20 फ़रवरी 2013
शुल्क छूट दे सरकार: टायर उद्योग
मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान टायर उद्योग की तरक्की पर इनपुट लागत के भारी दबाव का तगड़ा असर हुआ है
टायर उद्योग ने ऐसे कच्चे माल के आयात पर लगने वाले शुल्क में पूरी छूट की मांग उठाई है, जिनका उत्पादन घरेलू स्तर पर नहीं होता। इसके साथ-साथ उद्योग ने ऐसे कच्चे माल पर आयात शुल्क में कटौती की भी गुजारिश की है, जिसका घरेलू उत्पादन मांग के मुकाबले बहुत कम है।
ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) के नवनिर्वाचित अध्यक्ष अनंत गोयनका ने आम बजट से पहले वित्त मंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि कच्चे माल के आयात पर भारी शुल्क की वजह से यह उद्योग प्रतिस्पद्र्घा में पिछड़ रहा है।
यह सब ऐसे समय हो रहा है, जब अर्थव्यवस्था के साथ-साथ वाहन उद्योग में मंदी की वजह से टायर उद्योग चुनौतीपूर्ण माहौल का सामना कर रहा है।
टायर उद्योग कच्चे माल के प्रति संवेदनशील होता है और कुल कारोबार का 70 फीसदी कच्चे माल में खप जाता है। गोयनका ने कहा कि इस वित्त वर्ष के दौरान टायर उद्योग की तरक्की पर इनपुट लागत के दबाव का तगड़ा असर हुआ है। प्राकृतिक रबर की कीमतों में हालिया गिरावट से थोड़ी राहत जरूर मिली है, लेकिन दूसरे कच्चे माल की लागत बढऩा वास्तविक खतरा है।
नायलॉन टायर कॉर्ड, रबर केमिकल्स, स्टील टायर कॉर्ड, पॉलिएस्टर टायर कॉर्ड और पॉली ब्यूटाडाइन रबर (पीबीआर) जैसे प्रमुख कच्चे माल का घरेलू उत्पादन खपत के मुकाबले 38 से लेकर 70 फीसदी तक कम है। घरेलू बाजार में इन चीजों की भारी कमी होते हुए भी इनमें से कई के आयात पर 10 फीसदी शुल्क लगता है। एसोसिएशन ने इस तरह के कच्चे माल पर आयात शुल्क आधा करने का अनुरोध किया है।
जिन कच्चे माल का घरेलू उत्पादन बिलकुल नहीं होता, उनमें स्टिरीन ब्यूटाडाइन रबर (टायर ग्रेड) नाम का कृत्रिम उत्पाद, ब्यूटाइल रबर और एथिलीन प्रॉपीलीन डाइन मोनोमर (ईपीडीएम) रबर शामिल है। एसोसिएशन ने इस तरह के कच्चे माल के आयात पर शुल्क छूट की मांग उठाई है।
एटमा का कहना है कि भारत के मुकाबले चीन में टायर उद्योग के ज्यादातर कच्चे माल के आयात पर बहुत कम शुल्क लगता है। इस वजह से चीनी टायर कंपनियां
इस क्षेत्र की भारतीय कंपनियों की तुलना में ज्यादा प्रतिस्पद्र्घी होती हैं, खास तौर पर समान विदेशी बाजारों में। (BS Hindi)
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