21 फ़रवरी 2013
इतना सारा गेहूं कहां रखेगी सरकार!
सरकार ने 2013-14 (अप्रैल-मार्च) के दौरान तकरीबन 4.4 करोड़ टन गेहूं खरीद का जो लक्ष्य रखा है, वह इस साल की खरीद से 15.36 फीसदी अधिक है जिससे भंडारण संबंधी परेशानियां बढ़ सकती हैं। आगामी कुछ महीनों के दौरान देश के खाद्यान्न भंडार में तगड़ा इजाफा होने की संभावना है।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक यदि भंडारों में पड़े अनाज को तेजी से नहीं खपाया जाता है तो 1 जून, 2013 तक देश का खाद्यान्न भंडार तकरीबन 9-9.5 करोड़ टन के स्तर पर पहुंच सकता है। इसके अलावा इस साल गेहूं की बंपर पैदावार होने की संभावना है, इसलिए सरकारी खरीद भी बढ़ेगी। उत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों और मध्य भारत में जाड़े के मौसम की हालिया बारिश की वजह से भी गेहूं की उपज बढ़ सकती है। इससे देश की भंडारण क्षमता पर अतिरिक्त दबाव बन सकता है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) और राज्य स्तरीय एजेंसियों के पास फिलहाल तकरीबन 7.15 करोड़ टन अनाज भंडारण की जगह है, जिसमें से लगभग 1.86 करोड़ टन के लिए ढकी हुई जगह (सीएपी) है।
सरकार के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक फसल वर्ष 2012-13 के दौरान करीब 9.23 करोड़ टन गेहूं की पैदावार होने की उम्मीद है, जो पिछले साल के रिकॉर्ड उत्पादन से थोड़ा ही कम है। मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश 75 फीसदी से ज्यादा गेहूं का उत्पादन करते हैं।
सरकारी अनुमान दर्शाते हैं कि खरीद में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी मध्य प्रदेश में होगी, जहां अगले फसल सीजन में 1.3 करोड़ टन गेहूं खरीद की तैयारी चल रही है जो मौजूदा सीजन की खरीद से लगभग 53 फीसदी अधिक है।
मध्य प्रदेश में यदि वर्ष 2013-14 के लिए गेहूं खरीद लक्ष्य हासिल कर लिया जाता है तो यह हरियाणा को पछाड़ कर पंजाब के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक और सरकारी खरीद वाला राज्य बन जाएगा। उम्मीद जताई जा रही है कि अगले सीजन के दौरान पंजाब में तकरीबन 1.4 करोड़ टन गेहूं की खरीद की जाएगी, जबकि हरियाणा में लगभग 78 लाख टन की।
केंद्र सरकार को भारी मात्रा में गेहूं खरीद ऊंची लागत उठानी पड़ेगी क्योंकि केंद्र सरकार की तरफ से निर्धारित 1,350 रुपये प्रति क्विंटल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 150 रुपये प्रति क्विंटल बोनस देने की घोषणा की गई है। मध्य प्रदेश में गेहूं की कुल खरीद लागत करीब 1,570 रुपये प्रति क्विंटल के आस-पास रहेगी, इस आधार पर कि राज्य सरकार लगभग 4.7 फीसदी स्थानीय कर लगाती है।
प्रख्यात कृषि अर्थशास्त्री एवं कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) के अध्यक्ष अशोक गुलाटी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'पहली बात तो यह है कि मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि जब तमाम पूर्वी राज्यों में धान या चावल की बिक्री एमएसपी से 15-20 फीसदी कम भाव पर हो रही है तो ऐसे में खरीद लक्ष्य निर्धारित करने की जरूरत क्या है। जिन इलाकों में बेहतर तरीके से सरकारी खरीद होनी चाहिए, वहां ऐसा नहीं हो पा रहा है, जबकि जिन राज्यों में भारी-भरकम कर लगाए जाते हैं, वहां की सरकारें ज्यादा खरीद करने में दिलचस्पी ले रही हैं जिसके चलते केंद्र सरकार पर अतिरिक्त बोझ बढ़ रहा है।Ó
उन्होंने कहा कि देश की खाद्यान्न भंडारण क्षमता में तेजी से तकरीबन 1.8 करोड़ टन इजाफा करने की योजना भी धीमी गति से आगे बढ़ रही है। अब तक महज 30 लाख टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता तैयार की गई है।
गुलाटी ने कहा, 'सरकार को फौरन खाद्यान्न के मामले में मौजूदा स्टॉक होल्डिंग सीमा खत्म करनी चाहिए और इस व्यवस्था को कम-से-कम 10 वर्षों के लिए ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए ताकि देश के भंडारण क्षेत्र में निजी निवेशकों का आकर्षण बढ़ाया जा सके। इसके अलावा राज्य सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक करके उन्हें खाद्यान्न पर राज्य स्तरीय कर कम करने का निर्देश देना चाहिए और यदि कोई राज्य अनाज पर 5 फीसदी से अधिक स्थानीय कर लगाता है, तो उस राज्य में सरकारी खरीद रोक देनी चाहिए।Ó उन्होंने कहा कि यदि सरकार अगले कुछ हफ्तों में कुछ कड़े कदम नहीं उठाती है तो गंभीर समस्या खड़ी हो सकती है क्योंकि 2013-14 में चावल भंडार भी बढऩे की उम्मीद है क्योंकि निर्यात कम हुआ है। (BS Hindi)
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