केंद्र सरकार की ओर से गन्ना किसानों को दी गई सब्सिडी का जहां उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिकों ने स्वागत किया है, वहीं किसानों ने इसे नाकाफी बताते हुए राहत के नाम पर मजाक करार दिया है। हालांकि प्रदेश सरकार का मानना है कि इससे वर्तमान पेराई सत्र के लिए गन्ना मूल्य निर्धारण में आंशिक ही सही पर सहूलियत रहेगी। प्रदेश के गन्ना किसानों का कहना है कि एक तरफ तो सरकार चीनी मिल मालिकों पर उनका बकाया 1,306 करोड़ रुपये का ब्याज माफ कर देती है लेकिन दूसरी ओर उन्हें सब्सिडी के नाम पर महज चंद रुपये दिए जा रहे हैं। प्रदेश के गन्ना किसानों के नेता और मिल मालिकों के खिलाफ बकाया भुगतान की लड़ाई लडऩे वाले वीएम सिंह का कहना है कि केंद्र सरकार की सब्सिडी मजाक के सिवा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि गन्ना किसानों की जो हालत है उसमें कम से कम 40 से 50 रुपये की सब्सिडी का ऐलान किया जाना चाहिए था।
गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की कल की बैठक में गन्ना किसानों को प्रति क्विंटल 4.5 रुपये सब्सिडी दिए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी है। इस फैसले से जहां सरकारी खजाने पर 1,147 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा, वहीं नकदी संकट से जूझ रही चीनी मिलों को भी राहत मिलेगी। चीनी मिलों पर पिछले पेराई सत्रों का 6,599 करोड़ रुपये का गन्ना मूल्य बकाया है। किसान नेता वीएम सिंह के मुताबिक उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान पहले से ही भुगतान संकट और चीनी मिलों के अडिय़ल रवैये से परेशान हैं, ऐसे में केंद्र सरकार का यह फैसला जले पर नमक छिड़कने जैसा है।
दूसरी ओर चीनी मिल मालिकों की प्रतिनिधि संस्था उत्तर प्रदेश शुगर मिलर्स एसोसिएशन (यूपीइस्मा) का कहना है कि केंद्र सरकार ने सकारात्मक कदम उठाया है। एसोसिएशन के प्रवक्ता दीपक गुप्तारा के मुताबिक हालांकि अभी भी कीमतों को देखने पर अंतर लगता है पर आने वाले दिनों में चीनी निर्यात होने और खुले बाजार में दाम बढऩे पर इसमें कमी आएगी। उनका कहना है कि अच्छी बात यह है कि सरकार की ओर से चाहे केंद्र हो या राज्य जो भी सब्सिडी दी जा रही है वह सीधे किसानों के खाते में जा रही है। इससे चीनी मिलों की देनदारी भी घट रही है और किसानों को सीधे लाभ मिल रहा है। गुप्तारा का कहना है कि वर्तमान में खुले बाजार में चीनी के 2,800 रुपये प्रति क्विंटल के दाम को देखते हुए मिलें 200 रुपये से ज्यादा गन्ना मूल्य देने की हालत में नहीं हैं। केंद्र सरकार के 230 रुपये की एफआरपी को देखते हुए अभी भी 30 रुपये का अंतर है पर फिर भी यह एक स्वागत योग्य कदम है। (BS Hindi)
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