नई दिल्ली September 09, 2011
देर से ही सही, 20 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन गैर-बासमती चावल निर्यात की अनुमति मिलने के बाद निर्यातकों के चेहरे खिल गए हैं। सरकार ने हालांकि करीब 5 महीने की देरी से निर्यात की अनुमति दी है, लेकिन निर्यातकों को लग रहा है कि उन्हें इस बार उचित रिटर्न मिलेगा। उधर, सरकार ने शुक्रवार को औपचारिक रूप से गेहूं-चावल निर्यात के लिए अधिसूचना जारी कर दी।निर्यात का सबसे अच्छा समय मार्च होता क्योंकि तब वैश्विक बाजार में गेहूं की भारी किल्लत थी, लेकिन कारोबारियों को लगता है कि अभी भी निर्यात के बेहतर मौके हैं। भारतीय गेहूं का निर्यात दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों व पश्चिम एशिया जैसे पारंपरिक गंतïव्य में हो सकता है क्योंकि इन बाजारों में रूसी गेहूं और ऑस्ट्रेलियाई गेहूं के मुकाबले भारतीय गेहूं सस्ता होगा। वैश्विक बाजार में ये दोनों देश भारत के प्रतिस्पर्धी हैं। कारोबारियों ने कहा कि पश्चिम एशियाई देशों में रूसी ब्लैक सी गेहूं 320 डॉलर प्रति टन (मालभाड़ा समेत) पर उपलब्ध है, वहीं भारतीय गेहूं 310-315 डॉलर प्रति टन के आसपास उपलब्ध होगा। इसी तरह पश्चिम एशियाई देशों में ऑस्ट्रेलियाई गेहूं 350 डॉलर प्रति टन पर बिक रहा है और यहां भी भारतीय गेहूं 30-35 डॉलर प्रति टन सस्ता होगा। एक वरिष्ठ कारोबारी ने कहा - कुल मिलाकर हमें लगता था कि मार्च में हमने मौके गंवा दिए, लेकिन सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है। चावल के मामले में कारोबारियों को लगता है कि भारतीय चावल प्रतिस्पर्धी एशियाई देशों बांग्लादेश व पाकिस्तान के मुकाबले करीब 75 डॉलर प्रति टन सस्ता होगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुरुवार को बेंचमार्क थाइलैंड 100 फीसदी बी ग्रेड सफेद चावल की कीमत 640 डॉलर प्रति टन थी और अक्टूबर 2008 के बाद यह सर्वोच्च स्तर है।गुरुवार को सरकार ने 20 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति ओजीएल के तहत दी है, इस तरह से सरकार ने 3 साल से ज्यादा समय से अनाज निर्यात पर लगाई पाबंदी हटाई है। निर्यात पर पाबंदी साल 2007 में लगाई गई थी क्योंकि राज्य की एजेंसियों द्वारा कम खरीद के चलते घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ गई थीं।जुलाई में भी सरकार ने 10 लाख टन गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी थी, लेकिन कानूनी लड़ाई में उलझ जाने के चलते निर्यात नहीं हो पाया। निर्यात को ओजीएल के तहत रखने का मतलब यह हुआ कि जुलाई में पैदा हुई समस्याएं इस बार न हों और आसानी से निर्यात हो सके।समय-समय पर विभिन्न हलकों से निर्यात पर पाबंदी हटाने की मांग की जाती रही है क्योंकि चावल व गेहूं की खरीद रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचनी शुरू हो गई है। लेकिन सरकार चिंतित नहीं हुई क्योंकि इससे घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ सकती थी। निर्यात पर इसलिए भी रोक जारी रही क्योंकि सरकार प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अनाज की जरूरतों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में थी।प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आवश्यकता पूरी करने के लिए अनाज की सालाना खरीद बढ़ाने के चलते भी निर्यात पर पाबंदी जारी रही। (BS Hindi)
10 सितंबर 2011
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