नई दिल्ली March 16, 2011
प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत जरूरी खाद्यान्न की पर्याप्त उपलब्धता पर प्रधानमंत्री द्वारा डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञ पैनल और सोनिया गांधी की अगुआई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के बीच की खाई पाटने के लिए खाद्य मंत्रालय ने अनाज की जगह नकद सब्सिडी के वितरण का समर्थन किया है, अगर पर्याप्त मात्रा में अनाज उपलब्ध न हो।मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि अगर किसी वर्ष में जरूरत के मुताबिक खरीद न हो पाए तो अधिनियम के तहत मंत्रालय ने नकद सब्सिडी के वितरण का प्रस्ताव रखा है। खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा - खाद्य सुरक्षा अधिनियम को वास्तविकता में बदलने के लिए यह विचार सामने रखा गया है और ऐसा करने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। पिछले महीने खाद्य राज्य मंत्री के. वी. थॉमस ने कहा था कि उनका मंत्रालय देश की 65 से 70 फीसदी आबादी को रियायती दर पर अनाज उपलब्ध करा सकता है और इनमें सामान्य व प्राथमिकता वाले परिवार शामिल हैं। एनएसी ने प्राथमिकता व सामान्य परिवारों की 75 फीसदी आबादी को कानूनी तौर पर रियायती दर पर अनाज उपलब्ध कराने की सिफारिश की थी। प्राथमिकता वाले परिवारों में 46 फीसदी शहरी आबादी और 28 फीसदी ग्रामीण आबादी शामिल है जबकि सामान्य वर्ग में 44 फीसदी शहरी आबादी और 22 फीसदी ग्रामीण आबादी शामिल है। डॉ. सी. रंगराजन की अध्यक्षता में प्रधानमंत्री द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह ने प्राथमिकता वाले परिवारों की बाबत एनएसी की सिफारिशों का समर्थन किया था, लेकिन यह भी कहा था कि अगर पर्याप्त अनाज उपलब्ध हो तभी सामान्य श्रेणी के परिवारों को सस्ते अनाज का वितरण किया जाए। विशेषज्ञ समूह ने कहा है कि एनएसी की सिफारिशों के मुताबिक सभी चरणों के लिए खाद्यान्न के अधिकार लागू करना संभव नहीं है।इसने तर्क दिया है कि अगर एनएसी की सिफारिशों को अपना लिया जाता है तो फिर इससे सरकार पर सब्सिडी का भारी बोझ पड़ेगा, साथ ही यह बाजार को भी नष्ट कर सकता है, अगर खरीद का स्तर अकारण बढ़ाया जाता है। पैनल ने कहा है कि प्रस्तावित अधिनियम अनाज की मांग पूरी करने की बाबत सरकार पर कानूनी बाध्यता आरोपित करता है। उन्होंने कहा है कि विधेयक के मसौदे को अंतिम रूप देने से पहले कुछ परिस्थितियों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए मसलन, अगर लगातार दो साल तक सूखा पड़े तो फिर इसे कैसे पूरा किया जाएगा। अधिकारी ने कहा कि यही वजह है कि हम आबादी के उस वर्ग के लिए नकद सब्सिडी की बात कर रहे हैं जिनकी कानूनी तौर पर अनाज की मांग पूरी न हो।मौजूदा समय में सरकार गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 6.52 करोड़ परिवारों को राशन दुकानों के जरिए 35 किलोग्राम अनाज उपलब्ध कराती है। इन परिवारों को 4.15 रुपये प्रति किलोग्राम पर गेहूं और 5.65 रुपये प्रति किलोग्राम पर चावल उपलब्ध कराया जाता है। गरीबी रेखा से ऊपर रहने वाले परिवारों को सरकार 15 से 35 किलोग्राम अनाज हर महीने उपलब्ध कराती है।प्रधानमंत्री द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह का अनुमान है कि भारत का खाद्यान्न सब्सिडी खर्च बढ़कर करीब 92,060 करोड़ रुपये पर पहुंच जाएगा, अगर 75 फीसदी परिवारों को अनाज उपलब्ध कराने की एनएसी की सिफारिशें मान ली जाती हैं। वहीं यह खर्च घटकर करीब 83,000 करोड़ पर आ सकती है अगर गरीबी रेखा के ऊपर रहने वाले परिवारों को इससे अलग करने के उनके सुझाव को मान लिया जाता है या फिर उनके आवंटन में कमी की उनकी सिफारिशें मान ली जाती हैं। विशेषज्ञ समूह ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम की जरूरतों के अलावा सब्सिडी में निर्धन वरिष्ठ नागरिकों के लिए चलाई जाने वाली कल्याणकारी अन्नपूर्णा योजना के लिए आवंटन शामिल होगा। (BS Hindi)
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