मुंबई September 15, 2011
गोल्ड फील्ड मिनरल सर्विसेज (जीएफएमएस) ने कहा है कि सोने में बढ़ते निवेश मांग के चलते साल के आखिर तक कीमतें बेंचमार्क 2000 डॉलर प्रति आउंस के पार चली जाएंगी। हालांकि जीएफएमएस ने निकट भविष्य में इसमें गिरावट की संभावना जताई है। जीएफएमएस वैश्विक स्तर पर स्वतंत्र कंसल्टेंसी फर्म है और गुरुवार को इस बाबत अनुमान जताया है।लंदन में जीएफएमएस गोल्ड सर्वे पर रिपोर्ट जारी करते हुए जीएफएमएस के वैश्विक प्रमुख (मेटल एनालिटिक्स) फिलिप क्लैपविज्क ने कहा - वैश्विक स्तर पर सोने में निवेश की मांग से इसकी कीमतें बढ़ रही हैं। मौजूदा हालात ने सोने में निवेश के लिए सही वातावरण तैयार किया है, ऐसे में सोने की कीमतें एक दिन के कारोबार में 1900 डॉलर प्रति आउंस के पार जाने का मतलब समझा जा सकता है। सॉवरिन कर्ज संकट का समाधान नहीं निकलने और आर्थिक मोर्चे पर बुरी खबरों के चलते सोने के प्रति निवेशकों का लगाव जारी रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि ये सभी चीजें सोने की कीमतें 2000 डॉलर के पार चले जाने का आधार बनाती हैं।कॉमेक्स वायदा में 7 सितंबर को 1923.7 डॉलर प्रति आउंस को छूने के बाद मुनाफावसूली के चलते सोना 1809 डॉलर प्रति आउंस के आसपास आ गया है।सोने में निवेश के विभिन्न जरियों कुल निवेश मांग मौजूदा कैलेंडर वर्ष की दूसरी छमाही में रिकॉर्ड 1000 टन के पार जाने का अनुमान है जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 624 टन रहा था। 1815 डॉलर प्रति आउंस के भाव को मानते हुए निवेश की कुल कीमत साल 2011 की दूसरी छमाही में 60 अरब डॉलर को पार कर जाएगी, जो पहली छमाही में 29 अरब डॉलर रही है। क्लैपविज्क ने कहा - कुछ लोगों को लग सकता है कि पहली छमाही का आंकड़ा थोड़ा है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि साल 2011 की शुरुआत में मुनाफावसूली के चलते सोने की तेजी पटरी से उतर गई थी और शेयर बाजार में अच्छी खासी तेजी थी। सोवरेन कर्ज संकट गहराने के बाद निवेशकों के नजरिये में भारी बदलाव आया। यूरो जोन का संकट अटलांटिक पार कर गया और अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग में गिरावट आ गई। इसे देखते हुए सोने में निवेश की मांग बढऩे लगी।इससे पहले वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के प्रबंध निदेशक एम. ग्रब ने कहा था - यूरोपीय कर्ज संकट, अमेरिकी कर्ज, महंगाई के दबाव और पश्चिमी देशों में आर्थिक विकास की सुस्त रफ्तार से आने वाले दिनों में निवेश की मांग में काफी ज्यादा बढ़ोतरी होने की संभावना है।अगस्त में वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट आने, कम ब्याज दरें (वास्तविकता में नकारात्मक), औद्योगिक दुनिया में महंगाई के खतरे और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई के उच्च स्तर पर पहुंचने के साथ-साथ उत्तरी अफ्रीका व पश्चिम एशिया में संघर्ष ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पहली छमाही में आधिकारिक खरीद ने भी इस दावे को समर्थन प्रदान किया है, जहां कुल खरीद 200 टन की रही, जबकि साल 2010 में कुल 77 टन सोना खरीदा गया था।a (BS Hindi)
16 सितंबर 2011
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