आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी में सरसों की बुवाई में 10 से 15 फीसदी की कमी आने की आषंका है। फसल सीजन 2014-15 में देष में 65 लाख हैक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई थी।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएषन आफ इंडिया (एसईए) के अध्यक्ष प्रवीन एस लूखंड के अनुसार उत्तर भारत में मानसूनी बारिष की कमी से खेतों में नमी की मात्रा कम है जिसका असर इसकी बुवाई पर पड़ा है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में किसानों के सरसों के बजाए चना या फिर अन्य दलहनी फसलों की बुवाई ज्यादा की है जिससे इसकी बुवाई में 10 से 15 फीसदी की कमी आने की आषंका है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में अभी तक देषभर में 42.51 लाख हैक्टेयर में सरसों की बुवाई हुई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 54.07 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी।
उन्होंने कहां कि किसानों का तिलहनी फसलों से मोहभंग हो रहा है तथा पिछले दो साल से इसकी पैदावार में भारी कमी देखी जा रही है जिसका सीधा असर उद्योग पर पड़ रहा है। उद्योग के सामने कच्चे माल की उपलब्धता कम रहती है साथ ही आयात पर निर्भरता बढ़ रही है। इसको देखते हुए केंद्र सरकार को पाम आयल की खेती को बढ़ावा देना चाहिए जिससे देष में खाद्य तेलों के आयात में कमी लाई जा सके। सरकार ने तिलहनों की पैदावार बढ़ाने के लिए पॉम आयल की स्कीम तो बना रखी है लेकिन उसमें काम काफी धीमी गति से हो रहा है।
उन्होंने बताया कि देष में तिलहनों की पैदावार कम होने के परिणामस्वरुप तेल वर्ष 2014-15 (नवंबर-14 से अक्टूबर-15) के दौरान रिकार्ड 146.1 लाख टन वनस्पति तेलों (खाद्य और अखाद्य तेल मिलाकर) का आयात हो चुका है जोकि पिछले साल 118.2 लाख टन तेलों का आयात हुआ था।.......आर एस राणा
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