सरकार ने गन्ना किसानों को 2015-16 सीजन में 4.50 रुपये प्रति क्विंटल उत्पादन संबद्घ सब्सिडी सीधे देने का फैसला किया। सरकार ने नकदी संकट से जूझ रही चीनी मिलों को बकाया भुगतान में मदद के लिए उठाए गए इस कदम से सरकारी खजाने पर लगभग 1,147 करोड़ रुपये का बोझ पड़ेगा। आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में इस आशय का फैसला किया गया। उल्लेखनीय है कि खुदरा बाजारों में चीनी की गिरती कीमतों के कारण चीनी मिलें नकदी संकट से जूझ रही हैं। मिलों पर गन्ना किसानों का लगभग 6,500 करोड़ रुपये बकाया है। बिजली एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल ने सीसीईए की बैठक के बाद यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा, 'बकाये में और कमी लाने और गन्ना किसानों की मदद के लिए सरकार ने डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुरुप वाली एक योजना तैयार की है। गन्ने की कीमत की भरपाई तथा किसानों को गन्ने का समय पर भुगतान सुगम बनाने के लिए उत्पादन सब्सिडी दी जाएगी।' उन्होंने कहा, 'इस प्रस्ताव के तहत चीनी उत्पादन के लिए पेराई किए गए गन्ने के लिए 4.50 रुपये प्रति क्विंटल उत्पादन सब्सिडी गन्ना किसानों को सीधा दिए जाना प्रस्तावित है।' गोयल ने कहा कि इससे कुछ चीनी भंडार का भी इस्तेमाल होगा और कम से कम 80 प्रतिशत निर्यात लक्ष्य हासिल किया जा सकेगा।
उन्होंने कहा कि उत्पादन सब्सिडी से गन्ना किसानों को सीधे तौर पर लगभग 1,147 करोड़ रुपये दिए जाएंगे। खाद्य मंत्रालय ने 2015-16 सीजन (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) 230 रुपये प्रति क्विंटल में से 4.75 रुपये की उत्पादन सब्सिडी देने का प्रस्ताव किया था। मंत्रालय ने प्रस्ताव किया था कि चीनी विकास कोष से उत्पादन सब्सिडी सीधे किसानों के बैंक खातों में डाली जाए। मौजूदा व्यवस्था के तहत चीनी मिलों को केंद्र द्वारा तय एफआरपी या गन्ने की सारी कीमत का भुगतान करना होता है।
एफआरपी वह न्यूनतम कीमत है जिसका भुगतान तो गन्ना किसानों को करना ही होता है। बीते दो सत्रों में चीनी मिलों को चीनी निर्यात सब्सिडी दी गई थी ताकि उन्हें किसानों को भुगतान में मदद की जा सके। लेकिन डब्ल्यूटीओ दायित्वों के चलते इस बार इसे बंद कर दिया गया। देश में इस सीजन में 2.6-2.7 करोड़ टन चीनी उत्पादन का अनुमान है और लगातार छठे साल देश में चीनी का उत्पादन अधिशेष रहना अनुमानित है। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, 'यह फैसला इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सरकार गन्ने की एफआरपी की जिम्मेदारी लेने से बच नहीं रही है और सीधे गन्ने की कीमतों में अपनी हिस्सेदारी दे रही है जबकि अब तक सिर्फ मिल मालिकों पर बोझ डाला जाता था। इससे गन्ने के प्रति उद्योग की जिम्मेदारी कम होगी और घाटा भी।'
सरकार द्वारा मिल मालिकों द्वारा कमाई के आधार पर किए जाने वाले गन्ने के भुगतान और सरकार की मर्जी के मुताबिक किसानों को होने वाली आय के बीच के अंतर को पाटने से गन्ना किसानों का बकाया कम होगा। वर्मा ने कि हालांकि अगर चीनी की कीमतें सीजन के दौरान नहीं सुधरीं तो उद्योग और किसानों को सरकार के बजट से मदद की जरूरत होगी।' उत्तर प्रदेश योजना बोर्ड के एक सदस्य और किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पंवार ने कहा कि यह अपनी तरह का अनोखा प्रयास और लेकिन सब्सिडी के तौर पर दी जाने वाली रकम काफी कम है और कई राज्य सरकारें किसानों को इससे अधिक मदद दे रही हैं। (BS Hindi)
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