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30 अप्रैल 2015

उंचे भाव में मांग घटने से सोयाबीन की कीमतों में गिरावट की आशंका


आर एस राणा
नई दिल्ली। सोयाबीन के प्लांट डिलीवरी भाव बढ़कर 4,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए जबकि इस समय सोया खली और रिफाइंड सोया तेल में मांग कमजोर है। उत्पादक राज्यों में सोयाबीन का करीब 40 से 45 फीसदी स्टॉक बचा हुआ है। इसलिए मौजूदा कीमतों में एक बार गिरावट आने की आशंका है।
साई सिमरन फुडस लिमिटेड के डायरेक्टर नरेश गोयनका ने बताया कि भारतीय मौसम विभाग ने चालू खरीफ में मानसूनी वर्षा सामान्य से कम होने की आशंका जताई है जिससे स्टॉकिस्टों की खरीद सोयाबीन में बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि सप्ताहभर में ही सोयाबीन की कीमतों में करीब 600 से 700 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के भाव बढ़कर 3,800 से 3,900 रुपये प्रति क्विंटल हो गए जबकि प्लांट डिलीवरी भाव 4,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। उन्होंने बताया कि उंचे भाव में प्लांटों की मांग नहीं है। वैसे भी सोया खली में निर्यात मांग कमजोर है जबकि रिफाइंड सोया तेल में भी उठा कमजोर है। इसलिए सोयाबीन की मौजूदा कीमतों में गिरावट आ सकती है।
सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया (सोपा) के प्रवक्ता राजेश अग्रवाल ने बताया कि प्लांट डिलीवरी सोयाखली के भाव बढ़कर 36,500 से 37,000 रुपये प्रति टन हो गए हैं इन भाव में थोड़ी बहुत घरेलू मांग तो निकल रही है लेकिन निर्यात सौदे नहीं के बराबर हो रहे हैं। रिफाइंड सोया तेल का भाव 600-605 रुपये प्रति 10 किलो है। घरेलू बाजार में उपलब्धता ज्यादा होने से खाद्य तेलों में भी मांग कमजोर है। वित्त वर्ष 2014-15 में सोया खली के निर्यात में 44 फीसदी की भारी गिरावट आकर कुल निर्यात 659,593 टन का ही हुआ है। खरीफ में सोयाबीन की पैदावार 116.41 लाख टन की हुई थी तथा अभी करीब 40-45 फीसदी सोयाबीन का स्टॉक उत्पादक राज्यों में बकाया बचा हुआ है।
सोयाबीन के थोक कारोबारी हेंमत जैन ने बताया कि आगामी दिनों में सोयाबीन में स्टॉकिस्टों की बिकवाली बढ़ सकती है जिससे भाव में मंदा आने की संभावना है। उत्पादक मंडियों में सोयाबीन के दाम ज्यादा बढ़ गए हैं तथा इन भावों में प्लांटों की मांग नहीं निकल रही है। प्लांट कुल क्षमता का 30 से 40 फीसदी ही पेराई कर पा रहे हैं। इसलिए आगामी दिनों में सोयाबीन की कीमतों में मुनाफावसूली से गिरावट आने की संभावना है।......आर एस राणा

चीनी पर आयात शुल्क को बढ़ाकर 40 फीसदी किया, रॉ-शुगर की निर्यात अवधि घटाई


नई दिल्ली। गन्ना किसानों के 2,1000 करोड़ रुपये बकाया बोझ को कम करने के लिए केंद्र सरकार ने चीनी उद्योग को राहत दी है। केंद्र सरकार ने चीनी के आयात शुल्क को 25 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया है। इससे घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में सुधार आने की संभावना है।
कैबिनेट कमेटी की बैठक में सरकार ने रॉ-शुगर के एक्सपोर्ट ऑब्लिगेशन की मियाद को भी 18 महीने से घटाकर 6 महीने कर दिया है। चीनी मिलों रॉ-शुगर को आयात कर, उसे व्हाईट चीनी में तबदील कर 18 महीने में निर्यात कर सकती थी लेकिन अब इसकी अवधि को घटाकर 6 महीने कर देने से रॉ-शुगर के आयात में कमी आयेगी। चीनी मिलों को अब रॉ-शुगर आयात कर उसे 6 महीने के भीतर ही निर्यात करना होगा।
कैबिनेट कमेटी ने पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल मिलाने पर एक्साइज डयूटी को भी समाप्त कर कर दिया है इसके साथ ही अगले पेराई सीजन में शीरे से एथनॉल बनाने पर भी केंद्र सरकार ने एक्साइज डयूटी को समाप्त कर दिया है। पेट्रोल में एथनॉल मिलने पर 12.36 फीसदी की दर से एक्साइज डयूटी लग रही थी।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के महानिदेशक अबिनाश वर्मा ने कहा कि केंद्र सरकार ने चीनी उद्योग को राहत देने के लिए जो कदम उठाए हैं, उद्योग उनका स्वागत करता है। सरकार ने चीनी पर आयात शुल्क को 25 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी कर दिया है इससे आयात पड़ते नहीं लगेंगे। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार 30 लाख टन चीनी का बफ्र स्टॉक बनाती तो उद्योग को ओर ज्यादा राहत मिलती।
दिल्ली में चीनी के भाव 2,750 से 2,800 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स फैक्ट्री भाव 2,550 से 2,650 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि महाराष्ट्र में चीनी के भाव 2,350 से 2,400 रुपये प्रति क्विंटल हैं। चालू पेराई सीजन में 270 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि अभी तक 263 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है।

सीसीआई नहीं करेगी कॉटन का निर्यात


घरेलू मार्किट में भाव बढ़ने से निगम को हो रहा है फायदा
आर एस राणा
नई दिल्ली। कॉटन कापोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) निर्यात के बजाए कॉटन की बिक्री घरेलू बाजार में ही करेगी। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कॉटन का भाव बढ़कर 34,500 से 35,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) हो गए। उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवक घटी है जबकि निर्यातकों के साथ ही मिलों की मांग से भाव तेज हुए हैं।
सीसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि निगम ने चालू फसल सीजन में एमएसपी पर 87 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास की खरीद की है। इसमें से अभी तक करीब 7.5 लाख गांठ की बिक्री घरेलू बाजार में बेच भी दी है। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में कपास की कीमतों में आई तेजी से निगम को फायदा हो रहा है। इसलिए निगम ने निर्यात के बजाए घरेलू बाजार में ही कॉटन बेचने का फैसला किया है। निगम ई-निलामी के माध्यम से घरेलू बाजार में कपास की बिक्री कर रही है।
नार्थ कॉटन एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश राठी ने बताया कि उत्पादक मंडियों में कपास की दैनिक आवक कम हो गई है जबकि इस समय निर्यातकों के साथ ही घरेलू मिलों की मांग बढ़ी है। इसीलिए कपास की कीमतों में तेजी आई है। चालू महीने में कपास की कीमतों में 1,000 से 1,200 रुपये प्रति कैंडी की तेजी आ चुकी है। उन्होंने बताया कि चालू कपास सीजन में अभी तक करीब 50 लाख गांठ कपास के निर्यात सौदे हुए हैं। विश्व बाजार में भी कॉटन के भाव बढ़कर 70 सेंट प्रति पाउंड हो गए हैं जबकि चालू महीने के शुरू में इसके भाव 66 सेंट प्रति पाउंड थे।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के अग्रिम अनुमान के अनुसार पहली अक्टूबर 2014 से शुरू चालू सीजन में कपास की पैदावार घटकर 397 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि पिछले साल देश में 407 लाख गांठ कपास की पैदावार हुई थी।......आर एस राणा

25 अप्रैल 2015

आयातित अरहर की कीमतें रिकार्ड स्तर पर पहुंची, चने में भाव में भी तेजी जारी


आर एस राणा
नई दिल्ली। अरहर और चना में दालों की मांग बढ़ने से भाव में लगातार तेजी बनी हुई है। मुंबई में आयातित अरहर के दाम बढ़कर शनिवार को 1,100 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) हो गए जबकि आस्ट्रेलिया से आयातित चने के भाव भी बढ़कर 4,200 रुपये प्रति क्विंटल मुंबई पहुंच हो गए।
दलहन आयातक संतोष उपाध्याय ने बताया कि दालों में मिलों के साथ ही स्टॉकिस्टों की मांग बढ़ने से तेजी का रुख बना हुआ है। उन्होंने बताया कि खरीफ में मानसूनी वर्षा होने की आशंका के कारण खरीद पहले की तुलना में बढ़ गई है। वैसे भी खरीफ में दलहन की बुवाई आमतौर पर खरीफ में होने वाले बारिश पर निर्भर करती है। उन्होंने बताया कि आयातित लेमन अरहर के भाव बढ़कर मुंबई में 1,100 डॉलर प्रति टन हो गए। आस्ट्रेलिया से आयातित चने के भाव बढ़कर 4,200 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। उड़द एफएक्यू के भाव बढ़कर 1,140 डॉलर और एसक्यू के भाव 1,210 डॉलर, आयातित मूंग के भाव 1,230 से 1,240 डॉलर और पेड़ीसेवा के भाव बढ़कर 1,300 डॉलर प्रति टन हो गए।
दलहन कारोबारी दुर्गा प्रसाद ने बताया कि दालों की कीमतों में आई तेजी से स्टॉकिस्टों और किसानों की बिकवाली कम हो गई है जिससे आवक कम हुई है। उन्होंने बताया कि मई-जून में दालों की खपत कम रहती है इसलिए इस दौरान कीमतों में गिरावट आने का अनुमान है। दिल्ली में चने के भाव बढ़कर 4,200 से 4,225 रुपये और मूंग के भाव 8,000 रुपये, मसूर के भाव 5,200 रुपये और अरहर के भाव 6,200 से 6,400 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। रबी में तो दालों की पैदावार में कमी आई ही है साथ ही, मानसून सामान्य से कमजोर रहने की आशंका से खरीफ में भी पैदावार कम होने का अनुमान है। ऐसे में आयातित दालों पर निर्भरता और बढ़ जायेगी। वैसे भी वित्त वर्ष 2014-15 के पहले दस महीनों में ही देश में दालों का रिकार्ड आयात हो चुका है। इसीलिए आयातित दालों के भाव भी बढ़ गए हैं।
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में 129.3 लाख टन पैदावार होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी सीजन में 137.9 लाख टन की पैदावार हुई थी। चालू फसल वर्ष 2014-15 में दलहन की कुल पैदावार घटकर 184.3 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 197.8 लाख टन की पैदावार हुई थी।.......आर एस राणा

24 अप्रैल 2015

केंद्र सरकार चीनी उद्योग को अगले सप्ताह दे सकती है राहत


आर एस राणा
नई दिल्ली। चीनी मिलों पर बढ़ते किसानों के बकाया भुगतान का लेकर केंद्र सरकार उद्योग को राहत देने के लिए अगले सप्ताह तक कुछ कदम उठा सकती है। केंद्र सरकार चीनी पर आयात शुल्क में बढ़ोरती के साथ ही बफर स्टॉक पर फैसला अगले सप्ताह तक कर सकती है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले सप्ताह केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने गन्ना किसान नेताओं के साथ ही प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों के प्रतिनिधियों से सुझाव मांगे थे। इनमें दोनों की मांगे लगभग बराबर ही थी कि चीनी का बफर स्टॉक बनाने के साथ ही चीनी पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी की जाये। उन्होंने बताया कि चीनी पर आयात शुल्क को 25 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी करने और बफर स्टॉक बनाने के लिए वित्त और वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श किया जा रहा है। इसके लिए मंत्रालय ने प्रस्ताव तैयार कर लिया है जिसे संबंधित मंत्रालय को भेजा रहा है। उम्मीद है कि अगले सप्ताह तक इस पर फैसला हो जायेगा।
उन्होंने बताया कि पेट्रोलियम में एथनॉल मिश्रण की मात्रा बढ़ाने की मांग एक अच्छा सुझाव है तथा इस पर भी संबंधित मंत्रालयों से विचार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा रॉ-शुगर के निर्यात पर चीनी मिलों को 4,000 रुपये प्रति टन की दर से इनसेंटिव दिया ही जा रहा है। हालांकि विश्व बाजार में दाम कम होने से रॉ-शुगर का निर्यात सीमित मात्रा में ही हो पा रहा है।
उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन 2014-15 में किसानों का चीनी मिलों पर 19,300 करोड़ रुपये का बकाया हो चुका है तथा सीजन अब समाप्ति की ओर है। चालू पेराई सीजन में 263.56 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 32.06 लाख टन से ज्यादा है। चालू पेराई सीजन में 270 लाख टन चीनी उत्पादन होने का अनुमान है।
उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स फैक्ट्री भाव 2,550 से 2,650 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि दिल्ली में चीनी के भाव 2,750 से 2,850 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। महाराष्ट्र में चीनी के भाव 2,275 से 2,350 रुपये और कर्नाटक में 2,250 से 2,300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।......आर एस राणा

23 अप्रैल 2015

निर्यातकों की मांग से जीरा की कीमतें तेज ही बने रहने की संभावना


आर एस राणा
नई दिल्ली। प्रमुख उत्पादक मंडी उंझा में जीरे की दैनिक आवक कम हो गई है जबकि निर्यातकों के साथ ही मसाला निर्माताओं की अच्छी मांग बनी हुई है। गुरूवार को उंझा मंडी में जीरे के भाव बढ़कर 3,100 से 3,500 रुपये और बढ़िया क्वालिटी के जीरे के भाव 3,500 से 3,800 रुपये प्रति 20 किलो हो गए। चालू सीजन में जीरे की पैदावार कम होने की आशंका है जबकि स्टॉकिस्टों की सक्रियता भी बनी हुई है। इसलिए मौजूदा कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
उंझा मंडी के थोक कारोबारी विरेंद्र अग्रवाल ने बताया कि मंडी में जीरे की आवक घटकर गुरूवार को 20,000 बोरी (एक बोरी-45 किलो) की हुई जबकि व्यापार भी 20 हजार बोरियों के हुए, इसलिए कीमतों में तेजी आई है। उन्होंने बताया कि आगामी दिनों में जीरे की दैनिक आवक और भी घटेगी, जबकि खाड़ी देशों की आयात मांग इस दौरान बढ़ेगी। जिससे मौजूदा कीमतों में तेजी बनी रह सकती है। चालू सीजन में जीरे की पैदावार पिछले साल की तुलना में करीब 10 से 12 फीसदी घटकर 40-42 लाख बोरी ही होने का अनुमान है पिछले साल जीरे की पैदावार 62 से 65 लाख बोरी की हुई थी। मार्च में नई फसल की आवक के समय उत्पादक मंडियों में करीब 5 से 6 लाख बोरी जीरे का बकाया स्टॉक बचा हुआ था। ऐसे में कुल उपलब्धता 45 से 48 लाख बोरी की ही बैठने का अनुमान है। चालू सीजन में अभी तक स्टॉक में 10 से 11 लाख बोरी जीरा ही गया है। मांग अच्छी होने से चालानी में ज्यादा माल जा रहा है।
जीरा निर्यातक आर बी पोपट ने बताया कि सीरिया में राजनीतिक गतिरोध के कारण भारत से जीरे के निर्यात में चालू वित्त वर्ष में बढ़ोतरी होने की संभावना है। चालू सीजन में जीरे की पैदावार तो कम हुई ही है साथ ही बेमौसम बारिश से फसल की क्वालिटी भी प्रभावित हुई है। इसलिए बढ़िया जीरे की उपलब्धता कम है जबकि मांग ज्यादा आ रही है। भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार वित्त वर्ष 2014-15 के पहले नो महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान जीरे के निर्यात में 28 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 1,28,500 टन का हो चुका है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 1,00,340 टन का हुआ था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीरे का भाव 3.59 डॉलर प्रति किलो है।..........आर एस राणा

आयात पड़ते महंगे होने से दालों की कीमतों में ओर तेजी की संभावना


आर एस राणा
नई दिल्ली। आयातित दालों के भाव उंचे होने से घरेलू बाजार में दलहन की कीमतों में और भी तेजी तेजी की संभावना है। सप्ताहभर में आयातित दालों की कीमतों में 200 से 300 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ चुकी है। रबी सीजन में प्रतिकूल मौसम से दालों की पैदावार में कमी आई ही है, साथ ही मानसून बारिश सामान्य से कम रही तो खरीफ में दालों की बुवाई में भी कमी आने की आशंका है। इसलिए दालों की कीमतों में तेजी बनी रहने की उम्मीद है।
दलहन आयात संतोष उपाध्याय ने बताया कि आयातित दालों की कीमतें तेज बनी हुई है। मुंबई में आयातित चने के भाव बढ़कर 3,950 से 4,000 रुपये, उड़द के 7,100 रुपये, लेमन अरहर के भाव बढ़कर 6,300 से 6,400 रुपये, केनेडियन मसूर के भाव 5,600 से 5,800 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। पीली मटर के भाव बढ़कर 2,371 रुपये और हरीमटर के 2,900 से 3,000 प्रति क्विंटल हो गए। उन्होंने बताया कि आयातित दालों की कीमतों में आ रही तेजी का असर घरेलू बाजार में दालों की कीमतों पर भी पड़ेगा।
दलहन कारोबारी दुर्गा प्रसाद ने बताया कि मौसम विभाग ने चालू खरीफ में मानसूनी बारिश कम होने की संभावना जताई है इसका सीधा असर खरीफ में दालों की बुवाई पर पड़ेगा। इसलिए स्टॉकिस्टों के साथ ही दाल एवं बेसन मिलों की मांग और बढ़ जायेगी। उन्होंने बताया कि मई-जून में दालों की मांग आमतौर पर कम रहती है लेकिन जुलाई-अगस्त में बढ़ जाती है। ऐसे में जुलाई-अगस्त में दालों की कीमतों में तेजी बनने की उम्मीद है। इंदौर मंडी में गुरूवार को चने के भाव बढ़कर 3,700 से 3,800 रुपये, उड़द के भाव 7,200 रुपये, मूंग के भाव 7,800 रुपये और मसूर के भाव 5,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। अकोला मंडी में चने के भाव 3,925 से 4,000 रुपये, अरहर 6,400 से 6,600 रुपये, उड़द 6,600 से 7,100 रुपये और मूंग के भाव 7,500 से 8,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में दालों की पैदावार 129.3 लाख टन होने का अनुमान था जबकि पिछले साल रबी में 137.9 लाख टन की पैदावार हुई थी। मार्च-अप्रैल में बारिश और ओलावृष्टि से दलहनी फसलों को हुए नुकसान को देखते हुए पैदावार सरकारी अनुमान से कम रहने की आशंका है। फसल वर्ष 2014-15 में दालों की कुल पैदावार 184.3 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि पिछले फसल वर्ष में 197.8 लाख टन की पैदावार हुई थी। वित्त वर्ष 2014-15 के पहले दस महीनों अप्रैल से जनवरी के दौरान ही देश में 41 लाख टन दालों का आयात हो चुका है।.......आर एस राणा

Arrival Pressure Pushes Castor Seed Market Down By RS 50 Per Qtl


With rising of temperature and opening of weather castor seed arrivals improved in major markets of Gujarat and Rajasthan.It put pressure on cash market while futures traded mixed.Overall arrival has increased from 1lakh bags to 1.4 lakh bags in last one week.About 4,500-4,600 bags arrived in Saurashtra.Castor oil is being traded at Rs 7100-Rs 7150 per qtl  in Gujarat.

सामान्य से कम बारिश होने की आशंका - मौसम विभाग


नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने खरीफ सीजन में सामान्य से कम बारिश होने का अनुमान जारी किया है। आईएमडी के अनुसार खरीफ सीजन में ज्यादा बारिश होने की संभावना बेहद कम है। वहीं अल नीनो के साथ ही मानसून की दस्तक की जानकारी 15 मई तक दी जायेगी।
आईएमडी का कहना है कि खरीफ सीजन में लंबी अवधि में 93 फीसदी बारिश होने का अनुमान है जबकि सामान्य से कम बारिश होने की संभावना 35 फीसदी है। साथ ही सामान्य मानसून की संभावना 28 फीसदी ही है। आईएमडी का दूसरा अनुमान जून महीने में जारी किया जायेगा।

स्टॉकिस्टों की सक्रियता से सोयाबीन की कीमतों में तेजी की आशंका


कमजोर मानसून की भविष्यवाणी से प्लांटों की खरीद में भी तेजी की संभावना
आर एस राणा
नई दिल्ली। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी मौसम के पहले पूर्वानुमान के अनुसार इस साल सामान्य से कम बारिश होने का अनुमान है। ऐसे में सोयाबीन में स्टॉकिस्टों के साथ ही प्लांट निर्माताओं की मांग बढ़ने की संभावना है जिससे भाव में तेजी आयेगी। इदौर मंडी में बुधवार को सोयाबीन के भाव 3,650 से 3,750 रुपये प्रति क्विंटल रहे।
सोयाबीन के कारोबारी नरेश गोयनका ने बताया कि मौसम विभाग का कहना है कि लंबी अवधि में 93 फीसदी बारिश होने का अनुमान है, जबकि सामान्य से कम बारिश होने की संभावना 35 फीसदी है। कमजोर मानसून की भविष्यवाणाी का असर सोयाबीन की मांग पर पड़ेगी। उन्होंने बताया कि स्टॉकिस्टों के साथ ही प्लांटों की खरीद भी सोयाबीन में बढ़ जायेगी, जिससे मौजूदा कीमतों में तेजी आने की संभावना है। उन्होंने बताया कि मध्य प्रदेश की मंडियों में सोयाबीन के भाव 3,475 से 3,580 रुपये और कोटा मंडी में 3,550 से 3,725 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
सोयाबीन के थोक कारोबारी हेंमत जैन ने बताया कि चालू सीजन में सोया डीओसी में निर्यात मांग काफी कमजोर थी जिसकी वजह से प्लांटों के पास भी स्टॉक कम है। उद्योग के अनुसार सोयाबीन की पैदावार 116.41 लाख टन की हुई थी जिसमें से केवल 50 फीसदी की पेराई हो पाई है। उन्होंने बताया कि सोयाबीन का सबसे ज्यादा स्टॉक उत्पादकों के पास बचा हुआ है जबकि उत्पादक नीचे भाव में बिकवाली नहीं कर रहे हैं। इसलिए सोयाबीन की कीमतों में तेजी आने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि कांडला बंदरगाह पर सोया डीओसी के भाव 32,800 रुपये प्रति टन चल रहे हैं। इंदौर में सोया तेल का भाव 600 से 605 प्रति दस किलो है।
साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार वित्त वर्ष 2014-15 में सोयाखली की निर्यात मांग में 44 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज की गई अप्रैल से मार्च के दौरान 659,593 टन ही सोया खली का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष में 2,781,985 टन सोया खली का निर्यात हुआ था। हालांकि जानकारों का मानना है कि अप्रैल से शुरू हुए निए वित्त वर्ष में सोया खली के निर्यात में तेजी आ अनुमान है।......आर एस राणा

21 अप्रैल 2015

केन्या में सूखे से भारत से बढ़ेगा चाय का निर्यात

अब से करीब एक महीने पहले तक असम में एक छोटे चाय बागान के मालिक विद्यानंद बड़काकोटि कमजोर बारिश, उत्पादन और मांग को लेकर चिंतित थे। लेकिन हाल में केन्या में सूखे के दौर से उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई है। बर्काकोटी को उम्मीद है कि विश्व के शीर्ष चाय निर्यातक केन्या में फसल को नुकसान पहुंचाने वाले सूखे से उन जैसे भारतीय प्लांटरों के लिए असवर पैदा होंगे, क्योंकि घरेलू स्तर पर बारिश से उत्पादन में बढ़ोतरी की संभावना है। उद्योग के सूत्रों ने अनुमान जताया है कि विश्व के दूसरे सबसे बड़े चाय उत्पादक भारत से इस साल चाय का निर्यात करीब 10 फीसदी बढ़ेगा। 

बड़काकोटि ने कहा, 'केन्या में उत्पादन घटने से वहां कीमतें बढ़ रही हैं और आने वाले महीनों में भारतीय बाजार में भी दाम बढऩे लगेंगे।' केन्या से आपूर्ति कम होने से कीमतें बढ़ेंगी और इससे निर्यात आमदनी में इजाफा होने की उम्मीद है। इससे मैकलॉयड रसेल, जय श्री टी ऐंड इंडस्ट्रीज और हैरिसन मलयालम जैसी भारतीय चाय कंपनियों के शेयरों की कीमतों में तेजी आई है। इस महीने इन कंपनियों के शेयरों की कीमत 10 से 14 फीसदी तक बढ़ी है।  

मैकलॉयड रसेल के मुख्य वित्त अधिकारी कमल बहेटी ने उम्मीद जताई कि वर्ष 2015 में भारत की विदेशी चाय बिक्री 1.5 से 2 करोड़ किलोग्राम बढ़ेगी, क्योंकि सूखे मौसम से केन्या में उत्पादन वर्ष 2014 के 44.48 करोड़ किलोग्राम के रिकॉर्ड स्तर से नीचे आ गया है। बहेटी ने कहा, 'इस साल हम निर्यात में आई कमी को फिर हासिल कर लेंगे।' पिछले साल देश का चाय निर्यात 8.2 फीसदी गिरकर 20.1 करोड़ किलोग्राम रहा था। उन्होंने कहा, 'इस साल केन्या में फसल पर सूखे का असर पड़ा है, जिससे वैश्विक और घरेलू कीमतों में इजाफा होगा।' बाहेती ने कहा कि इस पूर्वी अफ्रीकी देश (केन्या) में प्रसंस्करण फैक्टरियों को हर सप्ताह सप्ताह बागानों से आपूर्ति घट रही है। इसे देखते हुए भारत के स्थानीय नीलामी केंद्रों में चाय की कीमतें बढऩी शुरू हो गई हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2015 में चाय की औसत कीमत पिछले साल से ज्यादा रहने की संभावना है। हालांकि भारत से चाय के ज्यादा निर्यात की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है। लेकिन उद्योग के सूत्रों का कहना है कि अब मई महीने पर नजर है, क्योंकि यही महीना विदेशी मांग के बारे में ज्यादा पुख्ता संकेत देगा। 

कोलकाता की एक उत्पादक एवं निर्यातक कंपनी लिमटेक्स इंडिया के चेयरमैन गोपाल पोद्दार ने कहा, 'मई के मध्य से निर्यात ऑर्डरों में बढ़ोतरी की संभावना है। तब तक केन्या और भारत में उत्पादन को लेकर स्थिति और ज्यादा स्पष्ट हो जाएगी।' भारत सीटीसी चाय का निर्यात मुख्य रूप से मिस्र, पाकिस्तान और ब्रिटेन को करता है, जबकि परंपरागत चाय का निर्यात इराक, ईरान और रूस को किया जाता है। भारतीय चाय संघ के एक अधिकारी ने कहा कि सबसे बड़े उत्पादक राज्य असम में सूखे मौसम से प्लांटर इस बार भी कम उत्पादन के आसार जता रहे हैं।    (BS Hindi)

केरल में रबर उत्पादन घटा

केरल में प्राकृतिक रबर का उत्पादन पिछले वित्त वर्ष के दौरान 15 फीसदी से अधिक घटा है, क्योंकि अच्छी कीमत नहीं मिलने के कारण रबर उत्पादक रबर निकालने से दूर रहे। रबर बोर्ड द्वारा हाल में जारी आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान प्राकृतिक रबर का उत्पादन 6,55,000 टन रहा, जो 2013-14 में उत्पादित 7,74,000 टन के मुकाबले 15.4 फीसदी कम है। केरल का देश के कुल रबर उत्पादन में 90 फीसदी से अधिक योगदान है। राज्य में कुल 5.45 लाख हेक्टेयर में रबर की बागवानी होती है। इसके अलावा 11.50 लाख किसान रबर उत्पादन से जुड़े हैं और इनमें से ज्यादातर के बागान का रकबा छोटा है।

कोचीन रबर कारोबारी संघ के अध्यक्ष एन राधाकृष्णन ने कहा, 'उत्पादन में कटौती की मुख्य वजह यह है कि प्राकृतिक रबर की कीमत में भारी गिरावट के कारण बहुत से लोगों ने रबर का दोहन नहीं किया।' रबर बोर्ड ने कहा कि मार्च 2015 में उत्पादन 26.6 फीसदी घटकर 35,000 टन रहा, जो मार्च 2014 में 47,700 टन था। टायर विनिर्माण समेत विभिन्न उद्योगों द्वारा कुल रबर खपत 2014-15 में 10,18,185 टन रही, जो पिछले साल के मुकाबले 3.7 फीसदी अधिक है। वित्त वर्ष 2014-15 में कुल रबर आयात 4,14,606 टन रहा, जो इससे पिछले साल के मुकाबले 54,000 टन अधिक है। 

सोयाखली निर्यात से विदेशी आय गिरी 

वित्त वर्ष 2014-15 में भारत का सोयाखली निर्यात 77.25 फीसदी की मात्रात्मक गिरावट के साथ 6,46,487 टन रह गया। इसके साथ ही, आलोच्य वर्ष के दौरान इस उत्पाद के निर्यात से देश की विदेशी मुद्रा आय लगभग 80 फीसदी घटकर 2022.26 करोड़ रुपये पर पहुंच गई। प्रसंस्करणकर्ताओं के इंदौर स्थित औद्योगिक संगठन सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) द्वारा मुहैया कराए आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान भारत से 2,022.26 करोड़ रुपये की अनुमानित कीमत की 6,46,487 टन सोयाखली का निर्यात किया गया। वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान भारत ने 28,40,875 टन सोयाखली का निर्यात किया था और इससे 9976.41 करोड़ रुपये के अनुमानित मूल्य की विदेशी मुद्रा कमाई थी। जानकारों के मुताबिक वर्ष 2014 में विश्व में सोयाबीन की बंपर पैदावार हुई थी।  (BS Hindi)

Jeera Unjha Market Reported Firm As a Result of Lower Supply

At Unjha market in Mehsana, Jeera (Cumin Seed) Loose started the day firm at Rs. 16000 per quintal, higher by 4.07 per cent from previous trading day. Jeera (Cumin Seed) NCDEX started firm at Rs. 17500-18000 per quintal, up by 14.29 per cent from previous price level. Jeera (Cumin Seed) Machine Cut at Unjha market opened firm at Rs. 18500 per quintal, higher by 13.85 per cent from previous day's price level.
Total arrivals are at 25000 quintals, down by 3000 quintals from previous trading day

Warangal Red Chilli Physical Market Trading Higher Due to Export Demand



Red Chilli Wonder Hot is offered firm at Rs. 7900-9100 per quintal, higher by 2.25 per cent against previous trading day. Estimated market supply was at 22000 bags, higher by 7000 bags as against previous day.
Red Chilli 341 at Warangal market is quoted strong at Rs. 7400-8500 per quintal, higher by 2.41 per cent from previous day's price level, Denvor Delux high at Rs. 7400-8500 per quintal, higher by 2.41 per cent from previous trading day, Paprika high at Rs. 9400-11400 per quintal, higher by 1.79 per cent as compared to previous day, Fatki quoted high at Rs. 4400-5900 per quintal, higher by 3.51 per cent as against previous day.

Increased Coriander Supply Reported Current Year Compared to Last Year



In Kota benchmark market arrivals reported up by 13500 bags (1 bag = 40 Kgs). Sources revealed that, in Kota mandi till date around 45% new crop traded. Ramganj, Baran, Bhawani Kota, Neemuch, Guna all the market supply reported increased as compared to the last year same period due to increased production current year.
In Guna and Neemuch mandi arrivals increased by 30000 and 12000 bags as compared to the last year.

Pakistan Basmati FOB Again Surpassed the Indian Basmati Price


Pakistan Basmati FOB in the month of March was again surpassed the Indian basmati rice FOB by 7.32%. Currently Indian FOB is hovering in the range of USD 910-912/MT where as Pakistan basmati FOB is USD 985/MT as per latest data given by FAO. On the other hand Pakistan rice production as per by FAO estimates Pakistan's 2014 paddy rice production at about 10.1 million tons (about 6.85 million tons, basis milled), down about 1% from about 10.19 million tons (about 6.93 million tons, basis milled) produced in 2013, due to localized crop damages in some eastern parts of Punjab, Gilgit Baltistan and Azad Jammu and Kashmir (AJK), following floods in September and drought in south-eastern parts of Sindh province, whereas according to Agriwatch survey report, Production of basmati rice (all varieties combined) has increased by nearly 20.5% in Kharif season 2014 as compared to the previous year. The total production of all basmati is expected to be around 7.3 million tonnes in 2014-15 as compared to 6.07 million tonnes in 2013-14. Currently Indian Basmati FOB is more competitor than Pakistan basmati international price. (Agriwatch)

गेहूं की सरकारी खरीद 38 फीसदी पिछड़ी


चालू रबी में गेहूं की खरीद तय लक्ष्य से कम होने का अनुमान
आर एस राणा
नई दिल्ली। बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का असर गेहूं की सरकारी खरीद पर भी देखा जा रहा है। चालू रबी में गेहूं की सरकारी खरीद में 38 फीसदी की गिरावट आकर कुल खरीद 36.10 लाख टन की ही हुई है। चालू रबी विपणन सीजन 2015-16 में गेहूं की सरकारी खरीद तय लक्ष्य 300 लाख टन से कम होने की आशंका है। राजस्थान, मध्य प्रदेश के साथ ही उत्तर प्रदेश से दिल्ली में गेहूं की दैनिक आवक बढ़ी है तथा दिल्ली में गेहूं के भाव घटकर 1,480 से 1,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने चालू रबी विपणन सीजन में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अभी तक केवल 36.10 लाख टन गेहूं की खरीद की है, जबकि पिछले रबी विपणन सीजन की समान अवधि में 58.70 लाख टन की हुई थी। अभी तक हुई कुल खरीद में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी 21.58 लाख टन है। पिछले साल मध्य प्रदेश से इस समय तक 26.46 लाख टन की हुई थी। हरियाणा से चालू रबी विपणन सीजन में अभी तक 12.79 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है जबकि पिछले साल इस समय तक 25.39 लाख टन की खरीद हो चुकी थी। अन्य राज्यों में पंजाब से 43,821 टन और उत्तर प्रदेश से 62,400 टन गेहूं की खरीद ही हुई है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का असर गेहूं की खरीद पर भी पड़ेगा। चालू रबी में खाद्य मंत्रालय ने 300 लाख टन गेहूं की खरीद का लक्ष्य तय किया है लेकिन खरीद 250 लाख टन तक ही सिमटने की संभावना है। पिछले रबी विपणन सीजन में सरकारी एजेंसियों ने एमएसपी पर कुल 280 लाख टन गेहूं की खरीद की थी। उन्होंने बताया कि उत्पादक राज्यों में मौसम साफ हो गया है इसलिए आगामी दिनों में गेहूं की दैनिक आवक तो बढ़ेगी, साथ ही खरीद में भी तेजी आयेगी। केंद्र सरकार ने राज्यों की मांग के आधार पर गेहूं की सरकारी खरीद नियमों में भी रियायत दी है।
कृषि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू रबी में 957 लाख टन गेहूं की पैदावार होने का अनुमान है। हालांकि मार्च-अप्रैल में हुई बारिश से गेहूं की प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में भी कमी आने का अनुमान है। ऐसे में चालू रबी में गेहूं की पैदावार सरकारी अनुमान से कम होने का अनुमान है।....आर एस राणा

स्टॉकिस्टों की सक्रियता से ग्वार में तेजी जारी रहने की संभावना


खरीफ में मानसूनी बारिष कम होने की आषंका से खरीद में आई तेजी
आर एस राणा
नई दिल्ली। ग्वार और ग्वार गम में इस समय स्टॉकिस्टों की खरीद बनी हुई है जिससे कीमतों में तेजी जारी रहने की संभावना है। उत्पादक मंडियों में ग्वार की दैनिक आवक 28 से 30 हजार क्विंटल की हो रही है लेकिन स्टॉकिस्टों के साथ ही प्लांट निर्माताओं की मांग से सोमवार को जोधपुर में ग्वार के भाव बढ़कर 4,650-4,700 रुपये और ग्वार गम के 10,600 से 10,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। खरीफ में मानसूनी बारिष कम होने की आषंका के कारण मांग में आई तेजी।
ग्वार के थोक कारोबारी सुरेंद्र सिंघल ने बताया कि मार्च-अप्रैल महीने में हुई बेमौसम बारिष का असर खरीफ सीजन में मानसूनी बारिष पर पड़ने की आषंका है। खरीफ में मानसूनी बारिष सामान्य से कम रहने की आषंका बनने लगी है, साथ ही अल-नीनो का असर भी रहेगा। इसका सीधा असर ग्वार की बुवाई पर पड़ेगा, इसलिए स्टॉकिस्टों ने ग्वार की खरीद पहले की तुलना में बढ़ा दी है। कीमतों में आ रही तेजी को देखते हुए प्लांट निर्माताओं की मांग भी बढ़ी है। इसलिए ग्वार और ग्वार गम की कीमतों में तेजी जारी रहने की संभावना है।
ग्वार गम निर्यातक विपिन अग्रवाल ने बताया कि क्रुड तेल के भाव नीचे होने के बावजूद भी वित्त वर्श 2014-15 में ग्वार गम का निर्यात मात्रा के हिसाब से बढ़ा है। एपीडा के अनुसार वित्त वर्श 2014-15 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान ग्वार गम पाउडर का निर्यात बढ़कर 6.62 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में 5.45 टन का हुआ था। हालांकि मूल्य के हिसाब के इस दौरान ग्वार गम पाउडर के निर्यात में 12.91 फीसदी की कमी आकर 9,561.68 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में 10,978.96 करोड़ रुपये मूल्य का निर्यात हुआ था। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में दाम कम होने का असर ग्वार गम पाउडर के निर्यात पर मूल्य के आधार पर पड़ा है।
ग्वार कारोबारी सुमेषचंद जैन ने बताया कि ग्वार का स्टॉक किसानों के पास ज्यादा है तथा किसान रबी फसलों में लगा हुआ है इसलिए उत्पादक मंडियों में दैनिक आवक भी 28 से 30 हजार क्विंटल की ही हो रही है। कीमतों में आई तेजी से बिकवाली कम आ रही है जबकि स्टॉकिस्ट इन भावों को नीचा मान रहे हैं इसलिए मौजूदा कीमतों में अभी तेजी जारी रहने की संभावना है।......आर एस राणा

केस्टर सीड की पैदावार में 2 फीसदी कटौती का अनुमान

आर एस राणा 
नई दिल्ली। चालू फसल सीजन में केस्टर सीड का उत्पादन अनुमान 2 फीसदी घटकर 12.76 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पहले इसके उत्पादन का अनुमान 12.95 लाख टन का था। साल्वेंट एक्ट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार मार्च-अप्रैल महीने में प्रतिकूल मौसम से फसल को नुकसान हुआ है, इसलिए पैदावार घटने का अनुमान है।
उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक बढ़कर एक लाख बोरी (एक बोरी-75 किलो) से ज्यादा की हो गई है जबकि केस्टर तेल में निर्यात मांग कमजोर है। ऐसे में केस्टर सीड की मौजूदा कीमतों में गिरावट आने की आशंका है। मंगवार को उत्पादक मंडियों में केस्टर सीड के भाव 3,400 से 3,500 रुपये प्रति क्विंटल रहे।
एसईए के अनुसार वित्त वर्ष 2014-15 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान केस्टर तेल का निर्यात घटकर 4 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 4.36 लाख टन का हुआ था। केस्टर तेल के निर्यात सौदे 1,210 डॉलर प्रति टन की दर से हो रहे हैं।
केस्टर सीड खली में भी निर्यात मांग कमजोर बनी हुई है। वित्त वर्ष 2014-15 में केस्टर खली का निर्यात घटकर 4.58 लाख टन का ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष में 5.33 लाख टन का हुआ था। केस्टर खली में निर्यात मांग कमजोर होने के कारण ही भारतीय बंदरगाह पर केस्टर खली का भाव घटकर 105 डॉलर प्रति टन रह गया जबकि दिसंबर 2014 में इसका भाव 136 डॉलर प्रति टन था। .......आर एस राणा   

चीनी का बफर स्टाक बनाने पर विचार, आयात शुल्क में बढ़ोतरी के लिए वित्त मंत्रालय को लिखा - पासवान

आर एस राणा
नई दिल्ली। चीनी मिलों पर किसानों के बकाया बोझ को कम करने के लिए केंद्र सरकार चीनी का बफर स्टॉक बनाने पर विचार कर रही है। इसके साथ ही चीनी के आयात शुल्क को भी 25 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी करने के लिए खाद्य मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को पत्र लिखा है।
केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने मंगलवार को लोकसभा में बताया कि केंद्र सरकार चीनी का बफर स्टॉक बनाने पर विचार कर रही है। चीनी मिलों पर किसानों के बकाया का बोझ लगातार बढ़ रहा है। चालू पेराई सीजन 2014-15 में अभी तक देशभर की चीनी मिलों पर 19,300 करोड़ रुपये का बकाया हो चुका है। उद्योग के अनुसार चीनी के दाम कम होने के कारण ही मिलों को घाटा उठाना पड़ रहा है, जिसकी वजह से मिलें किसानों को भुगतान कर पाने में असमर्थ है। इसके हल के लिए उद्योग ने केंद्र सरकार से 30 से 35 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनाने की मांग की थी। उत्तर प्रदेश में चीनी के एक्स फैक्ट्री भाव 2,525 से 2,625 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि महाराष्ट्र 2,275 से 2,350 रुपये प्रति क्विंटल है।
खाद्य मंत्री ने कहा कि चीनी पर आयात शुल्क को 25 फीसदी से बढ़ाकर 40 फीसदी करने के लिए वित्त मंत्री को पत्र लिखा गया है। केंद्र सरकार चीनी मिलों को रॉ-शुगर के निर्यात पर 4,000 रुपये प्रति टन की दर से इनसेंटिव भी दे रही है लेकिन विश्व बाजार में दाम कम होने के कारण रॉ-शुगर का निर्यात भी सीतिम मात्रा में ही हो रहा है।
उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में 15 अप्रैल 2015 तक देशभर में 263.56 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि के 231.50 लाख टन से 32.06 लाख टन ज्यादा है। उद्योग के अनुसार चालू पेराई सीजन में 270 लाख टन चीनी का उत्पादन होने का अनुमान है।....आर एस राणा

18 अप्रैल 2015

Cotton wilts on slow offtake

Cotton prices dropped on the spot market on slow demand from exporters and domestic mills. Moreover, speculative trend in the futures market also aided the downtrend. Gujarat Sankar-6 cotton dipped by ₹200 to ₹33,000-500 for candy of 356 kg. About 20,000 bales (of 170 kg) arrived in Gujarat and 45,000 bales arrived in India. However, traders are not expecting much downfall in price as supply is decreasing. According to market sources, nearly 80 per cent of the total production has arrived so far. Kapas or raw cotton too was traded weak as demand from ginners declined marginally. Kapas in Saurashtra region lost ₹5-7 to ₹890-900 for a maund of 20 kg and gin delivery kapas was ₹910-915. Cottonseed went for ₹405-410.

Sugar refiners fall on price concerns

April 17, 2015:  
Shares in Indian sugar refiners fell as Bajaj Hindusthan Sugar Ltd was down 1.9 per cent, Mawana Sugars Ltd 2 per cent, Balrampur Chini Mills Ltd 0.4 per cent and Shree Renuka Sugars Ltd 0.6 per cent.
India is likely to produce 27 million tonnes of the sweetener in 2014-15, up about 2 per cent from the previous estimate, industry body said.
Analysts said, “higher production will depress local prices further.”
This will dampen margins of sugar mills, many of them are struggling with cash flows, they added. (Business Line)

पासवान ने उप्र से गन्ना बकाया निपटाने को कहा

केंद्रीय उपभोक्ता, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्री राम विलास पासवान ने उत्तर प्रदेश से गन्ना किसानों का बकाया समय पर निपटाने को कहा है। उन्होंने कहा कि यह संबद्घ राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है कि किसानों को समय पर भुगतान किया जाए। यहां मीडिया से बातचीत करते हुए पासवान ने कहा कि केंद्र चीनी उद्योग द्वारा उठाई गई विभिन्न मांगों पर विचार कर रहा है। इनमें से कुछ मांगों में आयात शुल्क वृद्घि, चीनी निर्यात प्रोत्साहन मुहैया कराना, एथेनॉल कीमतें बढ़ाना और चीनी कंपनियों को आसान कर्ज मुख्य रूप से शामिल हैं।उन्होंने बताया कि घरेलू चीनी उद्योग ने सरकार से चीनी की गिरती कीमतों को समर्थन मुहैया कराने के लिए सालाना चीनी उत्पादन के 10 फीसदी का बफर स्टॉक बनाने की भी मांग की है। हालांकि उन्होंने कहा कि बफर स्टॉक का निर्माण चीनी के बंपर उत्पादन और इस साल लगभग 90 लाख टन के अनुमानित चीनी स्टॉक को देखते हुए आसान नहीं होगा।

उन्होंने कहा, 'हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि गठित नए बफर स्टॉक का इस्तेमाल निर्धारित समय-सीमा के अंदर किया जाए।' भारत का सालाना चीनी उत्पादन 2.88 करोड़ टन पर अनुमानित है। चीनी कंपनियां चालू सत्र में 2.6 करोड़ टन चीनी का उत्पादन पहले ही कर चुकी हैं। उन्होंने कहा, 'हमारी प्राथमिकता किसानों को भुगतान सुनिश्चित करना है, हालांकि हम यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि चीनी उद्योग पर अधिक दबाव न पड़े।' इस बीच उन्होंने शीर्ष खरीद वाले राज्यों में शुमार होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में गेहूं और चावल की कम खरीद के लिए 'दोषपूर्ण' मंडी (सरकारी कृषि विपणन/खरीद) व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया। पासवान ने अखिलेश यादव सरकार से कहा है कि वह खाद्य सुरक्षा अधिनियम लागू करे जिससे सार्वजनिक वितरण व्यवस्था (पीडीएस) को अधिक व्यवस्थित बनाया जा सके और गरीबों को अधिक लाभ मिल सके।  (BS Hindi)

अक्षय तृतीया से बढ़ी रौनक

अक्षय तृतीया के दिन सोने के आभूषणों की जमकर खरीदारी की उम्मीद से ज्वैलरी बाजार चमकने लगे हैं। पिछले साल की अपेक्षा सोना सस्ता होने और रिकॉर्ड विवाह लग्न के कारण आभूषणों की बुकिंग जोरों पर है। बाजार में ग्राहकों की उमड़ती भीड़ से ज्वैलरी दुकानों की रौनक बढ़ गई है। ज्वैलर भी ग्राहकों पर दरियादिली दिखाते हुए ऑफर की बरसात कर रहे हैं। वे सोने और हीरे के गहनों की बनवाई (मेकिंग चार्ज) पर 25 से 100 फीसदी तक की छूट दे रहे हैं। 

इस बार अक्षय तृतीया 21 अप्रैल को है। मान्यतानुसार इस दिन सोने-चांदी की खरीदारी बेहद शुभ मानी जाती है। इस मान्यता को भुनाने के लिए ज्वैलरों ने पूरी तैयारी की है। ग्राहकों को रिझाने के लिए ज्वैलर अपने हिसाब से छूट दे रहे हैं। मुंबई ज्वैलर्स एसोसिएशन के सचिव कुमार जैन कहते हैं कि सोना पिछले साल की अपेक्षा करीब 2,000 रुपये सस्ता है जिसकी वजह से ग्राहकों में खरीदारी के प्रति जोश है। लोग आठ दिन पहले से अपने आभूषणों की बुकिंग कर रहे हैं। आभूषणों के साथ ही सोने के सिक्के और बिस्किट और बार की भी खूब बुकिंग हुई है। जैन कहते हैं कि ग्राहकों की संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस बार अक्षय तृतीया में पिछले साल की अपेक्षा 25 फीसदी अधिक बिक्री होगी। ग्राहकों को रिझाने के लिए ज्वैलर मेकिंग चार्ज में भारी छूट दे रहे हैं।

गौरतलब है कि इस साल घरेलू बाजार में मांग बढऩे के बावजूद सोना 27,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के नीचे बना हुआ है जबकि पिछले साल अक्षय तृतीया के दिन सोना 29,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के करीब था। मेकिंग चार्ज में छूट देने के साथ ज्वैलरों ने ग्राहकों की पसंद को देखते हुए नए डिजाइन और हल्के वजन के आभूषण बाजार में उतारे हैं। जीजेएफ के निदेशक रमन सोलंकी कहते हैं कि हमारे देश में मुहूर्त का बहुत महत्त्व होता है। ज्वैलरी और बुलियन बाजार तो सीधे प्रभावित होता है। सोने की कीमतें लंबे समय से एक रेंज में चल रही हैं जिससे लोग मानसिक तौर पर आभूषण खरीदने का मन बना चुके हैं।

ग्राहकों की मांग को देखते हुए ज्वैलरों ने हल्के और बेहतरीन डिजाइन तैयार किए हैं। हीरे के आभूषणों में मेकिंग चार्ज में 100 फीसदी तक की छूट दी जा रही है। अब ज्वैलर भी अपने ब्रांड से समझौता नहीं करते हैं और यही वजह है कि लगभग सभी ज्वैलर हॉल मार्क आभूषणों के साथ पूरा बिल और सोने की गुणवत्ता बता रहे हैं। अक्षय तृतीया से ज्वैलरों की उम्मीद सोने के आयात पर भी देखने को मिलती है। अक्षय तृतीया के दिन ज्वैलरों की मांग को पूरा करने के लिए मार्च के दौरान देश में बड़े पैमाने पर सोने का आयात हुआ। मार्च में 125 टन सोने का आयात किया गया जबकि फरवरी महीने में महज 60 टन सोने का आयात हुआ था और पिछले साल मार्च में 80 टन सोने का आयात हुआ था।

देश की सोने-चांदी के आभूषणों की सबसे बड़ी मंडी में ज्वैलर दावे के साथ कह रहे हैं कि इस बार रिकॉर्ड बिक्री होगी। हालांकि सोने और हीरे के आभूषणों की बड़ी ब्रांडेड कंपनियों का कहना है कि उम्मीद तो बहुत हैं लेकिन ग्राहकों का उत्साह अभी तक खास नहीं दिख रहा है, विशेषकर हीरे के आभूषणों से ग्राहक दूरी बनाए हुए हैं। 21 अप्रैल को अक्षय तृतीया पर सौभाग्य समृद्धि योग होने से इस दिन रिकॉर्ड विवाह लग्न है। आचार्य प्रदीप द्विवेदी के मुताबिक अक्षय तृतीया कृतिका नक्षत्र में पड़ रही है। इस दिन आभूषण, वस्त्र, इत्यादि खरीदने के लिए शुभ मुहूर्त है। इस बार बैसाख और ज्येष्ठ में कई विशेष विवाह लग्न हैं। लग्न अधिक होने के कारण ज्वैलर उम्मीद कर रहे हैं कि इस बार सोना सस्ता होने से लोग विवाह में जमकर खरीदारी करेंगे और उसकी झलक बाजार में देखने को मिल रही है।  (BS Hindi)

सोने का आयात शुल्क मूल्य बढ़ा

सरकार ने वैश्विक कीमतों को ध्यान में रखते हुए सोने का आयात शुल्क मूल्य बढ़ाकर 388 डॉलर प्रति 10 ग्राम कर दिया है। वहीं चांदी के आयात शुल्क मूल्य में कमी कर 524 डॉलर प्रति किलो किया गया है। मार्च के अंतिम पखवाड़े के दौरान आयातित सोने का आयात शुल्क मूल्य 385 डॉलर प्रति दस ग्राम तथा चांदी का आयात शुल्क मूल्य 543 डॉलर प्रति किलो था। आयात शुल्क मूल्य के आधार पर ही सीमा शुल्क की गणना की जाती है।

आवक कम होने से मूंगफली की कीमतों में तेजी आने की संभावना


आर एस राणा
नई दिल्ली। गुजरात की मंडियों में मूंगफली सीड की दैनिक आवक कम हो रही है जबकि मूंगफली तेल में मांग अच्छी होने से कीमतों में तेजी आने की संभावना है। उत्पादक मंडियों में मूंगफली सीड के भाव 4,400 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। खरीफ में तो मूंगफली की पैदावार में कमी आई ही थी, रबी में भी पैदावार पिछले साल से कम होने का अनुमान है।
श्री राज मोती इंडस्ट्रीज के प्रबंधक समीर भाई षाह ने बताया कि उत्पादक मंडियों में मूंगफली सीड की दैनिक आवक घटकर 20,000 बोरियों (एक बोरी-35 किलो) की रह गइ है जबकि प्लांटों के पास माल की कमी है। मूंगफली तेल में मांग अच्छी होने से कीमतों में तेजी आने की संभावना है। उन्होंने बताया कि मूंगफली तेल का भाव राजकोट में 1,015 रुपये प्रति किलो चल रहा है। उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार ने पांच किलो तक के पैक में मूंगफली तेल के निर्यात की पांच लाख टन की अनुमति दी हुई है तथा चालू सीजन में निर्यात मांग अच्छी रही है।
मूंगफली के थोक कारोबारी दयालाल ने बताया कि मूंगफली की रबी फसल की दैनिक आवक चालू महीने के आखिर में बनेगी, तथा चालू रबी में भी पैदावार कम होने का अनुमान है। रबी में मूंगफली की पैदावार आंध्रप्रदेष, तेलंगाना और उड़ीसा में होती है। एपीडा के अनुसार मूंगफली दाने का निर्यात वित्त वर्श 2014-15 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान 4.22 लाख टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 4.55 लाख टन का हुआ था। खरीफ में मूंगफली की पैदावार में कमी आने के कारण घरेलू मंडियों में दाम उंचे रहे, इसलिए मूंगफली दाने के निर्यात में कमी आई है।
कृशि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में मूंगफली की पैदावार घटकर 12.75 लाख टन ही होने का अनुुमान है जबकि पिछले साल रबी सीजन में 17.67 लाख टन की पैदावार हुई थी। खरीफ सीजन में भी मूंगफली की पैदावार पिछले साल के 80.58 लाख टन से घटकर 56.45 लाख टन की ही हुई थी।.....आर एस राणा

एमएसपी से नीचे भाव पर जौ बेचने को मजबूर हैं किसान


आर एस राणा
नई दिल्ली। चालूू रबी में जौ के किसानों पर दोहरी मार पड़ रहीं है। पहले तो प्रतिकूल मौसम ने फसल को भारी नुकसान पहुंचाया, अब किसानों को जौ की बिकवाली न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से भी नीचे भाव पर करनी पड़ रही है। चालू रबी विपणन सीजन के लिए केंद्र सरकार ने जौ का एमएसपी 1,150 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है जबकि उत्पादक मंडियों में जौ के भाव 960 से 1,100 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
जौ के थोक कारोबारी सीताराम ने बताया कि माल्ट कंपनियों की खरीद सीमित मात्रा में हो रही है जबकि मौसम साफ होने से उत्पादक मंडियों में जौ की दैनिक आवक बढने लगी है। इसीलिए जौ के  भाव उम्पादक मंडियों में एमएसपी भी नीचे बने हुए हैं। राजस्थान की मंडियों में जौ के भाव 960 से 1,100 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं जबकि हरियाणा की मंडियों में जौ के भाव 980 से 1,125 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में जौ की पैदावार ज्यादा होने का अनुुमान है इसलिए माल्ट कंपनियां अभी इंतजार कर रही है। राजस्थान और हरियाणा की मंडियों में जौ की दैनिक आवक बढ़कर चार से पांच लाख बोरी (एक बोरी-80 किलो) हो गई है।
जौ के व्यापारी राजीव बंसल ने बताया कि माल्ट कंपनियां गुड़गाव पहुंच 1,225 रुपये प्रति क्विंटल की दर से सौदे कर रही है लेकिन मांग काफी कम है। उन्होंने बताया कि पिछले दो-तीन दिनों से निर्यातकों ने भी बंदरगाह पहुंच 1,250 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कुछ सौदे किए है। ऐसे में आगाामी दिनों में माल्ट कंपनियों के साथ ही निर्यात की मांग बढ़ने की उम्मीद है। उन्होंने बताया कि ज्यादा पैदावार होने की आषंका के कारण स्टॉकिस्ट भी अभी खरीद से परहेज कर रहे हैं लेकिन जैसे ही माल्ट कंपनियों की खरीद षुरू होगी, स्टॉकिस्टों भी खरीद षुरू करेगा।
कृषि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार फसल वर्ष 2014-15 में जौ की पैदावार 17.7 लाख टन होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2013-14 में 18.3 लाख टन जौ की पैदावार हुई थी।......आर एस राणा


ISMA Projected India's Sugar Production At 270 Lakh Tons



Considering the bumper sugar production this year, ISMA, the industrial association, projected India’s sugar production at 270 lakh tons for 2014-15 (1st Oct, 2014 – 30th Sep, 2015).

17 अप्रैल 2015

ब्ढ़िया क्वालिटी के गेहूं की कीमतों में आयेगी तेजी


गेहूं का उत्पादन सरकारी अनुमान से 20 फीसदी घटने की आषंका
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू रबी में बेमौसम बारिष और ओलावृश्टि से गेहूं की फसल को भारी नुकसान हुआ है। इससे प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में तो भारी गिरावट आई ही है, साथ ही गेहूं की क्वालिटी भी प्रभावित हुई है। इसलिए चालू सीजन में बढ़िया क्वालिटी के गेहूं की कीमतों में तेजी आने की संभावना है। कृशि मंत्रालय के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू रबी में 957.6 लाख टन गेहूं की पैदावार होने का अनुमान है जबकि जानकारों का मानना है कि गेहूं की पैदावार में करीब 20 फीसदी तक कमी आयेगी।
गेहूं अनुसंधान निदेषालय के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि मार्च-अप्रैल महीने में हुई बेमौसम बारिष से गेहूं की फसल को भारी नुकसान हुआ है। इससे क्वालिटी तो प्रभावित हुई ही है साथ ही प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में भी भारी कमी आई है। उन्होंने बताया कि चालू रबी में गेहूं का उत्पादन सकरारी अनुमान से करीब 18 से 20 फीसदी कम रहने की आषंका है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद षुरू कर दी है। सरकारी एजेंसियों ने अभी तक 19.06 लाख टन गेहूं की खरीद की है जोकि पिछले साल की समान अवधि में 20.52 लाख टन गेहूं की खरीद हुई थी।
श्री बालाजी फूड प्रोडेक्टस लिमिटेड के प्रबंधक संदीप गुप्ता ने बताया कि मंडियों में बारिष से भीगे हुए गेहूं की आवक ज्यादा मात्रा में हो रही है। इसलिए अभी तक रोलर फ्लोर मिलों और बड़ी कंपनियों ने खरीद षुरू नहीं की है। आईटीसी ने थोड़ी-बहुत खरीद चालू की है। उम्मीद है कि चालू महीने के आखिर तक फ्लोर मिलों के साथ ही बड़ी कंपनियों की खरीद भी षुरू हो जायेगी, जिससे बढ़िया क्वालिटी के गेहूं की कीमतों में तेजी आने की संभावना है। लारेंस रोड़ पर गेहूं के भाव घटकर 1,480-1,500 रुपये प्रति क्विंटल रह गए जबकि राजस्थान से आईटीसी ने 1,510 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद की।
विष्व बाजार में गेहूं के दाम नीचे होने के कारण नए रबी सीजन में गेहूं के निर्यात की संभावना कम है। विष्व बाजार में गेहूं के भाव 232 से 265 डॉलर प्रति टन हैं जबकि मई-जून में रूस और यूक्रेन की नई फसल की आवक का दबाव बनेगा, जिससे विष्व बाजार में गेहूं की कीमतों में और भी 15 से 20 डॉलर प्रति टन की गिरावट आने का अनुमान है। केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन के लिए गेहूं का एमएसपी 1,450 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। इसमें परिवहन लागत और अन्य खर्च जोड़ने के बाद बंदरगाह पहुंच भाव 1,700 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा बैठता है, इसलिए निर्यात पड़ते लगने की संभावना नहीं है।.....आर एस राणा

16 अप्रैल 2015

रबी मक्का की आवक चालू, कीमतों में 100 रुपये की गिरावट संभव


आर एस राणा
नई दिल्ली। रबी के प्रमुख मक्का उत्पादक राज्यों बिहार और आंध्रप्रद्रेष में नई फसल की दैनिक आवक चालू हो गई है। पोल्ट्री उद्योग के साथ ही स्टार्च मिलों की मांग कमजोर है इसलिए मक्का की मौजूदा कीमतों में करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आने की संभावना है। पंजाब और हरियाणा पहुंच मक्का के भाव 1,600 रुपये प्रति क्विंटल रहे।
बिहार के मक्का व्यापारी पवन अग्रवाल ने बताया कि उत्पादक मंडियों में नई मक्का की आवक चालू हो गई है। हालांकि बिहार में मौसम खराब होने से आवकों का दबाव नहीं बन रहा है लेकिन उम्मीद है जल्द ही मौसम साफ हो जायेगा और आवक बढ़ जायेगी। उन्होंने बताया कि मक्का के भाव बिहार की मंडियों में 1,300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं तथा आवक बढ़ने पर करीब 100 रुपये प्रति क्विंटल की ओर गिरावट आने का अनुमान है।
मक्का कारोबारी कमलेष जैन ने बताया कि बर्ड फ्ल्यू की बीमारी फेलने के बाद से पोल्ट्र उद्योग के कारोबार में भारी कमी आई है इसलिए पोल्ट्री उद्योग की मांग मक्का में कमजोर है। नई फसल को देखते हुए स्टार्च मिल वाले भी सीमित खरीददारी कर रहे हैं। इसलिए मक्का की कीमतों में गिरावट आने की संभावना है। बिहार से पंजाब और हरियाणा पहुंच मक्का के अगाउ सौदे 1,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रहे हैं जबकि मध्य प्रदेष और राजस्थान से पुराने माल के सौदे 1,600 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रहे हैं। आध्ंा्रप्रदेष की निजामाबाद मंडी में मक्का के भाव 1,250 रुपये प्रति क्विंटल रहे।
यू एस ग्रेन काउंसिल के भारत में प्रतिनिधि अमित सचदेव ने बताया कि विष्व बाजार में दाम कम होने के कारण भारत से मक्का के निर्यात में तेजी आने की संभावना नहीं है। उन्होंने बताया कि विष्व बाजार में मक्का की उपलब्धता ज्यादा है। विष्व बाजार में मक्का के दाम 178 से 193 डॉलर प्रति टन बने हुए हैं जबकि भारतीय मक्का के दाम 220 डॉलर प्रति हैं। एपीडा के अनुसार चालू वित्त वर्श 2014-15 के पहले दस महीनों (अप्रैल से जनवरी) के दौरान 31.74 लाख टन मक्का का निर्यात ही हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्श की समान अवधि में 36.99 लाख टन मक्का का निर्यात हुआ था। 
कृशि मंत्रालय के दूसरे आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू रबी में मक्का की पैदावार घटकर 65.1 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल रबी में 71.1 लाख टन की पैदावार हुई थी।   आर एस राणा

राज्य सरकारें ही बनाना चाहिए चीनी का बफर स्टॉक - रामविलास पासवान

आर एस राणा
नई दिल्ली। राज्य सरकारों को ही चीनी का बफर स्टॉक बनाना चाहिए। गन्ना किसानों के बढ़ते बकाया भुगतान के हल के लिए गुरूवार को दिल्ली में प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने कहां कि चीनी के आयात शुल्क में बढ़ोतरी के लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखेंगे।
चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 19,300 करोड़ रुपये हो गया है। चीनी मिलें चीनी के कम होने के कारण बकाया का भुगतान नहीं कर पा रही है जबकि केंद्र सरकार ने चीनी मिलों को रॉ-शुगर के निर्यात पर 4,000 रुपये प्रति टन की दर से इनसेंटिव देने की घोषणा की हुई है लेकिन विदेशी बाजार में दाम कम होने के कारण रॉ-शुगर का निर्यात भी सीमित मात्रा में ही हो पा रहा है।
गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के हल के लिए 15 अप्रैल को केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने किसान संगठनों से बातचीत की थी जबकि 16 अप्रैल को प्रमुख उत्पादक राज्यों के मुख्यमंत्रियों से विचार-विमर्श किया। इस अवसर पर आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा कि राज्यों मुख्यमंत्रियों की तरफ से भी वहीं सुझाव आए हैं जो किसान संगठनों से आए थे। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्रियों ने चीनी का बफर स्टॉक बनाने की मांग है जबकि राज्य सरकारों को ही बफर स्टॉक बनाना चाहिए।
चीनी पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी, तथा निर्यात में कैसी तेजी आये इत्यादि जैसे सुझावों के बारे में प्रधानमंत्री को लिखेंगे तथा इस पर अंतिम फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही करेंगे।  आर एस राणा

मध्य अप्रैल तक 263 लाख टन से ज्यादा हुआ चीनी उत्पादन


चालू पेराई सीजन में 240 चीनी मिलें कर चुकी हैं गन्ने की पेराई बंद
आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू गन्ना पेराई सीजन 2014-15 (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान मध्य अप्रैल तक देशभर में 263.56 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 32.06 लाख टन ज्यादा है।
इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में 15 अप्रैल तक देशभर में 263.56 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 231.50 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। इस्मा के अनुसार चालू पेराई सीजन में 530 चीनी मिलों में गन्ने की पेराई चल रही थी जिनमें से मध्य अप्रैल तक 240 मिलों में पेराई बंद हो चुकी है तथा इस समय केवल 290 मिलों में पेराई चल रही है।
महाराष्ट्र में चालू पेराई सीजन में मध्य अप्रैल तक 99.61 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 74.43 लाख टन का उत्पादन हुआ था। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में 15 अप्रैल तक 67.85 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जोकि पिछले साल इस समय के 5.30 लाख टन ज्यादा है। उत्तर प्रदेश में चालू पेराई सीजन में गन्ने की औसत रिकवरी पिछले साल की तुलना में ज्यादा आई है।
कर्नाटक में चालू पेराई सीजन में मध्य अप्रैल तक 45 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है जबकि पिछले साल इस समय तक 41.18 लाख टन चीनी का उत्पादन हुआ था। अन्य राज्यों में तमिलनाडु में 8.25 लाख टन, गुजरात में 11 लाख टन, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में 8.75 लाख टन तथा पंजाब और हरियाणा में क्रमशः 5.25 और 5.20 लाख टन चीनी का उत्पादन हो चुका है।
चीनी के दाम कम होने के कारण चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया बढ़कर 19,300 करोड़ रूपया बकाया हो चुका है।.......आर एस राणा

As on 15th April, 2015, sugar mills across the country have produced 263.56 lac tons of sugar

  As on 15th April, 2015, sugar mills across the country have produced 263.56 lac tons of sugar.  This is 32.06 lac tons higher than the sugar produced during the corresponding period of 2013-14 SS.  Last year till 15th April, sugar production in the country was 231.50 lac tons.

·                  Out of the 530 sugar mills which started crushing operation this year, 240 sugar mills have already closed down and 290 mills are still crushing sugarcane.  Of the remaining 290 sugar mills, 100 mills are in Maharashtra, 50 mills in U.P., 44 in Karnataka and 36 in Tamil Nadu.

·                  Sugar mills of Maharashtra have produced 99.61 lac tons of sugar till 15th April 2015, as against 74.43 lac tons produced by them during the same period last season i.e. 2013-14.  In 2014-15 SS, 100 sugar mills are still in operation, whereas as on 15th April 2014 (2013-14 SS), 52 sugar mills were crushing sugarcane.

·                  In U.P, sugar mills have produced 67.85 lac tons of sugar till 15th April 2015.  This is 5.30 lac tons more than the last season’s sugar production during the corresponding period i.e. upto 15th April, 2014.  One of the main reasons for increase in production is increase in recovery percentage of sugar.  During the current year, till 15th April, 2015, sugar recovery has been around 9.53 as against last season’s cumulative average of 9.29%.  There are 50 sugar mills working as on 15th April, 2015, as against 42 which were working as on 15th April, 2014.

·                  Sugar production in Karnataka till 15th April, 2015 was 45.00 lac tons, as against 41.18 lac tons produced last season upto the corresponding period.  44 sugar mills are still working in the State.  Last year, as on 15th April, only 18 were in operation. 

·                  Sugar mills of Tamil Nadu have produced 8.25 lac tons of sugar till 15th April, 2015.  Of the 44 sugar mills which operated during 2014-15 SS, 8 have already shut their operations and 36 are working as of now.  In 2013-14, sugar production in the State upto 15th April, 2014 was 10.12 lac tons with 26 mills in operation.

·                  Gujarat sugar mills have produced 11 lac tons of sugar till 15th April, 2015 and 14 sugar mills are still working.  During the corresponding period of 2013-14 SS, 11.53 lac tons was the sugar production and 6 mills were working.

·                  Crushing operations in Andhra Pradesh and Telangana have almost come to an end as only 4 sugar mills are working as of now.  Till 15th April, 2015, sugar mills have produced 8.75 lac tons of sugar, as against 9.77 lac tons produced by them during the corresponding date of 2013-14 SS.

·                  Sugar mills of other States viz. Punjab and Haryana have produced 5.25 lac tons and 5.20 lac tons, respectively.  Last year as on 15thApril, 2014, sugar mills of these States produced 4.69 lac tons and 5 lac tons, respectively.   During the current 2014-15 SS, 9 sugar mills in Punjab and 10 in Haryana are still working. 

·                  As per the trend of sugar production upto 15th April, 2015 of 263.56 lac tons, with around 290 sugar mills still continuing their crushing operations, it seems that the country would produce over 270 lac tons of sugar in the current sugar season.

·                  This indicates that during the current season, there would be a surplus of over 22 lac tons produced over the estimated domestic consumption of 248 lac tons.  Therefore, the closing balance of 30th September, 2015 with the sugar industry will be over 90 lac tons.  This is after considering a few lac tons of exports.

·                  The domestic ex-mill sugar prices have fallen by Rs. 8 to 9 per kilo in the last six months i.e. from the beginning of this sugar season.  The sugar prices are at the lowest in the last seven years.  These prices are below the cost of production by Rs. 7000 to 9000 per ton of sugar.

·                  With cane price arrears remaining pending at Rs. 19300 crore i.e. at about 30-35% of the total price payable by the factories in the current season, the situation is alarming and there has to be something done immediately to ensure that:-

(i)            Ex-mill sugar prices improve without any further delay;
(ii)          Sugar mills get adequate cash flows;
(iii)         The surplus sugar inventory of 30-35 lac tons over and above the normative carry forward of 60 lac tons as on 1stOctober, should be disposed off.
(iv)         Banks need to also get enough confidence to extend loans to sugar mills.

·                  Only if the above surplus of 30-35 lac tons is disposed off and the burden is taken away from the mills, will the cane price arrears of farmers get cleared and the ex-mill sugar prices will improve at least to what it was at the beginning of the current sugar season.

·                  Increasing the import duty on sugar from 25% to 40% will be helpful, but only in the longer run.  The immediate problem of cash flows and the surplus sugar inventory needs to be addressed without any further delay and the request of the industry and the demand of the farmers that the Government should buy 30 lac tons of sugar should be approved by the Government.  This will give around Rs. 9000 crore of cash flows to the industry, which can go directly to the farmers.

·                  If the above surplus is not bought by the Government and it continues to burden the industry, the ex-mill sugar prices might fall further and the cane price arrears of farmers will continue to remain at a high level.

·                  It is feared that a substantial number of mills will not be able to get working capital loans from the banks if the above situation continues, and, therefore, there is a big risk that 25-30% of the industry may not be able to start their crushing operations in the coming season, 2015-16.

स्टॉकिस्टों की सक्रियता से ग्वार की कीमतों में तेजी बरकरार


खरीफ में मानूसन गड़बड़ाने की आशंका से ग्वार की खरीद में आई तेजी
आर एस राणा
नई दिल्ली। क्रूड तेल की कीमतें नीचे होने के कारण ग्वार गम पाउडर में निर्यात मांग तो कमजोर है लेकिन चालू खरीफ में मानसून गड़बड़ाने की आशंका बनी हुई है। इसीलिए प्लांट निर्माताओं के साथ ही स्टॉकिस्टों की खरीद ग्वार में तेज हो गई है जिससे भाव में तेजी बनी हुई है। गुरूवार को जोधपुर मंडी में ग्वार के भाव बढ़कर 4,650 रुपये और ग्वार गम के भाव 10,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
ग्वार गम के निर्यातक विपिन अग्रवाल ने बताया कि क्रूड तेल की कीमतें नीचे होने के कारण ग्वार गम पाउडर की निर्यात मांग कमजोर ही है। निर्यातक पहले के किए हुए सौदों का ही भुगतान कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि हाल ही में हो रही बारिश से खरीफ मानसून में गड़बड़ी होने की आशंका है। इसीलिए प्लांट निर्माताओं के साथ ही स्टॉकिस्टों की ग्वार में मांग बढ़ गई है जिससे भाव तेज बने हुए हैं। जोधपुर मंडी में गुरूवार को ग्वार की कीमतों में 150 रुपये की तेजी आकर भाव 4,650 रूपये और गंगानगर मंडी में 4,450 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। जोधपुर में ग्वारगम के भाव बढ़कर गुरूवार को 10,700 रुपये प्रति क्विंटल हो गए तथा इसकी कीमतों में 200 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी दर्ज की गई। उत्पादक मंडियों में ग्वार की दैनिक आवक 25 से 30 हजार क्विंटल की हो रही है।
हरियाणा ग्वार गम केमिकल इंडस्ट्रीज के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ग्वार की फसल पूरी तरह से बारिश पर निर्भर करती है तथा इस समय जो बारिश हो रही है उसका असर मानसून पर पड़ेगा। चालू खरीफ में मानसूनी बारिश कम रहेगी। इसीलिए ग्वार में स्टॉकिस्टों की सक्रियता बढ़ गई है। ग्वार का स्टॉक मजबूत हाथों में होने के कारण बिकवाली भी सीतिम मात्रा में आ रही है जिससे तेजी को और बल मिल रहा है। आगामी दिनों में ग्वार की कीमतों में और भी तेजी की संभावना है।
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार वित्त वर्ष 2014-15 के पहले 11 महीनों अप्रैल से फरवरी के दौरान मूल्य के हिसाब ग्वार गम पाउडर के निर्यात में 12.91 फीसदी घटकर 9,561.68 करोड़ रुपये का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 10,978.96 करोड़ रुपये का हुआ था। मात्रा के हिसाब से ग्वार गम उत्पादों के निर्यात में इस दौरान बढ़ोतरी हुई है। एपिडा के अनुसार अप्रैल से फरवरी के दौरान ग्वार गम उत्पादों का 6.62 लाख टन का निर्यात हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 5.45 लाख टन ग्वार गम उत्पादों का निर्यात हुआ था।.....आर एस राणा

निर्यात मांग अच्छी रहने से लालमिर्च की कीमतों में तेजी की संभावना


आर एस राणा
नई दिल्ली। चालू सीजन में लालमिर्च की पैदावार तो करीब पिछले साल के बराबर ही होने का अनुमान है लेकिन निर्यात मांग अच्छी रहने से कीमतों में तेजी की ही संभावना है। गुंटूर मंडी में तेजा क्वालिटी की लालमिर्च का भाव 7,700 से 8,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। मंडी में दैनिक आवक डेढ़ लाख बोरी से ज्यादा की हो रही है लेकिन गर्मी बढ़ने के साथ ही दैनिक आवक कम हो जायेगी।
लालमिर्च के निर्यातक अषोक दत्तानी ने बताया कि लालमिर्च में इस समय खाड़ी देषों की आयात मांग अच्छी बनी हुई है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में लालमिर्च की पैदावार 1.25 करोड़ बोरी (एक बोरी-45 किलो) से ज्यादा होने का अनुमान है। इस समय उत्पादक मंडियों में दैनिक आवक का दबाव बना हुआ है लेकिन जैसे-जैसे गर्मी बढ़ेगी, लालमिर्च की दैनिक आवक कम हो जायेगी। नए वित्त वर्श्र में लालमिर्च के निर्यात में और बढ़ोतरी होने का अनुुमान है।
लालमिर्च के थोक कारोबारी विनय बूबना ने बताया कि गुंटूर मंडी में इस समय लालमिर्च की दैनिक आवक करीब डेढ़ लाख बोरियों की हो रही है तथा खमम मंडी में करीब 30,000 बोरी की आवक होे रही है। चालू सीजन में अभी तक करीब 60 से 65 लाख बोरी का लालमिर्च का स्टॉक हो चुका है। चालू महीने के आखिर मेें उत्पादक मंडियों में लालमिर्च की दैनिक आवक कम हो जायेगी। जिससे भाव में तेजी की ही संभावना है। गुंटूर मंडी में 334 क्वालिटी की लालमिर्च के भाव 7,200 से 7,700 रूपये और तेजा क्वालिटी के 7,700 से 8,200 रूपये प्रति क्विंटल रहे। खमम मंडी में तेजा क्वालिटी के भाव 7,500 से 8,200 रुपये और फटकी क्वालिटी के 4,500 से 5,400 रुपये प्रति क्विंटल है।
भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित वर्श 2014-15 की पहले 9 महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान लालमिर्च के निर्यात में 4 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 247,000 टन का हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 236,681 टन का निर्यात हुआ था। विष्व बाजार में लालमिर्च का भाव 2.87 डॉलर प्रति किलो चल रहा है। मसाला बोर्ड ने वित वर्श 2014-15 में तीन लाख टन लालमिर्च के निर्यात का लक्ष्य तय किया है।.......आर एस राणा

एग्री कमोडिटी निर्यात में भारी गिरावट,44% गिरा गेहूं एक्सपोर्ट



नई दिल्ली। गेहूं, दाल और बासमती का निर्यात घट गया है। अप्रैल-फरवरी के दौरान
बासमती चावल का निर्यात करीब 4 फीसदी घटकर 33 लाख टन रह गया है। पिछले साल
अब तक 34.4 लाख टन बासमती चावल निर्यात हुआ था। जबकि गेहूं की निर्यात में 44
फीसदी से ज्यादा की भारी गिरावट दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2015 के पहले 11 महीनों में
28.80 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ है। पिछले साल 52.08 लाख टन निर्यात हुआ था।

हालांकि ग्वार गम, मूंगफली और गैर-बासमती चावल का निर्यात बढ़ा है।
पिछले साल भारत का सबसे बासमती चावल खरीददार ईरान ने इंपोर्ट ड्यूटी को 22.5
फीसदी से बढ़ाकर 44 फीसदी कर दिया था। जिसके चलते बासमती निर्यात को
झटका लगा है। पश्चिम एशियाई देश पर्याप्त स्टॉक और बम्पर घरेलू उत्पादन करने कारण
आयात शुल्क को बढ़ाया था। ईरान में 2014 के दौरान 2 फीसदी बढ़कर 29.5 लाख टन हुआ
है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल-फरवरी के दौरान गेहूं का निर्यात 44.7 फीसदी घटा
है। वहीं दालों का निर्यात 38 फीसदी घटकर 2.02 लाख टन रह गया है। हालांकि गैर-
बासमती चावल का निर्यात 15.2 फीसदी बढ़ा है। अप्रैल 2014 से फरवरी 2015 के दौरान
75.1 लाख हुआ है।
वित्त वर्ष 2015 के पहले 11 महीनों में मूंगफली का निर्यात 42.1 फीसदी बढ़कर 6.46 लाख
टन पहुंच गया है। जबकि ग्वार गम का निर्यात 6.62 लाख टन रहा।

15 अप्रैल 2015

चीनी पर आयात शुल्क बढ़ाने के लिए वित्त मंत्रालय को लिखेंगे-पासवान


किसान संगठनों ने चीनी मिलों के बजाए सीधे किसान को इनसेंटिव देने की मांग की
आर एस राणा
नई दिल्ली। खाद्य मंत्रालय चीनी पर आयात शुल्क को बढ़कर 45 फीसदी करने के लिए वित्त मंत्रालय को लिखेगा। बुधवार को दिल्ली में केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान ने किसान संगठनों से मुलाकात के बाद कहां कि चीनी मिलों पर किसानों के बकाया का बोझ लगातार बढ़ रहा है जिसके हल के लिए किसान संगठनों से मिलें सुझाव पर विचार-विमर्श किया जायेगा। गन्ना के बकाया भुगतान के लिए 16 अप्रैल को खाद्य मंत्री प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ भी बैठक करेंगे।
उन्होंने बताया कि चालू सीजन में चीनी का उत्पादन सालाना खपत से ज्यादा होने का अनुमान है। देश में चीनी का पर्याप्त मात्रा में स्टॉक मौजूद है इसलिए चीनी के आयात शुल्क में बढ़ोतरी की जाए। उन्होंने बताया कि इस समय आयातित चीनी पर 25 फीसदी आयात शुल्क है इसे बढ़ाकर 45 फीसदी करने के लिए वित्त मंत्री से बात करेंगे।
इस अवसर पर किसान संगठनों ने खाद्य मंत्री से मांग की है कि केंद्र सरकार चीनी मिलों को इनसेंटिव देने के बजाए सीधे किसान को ही इनसेंटिव दे। मालूम हो कि केंद्र सरकार ने चालू पेरेाई सीजन में 14 लाख टन रॉ-शुगर के निर्यात पर चीनी मिलों को 4,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से इनसेंटिव देने की घोषणा की हुई है। हालांकि यह अलग बात है कि विदेशी बाजार में दाम नीचे होने के कारण रॉ-शुगर का निर्यात सीमित मात्रा में ही हो रहा है।
किसान संगठनों ने खाद्य मंत्री से गन्ने के उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) में भी बढ़ोतरी करने की मांग की है, साथ ही उन्होंने 30 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनाने की भी मांग की है। केंद्र सरकार 30 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनायेगी, तो चीनी मिलें किसानों को जल्द भुगतान कर पायेंगी। इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के अनुसार चालू पेराई सीजन में चीनी मिलों पर करीब 17,000 करोड़ रुपये का बकाया हो चुका है।......आर एस राणा

मार्च में वैजिटेबल तेलों के आयात में 27 फीसदी की बढ़ोतरी


आर एस राणा
नई दिल्ली। मार्च महीने में वैजिटेबल तेलों के आयात में 27 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 1,062,031 टन का हुआ है। चालू तेल वर्श के पहले पांच महीनों नवंबर से मार्च के दौरान वैजिटेबल तेलों के आयात में 24 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल आयात 5,353,184 टन का हो चुका है। 
साल्वेंट एक्सट्ेक्टर्स एसोसिषन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार मार्च महीने में वैजिटेबल तेलों के आयात में 27 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। मार्च महीने में 1,062,031 टन वैजिटेबल तेलों का आयात हुआ है जबकि पिछले साल मार्च महीने में 835,424 टन वैजिटेबल तेलों का आयात हुआ था। चालू तेल वर्श 2014-15 के पहले पांच महीनों नवंबर-14 से मार्च-15 के दौरान 5,353,184 टन वैजिटेबल तेलों का आयात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 4,332,231 टन खाद्य तेलों का आयात हुआ था।
इंडिनेषिया और मलेषिया ने पिछले पांच महीनों से वैजिटेबल तेलों के निर्यात पर षुल्क को षून्य किया हुआ है जबकि इन देषों में बायो-डीजल में सीपीओ की मांग कम हुई है। ऐसे में इन देषों में पॉम तेल का स्टॉक ज्यादा हो गया है जिससे कीमतों में भारी कमी आई है।
आर बी डी पॉमोलीन का भाव भारतीय बंदरगाह पर मार्च-2014 में 938 डॉलर प्रति टन था जबकि मार्च-2015 में इसका भाव घटकर 661 डॉलर प्रति टन रह गया। इसी तरह से क्रूड पाम तेल का भाव इस दौरान 951 डॉलर प्रति टन से घटकर 650 डॉलर प्रति टन रह गया। खाद्य तेलों के आयात में हुई बढ़ोतरी के कारण घरेलू बाजार में खाद्य तेलों का स्टॉक ज्यादा जमा हो गया है। पहली फरवरी को घरेलू बाजार में करीब 20 लाख टन वैजिटेबल तेल का स्टॉक जमा है। उत्पादक मंडियों में रबी तिलहनों की दैनिक आवक भी बढ़ने से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों में मंदे कर ही संभावना है।.....आर एस राणा

No Scarcity of Cotton Due to Record Procurement: CCI

There is no scarcity of cotton in the domestic market, said CCI in the response of demand proposed by the textile industry to immediate release of the stocks procured by CCI. Textile bodies like Texprocil and CITI believes that there has been a supply deficit created due to the record procurement by CCI this season which has lead the fiber price to shoot up and the scarcity of the quality cotton in the market. Whereas CCI believe that due to the bumper production and lesser export availability is still higher, despite the record procurement and there is no supply deficit as such. CCI said it has started selling of the fiber and releases 40,000-50,000 bales a day.

Iraq Invites Tender For 50000 T Wheat Supply




Iraq is trying to cover its wheat needs for domestic market and take advantage of lower price at this point of time. Iraq's grains agency has issued an international tender to buy 50,000 tonne wheat last week.It closed on 20th April,2015.The shipment was sought in June.Potential bidders may be Russia,US Canada,Australia.Market experts say that Iraq usually buys higher quantity of wheat what it tenders for.

14 अप्रैल 2015

sugarcane arrears

Govt will discuss to farmers leader on the of sugarcane arrears on 15 April 2015

एमईपी में कटौती से प्याज का निर्यात बढ़ने की संभावना


एषिया के साथ ही खाड़ी देषों की आयात में हुई बढ़ोतरी
आर एस राणा
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 300 डॉलर प्रति टन से घटाकर 250 डॉलर प्रति टन कर दिया है जबकि प्याज में पाकिस्तान के साथ ही एषिया के अलावा खाड़ी देषों की आयात मांग अच्छी बनी हुई। इसलिए आवक बढ़ने के बावजूद भी प्याज की कीमतों में ज्यादा मंदे की उम्मीद नहीं है। आजादपुर मंडी में प्याज के भाव 350 से 700 रुपये प्रति 40 किलो चल रहे हैं। प्याज की पैदावार पिछले साल के लगभग बराबर ही होने का अनुमान है।
प्याज के थोक कारोबारी सुरेंद्र साहनी ने बताया कि प्याज के एमईपी में 50 डॉलर की कटौती करने से निर्यात मांग में बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि आजादपुर मंडी में 8 से 10 ट्रक प्याज पाकिस्तान को बाघा बार्डर के जरिए निर्यात हो रहा है। इसके अलावा बांग्लादेष, श्रीलंका, मलेषिया, सिंगापुर, इंडोनेषिया और खाड़ी देषों की आयात मांग अच्छी बनी हुई है। दिल्ली में दैनिक आवक 80 से 85 ट्रक (एक ट्रक-15 टन) की आवक हो रही है। आजादपुर मंडी में प्याज के भाव 900 से 1,700 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
प्याज कारोबारी अनुज गुप्ता ने बताया कि दिल्ली में प्याज की आवक महाराश्ट्र, राजस्थान और गुजरात से हो रही है। आगामी दिनों में प्याज की दैनिक आवक बढ़ने का अनुमान है लेकिन निर्यात मांग को देखते हुए मौजूदा कीमतों में 2 से 3 रुपये प्रति किलो की गिरावट तो आ सकती है लेकिन भारी गिरावट की संभावना नहीं है। नासिक में प्याज की दैनिक आवक करीब 2 लाख क्विंटल से ज्यादा की हो रही है तथा भाव 600 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं।
आनियन एक्सपोर्ट एसेसिएषन ऑफ इंडिया के एक वरिश्ठ अधिकारी ने बताया कि वित्त वर्श 2014-15 के पहले नो महीनों (अप्रैल से दिसंबर) के दौरान 7.76 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ है जबकि वित्त वर्श 2013-14 में 13.58 लाख टन का निर्यात हुआ था। उन्होंने बताया कि उत्पादक राज्यों में आवकों का दबाव बनाने के बाद केंद्र सरकार एमईपी में और कटौती कर सकती है जिससे इस बार प्याज के निर्यात में बढ़ोतरी होने का अनुमान है।
कृशि मंत्रालय के अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू सीजन में प्याज की पैदावार 193.57 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 194.02 लाख टन की पैदावार हुई थी।......आर एस राणा

बेमौसम बारिष से हल्दी की फसल को नुकसान, कीमतों में तेजी की उम्मीद


आर एस राणा
नई दिल्ली। महाराश्ट्र के प्रमुख हल्दी उत्पादक क्षेत्रों सांगली और नानदेड़ में बेमौसम बारिष से हल्दी की फसल को नुकसान होने की आषंका है। इसलिए स्टॉकिस्टों की सक्रियता से हल्दी की कीमतों में तेजी बनने की संभावना है। मंगलवार को इरोड़ मंडी में हल्दी का भाव बढ़कर 8,500 रुपये और निजामाबाद मंडी में 8,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गए।
हल्दी के थोक कारोबारी पूनमचंद गुप्ता ने बताया कि महाराश्ट्र के सांगली और नानदेड़ क्षेत्रों में भारी बारिष से हल्दी की फसल को नुकसान होगा। हालांकि चालू सीजन में हल्दी की पैदावार में तो कमी आने का अनुमान है लेकिन बकाया स्टॉक को मिलाकर कुल उपलब्धता, सालाना खपत से ज्यादा ही है लेकिन स्टॉकिस्टों की खरीद बनने से भाव में तेजी बनी हुई है। नानदेड़ मंडी में बढ़िया हल्दी की कीमतें बढ़कर मंगलवार को 8,100 से 8,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गई। सेलम मंडी में हल्दी के भाव 8,800 रुपये प्रति क्विंटल हो गए। इरोड़ मंडी में दैनिक आवक 8,000 से 9,000 बोरी की हो रही है (एक बोरी-70 किलो)  जबकि इरोड़ में करीब 25 लाख बोरी का स्टॉक हो चुका है।
टरमरिक मर्चेंट एससोसिएषन के सचिव के वी रवि ने बताया कि चालू सीजन में हल्दी की पैदावार घटकर 45 लाख बोरी (एक बोरी-70 किलो) ही होने का अनुमान है लेकिन पुराना स्टॉक करीब 35-40 लाख बोरी का बचा हुआ है। ऐसे में कुल उपलब्धता करीब 80-85 लाख बोरी की बैठेगी जबकि घरेलू खपत और निर्यात को मिलाकर कुल सालाना खपत लगभग 65-70 लाख बोरी की होती है। इसलिए चालू सीजन में कुल उपलब्धता मांग से ज्यादा ही रहेगी।
हल्दी के थोक व्यापारी एस सी गुप्ता ने बताया कि हल्दी में निर्यात मांग अच्छी है लेकिन घरेलू मांग कमजोर है। उन्होंने बताया कि रमजान की त्यौहारी मांग के कारण हल्दी की निर्यात मांग में ओर बढ़ोतरी होने का अनुमान है। उत्पादक क्षेत्रों में सप्ताहभर में हल्दी की कीमतों में 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आ भी चुकी है तथा आगामी दिनों में और भी 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल की तेजी आने की संभावना है।
भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार वित वर्श 2014-15 की पहले नो अप्रैल से दिसंबर के दौरान हल्दी के निर्यात में 8 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल निर्यात 65,000 टन का हो चुका है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 60,442 टन का निर्यात हुआ था। विष्व बाजार में हल्दी के दाम 3.53 डॉलर प्रति किलो हैं। मसाला बोर्ड ने वित वर्श में 80,000 टन निर्यात का लक्ष्य तय किया है। जानकारों का मानना है कि निर्यात तय लक्ष्य से ज्यादा ही होगा।........आर एस राणा

पाकिस्तान में भारत के सस्ते प्याज की मांग बढ़ी

खराब क्वॉलिटी और कीमतों में 15 पर्सेंट की तेजी आने से पाकिस्तान में भारत के प्याज की जबरदस्त मांग है। इंडियन ट्रेडर्स ने कहा कि घरेलू बाजार में प्याज की कीमत में आई गिरावट का फायदा उठाने के लिए उनके पास करीब एक महीने का समय है। पिछले एक पखवाड़े में प्याज की कीमतों में करीब 5 पर्सेंट की गिरावट आई है और देश के थोक बाजारों में इसकी कीमत 7-12 रुपये प्रति किलो है। महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार में प्याज की फसल को खेतों से बाहर निकाले जाने का काम तेजी से चल रहा है और ऐसे में बाजार में नई फसल की आवक से कीमतों में और अधिक गिरावट की संभावना है।
पाकिस्तान के अलावा एक्सपोर्टर्स को बांग्लादेश, श्रीलंका, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और खाड़ी देशों से जबरदस्त डिमांड मिल रही है। भारत दुनिया में प्याज का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है और इसकी खासियत यह है कि यहां सालों भर इसकी सप्लाई बनी रहती है। नासिक डिस्ट्रिक्ट अनियन ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रेसिडेंट सोहनलाल भंडारी ने कहा, 'अधिकांश दक्षिण एशियाई और मध्य पूर्व के देशों में भारतीय प्याज की मांग बनी हुई है। एक्सपोर्ट से किसानों को फसल की वाजिब कीमत मिल पाएगी।' भंडारी ने कहा कि नासिक मंडी में प्याज की रोजाना आवक 2 लाख क्विंटल से अधिक है। यहां इसकी कीमत 7-12 रुपये प्रति किलो है। 2013-14 में भारत से करीब 3,170 करोड़ रुपये का 14.8 करोड़ टन प्याज एक्सपोर्ट हुआ था। नासिक के प्याज की पाकिस्तानी ट्रेडर्स के बीच जबरदस्त मांग है। पाकिस्तानी ट्रेडर्स दिल्ली के एक्सपोर्टर्स से माल खरीदते हैं। दिल्ली की आजादपुर मंडी में सब्जियों के ट्रेडर महिंदर सनपाल ने कहा कि करीब 5-10 ट्रक रोजाना वाघा बॉर्डर से भेजे जा रहे हैं। प्रत्येक ट्रक में करीब 15 टन प्याज होता है। उन्होंने कहा, 'दिल्ली में देश भर से रोजाना 100 ट्रक प्याज आ रहे हैं। इस वजह से आने वाले दिनों में प्याज की थोक कीमतों में 2-3 रुपये की गिरावट आएगी।'
अमृतसर के एक्सपोर्टर अनिल मेहरा ने कहा कि पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रांत में नई फसल के बाजार में आने तक नासिक के प्याज की मांग बनी रहेगी। काबुल ट्रेडिंग कंपनी के मेहरा ने कहा, 'वाघा बॉर्डर पर ट्रक खड़े हैं क्योंकि अभी तक इंपोर्टर्स को इसकी अनुमति नहीं मिली है। पाकिस्तान में कमजोर क्वॉलिटी की प्याज होती है। वहां प्याज की कीमतें 15 पर्सेंट तक अधिक हैं। इसलिए पाकिस्तान में भारतीय प्याज की मांग बनी हुई है।' इसके साथ ही मुंबई से कंटेनर के जरिये कराची सीधे प्याज का एक्सपोर्ट किए जाने की उम्मीद है। भंडारी ने कहा, 'एक्सपोर्ट मार्केट में ईरान और चीन हमें टक्कर दे सकते हैं लेकिन क्वॉलिटी और प्राइसिंग की वजह से भारतीय प्याज को प्राथमिकता दी जाती है।' (ET Hindi)

हरियाणा में भी गेहूं की खरीद नियमों में सरकारी ने दी छूट

आर एस राणा
नई दिल्ली। मार्च और अप्रैल महीने मेें हुई बेमौसम बारिष और ओलावृश्ट्रि से गेहूं की फसल को हुए नुकसान को देखते हुए केंद्र सरकार ने हरियाणा में भी गेहूं के खरीद नियमों में छूट दी है। राज्य सरकार की खरीद एजेंसियां 9 फीसदी तक टूटे हुए गेहूं की खरीद भी अब कर सकेंगी, साथ ही 10 फीसदी तक लस्टर लोस गेहूं पर किसान को पूरी कीमत मिलेगी।
खाद्य मंत्रालय के अनुसार 9 फीसदी तक टूटे हुए गेहंूू की खरीद भी सरकारी एजेंसियों द्वारा 1,450 रुपये प्रति क्विंटल की दर से ही की जायेगी, जबकि पहले 6 फीसदी तक टूटे हुए गेहूं की खरीद ही सरकारी एजेंसियों द्वारा की जाती थी। इसके अलावा 10 फीसदी तक लस्टर लोस गेहूं की खरीद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर की जायेगी। अगर 10 फीसदी से ज्यादा लस्टर लोस गेहूं है तो फिर कीमत में कटौती की जायेगी।
खाद्य मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में बेमौसम बारिष और ओलाृश्ष्टि से गेहूं की फसल को हुए नुकसान को देखते हुए खरीद नियमों में छूट दी गई है। इससे पहले मध्य प्रदेष और राजस्थान में भी गेहूं के सरकारी खरीद नियमों में छूट दी गई थी।......आर एस राणा

11 अप्रैल 2015

चाय बोर्ड का निर्यात बढ़ाने पर जोर

चाय बोर्ड ने कुछ बाजारों को निर्यात में गिरावट की भरपाई के लिए अन्य निर्यात बाजार चिह्नित किए हैं। भारतीय चाय संघ के वाइस चेयरमैन आजम मुनीम ने कहा, 'सरकार ने बाजारों की सूची में चिली और चीन जोड़े हैं।' इसने कहा है कि निर्यात के लिए कजाकस्तान, रूस, अमेरिका, चीन, ईरान, मिस्र और लैटिन अमेरिका (क्रूशल) को चिह्नित किया गया है। हाल के वर्षों में निर्यात गिर रहा है। वर्ष 2010 में निर्यात 22.2 करोड़ किलोग्राम रहा था। यह वर्ष 2014 में गिरकर 20.1 करोड़ किलोग्राम पर आ गया। चालू वर्ष भी ज्यादा अच्छा नजर नहीं आ रहा है। चीन, श्रीलंका और केन्या के बाद भारत विश्व का चौथा सबसे बड़ा चाय निर्यातक है। आमतौर पर हमारा ज्यादातर निर्यात रूस, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और ब्रिटेन को होता है। उत्पादन 3 फीसदी चक्रवृद्धि सालाना दर से लगातार बढ़ रहा है, लेकिन निर्यात में या तो गिरावट आ रही है या यह स्थिर बना हुआ है। इसका मुख्य कारण घरेलू खपत में बढ़ोतरी होना है, जिससे कीमतें मजबूत बनी रहती हैं। अप्रैल 2014 से जनवरी 2015 के दौरान निर्यात की प्रति इकाई कीमत 196.27 रुपये प्रति किलोग्राम रही, जो इससे एक साल पहले 202.60  रुपये प्रति किलोग्राम थी। इसके विपरीत वर्ष 2014 में जनवरी से दिसंबर के दौरान जकार्ता में हुई नीलामी में कीमत 14.75 रुपये प्रति किलोग्राम और मोमबासा में 18.03 रुपये प्रति किलोग्राम गिरी। हालांकि कोलंबो में कीमत 18.62 रुपये प्रति किलोग्राम बढ़ी।

मुनीम ने कहा, 'कीमतों में मजबूती से अन्य देशों विशेष रूप से केन्या जैसे उत्पादक देशों से प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। केन्या में लगातार अच्छा उत्पादन हो रहा है।' श्रीलंका भी कड़ी टक्कर दे रहा है। चाय उत्पादन दो तरीकों से हो रहा है, जिन्हें परंपरागत और गैर-परंपरागत कहा जाता है। गैर-परंपरागत को आमतौर पर सीटीटी (क्रश, टीयर, कर्ल) कहा जाता है। केन्या पूरी तरह सीटीसी उत्पादक है। लेकिन श्रीलंका में लगभग पूरा उत्पादन परंपरागत है। भारत में सीटीसी का कुल उत्पादन में करीब 90 फीसदी हिस्सा है। इस तरह केन्या की चाय का असम की सीटीसी से सीधा मुकाबला होता है, जबकि असम की परंपरागत चाय को श्रीलंका से प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। मलावी, मोजांबिक और युगांडा की चाय की गुणवत्ता दक्षिण भारतीय चाय जैसी है। भारत अपने ज्यादातर परंपरागत उत्पादन का निर्यात करता है, लेकिन सीटीसी का निर्यात में मामूली हिस्सा होता है। उत्तरी भारत (इसका मतलब दक्षिण भारत से इतर सभी क्षेत्रों से है) के कुल उत्पादन में से केवल 13 फीसदी का निर्यात होता है। इक्रा की रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तरी भारत से ज्यादातर निर्यात अच्छी गुणवत्ता की परंपरागत और सीटीसी चाय का होता है। लेकिन दक्षिणी भारत मध्यम एवं निम्न गुणवत्ता की चाय का निर्यात करता है, जिसका इस्तेमाल मुख्यरूप से मिश्रण में 'फिलर' के रूप में होता है। 

पिछले एक दशक में सालाना निर्यात करीब 20 करोड़ किलोग्राम रहा है। चाय बोर्ड की योजना में प्रत्येक बाजार के लिए रणनीति अलग-अलग होगी। चीन में इसे कूटनीतिक स्तर पर उठाया जाएगा, क्योंकि वहां गैर-शुल्क बाधाएं हैं। चीन मुख्य रूप से ग्रीन टी बाजार है, लेकिन वहां ब्लैक टी की भी मांग बढऩे लगी है। मुनीम ने कहा, 'ईरान में पैकर्स के साथ संयुक्त प्रचार की योजना है। रूस में रुपया-रूबल प्रणाली स्थापित करनी होगी।' उद्योग यह उम्मीद कर रहा है कि निर्यात के समय जून से सितंबर के दौरान मौसम बेहतर रहेगा और इसलिए ज्यादा उत्पादन होगा। अब तक सूखे से उत्पादन प्रभावित हुआ है। BS Hindi