21 सितंबर 2012
तांबे की खपत में नरमी के आसार
तांबे की खपत वाले प्रमुख क्षेत्रों मसलन निर्माण, बिजली, औद्योगिक मशीनरी आदि में जारी नरमी से इस कैलेंडर वर्ष में देश में तांबे की खपत में सुस्ती बनी रहने की संभावना है। देश में तांबे के कुल उत्पादन का करीब 90 फीसदी इन्हीं क्षेत्रों में इस्तेमाल होता है, लेकिन ये क्षेत्र पिछले कई महीनों से उपभोक्ताओं की तरफ से खर्च में कमी का सामना कर रहे हैं, लिहाजा इस साल तांबे की कुल विकास दर घट गई है।
अग्रणी रेटिंग फर्म इक्रा के अध्ययन में कहा गया है कि इस साल देश में तांबे की खपत में महज 4 फीसदी की बढ़ोतरी होगी जबकि पिछले साल यह 6.3 फीसदी रही थी। अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि इस साल कुल 5.62 लाख टन तांबे की खपत होगी जबकि पिछले साल 5.40 लाख टन तांबे की खपत हुई थी। देश में तांबे की खपत का सीधा जुड़ाव अर्थव्यवस्था के विकास से है। ऐसे में तांबे के इस्तेमाल में कमी से संकेत मिलता है कि इलेक्ट्रिक व इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद समेत इन क्षेत्रों में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग घटेगी। इन क्षेत्रों में तांबे का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है। इक्रा के विश्लेषण में कहा गया है कि इस्तेमाल करने वाले उद्योगों में नरमी के चलते भारत में तांबे की खपत में साल 2012 के दौरान घट सकती है।
भारत में प्रति व्यक्ति तांबे की खपत साल 2000 में 0.23 किलोग्राम थी, जो साल 2011 में बढ़कर 0.5 किलोग्राम हो गई है। लेकिन अगर चीन से इसकी तुलना की जाए तो यह काफी कम है क्योंकि वहां प्रति व्यक्ति खपत 5.9 किलोग्राम है।
मध्यम अवधि में भारत में प्रति व्यक्ति तांबे की खपत चीन की तरह बढऩे की संभावना नहीं है।प्राइसवाटरहाउस कूपर्स के मैनेजर पुखराज सेतिया ने कहा, पिछले कुछ महीनों को छोड़ दें तो आम धातुओं खास तौर से तांबे की मांग पिछले कुछ सालों में धीरे-धीरे बढ़ी है। सामान्य तौर पर आम धातुओं का बाजार स्थिर रहा है और विभिन्न अवधि में कीमतें बढ़ी हैं। आम धातुओं के परिदृश्य भी अपेक्षाकृत स्थिर मांग का संकेत दे रहा है और लंबी अवधि में कीमत का परिदृश्य भी ठीक है। पिछले कुछ सालों से देश में तांबे के उत्पादन की क्षमता करीब 9.50 लाख टन सालाना रही है, जो साल 2014-15 तक बढ़कर 14.5 लाख टन होने की संभावना है। इस तरह से यूरोप व अफ्रीका को रिफाइंड तांबे और इसके उत्पादों का निर्यात ज्यादा होगा।
वैश्विक बाजार में तांबे की कीमतों में बढ़ोतरी से पिछले कुछ सालों के मुकाबले आम धातु क्षेत्र में निवेश में सुधार हुआ है। उदाहरण के तौर पर सार्वजनिक कंपनी हिंदुस्तान कॉपर ने निजी कंपनियों को शामिल कर अपनी बंद पड़ी खदानों को शुरू किया है। आम धातुओं की मांग के ज्यादातर हिस्से की आपूर्ति के लिए भारत अभी भी आयात पर निर्भर करता है और इस क्षेत्र में निवेश की संभावनाएं हैं।
हालांकि तांबे की वैश्विक कीमतें 17.2 फीसदी बढ़कर 8828 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है, पर अगस्त 2011 से इसमें तेज गिरावट देखी गई थी। इसकी तुलना में घरेलू कीमतें 16.6 फीसदी बढ़कर औसतन 455.3 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई। रुपये में गिरावट के चलते घरेलू कीमतें हालांकि धीमी रफ्तार से नीचे आई है। वैश्विक स्तर पर साल 2011 की कुल खपत में चीन की हिस्सेदारी 40.6 फीसदी रही है, इसके बाद अमेरिका की 9 फीसदी, जर्मनी की 6.4 फीसदी, जापान की 5.2 फीसदी, दक्षिण कोरिया की 4 फीसदी और भारत की 2.8 फीसदी रही है। एक ओर जहां वैश्विक खपत में चीन की हिस्सेदारी साल 2000 में 12.7 फीसदी थी और यह साल 2011 में 40.6 फीसदी पर पहुंच गई, वहीं भारत की हिस्सेदारी 1.6 फीसदी से बढ़कर 2.8 फीसदी ही हो पाई है।
सेतिया को हालांकि लगता है कि आम धातुओं का परिदृश्य काफी कुछ चीन के आर्थिक प्रदर्शन पर निर्भर करता है, जिसकी हिस्सेदारी वैश्विक स्तर पर आम धातुओं की खपत में 40 फीसदी से ज्यादा है। वैसे ज्यादा समय तक अर्थव्यवस्थाओं में नरमी से मुनाफे पर दबाव और बढ़ेगा, हालांकि मुनाफा अभी स्थिर है। (BS HIndi)
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