07 सितंबर 2012
दूध पाउडर का भंडार
दूध व दुग्ध उत्पादों के कारोबार से जुड़ी कंपनियों के लिए प्रचुरता की समस्या पैदा हो गई है। उनके पास स्किम्ड मिल्क पाउडर का बड़ा भंडार इकट्ठा हो गया है क्योंकि निर्यात बाजार में इसकी चमक धुंधली हो गई है। इसके परिणामस्वरूप मिल्क पाउडर के निर्यात से जुड़ी निजी कंपनियों ने क्षमता में कटौती कर दी है। दूसरी ओर दूध खरीद की लागत बढ़ रही है क्योंकि चारे आदि की ऊंची लागत से दबाव बढ़ रहा है, ऐसे में कुछ डेयरियां कीमतों में बढ़ोतरी पर विचार कर रही हैं।
एक ओर जहां केंद्र सरकार ने इस साल जून में स्किम्ड मिल्क पाउडर से निर्यात पर पाबंदी हटा ली है, वहीं वैश्विक बाजार में कम कीमतों से चलते इसका निर्यात नहीं हो रहा है।
डेयरी विशेषज्ञों के मुताबिक, उद्योग के पास करीब 1.50 लाख टन स्किम्ड मिल्क पाउडर का भंडार जमा हो गया है। बिजनेस स्टैंडर्ड से बातचीत में पंजाब मिल्कफेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा - वैश्विक बाजार की कीमतें निर्यात के उपयुक्त नहीं है। मौजूदा समय में इसका भाव 135-140 रुपये प्रति किलोग्राम (2.7 डॉलर प्रति किलो) है। उन्होंने कहा कि 160-170 रुपये प्रति किलोग्राम की लागत के मुकाबले यह कम है और ऐसे वक्त में हम इसका निर्यात करने में अक्षम हैं। मार्कफेड का मशहूर ब्रांड वेरका है और यह रोजाना करीब 9 लाख लीटर दूध का प्रसंस्करण करता है। मिल्कफेड ने वेरका ब्रांड दूध की कीमतें पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में इस साल अगस्त में 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ाई है।
मदर डेयरी, अमूल और अनन्य राज्य सहकारी संस्थाएं दूध की खरीद में 15-25 फीसदी की बढ़ोतरी से दो-चार हो रही हैं क्योंकि एसएमपी तैयार करने वाली निजी कंपनियां काफी कम क्षमता पर संचालित हो रही हैं ताकि उनका पुराना स्टॉक खाली हो जाए। साथ ही देश के कई इलाकों में सूखे जैसे हालात के चलते पिछले कुछ महीनों में चारे की लागत में करीब 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। दूध उत्पादकों पर इन चीजों का भी दबाव पड़ा है।
दूसरी डेयरियों के मुकाबले मदर डेयरी (एनसीआर की प्रमुख कंपनी) स्थिति की समीक्षा कर रही है। मदर डेयरी के प्रवक्ता ने कहा - एनसीआर में हमारा काफी माल बिकता है और पिछले 12 महीने में हमने कीमतें नहीं बढ़ाई हैं। लागत में हुई बढ़ोतरी का भार हम खुद ही उठा रहे हैं। हम स्थिति की समीक्षा करेंगे और जल्द ही इस बाबत फैसला लेंगे। पिछली बार 11 सितंबर 2011 को कीमतें बढ़ाई गई थी और टोन्ड व फुल क्रीम दूध की कीमतें 2-2 रुपये प्रति लीटर जबकि डबल टोन्ड की कीमतें 1 रुपये प्रति लीटर बढ़ाई गई थी।
विशेषज्ञों ने कहा कि पिछले साल दुग्ध संघों के साथ-साथ निजी कंपनियों ने दूध की कीमतों में औसतन 5-6 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी। दूध की कीमतों में बढ़ोतरी से किसान डेयरी फॉर्मिंग में ज्यादा रुचि लेने लगे थे क्योंकि यह कारोबार लाभदायक हो गया था। इसके परिणामस्वरूप हर दुग्ध संघ में दूध की खरीद 15-25 फीसदी बढ़ गई। प्रोग्रेसिव डेयरी फार्मर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दलजीत सिंह सरदपुरा ने कहा - हालांकि किसानों का मानना है कि चारे व अन्य लागत में बढ़ोतरी को देखते हुए उन्हें कम से कम 3-4 रुपये प्रति लीटर ज्यादा भुगतान करना चाहिए।
सबसे बड़ी कंपनी अमूल हालांकि थोड़ी ज्यादा सहज स्थिति में है। गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन के प्रबंध निदेशक आर एस सोढ़ी ने कहा - हमारे लिए निर्यात बाजार के बजाय देसी बाजार बेहतर है। ब्रांड प्रीमियम पर हमारा नियंत्रण है। पिछले एक हफ्ते में निर्यात की कीमतें 6-7 फीसदी सुधरी हैं, लेकिन अभी इसे लंबा रास्ता तय करना है। आगामी महीनों में हमें निर्यात में सुधार की उम्मीद है। अमूल को देश में एसएमपी का सबसे बड़ा निर्यातक माना जाता है।
सोढ़ी ने यह भी कहा - दूध की खरीद में बढ़ोतरी के बावजूद संघ की योजना दूध की कीमतें बढ़ाने की नहीं है। पिछले साल इसने अप्रैल 2012 में कीमतें बढ़ाई थी। सोढ़ी ने कहा कि पिछले हफ्ते गुजरात में हुई बारिश के चलते चारे की उपलब्धता में सुधार हुआ है।
कुछ इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा - अगर हम पिछले साल के तुलना करें तो दूध की किल्लत थी और फरवरी में एसएमपी की कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम थीं और कई दुग्ध संघों मसलन बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश आदि की तरफ से एसएमपी की खरीद इन संघों से नहीं होने के चलते एसएमपी की कीमतें पिछले साल की तुलना में काफी ज्यादा घट गई हैं। हमारे पास करीब 10,000 टन एसएमपी का भंडार है और इसे बेचने के लिए हम तीन बार निविदा जारी कर चुके हैं, लेकिन आकर्षक कीमतें न मिलने पर इसे रद्द कर दिया गया। कर्नाटक मिल्क कोऑपरेटिव ने सभी श्रेणी की कीमतें जनवरी में 3 रुपये प्रति लीटर बढ़ाई थी, लेकिन एक अधिकारी के मुताबिक, तत्काल कीमतें बढ़ाने की उनकी कोई योजना नहीं है। (BS Hindi)
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