चीन से मांग में आ रही कमी के चलते वर्ष 2014-15 के दौरान सूती धागों के
निर्यात में करीब 15 फीसदी गिरावट आई है। चीन कुल धागों का 40 फीसदी का
खरीदार है।
वित्त वर्ष 2014 के पहले नौ महीनों के दौरान निर्यात में करीब 6 फीसदी की गिरावट देखी गई है। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय जारी आंकड़ों के मुताबिक इस अवधि में करीब 89.1 करोड़ किलोग्राम का निर्यात किया गया था। वहीं वर्ष 2013 के दौरान यह मात्रा करीब 94.6 करोड़ किलोग्राम की थी। वर्ष 2013-14 के दौरान सूती धागों का कुल निर्यात 130.3 करोड़ किलोग्राम रहा था। निर्यात में दिख रही इस गिरावट का सीधा असर शेयरों पर पड़ेगा।
निर्यात में कमी के चलते कताई कंपनियों को अत्याधिक आपूर्ति की जाएगी जिसके चलते शेयरों की कीमतों में गिरावट आएगी। हालांकि इस क्षेत्र में बहाली जल्द संभव नहीं नजर आ रही है। लेकिन इस उद्योग को पटरी पर लाने के लिए घरेलू और गैर-परंपरागत बाजारों की ओर से मांग बढऩी चाहिए। चीन के कपड़े उद्योग में मंदी आने के चलते निर्यात में करीब 20 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि निर्यातक इस कमी को श्रीलंका, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से भरने की कोशिश में लगे हैं। मंत्रालय में कपड़ा आयुक्त किरन सोनी गुप्ता ने बताया कि भारत ने वियतनाम के साथ 30 करोड़ डॉलर का निर्यात समझौता किया है जिसके तहत सूती धागे भी शामिल है। उन्होंने बताया कि अन्य देशों के साथ भी सूती धागे के निर्यात को बढ़ाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई भी एक बड़ा ऑर्डर मिल जाता है तो हम पिछले वर्ष के आंकड़े को पा सकेंगे। भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (सीआईटीआई) के महासचिव डी के नय्यर ने कहा कि पिछले दो वर्षों से चीन से होने वाले आयात में कमी आई है क्योंकि विनिर्माण उद्योग जैसे कपड़ा उद्योग आदि में कार्यरत श्रमिक ज्यादा लाभ कमाने के लिए सेवा उद्योग की तरफ रुख कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आयात की कमी को अन्य देशों से पूरा कर लिया गया है लेकिन चीन के चलते निर्यात में आई कमी की भरपाई कर पाना मुश्किल है। इसलिए हम पूरी गिरावट का आकलन कर रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक वर्ष 2014-15 के दौरान धागे निर्यात में करीब 15 फीसदी की गिरावट आएगी। हालांकि कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भारी खरीद के चलते दो महीनों में रुई की कीमतों में 10 फीसदी का इजाफा हुआ है।
धागा निर्यातक अरुण सकसेरिया ने बताया कि वैश्विक स्तर पर तेज कीमतों के बावजूद, तीन महीने के लिए बेंचमार्क 40 कॉम्ब को 218 प्रति किलो तय किया गया है, जिसमें 1-2 रुपये किलोग्राम का न्यूनतम उतार-चढ़ाव शामिल है। हालांकि रुई की ऊंची कीमतों के चलते वस्त्र निर्माताओं का अनुमान है लाभ पर दबाव कायम रह सकता है। कपड़ा निर्यातक धागे की कम कीमतों के इस अवसर को निर्यात बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। (BS Hindi)
वित्त वर्ष 2014 के पहले नौ महीनों के दौरान निर्यात में करीब 6 फीसदी की गिरावट देखी गई है। केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय जारी आंकड़ों के मुताबिक इस अवधि में करीब 89.1 करोड़ किलोग्राम का निर्यात किया गया था। वहीं वर्ष 2013 के दौरान यह मात्रा करीब 94.6 करोड़ किलोग्राम की थी। वर्ष 2013-14 के दौरान सूती धागों का कुल निर्यात 130.3 करोड़ किलोग्राम रहा था। निर्यात में दिख रही इस गिरावट का सीधा असर शेयरों पर पड़ेगा।
निर्यात में कमी के चलते कताई कंपनियों को अत्याधिक आपूर्ति की जाएगी जिसके चलते शेयरों की कीमतों में गिरावट आएगी। हालांकि इस क्षेत्र में बहाली जल्द संभव नहीं नजर आ रही है। लेकिन इस उद्योग को पटरी पर लाने के लिए घरेलू और गैर-परंपरागत बाजारों की ओर से मांग बढऩी चाहिए। चीन के कपड़े उद्योग में मंदी आने के चलते निर्यात में करीब 20 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि निर्यातक इस कमी को श्रीलंका, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से भरने की कोशिश में लगे हैं। मंत्रालय में कपड़ा आयुक्त किरन सोनी गुप्ता ने बताया कि भारत ने वियतनाम के साथ 30 करोड़ डॉलर का निर्यात समझौता किया है जिसके तहत सूती धागे भी शामिल है। उन्होंने बताया कि अन्य देशों के साथ भी सूती धागे के निर्यात को बढ़ाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अगर कोई भी एक बड़ा ऑर्डर मिल जाता है तो हम पिछले वर्ष के आंकड़े को पा सकेंगे। भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ (सीआईटीआई) के महासचिव डी के नय्यर ने कहा कि पिछले दो वर्षों से चीन से होने वाले आयात में कमी आई है क्योंकि विनिर्माण उद्योग जैसे कपड़ा उद्योग आदि में कार्यरत श्रमिक ज्यादा लाभ कमाने के लिए सेवा उद्योग की तरफ रुख कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आयात की कमी को अन्य देशों से पूरा कर लिया गया है लेकिन चीन के चलते निर्यात में आई कमी की भरपाई कर पाना मुश्किल है। इसलिए हम पूरी गिरावट का आकलन कर रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक वर्ष 2014-15 के दौरान धागे निर्यात में करीब 15 फीसदी की गिरावट आएगी। हालांकि कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भारी खरीद के चलते दो महीनों में रुई की कीमतों में 10 फीसदी का इजाफा हुआ है।
धागा निर्यातक अरुण सकसेरिया ने बताया कि वैश्विक स्तर पर तेज कीमतों के बावजूद, तीन महीने के लिए बेंचमार्क 40 कॉम्ब को 218 प्रति किलो तय किया गया है, जिसमें 1-2 रुपये किलोग्राम का न्यूनतम उतार-चढ़ाव शामिल है। हालांकि रुई की ऊंची कीमतों के चलते वस्त्र निर्माताओं का अनुमान है लाभ पर दबाव कायम रह सकता है। कपड़ा निर्यातक धागे की कम कीमतों के इस अवसर को निर्यात बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। (BS Hindi)
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