नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2025 से शुरू होने वाले चालू पेराई सीजन 2025-26 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान 118 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान है। वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (विस्मा) के अध्यक्ष बी बी ठोंबरे ने कहा कि आगामी पेराई सीजन 2025-26 में महाराष्ट्र में लगभग 1200 लाख टन गन्ना पेराई होने की उम्मीद है। इस दौरान चीनी का उत्पादन 130 लाख टन होने का अनुमान है। अगर लगभग 12 लाख टन चीनी को एथेनॉल में परिवर्तित किया जाता है, तो भी वास्तविक चीनी उत्पादन 118 लाख टन तक हो जाएगा।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अनाज से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा दिया है। बिहार में मक्का और पंजाब-हरियाणा में चावल का उत्पादन अधिक होता है। यह उन राज्यों के किसानों के लिए एक अच्छा अवसर है, जो मक्का और चावल उत्पादन में अग्रणी हैं।
उन्होंने कहा कि विदर्भ-मराठवाड़ा में गन्ने के साथ-साथ सोयाबीन का भी बड़ा रकबा है। सोयाबीन को न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को नहीं मिल पा रहा है। हालांकि मक्के का प्रति क्विंटल भाव 1,700 से 1,800 रुपये से बढ़कर 2,400 रुपये तक पहुंच गया है। इसलिए मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में भी मक्के का उत्पादन बढ़ाने के लिए स्थिति अनुकूल स्थिति है।
उन्होंने कहा कि मक्के का भाव 2,200 से 2,400 रुपये के बीच रहने पर ही कारखानों के लिए मक्के से इथेनॉल बनाना आर्थिक रूप से किफायती हो सकेगा। जिससे गन्ना पेराई सत्र समाप्त होने के बाद अन्य समय में छह महीने तक कारखानों में इथेनॉल उत्पादन जारी रखना संभव हो सकेगा।
इस अवसर पर महाराष्ट्र के सहकारिता मंत्री बाबासाहेब पाटिल ने कहा कि राज्य की कृषि और ग्रामीण व्यवस्था को मजबूत करने में चीनी उद्योग की बड़ी भूमिका है। इसलिए, इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार जल्द ही एक नई नीति लायेगी। वह वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (विस्मा) द्वारा आयोजित ‘चीनी एवं जैव ऊर्जा पुरस्कार-2025’ वितरण समारोह में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें चीनी उद्योग को मजबूत करने के लिए मिलकर काम कर रही हैं। इस उद्योग ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और किसानों में समृद्धि लाई है। इसलिए सरकार एक नई नीति लागू करने का प्रयास कर रही है। इससे इस उद्योग के अच्छे दिन आएँगे। हालांकि, चीनी उद्योग को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। किसानों को गन्ने का भुगतान और श्रमिकों को वेतन समय पर दिया जाना चाहिए। साथ ही, मिट्टी की संरचना को बनाए रखते हुए कम पानी में अधिक गन्ना उत्पादन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अनाज से इथेनॉल उत्पादन को बढ़ावा दिया है। बिहार में मक्का और पंजाब-हरियाणा में चावल का उत्पादन अधिक होता है। यह उन राज्यों के किसानों के लिए एक अच्छा अवसर है, जो मक्का और चावल उत्पादन में अग्रणी हैं।
उन्होंने कहा कि विदर्भ-मराठवाड़ा में गन्ने के साथ-साथ सोयाबीन का भी बड़ा रकबा है। सोयाबीन को न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को नहीं मिल पा रहा है। हालांकि मक्के का प्रति क्विंटल भाव 1,700 से 1,800 रुपये से बढ़कर 2,400 रुपये तक पहुंच गया है। इसलिए मराठवाड़ा और पश्चिमी महाराष्ट्र में भी मक्के का उत्पादन बढ़ाने के लिए स्थिति अनुकूल स्थिति है।
उन्होंने कहा कि मक्के का भाव 2,200 से 2,400 रुपये के बीच रहने पर ही कारखानों के लिए मक्के से इथेनॉल बनाना आर्थिक रूप से किफायती हो सकेगा। जिससे गन्ना पेराई सत्र समाप्त होने के बाद अन्य समय में छह महीने तक कारखानों में इथेनॉल उत्पादन जारी रखना संभव हो सकेगा।
इस अवसर पर महाराष्ट्र के सहकारिता मंत्री बाबासाहेब पाटिल ने कहा कि राज्य की कृषि और ग्रामीण व्यवस्था को मजबूत करने में चीनी उद्योग की बड़ी भूमिका है। इसलिए, इस उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार जल्द ही एक नई नीति लायेगी। वह वेस्ट इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (विस्मा) द्वारा आयोजित ‘चीनी एवं जैव ऊर्जा पुरस्कार-2025’ वितरण समारोह में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारें चीनी उद्योग को मजबूत करने के लिए मिलकर काम कर रही हैं। इस उद्योग ने ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और किसानों में समृद्धि लाई है। इसलिए सरकार एक नई नीति लागू करने का प्रयास कर रही है। इससे इस उद्योग के अच्छे दिन आएँगे। हालांकि, चीनी उद्योग को कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। किसानों को गन्ने का भुगतान और श्रमिकों को वेतन समय पर दिया जाना चाहिए। साथ ही, मिट्टी की संरचना को बनाए रखते हुए कम पानी में अधिक गन्ना उत्पादन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

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