मुंबई May 24, 2011
देश भर के हजारों गिनर्स व स्पिनर्स के लिए यह झटके से कम नहीं है क्योंकि सूती धागे व रुई की कीमतें इतिहास में पहली बार लुढ़ककर एकसमान स्तर पर आ गई हैं। यहां रुई से तात्पर्य ऐसे उत्पाद से है जो साफ-सुथरी है यानी इसका इस्तेमाल तत्काल प्रसंस्करण में किया जा सकता है।सामान्य तौर पर कच्चे कपास में 6-7 फीसदी ऐसे तत्व होते हैं जिसे प्रसंस्करण के जरिए निकाल बाहर करने के बाद साफ रुई मिल पाती है। कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन टैक्सटाइल इंडस्ट्री (सिटी) के महानिदेशक डी के नायर ने कहा - सामान्यत: धागे की कीमतें कच्चे कपास की 65 फीसदी होती है और 35 फीसदी बदलाव की लागत होती है। इसे दूसरे तरीके से इस तरह देखा जा सकता है कि 70-72 फीसदी साफ रुई की कीमत होती है और 28-30 फीसदी प्रसंस्करण की लागत। उन्होंने कहा - चूंकि सूती धागे की कीमतें साफ रुई के स्तर पर आ गई हैं, लिहाजा फैब्रिक विनिर्माता बदलाव की लागत वसूल करने में सक्षम नहीं हैं।नायर ने कहा - मौजूदा निचले स्तर पर भी मिलें खरीदारी इसलिए नहीं कर रही हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अभी कीमतों में और गिरावट आएगी। इसके परिणामस्वरूप मिलें नुकसान में चल रही हैं।मौजूदा समय में सूती धागे की कीमतें 190-200 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर है, जो साफ रुई की कीमत के बराबर है। पिछले एक महीने में सूती धागे की कीमतें 280 रुपये प्रति किलोग्राम से लुढ़ककर 200 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास आ गई हैं। कीमतों में गिरावट मुख्य रूप से धागे के बढ़ते स्टॉक और निर्यात सीमा की वजह से आई है। कपास की कीमतों में गिरावट से भी मिलों की परेशानियां बढ़ गई हैं। बेंचमार्क शंकर-6 किस्म के कपास की कीमतें गिरकर 47,000 रुपये प्रति कैंडी पर आ गई हैं जबकि इस साल अप्रैल में यह 62,000 रुपये प्रति कैंडी के भाव पर बिक रहा था।लेकिन इस माहौल में एक पखवाड़े के भीतर बदलाव आने की उम्मीद है जब मिलों के पास पड़ा सूती धागे का मौजूदा स्टॉक बिक जाएगा। मुद्रा लाइस्टाइल लिमिटेड के कंपनी सेक्रेटरी और प्रवक्ता महेश पोद्दार ने कहा - धागे की ताजा खरीद के लिए हम बाजार के स्थिर होने का इंतजार कर रहे हैं। लेकिन खरीदारी को अनिश्चितकाल के लिए नहीं टाला जा सकता क्योंकि मिलों को संचालित किए रखना भी जरूरी है। ऐसे में हम अगले महीने से आक्रामक तरीके से खरीदारी करेंगे। यह कंपनी परिधानों का उत्पादन करती हैं और इसके पास कपड़ा मिलें भी है। स्पष्ट रूप से वैश्विक स्तर पर सूती धागे की कीमतें कम हैं क्योंकि मौजूदा समय में विदेशों से आयात के ऑर्डर काफी कम हैं।1 अप्रैल से घरेलू खिलाडिय़ों के लिए वैश्विक बाजार खुल जाने के बाद भी सूती धागे के निर्यातकों की दुर्दशा जारी है क्योंकि सरकार ने निर्यात प्रोत्साहन मसलन ड्यूटी ड्रॉबैक स्कीम वापस ले ली है। इसके परिणास्वरूप घरेलू बाजार फिलहाल जरूरत से ज्यादा आपूर्ति से जूझ रहा है और पूरे माहौल को नकारात्मक बना रहा है।बड़े उत्पादक मसलन आलोक इंडस्ट्रीज को हालांकि सूती धागे के कीमतों मेंं हो रहे उतारचढ़ाव से किसी तरह की परेशानी नहीं हो रही है। आलोक इंडस्ट्रीज के मुख्य वित्तीय अधिकारी सुनील खंडेलवाल ने कहा - सूती धागे की ज्यादातर जरूरतें हम खुद के मिलों से पूरी करते हैं, वहीं इसका कुछ हिस्सा खुले बाजार से खरीदा जाता है। ऐसे में कीमतों में बार-बार होने वाले बदलाव से कंपनी पर बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ता।खंडेलवाल ने कहा - निर्यात और घरेलू मांग हमारे लिए अच्छी है। हम जो कुछ बनाते हैं उसे हम बेचने में सक्षम हैं। ऐसे में हमें परिधान आदि की मांग पर किसी तरह का असर नहीं देख रहे हैं। इस बीच, कताई मिलों ने अपनी क्षमता में पिछले एक साल के दौरान काफी विस्तार किया है और यह 90 लाख स्प्लिंडर्स से बढ़कर 350 लाख स्प्लिंडर्स परपहुंच गया है। भारत में धागे का सालाना उत्पादन करीब 400 करोड़ किलोग्राम का है। (BS Hindi)
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