07 सितंबर 2012
सटीक नहीं होती मौसम विभाग की भविष्यवाणी!
सरकार ने स्वीकार किया है कि मॉनसून की बारिश के बारे में भारतीय मौसम विभाग की शुरुआती भविष्यवाणी साल 2007 से 2011 के दौरान महज आधी ही सही रही है। इस स्वीकारोक्ति के बाद मॉनसून की आधिकारिक भविष्यवाणी के लिए अपनाया जा रहा मॉडल फिर सुर्खियों में है।
बुधवार को विज्ञान व तकनीक राज्य मंत्री अश्विनी कुमार ने संसद में कहा कि साल 2007-11 के दौरान मॉनसून की भविष्यवाणी महज 50 फीसदी सही साबित हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर सरकार का बयान सही है तो फिर भविष्यवाणी के मॉडल में कुछ गंभीर खामियां हैं। उन्होंने कहा कि अगर आधे वक्त में वास्तविक बारिश अनुमान के मुकाबले कम होती है तो इसका मतलब यह हुआ कि भविष्यवाणी बेतरतीब तरीके से की गई है और निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए अपनाई गई पद्धति में कहीं कुछ कमी है।
भारतीय मौसम विभाग पिछले करीब 100 साल से मौसम की भविष्यवाणी के लिए सांख्यिकीय मॉडल अपनाता रहा है, लेकिन साल 2002 व 2004 के गंभीर सूखे ने इसे बदलने पर मजबूर किया। अभी वह सांख्यिकीय मॉडल के संशोधित संस्करण का इस्तेमाल कर रहा है। इस मॉडल के जरिए की जाने वाली भविष्यवाणी एन्सेम्बल मल्टीपल लिनियर रिग्रेशन (ईएमआर) और प्रोजेक्शन परसुइट रिग्रेशन (पीपीआर) तकनीक पर आधारित है।
खुद मौसम विभाग ने स्वीकार किया है कि जब 1981 व 2004 के बीच करीब 23 साल तक मॉनसून की भविष्यवाणी के लिए नए मॉडल को अपनाया गया तो इसके नतीजे ज्यादा सही पाए गए। हालांकि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि मॉडल में चाहे बदलाव किए गए हों, लेकिन इसका प्रदर्शन अभी तक सटीक नहीं रहा है।
साल 2007 से जब मौसम विभाग ने नए व संशोधित मॉडल का इस्तेमाल पहली बार शुरू किया तो वास्तविक बारिश तीन बार लंबी अवधि के अनुमान को पार कर गई, जो वास्तव में 50 फीसदी बैठती है। इस अवधि में 2009 का सूखा भी शामिल है। उस साल आईएमडी ने पहले कहा था कि पूरे सीजन में बारिश लंबी अवधि की औसत (एलपीए) की 96 फीसदी रहेगी, जबकि वास्तविक बारिश एलपीए की करीब 77 फीसदी रही और इस वजह से देश ने तीन दशक में सूखे का सबसे खराब दौर देखा। (BS Hindi)
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