नई दिल्ली October 10, 2011
इस महीने के आखिर में शुरू होने वाले नए पेराई सीजन के लिए चीनी उद्योग (खास तौर से उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिकों) को कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। गन्ने का रकबा हालांकि बढ़ा है, लेकिन गन्ने व चीनी की कीमतों के बीच असंतुलन को देखते हुए बैंक इस क्षेत्र को ज्यादा रकम मुहैया कराने के इच्छुक नहीं है।उत्तर प्रदेश में डीसीएम श्रीराम कंसोलिडेटेड लिमिटेड (डीएससीएल) की चार मिलें हैं और उनका अनुमान है कि नए सीजन में उसे बतौर कार्यशील पूंजी 845 करोड़ रुपये की दरकार होगी जबकि पिछले सीजन में इसे 620 करोड़ रुपये की आवश्यकता पड़ी थी। कंपनी के संयुक्त प्रबंध निदेशक अजित श्रीराम ने कहा - चीनी क्षेत्र पर बैंकों का नजरिया नकारात्मक है और इसे देखते हुए लगता है कि इस क्षेत्र को ताजा रकम मुहैया कराने के मामले में बैंकों ने चयनात्मक रवैया अख्तियार कर लिया है। उन्होंने कहा कि बैंकों ने इस क्षेत्र को जो रकम मुहैया कराई है उसकी वे लगातार निगरानी कर रहे हैं और कुछ मामले में उन्हें सीमित किया जा रहा है। कार्यशील पूंजी की दरकार का आकलन करने में बैंक भंडारण के उच्चस्तर को आधार बनाता है। हालांकि कंपनियों के निकासी अधिकार की निगरानी बैंक माह दर माह के आधार पर करता है, जो चीनी की बाजार कीमत से तय होती है। अगर नए सीजन में चीनी की कीमतें घटती है और उत्पादन लागत से नीचे चली जाती है तो फिर मिलों को कार्यशील पूंजी के मामले में विपरीत परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा और इसके चलते गन्ने की बकाया रकम में बढ़ोतरी हो सकती है यानी किसानों को गन्ने की कीमत चुकाने में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। श्रीराम के मुताबिक, साल 2010-11 के सीजन में उत्पादन लागत 3000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास रही थी, वहीं इसकी बिक्री से औसतन 2600-2700 रुपये प्रति क्विंटल की रकम हासिल हुई थी। यह मानते हुए कि आगामी सीजन 2011-12 में गन्ने की कीमतें बढ़ेंगी, चीनी की कीमतें बढ़ते उत्पादन लागत के मुताबिक होनी चाहिए, अन्यथा चीनी मिलें गन्ने की कीमतें चुकाने में परेशानी महसूस करेंगी। ज्यादातर कंपनियों ने ज्यादा कार्यशील पूंजी की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। उदाहरण के तौर पर बलरामपुर चीनी को लगता है कि नए सीजन में उसे 1500 करोड़ रुपये की दरकार होगी जबकि पिछले सीजन में 900 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ी थी। द्वारिकेश शुगर को इस सीजन में 350 करोड़ रुपये की कार्यशील पूंजी की आवश्यकता का अनुमान है जबकि पिछले सीजन में 250 करोड़ रुपये की दरकार पड़ी थी। पिछले सीजन मेंं राज्य सरकार ने गन्ने किी कीमतों में 24 फीसदी की बढ़ोतरी की थी और इसे 205 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा उद्योग को लग रहा है कि नए सीजन में सरकार गन्ने की कीमतों में तीव्र बढ़ोतरी कर सकती है।सिंभावली शुगर्स के मुख्य कार्याधिकारी जी एस सी राव ने कहा - बैंक इस क्षेत्र को उधार देने में सहज महसूस नहीं कर रहा है क्योंकि पिछला साल नुकसान वाला रहा है। उन्होंने कहा कि निवेश के लिए जुटाई गई रकम के चलते उद्योग पर पहले से ही भारी ब्याज का बोझ है। लागत व बिक्री से मिलने वाली रकम के बीच बढ़ रहा अंतर गन्ने की कीमतोंं में इजाफे के चलते हुआ है। उन्होंने कहा कि चीनी उद्योग को निर्यात की अनुमति मिलनी चाहिए। (BS Hindi)
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