31 अक्टूबर 2011
तौल और माप
अन्तर्राष्ट्रीय प्रणाली की यूनिटों की स्थापना तथा अपने कानूनों को अन्तर्राष्ट्रीय पद्धतियों के अनुरूप बनाने और कुछ कमियों को दूर करने के लिए 1956 के अधिनियम के स्थान पर एक व्यापक कानून माप-तौल मानक अधिनियम, 1976 लाया गया। नए कानून में अन्य बांतों के अलावा वस्तुओं की डिब्बाबंदी के बारे में नियम बनाए गए हैं ताकि उचित व्यापार प्रथाएँ स्थापित हों। डिब्बाबंद वस्तु अधिनियम के प्रावधानों और माप-तौल मानक (पैकेज्ड वस्तु) नियम, 1977 जैसे सम्बद्ध नियम सितंबर 1977 से लागू हैं। पैकेटबंद वस्तुओं के बारे में अधिनियम की व्यवस्थाओं के अनुसार फुटकर बिक्री के लिए पैकेटबंद हर वस्तु पर वस्तु का नाम, उत्पादक या पैकेट बंद करने वाले का नाम और पता, वस्तु की वास्तविक मात्रा, पैकेटबंदी विनिर्माण का महीना, वर्ष और बिक्री मूल्य आदि लिखा होना जरूरी है। खुदरा बिक्री मूल्य की अनिवार्य घोषणा सभी करों सहित एम.आर.पी. के रुप में दी जाती हैं। 17.07.2006 की संशोधित अधिसूचना और नियमों की समीक्षा की गई। उपभोताओं के हितों में नये प्रावधान लागू किये गए हैं। 1. वैट के अंतर्गत शामिल खुदरा विक्रेताओं को बेचे गये चीजों की कीमत एंव भार की लिखित सूचना छापनी होगी। 2. प्रत्येक पैकेट पर नाम, पता, टेलीफोन नं. लिखा होगा ताकि उपभोक्ता अपनी शिकायतों की सूचना दे सकें।
वर्ष 1976 के अधिनियम के प्रावधानों के अंतर्गत उत्पादन शुरू करने से पहले भार और माप उपकरणों के सभी माँडलों की मंजूरी ली जानी चाहिए। तौल और माप (माँडलों की मंजूरी) नियम, 1987 के मानकों के अनुरूप हैं या नहीं। यह नियम 1987 से प्रभावी है।
संविधान के 42वें संशोधन से तौल और मापों के प्रवर्तन का विषय राज्य सूची से समवर्ती सूची में आ गया। देशभर में प्रवर्तन में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए एक केंद्रीय अधिनियम-तौल और माप (प्रवर्तन) अधिनियम, 1985 लागू किया गया। इस अधिनियम में व्यापारिक सौदों व औद्योगिक उत्पादन तथा जन-स्वास्थ्य संरक्षण और मानव सुरक्षा संबंधी कार्यों में प्रयुक्त किए जाने वाले तौल, माप तथा तौल/माप यंत्रों के बारे में प्रभावशाली वैधानिक नियंत्रण के प्रावधान शामिल हैं।
भारत अन्तर्राष्ट्रीय विधि माप विज्ञान संगठन का सदस्य है। इस संगठन की स्थापना वैधानिक माप विज्ञान (तौल और माप) से संबंधित कानूनों में विशव व्यापार में एकरूपता लाने के लिए की गई थी ताकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सुगमता और व्यावहारिक रूप से चल सके।
राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के वैधानिक मानकों का अंशांकन की सुविधा और सेवाएं प्रदान करते हैं। तौल और माप उपकरणों के माडल यानी प्रतिदर्शी अनुमोदन परीक्षण के लिए भी ये मान्यताप्राप्त प्रयोगशालाएं हैं। पूर्वोत्तर राज्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए नौवीं पंचवर्षीय योजना में गुवाहाटी में एक प्रयोगशाला स्थापित करने का काम शुरू किया गया। कार्य लगभग पूरा हो चुका है।
मंत्रालय के अंतर्गत रांची स्थित भारतीय वैधानिक माप विज्ञान संस्थान, माप विज्ञान के कानूनी तथा सम्बद्ध विषयों का प्रशिक्षण देता है। राज्यों के प्रवर्तन अधिकारीयों के अलावा कई अफ़्रीकी, एशियाई और लातिनी अमरीकी देशों के प्रतिनिधि संस्थान द्वारा चलाए जाने वाले कार्यक्रमों में भाग लेते हैं। वर्ष 2005-07 के दौरान 8.1 करोड़ की राशि राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अनुदान के रूप में दी गई। 2007-08 में द्वितीयक मानक भार प्रणाली के 59 सेटों और तौलकांटों की जांच करने वाले के 17 मोबाईल किटों की आपूर्ति पूरी कर ली गई है। संस्थान की गतिविधियों को पुनः केंद्रित करने के लिए ताकि इसका जनादेश ज्यादा प्रभावी तरीके से पूर्ण हो, और इसे उत्कृष्टता का एक केंद्र बनाने के लिए भारतीय प्रबंधन संस्थान में एक अध्याय जोड़ दिया गया है।
महंगाई को लेकर सोनिया चिंतित, थामस से की मुलाकात
25 अक्टूबर 2011
रबी में दलहन पैदावार पांच फीसदी घटने की आशंका
आवंटन - चालू सीजन में दलहन के लिए 80 करोड़ और बढ़ाया गयामांग ज्यादा वर्ष 2011-12 खरीफ और रबी को मिलाकर कुल दलहन उत्पादन 170 लाख टन होने का अनुमान है जबकि देश में दालों की सालाना खपत 185-190 लाख टन की होती है।रकबा घटाएनएफएसएम के तहत दलहन पैदावार में बढ़ोतरी के लिए हर साल करीब 400 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किए जा रहे हैंखरीफ में कई राज्यों में किसानों ने कपास, सोयाबीन की ज्यादा बुवाई की थी जिससे दालों के बुवाई क्षेत्रफल में 10.2 फीसदी की कमी आईराष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत हर साल दलहन उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए सरकार करीब 400 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च कर रही है। चालू रबी सीजन में इसमें करीब 80 करोड़ रुपये की और बढ़ोतरी की गई है लेकिन इसके बावजूद दालों की पैदावार में पांच फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2011-12 में रबी सीजन में दलहन की पैदावार पांच फीसदी घटकर 102.7 लाख टन ही होने का अनुमान है जबकि वर्ष 2010-11 रबी सीजन में दलहन की पैदावार 109.7 लाख टन की हुई थी। एनएफएसएम के तहत गेहूं, चावल और दलहन पैदावार में बढ़ोतरी के लिए हर साल करीब 1,200 करोड़ रुपये अतिरिक्त खर्च किए जा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि खरीफ सीजन में कई राज्यों में किसानों ने कपास और सोयाबीन की ज्यादा बुवाई की थी जिससे दालों के बुवाई क्षेत्रफल में 10.2 फीसदी की कमी आई थी। खरीफ सीजन में दलहन की कुल बुवाई 111.74 लाख हेक्टेयर में ही हुई थी जबकि पिछले साल खरीफ सीजन में 121.92 लाख हेक्टेयर में दालों की बुवाई हुई थी।
उन्होंने बताया कि खरीफ में दलहन की बुवाई में आई कमी की भरपाई के लिए केंद्र सरकार ने एनएफएसएम के तहत दलहन की पैदावार में बढ़ोतरी के लिए प्रमुख उत्पादक राज्यों को अतिरिक्त 80 करोड़ रुपये के आवंटन का फैसला किया है। लेकिन इसके बावजूद भी दालों की पैदावार रबी में पिछले साल की तुलना में पांच फीसदी घटने का अनुमान है। खरीफ में दालों की पैदावार घटकर 64.3 लाख टन होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल खरीफ सीजन में 71.2 लाख टन दालों का उत्पादन हुआ था।
वर्ष 2011-12 खरीफ और रबी को मिलाकर कुल दलहन उत्पादन 170 लाख टन होने का अनुमान है जबकि देश में दालों की सालाना खपत 185-190 लाख टन की होती है। ऐसे में चालू सीजन में दलहन के आयात में और बढ़ोतरी होने की संभावना है। इससे घरेलू बाजार में दालों की कीमतों पर भी असर पडऩे की आशंका है। (Business Bhaskar....R S Rana)
धनतेरस से पहले सोने की खरीददारी बढ़ी
परंपरा के साथ निवेश का त्योहार भी बन गया धनतेरस
पिछले साल धनतेरस पर देश में करीब 800 करोड़ रुपये का सोना बिका था, जो इस साल एक हजार करोड़ रुपये हो सकती है। इस एक वजह गोल्ड ईटीएफ की बढ़ती लोकप्रियता है। देश में फिलहाल 11 एसेट मैनेजमेंट कंपनियां कंपनियां गोल्ड उत्पाद बेच रही हैं। गोल्ड ईटीएफ कारोबार 11 गोल्ड ईटीएफ और 3 गोल्ड फंड ऑफ फंड (एफओएफ) ऑफर करती हैं।
कंपनियों का मानना है कि इस वर्ष धनतेरस पर गोल्ड ईटीएफ की मांग पिछले वर्ष की अपेक्षा तीन गुना ज्यादा हो सकती है। ईटीएफ उत्पाद उपलब्ध कराने वाली कंपनियां इसे उपहार के तौर पर भी प्रचारित कर रही हैं। उपहार के रूप में एक ग्राम गोल्ड ईटीएफ आप किसी मित्र या रिश्तेदार को दे सकते हैं। कंपनियां अपने कर्मचारियों को गिफ्ट स्वरूप भी गोल्ड ईटीएफ उपलब्ध करा रही हैं।
एसबीआई म्यूचुअल फंड के वरिष्ठ अधिकारी मिराज ने बताया कि धनतेरस पर गोल्ड ईटीएफ की मांग में जोरदार वृद्धि की उम्मीद की जा रही है। पहले जहां लोग इक्विटी आधारित म्यूचुलअ फंड की मांग करते थे, वहीं पिछले कुछ वर्षो में धनतेरस पर गोल्ड ईटीएफ एवं गोल्ड म्यूचुअल फंड की मांग अधिक रही। ग्लोब कैपिटल के वाइस प्रेसिडेंट अविनाश के मुताबिक गोल्ड ईटीएफ 2002-03 में पहली बार आए और अब पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो चुके हैं। (hindustan Hindi)
गोल्ड ईटीएफ में दस गुना वॉल्यूम
17 अक्टूबर 2011
भविष्यवाणी से इतर मॉनसून का सफर
मॉनसून के पूर्वानुमान गलत साबित होने के लिए प्रशांत महासागर के ऊपर ला नीना मौसम चक्र बनने को जिम्मेदार बताते हुए भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने स्वीकार किया कि 2011 में दक्षिणी-पश्चिमी मॉनसून के दीर्घकालीन अनुमान वास्तविक बारिश से कम रहे और इसलिए ये सटीक नहीं थे।इस साल मॉनसून के पूर्वानुमान में अपनी गलती स्पष्ट रूप से स्वीकार करते हुए देश में मौसम के पूर्वानुमान लगाने वाले सर्वोच्च संस्थान ने कहा कि जून से सितंबर तक के अंतिम दो महीनों के लिए जारी किए गए पूर्वानुमान विशेष रूप से गलत साबित हुए।देश में इस साल पूरे सीजन के दौरान वास्तविक बारिश दीर्घकालीन औसत (एलपीए) का करीब 101 फीसदी रही। जबकि मौसम विभाग के पूर्वानुमान में कहा गया था कि मॉडल गलती के कारण 4 फीसदी ऊपर-नीचे सहित इस साल बारिश एलपीए का 95 फीसदी यानी सामान्य से कम रह सकती है। संयोग से दूसरा पूर्वानुमान 21 जून को जारी किया गया, जब तक मॉनसून देश के ज्यादातर हिस्से तक पहुंच चुका था। दूसरे पूर्वानुमान में तय की गई गलती सीमा (एरर लिमिट) से वास्तविक बारिश 2 फीसदी अधिक रही। आश्चर्यजनक रूप से भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) द्वारा 19 अप्रैल को जारी किया गया पहले चरण का पूर्वानुमान दूसरे पूर्वानुमान से ज्यादा सही प्रतीत होता है, क्योंकि बारिश पहले पूर्वानुमान की सीमा में ही रही।भारतीय मौसम विभाग ने दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून के बारे मेें अपनी सीजन की अंतिम रिपोर्ट में कहा है कि '2011 में दक्षिणी पश्चिमी मॉनसून के लिए जारी किए गए दीर्घकालीन पूर्वानुमान वास्तविक बारिश से कम थे और इसलिए बहुत सटीक नहीं थे।'न केवल समग्र बल्कि भारतीय मौसम विभाग के माहवार और क्षेत्रवार जारी किए गए पूर्वानुमान अपने रास्ते से भटक गए और कुछ मामलों में तो यह गलती की सीमा को भी पार गए। भारतीय मौसम विभाग ने कहा था कि जुलाई, अगस्त और सितंबर में बारिश क्रमश: एलपीए का 93 फीसदी, 94 फीसदी और 90 फीसदी रहेगी, जिसमें मॉडल की खामी के चलते जुलाई-अगस्त में बारिश 9 फीसदी और सितंबर में 15 फीसदी ऊपर-नीचे हो सकती है। लेकिन वास्तव में जुलाई में वास्तविक बारिश एलपीए की 85 फीसदी रही, जबकि अगस्त और सितंबर में यह क्रमश: एलपीए की 110 और 106 फीसदी रही। कहने का मतलब है कि भारतीय मौसम विभाग ने जुलाई में बारिश के पूर्वानुमान अधिक लगाया जबकि अगस्त और सितंबर में कम कर दिया। क्षेत्रवार भारतीय मौसम विभाग ने कहा था कि उत्तर पश्चिमी भारत में उसका पूर्वानुमान गलती की सीमा से 2 फीसदी अधिक और उत्तर पश्चिम में एक फीसदी कम था। हालांकि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में वास्तविक बारिश पूर्वानुमान में वर्णित गलती सीमा से 7 फीसदी अधिक रही। केवल दक्षिणी भारत में बारिश मौसम विभाग द्वारा पूर्वानुमानित सीमा में रही। (BS Hindi)
स्टॉकिस्टों पर सख्ती से दलहन में 10 फीसदी की गिरावट
खरीफ सीजन के दौरान दलहन फसलों का रकबा घटने की वजह से उत्पादन भी करीब 10 फीसदी कम होने का अनुमान है। त्योहारी सीजन के चलते मांग भी अच्छी है। ऐसे में उत्पादन घटने और मांग में तेजी के बावजूद पिछले एक महीने में लगभग सभी दालों की कीमतों में 10 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है। इसकी वजह सरकार द्वारा तय की गई स्टॉक सीमा और सटोरियों पर प्रशासन की तिरछी नजर को माना जा रहा है। उत्पादन कम होने की आशंका के बावजूद पिछले एक महीने से दलहन की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है। एक महीने के अंदर हाजिर बाजार में चना करीब 10 फीसदी गिरकर 3188 रुपये प्रति क्विंटल पर आ चुका है। वायदा बाजार में तो हालात और भी खराब हैं। एनसीडीईएक्स में चना (अक्टूबर) करीब 14 फीसदी गिरकर 2969 रुपये प्रति क्विंटल पहुंच चुका है। चने की तरह ही दूसरे प्रमुख दलहन में गिरावट देखी जा रही है। अरहर की कीमतें 10 फीसदी गिरकर 3000 रुपये प्रति क्ंिवटल और मूंग करीब 8 फीसदी गिरकर 2900 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास पहुंच चुका है। उत्पादन कम होने के बावजूद कीमतों में गिरावट की मुख्य वजह स्टॉक सीमा तय किया जाना बताया जा रहा है। ऐंजल ब्रोकिंग की नलिनी राव कहती हैं कि राजस्थान सरकार ने कुल दलहन की स्टॉक सीमा 500 टन से 550 टन कर दी, लेकिन इसमें चने का स्टॉक 250 टन और दूसरे दालों की स्टॉक सीमा 300 टन तय कर दी। जिसके कारण कारोबारियों को अपना माल बाजार में बेचना पड़ा रहा है। नई फसल भी बाजार में आने लगी है, जिससे कीमतें गिर रही हैं। हालांकि अभी भी कीमतें पिछले साल की अपेक्षा ज्यादा हैं।खरीफ सीजन की बुआई खत्म हो चुकी है और रबी सीजन की बुआई शुरू हो गई है। खरीफ सीजन में दलहन फसलों का रकबा करीब 9 फीसदी घटा है, जिससे उत्पादन में लगभग 10 फीसदी की कमी आने की आशंका है। कृषि मंत्रालय से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस बार खरीफ सीजन में दलहन फसलों का रकबा 110.14 लाख हेक्टेयर ही पहुंच सका है सरकार द्वारा जारी पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार खरीफ सीजन में दलहन का कुल उत्पादन 64.3 लाख टन रहने वाला है जबकि पिछले साल 71.2 लाख टन दलहनों का उत्पादन हुआ था। सरकार की निगाहें अब रबी सीजन पर लगी हैं। रबी सीजन में दलहन का रकबा बढ़ाने के लिए सरकार ने विशेष योजना भी शुरू किया है। जिसके तहत प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों में रबी सीजन में दलहनों का रकबा बढ़ाने के लिए सरकार ने 80 करोड़ रुपये का बजट बनाया है।दलहन फसलों पर नजर रखने वाली कृषि विशेषज्ञ वेदिका नार्वेकर मानती हैं कि अच्छी बारिश की वजह से रबी सीजन में चने और मटर जैसी प्रमुख दलहन फसलों का रकबा बढ़ेगा और फसल भी अच्छी रहेगी। पिछले साल रबी सीजन के दौरान दलहन का कुल रकबा 148.81 लाख हेक्टेयर था और उत्पादन 109 लाख टन हुआ था। लेकिन इस बार रकबे में बढ़ोतरी हो सकती है।दलहन वर्ष 2011-12 के दौरान सरकार ने कुल 170 लाख टन दलहन उत्पादन होने का अनुमान लगाया है जबकि पिछले साल 180.9 लाख टन दलहन का उत्पादन हुआ था। बाजार जानकार कहते हैं कि इस समय मंडियों में दलहनों का स्टॉक अधिक होने की वजह से फिलहाल कीमतें नहीं बढऩे वाली। साथ ही आने वाले समय में भी कीमतों में बहुत ज्यादा गरमी नजर आने वाली नहीं हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह अगले छह महीनों में कई राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। ऐसे में सरकार सटोरियों पर कड़ी नजर रखे हुए हैं क्योंकि कीमतें बढ़ाकर सरकार जनता को और नाराज नहीं करना चाह रही है। (BS Hindi)
कीमतें बढ़ीं, पर नहीं घटा उत्साह
सोने में निवेश करने वाले निवेशकों को निराश नहीं होना पड़ा है। यही वजह है कि साल दर साल सोने की कीमतें बढऩे के बावजूद मांग में कमी नहीं आ रही है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता की चलते निवेश के दूसरे विकल्पों में जोखिम बढ़ता जा रहा है और हाल में सोने की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया है। इन परिस्थितियों में सोने में निवेश करना किस हद तक सही होगा। इस मुद्दे पर वल्र्ड गोल्ड काउंसिल केप्रबंध निदेशक (भारत एवं पश्चिम एशिया) अजय मित्रा से सुशील मिश्र ने बात की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश : / October 16, 2011
सोने की कीमतें काफी बढ़ी हैं, जिससे यह आम आदमी की पहुंच से दूर होता जा रहा है?इस बात से मैं सहमत नहीं हूं। अगर ऐसा होता तो सोने की सभी श्रेणियों की मांग नहीं बढ़ती। इस साल जनवरी में प्रति 10 ग्राम सोने की औसत कीमत 20,317 रुपये थी, जो अब तक 28 फीसदी बढ़कर 26,172 रुपये हो गई है। इसके बावजूद चालू वर्ष की पहली छमाही (जनवरी-जून) में सोने की मांग में 22 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस दौरान कुल 540.10 टन सोने का आयात हुआ, जबकि पिछले साल की समान अवधि के दौरान 443.80 टन सोने का आयात हुआ था। इसमें 346 टन सोना ज्वैलरी और 194.10 टन निवेश के दूसरे विकल्प (सिक्के, बार, ईटीएफ) के तौर इस्तेमाल हुआ है।बाजार में अनिश्चिता का माहौल है, जबकि सोने की कीमतें काफी ज्यादा हैं। क्या इसका कुछ फर्क निवेशकों के रुझान पर दिखाई दे रहा है?सोने में निवेश करने वालों को निराश नहीं होना पड़ा है। पिछले 10 सालों से सोने में निवेश करने वालों को हर साल औसतन 24 फीसदी रिटर्न प्राप्त हुआ है। जबकी निवेश के दूसरे विकल्पों में ऐसा नहीं देखने को मिला है। यही वजह है कि सोने के प्रति निवेशकों का विश्वास साल दर साल बढ़ रहा है। कीमतें बढऩे की वजह से लोगों की सोच बदल गई है। अब लोग ईटीएफ के जरिये सोने में निवेश करना ज्यादा पसंद कर रहे हैं, जबकि खुदरा निवेशक सोने के बार या सिक्के खरीद रहे हैं। क्योंकि जब लोगों को आभूषण बनवाने होते हैं तो एक साथ पूरा सोना खरीदना आम आदमी के लिए संभव नहीं होता है।सोने के प्रति चीनी लोगों का लगाव बढ़ता जा रहा है, जिसको देखते हुए कहा जा रहा है कि चीन सोने की खरीदारी के मामले में भी भारत को पीछे छोड़ देगा?इस साल की दूसरी तिमाही में सोने की कुल वैश्विक मांग 919.8 टन रही। इस दौरान भारत ने 248.3 टन और चीन ने 166 टन सोने का आयात किया। ये दोनों देश सोने के सबसे बड़े बाजार हैं। भारत इस दृष्टि से सबसे आगे है। 2010 में सोने में निवेश करने की रफ्तार चीन की थोड़ी ज्यादा थी, लेकिन कुल निवेश में वह भारत से काफी पीछे था। भारतीयों के लिए सोना निवेश के साधन से पहले संस्कृति से जुड़ा हुआ है, जिसकी वजह से फिलहाल भारत को पीछे छोड़ पाना किसी भी देश के लिए मुश्किल है। चीन की प्रति व्यक्ति आय और जनसंख्या दोनों भारत से ज्यादा हैं, ऐसे में वह भारत से आगे निकलता है तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। दूसरी तिमाही के आकड़ों पर नजर डालें तो पिछले वर्ष की सामान्य अवधि की अपेक्षा भारतीयों ने इस बार सोने में 38 फीसदी ज्यादा निवेश किया है जबकि चीन में 28 फीसदी निवेश बढ़ा है।इस साल सोने के रिकॉर्ड आयात की बात कही जा रही है। इसमें कितनी सच्चाई है?अभी तक हमारे पास आयात और बिक्री के छमाही आंकड़े उपलब्ध हैं। 2011 की पहली छमाही के दौरान 540.1 टन ( पहली तिमाही में 291.8 और दूसरी तिमाही में 248.3 टन) सोने का आयात हुआ है। दूसरी छमाही में त्योहारी और शादी विवाह का सीजन होने की वजह से उम्मीद की जा रही है कि इस बार सोने का आयात 1,000 टन को पार कर जाएगा। इस साल देश में मॉनसून बेहतर होने की वजह से कृषि उत्पादन भी बढऩे की उम्मीद है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में भी सोने की मांग तेजी से बढ़ सकती है।सोने की कीमतों को आप कहां देखते हैं?कल कीमतें क्या होंगी? यह बताना हमारी नीतियों में शामिल नहीं है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चिता और बाजारों में मंदी की आहट से लोग परेशान हैं। रियल एस्टेट की हालात खस्ता है। ऐसे माहौल में लोग जोखिम नहीं लेना चाह रहे हैं, जिससे पूरी दुनिया में सोने के प्रति निवेशकों की चाहत बढ़ती जा रही है। जबकि सोने की मात्रा सीमित है। मांग की अपेक्षा आपूर्ति कम रहने की संभावना है। ऐसे में कीमतों को बढऩा लगभग तय है। देश के अलग-अलग हिस्सों में सोने की कीमतों में अंतर देखने को मिलता है। इसकी कीमतों में समानता कैसे आएगी?अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतों में समानता के बावजूद भारत में हर राज्य और महानगर में सोने की कीमतें अलग-अलग होती हैं। क्योंकि राज्यों के कर ढांचों में फर्क है। इसके अलावा महानगर पालिकाओं द्वारा लगाए जाने वाले कर में भी विभिन्नता होती है। लेकिन जीएसटी आने के बाद पूरे देश में सोने की कीमतें एक समान्य हो जाएगी।सोने के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए डब्ल्यूजीसी की तरफ से क्या कदम उठाए गए हैं?सोने के प्रति छोटे निवेशकों को आकर्षित करने के लिए हमने एक जागरुकता अभियान शुरू किया है, जो 2 अक्टूबर से धनतेरस तक चलेगा। इसके तहत हम लोगों से अपील कर रहे हैं कि इस त्योहारी सीजन में आप जब खरीदारी करने जाएं तो पैसा खर्च करने नहीं, बल्कि निवेश करने जाएं। (BS Hindi)
खाद्य सुरक्षा में रोजगार
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने खाद्य सुरक्षा विधेयक, 2011 का जो मसौदा पेश किया है वह प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएमईएसी) के मसौदे के बजाय सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के मसौदे के ज्यादा समान है। इसके बावजूद सार्वजनिक चर्चा के लिए पेश इस विधेयक का स्वागत किए जाने की उम्मीद कम ही है। एनएसी के मसौदे में मुख्य प्रस्ताव यह है कि प्रस्तावित कानून भारी सब्सिडी पर अनाज मुहैया कराने से आगे निकलकर अभावग्रस्त लोगों को पका भोजन भी मुहैया कराएगा। ऐसे लोगों में गरीब बच्चे, गर्भवती महिलाएं, स्तनपान कराने वाली मांएं और ऐसे लोग भी शामिल होंगे जिनके पास रहने का ठिकाना तक नहीं है। यह काम बगैर लागत और व्यावहारिक कठिनाइयों का खयाल रखे किया जाएगा। अगर सरकार खाद्यान्न अथवा भोजन की आपूर्ति करने में असमर्थ रहती है तो विधेयक में नकद क्षतिपूर्ति का भी प्रावधान है। आश्चर्य की बात नहीं कि इस सारी कार्रवाई का वित्तीय बोझ राज्यों पर डाला गया है! इस बात को देखते हुए कि देश के अधिकांश गरीब उन प्रांतों में रहते हैं जिनके पास पर्याप्त वित्तीय संसाधन नहीं हैं, ऐसे में स्पष्ट नहीं है कि नकदी की तंगी से जूझ रहे राज्य कैसे इसे हकीकत में बदलेंगे। अनुमान है कि 75 फीसदी ग्रामीण और 50 फीसदी शहरी परिवार इस विधेयक के प्रावधानों के दायरे में आएंगे। इनमें से 46 फीसदी ग्रामीण और 28 फीसदी शहरी परिवारों को प्राथमिकता की जरूरत होगी। प्राथमिकता प्राप्त लाभार्थियों को प्रति माह प्रति व्यक्ति 7 किलोग्राम अनाज तथा सामान्य लाभार्थियों को 3 किलो अनाज दिया जाएगा। कृषि और खाद्य मंत्री ने इन प्रस्तावों पर आपत्ति जताई थी। क्योंकि अनाज की आवश्यकता को देखते हुए ऐसे समय में हालत खराब हो सकती है जब मॉनसून की समस्या जैसे कारणों से देश में खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट आ जाती है। मसौदा विधेयक में प्राथमिकता वाले परिवारों को चावल 3 रुपये प्रति किलो, गेहूं 2 रुपये प्रति किलो तथा दाल 1 रुपये प्रति किलो की दर पर मुहैया कराने का प्रस्ताव है। सामान्य परिवारों के लिए यह दर न्यूनतम समर्थन मूल्य के 50 फीसदी से अधिक नहीं होगी। कई राज्यों में गरीबों को पहले ही 2 रुपये प्रति किलो की दर पर चावल मिल रहा है। तमिलनाडु में इसकी दर 1 रुपये प्रति किलो है। इतना ही नहीं विधेयक में प्राथमिकता वाले परिवारों की पहचान के मानक भी स्पष्ट नहीं किए गए हैं। इसका निर्धारण केंद्र पर छोड़ दिया गया है। इससे राज्यों में चिढ़ पैदा हो सकती है क्योंकि उन्हें लाभार्थियों की पहचान करके उन तक अन्न या भोजन पहुंचाना होगा। मसौदे में कुछ स्वागतयोग्य उपाय सुझाए गए हैं। खासतौर पर नकद राशि देने के मामले में किसी महिला को परिवार का मुखिया बनाना और इसके क्रियान्वयन के सामाजिक अंकेक्षण की व्यवस्था। इन बातों के अलावा यह भी सच है कि नई योजना का क्रियान्वयन उसी अक्षम और लीकेज की आशंका वाली लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस)के जरिए करना होगा। टीपीडीएस में सुधार के जरिए गड़बडिय़ां रोकने की पहल बहुत कम राज्यों ने की है। मसौदा विधेयक में विशालकाय अतिरिक्त बुनियादी ढांचा चाहा गया है जिसमें राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आयोग, राज्य खाद्य सुरक्षा आयोग और जिला स्तर पर खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना शामिल है। खाद्य वितरण को लेकर नौकरशाही का ऐसा विस्तार और अधिक रोजगार सृजित करेगा और सार्वजनिक खर्च में भी इजाफा करेगा। यह देखा जाना है कि क्या यह जरूरतमंदों के लिए खाद्य सुरक्षा भी मुहैया करा पाएगा। (BS Hindi)
15 अक्टूबर 2011
Nafed stops paying interest on loansNew Delhi: In a world where commodity trade is earning handsome returns, the country’s premier commodity procureme
Last fiscal, the cooperative’s debt mounted to R1,726 crore while turnover shrank 65% to R2,008 crore. Nafed’s annual operating income was just R48 crore, while its interest service payment was R132 crore, meaning it had to dip into other funds to make good the sum.
Nafed procures crop from farmers at minimum support price (MSP) during low-price regimes, and earns a margin by selling at higher prices. However, with prices of most agri-commodities ruling above MSP, this market intervention programme has come to a halt – the government does not need to deploy procurement agencies to help farmers making their operations unsustainable.
The agency recently petitioned the government to convert R1,200-crore debt into equity and acquire a 51% stake, which will transform the cooperative to a public sector company under the agriculture ministry. The request is with the finance ministry.
While its turnover has plummeted, fixed costs like salaries and interest have not. This fiscal, the cooperative will have to renege on its salary bill and even interest dues, unless the government steps in.
In the last few years, Nafed has been a major player in the market intervention programme, procuring pulses, oilseeds, copra and cotton on behalf of the government when prices fell below MSP. This rabi season, the federation purchased a small quantity of gram under the price support scheme.
“We are hopeful of taking up market intervention scheme on behalf of government for cotton crop this kharif season,” another official told FE.
Nafed was recently criticised by the Karnataka Lokayukta for its decision to provide bank guarantee to private parties to make iron ore exports. (FE)
नाफेड धोखाधड़ी मामले में आयकर आयुक्त सहित पांच गिरफ्तार
सीबीआई ने इस धोखाधड़ी मामले में राजवंश के साथ कथित मिलीभगत करने वाले चार अन्य लोगों को भी गिरफ्तार किया है जिनमें रोशन लाल ललित मोहन के मालिक ललित मोहन, जेनिथ माइनिंग के संयुक्त प्रबंध निदेशक विनोद गुप्ता, रिलायंस पालीक्रीट के सीएमडी एसके जैन और आईटीएम इंपेक्स के सीईओ दौलत सिंह चौहान शामिल हैं।
सीबीआई का दावा है कि मोहन ने नाफेड को 59 करोड़ रुपये का चूना लगाया, जबकि गुप्ता ने कथित तौर पर 90 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की। जैन और सिंह पर कथित तौर पर नाफेड को 18.33 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने का आरोप है।(jansatta)
टाई-अप व्यापार में नाफेड को लग रहा है चूना
इसमें से दो कंपनियों दिल्ली की अर्थटेक इंटरप्राइसेस और मुंबई की स्वरूप ग्रुप ऑफ कंपनी पर नाफेड का 782.13 करोड़ रुपये बकाया हैं। संस्था को इस व्यापार द्वारा 2003-04 से 2005-06 के बीच 88.38 करोड़ रुपये का लाभ हुआ था। इस व्यापार में नाफेड ने कुल 62 कंपनियों के पब्लिक-प्राइवेट मॉडल के अंनुसार साझेदारी की थी। वर्ष 2003 में शुरू किये गये इस व्यापार में नाफेड ने कुल 3962.24 करोड़ रुपये का निवेश किया था। जिसके लिए उसने व्यावसायिक बैंको से कर्ज भी लिया था।
टाई-अप व्यापार के तहत नाफेड ने इन कंपनियों को आयात-निर्यात के लिए अग्रिम भुगतान किए थे। जिसमें से कई कंपनियों ने कोई आयात-निर्यात नही किया।
नाफेड को इस समय 27 कंपनियों से बकाया की वसूली करनी है। वित्त वर्ष 2007-08 में संस्था के कुल कारोबार में भी गिरावट आई है। नाफेड के चेयरमैन बिजेन्द्र सिंह ने कारोबार में इस कमी का मुख्य कारण टाई-अप व्यापार और प्राइस सपोर्ट स्कीम (पीएसएस)को बताया है। (Business Bhaskar )
नाफेड को उबारने के लिए सरकार की कड़ी शर्तें
14 अक्टूबर 2011
एक माह में ही डेढ़ लाख टन गेहूं का निर्यात
बांग्लादेश और खाड़ी देशों की आयात मांग बढऩे से महीने भर में ही डेढ़ लाख टन गेहूं की शिपमेंट हो चुकी है। गेहूं निर्यात के सौदे 274-285 डॉलर प्रति टन (एफओबी) के आधार पर हो रहे हैं। रुपये के मुकाबले डॉलर की मजबूती से निर्यातकों को अच्छा फायदा मिल रहा है। केंद्र सरकार ने 9 सितंबर को गेहूं के निर्यात पर लगी रोक को हटा लिया था। एम संस इंटरनेशनल लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बांग्लादेश और खाड़ी देशों को कंटेनर के माध्यम से गेहूं की शिपमेंट हो रही है। कंटेनर से भाड़ा कम होने के कारण अच्छे पड़ते लग रहे हैं। उधर रुपये के मुकाबले डॉलर भी मजबूत है। इसीलिए महीने भर में करीब डेढ़ लाख टन गेहूं की शिपमेंट हो चुकी है। अभी हाल ही में कंपनी ने बांग्लादेश के लिए 50,000 टन गेहूं का निर्यात सौदा 274.1 डॉलर प्रति टन की दर से किया है। परवीन कॉमर्शियल कंपनी के डायरेक्टर नवीन कुमार ने बताया कि जब तक डॉलर मजबूत है निर्यातकों को बराबर पड़ते लगते रहेंगे। निर्यातक गुजरात से कांडला बंदरगाह पहुंच सौदे 1,160-1,170 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कर रहे हैं। प्राइवेट व्यापारियों के पास गेहूं का स्टॉक अच्छा है। गुजरात में वेयरहाउस डिलीवरी गेहूं का भाव 1,100-1,110 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। जबकि बंगलुरू पहुंच गेहूं का भाव 1,270 से 1,300 रुपये प्रति क्विंटल है।ऑस्ट्रेलिया व्हीट बोर्ड (एबीडब्ल्यू) के भारत में एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार द्वारा गेहूं का खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) में भाव घटाए जाने से खुले बाजार में भी दाम कम हुए है। जिससे निर्यातकों को पड़ते लग रहे है। बांग्लादेश के लिए भारत से 274 से 285 डॉलर प्रति टन की दर से निर्यात सौदे हो रहे हैं। निर्यातक काकीनाड़ा बंदरगाह पर 1,300-1,310 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद कर रहे हैं। गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश से निर्यातकों को पड़ते लग रहे हैं।केंद्रीय पूल में एक सितंबर को गेहूं का 336.21 लाख टन का बंपर स्टॉक बचा हुआ है जबकि रबी में गेहूं की बुवाई के लिए स्थिति एकदम अनुकूल है। कृषि सचिव पी. के. बसु के अनुसार मौसम फसल के अनुकूल रहा तो वर्ष 2012 में गेहूं का रिकार्ड उत्पादन 860 लाख टन होने का अनुमान है। बात पते की:- सरकार द्वारा गेहूं का खुले बाजार बिक्री योजना में भाव घटाए जाने से खुले बाजार में भी दाम कम हुए है। इससे निर्यातकों को पड़ते लग रहे (Business Bhaskar...R S Rana)
पीक सीजन के बावजूद रबर मजबूत
नेचुरल रबर के उत्पादन का पीक सीजन होने के बावजूद कीमतों में तेजी की संभावना है। चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों (अप्रैल से अगस्त) के दौरान नेचुरल रबर का घरेलू उत्पादन 3.11 लाख टन का हुआ है जबकि इस दौरान खपत 4.02 लाख टन की हुई है। घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की कुल उपलब्धता मांग के मुकाबले कम है जबकि रुपये के मुकाबले डॉलर मजबूत होने से आयातित रबर के दाम भी ऊंचे है। घरेलू बाजार में नेचुरल रबर के दाम 211-214 रुपये प्रति किलो हैं। हरिसंस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बताया कि नेचुरल रबर के उत्पादन का पीक सीजन शुरू हो गया है जिससे उत्पादन तो बढ़ रहा है लेकिन इसके मुकाबले मांग ज्यादा है। इसीलिए घरेलू बाजार में नेचुरल रबर की उपलब्धता मांग के मुकाबले कम बनी हुई है जिससे तेजी की संभावना है। अगस्त महीने में नेचुरल रबर का उत्पादन 71,200 टन का हुआ जबकि इस दौरान मांग 77,000 टन की रही। नेचुरल रबर का आयात भी अगस्त महीने में घटकर 14,060 टन का हुआ है जबकि पिछले साल अगस्त में इसका आयात 24,209 टन का हुआ था। ऑटोमेटिव टायर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटीएमए) के महानिदेशक राजीव बुद्धिराजा ने बताया कि इस समय टायर निर्माता कंपनियों की मांग कुछ कम है लेकिन आगामी दिनों में बढऩे की संभावना है। इसीलिए पीक सीजन के बावजूद नेचुरल रबर की कीमतों में तेजी की ही उम्मीद है। चालू महीने में कोट्टायम में नेचुरल रबर की कीमतों में चार से पांच रुपये प्रति किलो की तेजी आई है।
बुधवार को रबर का भाव बढ़कर 211-214 रुपये प्रति किलो हो गया। उधर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बुधवार को नेचुरल रबर का भाव 208 रुपये प्रति किलो रहा। रबर मर्चेंट एसोसिएशन के सचिव अशोक खुराना ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम तेज होने के कारण आयात कम हो रहा है। जबकि रबर बोर्ड के अनुसार वित्त वर्ष 2010-11 में नेचुरल रबर का उत्पादन 8.61 लाख टन का हुआ है जबकि इस दौरान खपत 9.47 लाख टन की हुई है ऐसे में करीब 86,000 टन की उपलब्धता कम रही। चालू साल में खपत में और भी बढ़ोतरी होने की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
कीटनाशक का आयात बंद करने का निर्देश
नई दिल्ली October 10, 2011 |
कृषि रसायन बनाने वाली स्विटजरलैंड की कंपनी सिनजेंटा की भारतीय इकाई को कृषि मंत्रालय जल्द ही कीटनाशक इमामेक्टिन बेनजोएट का आयात रोकने और इसका विपणन बंद करने का निर्देश देगा।
मंत्रालय के अधिसूचना जारी करने से पिछले चार वर्ष से कंपनी और मंत्रालय के बीच चला आ रहा टकराव खत्म हो जाएगा। कृषि मंत्रालय ने 2007 में सिनजेंटा पर आरोप लगाया था कि यह कृषि मंत्रालय की पंजीकरण समिति से ली गई कीटनाशकों की स्वीकृति से अधिक खेप का आयात बिना वैध मंजूरी के कर रही है। हाल के वर्षों तक घरेलू कंपनियों द्वारा कम कीमत वाले संस्करण की बाजार में बिक्री शुरू नहीं करने तक 'एमामेक्टिन बेन्जोएट 5 परसेंट' की बिक्री में सिनजेंटा की एकाधिकारात्मक स्थिति बनी हुई थी। उद्योग ने सिनजेंटा ब्रांड की कीमत 100 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान लगाया है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस घटनाक्रम की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री शरद पवार पहले ही अपना आदेश जारी कर चुके हैं और कानून मंत्रालय द्वारा इसकी जांच के बाद इसकी अधिसूचना जल्द ही जारी की जा सकती है। कई बार कोशिश के बावजूद सिनजेंटा के अधिकारी इस पर टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो सके। कंपनी ने यह कहते हुए अपनी गलती स्वीकार कर ली है कि उसने इस उम्मीद के साथ उत्पाद का आयात शुरू किया था कि जल्द इसके लिए पंजीकरण प्रमाण-पत्र हासिल कर लेगी।
पंजीकरण समिति ने भी सिनजेंटा के घोषित और वास्तविक आयात के स्रोतों में विसंगति पाई है। इमामेक्टिन बेनजोएट पर चल रही कानूनी लड़ाई सिनजेंटा दो वर्ष पहले ही हार चुकी है। उस समय इसने उत्तरी भारतीय कीटनाशक कंपनी द्वारा निर्मित कम कीमत वाले संस्करण को पंजीकरण समिति के मंजूरी देने का तर्क दिया था। मंत्रालय द्वारा यह कार्रवाई कीटनाशक अधिनियम, 1968 के प्रावधानों के उल्लंघन के तहत की गई है। (BS Hindi)
नियमों के अनुपालन के लिए एफएमसी के कदम
मुंबई October 11, 2011 |
बाजार के संचालन में सुधार, निवेशकों के हितों की सुरक्षा और ब्रोकरों के लिए नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) कई कदम उठा रहा है। साथ ही एफएमसी निरीक्षण के नियमों का मानकीकरण करते हुए गड़बड़ी की जांच में तेजी लाने पर जोर देने जा रहा है। सर्कुलर जारी कर एफएमसी पहले ही एक्सचेंजों से कह चुका है कि वह सदस्यों को क्लाइंट में परिवर्तन की अनुमति न दें या उचित क्लाइंट कोड के अभाव में उन्हें कारोबार की अनुमति न दें। हालांकि एफएमसी ने एक्सचेंजों उपयुक्त गलती के मामले में ही क्लाइंट कोड में परिवर्तन की अनुमति देने को कहा है।
यूनिक क्लाइंट कोड को अपलोड किए बिना कारोबार करने वाले सदस्यों पर एफएमसी ने एक्सचेंजों को कारोबारी मूल्य के 1 फीसदी के बराबर जुर्माना वसूलने को कहा है। अगर कारोबार के एक महीने के भीतर क्लाइंट कोड अपलोड नहीं किया जाता है तो सदस्य निलंबन का भागी बनेगा। अगर किसी सदस्य को यूनिक क्लाइंट कोड अपलोड किए बिना कारोबार की अनुमति दी गई है तो एक्सचेंज ऐसे सदस्यों के मामले की जांच साप्ताहिक आधार पर करेगा।
इसके अलावा वायदा बाजार आयोग निरीक्षण व जिंस वायदा एक्सचेंज के सदस्यों के खातों का अंकेक्षण के बाबत नियमों का मानकीकरण भी करने जा रहा है। अगले महीने के मध्य तक एफएमसी इस संबंध में नियम जारी करेगा ताकि खाता-बही की जांच प्रक्रिया में मानकीकरण सुनिश्चित हो। इन नियमों से जांच की प्रक्रिया का मानकीकरण हो सकेगा। अंकेक्षण की रिपोर्ट संबंधित सदस्य को भेजी जाएगी, जो इसे प्राप्त करेगा। अंकेक्षक को इस बात की भी जांच करनी होगी कि सदस्य डब्बा कारोबार में संलग्न नहीं है और एक्सचेंजों के साथ क्लाइंट कोड नियमों के अनुपालन में अपने सॉफ्टवेयर के जरिए क्लाइंट कोड में परिवर्तन नहीं कर रहा है।
एफएमसी शर्तें तय करेंगी, जिससे पता चलेगा कि कौन से सदस्य ब्रोकर का निरीक्षण नियामक करेगा जबकि बाकी सदस्यों का निरीक्षण एक्सचेंज करेगा। हर ब्रोकर-सदस्य को साल में एक बार निरीक्षण का सामना करना पड़ेगा और अगर उसके पास कई एक्सचेंजों की सदस्यता है तो उसका निरीक्षण साल में सिर्फ एक बार होगा।
एफएमसी के एक अधिकारी ने कहा - ये कदम बाजार के प्रतिभागियों द्वारा नियमों के अनुपालन और अनुशासन में सुधार के लिए उठाए गए कदमों का हिस्सा भर है। अधिकारी ने यह भी कहा कि कई एक्सचेंजों की सदस्यता रखने वाले सदस्य के खातों की जांच के मामले में एक एक्सचेंज उसके सभी खातों की जांच करेगा, लेकिन अंकेक्षक उस सदस्य की जांच रिपोर्ट संबंधित एक्सचेंज को सौंपेगा, ऐसे में जांच में संलग्न एक्सचेंज दूसरे एक्सचेंज के कारोबार करने वाले ब्रोकर की कमियों के बारे में नहीं जान पाएगा। हालांकि अगर इसे लागू किया गया तो अंकेक्षक की सत्यनिष्ठा पर संदेह किया जा सकता है।
एक्सचेंज के एक अधिकारी का सुझाव है कि कई एक्सचेंजों की सदस्यता रखने वालों के खाता-बही की जांच का अधिकार उस एक्सचेंज को दिया जाना चाहिए, जिसके साथ उसका ज्यादा कारोबार हो रहा हो। एक ब्रोकर की टिप्पणी थी - पूंजी बाजार की तरह सदस्य को यह फैसला करने का अधिकार दिया जाना चाहिए कि कौन सा एक्सचेंज उसके लिए नोडल एक्सचेंज होगा। नोडल एक्सचेंज को उनके खाता-बही की जांच का अधिकार सौंपा जा सकता है।
इसके अलावा कई एक्सचेंज की सदस्यता रखने वाले सदस्यों के लिए एफएमसी नेटवर्थ की कसौटी अलग रखने पर विचार कर रहा है। यह कदम निवेशकों, हेजर्स, कारोबारी आदि की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया जाएगा। (BS Hindi)
रबर के भारी भरकम भंडार का बोर्ड का दावा
कोच्चि October 12, 2011 |
देश में प्राकृतिक रबर के भंडार पर चल रहे विवाद के बीच रबर बोर्ड ने अब तक के सर्वोच्च भंडार का आंकड़ा सामने रखा है। उत्पादन, उपभोग, भंडार आदि पर बोर्ड के ताजा आंकड़ों में कहा गया है कि 30 सितंबर तक देश में रबर का कुल 2,79,477 टन का भंडार था। रबर का यह भंडार पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 46,381 टन ज्यादा है।
बोर्ड के ताजा आंकड़ों से देश में रबर के वास्तविक भंडार को लेकर एक और विवाद खड़ा हो गया है। ऑटोमोटिव टायर मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (एटमा) और ऑल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (एआईआरआईए) ने रबर भंडार का आकलन करने के तरीके को गलत करार दिया है क्योंकि यह बाजार की वास्तविक स्थिति के प्रतिकूल है। एटमा के महानिदेशक राजीव बुद्धिराजा ने कहा - रबर बोर्ड एक ओर भारी भरकम भंडार का दावा कर रहा है, वहीं दूसरी ओर पिछले कुछ महीने से बाजार रबर की किल्लत का सामना कर रहा है। यह वास्तविक आंकड़ा नहीं है क्योंकि इसके आकलन में गंभीर सांख्यिकीय गलतियां हैं और इसका आकलन पिछले साल के आंकड़ों के जरिए किया गया है। वास्तव में स्थानीय बाजार के पास अधिकतम 1.80 लाख टन का बिक्री योग्य स्टॉक है।
एआईआरआईए के अध्यक्ष विनोद टी साइमन ने कहा कि रबर के भंडार का आकलन सिर्फ और सिर्फ बिक्री योग्य उपलब्ध स्टॉक पर आधारित होना चाहिए। लेकिन बोर्ड बिक चुके स्टॉक को भी इसमें शामिल कर रहा है और यह विभिन्न विनिर्माण कंपनियों का भंडार है। भंडार में पड़ा माल बिक्री योग्य स्टॉक नहीं होता, जिसका इस्तेमाल बाद में किया जा सकता है। दुर्भाग्य से बोर्ड इस माल को स्टॉक में शामिल करता है, जो गंभीर गलती है। उनका कहना है कि भ्रामक आंकड़े रबर से जुड़े मुद्दों मसलन आयात शुल्क में कटौती, शुल्क मुक्त आयात आदि पर लिए जाने वाले नीतिगत निर्णय पर असर डालते हैं। करीब 1.20 लाख टन का भंडार विनिर्माताओं के पास पड़ा हुआ है। ऐसे में वास्तविक स्टॉक 1.60 लाख टन का है।
राजीव ने कहा कि रबर बोर्ड को स्टॉक की परिभाषा में भी परिवर्तन करना चाहिए। विनिर्माताओं व प्रसंस्करण केंद्रों पर उपलब्ध स्टॉक को भंडार में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। कोचीन रबर मर्चेंट्स एसोसिएशन (सीआरएमए) के पूर्व अध्यक्ष एन. राधाकृष्णन ने कहा कि रबर बोर्ड बाजार में भारी भरकम स्टॉक की मौजूदगी का दावा कर रहा है, ऐसे में कीमतें काफी नीचे आ जानी चाहिए। स्थानीय बाजार में रबर की किल्लत है और उद्योग की जरूरत के मुताबिक कारोबारी इसकी खरीद नहीं कर पा रहे हैं। यहां तक कि उत्पादन के मुख्य सीजन में भी इसकी बिक्री का दबाव नहीं है। अगर बाजार में भारी भरकम स्टॉक है तो इसकी बिक्री का दबाव फिलहाल नजर आना चाहिए था। लेकिन ऐसा कुछ भी नजर नहीं आ रहा। ऐसे में बोर्ड का आंकड़ा सही नहीं है।
इस बीच, उपभोक्ता उद्योग की तरफ से कड़े प्रतिरोध के बीच रबर बोर्ड ने स्टॉक के आकलन से जुड़े मुद्दे के अध्ययन के लिए एक समिति का गठन किया है। समिति इस महीने के आखिर तक रबर बोर्ड को रिपोर्ट सौंप सकती है। उद्योग को उम्मीद है कि अगर रिपोर्ट मंजूर कर ली जाएगी तो आकलन के तरीके में बड़ा फेरबदल हो सकता है। बोर्ड ने भी स्पष्ट किया है कि उपरोक्त स्टॉक वास्तव में खरीद के लिए नहीं भी उपलब्ध हो सकता है, लिहाजा बोर्ड यह स्वीकार कर रहा है कि रबर के स्टॉक के आकलन में कुछ गंभीर खामियां हैं।
इस बीच, मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-सितंबर के दौरान प्राकृतिक रबर के निर्यात में 360 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रबर बोर्ड के शुरुआती आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान 16,503 टन रबर का निर्यात हुआ जबकि पिछले साल की समान अवधि में 4558 टन रबर का निर्यात हुआ था। इस अवधि में हालांकि आयात में गिरावट आई और यह पिछले साल के 1,18,535 टन के मुकाबले घटकर 88,760 टन रह गया। कुल मिलाकर आयात में 27 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-सितंबर के दौरान उत्पादन में 4.3 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। बोर्ड के मुताबिक, इस अवधि में 3,91,400 टन रबर का उत्पादन हुआ जबकि पिछले साल की समान अवधि में 3,75,250 टन रबर का उत्पादन हुआ था। (BS Hindi)
13 अक्टूबर 2011
चाय का रिकॉर्ड उत्पादन मुमकिन
कोलकाता October 12, 2011 |
इस साल चाय का उत्पादन सर्वोच्च स्तर पर पहुंच सकता है और कुल मिलाकर उत्पादन 1 अरब किलोग्राम को पार कर जाने की संभावना है। भारतीय चाय संघ (आईटीए) के जारी ताजा आंकड़ों से पता चलता है कि अगस्त तक कुल उत्पादन में 330 लाख किलोग्राम की बढ़ोतरी हुई। उद्योग के एक प्रतिनिधि ने कहा - यह अनुमान लगाना सुरक्षित है कि अगर यह रुख जारी रहा तो उत्पादन का आंकड़ा 98.40 करोड़ किलोग्राम के पूर्व रिकॉर्ड को पार कर जाएगा।
चाय उद्योग ने साल 2008 में 98.4 करोड़ किलोग्राम उत्पादन का सर्वोच्च स्तर हासिल किया था। पिछले साल खराब मौसम व कीटों के हमले के चलते हालांकि कुल उत्पादन 96.6 किलोग्राम रहा था। पिछले साल उत्पादन घटने के चलते ही उद्योग को लग रहा है कि उत्पादन बढऩे के बाद भी चाय की किल्लत जारी रहेगी।
पारंपरिक रूप से भारत में हर साल खपत में 3 करोड़ किलोग्राम की बढ़ोतरी हो रही है। अगर इस साल कुल उत्पादन में 340-342 लाख किलोग्राम की बढ़ोतरी हुई (जैसी कि उम्मीद है) तो बढ़ती खपत की भरपाई के लिए यह पर्याप्त होगा। असम और पश्चिम बंगाल में कुल उत्पादन 380 लाख किलोग्राम ज्यादा होगा। दक्षिण भारत में हालांकि उत्पादन में 40 लाख किलोग्राम की कमी दर्ज की जाएगी। आईटीए के एक अधिकारी ने कहा - अगर इस साल 340 लाख किलोग्राम ज्यादा उत्पादन होता है तो चाय की कमी पूरी करने के लिए यह पर्याप्त होगा। उत्पादन में बढ़ोतरी के बावजूद कीमतों में स्थिरता बनी हुई है।
चाय की नीलामी की औसत कीमत (अखिल भारतीय स्तर पर) 100.92 रुपये है जबकि पिछले साल यह 93.98 रुपये थी। एक ओर जहां असम और बंगाल में बढ़ोतरी 8 रुपये प्रति किलोग्राम की है, वहीं दक्षिण भारत में यह महज 3.15 रुपये प्रति किलोग्राम है।
उद्योग के एक प्रतिनिधि ने कहा - कीमतों में उतारचढ़ाव देखा जा रहा है। यह बढ़ोतरी उत्पादन लागत की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं है। पिछले साल उत्पादन लागत में करीब 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है और यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से उर्वरक, तेल व मजदूरी की लागत में बढ़ोतरी के चलते हुई है। उन्होंने कहा कि इन चीजों पर चाय उद्योग का नियंत्रण नहीं है।
एक ओर जहां भारत में उत्पादन ज्यादा है, वहीं बाकी दुनिया की हालत भिन्न है। चीन को छोड़कर विश्व में चाय के उत्पादन में 230 लाख किलोग्राम की कमी दर्ज की गई है। चीन में ग्रीन टी का उत्पादन इस साल 280 लाख किलोग्राम ज्यादा हुआ है। (BS Hindi)
11 अक्टूबर 2011
दलहन का बढ़ रहा आयात
इस अवधि में मटर के आयात में सबसे ज्यादा 185.80 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसका 1,276.05 करोड़ रुपये का आयात हुआ है। पिछले साल की समान अवधि में 446.54 करोड़ रुपये की मटर का आयात हुआ था।खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले चार महीने में 2,820 करोड़ रुपये का दलहन आयात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 2,485.25 करोड़ रुपये की दालें आयात की गई थीं। कृषि मंत्रालय के चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में देश में दालों का रिकार्ड 180.9 लाख टन का उत्पादन होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल 146.6 लाख टन का उत्पादन हुआ था।
सूत्रों के अनुसार वित्त वर्ष 2011-12 के पहले तीन महीनों (अप्रैल से जून) के दौरान देश में 7.19 लाख टन दालों का आयात हुआ है जबकि इसके पिछले साल की समान अवधि में 3.74 लाख टन दालों का आयात हुआ था। इस दौरान मटर के आयात में 211 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। अप्रैल से जून के दौरान 5.26 लाख टन मटर का आयात हुआ है जबकि इसके पिछले साल की समान अवधि में 1.69 लाख टन मटर का आयात हुआ था। (Business Bhaskar....R S Rana)
नए सीजन में 70 लाख गांठ कपास निर्यात का अनुमान
उन्होंने बताया कि वर्ष 2011-12 में देश में कपास की पैदावार बढ़कर 361.02 लाख गांठ होने का अनुमान है जबकि इस समय निर्यात मांग अच्छी बनी हुई है। ऐसे में चालू फसल सीजन में कपास का निर्यात बढ़कर 70 लाख गांठ से ज्यादा होने की संभावना है। वर्ष 2010-11 में देश में गेहूं का बंपर उत्पादन 859.3 लाख टन का हुआ था जबकि इस बार मानसूनी वर्षा अच्छी हुई है। मौसम फसल के अनुकूल रहा तो रबी में गेहूं का उत्पादन बढ़कर 860 लाख टन होने की संभावना है।
पिछले साल यलो रेस्ट बीमारी से गेहूं की 20 से 30 लाख टन फसल प्रभावित हुई थी लेकिन इस बार यैलो रेस्ट बीमारी से निपटने के लिए राज्यों को पहले ही आगाह कर दिया है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत गेहूं, चावल, दलहन और तिलहनों का उत्पादन बढ़ाने की भरपूर कोशिश की जा रही है तथा इसके सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के बारे में उन्होंने बताया कि मामला केबिनेट कमेटी के पास गया हुआ है। खरीफ में दालों की बुवाई में कमी आने के बारे में उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के कुछेक क्षेत्रों में समय पर बारिश न होने के कारण किसानों ने दलहन के बजाय कपास और सोयाबीन की बुवाई की थी।
बुवाई में कमी के बावजूद भी खरीफ में दालों का उत्पादन 64.3 लाख टन होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि चने का देश में बंपर उत्पादन हुआ था, इसकी कीमतों में तेजी सटोरिया प्रवृति के कारण आई है। चालू खरीफ में देश में चावल का उत्पादन बढ़कर 870 लाख टन टन होने का अनुमान है। उन्होंने कहा कि महंगाई दर में कमी लाने के लिए उत्पादकता बढ़ाना जरूरी है। (Business Bhaskar....R S Rana)
अगले सप्ताह टमाटर हो जाएगा सस्ता
टमाटर के थोक कारोबारी बलबीर सिंह मल्हा ने बताया कि बाढ़ से पाकिस्तान में टमाटर की फसल खराब हो गई थी जिससे पाकिस्तान की आयात मांग बढ़ी हुई है।
इसीलिए दिल्ली की आजादपुर मंडी में इसकी कीमतें बढ़कर 20 से 23 रुपये प्रति किलो के स्तर पर पहुंच गईं। इस समय भारत से पाकिस्तान को रोजाना 1,500 से 2,000 टन टमाटर का निर्यात हो रहा है। उधर हिमाचल से टमाटर की आवक कम हो गई है जबकि नासिक से निर्यात ज्यादा हो रहा है।श्याम ट्रेडिंग कंपनी के पार्टनर आर. के. सैनी ने बताया कि राजस्थान की अलवर लाईन से टमाटर की आवक शुरू हो गई है जबकि मध्य प्रदेश की रतलाम लाईन से चालू सप्ताह में आवक बढ़ जाएगी। टमाटर की लोकल आवक भी अगले दस-बारह दिनों में शुरू जाएगी, जिससे थोक बाजार में इसकी कीमतें घटकर 10 से 15 रुपये प्रति किलो के स्तर पर आने की संभावना है।
टमाटर कारोबारी सुभाष चंद ने बताया कि इस समय दिल्ली में टमाटर की दैनिक आवक 18 से 20 ट्रक (एक ट्रक 10 टन) की हो रही इसमें से 40 फीसदी से ज्यादा पाकिस्तान को निर्यात हो जाता है। दिल्ली में टमाटर की कीमतें 400 से 500 रुपये प्रति पेटी (एक पेटी -25 किलो) हो गई है।
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के मुताबिक वर्ष 2010-11 के आरंभिक उत्पादन अनुमान के अनुसार टमाटर की पैदावार 129.02 लाख टन होने का अनुमान है जबकि इसके पिछले साल पैदावार 124.33 लाख टन की हुई थी। (Business Bhaskar....R S Rana)
कार्यशील पूंजी के इंतजाम में चीनी मिलें परेशान
इस महीने के आखिर में शुरू होने वाले नए पेराई सीजन के लिए चीनी उद्योग (खास तौर से उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिकों) को कार्यशील पूंजी की व्यवस्था करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। गन्ने का रकबा हालांकि बढ़ा है, लेकिन गन्ने व चीनी की कीमतों के बीच असंतुलन को देखते हुए बैंक इस क्षेत्र को ज्यादा रकम मुहैया कराने के इच्छुक नहीं है।उत्तर प्रदेश में डीसीएम श्रीराम कंसोलिडेटेड लिमिटेड (डीएससीएल) की चार मिलें हैं और उनका अनुमान है कि नए सीजन में उसे बतौर कार्यशील पूंजी 845 करोड़ रुपये की दरकार होगी जबकि पिछले सीजन में इसे 620 करोड़ रुपये की आवश्यकता पड़ी थी। कंपनी के संयुक्त प्रबंध निदेशक अजित श्रीराम ने कहा - चीनी क्षेत्र पर बैंकों का नजरिया नकारात्मक है और इसे देखते हुए लगता है कि इस क्षेत्र को ताजा रकम मुहैया कराने के मामले में बैंकों ने चयनात्मक रवैया अख्तियार कर लिया है। उन्होंने कहा कि बैंकों ने इस क्षेत्र को जो रकम मुहैया कराई है उसकी वे लगातार निगरानी कर रहे हैं और कुछ मामले में उन्हें सीमित किया जा रहा है। कार्यशील पूंजी की दरकार का आकलन करने में बैंक भंडारण के उच्चस्तर को आधार बनाता है। हालांकि कंपनियों के निकासी अधिकार की निगरानी बैंक माह दर माह के आधार पर करता है, जो चीनी की बाजार कीमत से तय होती है। अगर नए सीजन में चीनी की कीमतें घटती है और उत्पादन लागत से नीचे चली जाती है तो फिर मिलों को कार्यशील पूंजी के मामले में विपरीत परिस्थिति का सामना करना पड़ेगा और इसके चलते गन्ने की बकाया रकम में बढ़ोतरी हो सकती है यानी किसानों को गन्ने की कीमत चुकाने में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। श्रीराम के मुताबिक, साल 2010-11 के सीजन में उत्पादन लागत 3000 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास रही थी, वहीं इसकी बिक्री से औसतन 2600-2700 रुपये प्रति क्विंटल की रकम हासिल हुई थी। यह मानते हुए कि आगामी सीजन 2011-12 में गन्ने की कीमतें बढ़ेंगी, चीनी की कीमतें बढ़ते उत्पादन लागत के मुताबिक होनी चाहिए, अन्यथा चीनी मिलें गन्ने की कीमतें चुकाने में परेशानी महसूस करेंगी। ज्यादातर कंपनियों ने ज्यादा कार्यशील पूंजी की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। उदाहरण के तौर पर बलरामपुर चीनी को लगता है कि नए सीजन में उसे 1500 करोड़ रुपये की दरकार होगी जबकि पिछले सीजन में 900 करोड़ रुपये की जरूरत पड़ी थी। द्वारिकेश शुगर को इस सीजन में 350 करोड़ रुपये की कार्यशील पूंजी की आवश्यकता का अनुमान है जबकि पिछले सीजन में 250 करोड़ रुपये की दरकार पड़ी थी। पिछले सीजन मेंं राज्य सरकार ने गन्ने किी कीमतों में 24 फीसदी की बढ़ोतरी की थी और इसे 205 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया था। अगले साल राज्य विधानसभा चुनाव होने हैं, लिहाजा उद्योग को लग रहा है कि नए सीजन में सरकार गन्ने की कीमतों में तीव्र बढ़ोतरी कर सकती है।सिंभावली शुगर्स के मुख्य कार्याधिकारी जी एस सी राव ने कहा - बैंक इस क्षेत्र को उधार देने में सहज महसूस नहीं कर रहा है क्योंकि पिछला साल नुकसान वाला रहा है। उन्होंने कहा कि निवेश के लिए जुटाई गई रकम के चलते उद्योग पर पहले से ही भारी ब्याज का बोझ है। लागत व बिक्री से मिलने वाली रकम के बीच बढ़ रहा अंतर गन्ने की कीमतोंं में इजाफे के चलते हुआ है। उन्होंने कहा कि चीनी उद्योग को निर्यात की अनुमति मिलनी चाहिए। (BS Hindi)
कीटनाशक का आयात बंद करने का निर्देश
कृषि रसायन बनाने वाली स्विटजरलैंड की कंपनी सिनजेंटा की भारतीय इकाई को कृषि मंत्रालय जल्द ही कीटनाशक इमामेक्टिन बेनजोएट का आयात रोकने और इसका विपणन बंद करने का निर्देश देगा। मंत्रालय के अधिसूचना जारी करने से पिछले चार वर्ष से कंपनी और मंत्रालय के बीच चला आ रहा टकराव खत्म हो जाएगा। कृषि मंत्रालय ने 2007 में सिनजेंटा पर आरोप लगाया था कि यह कृषि मंत्रालय की पंजीकरण समिति से ली गई कीटनाशकों की स्वीकृति से अधिक खेप का आयात बिना वैध मंजूरी के कर रही है। हाल के वर्षों तक घरेलू कंपनियों द्वारा कम कीमत वाले संस्करण की बाजार में बिक्री शुरू नहीं करने तक 'एमामेक्टिन बेन्जोएट 5 परसेंट' की बिक्री में सिनजेंटा की एकाधिकारात्मक स्थिति बनी हुई थी। उद्योग ने सिनजेंटा ब्रांड की कीमत 100 करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान लगाया है। कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस घटनाक्रम की पुष्टि की। उन्होंने कहा कि कृषि मंत्री शरद पवार पहले ही अपना आदेश जारी कर चुके हैं और कानून मंत्रालय द्वारा इसकी जांच के बाद इसकी अधिसूचना जल्द ही जारी की जा सकती है। कई बार कोशिश के बावजूद सिनजेंटा के अधिकारी इस पर टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो सके। कंपनी ने यह कहते हुए अपनी गलती स्वीकार कर ली है कि उसने इस उम्मीद के साथ उत्पाद का आयात शुरू किया था कि जल्द इसके लिए पंजीकरण प्रमाण-पत्र हासिल कर लेगी। पंजीकरण समिति ने भी सिनजेंटा के घोषित और वास्तविक आयात के स्रोतों में विसंगति पाई है। इमामेक्टिन बेनजोएट पर चल रही कानूनी लड़ाई सिनजेंटा दो वर्ष पहले ही हार चुकी है। उस समय इसने उत्तरी भारतीय कीटनाशक कंपनी द्वारा निर्मित कम कीमत वाले संस्करण को पंजीकरण समिति के मंजूरी देने का तर्क दिया था। मंत्रालय द्वारा यह कार्रवाई कीटनाशक अधिनियम, 1968 के प्रावधानों के उल्लंघन के तहत की गई है। (BS Hindi)
10 अक्टूबर 2011
कॉफी निर्यात में 41 फीसदी की उछाल
देश में कॉफी की बेहतर फसल, अनुकूल कीमतें और वैश्विक बाजार में मजबूत मांग की बदौलत सितंबर 2011 में समाप्त कॉफी वर्ष में इसका निर्यात 41 फीसदी बढ़कर 3,58,278 टन पर पहुंच गया। भारतीय कॉफी क्षेत्र के लिए यह अनोखा साल रहा, जब निर्यात सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया। पिछले कॉफी वर्ष में कुल 2,53,715 टन कॉफी का निर्यात हुआ था।हालांकि कीमत के मामले में निर्यातकों की आय 87 फीसदी बढ़कर 4,794 करोड़ रुपये पर पहुंच गई जबकि सितंबर 2010 में समाप्त कॉफी वर्ष में उन्हें निर्यात से 2,564 करोड़ रुपये हासिल हुए थे। अक्टूबर 2010 से सितंबर 2011 की अवधि में कॉफी निर्यात की औसत कीमत 32 फीसदी बढ़कर 1,33,804 रुपये प्रति टन पर पहुंच गई जबकि एक साल पहले की समान अवधि में औसत कीमत 1,01,058 रुपये प्रति टन थी।कॉफी बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा - पिछले कॉफी वर्ष में निर्यात सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया, इसकी वजह लगातार दो साल के कॉफी की बेहतर पैदावार के अलावा बढिय़ा प्रबंधन व कॉफी बागानों पर कीटों का न्यूनतम हमला है। उन्होंने कहा कि निर्यातकों के हाथ में निर्यात के लिए ज्यादा कॉफी उपलब्ध था। उन्होंने कहा कि इस साल भी वैश्विक बाजार में कीमतें काफी अनुकूल थीं, खास तौर से जनवरी से सितंबर की अवधि में।भारत मुख्य रूप से इटली, जर्मनी, रूस, बेल्जियम और स्पेन को कॉफी का निर्यात करता है। पिछले फसल वर्ष में एक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति यह उभरकर सामने आई कि जर्मनी कॉफी आयात के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया और इस तरह से इसने रूस को पीछे छोड़ दिया। जर्मनी को कॉफी निर्यात 2.63 गुना बढ़कर 34,664 टन पर पहुंच गया जबकि इससे पहले कुल निर्यात 13,171 टन रहा था। रूस को हुए कॉफी निर्यात में भी 23 फीसदी की उछाल आई और यह 33,965 टन पर पहुंच गया जबकि इससे पिछले साल कुल 27,482 टन कॉफी का निर्यात हुआ था।साल के दौरान भारतीय कॉफी का सबसे बड़ा बाजार इटली बना रहा। इटली को हुए निर्यात में 78 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 83,811 टन पर पहुंच गया जबकि एक साल पहले की समान अवधि में कुल 47,094 टन कॉफी का निर्यात हुआ था।कॉफी एक्सपोट्र्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रमेश राजा ने कहा - पिछले साल वैश्विक कॉफी बाजार में जर्मनी काफी सक्रिय था क्योंकि यूनान की आर्थिक चिंताओं की वजह से यूनान व पुर्तगाल को हुए कॉफी निर्यात में गिरावट दर्ज की गई, हालांकि भारतीय कॉफी के लिए यह बड़ा बाजार नहीं है। रूसी संघ की बदौलत जर्मनी को बढ़त हासिल हुई और इस साल भी यह प्रवृत्ति जोर पकड़ सकती है। उन्होंने कहा कि इटली हमारे लिए सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है और कुल निर्यात में इसकी अच्छी खासी भागीदारी रही। मौजूदा कैलेंडर वर्ष के पहले नौ महीने में कुल 2,95,269 टन कॉफी का निर्यात हुआ जबकि पिछले साल की समान अवधि में कुल 2,28,399 टन कॉफी का निर्यात हुआ था। (BS Hindi)
रबी की फसल में प्रमाणित बीजों की नहीं होगी किल्लत
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू रबी में बुवाई के लिए प्रमाणित बीजों की कुल उपलब्धता मांग के मुकाबले ज्यादा है। इसीलिए किसानों को चालू रबी में आसानी से बीज मिल सकेंगे। उन्होंने बताया कि हाल ही में राज्यों के कृषि अधिकारियों के साथ बैठक कर स्थिति की समीक्षा की गई है।
कुछ राज्यों में दालों के बीजों की कमी थी, उन राज्यों में दूसरे राज्यों से सप्लाई कराई जा रही है ताकि किसानों को प्रमाणित बीज आसानी से उपलब्ध हो सके। देशभर में मानसूनी वर्षा अच्छी हुई है जिसका असर रबी फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी के रूप में देखने को मिलेगा। रबी सीजन में दलहन और तिलहनों का उत्पादन बढ़ाने के लिए भी विशेष जोर दिया जा रहा है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (एनएफएसएम) के तहत चिन्हित किए गए राज्यों में दालों और तिलहनों की बुवाई में बढ़ोतरी की जाएगी। उन्होंने बताया कि रबी की प्रमुख फसल गेहूं के बीजों में रिप्लेसमेंट की दर लगातार बढ़ रही है जिससे उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल रही है। गेहूं में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के किसान प्रमाणित बीजों की बुवाई को बढ़ावा दे रहे हैं।
इस समय गेहूं के बीजों में रिप्लेसमेंट की दर देशभर में 30 फीसदी के करीब है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना में इसको बढ़ाकर 33 फीसदी से ज्यादा करने का लक्ष्य रखा जाएगा। चालू रबी में करीब 108.22 लाख क्विंटल प्रमाणित गेहूं के बीजों की मांग आने की संभावना है जबकि इस समय उपलब्धता 117.82 लाख क्विंटल की है।
पंजाब में चालू रबी में प्रमाणित बीजों की कुल मांग 11.81 लाख क्विंटल रहने की संभावना है जबकि इस समय उपलब्धता 13.76 लाख क्विंटल है। इसी तरह से हरियाणा में चालू रबी में 9.81 लाख क्विंटल बीजों की मांग रहने का अनुमान है जबकि उपलब्धता 13.47 लाख क्विंटल की है।
उधर राजस्थान में प्रमाणित बीजों की कुल मांग 12.99 लाख क्विंटल के मुकाबले उपलब्धता 16.62 लाख क्विंटल की है। जबकि मध्य प्रदेश में चालू रबी में किसानों की प्रमाणित बीजों की मांग 14.37 लाख क्विंटल आने की संभावना है तथा राज्य में उपलब्धता 14.83 लाख क्विंटल की है। (Business Bhaskar....R S Rana)
08 अक्टूबर 2011
केस्टर सीड में नरमी की संभावना
पैदावार में बढ़ोतरी और निर्यात मांग कमजोर होने से केस्टर सीड और तेल की कीमतों में 12 से 15 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है। चालू सीजन में केस्टर सीड की बुवाई में चार लाख हैक्टेयर की बढ़ोतरी हुई है। ऐसे में पैदावार में करीब 25 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। आंध्र प्रदेश की उत्पादक मंडियों में नई फसल की आवक शुरू हो चुकी है तथा नवंबर-दिसंबर में गुजरात और राजस्थान में नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी।
सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार चालू सीजन में केस्टर सीड की बुवाई बढ़कर 11.73 लाख हैक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल 7.64 लाख हैक्टेयर में ही हुई थी। उत्पादक राज्यों में मौसम भी फसल के अनुकूल बना हुआ है इसीलिए केस्टर सीड की पैदावार में पिछले साल की तुलना में करीब 25 फीसदी की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। वर्ष 2010-11 में केस्टर सीड की पैदावार11.90 लाख टन की हुई थी।
जयंत एग्रो ऑरनामिक लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक वामन भाई ने बताया कि चालू साल के पहले 9 महीनों में 3.25 लाख टन केस्टर तेल का निर्यात हो चुका है। सितंबर महीने में करीब 25 लाख टन केस्टर तेल के निर्यात सौदे हुए हैं। केस्टर सीड की पैदावार में बढ़ोतरी की संभावना को देखते हुए आयातक नए आयात सौदे सीमित मात्रा में कर रह है जिससे केस्टर तेल की कीमतों में गिरावट आई है।
जुलाई-अगस्त में केस्टर तेल का एफओबी भाव 2,350 से 2,450 डॉलर प्रति टन जबकि इस भाव घटकर 1,700 से 1,800 डॉलर प्रति टन रह गया है। पिछले साल करीब 3.75 लाख टन केस्टर तेल का निर्यात हुआ था।
नेमस्त ट्रेड प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर प्रकाश भाई ने बताया कि आंध्र प्रदेश की मंडियों में केस्टर सीड की दैनिक आवक आठ से दस हजार बोरियों (एक बोरी-75 किलो) की हो रही है। नवंबर-दिसंबर में गुजरात और राजस्थान में आवक शुरू हो जाएगी जिससे दिसंबर के आखिर में कीमतों में 12 से 15 फीसदी की गिरावट आने की संभावना है।
नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर निवेशकों की मुनाफावसूली से पिछले महीनेभर में केस्टर सीड की कीमतों में 9.9 फीसदी की गिरावट आई है। नवंबर महीने के वायदा अनुबंध में केस्टर सीड का भाव 6 सितंबर को 4,686 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि पांच अक्टूबर को भाव घटकर 4,222 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।
बनेगी एक्सचेंजों की अंतरराज्यीय डिलीवरी नीति
कायदा - इस समय स्पॉट एक्सचेंजों को अगले दिन डिलीवरी देना अनिवार्य
केंद्र सरकार स्पॉट एक्सचेंजों पर होने वाली जिंसों की अंतरराज्यीय डिलीवरी पर निगरानी रखने के लिए नीति बनाएगी। इसकी निगरानी वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) द्वारा की जाएगी।
तय मानकों के हिसाब से स्पॉट एक्सचेंजों को जिंसों की डिलीवरी सौदे के अगले दिन करना अनिवार्य होता है लेकिन स्पॉट एक्सचेंज डिलीवरी के लिए महीने भर से भी ज्यादा का समय लगा देते हैं।
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि स्पॉट एक्सचेंजों पर होने वाली जिंसों की अंतरराज्यीय डिलीवरी पर निगरानी के लिए नीति बनाई जा रही है।
इससे स्पॉट एक्सचेंजों पर एक राज्य से दूसरे राज्य में जिंसों की होने वाली डिलीवरी पर नजर रखी जा सकेगी। उन्होंने बताया कि वायदा बाजार के तय मानकों के आधार पर स्पॉट एक्सचेंजों को जिंसों की डिलीवरी सौदे के अगले दिन करना अनिवार्य होता है लेकिन स्पॉट एक्सचेंज इसमें ज्यादा समय लगा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि एफएमसी वर्तमान में जिंस वायदा बाजार के कारोबार की निगरानी कर रहा है तथा जिंस स्पॉट एक्सचेंजों को भी इसके तहत लाने की योजना है। इसके लिए मंत्रालय नोट तैयार कर रहा है। इससे जिंस स्पॉट एक्सचेंजों पर कारोबार करने वाले कारोबारियों के हितों का लाभ होगा। वर्तमान में जिंस स्पॉट एक्सचेंज एग्रीकल्चर प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (एपीएमसी) या राज्यों के मंडी बोर्ड के अधीन काम कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि जिंस स्पॉट एक्सचेंजों को एग्री जिंसों के ऑनलाइन कारोबार की अनुमति दी गई है लेकिन स्पॉट एक्सचेंजों ने एग्री जिंसों के बजाए नॉन एग्री जिंसों जैसे सोना, चांदी और जिंक में भी कारोबार शुरू कर दिया है। उपभोक्ता मामले मंत्रालय जिंस वायदा बाजार के लिए नीतियां बनाता है। जबकि वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) देश के जिंस वायदा एक्सचेंजों के परिचालन पर निगाह रखता है।
इस समय देश में मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) का नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) और नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) का एनसीडीईएक्स स्पॉट एक्सचेंज (एनस्पॉट) कार्य कर रहा है। उधर नेशनल मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनएमसीई) और अन्य एक्सचेंज भी स्पॉट एक्सचेंज शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं।
बात पते की :- स्पॉट एक्सचेंजों पर होने वाली जिंसों की अंतरराज्यीय डिलीवरी पर निगरानी के लिए नीति बनाई जा रही है। इससे स्पॉट एक्सचेंजों पर एक राज्य से दूसरे राज्य में जिंसों की होने वाली डिलीवरी पर नजर रखी जा सकेगी। वायदा बाजार के तय मानकों के आधार पर स्पॉट एक्सचेंजों को जिंसों की डिलीवरी सौदे के अगले दिन करना अनिवार्य होता है लेकिन स्पॉट एक्सचेंज इसमें ज्यादा समय लगा रहे हैं। (Business Bhaskar....R S Rana)
काली मिर्च में निवेश देगा लाभ
दाम में आएगी तेजी
एनसीडीईएक्स पर अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में काली मिर्च की कीमतों में पिछले चार दिनों में 2.7 फीसदी की तेजी आई है।
भारत में कालीमिर्च का उत्पादन पिछले साल के 50,000 टन से घटकर 48,000 टन होने का अनुमान है। इंडोनेशिया और ब्राजील में भी पैदावार कम हुई है।
भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले पांच महीनों (अप्रैल से अगस्त) में काली मिर्च के निर्यात में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
निर्यातकों के साथ-साथ त्यौहारी मांग निकलने से घरेलू बाजार में काली मिर्च की कीमतों में तेजी की संभावना है। वायदा बाजार में पिछले चार दिनों में कालीमिर्च की कीमतों में 2.7 फीसदी की तेजी आई है। चालू वित्त वर्ष के पहले पांच महीनों में कालीमिर्च का निर्यात 12 फीसदी बढ़ा है। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कालीमिर्च की आपूर्ति तंग है। कालीमिर्च की घरेलू फसल आने में अभी चार महीने से ज्यादा का समय शेष है जिससे तेजी को बल मिल रहा है।
वायदा में तेजी
नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) पर अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में कालीमिर्च की कीमतों में पिछले चार दिनों में 2.7 फीसदी की तेजी आई है। तीन अक्टूबर को वायदा में कालीमिर्च का भाव 35,130 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि शुक्रवार को 36,100 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में 5,200 लॉट के सौदे खड़े हुए हैं
वायदा में कैसे करे निवेश
वायदा बाजार में कालीमिर्च में निवेश करने के लिए निवेशक को कमोडिटी ब्रोकर के यहां खाता खुलवाना होता है। खाता खुलवाने के लिए पेन कार्ड, बैंक की पास बुक, स्थाई पता और इनिशियल मार्जिन की आवश्यकता होती है। खाता खुलवाने के बाद निवेशक को ब्रोकर आईडी दे देता है। निवेशक चाहे तो घर पर ही कारोबार कर करता है। कमोडिटी ब्रोकर के यहां फोन करके भी सौदा खरीदा और बेचा जा सकता है।
निर्यात में बढ़ोतरी
भारतीय मसाला बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले पांच महीनों (अप्रैल से अगस्त) में काली मिर्च के निर्यात में 12 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान निर्यात बढ़कर 8,750 टन का हुआ है जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में निर्यात 7,800 टन का हुआ था।
ब्रोकिंग फर्म आनंद राठी कमोडिटी के अस्सिटेंट वाइस प्रेसिडेंट (कमोडिटी एंड करेंसी) ओ पी सिंह ने बताया कि विश्व स्तर पर काली मिर्च की उपलब्धता कम होने से भारत से निर्यात बढ़ा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय कालीमिर्च की कीमतें बढ़कर 8.71 डॉलर प्रति किलो हो गई है जबकि पिछले साल की समान अवधि में इसकी कीमतें 4.52 डॉलर प्रति किलो थी।
विश्व स्तर पर उपलब्धता कम
इंटरनेशनल पेपर कम्युनिटी (आईपीसी) के मुताबिक चालू सीजन में वैश्विक स्तर पर काली मिर्च के उत्पादन में 6,500 टन की कमी आने की संभावना है। पिछले साल काली मिर्च का वैश्विक उत्पादन 3.10 लाख टन का हुआ है। पिछले साल वियतनाम में उत्पादन 1.10 लाख टन का हुआ था जबकि चालू सीजन में भी इसके बराबर ही उत्पादन होने का अनुमान है।
भारत में काली मिर्च का उत्पादन पिछले साल के 50,000 टन से घटकर 48,000 टन होने का अनुमान है। उधर इंडोनेशिया और ब्राजील में भी पैदावार कम हुई है।
घरेलू मांग बढ़ेगी
बाफना इंटरप्राइजेज के सीईओ जोजॉन मलयाली ने बताया कि त्यौहारी सीजन के कारण काली मिर्च में घरेलू मांग बढ़ेगी जिससे मौजूदा कीमतों में 2,000 से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल की और तेजी आने की संभावना है। शुक्रवार को कोच्चि में एमजी-वन काली मिर्च का भाव 35,000 से 35,200 रुपये प्रति क्विंटल रहा जबकि अनगार्बल्ड क्वालिटी की काली मिर्च का भाव 34,000 से 34,200 रुपये प्रति क्विंटल रहा।
नई फसल की आवक जनवरी-फरवरी महीने में बनने की संभावना है तथा तेजी को देखते हुए स्टॉकिस्टों की बिकवाली भी कम आ रही है। (Business Bhaskar....R S Rana)
आलू नरम, किसानों का निकला दम
नई दिल्ली October 06, 2011 |
बीते दो वर्षों से आलू का बंपर उत्पादन किसानों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। अच्छी पैदावार के चलते किसानों को सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं और मौजूदा भाव पर नुकसान उठाना पड़ रहा है। दरअसल किसानों ने जिस भाव पर आलू का भंडारण किया था, मौजूदा भाव उससे 100 रुपये प्रति क्विंटल कम है। आवक बढऩे से महीने भर में आलू के दाम में 100 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आई है।
किसानों की मुसीबत की वजह उत्पादक राज्यों में आलू का भंडार काफी ज्यादा होना है। शीत भंडारगृहों में अभी भी 45-50 फीसदी आलू बचा हुआ है। राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन (एनएचआरडीएफ) के अनुसार 2010-11 में आलू का उत्पादन 10 फीसदी बढ़कर 4.02 करोड़ टन हुआ है। इसमें से उत्तर प्रदेश में 98 लाख टन, पश्चिम बंगाल में 56 लाख टन और पंजाब में 14 लाख टन आलू का भंडारण हुआ है, जो पिछले साल से 15 फीसदी ज्यादा है।
उत्तर प्रदेश के आलू किसान बटुक नारायण मिश्रा बताते हैं कि फरवरी-मार्च में 400 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर आलू का भंडारण किया था, जिस पर करीब 150 रुपये प्रति क्विंटल भंडार सहित अन्य खर्च हो चुके हैं और अब 500 रुपये का भाव मिल रहा है। पश्चिम बंगाल के किसान अरुण कुमार घोष का कहना है कि राज्य के आलू किसानों को 550-570 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिल रहा है। नई फसल के समय आलू का भाव 480-500 रुपये प्रति क्विंटल था और शीत भंडारगृह में आलू रखने पर 170 रुपये प्रति क्विंटल का खर्चा आ चुका है। इस तरह एक क्विंटल पर 100 रुपये के नुकसान में हैं। कन्फेडेरेशन ऑफ पोटेटो सीड फॉर्मर्स (पॉस्कोन) पंजाब के महासचिव जंगबहादुर सिंह भी आलू किसानों को घाटे की बात दोहराते हैं।
उपभोक्ता मामले विभाग के अनुसार आलू का खुदरा भाव दिल्ली में 17 रुपये, आगरा में 10 और कोलकाता में 8 रुपये प्रति किलोग्राम है। आजादपुर मंडी के आलू कारोबारी वीरेंद्र कुमार बताते हैं कि मंडी में आलू की आवक ज्यादा है, जबकि सभी राज्यों में भारी स्टॉक के कारण मांग कमजोर है। इसलिए महीने भर में आलू के दाम 100 रुपये गिर चुके हैं।
एनएचआरडीएफ के निदेशक आर पी गुप्ता का कहना है कि अभी तक कुल भंडार का 50-55 फीसदी ही आलू बाहर आया है, जबकि कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश से नये आलू की आवक चालू है और पंजाब से भी नई फसल आने लगेगी। आगरा शीत भंडारगृह संघ के अध्यक्ष सुदर्शन सिंघल ने बताया कि आगरा के भंडारगृहों में 4 करोड़ कट्टे (50 किलोग्राम) आलू का भंडारण हुआ था, जिसमें से 50 फीसदी आलू अभी बचा है। (BS Hindi)
इस साल सोने का आयात 1000 टन के पार मुमकिन
मुंबई October 07, 2011 |
कीमतों में करीब 30 फीसदी की बढ़ोतरी के बावजूद इस साल सोने के आयात में मजबूती की संभावना है। पिछले साल कुल 1013 टन सोने का आयात हुआ था और इस साल भी इसके समान स्तर पर बने रहने की उम्मीद है।
तिमाही दर तिमाही के आधार पर सोने का आयात 6.6 फीसदी घटा है और जुलाई-सितंबर की तिमाही में यह 286 टन से घटकर 267 टन पर आ गया है। हालांकि दूसरी तिमाही में साल दर साल के हिसाब से पारंपरिक रूप से मांग दबे रहने के बावजूद सोने के आयात में 68 फीसदी की उछाल आई है। मौजूदा त्योहारी सीजन की एकमात्र ऐसा मौका है जहां इन आंकड़ों में सुधार की संभावना है।
कीमती धातुओं के विश्लेषक संजीव अरोले ने कहा - चूंकि त्योहारी सीजन शुरू हो गया है, लिहाजा खरीदार आ रहे हैं और खरीफ की फसल बेहतर रहने की वजह से ग्रामीण इलाकों में भी सोने की खपत में तेजी बने रहने की संभावना है।
सोने के एक कारोबारी ने कहा कि कीमतों में उतारचढ़ाव के चलते ही मुख्य रूप से सोने के खरीदार बाजार से दूर रहे। करीब 26,000 रुपये प्रति 10 ग्राम के आसपास कीमतें स्थिर होनी शुरू हुई तो पिछले कुछ हफ्ते में मांग फिर से जोर पकडऩे लगी, लिहाजा आयात में बढ़ोतरी होगी।
साल 2011 की पहली दो तिमाही में 563 टन सोने का आयात हुआ था, लेकिन जुलाई के बाद इसमें कमी आ गई। जुलाई-सितंबर की तिमाही भारत के लिए पारंपरिक रूप से सुस्त तिमाही होती है। साथ ही कीमतें भी इस अवधि में 28,000 रुपये प्रति 10 ग्राम को पार कर गई और उच्चस्तर पर पहुंचने के बाद कीमतें करीब 10 फीसदी कम हुईं।
वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के निदेशक केयूर शाह ने कहा - साल 2011 की पहली दो तिमाही के रुख को देखते हुए और आगामी त्योहारी सीजन में मांग की संभावना को देखते हुए हम साल 2011 में भी आयात में बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे हैं। यहां तक कि बॉम्बे बुलियन एसोसिएशन ने भी साल 2011 में सोने का आयात 1000 टन के पार जाने का अनुमान लगाया है।
कारोबारियों का यह भी कहना है कि अगर आयात जोर नहीं पकड़ता तो खुदरा विक्रेताओं के पास बहुत ज्यादा सोना नहीं होता। संजीव अरोले ने भी कहा कि महत्वपूर्ण बात यह है कि इस समय कीमतें उच्च स्तर पर हैं और बावजूद इसके पुराना सोना बाजार में नहीं आ रहा है। जब कीमतें उच्चस्तर पर होती हैं तो पारंपरिक रूप से लोग इसकी बिक्री करते हैं।
विश्लेषकों ने भी कहा कि ऊंची कीमतों की वजह से उपभोक्ताओं के लिए बजट एक महत्वपूर्ण मसला था, पर हर गिरावट पर सोने के खरीदार बाजार में नजर आए। अगर कीमतों पर नजर डाली जाए तो ज्यादातर लोगों को लगता है कि यह उच्चस्तर पर बनी रहेगी और सोने की मांग भी उच्चस्तर पर बनी रहेगी। (BS Hindi)
06 अक्टूबर 2011
आधा रह गया कश्मीर में केसर का उत्पादन
राज्य के कृषि विभाग के अनुसार वर्ष 1997-98 के दौरान राज्य में 5,707 हेक्टेयर में केसर की खेती की गई थी। दस साल बाद 2006-07 में केसर का रकबा घटकर 3,010 हेक्टेयर रह गया। कृषि मंत्री गुलाम हसन ने राज्य विधानसभा में बताया कि सबसे कीमती मसाला केसर की खेती पर खतरा मंडरा रहा है। उन्होंने बताया कि आलोच्य अवधि के दौरान केसर का कुल उत्पादन भी 16 टन से घटकर 8.5 टन रह गया। कश्मीर में केसर की प्रति हेक्टेयर पैदावार 2.32 किलो है।
सरकार ने बताया है कि जम्मू कश्मीर में केसर की खेती को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय केसर मिशन चलाया जा रहा है। अगर यह मिशन सफल रहता है कि केसर की पैदावार बढ़कर लगभग दोगुनी पांच किलो प्रति हेक्टेयर हो सकती है। मिशन के तहत 2010-11 से चार वर्षों के दौरान कुल 372.18 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। कश्मीर के बडगाम, पुलवामा और श्रीनगर और जम्मू के किश्तवाड़ जिलों में केसर की खेती ज्यादा होती है। (Business Bhaskar)
हूं का बीज मिलेगा 14 फीसदी महंगा
गेहूं की बुवाई के लिए किसानों को इस बार महंगा बीज खरीदना होगा। प्राइवेट बीज कंपनियों के साथ-साथ भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) ने गेहूं के बीज के बिक्री मूल्य में 14 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी की है। आईएआरआई ने पिछले साल गेहूं का ब्रीडर बीज 3,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बेचा था जबकि चालू रबी के लिए इसका बिक्री भाव 4,000 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
आईएआरआई के बीज बिक्री डिवीजन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में गेहूं के ब्रीडर किस्म के बीज का बिक्री भाव 4,000 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है जबकि पिछले साल इसकी बिक्री 3,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से की गई थी।
टीएफएल किस्म के गेहूं के बीज की बिक्री पिछले साल के समान मूल्य 3,000 रुपये प्रति क्विंटल की दर से ही की जाएगी। आईएआरआई चालू सीजन में करीब 500 क्विंटल गेहूं के बीज की बिक्री करेगा। गंगा कावेरी सीडस (प्राइवेट) लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. हरीश रेड्डी ने बताया कि सरकार ने गेहूं के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी के साथ-साथ बोनस भी दिया था,
जिसकी वजह से कंपनियों की खरीद लागत बढ़ गई है। इसीलिए गेहूं के बीज की बिक्री पिछले साल की तुलना में 400 से 500 रुपये प्रति क्विंटल अधिक दाम पर की जाएगी। उन्होंने बताया कि गेहूं के बीज में रिप्लेसमेंट की दर केवल 22 से 25 फीसदी ही है तथा गेहूं के बीज की कुल बिक्री में प्राइवेट कंपनियों की भागीदारी करीब 45 फीसदी है। उनकी कंपनी ने चालू रबी में करीब 4,000 क्विंटल गेहूं के बीज की बिक्री का लक्ष्य तय किया है।
रासी सीड प्रा. लि. के एमडी व सीईओ अरविंद कपूर ने बताया कि चालू सीजन में गेहूं के बीज का बिक्री भाव 35 से 40 रुपये प्रति किलो तय किया गया है। उनकी कंपनी ने चालू सीजन में करीब 3,000 क्विंटल गेहूं के बीज की बिक्री का लक्ष्य तय किया है इसमें नई किस्म 2967 की अच्छी मांग निकलने की संभावना है। उन्होंने बताया कि खरीफ में अच्छे मानसून को देखते हुए चालू बुवाई सीजन में गेहूं के बीजों की बिक्री में करीब 12 से 15 फीसदी की बढ़ोतरी होने की संभावना है। (Business Bhaskar....R S Rana)
प्याज और सस्ती होने पर निर्यात मूल्य घटा सकती है सरकार
उपभोक्ता मामले मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि इस समय खुदरा बाजार में प्याज का दाम 22 से 23 रुपये प्रति किलो चल रहा है।
खुदरा बाजार में इसकी कीमतें घटकर 20 रुपये से नीचे आने के बाद एमईपी में कमी करने की योजना है। उन्होंने बताया कि घरेलू बाजार में प्याज की सप्लाई बढ़ाने के लिए एमईपी ज्यादा तय किया गया था। नवंबर महीने में राजस्थान और गुजरात की नई फसल आने के बाद कीमतों में कमी आने की संभावना है।
उन्होंने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय प्याज का दाम चीन और पाकिस्तान के मुकाबले ज्यादा है इसीलिए भारत से निर्यात सीमित मात्रा में ही हो रहा है। सरकार ने 20 सितंबर को प्याज के निर्यात पर से रोक तो हटा ली थी लेकिन एमईपी 475 डॉलर प्रति टन तय कर दिया था। भारत से प्याज का सबसे ज्यादा निर्यात खाड़ी देशों के अलावा मलेशिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका को होता है।
पोटेटो ऑनियन मर्चेंटस एसोसिएशन (पोमा) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि दिल्ली में प्याज की दैनिक आवक 50 से 60 ट्रकों की हो रही है। राजस्थान के प्याज का भाव 400 से 450 रुपये और कर्नाटक के प्याज का भाव 500 से 650 रुपये प्रति 40 किलो चल रहा है।
नासिक मंडी में प्याज का भाव 1,100 से 1,250 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। इस समय प्याज की दिल्ली में दैनिक आवक राजस्थान, महाराष्ट्र और कर्नाटक से हो रही है। नवंबर महीने में राजस्थान की अलवर लाइन और गुजरात के भावनगर की नई फसल की आवक शुरू होने की संभावना है।
राष्ट्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन के अनुसार वर्ष 2011-12 में प्याज का उत्पादन बढ़कर 151.35 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल देश में 145.6 लाख टन प्याज का उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar......R S Rana)
जेएसडब्ल्यू में होगा सामान्य उत्पादन बहाल
लौह अयस्क की कमी के कारण अपनी स्थापित इस्पात उत्पादन क्षमता में 30 फीसदी कटौती करने वाली जेएसडब्ल्यू स्टील लिमिटेड को उम्मीद है कि अक्टूबर के अंत तक सामान्य उत्पादन बहाल हो जाएगा। कर्नाटक में चल रही लौह अयस्क की ई-नीलामी में बड़ा हिस्सा खरीदने वाली कंपनी को उम्मीद है कि यह बेल्लारी जिले में उसके संयंत्र के लिए करीब एक महीने का स्टॉक है। मंगलवार को हुई लौह अयस्क की तीसरी नीलामी में जेएसडब्ल्यू ने 13.5 लाख टन लौह अयस्क की खरीदारी की है, जो नीलामी के लिए रखे गए कुल अयस्क का 65 फीसदी है। इसने 61.5 एफई ग्रेड के लौह अयस्क की खरीद 2,447 रुपये प्रति टन की दर पर की। इसके साथ ही कंपनी 14 सितंबर के बाद अब तक नीलामी में बेचे गए 33.4 लाख टन लौह अयस्क में से 18.5 लाख टन यानी 55 फीसदी की खरीदारी कर चुकी है। कंपनी को अपना संयंत्र चलाने के लिए हर महीने करीब 15 लाख टन लौह अयस्क (63 एफई ग्रेड या अधिक) की जरूरत होती है। अगर एफई का स्तर 58 ग्रेड से कम होता है तो इसकी मात्रा 18 लाख टन प्रतिमाह होती है। जेएसडब्ल्यू स्टील के निदेशक और सीईओ विनोद नोवाल ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि 'हमारे पास अपने तोरंगालु संयंत्र में 40 लाख टन लौह अयस्क के भंडारण की क्षमता है। नियमित नीलामी से इस स्तर तक खरीद की उम्मीद कर रहे हैं और इस महीने के अंत तक उत्पादन को सामान्य स्तर पर ले आएंगे।'वर्तमान में जेएसडब्ल्यू ने अपने 1 करोड़ टन प्रतिवर्ष उत्पादन वाले इस्पात संयंत्र की क्षमता का उपयोग 30 फीसदी घटा दिया है। यह संयंत्र को चलाने के लिए निम्नतम स्तर है। हालांकि जेएसडब्ल्यू इस्पात के प्रवक्ता ने कहा कि कुछ प्रशासनिक प्रक्रियाओं की वजह से लौह अयस्क समय पर नहीं भेजा जा रहा है। नीलामी में खरीदे गए लौह अयस्क के अलावा करीब 20,000 टन अयस्क झारखंड, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ से आ रहा है। कंपनी 100 फीसदी क्षमता का उपयोग 28 अक्टूबर तक शुरू कर देगी।उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त निगरानी समिति ने मंगलवार को 21 लाख टन लौह अयस्क नीलामी के लिए रखा। इसमें 15 लाख टन आयरन ओर फाइंस थीं और बाकी लंप्स और कम ग्रेड का अयस्क था। इसकी आधार कीमत 65 एफई ग्रेड के लिए 2,750 रुपये रखी गई, जिसमें प्रत्येक ग्रेड की गिरावट के साथ कीमत में 100 रुपये की कमी की गई है। अगली नीलामी 12 अक्टूबर को तय की गई है। नोवाल ने कहा कि अगली कुछ तिमाहियों तक नीलाम किए जाने वाले कुल 250 लाख टन अयस्क में से केवल 180 लाख टन उच्च गुणवत्ता का अयस्क है, जबकि शेष अयस्क 52 एफई ग्रेड से कम है। इसका इस्तेमाल इस्पात मिलों द्वारा नहीं किया जा सकता, क्योंकि देश में इस तरह के अयस्क के इस्तेमाल की तकनीक उपलब्ध नहीं है। नोवाल ने कहा कि ' उच्च गुणवत्ता वाले लौह अयस्क के भंडार का इस्तेमाल करीब 10 महीनों तक किया जा सकता है और हम उम्मीद करते हैं कि नियमित खनन जल्द ही शुरू हो जाएगा।' फिलहाल इस्पात कीमतों में बढ़ोतरी नहीं वहीं, कंपनी ने लागतों में बढ़ोतरी के बावजूद इस्पात उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी नहीं करने का निर्णय लिया है। नोवाल ने कहा कि 'लौह अयस्क की कीमतें पिछले दो महीने पहले की अवधि की तुलना में 1,000 रुपये बढ़कर 3,500 रुपये प्रति टन हो गई हैं, जो पहले से 40 फीसदी अधिक हैं।' उत्पादन की कुल लागत 2,000 रुपये प्रति टन बढ़ चुकी है। इस दर पर किसी नॉन कैप्टिव यूजर के लिए अपना संयंत्र चलाना बहुत मुश्किल है। लेकिन हम स्थिति पर निगरानी रख रहे हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर से अधिक कीमतों में बढ़ोतरी व्यवहार्य नहीं है। (BS Hindi)
मसालों के निर्यात में 23 फीसदी की गिरावट
इस साल अप्रैल से अगस्त के दौरान मसालों के निर्यात में 23 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है क्योंकि इस दौरान मिर्च का निर्यात घटा है। कुल मिलाकर मसालों का निर्यात पिछले साल समान अवधि के 2,55,100 टन के मुकाबले घटकर 1,95,000 टन रह गया है।कीमत के लिहाज से हालांकि मसालों के निर्यात में 26 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है और यह 3365.20 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। डॉलर में अगर इसे आंका जाए तो मसालों के निर्यात में 29 फीसदी की उछाल आई है और यह 7515.2 लाख डॉलर हो गया है जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 5811.5 लाख डॉलर था। मिर्च के निर्यात में पिछले पांच महीने में 39 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है और यह 68,000 टन रह गया है जबकि कीमत के लिहाज से मिर्च केनिर्यात में 3 फीसदी की गिरावट आई है। कोटक कमोडिटी सर्विसेज के वरिष्ठ शोध विश्लेषक फैयाज हुडानी ने कहा - पिछले साल से अगर तुलना की जाए तो मिर्च के निर्यात में काफी तेज गिरावट दर्ज की गई है क्योंकि पिछले साल मुख्य रूप से निर्यात मांग चीन की तरफ से निकली थी।विश्लेषकों ने कहा कि इस अवधि में धनिये का निर्यात 47 फीसदी घटकर 12,750 टन रह गया है और कुल मसालों के निर्यात के आंकड़े को नीचे लाने में इसका भी योगदान रहा है। जीरे के निर्यात में भी 39 फीसदी की कमी आई है और यह 9,500 टन रह गया है जबकि कीमत के लिहाज से यह गिरावट 28 फीसदी की रही है।दूसरी ओर छोटी इलायची का निर्यात 517 फीसदी बढ़कर 1450 टन पर जा पहुंचा है, वहीं बड़ी इलायची के निर्यात में 153 फीसदी की तेजी दर्ज की गई है और यह 240 टन पर पहुंच गया है। काली मिर्च के निर्यात में 12 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है और यह 8750 टन पर जा पहुंचा है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 7800 टन काली मिर्च का निर्यात हुआ था। कीमत के लिहाज से भी काली मिर्च के निर्यात में 74 फीसदी की उछाल आई है। फैयाज हुडानी ने कहा - निर्यात बाजार में काली मिर्च की अच्छी खासी मांग थी क्योंकि वैश्विक बाजार में काली मिर्च की उपलब्धता सीमित थी।इस अवधि में हल्दी के निर्यात में 52 फीसदी की उछाल आई है और इस दौरान 36,500 टन हल्दी का निर्यात हुआ है। एक निर्यातक ने कहा कि पिछले एक साल में हल्दी की कीमतों में काफी ज्यादा नरमी देखने को मिली है, इसी वजह से निर्यात में बढ़त आई है। (BS Hindi)
03 अक्टूबर 2011
मक्का का उत्पादन बढऩे से मूल्य में नरमी
चालू खरीफ में मक्का की पैदावार 12.8 फीसदी बढ़कर 158.6 लाख टन होने का अनुमान है। नई फसल की आवक को देखते हुए स्टार्च और पोल्ट्री उद्योग के साथ ही निर्यातकों की मांग भी कमजोर है। चालू महीने में आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मक्का की आवक बढ़ जाएगी तथा नवंबर में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आवक का दबाव बन जाएगा। इसीलिए चालू महीने में मक्का की कीमतों में पांच फीसदी की गिरावट आने की संभावना है।
अमेरिकी कृषि विभाग के भारत में प्रतिनिधि अमित सचदेव ने बताया कि अमेरिका में भी मक्का की नई फसल की आवक शुरू हो गई है। अमेरिका में पैदावार बढऩे की संभावना है इसीलिए शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) में दिसंबर महीने के वायदा अनुबंध में मक्का की कीमतें घटकर 259 डॉलर प्रति टन रह गई है।
इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम के आयातक यदि अमेरिका से मक्का का आयात करते हैं तो इसका भाव 320-325 डॉलर प्रति टन (सीएंडएफ) होगा। जबकि मौजूदा कीमतों के आधार पर भारतीय मक्का का (सीएंडएफ) भाव 300 डॉलर प्रति टन से भी कम है। ऐसे में भारत से चालू सीजन में निर्यात बढऩे की संभावना है।
मनसाराम योगेश कुमार के पार्टनर पूनमचंद गुप्ता निर्यातक काकीनाडा बंदरगाह पर पहुंच मक्का के सौदे 1,310 रुपये प्रति क्विंटल की दर से कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश की मंडियों में मक्का के बिल्टी कट भाव घटकर 1,075 रुपये और कर्नाटक में 1,050 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। चालू महीने में आवक बढऩे पर इसकी कीमतों में करीब 40 से 50 रुपये प्रति क्विंटल की और गिरावट आ सकती है।
हालांकि स्टॉर्च और पोल्ट्री फीड निर्माताओं के पास स्टॉक कम है इसीलिए चालू महीने में इनकी मांग भी निकलेगी जिससे मौजूदा कीमतों में 40-50 रुपये प्रति क्विंटल से ज्यादा गिरावट नहीं आएगी। दिल्ली में मक्का का भाव 1,020-1,025 रुपये प्रति क्विंटल है।
पिछले महीने भर में इसकी कीमतों में करीब 100 रुपये की गिरावट आई है। बीएम इंडस्ट्रीज के मैनेजिंग डायरेक्टर एम. एल. अग्रवाल ने बताया कि सितंबर में समाप्त हुए मक्का सीजन में करीब 27 से 28 लाख टन का निर्यात हुआ है। हालांकि अमेरिका में पैदावार पिछले साल से ज्यादा होने का अनुमान है लेकिन अमेरिका के मुकाबले भारतीय मक्का सस्ता है इसीलिए नए सीजन में भारत से निर्यात में और भी बढ़ोतरी की संभावना है।
कृषि मंत्रालय के आरंभिक अनुमान के अनुसार चालू खरीफ में मक्का का उत्पादन बढ़कर 158.6 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले खरीफ सीजन में 140.6 लाख टन का उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar...R S Rana)
बेहतरी की उम्मीदें जगा गया मॉनसून
जून में शुरू हुआ दक्षिण पश्चिम मॉनसून सीजन पिछले हफ्ते समाप्त हो गया और चार महीने की मॉनसून अवधि में देश में सामान्य से 2 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। अपने तय समय से तीन दिन पहले यानी 29 मई को मॉनसून का आगाज हुआ था और देश के सभी प्रमुख इलाकों में यह करीब-करीब तय समय पर ही पहुंचा था। इसके बाद हालांकि इसकी रफ्तार में थोड़ी कमी आई थी और जुलाई के मध्य तक कुल बारिश सामान्य से करीब 24 फीसदी कम रही थी।इसके बाद मॉनसून ने रफ्तार पकड़ी और मध्य अगस्त व सितंबर के दौरान सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गया। इस तरह से पिछले महीने यानी सितंबर में जोरदार बारिश हुई और हाल के वर्षों में यह महीना मॉनसून सीजन केबेहतर महीनों में से एक रहा। जून से मध्य जुलाई तक बारिश में कमी के चलते मोटे अनाज और दलहन की बुआई पर असर पड़ा था। 20 जून से 10 जुलाई की अवधि दलहन व मोटे अनाज की बुआई के लिए बेहतर समय माना जाता है।हालांकि दलहन उत्पादन वाले तीन प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में इस अवधि के दौरान कमजोर बारिश से उत्पादन पर असर पड़ सकता है और कुल उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 7 लाख टन घटकर 64.3 लाख टन रह सकता है। इन राज्यों में खरीफ सीजन मेंं दलहन का उत्पादन होता है।कृषि मंत्रालय ने अपने पहले अग्रिम अनुमान में कहा है कि खरीफ सीजन में मोटे अनाज का उत्पादन 6 फीसदी कम हो सकता है और कुल उत्पादन 304.2 लाख टन रह सकता है। भारत में दालों का खास महत्व है और इसके उत्पादन में गिरावट से दलहन आयात पर निर्भरता घटाने की सरकार की योजना पर पानी फिर सकता है। इसलिए कृषि मंत्रालय ने आगामी रबी सीजन में राज्यों में 10 लाख हेक्टेयर रकबा दलहन के तहत लाने के लिए 80 करोड़ रुपये अतिरिक्त आवंटित किया है। इस कदम से इच्छित परिणाम मिल सकते हैं क्योंकि अच्छी बारिश के चलते देश के ज्यादातर इलाकों में मिट्टी में नमी बनी रहने की संभावना है। वास्तव में अकेले सितंबर में ही मॉनसून की बारिश सामान्य से करीब 10 फीसदी ज्यादा रही है। मॉनसून सीजन के आखिर में दक्षिण पश्चिम मॉनसून के जोर पकडऩे के चलते ही भारतीय प्रायद्वीप से इसकी वापसी में करीब 20 दिन की देरी हुई, जो सामान्यत: 1 सितंबर को वापस चला जाता है। इस वजह से देश के पूर्वी व उत्तर-पूर्वी इलाके में बाढ़ आ गई, हालांकि इसके चलते फसलों को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा। अच्छी बारिश के चलते देश के 81 प्रमुख जलाशयों में भी अच्छा खासा पानी जमा हो गया है।पिछले हफ्ते तक देश के जलाशयों में करीब 131.49 अरब घनसेंटीमीटर पानी था, जो पिछले साल भंडारित जल के मुकाबले 118 फीसदी और पिछले 10 साल के औसत के मुकाबले 128 फीसदी है। 81 जलाशयोंं में से करीब 75 जलाशयोंं में सामान्य भंडारण का 80 फीसदी पानी था, जबकि सिर्फ 6 जलाशयों में यह 80 फीसदी से कम था। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी रबी सीजन में जलाशयों में इकट्ठा पानी सिंचाई के लिए पर्याप्त है। कुल मिलाकर अनाज, कपास, सोयाबीन, गन्ना आदि का उत्पादन इस साल रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच सकता है क्योंकि बुआई वाले इलाकों में बारिश का वितरण ठीक-ठाक रहा है। एक बार फिर भारतीय मौसम विभाग इस साल के मॉनसून सीजन के लिए बारिश की सटीक भविष्यवाणी करने में विफल रहा। मौसम विभाग लगातार अपने अनुमानों पर खरा उतरने में विफल रहा है और अगस्त के अंत तक यह कहता रहा था कि इस साल देश में सामान्य से कम बारिश होगी। वास्तव में 1 अगस्त को मौसम विभाग ने कहा था कि मॉनसून सीजन के बाकी दो महीने में बारिश लंबी अवधि के औसत का 90 फीसदी रहेगा। लेकिन 31 अगस्त तक वास्तविक बारिश लंबी अवधि के औसत का 110 फीसदी रहा। (BS Hindi)
कॉफी निर्यात में 34 फीसदी की बढ़ोतरी
वैश्विक स्तर पर मजबूत मांग से देश का कॉफी निर्यात 2010-11 के कॉफी वर्ष में करीब 34 फीसदी बढ़कर 3.58 लाख टन रहा। कॉफी बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार कॉफी वर्ष 2009-10 (अक्तूबर-सितंबर) में देश का निर्यात 2.68 लाख टन था। मूल्य के हिसाब से काफी वर्ष 2010-11 में कॉफी निर्यात से आय 74 फीसदी बढ़कर 4,793.91 करोड़ रुपये रही जो इससे पूर्व वर्ष में 2,754.43 करोड़ रुपये थी। चालू वर्ष के पहले नौ महीने में कॉफी निर्यात 30 फीसदी बढ़कर 2.92 लाख टन रहा जो इससे पूर्व वर्ष की समान अवधि में 2.24 लाख टन था। भारत, इटली, जर्मनी, रूस, बेल्जियम तथा स्पेन को कॉफी का निर्यात करता है। (BS Hindi)