मुंबई May 10, 2011
पिछले महीने 76,000 रुपये प्रति किलोग्राम का आंकड़ा छूने के बाद चांदी के भाव 53,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक लुढ़क चुका है। रिकॉर्ड बना चुके सोने का भाव भी अब उतार पर है। तो क्या अब जेवरात में जमकर इस्तेमाल होने वाले बारी हीरे की है? इसकी मांग जिस तरह ठंडी पड़ रही है, उससे तो यही अंदेशा जताया जा रहा है।दरअसल दीवाली के बाद से भारतीय बाजार में हीरे के दाम 40 से 45 फीसदी तक बढ़ चुके हैं। हालांकि मांग अधिक नहीं है, लेकिन आपूर्ति कम होने की वजह से इसके भाव में उछाल आ रही है। मांग इतनी कम है कि हीरे तराशने वाले 50 फीसदी से ज्यादा कारखानों में काम बंद है। जो कारखाने खुले हैं, वहां भी कारीगरों के पास ज्यादा काम नहीं है। इसी वजह से जानकार हीरे में भी जल्द गिरावट आने की संभावना व्यक्त कर रहे हैं।इसके संकेत भी मिल रहे हैं। शादी-ब्याह का मौसम चल रहा है, लेकिन हीरे और हीरे के जेवरात की मांग देसी बाजार में न के बराबर है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी यही हाल है। हीरा कंपनी गोल्ड स्टार के प्रबंध निदेशक सतीश शाह कहते हैं, 'इस वक्त हीरा बाजार अमूमन ठंडा ही रहता है। दरअसल शादी-ब्याह की बुकिंग लगभग खत्म हो जाती है और विदेश में छुट्टिïयों का मौसम होने की वजह से मांग नहीं रहती। हीरा कारोबार के लिए क्रिसमस अहम होता है और मांग भी जुलाई से शुरू होती है। इसलिए सही तस्वीर का पता तभी चलेगा।'शाह इसके पीछे जिम्बाब्वे को भी वजह बताते हैं। जिम्बाब्वे में बड़ी तादाद में कच्चे हीरे होते हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उनकी बिक्री पर पाबंदी है। इसी वजह से आपूर्ति कम है और हीरे की कीमत ज्यादा है। कीमत 30 फीसदी बढऩे और मजदूरों की कमी के कारण तैयार हीरे 50 फीसदी महंगे हो चुके हैं। लेकिन उम्मीद है कि जून में जिम्बाब्वे को किंबर्ली सर्टिफिकेट मिल जाएगा, जिसके बाद बाजार में वहां के हीरे आने लगेंगे और आपूर्ति बढऩे से भाव भी नीचे आएंगे।भाव बढऩे का खमियाजा बाजार भुगत भी रहा है। पिछले कुछ साल में युवाओं में हीरे का आकर्षण बढ़ा है, लेकिन आम ग्राहक अब बाजार से दूर है। हीरे की सबसे बड़ी मंडी पंचरत्न के सचिव नरेश महेता कहते हैं, 'सबसे ज्यादा मांग दिल्ली और आसपास से आई थी। लेकिन अब वहां भी खामोशी है। मांग नहीं होने से कारखानों में हीरे तराशने का काम भी धीमा है, कारीगर गांव चले गए हैं ओर 50 फीसदी कारखानों में काम बंद है। इससे छोटे कारोबारी और कर्ज लेकर काम करने वाले परेशान हैं।'इसलिए अब जिम्बाब्वे से ही उनकी उम्मीद जुड़ी है। हीरा पारखी हार्दिक हुंडिया कहते हैं कि बाजार में मांग नहीं होने से छोटे कारोबारियों की जान सांसत में है। मसला आपूर्ति का ही है। दुनिया भर में सालाना 500 से 800 लाख कैरेट कच्चे हीरों की मांग है। लेकिन अब खदानों से ज्यादा हीरे निकालने की गुंजाइश नहीं है। हां, जिम्बाब्वे में इसका अकूत भंडार है और जून से अगर आपूर्ति चालू हो गई तो देसी भाव भी एक झटके में नीचे आ जाएंगे।कारोबार को बैंकों ने दिया झटकाहीरा कारोबार में बढ़ते गोलमाल पर बैंकों के साथ-साथ आयकर विभाग ने भी नजर टेढ़ी कर दी है, लिहाजा कारोबाारियों की बेचैनी बढऩे लगी है। ज्यादा परेशानी छोटे और नए उद्यमियों को हो रही है। एक ओर बैंक हीरा कारोबारियों को कर्ज देने से तौबा कर रहे हैं और दूसरी ओर आयकर विभाग बही खातों पर सवालिया निशान लगा रहा है।हीरा बाजार के कारोबार को बैंकों के सामने बढ़ा-चढ़ा कर दिखाने का चलन जोर पकड़ रहा है। इस कारण बैकों को यह भय सताने लगा है कि इस क्षेत्र में कारोबार करने वाली कोई कंपनी कहीं दिवालिया तो होने वाली नहीं है। इसीलिए बैंक कर्ज देने में कोताही बरतने लगे हैं। आरबीआई ने भी बैंकों को सावधान रहने का सर्कुलर जारी कर दिया है। कारोबारियों के मुताबिक पिछले 1 साल से बैंकों ने कोई नया ऋण नहीं दिया है। इसके उलट उनका ध्यान पुराने कर्ज वसूलने में लगा है। इससे छोटे कारोबारियों के पैर उखडऩे लगे हैं और वे मजबूरी में बाजार से 2 फीसदी प्रति महीना ब्याज पर कर्ज ले रहे हैं।एक कारोबारी ने बताया कि बड़े उद्यमी अलग नाम से दुबई में कंपनी खोलते हैं और उसी से आयात-निर्यात करते रहते हैं, वह भी कागजों पर। उनके रिकॉर्ड को देखकर लगता है कि उनका कारोबार बहुत बड़ा है, लेकिन वाकई ऐसा नहीं होता। ये लोग करोड़ों रुपये का कारोबार दिखाकर बैंकों से 5-7 फीसदी ब्याज पर कर्ज लेते हैं और उस पैसे को बाजार में 2 फीसदी प्रति महीने के ब्याज पर कर्ज देते हैं। इस तरह बिना कुछ किए 15-20 फीसदी का फायदा होता रहता है। इस गोलमाल को बैंक समझ गए हैं जिससे वे ऋण देने से इनकार कर रहे हैं। भारतीय स्टेट बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि उन्होंने किसी उद्योग पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, लेकिन जोखिम देखते हुए जांच प्रक्रिया बढ़ा दी है। (BS Hindi)
11 मई 2011
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