July 28, 2011
खाद्य सुरक्षा विधेयक के तैयार किए जा रहे मसौदों में जिस एक बात पर सहमति दिखती है, वह है भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की वृहतर भूमिका। एफसीआई न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद करता है और उसे उचित मूल्य की दुकानों के जरिए तथा खाद्य संबंधी अन्य योजनाओं मसलन विद्यालयों में दोपहर भोजन और आईसीडीएस में बाल पोषण आदि के लिए वितरित करता है। चूंकि इसकी वितरण कीमत खरीद कीमत से भी कम होती है इसलिए एफसीआई पूरी तरह सब्सिडी पर ही निर्भर रहता है। साल दर साल एफसीआई का बजट अनुमान जरूरत से कम ही रह जाता है। इस वर्ष दबाव और बढ़ गया है क्योंकि जबरदस्त पैदावार होने का मतलब है एफसीआई को अधिक मात्रा में अनाज खरीदना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि बाजार में कीमतों का रुझान नकारात्मक होने के चलते किसान अपना अधिकांश अनाज सरकार को ही बेचना चाहेंगे। इसके अलावा सरकार ने गेहूं की कीमतों पर किसानों को बोनस देने की घोषणा की है। यह एक दुष्चक्र है। देश में उत्पादन बढ़ता है, समर्थन मूल्य में इजाफा किया जाता है, भारी मात्रा में सरकारी खरीद की जाती है और सब्सिडी का बोझ भी बढ़ जाता है। इसका महंगाई पर दो तरफा असर पड़ता है। जबरदस्त पैदावार का कमजोर खाद्यान्न कीमतों पर मामूली असर पड़ता है जबकि बढ़ती सब्सिडी का महंगाई में सकारात्मक योगदान होता है। यह सब कुछ ऐसे समय में हो रहा है जबकि बीते कुछ वर्ष से देश में लगातार महंगाई को काबू करने के प्रयास किए जा रहे हैं, खासतौर पर खाद्यान्न महंगाई को। खाद्य सुरक्षा विधेयक की वजह से कीमतों पर दबाव और बढ़ेगा क्योंकि अब सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह हर हाल में पहले से अधिक अनाज खरीद कर रखे। सरकार ने इस बात से इनकार किया है कि एफसीआई नकदी के संकट से गुजर रहा है और इसके बजाय उसने दावा किया है कि एफसीआई ने तो अब तक अंतिम तिमाही के दौरान किए आवंटन को ही पूरा खर्च नहीं किया है। हालांकि उसने इस बात से इनकार नहीं किया है कि इस काम के लिए बजट में अनुमानित धन की अपेक्षा अधिक धन की आवश्यकता होगी। ऐसी चर्चा चल रही है कि एफसीआई को ऋण उपलब्ध कराने वाले बैंकों को ऋण सीमा बढ़ानी चाहिए। अभी यह सीमा 35,000 करोड़ रुपये की है। इस बीच, आरबीआई ने बीते 16 महीनों में ब्याज दरों में 16 दफा इजाफा किया है! इसका भी एफसीआई और उसके सब्सिडी बिल की लागत पर असर पड़ेगा। हाल में संपन्न इंडिया पॉलिसी फोरम में पेश किए गए सार्वजनिक वितरण प्रणाली संबंधी एक प्रपत्र में व्यवस्था में लीकेज की खामियों के अलावा एफसीआई की अक्षमता को भी रेखांकित किया गया। इससे खाद्य कीमतों में महंगाई का दबाव बढ़ता है क्योंकि इस अक्षमता में खाद्यान्न का दुरुपयोग होने जैसी बातें भी शामिल होती हैं। खाद्य सुरक्षा विधेयक एक बेहतर मौका था जिसके जरिए किसानों की मदद के विकल्पों पर विचार हो सकता था और साथ ही साथ गरीबों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराया जा सकता था। खैर, नकदी हस्तांतरण जैसे प्रयोगों के बजाय इस विधेयक में मौजूदा वितरण व्यवस्था की अहम भूमिका है। सन 80 के दशक से ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली की क्षमताओं को लेकर तमाम तरह के अनुमान लगाए जा सकते हैं। हर दशक के दौरान अक्षमता का स्तर बढ़ता गया और हर वर्ष हम इस प्रणाली की भूमिका में इजाफा करते गए! नई समस्याओं के लिए पुराने तरीके के हल लागू करने में हमें दक्षता हासिल होती चली गई, खासतौर पर तब जबकि ये हल अतीत में कोई खास सफल साबित नहीं हुए थे। (BS Hindi)
12 सितंबर 2011
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