तेजी से चढ़ती हुई कपास की कीमतों को लेकर कताई मिलों ने हो-हल्ला मचाना
शुरू कर दिया है। हालांकि कीमतें एक साल पहले के मुकाबले 35 फीसदी तक कम
हैं। एक साल पहले कपास की कीमत 44,000 प्रति गांठ के करीब थी। कम कीमत के
बावजूद मिल मालिक इस साल कपास खरीदने में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। दुनिया
भर में धागे की मांग की कमी के कारण निर्यात में बहुत गिरावट आई है और
मिलें भविष्य की मांग को पूरा करने के लिए कपास खरीदना चाहती हैं लेकिन वे
अधिक कीमत चुकाने की स्थिति में नहीं है। इसलिए कीमतों में होने वाला
मामूली सुधार भी उन पर भारी पड़ रहा है। चूंकि उत्तरी क्षेत्र में कटाई
आखिरी चरण में है, आपूर्ति में सुस्ती देखने को मिल रही है। मिल मालिक
चिंता में हैं क्योंकि कपास की कीमतोंं में होने वाले सुधार से धागे और
कपास के बीच कीमत संतुलन खराब हो सकता है।
अंतरराष्टï्रीय बाजार में कपास के धागे की मांग में कमी के कारण 80 फीसदी क्षमता का ही इस्तेमाल हो रहा है और इससे अधिक कपास खरीदने से मिल मालिकों की परिचालन लागत प्रभावित होगी। कीमत के न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे आ जाने की स्थिति में कपास खरीदने वाली भारत सरकार की नोडल एजेंसी भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के चेयरमैन बी के मिश्रा ने कहा कि अब तक सीसीआई ने करीब 86 लाख टन गांठ कपास खरीदा है। उन्होंने आगे कहा, 'हम इस 2014-15 रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान 5-7 लाख गांठें और अधिकतम 10 लाख गांठें खरीद सकते हैं। इनमें से 2.6 लाख गांठ कपास सीसीआई ने 32,500 रुपये प्रति गांठ की दर से भुना लिए हैं (एक गांठ में 356 किलोग्राम होते हैं)। आने वाले दिनों में नकदीकरण की कोई योजना नहीं है। जब तक देश के विभिन्न क्षेत्रों में कटाई जारी है तब तक कताई मिलें बाजार की उपलब्धता पर जोर दे सकती हैं और हमने उस वक्त बाजार में प्रवेश करने की योजना बनाई जब कटाई आखिरी दौर में हो।' ज्यादातर मिल मालिकों ने संपर्क करने पर बताया कि उनके पास तीन से चार हफ्तों का स्टॉक है लेकिन मुनाफा कम होने की वजह से प्रीमियम कीमत पर कपास खरीदना उन्हें चुभ रहा है। वे चाहते हैं कि सीसीआई मामले में हस्तक्षेप करे ताकि कपास की कीमतें और न बढ़ें। सीआईआई टेक्सटाइल समिति के चेयरमैन टी कन्नन ने कहा कि अगर अंतरराष्टï्रीय मांग तेज रहती है, भारत में बनने वाला 25 फीसदी से 30 फीसदी धागा निर्यात किया जाता है। फिलहाल चीन में मांग सुस्त है और देसी बाजार में धागे की आपूर्ति भी कमजोर है। पिछले कुछ दिनों में कपास की कीमतों में 3 फीसदी की तेजी देखने को मिली है। चूंकि सीसीआई ने इस साल की फसल का करीब एक चौथाई हिस्सा खरीद लिया है, सही समय पर उनके हस्तक्षेप से मिलों की सेहत सुधर सकती है। मिश्रा के मुताबिक सीसीआई के पास पिछले साल के स्टॉक से कपास की 45,000 गांठ बची हुई हैं और ये सरकारी मिलों के काम आएंगी।
मिल मालिकों के लिए एक दिक्कत यह है कि गर्मियों के दिनों में कपास नमी खो देता है और इसकी वजह से भंडारण में इसका वजन 4-5 फीसदी कम हो जाता है। पर्यावरणीय नमी के कारण मॉनसून में यह वापस आ जाती है इसलिए संभव है कि सीसीआई मॉनसून की शुरुआत के पहले बिकवाली न करे। (BS Hindi)
अंतरराष्टï्रीय बाजार में कपास के धागे की मांग में कमी के कारण 80 फीसदी क्षमता का ही इस्तेमाल हो रहा है और इससे अधिक कपास खरीदने से मिल मालिकों की परिचालन लागत प्रभावित होगी। कीमत के न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी नीचे आ जाने की स्थिति में कपास खरीदने वाली भारत सरकार की नोडल एजेंसी भारतीय कपास निगम (सीसीआई) के चेयरमैन बी के मिश्रा ने कहा कि अब तक सीसीआई ने करीब 86 लाख टन गांठ कपास खरीदा है। उन्होंने आगे कहा, 'हम इस 2014-15 रबी मार्केटिंग सीजन के दौरान 5-7 लाख गांठें और अधिकतम 10 लाख गांठें खरीद सकते हैं। इनमें से 2.6 लाख गांठ कपास सीसीआई ने 32,500 रुपये प्रति गांठ की दर से भुना लिए हैं (एक गांठ में 356 किलोग्राम होते हैं)। आने वाले दिनों में नकदीकरण की कोई योजना नहीं है। जब तक देश के विभिन्न क्षेत्रों में कटाई जारी है तब तक कताई मिलें बाजार की उपलब्धता पर जोर दे सकती हैं और हमने उस वक्त बाजार में प्रवेश करने की योजना बनाई जब कटाई आखिरी दौर में हो।' ज्यादातर मिल मालिकों ने संपर्क करने पर बताया कि उनके पास तीन से चार हफ्तों का स्टॉक है लेकिन मुनाफा कम होने की वजह से प्रीमियम कीमत पर कपास खरीदना उन्हें चुभ रहा है। वे चाहते हैं कि सीसीआई मामले में हस्तक्षेप करे ताकि कपास की कीमतें और न बढ़ें। सीआईआई टेक्सटाइल समिति के चेयरमैन टी कन्नन ने कहा कि अगर अंतरराष्टï्रीय मांग तेज रहती है, भारत में बनने वाला 25 फीसदी से 30 फीसदी धागा निर्यात किया जाता है। फिलहाल चीन में मांग सुस्त है और देसी बाजार में धागे की आपूर्ति भी कमजोर है। पिछले कुछ दिनों में कपास की कीमतों में 3 फीसदी की तेजी देखने को मिली है। चूंकि सीसीआई ने इस साल की फसल का करीब एक चौथाई हिस्सा खरीद लिया है, सही समय पर उनके हस्तक्षेप से मिलों की सेहत सुधर सकती है। मिश्रा के मुताबिक सीसीआई के पास पिछले साल के स्टॉक से कपास की 45,000 गांठ बची हुई हैं और ये सरकारी मिलों के काम आएंगी।
मिल मालिकों के लिए एक दिक्कत यह है कि गर्मियों के दिनों में कपास नमी खो देता है और इसकी वजह से भंडारण में इसका वजन 4-5 फीसदी कम हो जाता है। पर्यावरणीय नमी के कारण मॉनसून में यह वापस आ जाती है इसलिए संभव है कि सीसीआई मॉनसून की शुरुआत के पहले बिकवाली न करे। (BS Hindi)
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