बेहतर सामान।
- शर्त के अनुसार विदेशी कंपनियां कम से कम 30 फीसदी सामान भारतीय बाजार से ही लेगी। इससे लोगों की आय बढ़ेगी और औद्योगिक विकास दर में भी सुधार होगा।
- बड़े शहरों में ही खुलेगी संगठित क्षेत्र की शॉप्स। सस्ता मिलेगा छोटे दुकानदारों को सामान।
रिटेल में एफडीआई से यह होगा नुकसान
- विरोधियों का मानना है कि विदेशी कंपनियां सस्ता सामान बेचकर लुभाएंगी। देशी दुकानदार नहीं कर पाएंगे मुकाबला।
- रिटेल में विदेशी निवेश से छोटी दुकानें खत्म हो जाएगी और लोगों के समक्ष रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा।
- छोटे दुकानदारों का धंधा ठप हो जाएगा और किसानों को भी उनकी उपज का वाजिब मूल्य नहीं मिलेगा।
- विदेशी कंपनियां 70 प्रतिशत सामान अपने बाजार से ही खरीदेगी और ऐसे में घरेलू बाजार से नौकरी छिनेगी।
- बड़ी विदेशी कंपनियां बाजार का विस्तार नहीं करेंगी बल्कि मौजूदा कंपनियों का अधिग्रहण कर बाजार पर ही काबिज हो जाएंगी। (Amar Ujala)
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