चाय बोर्ड ने कुछ बाजारों को निर्यात में गिरावट की भरपाई के लिए अन्य
निर्यात बाजार चिह्नित किए हैं। भारतीय चाय संघ के वाइस चेयरमैन आजम मुनीम
ने कहा, 'सरकार ने बाजारों की सूची में चिली और चीन जोड़े हैं।' इसने कहा
है कि निर्यात के लिए कजाकस्तान, रूस, अमेरिका, चीन, ईरान, मिस्र और लैटिन
अमेरिका (क्रूशल) को चिह्नित किया गया है। हाल के वर्षों में निर्यात गिर
रहा है। वर्ष 2010 में निर्यात 22.2 करोड़ किलोग्राम रहा था। यह वर्ष 2014
में गिरकर 20.1 करोड़ किलोग्राम पर आ गया। चालू वर्ष भी ज्यादा अच्छा नजर
नहीं आ रहा है। चीन, श्रीलंका और केन्या के बाद भारत विश्व का चौथा सबसे
बड़ा चाय निर्यातक है। आमतौर पर हमारा ज्यादातर निर्यात रूस, संयुक्त अरब
अमीरात (यूएई) और ब्रिटेन को होता है। उत्पादन 3 फीसदी चक्रवृद्धि सालाना
दर से लगातार बढ़ रहा है, लेकिन निर्यात में या तो गिरावट आ रही है या यह
स्थिर बना हुआ है। इसका मुख्य कारण घरेलू खपत में बढ़ोतरी होना है, जिससे
कीमतें मजबूत बनी रहती हैं। अप्रैल 2014 से जनवरी 2015 के दौरान निर्यात की
प्रति इकाई कीमत 196.27 रुपये प्रति किलोग्राम रही, जो इससे एक साल पहले
202.60 रुपये प्रति किलोग्राम थी। इसके विपरीत वर्ष 2014 में जनवरी से
दिसंबर के दौरान जकार्ता में हुई नीलामी में कीमत 14.75 रुपये प्रति
किलोग्राम और मोमबासा में 18.03 रुपये प्रति किलोग्राम गिरी। हालांकि
कोलंबो में कीमत 18.62 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़ी।
मुनीम ने कहा, 'कीमतों में मजबूती से अन्य देशों विशेष रूप से केन्या जैसे उत्पादक देशों से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। केन्या में लगातार अच्छा उत्पादन हो रहा है।' श्रीलंका भी कड़ी टक्कर दे रहा है। चाय उत्पादन दो तरीकों से हो रहा है, जिन्हें परंपरागत और गैर-परंपरागत कहा जाता है। गैर-परंपरागत को आमतौर पर सीटीटी (क्रश, टीयर, कर्ल) कहा जाता है। केन्या पूरी तरह सीटीसी उत्पादक है। लेकिन श्रीलंका में लगभग पूरा उत्पादन परंपरागत है। भारत में सीटीसी का कुल उत्पादन में करीब 90 फीसदी हिस्सा है। इस तरह केन्या की चाय का असम की सीटीसी से सीधा मुकाबला होता है, जबकि असम की परंपरागत चाय को श्रीलंका से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। मलावी, मोजांबिक और युगांडा की चाय की गुणवत्ता दक्षिण भारतीय चाय जैसी है। भारत अपने ज्यादातर परंपरागत उत्पादन का निर्यात करता है, लेकिन सीटीसी का निर्यात में मामूली हिस्सा होता है। उत्तरी भारत (इसका मतलब दक्षिण भारत से इतर सभी क्षेत्रों से है) के कुल उत्पादन में से केवल 13 फीसदी का निर्यात होता है। इक्रा की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरी भारत से ज्यादातर निर्यात अच्छी गुणवत्ता की परंपरागत और सीटीसी चाय का होता है। लेकिन दक्षिणी भारत मध्यम एवं निम्न गुणवत्ता की चाय का निर्यात करता है, जिसका इस्तेमाल मुख्यरूप से मिश्रण में 'फिलर' के रूप में होता है।
पिछले एक दशक में सालाना निर्यात करीब 20 करोड़ किलोग्राम रहा है। चाय बोर्ड की योजना में प्रत्येक बाजार के लिए रणनीति अलग-अलग होगी। चीन में इसे कूटनीतिक स्तर पर उठाया जाएगा, क्योंकि वहां गैर-शुल्क बाधाएं हैं। चीन मुख्य रूप से ग्रीन टी बाजार है, लेकिन वहां ब्लैक टी की भी मांग बढऩे लगी है। मुनीम ने कहा, 'ईरान में पैकर्स के साथ संयुक्त प्रचार की योजना है। रूस में रुपया-रूबल प्रणाली स्थापित करनी होगी।' उद्योग यह उम्मीद कर रहा है कि निर्यात के समय जून से सितंबर के दौरान मौसम बेहतर रहेगा और इसलिए ज्यादा उत्पादन होगा। अब तक सूखे से उत्पादन प्रभावित हुआ है। BS Hindi
मुनीम ने कहा, 'कीमतों में मजबूती से अन्य देशों विशेष रूप से केन्या जैसे उत्पादक देशों से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। केन्या में लगातार अच्छा उत्पादन हो रहा है।' श्रीलंका भी कड़ी टक्कर दे रहा है। चाय उत्पादन दो तरीकों से हो रहा है, जिन्हें परंपरागत और गैर-परंपरागत कहा जाता है। गैर-परंपरागत को आमतौर पर सीटीटी (क्रश, टीयर, कर्ल) कहा जाता है। केन्या पूरी तरह सीटीसी उत्पादक है। लेकिन श्रीलंका में लगभग पूरा उत्पादन परंपरागत है। भारत में सीटीसी का कुल उत्पादन में करीब 90 फीसदी हिस्सा है। इस तरह केन्या की चाय का असम की सीटीसी से सीधा मुकाबला होता है, जबकि असम की परंपरागत चाय को श्रीलंका से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। मलावी, मोजांबिक और युगांडा की चाय की गुणवत्ता दक्षिण भारतीय चाय जैसी है। भारत अपने ज्यादातर परंपरागत उत्पादन का निर्यात करता है, लेकिन सीटीसी का निर्यात में मामूली हिस्सा होता है। उत्तरी भारत (इसका मतलब दक्षिण भारत से इतर सभी क्षेत्रों से है) के कुल उत्पादन में से केवल 13 फीसदी का निर्यात होता है। इक्रा की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरी भारत से ज्यादातर निर्यात अच्छी गुणवत्ता की परंपरागत और सीटीसी चाय का होता है। लेकिन दक्षिणी भारत मध्यम एवं निम्न गुणवत्ता की चाय का निर्यात करता है, जिसका इस्तेमाल मुख्यरूप से मिश्रण में 'फिलर' के रूप में होता है।
पिछले एक दशक में सालाना निर्यात करीब 20 करोड़ किलोग्राम रहा है। चाय बोर्ड की योजना में प्रत्येक बाजार के लिए रणनीति अलग-अलग होगी। चीन में इसे कूटनीतिक स्तर पर उठाया जाएगा, क्योंकि वहां गैर-शुल्क बाधाएं हैं। चीन मुख्य रूप से ग्रीन टी बाजार है, लेकिन वहां ब्लैक टी की भी मांग बढऩे लगी है। मुनीम ने कहा, 'ईरान में पैकर्स के साथ संयुक्त प्रचार की योजना है। रूस में रुपया-रूबल प्रणाली स्थापित करनी होगी।' उद्योग यह उम्मीद कर रहा है कि निर्यात के समय जून से सितंबर के दौरान मौसम बेहतर रहेगा और इसलिए ज्यादा उत्पादन होगा। अब तक सूखे से उत्पादन प्रभावित हुआ है। BS Hindi
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