नई दिल्ली। घरेलू बाजार में सोयाबीन के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी से नीचे बने हुए हैं, जिस कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। नई फसल लगभग तैयार है, इसलिए केंद्र सरकार आयातित खाद्वय तेलों पर आयात शुल्क में 10 फीसदी की बढ़ोतरी करें।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने केंद्र सरकार से आयातित खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क संरचना की समीक्षा करने और यथाशीघ्र कम से कम 10 फीसदी शुल्क बढ़ाने का अनुरोध किया है। ऐसा कदम किसानों का विश्वास बहाल करने, तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भरता की ओर भारत की यात्रा को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
सोपा के अनुसार फसल सीजन अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 के दौरान उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल की दर से नीचे बने रहे थे, जिसका प्रमुख कारण सोया तेल और खल के दाम नीचे होना है। अत: सरकार को एमएसपी पर 20 लाख टन सोयाबीन की खरीद करनी पड़ी थी। अत: सरकार द्वारा सोयाबीन की एमएसपी में खरीद के साथ ही परिवहन लागत, नमी लागत, भंडारण तथा नुकसान आदि को जोड़कर एमएसपी से काफी महंगी पड़ी थी। नेफेड और एनसीसीएफ ने खुले बाजार सोयाबीन की बिक्री कुल लागल की तुलना में करीब 10,000 प्रति टन नीचे दाम पर करनी पड़ी थी। अत: सरकार का इस पर करीब 2,000 करोड़ रुपये खर्च हुआ।
केंद्र सरकार ने फसल सीजन अक्टूबर 2025 से सितंबर 2026 के लिए सोयाबीन का एमएसपी 5,328 रुपये प्रति क्विटल तय किया हुआ है। घरेलू बाजार में आयात शुल्क कम होने के कारण सोया तेल के साथ ही खल के भाव नीचे बने हुए हैं। इसलिए नए सीजन में केंद्र सरकार को समर्थन मूल्य पर पिछले सीजन की तुलना में दोगुनी सोयाबीन की खरीद करनी पड़ेगी। इस पर करीब 5,000 करोड़ का खर्च आने का अनुमान है।
अत: सोपा की मांग है कि केंद्र सरकार सोयाबीन की खरीद के बजाए भावांतर भुगतान योजना, लागू करें। इसके किसान को मंडी भाव और एमएसपी में बीच के अंतर का सीधे भुगतान मिलेगा। इससे किसान को समय पर पैसा मिलेगा, तथा सरकार की लागत भी आधी रह जायेगी। योजना को ऐसे लागू किया जाए, कि किसान को ही इसका लाभ मिले।

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