देश के सालाना चीनी उत्पादन में एक चौथाई योगदान वाला राज्य उत्तर प्रदेश गन्ने की कीमत और बकाये को लेकर एक और 'कड़वे' पेराई सीजन की तरफ बढ़ता लग रहा है। करीब एक दर्जन चीनी मिलों के चालू होने के साथ पेराई सीजन 2015-16 प्रारंभ हो गया है। इन मिलों में निजी और सहकारी दोनों क्षेत्रों की मिलें शामिल हैं, लेकिन निजी मिलों पर अब भी पिछले पेराई सीजन की गन्ने की बकाया राशि करीब 3,000 करोड़ रुपये है।
चालू पेराई सीजन के लिए किसानों ने गन्ने की सामान्य किस्म की कीमत 350 रुपये प्रति क्विंटल मांगी है, जबकि कुछ ने तो 400 रुपये प्रति क्विंटल तक की कीमत मांगी है। उत्तर प्रदेश में 90 से अधिक निजी मिलों ने कहा है कि चीनी की घरेलू कीमतों में गिरावट से उनकी भुगतान क्षमता प्रभावित हुई है। चीनी उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अपना नाम न प्रकाशित करने का आग्रह करते हुए बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि किसानों द्वारा मांगी गई कीमत और मिलों की तथाकथित भुगतान क्षमता के बीच भारी अंतर है। किसान 350 रुपये प्रति क्विंटल कीमत मांग रहे हैं, जबकि निजी मिलें केवल 190 से 192 रुपये प्रति क्विंटल की दर से भुगतान कर सकती हैं। चीनी क्षेत्र राजनीतिक हस्तक्षेप वाला क्षेत्र है क्योंकि 50 लाख किसान परिवार सीधे गन्ने की खेती से जुड़े हुए हैं। चीनी क्षेत्र खुद 30,000 करोड़ रुपये का होने का अनुमान है। इसके अलावा गन्ने का इस्तेमाल असंगठित बाजार में गुड़ एवं खांडसारी के उत्पादन में होता है।
चालू सीजन के लिए केंद्र ने गन्ने का उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) करीब 230 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। यह आधार कीमत है, जो देश की चीनी मिलों को किसानों को चुकानी होगी। उत्तर प्रदेश हर साल राज्य परामर्शी कीमत (एसएपी) की घोषणा करता है। यह आमतौर पर एफआरपी से ज्यादा होती है, ताकि राजनीतिक वजहों से किसानों को खुश रखा जा सके। राज्य परामर्शी कीमत की व्यवस्था को निजी मिलों ने चुनौती देते हुए इसे स्वैच्छिक एवं कानून के खिलाफ बताया है।
उत्तर प्रदेश में पिछले बार राज्य परामर्शी कीमत वर्ष 2012-13 में 17 फीसदी बढ़ाकर 280 रुपये प्रति क्विंटल (सामान्य किस्म) की गई थी। उत्तर प्रदेश में इस नकदी फसल में ज्यादार हिस्सा सामान्य किस्म का ही होता है। इसके बाद के पेराई सीजनों वर्ष 2013-14 और 2014-15 में एसएपी को 280 रुपये प्रति क्विंटल पर ही बरकरार रखा गया है। पिछली बार एसएपी की घोषणा 12 नवंबर को की गई थी। मिलों से कहा गया था कि वे 240 रुपये का अगाऊ भुगतान करें और शेष हिस्सा पेराई सीजन के अंत में दें, ताकि किसानों और मिलों दोनों के ही हितों का संरक्षण हो सके। कई मौकों पर उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार कह चुकी है कि चीनी बाजार की प्रतिकूल स्थितियों के कारण किसानों और मिलों दोनों को ही चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
घरेलू कीमतों में गिरावट की वजह घरेलू चीनी बाजार में सरप्लस और निर्यात प्रतिबंधों को बताया जा रहा है। केंद्र ने घरेलू चीनी कंपनियों की मदद के लिए चीनी निर्यात के नियमों को उदार बना दिया है और 6,000 करोड़ रुपये के सॉफ्ट लोन के प्रावधान की घोषणा की है। इस बीच पेराई सीजन चालू महीने के अंत तक अपने चरम पर होने के आसार हैं और तब तक 115 से अधिक मिलें चालू हो सकती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने 9 नवंबर को निजी मिलों से 20 नवंबर तक पेराई चालू करने को कहा था।
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