नई दिल्ली September 20, 2011
भारतीय खाद्य तेल उद्योग को इंडोनेशिया का भय सताने लगा है, लिहाजा उद्योग ने सरकार से रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क में तत्काल संशोधन करने का अनुरोध किया है ताकि घरेलू रिफाइनरों की कीमत पर रिफाइंड खाद्य तेल की संभावित बाढ़ को रोका जा सके।खाद्य तेल उद्योग ने सरकार से रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क को मौजूदा 7.73 फीसदी से बढ़ाकर 16.5 फीसदी करने और खाद्य तेल की टैरिफ वैल्यू पर चार साल से ज्यादा समय से लगी पाबंदी हटाने की मांग की है।आयात शुल्क में संशोधन की मांग इंडोनेशिया (भारत को पाम तेल की आपूर्ति करने वाले बड़े देशों में से एक) द्वारा उठाए गए कदमों के बाद हुई है, जिसके तहत इंडोनेशिया ने पैकेज्ड रिफाइंड पाम तेल पर निर्यात शुल्क 15 फीसदी से घटाकर 2 फीसदी कर दिया है। साथ ही थोक पाम तेल पर निर्यात शुल्क अब 8 फीसदी की दर से वसूला जाएगा। नई दरें 1 अक्टूबर से लागू होंगी। साथ ही वह कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क 15 फीसदी से बढ़ाकर 16.5 फीसदी करने जा रहा है।भारतीय खाद्य तेल उद्योग ने अक्टूबर में समाप्त होने वाले मौजूदा तेल विपणन वर्ष में कुल आयातित 85 लाख टन में से करीब 60 लाख टन पाम तेल का आयात इंडोनेशिया से किया है। उद्योग को लगता है कि अगर इंडोनेशिया से रिफाइंड पाम तेल की बाढ़ को नहीं रोका गया तो इसका नुकसान घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को उठाना पड़ेगा।उद्योग ने रिफाइंड पाम तेल के टैरिफ वैल्यू में भी संशोधन करने की मांग की है क्योंकि वास्तविक शुल्क के मुकाबले प्रभावी शुल्क कम है और रिफाइंड पाम तेल के आयात पर लगाम कसने के लिए इसमें भी संशोधन जरूरी है। मौजूदा समय में रिफाइंड पाम तेल का टैरिफ वैल्यू 484 डॉलर प्रति टन तय है, वहीं पाम तेल की मौजूदा बाजार कीमत 1150 डॉलर प्रति टन है। इसके चलते प्रभावी आयात शुल्क महज 3.5 फीसदी बैठता है, जबकि कागजों पर यह 7.73 फीसदी नजर आता है।सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सुशील गोयनका ने कहा - यह धारणा सही नहीं है कि इस समय रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क बढ़ाने से पहले से ही मजबूत रही महंगाई पर दबाव बढ़ेगा, क्योंंकि घरेलू खाद्य तेल कंपनियों के पास कच्चे तेल को शोधित करने की पर्याप्त क्षमता है। उन्होंने कहा कि खाद्य तेल उद्योग के पास कुल 2 करोड़ टन तेल शोधित करने की क्षमता है, वहीं इसकी आपूर्ति काफी कम है।भारतीय खाद्य तेल उद्योग करीब 90,000 करोड़ रुपये का है और इसमें रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, अदाणी विल्मर, आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं। खाद्य तेल उद्योग घरेलू मांग को पूरा करने के लिए ज्यादातर कच्चे पाम व सोया तेल का आयात करता है और उसे अपनी इकाई में शोधित करता है। साथ ही यह देश में उत्पादित तिलहन मसलन सोयाबीन, मूंगफली और सरसों की भी पेराई करता है, लेकिन कुल कारोबार में इसका हिस्सा काफी कम है क्योंकि तिलहन का स्थानीय उत्पादन 240-270 लाख टन सालाना पर स्थिर है जबकि खाद्य तेल की मांग सालाना करीब 4-5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। स्थानीय रूप से उत्पादित तिलहन से देश की कुल खाद्य तेल जरूरत का आधा ही पूरा हो सकता है। भारत में सालाना 110-130 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत होती है, जिसमें से करीब 70-80 लाख टन का आयात होता है। एक ओर जहां पाम तेल का आयात इंडोनेशिया व मलयेशिया से होता है, वहीं सोया तेल का आयात ब्राजील व अर्जेंटीना से होता है।अक्टूबर में समाप्त होने वाले तेल विपणन वर्ष 2010-11 में देश मेंं कुल 80-82 लाख टन खाद्य तेल का आयात हुआ, जबकि एक साल पहले य ह करीब 70-75 लाख टन था। रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक दिनेश सहारा ने कहा - साल 2010-11 के तेल विपणन वर्ष में हमें लगता है कि कुल आयात बढ़कर 90-92 लाख टन पर पहुंच जाएगा। उद्योग को लग रहा है कि अगर शुल्क में संशोधन नहीं हुआ तो त्योहारी सीजन में खाद्य तेल की किल्लत हो सकती है क्योंंकि इंडोनेशिया के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वह भारत की रिफाइंड खाद्य तेल की जरूरतों को पूरा कर सके। (BS Hindi)
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