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27 मई 2011

कपास की पैदावार पर घटिया बीज की मार

अहमदाबाद May 26, 2011
रकबे में बढ़ोतरी के बावजूद भारत में पिछले तीन सालों से कपास की पैदावार में गिरावट दर्ज की गई है। खराब मौसम और देश के कई हिस्सों में बीटी कपास के घटिया बीज के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से ऐसा हो रहा है। कपास सलाहकार बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक, कपास की पैदावार साल 2007-08 में 554 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर थी, जो 2008-9, 2009-10 और 2010-11 में घटकर क्रमश: 524 किलोग्राम, 498 किलोग्राम और 475 किलोग्राम रह गई है। इसके उलट देश में कपास का रकबा साल 2007-08 के 94.1 लाख हेक्टेयर से बढ़कर साल 2010-11 में 110 लाख हेक्टेयर पर पहुंच गया है। साल 2008-09 और 2009-10 में 94 लाख व 103.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुआई हुई थी।इस बीच, देश में कपास उत्पादन में धीमी गति से बढ़ोतरी हुई है। साल 2007-08 में 307 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था, जो साल 2008-09 में मामूली घटकर 290 लाख गांठ रह गया। हालांकि पिछले दो साल से उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। 2009-10 में 295 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था, जो 2010-11 में बढ़कर 312 लाख गांठ हो गया।विश्लेषक और उद्योग से जुड़े अन्य लोगों का मानना है कि खराब मौसम और घटिया बीज के इस्तेमाल की वजह से कपास की पैदावार में लगातार गिरावट आ रही है। विभा सीड्स के प्रबंध निदेशक विद्यासागर परचुरी ने कहा - प्रमाणीकृत बीटी कपास के बीज में न्यूनतम 90 फीसदी जिनेटिक शुद्धता की दरकार होती है, जो अवैध यानी घटिया बीज में काफी कम होता है। जिनेटिक शुद्धता में 1 फीसदी की कमी से कपास के उत्पादन में कम से कम एक क्विंटल की कमी आ जाती है। साथ ही, घटिया बीज के मामले में कपास की गुणवत्ता एकसमान नहीं हो पाती। इस वजह से न सिर्फ पैदावार पर असर पड़ता है, बल्कि कपास की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है और इससे किसानों को मिलने वाले प्रतिफल में कमी आती है।देश में सालाना 4 करोड़ पैकेट (450 ग्राम प्रति पैकेट) बीटी बीज की दरकार होती है, जिसमें से करीब 10 से 12 फीसदी अवैध या गैर-पंजीकृत बीटी कपास के बीज माने जाते हैं। उद्योग के सूत्रों के मुताबिक, ऐसे घटिया या अवैध बीज के इस्तेमाल से न सिर्फ पैदावार पर असर पड़ता है बल्कि कपास की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। बीटी कपास के घटिया बीज का इस्तेमाल वैसे तो सभी प्रमुख कपास उत्पादक इलाकों में होता है, लेकिन इसका ज्यादा इस्तेमाल गुजरात, हरियाणा व पंजाब में होता है।गुजरात स्टेट कोऑपरेटिव कॉटन फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक एन. एम. शर्मा ने कहा - कपास उत्पादकों के लिए अवैध या नकली बीज का इस्तेमाल खतरनाक है क्योंकि यह कपास की खेती की वित्तीय उपयुक्तता को भी नुकसान पहुंचाता है। अकेले गुजरात में हर साल 11 लाख से 16 लाख पैकेट नकली बीज की खपत होती है। ऐसे घटिया बीज से अच्छी उत्पादकता की कोई गारंटी नहीं होती। इससे सिर्फ और सिर्फ पैदावार में कमी आती है। आदर्श रूप से बोलगार्ड-2 किस्म के बीज का इस्तेमाल शुरू होने के बाद प्रति हेक्टेयर पैदावार बढ़कर 900 किलोग्राम पर पहुंच जाना चाहिए, लेकिन साल 2010-11 में यह 659 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रहा है। गुजरात में साल 2007-08 में कपास की पैदावार 772 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रही है। राज्य में 26 लाख हेक्टेयर में कपास का उत्पादन होता है, जिसमें से 8 लाख हेक्टेयर में कपास के पारंपरिक बीज का इस्तेमाल होता है जबकि बाकी क्षेत्र में बीटी कपास के बीज का इस्तेमाल होता है।हालांकि, देश में कपास की घटती पैदावार के बारे में उद्योग की अलग राय है। नैशनल सीड्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया कपास की घटती पैदावार के लिए खराब मौसम को जिम्मेदार ठहरा रहा है न कि घटिया बीज के इस्तेमाल को। एनएसएआई के सचिव हरीश रेड्डी ने कहा - अनिश्चित मौसम की वजह से पिछले कुछ सालों में कपास की पैदावार में गिरावट आई है, न कि अवैध यानी घटिया बीज के इस्तेमाल से।उन्होंने कहा - आंध्र प्रदेश व महाराष्ट्र जैसे राज्य में कपास की बुआई का बड़ा इलाका बारिश पर आश्रित है और यहां कपास के कुल रकबे का करीब 60 फीसदी इलाका है। इन इलाकों में मौसम के चलते पैदावार में और गिरावट आ सकती है। ऐसे में पैदावार में गिरावट खराब मौसम के चलते आ रही है, न कि अवैध बीज के इस्तेमाल से।देश के कपास किसानों को पिछले कुछ सालों में बीटी कपास से भारी रिटर्न मिला है। कपास की अच्छी कीमतों के आकर्षित होकर ज्यादा से ज्यादा किसान बीटी कपास की खेती करने लगे और इस वजह से कपास का रकबा 94.1 लाख हेक्टेयर से बढ़कर साल 2010-11 में 110 लाख हेक्टेयर परपहुंच गया। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कपास के कुल रकबे में करीब 88 फीसदी इलाकों में बीटी कपास की खेती होती है, जो पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा है। (BS Hindi)

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