19 फ़रवरी 2013
सीटीटी से सिमटेगा जिंस वायदा
शेयर बाजारों में लेनदेन पर कर लगाने से घरेलू बाजार का कारोबार विदेशी बाजारों में चला गया है। प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) लगने के बाद सिंगापुर के एसजीएक्स में सूचीबद्घ निफ्टी वायदा के कारोबार में कई गुनी वृद्घि हुई, जबकि नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) में इसका कारोबार काफी गिर गया। इससे सरकार को साफ संकेत मिलना चाहिए जो कथित तौर पर जिंसों के लेनदेन पर सीटीटी लगाने का मन बना रही है।
देश के शेयर बाजार प्रतिभागी एसटीटी की मुखालफत करते हुए इसे हटाने की मांग कर रहे हैं। वर्ष 2011-12 के दौरान एनएसई ने विदेशी एक्सचेंजों को निफ्टी में ट्रेडिंग का लाइसेंस देकर शुल्क के रूप में 8.19 करोड़ रुपये की कमाई की है। एक्सचेंज ने अपनी सालाना रिपोर्ट में यह जानकारी दी है। इसका यह मतलब हुआ कि एनएसई ने घरेलू बाजार का कारोबार विदेशी बाजारों में स्थानांतरित होने से हुए घाटे की आंशिक भरपाई तो कर ही ली है। बहरहाल, सिंगापुर निफ्टी में कारोबारी मात्रा बढऩे की कुछ अन्य वजहें भी हैं।
सिंगापुर का बाजार खुलने के साथ ही एसजीएक्स निफ्टी में कारोबार शुरू हो जाता है। इस कारण गैर-भारतीय टाइम जोन में कारोबार करने वाले विदेशी निवेशकों को कारोबार के लिए ज्यादा समय मिल जाता है। एसजीएक्स निफ्टी विदेशी निवेशकों (एफआईआई) को डॉलर-रुपये में कारोबार की सहूलियत भी देता है, जिसकी अनुमति भारतीय बाजार में नहीं है। एसजीएक्स निफ्टी के भाव डॉलर में होते हैं और निवेशकों को एसजीएक्स निफ्टी एवं भारत के निफ्टी में एक साथ पोजीशन लेने का मौका मिलता है, लिहाजा वे डॉलर-रुपये में सौदे कर सकते हैं क्योंकि निफ्टी का घरेलू ट्रेडिंग रुपये में होती है। इन वजहों से भी पिछले 5 वर्षों में एसजीएक्स निफ्टी का कारोबार दोगुना से ज्यादा बढ़ गया, जबकि इसी अवधि के दौरान भारत में ज्यादा लेनदेन कर की वजह से एनएसई पर निफ्टी का वायदा कारोबार दो तिहाई घट गया।
सरकार ने डिलिवरी पर 0.125 फीसदी और इंट्राडे इक्विटी कारोबार पर 0.025 फीसदी एसटीटी लगाया है, जो वित्त वर्ष 2005-06 से लागू है। वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) के अध्यक्ष रमेश अभिषेक ने कहा, 'यदि सरकार जिंस वायदा के सौदों पर एसटीटी की तरह सीटीटी लगाती है, तो इस खंड का कारोबार अवैध बाजार या विदेशी बाजारों में चला जाएगा क्योंकि इस कर से सौदों और जोखिम घटाने (हेजिंग) की लागत बढ़ जाएगी।Ó
व्यापारियों का मानना है कि मौजूदा सौदों के इतर जो कारोबार बढ़ रहा है, वह एसजीक्स की तरफ जाता जा रहा है, जहां 20 आधार अंक की मामूली दर से एसटीटी लगाया जाता है। भारत में हालांकि कुल लेनदेन शुल्क 0.469 फीसदी बैठता है, जिसका 26.64 फीसदी एसटीटी है।
इस साल घरेलू जिंस वायदा बाजार का कारोबार हर हाल में मंदा रहा है। पिछले तीन वित्त वर्षों से यह कारोबार 50 फीसदी की दर से बढ़ा था, लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष में अब तक का रोजाना कारोबार 4.23 फीसदी गिरा है। ऐसे में यदि सीटीटी लगाया जाता है तो कारोबार का आकार और घट जाएगा।
आनंद राठी कमोडिटीज की कार्यकारी निदेशक प्रीति गुप्ता ने कहा, 'एसटीटी की वजह से भारत में जो इक्विटी वॉल्यूम का नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई होनी बाकी है क्योंकि एसजीएक्स निफ्टी जैसे विकल्प केवल एफआईआई के लिए हैं, जहां सौदों की लागत बहुत कम है।Ó बहरहाल, एफएमसी ने वित्त मंत्री से कमोडिटी पर सीटीटी न लगाने की गुजारिश की है क्योंकि फिलहाल यह बाजार परिपक्व नहीं हैं।
अभिषेक ने कहा, 'हमारा रुख नहीं बदला है। देश का जिंस वायदा बाजार सीटीटी के लिए तैयार नहीं है।Ó लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई), न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज (नाइमेक्स), शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज (सीएमई) और बर्सा मलेशिया अपने-अपने प्लैटफॉर्म पर भारतीय कॉरपोरेट के हेजिंग बिजनेस को हड़पने के लिए ऐड़ी-चोटी एक कर रहे हैं। ऐसे में यदि सीटीटी लगाया जाता है कि इन विदेशी एक्सचेंजों का मकसद कामयाब हो जाएगा। (BS Hindi)
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें