सार्वजनिक वितरण प्रणाली आज कालाबाजारियों, बिचौलियों, छुटभैये नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों के लिए भ्रष्टाचार का जरिया बनकर रह गई है.
गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे परिवारों की खाद्य सुरक्षा के मकसद से शुरू की गई सार्वजनिक वितरण प्रणाली आज कालाबाजारियों, बिचौलियों, छुटभैये नेताओं और भ्रष्ट नौकरशाहों के लिए भ्रष्टाचार का जरिया बनकर रह गई है. इस योजना को अमली जामा पहनाने वाले महकमें में ऊपर से लेकर नीचे तक रिश्वत, आपूर्ति में हेरा-फेरी, घटिया व कम अनाज वितरण और घोटाले का राज है. यही वजह है कि हमारी सर्वोच्च अदालत कई बार केंद्र और प्रदेश सरकारों को इस मामले में फटकार लगा चुकी है. वितरण प्रणाली को अधिक व्यावहारिक व पारदर्शी बनाने के लिए उसने अपनी ओर से कई निर्देश भी दिए, लेकिन पीडीएस को लेकर सूबाई सरकारों की उदासीनता कहें या फिर कोताही, उन्होंने इस राह में कोई कारगर पहल नहीं की.
हालिया मामला, उत्तर प्रदेश का है. सीबीआई ने हाल में व्यापक छानबीन के बाद यूपी के छह जिलों में पीडीएस में भ्रष्टाचार के आरोप में वितरकों और अफसरों के खिलाफ मामले दर्ज किए हैं. सीबीआई ने जांच के बाद स्वीकार किया कि यह घोटाला करीबन दो लाख करोड़ रुपए का है और यह केवल यूपी तक सीमित नहीं है. यानी, उत्तर प्रदेश के पीडीएस भ्रष्टाचार के तार मुल्क के बाकी हिस्सों में भी फैले हुए हैं. सीबीआई ने अपनी जांच में अनियमितताओं के लिए वितरकों और अफसरों के साथ-साथ राजनीतिकों को भी कसूरवार ठहराया है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली में भ्रष्टाचार पर कमोबेश ऐसी ही राय सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त जस्टिस डीपी वाधवा कमेटी की है. जस्टिस वाधवा ने मुल्क के कई सूबों में विस्तृत छानबीन की और यह निष्कर्ष निकाला कि गरीबों को सस्ते दामों पर अनाज मुहैया कराने की केन्द्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना महज भ्रष्टाचार की वितरण प्रणाली बनकर रह गई है.
दरअसल, फर्जी राशन कार्ड और गलत नाम दर्ज करके गरीबों के हिस्से का अनाज खुले बाजार में बेच देने के मामले पूरे देश में जब-तब सामने आते रहे हैं. कई प्रदेशों में फर्जी नंबर वाले ट्रकों के जरिए भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से अनाज उठाकर सीधे व्यापारियों के यहां पहुंचाने के सैकड़ों मामले दर्ज किए गए हैं. भारतीय खाद्य निगम एवं नागरिक आपूर्ति निगम के गोदामों से पीडीएस दुकानों की दूरी ज्यादा होती है. ऐसे में बीच से ही खाद्यान्न से भरे ट्रक गायब कर दिए जाते हैं जो अक्सर फ्लोर मिलों, बिस्कुट बनाने वाली कंपनियों को बेच दिए जाते हैं. लेकिन, यूपी में हालात और भी विकराल हैं. सीबीआई ने अपने खुलासे में बताया है कि सूबे में पीडीएस के खाद्यान्न को पड़ोसी मुल्कों में गैरकानूनी ढंग से बेच दिया जाता है. यानी, सूबे में अनाज की कालाबाजारी करने वाले सिंडिकेट के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्हें गरीबों के हक के अनाज को मुल्क के बाहर बेच देने में भी कोई हिचक नहीं.
गौरतलब है कि पीडीएस के तहत बांटा जाने वाला अनाज लाईसेंसशुदा वितरकों को उस इलाके में जरूरतमंदों की संख्या के आधार पर जारी किया जाता है. गोदाम से भेजे गए अनाज की रसीद पर वितरक के हस्ताक्षर और उसकी टिप्पणी भी आवश्यक है. फिर फर्जी वितरक भारतीय खाद्य निगम के गोदामों से अनाज किस तरह से उठा लेते हैं, यह सचमुच शोध का विषय है. सरकारी राशन की दुकानों के अनाज की लूट बढ़ती जा रही है. जरूरतमंदो के हिस्से का अनाज कालाबाजारी कर बाजार में खुलेआम बेचा जा रहा है. यह लूट घटने की बजाय साल दर साल बढ़ती जा रही है.
एक अनुमान के मुताबिक साल 2004-05 में 9918 करोड़ रुपए का अनाज कालाबाजारी के जरिए बाजार में पहुंचा तो साल 2005-06 में यह लूट 10,330 करोड़ रुपए की हो गई और 2006-07 में 11336 करोड़ रुपए की आंकी गई. यानी, इन तीन सालों में जरूरतमंद लोगों को आवंटित 31,500 करोड़ रुपए के गेहूं और चावल डीलरों, नौकरशाहों और नेताओं ने लूट लिए. जाहिर है यह छोटी लूट नहीं है. यह कितनी बड़ी है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह राशि स्वास्थ्य पर दो साल के सरकारी बजट के बराबर है तो शिक्षा पर सालाना होने वाले खर्च के बराबर है. खुद, केंद्र सरकार द्वारा तैयार एक अध्ययन के आंकड़े बतलाते हैं कि हर साल पीडीएस का 53 फीसद गेहूं और 39 फीसद चावल कालाबाजारी के जरिए खुले बाजार में चला जाता है. यानी, आधा गेहूं और चावल जरूरतमंदों तक पहुच ही नहीं पाता.
बहरहाल, उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों के हक पर इतना बड़ा डाका चौंकाने वाला है और यह हैरानी इसलिए भी है सरकार पीडीएस के अनाज की कालाबाजारी पर चुप्पी साधे बैठी है. इतने बड़े घोटाले के उजागर होने के बाद भी दोषियों की धरपकड़ के लिए राज्य में कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है. सिर्फ 6 जिलों में, कुछ मामले रस्मअदायगी की खातिर केस दर्ज किए गए हैं. यदि सरकार इस मामले में जरा भी संजीदा होती तो, गुनहगारों पर तुरंत कार्रवाई की जाती. मालूूम नहीं सरकार की ऐसी क्या मजबूरी है कि उसकी आंखों के सामने गरीबों का निवाला छिन रहा है और वह उसे देखकर भी लगातार नजरअंदाज कर रही है. लगता है सार्वजनिक वितरण प्रणाली में फैला भ्रष्टाचार सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल नहीं है. यह उसकी असंवेदनशीलता ही दर्शाता है. जहां तक सीबीआई की तहकीकात का सवाल है, सीबीआई के कई जांच दलों की महीनों की छान-बीन के बाद भी सूबे में कोई बेहतर तस्वीर सामने निकलकर नहीं आई है. हालांकि, उसने यह इशारा जरूर किया है कि इस घोटाले में नेताओं का भी हाथ है, फिर भी इस मामले में अभी तक कोई बड़ी गिरफ्तारी न होना सीबीआई की कार्यशैली पर भी सवालिया निशान लगाता है. (जाहिद खान)
25 मई 2011
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