भारत सोयाखली का एक प्रमुख निर्यातक है, लेकिन इसकी अंतरराष्ट्रीय कीमतें
घरेलू कीमतों से नीचे गिरने के कारण कारोबारियों ने 10,000 टन सोयाखली के
आयात के अनुबंध किए हैं। घरेलूू बाजार में भारतीय सोयाखली 35,000 रुपये
प्रति टन पर बिक रही है, लेकिन इसका अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भाव 31,500
रुपये प्रति टन है, जिसमें बंदरगाहों तक डिलिवरी का भाड़ा भी शामिल है।
हालांकि देश में सोयाखली के आयात पर 15 फीसदी शुल्क है, लेकिन वैश्विक बाजारों में इसकी कीमतें इतनी गिर गई हैं कि शुल्क चुकाने के बाद भी यह घरेलू सोयाखली से सस्ती पड़ती है। यह आयात मुख्य रूप से चीन से हो रहा है और यह कारोबारियों के माध्यम से हो रहा है। हालांकि जीन संवर्धित सोयाखली के लिए देश में द्वार नहीं खुलेंगे क्योंकि आयात नियमों में कहा गया है कि नॉन-जीएमओ सोयाबीन से उत्पादित खली का ही देश में आयात किया जा सकता है। सोयाबीन की पेराई से तेल निकालने के बाद बचने वाला अवशेष सोयाखली होती है और इसे प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है। भारतीय सोयाखली का भाव हमेशा अंतरराष्ट्रीय बाजार से 50 से 60 डॉलर प्रति टन अधिक होता है क्योंकि इसका उत्पादन गैर जीन संवर्धित सोयाबीन से होता है और इसलिए यह ज्यादा स्वास्थ्यप्रद होती है। लेकिन वैश्विक बाजारों में भारी गिरावट के कारण खुद भारत का सोयाखली निर्यात वर्ष 2015-16 में गिरा है। कीमतों में इतनी गिरावट आई है कि खरीदार घरेलू पेराई इकाइयों से खरीदने के बजाय विदेश से खरीद को तरजीह दे रहे हैं।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 में अप्रैल से सितंबर तक की अवधि के दौरान भारत का सोयाखली निर्यात पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 62 फीसदी गिरा है। वर्ष 2014-15 में भारत ने 6.5 लाख टन सोयाखली का निर्यात किया था, जो वर्ष 2012-13 में करीब 34.3 लाख टन था। भारत सोयाखली का निर्यात दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों जैसे वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया के अलावा अपने पड़ोसी देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल को करता है। यूएसडीए के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015-16 में चीन अब तक 16 लाख टन सोयाखली का निर्यात कर चुका है, जो वर्ष 2010-11 में 4,72,000 टन था।(BS Hindi)
हालांकि देश में सोयाखली के आयात पर 15 फीसदी शुल्क है, लेकिन वैश्विक बाजारों में इसकी कीमतें इतनी गिर गई हैं कि शुल्क चुकाने के बाद भी यह घरेलू सोयाखली से सस्ती पड़ती है। यह आयात मुख्य रूप से चीन से हो रहा है और यह कारोबारियों के माध्यम से हो रहा है। हालांकि जीन संवर्धित सोयाखली के लिए देश में द्वार नहीं खुलेंगे क्योंकि आयात नियमों में कहा गया है कि नॉन-जीएमओ सोयाबीन से उत्पादित खली का ही देश में आयात किया जा सकता है। सोयाबीन की पेराई से तेल निकालने के बाद बचने वाला अवशेष सोयाखली होती है और इसे प्रोटीन का अच्छा स्रोत माना जाता है। भारतीय सोयाखली का भाव हमेशा अंतरराष्ट्रीय बाजार से 50 से 60 डॉलर प्रति टन अधिक होता है क्योंकि इसका उत्पादन गैर जीन संवर्धित सोयाबीन से होता है और इसलिए यह ज्यादा स्वास्थ्यप्रद होती है। लेकिन वैश्विक बाजारों में भारी गिरावट के कारण खुद भारत का सोयाखली निर्यात वर्ष 2015-16 में गिरा है। कीमतों में इतनी गिरावट आई है कि खरीदार घरेलू पेराई इकाइयों से खरीदने के बजाय विदेश से खरीद को तरजीह दे रहे हैं।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के आंकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 में अप्रैल से सितंबर तक की अवधि के दौरान भारत का सोयाखली निर्यात पिछले साल की इसी अवधि के मुकाबले करीब 62 फीसदी गिरा है। वर्ष 2014-15 में भारत ने 6.5 लाख टन सोयाखली का निर्यात किया था, जो वर्ष 2012-13 में करीब 34.3 लाख टन था। भारत सोयाखली का निर्यात दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों जैसे वियतनाम, थाईलैंड, इंडोनेशिया के अलावा अपने पड़ोसी देशों बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल को करता है। यूएसडीए के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2015-16 में चीन अब तक 16 लाख टन सोयाखली का निर्यात कर चुका है, जो वर्ष 2010-11 में 4,72,000 टन था।(BS Hindi)
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