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26 सितंबर 2025

खाद्य मंत्रालय ने अक्टूबर के लिए 24 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2025 के लिए 24 लाख टन चीनी का मासिक कोटा आवंटित किया, जो कि अक्टूबर 2024 के लिए आवंटित कोटे से कम है।


अक्टूबर 2024 में केंद्र सरकार ने घरेलू बिक्री के लिए 25.5 लाख टन चीनी का मासिक कोटा आवंटित किया था। सितंबर 2025 के लिए आवंटित चीनी कोटा 23.5 लाख टन का था।

गन्ना पेराई सीजन 2023-24 के दौरान (अक्टूबर 2023 से सितंबर 2024 तक) के दौरान कुल कोटा 291.50 लाख टन का जारी किया था, जबकि पेराई सीजन 2024-25 के (अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 तक) के दौरान सरकार ने चीनी का कोटा 275.50 लाख टन का जारी किया है।

बुधवार को दिल्ली में 30 एम ग्रेड चीनी के दाम 4,400 रुपये, कानपुर में 4,350 रुपये और रायपुर में 4,330 रुपये तथा मुंबई में 4,220 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर बने रहे। दिल्ली में एम 30 ग्रेड चीनी की खुदरा कीमत 46 रुपये, कानपुर में 45 रुपये और रायपुर में 45 रुपये तथा मुंबई में भी 45 रुपये प्रति किलो पर स्थिर बनी रही। 

केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश और गुजरात से खरीफ फसलों की खरीद को दी मंजूरी

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2025-26 के दौरान उत्तर प्रदेश और गुजरात में किसानों से दलहन एवं तिलहन की फसलों की खरीद को मंजूरी दे दी है। उत्तर प्रदेश से किसानों से समर्थन मूल्य पर मूंग, तिल एवं मूंगफली के अलावा गुजरात से सोयाबीन, मूंग तथा मूंगफली की अनुमति दी गई। इन राज्यों से अरहर एवं उड़द की 100 फीसदी खरीद की भी सरकार ने मंजूरी है, तथा इन दोनों राज्यों में किसानों से 13,890.60 करोड़ रुपये की खरीफ फसलों की खरीद की जायेगी।  


केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई वर्चुअल बैठक में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही तथा गुजरात के कृषि मंत्री राघवजी पटेल शामिल हुए। वहीं केंद्रीय कृषि सचिव डॉ. देवेश चतुर्वेदी तथा केंद्र एवं दोनों राज्य सरकारों के वरिष्ठ कृषि अधिकारी भी बैठक में सम्मिलित हुए। बैठक में शिवराज सिंह ने कहा कि किसानों के हित में पूरी खरीद प्रक्रिया पारदर्शी, डिजिटल व सुचारू रूप से की जाए, जिस पर दोनों राज्यों के कृषि मंत्रियों ने कहा कि उपज खरीद आधुनिक बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण व पीओएस मशीन व्यवस्था के साथ डिजिटल पोर्टलों के जरिए होगी।

बैठक में उत्तर प्रदेश के प्रस्ताव पर चर्चा के बाद शिवराज सिंह ने राज्य में उड़द 2 लाख 27 हजार 860 टन (100 फीसदी) खरीद को स्वीकृति प्रदान की, जिसका मूल्य 1777.30 करोड़ रुपये रहेगा। अरहर की भी शत प्रतिशत 1,13,780 टन की खरीद के लिए केंद्र की ओर से मंजूरी दी गई, जिसकी कीमत 910.24 करोड़ रुपये रहेगी। मूंग की 1983 टन खरीद को मंजूरी दी गई, जिसकी कीमत 17.38 करोड़ रुपये होगी। इसके अलावा तिल की 30,410 टन खरीद की स्वीकृति केंद्र ने दी है, जिसकी कीमत 299.42 करोड़ रुपये होगी। साथ ही मूंगफली की 99,438 टन खरीद की स्वीकृति दी गई है, जिसका मूल्य 722.22 करोड़ रुपये रहेगा।


केंद्रीय कृषि मंत्री ने गुजरात में किसानों से उड़द की 47,780 टन की खरीद को मंजूरी दी है, जिसकी कुल कीमत 372.68 करोड़ रुपये होगी। साथ ही सोयाबीन की 1,09,905 टन की खरीद की मंजूरी दी है, जिसकी कीमत 585.57 करोड़ रुपये होगी। गुजरात में मूंगफली की 12 लाख 62 हजार 163 टन की खरीद की स्वीकृति दी गई है, जिसकी कीमत 9,167.08 करोड़ रुपये होगी। इसके अलावा मूंग की 4,415 टन खरीदने की स्वीकृति दी है, जिसका मूल्य 38.71 करोड़ रुपये होगा।

शिवराज सिंह चौहान ने खरीद प्रक्रिया में पूरी तरह से पारदर्शिता अपनाने पर जोर दिया, ताकि कहीं कोई गड़बड़ी नहीं होने पाएं, साथ ही इस बात का ध्यान रखा जाए कि वास्तविक किसानों से ही खरीद हो तथा बिचौलिए इसका फायदा नहीं ले सके। इसके लिए सभी खरीद केंद्रों पर खरीद शुरू होने से पहले आधार आधारित बायोमेट्रिक/चेहरा प्रमाणीकरण, तथा पीओएस मशीनों की तैनाती (उत्तर प्रदेश में लगभग 350 तथा गुजरात में करीब 400) होगी। नेफेड और एनसीसीएफ को किसानों के पूर्व-पंजीकरण के लिए पत्र भेजे गए हैं, तथा पंजीकृत किसान ही एमएसपी पर फसल बेच सकेंगे। खरीद कार्यवाही पूरी तरह ई-समृद्धि और ई-सम्युक्ति पोर्टल पर डिजिटल के माध्यम से होगी, जिससे सीधे बैंक खाते से भुगतान किया जायेगा।

केंद्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि उपरोक्त स्वीकृत मात्रा को खरीफ 2025-26 के प्रथम अग्रिम अनुमान आने के बाद आवश्यकतानुसार संशोधित भी किया जा सकता है, ताकि किसानों को अधिकतम लाभ मिल सके। उन्होंने कहा कि डिजिटल एवं पारदर्शी व्यवस्था से हर पात्र किसान को सरकारी दर पर अपनी फसल बेचने तथा समय से भुगतान पाने का अधिकार मिलेगा।

नई कपास की आवक बढ़ने से उत्तर भारत के राज्यों में बिनौला मंदा

नई दिल्ली। उत्तर भारत के राज्यों में नई कपास की दैनिक आवक बढ़ने लगी है, तथा मौसम अनुकूल बना हुआ है इसलिए आगामी दिनों में इसकी आवकों में बढ़ोतरी होगी। तेल मिलों की खरीद कमजोर होने से उत्तर भारत के राज्यों में सोमवार को बिनौला के दाम कमजोर हुए।

तेल मिलों की खरीद घटने के कारण हरियाणा में बिनौले के भाव 100 रुपये कमजोर होकर 4200 से 4400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। इस दौरान राजस्थान में बिनौला के भाव 4,400 से 4,600 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए। बिनौला के दाम पंजाब में 25 रुपये कमजोर होकर 4300 से 4400 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।

महाराष्ट्र के नागपुर में रेगुलर क्वालिटी के बिनौला के भाव कमजोर होकर 4,000 से 4,300 रुपये प्रति क्विंटल रह गए, जबकि जालना में स्टॉक के बिनौला के दाम 4,600 रुपये और सिल्लोड में 4,350 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

व्यापारियों के अनुसार अक्टूबर में देशभर की मंडियों में नई कपास की आवकों में बढ़ोतरी होगी, जबकि उत्पादक राज्यों में बिनौला बकाया स्टॉक भी बचा हुआ है। चालू सीजन में उत्पादन अनुमान ज्यादा है, जिस कारण आगामी दिनों में इसकी कीमतों पर दबाव बनेगा।

व्यापारियों के अनुसार इन राज्यों में भारी बारिश एवं बाढ़ जैसे हालात बनने से प्रभावित क्षेत्रों में क्वालिटी के साथ ही उत्पादकता भी प्रभावित हुई है। अत: किसानों पर दोहरी मार पड़ रही है, क्योंकि एक तो प्रति हैक्टेयर पैदावार कम हुई, दूसरा मंडियों में कपास समर्थन मूल्य से 1,500 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल तक नीचे दाम पर बेचनी पड़ रही है। कॉटन कारपोरेशन आफ इंडिया, सीसीआई पहली अक्टूबर से इन राज्यों कपास की समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू करेगी, लेकिन जलभराव वाले क्षेत्रों में गुणवत्ता संबंधी समस्याओं का सामना किसानों को करना पड़ेगा। इन राज्यों में कपास के दाम 100 रुपये कमजोर हुए।

विश्व बाजार में कॉटन के दाम नीचे होने के कारण आयातित कॉटन सस्ती है, जबकि सूती धागे में उठाव सामान्य की तुलना में कमजोर है। वैसे भी अधिकांश स्पिनिंग मिलों के पास कॉटन का बकाया स्टॉक अच्छा है। घरेलू गारमेंट इकाइयों द्वारा उत्पादन में कटौती की जा रही है। इसलिए हाजिर बाजार में नई फसल की आवक बढ़ने पर कॉटन के साथ ही बिनौले की कीमतों में और भी नरमी आने का अनुमान है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार 12 सितंबर तक चालू खरीफ सीजन देशभर में कपास की बुआई कम होकर 109.64 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई है, जबकि पिछले साल इस समय तक 112.48 लाख हेक्टेयर में बुआई हो चुकी थी।

अगस्त में डीओसी का निर्यात 12 फीसदी घटा - एसईए

नई दिल्ली। देश से अगस्त में डीओसी के निर्यात में 12 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 276,834 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले साल अगस्त में इसका निर्यात 314,363 टन का हुआ था।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, एसईए के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले पांच महीनें अप्रैल से अगस्त के दौरान डीओसी के निर्यात में 4 फीसदी की कमी आकर कुल निर्यात 1,793,816 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 1,868,789 टन का हुआ था।

भारत जुलाई 2023 से पहले 5 से 6 लाख टन डी-ऑयल राइस ब्रान का निर्यात मुख्य रूप से वियतनाम, थाईलैंड और अन्य एशियाई देशों को करता था और अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत का नाम एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में था। सरकार ने 28 जुलाई को डी-ऑयल राइस ब्रान के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, इसका कारण घरेलू बाजार में चारा महंगा होना था, जिसमें डी-ऑयल राइस ब्रान एक प्रमुख खपत होती है। सरकार द्वारा प्रतिबंध को समय-समय पर बढ़ाया गया और अब यह 30 सितंबर, 2025 तक लागू है। जानकारों के अनुसार डी-ऑयल राइस ब्रान की कीमतें अब निचले स्तर पर हैं। डी-ऑयल राइस ब्रान की कीमतों में भारी गिरावट को देखते हुए, एसोसिएशन ने एक बार फिर सरकार से इसके निर्यात पर लगे प्रतिबंध को 30 सितंबर से आगे नहीं बढ़ाने की मांग की है।

सरसों के तेल, विशेष रूप से पारंपरिक 'कच्ची घानी' किस्म की अच्छी घरेलू मांग के कारण, देशभर के उत्पादक राज्यों में इसकी पेराई में तेजी आई हैं, जिससे सरसों डीओसी का उत्पादन बढ़ा है। अत: सरसों डीओसी के निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। चीन सरसों डीओसी के आयातक के रूप में प्रमुख देश रहा है। अप्रैल से अगस्त 2025 के दौरान, चीन ने लगभग 368,000 टन भारतीय सरसों खली का आयात किया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में केवल 17,396 टन का ही आयात किया था। 18 सितंबर, 2025 तक, भारतीय सरसों खली हैम्बर्ग एक्स-मिल मूल्य 236 अमेरिकी डॉलर प्रति टन के मुकाबले 200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन थी। प्रमुख उपभोक्ता देशों के साथ भारत की लॉजिस्टिक निकटता के साथ इस मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता ने वैश्विक ऑयलमील व्यापार में एक विश्वसनीय, लागत प्रभावी आपूर्तिकर्ता के रूप में इसकी प्रतिष्ठा को मजबूत किया है।

चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों (अप्रैल से अगस्त 2025) में सोया डीओसी का निर्यात पिछले वर्ष की इसी अवधि के 8.49 लाख टन से घटकर 7.57 लाख टन का रह गया। ऐसा दक्षिण और उत्तरी अमेरिका में कम कीमतों की तुलना में हाल के सप्ताहों में भारत में सोया डीओसी की कीमतों पर दबाव के कारण हुआ है, जिससे सोया डीओसी के कुल निर्यात में कमी आ सकती है। सोया डीओसी मुख्य रूप से पोल्ट्री फीड बाजार में डीडीजीएस के हाथों बाजार हिस्सेदारी खो रहा है, जिसका उत्पादन भारत में इथेनॉल के बढ़ते उत्पादन के कारण बढ़ रहा है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार किसानों द्वारा अन्य फसलों की बुआई को प्राथमिकता देने से 12 सितंबर, 2025 तक सोयाबीन का रकबा पिछले साल के 126.24 लाख हेक्टेयर से घटकर 120.43 लाख हेक्टेयर का रह गया है।

भारतीय बंदरगाह पर अगस्त में सोया डीओसी का भाव तेज होकर 404 डॉलर प्रति टन हो गए, जबकि जुलाई में इसका दाम 385 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का मूल्य अगस्त में भारतीय बंदरगाह पर घटकर 195 डॉलर प्रति टन का रह गया, जबकि जुलाई में इसका भाव 196 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान कैस्टर डीओसी का दाम जुलाई के 88 डॉलर प्रति टन से तेज होकर जुलाई में 93 डॉलर प्रति टन का हो गया।

20 सितंबर 2025

फ्लोर मिलों की मांग बढ़ने से गेहूं के दाम तेज, ओएमएसएस के तहत बिक्री की तारीख तय नहीं

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना, ओएमएसएस के तहत 30 लाख टन गेहूं का आवंटन तो कर दिया, लेकिन बिक्री की तारीख तय करने से इसके भाव तेज हुए हैं। दिल्ली में शुक्रवार को गेहूं की कीमतों में 25 रुपये तेजी आकर दाम 2,820 से 2,825 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।


उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने 18 सितंबर को भारतीय खाद्य निगम, एफसीआई को पत्र लिखकर ओएमएसएस के तहत फसल सीजन 2025-26 के लिए 30 लाख टन गेहूं का आवंटन किया है, जोकि देशभर की रोलर फ्लोर मिलों को ई निविदा के माध्यम से आवंटित किया जायेगा। ओएमएसएस के तहत गेहूं का आवंटन दिनांक 30 जून 2026 तक किया जायेगा।

केंद्र सरकार ने एफसीआई को भेजे पत्र में लिखा है कि ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री तारीख बाजार की स्थिति और स्टॉक को देखकर की जायेगी।

व्यापारियों के अनुसार हाल ही में घरेलू बाजार में गेहूं की कीमतों में करीब 60 से 70 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आया था, क्योंकि स्टॉकिस्टों को डर था कि सरकार जल्द ही ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री शुरू करेगी। सरकार द्वारा बिक्री की तारीख तय नहीं करने से जहां स्टॉकिस्टों की बिकवाली कम हुई है, वहीं आगे खपत के सीजन को देखते हुए मिलों की खरीदारी बढ़ने से इसके भाव में तेजी आई है।

घरेलू बाजार में स्टॉकिस्टों के पास गेहूं का बकाया स्टॉक तो अच्छा है, लेकिन स्टॉकिस्ट दाम घटाकर बिकवाली नहीं करना चाहते। वैसे भी गेहूं की नई फसल की आवक बनने में अभी छह से सात महीने बचे हुए हैं। अक्टूबर में दशहरा एवं दिवाली का त्योहार है, जबकि नवंबर में ब्याह, शादियों का सीजन शुरू हो जायेगी। अत: आगामी दिनों में गेहूं की घरेलू मांग बढ़ेगी। इस दौरान गेहूं की कीमतों में तेजी, मंदी काफी हद तक ओएमएसएस के तहत इसकी बिक्री पर भी निर्भर करेगी।

केंद्र सरकार ने पिछले दिनों गेहूं की स्टॉक लिमिट में कमी की थी। वैसे केंद्रीय पूल में गेहूं का बंपर भंडार होने के बावजूद कीमतों में तेजी को रोकने के लिए सरकार ने 31 मार्च 2026 तक स्टॉक लिमिट लगा रखी है।

लारेंस रोड पर गेहूं का भाव 25 रुपये तेज होकर 2,820 से 2,825 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। जबकि इसकी दैनिक आवक 6,000 बोरियों की हुई। पिछले कारोबारी दिवस में इसकी आवक 7,000 बोरियों की हुई थी।

केंद्रीय पूल में 1 सितंबर 2025 को 33.3 मिलियन टन गेहूं का स्टॉक है, जोकि पिछले चार साल के उच्चतम स्तर पर है साथ ही यह स्टॉक तय मात्रा बफर 27.6 मिलियन टन से काफी अधिक है।

प्रतिकूल मौसम की मार एवं आयात में कमी के बावजूद उड़द के भाव समर्थन मूल्य से नीचे

नई दिल्ली। उत्पादक राज्यों में बेमौसम बारिश एवं बाढ़ से चालू खरीफ सीजन में उड़द की फसल को नुकसान होने की आशंका है, साथ ही चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले चार महीनों में इसके आयात में भी 10 फीसदी की कमी आई है। इसके बावजूद भी घरेलू बाजार में उड़द के दाम समर्थन मूल्य से नीचे बने हुए हैं।

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2025-26 के पहले चार महीनों अप्रैल से जुलाई के दौरान उड़द का आयात पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 10 फीसदी कम होकर 230,760 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले वित्त वर्ष 2024-25 की समान अवधि में इसका आयात 256,451 टन का हुआ था।

गुलबर्गा स्थित उड़द के कारोबारी चंद्रशेखर एस नादर के अनुसार कर्नाटक के साथ ही महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश में भारी बारिश एवं बाढ़ से उड़द की फसल को नुकसान हुआ है तथा इस समय मंडियों में जो माल आ रहे हैं, उनकी क्वालिटी भी हल्की है। पिछले दो साल से मिलर्स नुकसान में हैं, तथा अधिकांश छोटी दाल मिलें या तो बंद हो चुकी है, या फिर बंद होने के कगार पर है। इस समय केवल बड़ी दाल मिल ही उड़द की खरीद कर रही है। हाल ही में कीमतों में आई गिरावट से उड़द के आयातकों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है।  

दिल्ली के नया बाजार के दलहन कारोबारी राजेश जैन ने बताया कि हाजिर बाजार में नकदी की किल्लत है, जिस कारण दाल मिलें केवल जरुरत के हिसाब से ही खरीद कर पा रही है। बड़ी कंपनियां सस्ते दाम पर दाल बेच रही है, जिस कारण छोटे दुकानदार मुकाबला नहीं कर पा रहे हैं। अत: उड़द की मांग पहले की तुलना में कम हुई है।

सूत्रों के अनुसार 3 सितंबर से 14 सितंबर के दौरान चेन्नई बंदरगाह पर बर्मा की उड़द 18,750 टन का और ब्राजील से 19,875 टन आयातित उड़द आई है।

बर्मा से आयातित उड़द एफएक्यू एवं एसक्यू के भाव में चेन्नई में गुरूवार को स्थिर हो गए। हाल ही में इसकी कीमतों में गिरावट आई थी। उड़द एफएक्यू के भाव सितंबर एवं अक्टूबर शिपमेंट के 785 डॉलर प्रति टन, सीएडंएफ पर स्थिर हो गए, जबकि इस दौरान एसक्यू उड़द के भाव सितंबर एवं अक्टूबर शिपमेंट के 865 डॉलर प्रति टन, सीएडंएफ बोले गए।

जानकारों के अनुसार म्यांमार से एक वैसल 8,600 टन उड़द लेकर आ रहा है, जोकि चेन्नई बंदरगाह पर 18 सितंबर को पहुंच गया है। इसके अलावा एक और वैसल जिसमें 9,000 टन उड़द है, यह 21 सितंबर तक आयेगा। इसके अलावा एक और वैसल 6,000 टन उड़द लेकर आयेगा।

मुंबई में उड़द एफएक्यू के भाव 25 रुपये कमजोर होकर 7,100 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। कोलकाता में उड़द एफएक्यू के भाव 50 रुपये घटकर 7,150 से 7,250 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।

गुंटूर में उड़द पॉलिश के भाव 7,375 से 7,400 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए, जबकि विजयवाड़ा में पॉलिश उड़द के दाम 7,300 से 7,350 रुपये प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गए।

मध्य प्रदेश की अशोकनगर मंडी में गुरुवार को नई उड़द की आवक 125 से 150 क्विंटल की हुई तथा इसका व्यापार 5,850 से 6,666 रुपये प्रति क्विंटल की दर पर हुआ। नए मालों में नमी 16 से 20 फीसदी तक आ रही है।

जानकारों के अनुसार आयात में कमी उड़द के भाव को कुछ सहारा दे सकती है, लेकिन घरेलू दाल मिलों की खरीद कमजोर होने से बड़ी तेजी के आसार नहीं है। बुंदेलखंड और महाराष्ट्र तथा राजस्थान के कुछ हिस्सों में उड़द की फसल को भारी नुकसान की खबरों के बावजूद, दाल मिलर्स एवं खुदरा व्यापारी सिर्फ जरुरत के हिसाब से ही खरीदारी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और अन्य राज्यों से फसल की आवक बढ़ने पर निकट भविष्य में कीमतों पर दबाव बने रहने की संभावना है।

केंद्र सरकार ने खरीफ विपणन सीजन 2025-26 के लिए उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी 7,800 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। पिछले खरीफ के मुकाबले एमएसपी में 400 रुपये प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ सीजन में उड़द की बुआई बढ़कर 12 सितंबर तक देशभर में 23.66 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले खरीफ सीजन की समान अवधि में इसकी बुआई 22.14 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी।

प्रतिकूल मौसम की मार से प्रभावित राज्यों में कपास के खरीद मानकों में छूट की मांग

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन के दौरान हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे उत्तर भारत के राज्यों के साथ ही आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सहित दक्षिणी राज्यों में लंबे समय तक और असामान्य वर्षा हुई। अत: बेमौसम बारिश, जलभराव और कीटों के हमलों ने कपास की फसल की गुणवत्ता को प्रभावित किया है। साथ ही केंद्र सरकार द्वारा कॉटन के आयात को दिसंबर तक शुल्क मुक्त करने से सस्ते आयात का दबाव भी कीमतों पर देखा जा रहा है।


प्रतिकूल मौसम की मार से प्रभावित राज्यों के कपास किसानों को डर सता रहा है कि उनकी फसल कॉटन कारपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) द्वारा निर्धारित उचित औसत गुणवत्ता (एफएक्यू) के मानकों को पूरा नहीं कर पाएगी। अगर ऐसा होता है, तो सीसीआई उनकी फसल को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद नहीं करेगी।

दक्षिण एशिया जैव प्रौद्योगिकी केंद्र (एसएबीसी) ने इस मुद्दे को उठाते हुए केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह को पत्र लिखा है और किसानों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए एफएक्यू मानकों में तत्काल ढील देने का आग्रह किया है। यह मामला केंद्रीय कृषि मंत्रालय और संबंधित विभागों के समक्ष भी उठाया गया है।

सीसीआई समर्थन मूल्य पर कपास तभी खरीदता है जब फसलें विशिष्ट गुणवत्ता मानदंडों को पूरा करती हैं। इन मानकों को पूरा न करने का मतलब है कि किसान एमएसपी का लाभ नहीं उठा पाएंगे।

चालू खरीफ सीजन में तय मानकों में छूट दिए बिना कपास की सरकारी खरीद जोखिम में पड़ सकती है, जिसके परिणामस्वरूप छोटे और सीमांत किसान अपनी उपज बहुत कम कीमतों पर बेचने के लिए मजबूर होंगे।

चालू खरीफ सीजन के दौरान हरियाणा, पंजाब और राजस्थान जैसे उत्तरी राज्यों और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना सहित दक्षिणी राज्यों में प्रतिकूल मौसम की मार खरीफ फसलों पर पड़ी है। कपास के खेतों में लगातार जलभराव के कारण फसल को नुकसान हुआ।

खेतों में अत्यधिक नमी ने कपास के रेशे की मजबूती और माइक्रोनियर मूल्य को प्रभावित किया है, जबकि इससे रंग और ग्रेड को भी नुकसान हुआ है। अत: प्रभावित क्षेत्रों में फसल एफएक्यू मानकों को पूरा नहीं कर पायेंगी।

केंद्र सरकार ने चालू खरीफ विपणन सीजन 2025-26 के लिए मध्यम रेशे वाली कपास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी 7,710 रुपये प्रति क्विंटल और लंबे-रेशे वाली कपास के लिए 8,110 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया किया हुआ है। उत्तर भारत के राज्यों हरियाणा, राजस्थान और पंजाब में कपास की आवक शुरू हो गई है, तथा इन राज्यों में कपास 6,000 से 7,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रही है, जोकि एमएसपी से काफी कम है। आगामी दिनों में आवकों का दबाव बनने पर, मौजूदा कीमतों में और भी गिरावट आने की आशंका है।

एसएबीसी ने सरकार से मांग की है कि गुणवत्ता में गिरावट आने पर भी कपास की खरीद एमएसपी पर की जानी चाहिए। प्रभावित राज्यों में तय नमी की मात्रा को 8 फीसदी से बढ़ाकर
15 फीसदी करने, रंग आदि के आधार पर ग्रेडिंग मानकों में ढील देने और रेशे की मजबूती, सूक्ष्म पोषक तत्व और बीज की गुणवत्ता के लिए व्यावहारिक छूट देने का आह्वान किया है।
किसानों को बिना किसी प्रतिबंध के अपनी पूरी फसल सीसीआई को बेचने की अनुमति देने की  मांग भी की गई है।

अक्टूबर से अगस्त में सोया डीओसी का निर्यात 10.54 फीसदी घटा - सोपा

नई दिल्ली। चालू फसल सीजन 2024-25 के पहले 11 महीनों अक्टूबर 24 से अगस्त 25 के दौरान देश से सोया डीओसी का निर्यात 10.54 फीसदी घटकर केवल 18.58 लाख टन का ही हुआ है, जबकि पिछले फसल सीजन की समान अवधि में इसका निर्यात 20.77 लाख टन का हुआ था।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन के अक्टूबर से अगस्त के दौरान 82.86 लाख टन सोया डीओसी का उत्पादन हुआ है, जबकि नई सीजन के आरंभ में 1.33 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। इस दौरान 18.58 लाख टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ है जबकि 7.50 लाख टन की खपत फूड में एवं 57 लाख टन की फीड में हुई है। अत: पहली सितंबर को मिलों के पास 1.13 लाख टन सोया डीओसी का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 1.80 लाख टन से कम है।

सोपा के अनुसार फसल सीजन 2024-25 के पहले 11 महीनों में देशभर की उत्पादक मंडियों में 99 लाख टन सोयाबीन की आवक हुई है, जबकि अगस्त अंत तक 105 लाख टन की पेराई हुई है। इस दौरान 4.80 लाख टन सोयाबीन की खपत डारेक्ट हुई है जबकि 0.11 लाख टन का निर्यात हुआ है। अत: प्लांटों एवं व्यापारियों तथा किसानों के पास पहली सितंबर को 7.84 लाख टन सोयाबीन का बकाया स्टॉक बचा हुआ है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 17.90 लाख टन की तुलना में कम है।

सोपा के अनुसार चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में सोयाबीन का उत्पादन 125.82 लाख टन का हुआ है, जबकि 8.94 लाख टन का बकाया स्टॉक नई फसल की आवक के समय बचा हुआ था। अत: कुल उपलब्धता 134.76 लाख टन की बैठी है, जबकि चालू सीजन में करीब 5 हजार टन सोयाबीन के आयात का अनुमान है। इसके पिछले फसल सीजन में 118.74 लाख टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था, जबकि नई फसल की आवक के समय 24.07 लाख टन का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। अत: पिछले साल कुल उपलब्धता 142.81 लाख टन की बैठी थी, जबकि 6.25 लाख टन का आयात हुआ था।

सोपा के अनुसार चालू खरीफ में 15 सितंबर तक देशभर में सोयाबीन की बुआई 115.65 लाख हेक्टेयर में ही हुई है, जबकि कृषि मंत्रालय के अनुसार बुआई 120.43 लाख हेक्टेयर में हुई है।

अगस्त में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 7 फीसदी बढ़ा - एसईए

नई दिल्ली। चालू तेल वर्ष 2024-25 के अगस्त 2025 में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 7 फीसदी बढ़कर 1,677,346 टन का हुआ है, जबकि पिछले साल अगस्त में इनका आयात 1,563,329 टन का हुआ था। इस दौरान खाद्वय तेलों का आयात 1,621,525 टन का एवं अखाद्य तेलों का आयात 55,821 टन का हुआ है।


सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार चालू तेल वर्ष के पहले 10 महीनों नवंबर-24 से अगस्त-25 के दौरान देश में खाद्वय एवं अखाद्य तेलों का आयात 7 फीसदी कम होकर 12,690,980 टन का ही हुआ है, जबकि पिछले तेल वर्ष की समान अवधि में इनका आयात 13,687,511 टन का हुआ था।

इसके अलावा नेपाल से साफ्टा समझौते के तहत देश में मुख्य रूप से रिफाइंड सोया तेल और सूरजमुखी तेल तथा थोड़ी मात्रा में आरबीडी पामोलिन और रेपसीड तेल का आयात शून्य शुल्क पर हुआ है। नवंबर 2024 से जुलाई 2025 (9 महीने) के दौरान नेपाल से कुल आयात 5.89 लाख टन का हुआ।

अत: नवंबर 2024 से अगस्त 2025 के दौरान देश में कुल खाद्य तेलों का आयात 123.8 लाख टन + नेपाल से 5.89 लाख टन को मिलाकर कुल आयात 129.7 लाख टन का हुआ है।

एसईए के अनुसार सीपीओ और आरबीडी पामोलिन के बीच आयात शुल्क के अंतर को 8.25 फीसदी से बढ़ाकर 19.25 फीसदी करने के बाद, 31 मई, 2025 से रिफाइंड तेल के आयात पड़ते महंगे हुए है। इससे रिफाइंड तेल का आयात फायदेमंद नहीं रहा और जुलाई 2025 में लगभग 5,000 टन और अगस्त 2025 में 8,000 टन आयात कम हो गया है, जबकि पिछले साल जुलाई 2024 में यह 1.36 लाख टन और अगस्त 2024 में 92,130 टन का हुआ था।। शुल्क अंतर बढ़ाने का केंद्र सरकार का फैसला एक साहसिक और समय पर उठाया गया कदम है। उसने रिफाइंड पामोलिन के आयात को हतोत्साहित करना शुरू कर दिया है और मांग को वापस क्रूड तेल की ओर मोड़ दिया है। इससे घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को इसका फायदा मिलेगा।

3 सितंबर 2025 तक चालू मानसूनी सीजन में (1 जून - 3 सितंबर, 2025) के दौरान देश में मानसूनी बारिश सामान्य से 8 फीसदी अधिक हुई है। 5 सितंबर 2025 तक देशभर के राज्यों में खरीफ की तिलहनी फसलों की बुआई 186.98 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है, जो कि पिछले वर्ष की समान अवधि के 192.21 लाख हेक्टेयर की तुलना में 5.23 लाख हेक्टेयर कम है। तिलहनी फसलों की बुआई में मूंगफली: 47.53 लाख हेक्टेयर में (पिछले वर्ष 47.49 लाख हेक्टेयर की तुलना में), सोयाबीन की बुआई 120.32 लाख हेक्टेयर में (126.04 लाख हेक्टेयर की तुलना में) और कपास की बुआई 109.17 लाख हेक्टेयर में (112.43 लाख हेक्टेयर की तुलना में) हुई है। सोयाबीन और कपास के बुआई क्षेत्र में कमी का प्रमुख कारण मक्का की बुआई में बढ़ोतरी को माना जा रहा है।

नवंबर 2024 से अगस्त 2025 के दौरान पिछले तेल वर्ष की समान अवधि के 1,610,801 टन की तुलना में 995,711 टन रिफाइंड तेल (आरबीडी पामोलीन) का आयात हुआ है जबकि 11,860,655 टन की तुलना में 11,382,446 टन क्रूड तेल का आयात नवंबर 2023 से अगस्त 2024 की तुलना में कम हुआ। आरबीडी पामोलीन के कम आयात के कारण रिफाइंड तेल का अनुपात 12 फीसदी से घटकर 8 फीसदी का रह गया, जबकि सोया तेल के आयात में वृद्धि के कारण क्रूड तेल का अनुपात 88 फीसदी से बढ़कर 92 फीसदी हो गया।

जुलाई के मुकाबले अगस्त में आयातित खाद्वय तेलों के दाम भारतीय बंदरगाह पर तेज हुए हैं। अगस्त में आरबीडी पामोलिन का भाव भारतीय बंदरगाह पर बढ़कर 1,105 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि जुलाई में इसका भाव 1,052 डॉलर प्रति था। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का भाव भारतीय बंदरगाह पर अगस्त में बढ़कर 1,151 डॉलर प्रति टन हो गया, जबकि जुलाई में इसका भाव 1,095 डॉलर प्रति टन था। क्रूड सोया तेल का भाव जुलाई में भारतीय बंदरगाह पर 1,191 डॉलर प्रति टन था, जोकि अगस्त में बढ़कर 1,195 डॉलर प्रति टन हो गया।

15 सितंबर 2025

हाल में हुई भारी बारिश एवं बाढ़ से पंजाब में रबी फसलों की बुआई भी संकट में

नई दिल्ली। पंजाब के बाढ़ प्रभावित जिलों में अभी भी खेतों में पानी खड़ा हुआ है, इसलिए रबी फसलों की बुआई पर भी संकट बना हुआ है। किसान मिट्टी पर गाद जमा होने की सूचना दे रहे हैं, जो कि रबी फसलों की बुवाई के लिए चिंता का विषय हो सकता है।


जानकारों के अनुसार रबी फसलों में सरसों की बुआई का समय चालू महीने में शुरू हो जायेगा, जबकि धान की कटाई के बाद गेहूं की बुआई शुरू हो जाती है। खेतों में पानी खड़ा होने के कारण सरसों के साथ ही गेहूं की बुआई में भी देरी की आशंका है।

पंजाब में हाल ही में हुई भारी बारिश और बाढ़ की चपेट में लगभग 1,48,000 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि जलमग्न हो गई है तथा इससे खरीफ फसलों खासकर के धान और कपास को भारी नुकसान पहुंचा है। अधिकारियों ने राज्य के सभी 23 जिलों को बाढ़ प्रभावित घोषित कर दिया है।

केंद्र ने हाल ही में आई बाढ़ के कारण पंजाब में कृषि योग्य भूमि को हुए नुकसान का आकलन करने के लिए एक सर्वेक्षण शुरू किया है। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने बताया कि राज्य प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से बाहर होने के कारण, यह अनिश्चित है कि सरकार वर्तमान में कितनी सहायता प्रदान कर सकती है।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, आईएमडी के अनुसार चालू मानसून सीजन में राज्य में अब तक सामान्य से 53 फीसदी अधिक वर्षा हुई है। पठानकोट, गुरदासपुर, अमृतसर और तरनतारन जैसे महत्वपूर्ण कृषि जिलों में सामान्य से लगभग 100 फीसदी वर्षा हुई है। जानकारों का कहना है कि इस समय नुकसान की सही मात्रा का आकलन करना मुश्किल है।

जानकारों के अनुसार हाल की बाढ़ से सबसे ज्यादा नुकसान कपास एवं धान की फसल को हुआ है। इंडियन कॉटन एसोसिएशन लिमिटेड (आईसीएएल) के अनुसार राज्य के फाजिल्का, मुक्तसर, अबोहर और मानसा आदि जिलों में हाल ही में हुई भारी बारिश और बाढ़ से कपास की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। आईसीएएल के अनुसार इन राज्यों में कपास की आने वाली फसल को लगभग 10-15 फीसदी का नुकसान होने का अनुमान है।

पंजाब के फाजिल्का के राइस मिलर्स पवन गुप्ता के अनुसार अमृतसर, गुरदासपुर, कपूरथला, फिरोजपुर, पठानकोट, होशियारपुर, मुक्तसर, फाजिल्का, तरनतारन, मोगा, संगरूर, और बरनाला सहित कई धान उत्पादक जिले हाल ही हुई बारिश एवं बाढ़ से प्रभावित हुए हैं।

गुरदासपुर क्षेत्र से सटे जिलों में, जो मुख्य रूप से बासमती धान का उत्पादक क्षेत्र है, लगभग 80-90 फीसदी फसल नष्ट हो गई है। बाढ़ से प्रभावित जिलों में भंडारित अनाज को भी काफी नुकसान हुआ है। पंजाब के कुल कृषि योग्य क्षेत्र का लगभग 35-40 फीसदी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया है।

पहली अक्टूबर से शुरू होने वाले नए पेराई सीजन में चीनी निर्यात की संभावनाएं - अश्विनी श्रीवास्तव

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2025 से शुरू होने वाले नए गन्ना पेराई सीजन (अक्टूबर-25 से सितंबर-26) के दौरान देश से चीनी के निर्यात की संभावना बनी हुई है, क्योंकि पर्याप्त मात्रा में चीनी उपलब्ध होगी।


दिल्ली में चीनी एवं जैव-ऊर्जा सम्मेलन के अवसर पर खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के संयुक्त सचिव (चीनी) अश्विनी श्रीवास्तव ने कहा कि गन्ना पेराई सीजन 2025-26 के दौरान चीनी निर्यात की संभावनाएं प्रबल है, क्योंकि देश में पर्याप्त मात्रा में चीनी भंडार होगा, हालांकि, मात्रा पर चर्चा की जाएगी।

उन्होंने बताया कि चीनी का बकाया स्टॉक करीब 50 लाख टन और चीनी का उत्पादन 350 लाख टन होने का अनुमान है। साथ ही नए सीजन में लगभग 280 लाख टन चीनी की खपत होने की उम्मीद है। केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन में, 10 लाख टन चीनी के निर्यात की अनुमति दी थी, हालांकि सीजन समाप्त होने से पहले करीब 8 लाख टन का निर्यात हो जायेगा।

गन्ना मूल्य बकाया के बारे में संयुक्त सचिव ने कहा कि किसान सरकार की पहली प्राथमिकता में हैं। चीनी मिलें किसानों को समय पर गन्ना का भुगतान करने में सक्षम हैं। चालू पेराई सीजन में उद्योग ने लगभग 98,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।

पेराई सीजन 2023-24 में किसानों को कुल 111,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था। नए पेराई सीजन में चीनी उद्योग के संबंध में सरकार की नीतिगत प्राथमिकताएं चीनी सीजन के अंत में पर्याप्त स्टॉक का प्रबंधन करने के साथ ही अतिरिक्त चीनी का उपयोग इथेनॉल उत्पादन में करना और देश में उपलब्ध बकाया चीनी के निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना है।

एथेनॉल उत्पादन के बारे में उन्होंने कहा कि नए सीजन में देश भर में 20 फीसदी की एक समान मिश्रण क्षमता प्राप्त करने के लिए 12 अरब लीटर एथेनॉल की आवश्यकता होगी। उन्होंने बताया कि गन्ना आधारित फीडस्टॉक से लगभग 4.5 से 4.8 अरब लीटर एथेनॉल का उत्पादन होने की संभावना है।

केंद्र सरकार ने हाल ही में चीनी मिलों और डिस्टिलरियों को एथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) 2025-26 के दौरान बिना किसी प्रतिबंध के गन्ने के रस, चीनी सिरप, बी-हैवी मोलासेस (बीएचएम) और सी-हैवी मोलासेस (सीएचएम) से एथेनॉल उत्पादन की अनुमति दी है। उन्होंने कहा कि उत्पादकता में बढ़ोतरी के लिए गन्ने की किस्मों में सुधार जरूरी है और सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है।

12 सितंबर 2025

पेराई सीजन 2025-26 के दौरान 349 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान - इस्मा

नई दिल्ली। पहली अक्टूबर 2025 से शुरू होने वाले नए पेराई सीजन (अक्टूबर-25 से सितंबर-26) के दौरान देश में 349 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान है। भारतीय चीनी एवं जैव-ऊर्जा निर्माता संघ (इस्मा) ने गुरुवार को ताजा उपग्रह चित्रों और जमीनी रिपोर्टों के आधार पर उत्पादन का अनुमान जारी किया।


 इस्मा ने इससे पहले 31 जुलाई, 2025 को अपना प्रारंभिक अनुमान जारी किया था, जिसमें 349 लाख टन चीनी के उत्पादन का ही अनुमान लगाया गया था। यह अनुमान जून 2025 से अखिल भारतीय उपग्रह चित्रों का उपयोग करके, क्षेत्र-स्तरीय आकलन द्वारा समर्थित, और सामान्य मानसून की स्थिति को मानते हुए तैयार किया गया था।

इस्मा ने अब सितंबर की शुरुआत में महाराष्ट्र और कर्नाटक के लिए अतिरिक्त उपग्रह डेटा का उपयोग करके, दक्षिण-पश्चिम मानसून की प्रगति, जलाशयों के स्तर और प्रमुख उत्पादक राज्यों में मौजूदा फसल की स्थिति के अपडेट के साथ, पुनर्मूल्यांकन किया है। इस्मा के अनुसार अगस्त में भारी बारिश के साथ महाराष्ट्र और कर्नाटक में अनुकूल मानसून की स्थिति ने स्वस्थ फसल वृद्धि और सामान्य विकास सुनिश्चित किया है। पिछले वर्ष की तुलना में जलाशयों का स्तर ज्यादा होने और दक्षिण-पश्चिम तथा आगामी उत्तर-पूर्वी मानसून के दौरान लगातार बारिश की उम्मीद के साथ, इन प्रमुख चीनी उत्पादक राज्यों के लिए संभावनाएं मजबूत बनी हुई हैं।

उत्तर प्रदेश में फसल की स्थिति पिछले वर्ष की तुलना में काफी बेहतर बताई जा रही है। गन्ना विकास पर उद्योग की पहल और उन्नत किस्मों की समय पर शुरुआत ने फसलों को स्वस्थ बनाने में योगदान दिया है। इस्मा ने बताया कि रोगों के कम प्रकोप के परिणामस्वरूप बेहतर उपज और ज्यादा रिकवरी दर मिलने की उम्मीद है। तमिलनाडु ने भी आशाजनक रुझान दिखाए हैं, जहां उत्पादकता और रिकवरी दोनों ही पहले के अनुमानों से अधिक होने की उम्मीद है।

हाल ही में पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे कुछ उत्तर भारत राज्यों में भारी बारिश से बाढ़ जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा है, जिससे गन्ना उत्पादन की फसल को होने की आशंका है। हालांकि इन बाधाओं के बावजूद, इस्मा ने कहा कि महाराष्ट्र, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में फसल की समग्र गुणवत्ता इस कमी की भरपाई कर देगी, जिससे राष्ट्रीय उत्पादन अनुमान स्थिर रहेंगे।

इस्मा ने अपने बयान में कहा, प्रमुख उत्पादक राज्यों में गन्ने की बेहतर गुणवत्ता उत्पादन में बढ़ोतरी का समर्थन कर रही है। हालांकि उत्तर भारत के राज्यों में भारी बारिश एवं बाढ़ में चीनी उत्पादन में मामूली गिरावट आने की आशंका है। इसके बावजूद भी पेराई सीजन 2025-26 के दौरान चीनी का उत्पादन अनुमान 349 लाख टन पर स्थिर रखा है।

अगस्त अंत तक 36.75 लाख गांठ कॉटन का आयात हुआ, उत्पादन अनुमान में बढ़ोतरी

नई दिल्ली। देश में पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में अगस्त अंत तक 36.75 लाख गांठ, एक गांठ 170 किलो कॉटन का आयात हो चुका है, जबकि उद्योग ने घरेलू उत्पादन अनुमान में पहले की तुलना में एक लाख गांठ की बढ़ोतरी की है।


कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया, सीएआई के अनुसार चालू फसल सीजन में अगस्त अंत तक 36.75 लाख गांठ कॉटन का आयात हो चुका है, जबकि सितंबर अंत तक कुल आयात 41 लाख गांठ होने का अनुमान है। फसल सीजन 2023-24 के दौरान कॉटन का कुल आयात 15.20 लाख गांठ का ही हुआ था।

पहली अक्टूबर 2024 से शुरू हुए चालू फसल सीजन 2024-25 में देश में कॉटन का उत्पादन 312.40 लाख गांठ होने का अनुमान है, जबकि इसके पहले के अनुमान से एक लाख गांठ ज्यादा है।

सीएआई के अनुसार चालू फसल सीजन के अंत तक देश से 18 लाख गांठ कॉटन के निर्यात का अनुमान है, जबकि अगस्त अंत तक 17 लाख गांठ की शिपमेंट हो चुकी है। पिछले फसल सीजन के दौरान 28.36 लाख गांठ का निर्यात हुआ था।

सीएआई के अनुसार उत्पादक मंडियों में अगस्त अंत तक 307.09 लाख गांठ कॉटन की आवक हो चुकी है, जिसमें से 286 लाख गांठ की खपत हो चुकी है। अत: पहली अगस्त को मिलों के पास 35 लाख गांठ एवं सीसीआई, महाराष्ट्र फेडरेशन, एमएनसी, जिनर्स एवं निर्यातकों के साथ ही व्यापारियों के पास 45.03 लाख गांठ कॉटन का बकाया स्टॉक है।

सीएआई के अनुसार पहली अक्टूबर 2024 को कॉटन का बकाया स्टॉक 39.19 लाख गांठ का बचा हुआ था, जबकि 312.40 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है। चालू सीजन में करीब 41 लाख गांठ कुल कॉटन का आयात होने की उम्मीद है। ऐसे में कुल उपलब्धता 392.59 लाख गांठ की बैठेगी।

सीएआई के अनुमान के अनुसार पंजाब में कॉटन का उत्पादन फसल सीजन 2024-25 में 1.50 लाख गांठ, हरियाणा में 8.05 लाख गांठ, अपर राजस्थान में 10.35 लाख गांठ एवं लोअर राजस्थान के 9.65 लाख गांठ को मिलाकर कुल 29.55 लाख गांठ होने का अनुमान है।

सीएआई के अनुसार मध्य भारत के राज्यों गुजरात में चालू फसल सीजन में 77.50 लाख गांठ, महाराष्ट्र में 91 लाख गांठ तथा मध्य प्रदेश के 19 लाख गांठ को मिलाकर कुल 187.50 लाख गांठ के उत्पादन का अनुमान है।

दक्षिण भारत के राज्यों में तेलंगाना में चालू फसल सीजन में 49.50 लाख गांठ, आंध्र प्रदेश में 12 लाख गांठ एवं कर्नाटक में 24 लाख गांठ तथा तमिलनाडु के 4 लाख गांठ को मिलाकर कुल 89.50 लाख गांठ के कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

ओडिशा में चालू खरीफ में 3.85 लाख गांठ एवं अन्य राज्यों में 2 लाख गांठ कॉटन के उत्पादन का अनुमान है।

गुजरात में खरीफ फसलों की 97 फीसदी बुआई पूरी, मूंगफली के साथ ही अरहर की बढ़ी

नई दिल्ली। चालू खरीफ सीजन में गुजरात में खरीफ फसलों की बुआई 97.03 फीसदी क्षेत्रफल में पूरी हो चुकी है। मूंगफली के साथ ही अरहर एवं धान की रोपाई राज्य में सामान्य की तुलना में बढ़ी है।


राज्य की कृषि निदेशालय के अनुसार 8 सितंबर तक राज्य में मूंगफली की बुआई बढ़कर 2,201,769 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुवाई केवल 1,910,492 हेक्टेयर में ही हुई थी। इसी तरह से केस्टर सीड की बुआई बढ़कर 6,2,755 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक केवल 5,47,068 हेक्टेयर में ही बुआई हो पाई थी। सोयाबीन की बुआई राज्य में 2,77,517 हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 2,99,857 हेक्टेयर की तुलना में कम है। राज्य में तिलहनी फसलों की बुआई बढ़कर 3,144,393 हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इनकी बुआई केवल 2,807,553 हेक्टेयर में ही हुई थी।

खरीफ दलहन की प्रमुख फसल अरहर की बुआई चालू खरीफ में बढ़कर 291,368 हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इसकी बुआई केवल 227,330 हेक्टेयर में ही हुई थी। अन्य दालों में उड़द की बुआई 82,997 हेक्टेयर में तथा मूंग की बुआई 48,293 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 83,651 हेक्टेयर एवं 54,954 हेक्टेयर में हो चुकी थी। दलहनी फसलों की कुल बुआई चालू खरीफ में राज्य में 441,901 हेक्टेयर में हो चुकी है, जोकि पिछले साल के 385,877 हेक्टेयर की तुलना में ज्यादा है।

मोटे अनाजों की बुवाई चालू खरीफ में 1,376,176 हेक्टेयर में हो चुकी है, जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई 1,371,623 हेक्टेयर में ही हुई थी। धान की रोपाई 900,483 हेक्टेयर में, बाजरा की 172,478 हेक्टेयर में, मक्का की 280,569 हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक इनकी बुआई क्रमश: 885,451 हेक्टेयर में, 167,954 हेक्टेयर में तथा 285,316 हेक्टेयर में हुई थी।

कपास की बुआई राज्य में 2,081,210 हेक्टेयर में ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 2,362,558 हेक्टेयर की तुलना में कम है। ग्वार सीड की बुआई 74,214 हेक्टेयर में  ही हुई है, जोकि पिछले साल की समान अवधि के 81,695 हेक्टेयर की तुलना में कम है।

भारी बारिश एवं बाढ़ से धान की फसल को नुकसान, कीमतों में तेजी आने का अनुमान

नई दिल्ली। अगस्त के आखिरी सप्ताह के साथ ही सितंबर की शुरुआत में पंजाब एवं हरियाणा में हुई भारी बारिश और बाढ़ से बासमती धान की फसल को नुकसान होने की आशंका है। ऐसे में घरेलू बाजार के साथ ही विश्व स्तर पर बासमती चावल की कीमतों में तेजी आने का अनुमान है।


उत्पादक मंडियों में पूसा 1,509 किस्म के धान की आवकों में बढ़ोतरी हुई है, साथ ही इसके दाम भी 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल तक तेज हो चुके हैं। बासमती चावल की कीमतों में हाल ही में करीब 100 से 200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है तथा आगामी दिनों में इनकी कीमतों में और भी तेजी आने का अनुमान है।

पंजाब की समाना मंडी में मंगलवार को पूसा 1,509 किस्म के कंबाइन के धान की आवक 1,500 बोरी की हुई तथा मंडी में व्यापार 2,930 से 3,625 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हुआ। हरियाणा की इंद्री मंडी में पूसा 1509 किस्म के नए कंबाइन के धान की आवक 4,000 बोरी की हुई तथा इसका व्यापार 2,700 से 3,361 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हुआ। उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ मंडी में पूसा 1,509 किस्म के नए धान की आवक 500 बोरी की हुई, तथा इसका व्यापार 2,875 से 3,150 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हुआ।

दिल्ली के नया बाजार में मंगलवार को पूसा 1,718 किस्म के स्टीम चावल के दाम 7,200 से 7,400 रुपये और इसके सेला चावल के भाव 6,700 से 6,900 प्रति क्विंटल बोले गए। इसी तरह से पूसा 1,509 किस्म के सेला चावल के भाव तेज होकर 6,200 से 6,450 रुपये और इसके नए स्टीम चावल के भाव 7,000 से 7,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।

जानकारों के अनुसार पंजाब के अमृतसर, गुरदासपुर, कपूरथला, फिरोजपुर, पठानकोट, होशियारपुर, मुक्तसर, फाजिल्का, तरनतारन, मोगा, संगरूर, और बरनाला सहित कई धान उत्पादक जिले प्रभावित हुए हैं। ब्यास नदी का पानी कपूरथला के कई गांवों के खेतों में घुस गया है। अत: जिन खेतों में पानी भरा हुआ है वहां चावल की क्वालिटी तो प्रभावित होने का डर है ही है, साथ ही उत्पादकता में भी भारी कमी आयेगी।

हरियाणा में भारी बारिश और बाढ़ के कारण 30,0000 एकड़ से अधिक भूमि पर फसलें खराब हुई है, जिसमें सबसे ज्यादा धान एवं कपास की फसल प्रभावित हुई हैं। राज्य के सोनीपत, जींद, रोहतक और भिवानी तथा हिसार जिले ज्यादा प्रभावित हुए हैं, इन जिलों में जलभराव के कारण धान के खेत पानी में डूबे हुए है। अगस्त के आखिरी हफ्ते और सितंबर की आरंभ में हुई भारी बारिश से रावी, चिनाब, सतलुज और ब्यास नदियाँ उफान पर आ गई, जिससे हरियाणा और पंजाब के खेतों में पानी भर गया।

बारिश एवं बाढ़ से उत्तर भारत में कपास उत्पादन घटकर 25-30 लाख गांठ ही होने का अनुमान - उद्योग

नई दिल्ली। उत्तर भारत के राज्यों में बेमौसम भारी बारिश और बाढ़ से चालू खरीफ सीजन में कपास की फसल को भारी नुकसान हुआ है। इंडियन कॉटन एसोसिएशन (आईसीएएल) ने पहले आरंभिक अनुमान में इन राज्यों में 25 से 30 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कॉटन के उत्पादन का अनुमान जारी किया है।


इंडियन कॉटन एसोसिएशन लिमिटेड (आईसीएएल) ने बठिंडा में 6 सितंबर को पंजाब, हरियाणा और राजस्थान सहित उत्तरी क्षेत्र के राज्यों में कपास की फसल की स्थिति पर चर्चा के लिए एक बोर्ड बैठक आयोजित की थी। बैठक में अध्यक्ष मुकुल तायल, उपाध्यक्ष अश्विनी झांब और कोषाध्यक्ष पवन नागोरी सहित दस अन्य बोर्ड के सदस्य ने भाग लिया था। यह चर्चा पिछले साल की फसल की आवक, चालू खरीफ में बुवाई एवं हाल ही में हुई बारिश तथा बाढ़ आदि से फसल को हुए नुकसान पर केंद्रित रही।

चालू खरीफ सीजन में पंजाब में कपास की बुआई बढ़कर 119,000 हेक्टेयर में हुई, जबकि पिछले साल राज्य में केवल 97,000 हेक्टेयर में ही बुआई हुई थी। राज्य के फाजिल्का, मुक्तसर, अबोहर और मानसा आदि जिलों में हाल ही में हुई भारी बारिश और बाढ़ से कपास की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। आईसीएएल के अनुसार इन राज्यों में कपास की आने वाली फसल को लगभग 10-15 फीसदी का नुकसान होने का अनुमान है।

आईसीएएल के अनुसार हरियाणा में चालू खरीफ सीजन में कपास की बुआई पिछले साल की तुलना में 21 फीसदी घटकर केवल 391,500 हेक्टेयर में ही हुई थी, जबकि पिछले साल राज्य में 495,000 हेक्टेयर में कपास की बुआई हुई थी। बुआई में आई कमी के साथ ही हाल ही में हुई भारी बारिश और बाढ़ जैसे हालात बनने के कारण खड़ी फसल में 15-20 फीसदी की कमी आने की आशंका है।

हरियाणा में कई जिलों में बारिश और बाढ़ जैसे हालात बनने से कपास की फसल को भारी नुकसान हुआ है। प्रभावित जिलों में डबवाली, कालांवाली, ऐलनाबाद, आदमपुर और सिरसा में कपास की फसल को 10-15 फीसदी का नुकसान होने की आशंका है। राज्य के जींद, उचाना, नरवाना, टोहाना और जाखल में 15-20 फीसदी के बीच फसल का नुकसान होने की आशंका है, जबकि बरवाला में सबसे ज्यादा 20-30 फीसदी और हिसार में 30-40 फीसदी तक फसल को नुकसान होने का डर है। भिवानी, दादरी, महेंद्रगढ़, नारनौल और रेवाड़ी में भी ज्यादा नुकसान होने की आशंका है।

चालू खरीफ में राजस्थान में कपास की बुवाई बढ़कर 628,000 हेक्टेयर में हुई है। ऊपरी राजस्थान के विशेष रूप से हनुमानगढ़, रावतसर, संगरिया और गंगानगर क्षेत्रों में कपास की फसल को 7-8 फीसदी नुकसान होने की आशंका है। वहीं लोअर राजस्थान के मेड़ता में फसल को (15-20 फीसदी) तथा अलवर-खैरथल में (5-10 फीसदी) और मेवाड़ में (10-15 फीसदी) क्षेत्र में बारिश से फसल को नुकसान की आशंका है।

अनुमानित उपज और अनुमान, बोर्ड के विश्लेषण के प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार उत्तर भारत के राज्यों में 30 लाख गांठ कपास के उत्पादन का अनुमान है। हरियाणा में 6 लाख गांठ, पंजाब में 2 लाख गांठ तथा ऊपरी राजस्थान में 12 लाख गांठ तथा लोअर राजस्थान में 10 लाख गांठ के उत्पादन का आरंभिक अनुमान है। हालांकि अंतिम उत्पादन कम से या थोड़ा ज्यादा हो सकता है तथा संभवतः 27 से 30 लाख गांठ के बीच रहे। बैठक में यह आम सहमति है कि फसल को पिछले वर्ष की तुलना में नुकसान ज्यादा हुआ है।

पिछले फसल सीजन 2024-25 के दौरान कॉटन की अंतिम आवक पंजाब में 1,51,676 गांठ, हरियाणा में 7,67,532 गांठ तथा ऊपरी राजस्थान (गंगानगर सर्कल) में 10,35,342 गांठ और लोअर राजस्थान में 8,89,900 गांठ की दर्ज की गई।

केंद्र सरकार आयातित खाद्वय तेलों पर 10 फीसदी आयात शुल्क बढ़ाये - सोपा

नई दिल्ली। घरेलू बाजार में सोयाबीन के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी से नीचे बने हुए हैं, जिस कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। नई फसल लगभग तैयार है, इसलिए केंद्र सरकार आयातित खाद्वय तेलों पर आयात शुल्क में 10 फीसदी की बढ़ोतरी करें।


सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने केंद्र सरकार से आयातित खाद्य तेलों पर सीमा शुल्क संरचना की समीक्षा करने और यथाशीघ्र कम से कम 10 फीसदी शुल्क बढ़ाने का अनुरोध किया है। ऐसा कदम किसानों का विश्वास बहाल करने, तिलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और आत्मनिर्भरता की ओर भारत की यात्रा को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

सोपा के अनुसार फसल सीजन अक्टूबर 2024 से सितंबर 2025 के दौरान उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी 4,892 रुपये प्रति क्विंटल की दर से नीचे बने रहे थे, जिसका प्रमुख कारण सोया तेल और खल के दाम नीचे होना है। अत: सरकार को एमएसपी पर 20 लाख टन सोयाबीन की खरीद करनी पड़ी थी। अत: सरकार द्वारा सोयाबीन की एमएसपी में खरीद के साथ ही परिवहन लागत, नमी लागत, भंडारण तथा नुकसान आदि को जोड़कर एमएसपी से काफी महंगी पड़ी थी। नेफेड और एनसीसीएफ ने खुले बाजार सोयाबीन की बिक्री कुल लागल की तुलना में करीब 10,000 प्रति टन नीचे दाम पर करनी पड़ी थी। अत: सरकार का इस पर करीब 2,000 करोड़ रुपये खर्च हुआ।

केंद्र सरकार ने फसल सीजन अक्टूबर 2025 से सितंबर 2026 के लिए सोयाबीन का एमएसपी 5,328 रुपये प्रति क्विटल तय किया हुआ है। घरेलू बाजार में आयात शुल्क कम होने के कारण सोया तेल के साथ ही खल के भाव नीचे बने हुए हैं। इसलिए नए सीजन में केंद्र सरकार को समर्थन मूल्य पर पिछले सीजन की तुलना में दोगुनी सोयाबीन की खरीद करनी पड़ेगी। इस पर करीब 5,000 करोड़ का खर्च आने का अनुमान है।

अत: सोपा की मांग है कि केंद्र सरकार सोयाबीन की खरीद के बजाए भावांतर भुगतान योजना, लागू करें। इसके किसान को मंडी भाव और एमएसपी में बीच के अंतर का सीधे भुगतान मिलेगा। इससे किसान को समय पर पैसा मिलेगा, तथा सरकार की लागत भी आधी रह जायेगी। योजना को ऐसे लागू किया जाए, कि किसान को ही इसका लाभ मिले।   

गन्ने की उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने हेतु एनएसआई एवं यूपीसीएसआर में समझौता

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने के साथ ही राज्य के गन्ना किसानों की आय में बढ़ोतरी करने के लिए गन्ने के उच्च क्वालिटी के बीज की उपलब्धता बढ़ाने के उद्देश्य से शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।


यह समझौता राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (एनएसआई) कानपुर और उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद (यूपीसीएसआर) शाहजहांपुर के बीच संपन्न हुआ। प्रदेश के गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी की उपस्थिति में समझौते पर राष्ट्रीय शर्करा संस्थान की निदेशक प्रो. श्रीमती सीमा परोहा तथा उत्तर प्रदेश गन्ना शोध परिषद के निदेशक वी. के. शुक्ल ने हस्ताक्षर किए।

गन्ना मंत्री के विधान भवन स्थित कार्यालय कक्ष में आयोजित कार्यक्रम में गन्ना मंत्री ने कहा कि एनएसआई अपनी 52 एकड़ कृषि भूमि पर अभिजनक बीज के गन्ने का उत्पादन करेगा, जिसमें 20 एकड़ में शरदकालीन गन्ना रोपण और शेष क्षेत्र में बसंत कालीन गन्ना रोपण किया जाएगा। अगले चरण में एनएसआई अपने फार्म की अतिरिक्त भूमि का उपयोग बीज गन्ना उत्पादन हेतु करेगा। यूपीसीएसआर, एनएसआई को अभिजनक की नर्सरी तैयार करने हेतु गन्ने की उन्नत किस्मों के बीज सक्षम स्तर से निर्धारित मूल्य पर उपलब्ध कराएगा तथा वैज्ञानिकों द्वारा खेत का निरीक्षण कर आवश्यक तकनीकी सुझाव एवं मार्गदर्शन निःशुल्क उपलब्ध कराया जायेगा। बीज तैयार होने के बाद किसानों को इसकी आपूर्ति एक उचित मूल्य तय करके की जायेगी।

गन्ना मंत्री ने कहा कि स्वस्थ्य एवं गुणवत्तापूर्ण अभिजनक बीज के उत्पादन एवं देखरेख हेतु एनएसआई के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को यूपीसीएसआर द्वारा निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि इस समझौते से प्रदेश के गन्ना किसानों के लिए प्रतिवर्ष लगभग 15,000 क्विंटल अतिरिक्त ब्रीडर सीड उपलब्ध होगा।

उन्होंने कहा कि इस पहल से दोनों विशेषज्ञ संस्थाओं के बीच परस्पर विश्वास व तकनीकी हस्तांतरण में तेजी आयेगी तथा उत्तर प्रदेश के गन्ना किसानों को गुणवत्तापूर्ण गन्ने के बी मिल सकेंगे, जिससे गन्ने प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी। अत: गन्ने का प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ेगा, तो किसानों की आय में बढ़ोतरी होगी, साथ ही राज्य में चीनी का उत्पादन भी बढ़ेगा।