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29 सितंबर 2011

एथेनॉल से कमार्ई की तैयारीएथेनॉल से कमार्ई की तैयारी

नई दिल्ली August 25, 2011




एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल से 154 करोड़ रुपये की बचत होने की वजह से तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल में मिलावट के लिए 1.01 अरब लीटर एथेनॉल की खरीद के लिए निविदाएं जारी की हैं। चीनी उद्योग निविदाओं की पूर्ति करने मे सक्षम है। ये निविदाएं 2 सितंबर को बंद होंगी। एथेनॉल की आपूर्ति अक्टूबर से शुरू होने वाले नए चीनी वर्ष में की जाएगी।
देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने 45.5 करोड़ लीटर एथेनॉल खरीदने के लिए निविदाएं जारी की हैं। वहीं, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने क्रमश: 28.3 और 27.7 लाख लीटर एथेनॉल की खरीद के लिए निविदाएं जारी की हैं। तेल विपणन कंपनियां फिलहाल 27 रुपये प्रति लीटर की दर पर एथेनॉल खरीदती हैं। यह कीमत थोड़े समय के लिए हैं। अगर सरकार सौमित्र चौधरी समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लेती है तो इसकी कीमत बढ़ सकती है। समिति ने सुझाव दिया है कि एथेनॉल की कीमतों को इसकी कैलोरिफिक वैल्यू, माइलेज और कर प्रोत्साहन आदि पर विचार करने के बाद पिछली तिमाही की पेट्रोल कीमतों से जोड़ा जाना चाहिए।
पिछले साल तेल विपणन कंपनियों ने 1.04 अरब लीटर पेट्रोल खरीदने की इच्छा जताई थी। रेणुका शुगर, बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी के नेतृत्व वाले चीनी उद्योग ने करीब 1 अरब लीटर की आपूर्ति करने की पेशकश की थी। हालांकि अंतिम अनुबंध 55.9 करोड़ लीटर के लिए हो सके।
फिलहाल पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल 13 राज्यों और 3 संघ शासित प्रदेशों में मिलाया जाता है। इस साल 55.9 करोड़ लीटर की अनुबंधित मात्रा के मुकाबले 15 अगस्त तक आपूर्ति 30.7 करोड़ हुई है।
कम आपूर्ति के पीछे सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के बाहर एथेनॉल की बिक्री पर इस साल तीन महीने के लिए (अप्रैल से) प्रतिबंध लगाना है। हालांकि यह विवाद अब सुलझ चुकी है। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और ज्यादातर उत्तरी राज्यों की मांग पूरी करता है।
एथेनॉल और पेट्रोल की कीमतों में अंतर होने के कारण पेट्रोल में एथेनॉल मिलाना तेल विपणन कंपनियों के लिए फायदेमंद रहता है। अन्यथा कीमतों में संशोधन नहीं होने की वजह से इन कंपनियों को पेट्रोल की बिक्री पर नुकसान होता है। पेट्रोलियम मंत्री आरपीएन सिंह द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार पिछले वित्त वर्ष में तेल विपणन कंपनियों को एथेनॉल के मिश्रण से 154 करोड़ रुपये का लाभ हुआ है। 2008-09-2009-10 के दौरान तेल विपणन कंपनियों का संयुक्त लाभ 153 रुपये रहा था। तेल विपणन कंपनियों को मिश्रण से और अधिक मुनाफा होने की उम्मीद है, क्योंकि इस साल गन्ने के अधिक उत्पादन से एथेनॉल का भी अधिक उत्पादन होगा।
पेट्रोल के साथ 5 फीसदी के अनुपात में एथेनॉल की मिलावट वर्ष 2007 में शुरू हुई थी। लेकिन 2009 में गन्ने का उत्पादन घटने और एथेनॉल के एकमात्र उत्पादक द्वारा आपूर्ति में डिफॉल्ट करने से यह बंद हो गई थी। पिछले साल नवंबर में फिर इसे शुरू किया गया है। एथेनॉल को ग्रीन फ्यूल माना जाता है और पेट्रोल के साथ इसकी मिलावट से भारत की तेल आयात पर निर्भरता कम होगी। (BS Hindi)

28 सितंबर 2011

कम कीमत रखने के लिए ज्वैलरी का नया फॉर्मूला हिट

नया फॉर्मूलाकीमत कम रखने के लिए सोने की शुद्धता 14 से 18 कैरेट के बीचसेमी प्रीशियस स्टोन से ज्वैलरी को सजाने का चलन बढ़ाकम महंगे हुए डायमंड का भी प्रयोग बढ़ रहा है ज्वैलरी मेंसोने की ऊंची कीमतों के कारण और ग्राहकों को उनके बजट के हिसाब से वेडिंग ज्वैलरी उपलब्ध कराने के लिए ज्वैलरी डिजाइनर्स और ज्वैलर्स स्टोन, डायमंड, कुंदन के इस्तेमाल से हैवी लुक वाली हल्की वेडिंग ज्वैलरी बनाने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। उनका कहना है कि इस समय सोने की ऊंची कीमतों के कारण सोने की हैवी ज्वैलरी खरीदना हर ग्राहक के लिए आसान नहीं है, इसलिए ऐसी ज्वैलरी बनाई जा रही है, जो देखने में आकर्षक और हैवी लगे।
हालांकि, इस तरह की ज्वैलरी के लिए मेकिंग चार्ज थोड़ा ज्यादा रहता है। इसके लिए स्टोन वर्क, डायमंड इत्यादि का इस्तेमाल काफी किया जा रहा है। ज्वैलर्स को उम्मीद है कि मेट्रो और टियर वन शहरों में इस तरह की ज्वैलरी काफी लोकप्रिय रहेगी।
गुडग़ांव स्थित गोल्डसूक मॉल में ओम मोनिका कपूर शोरूम चलाने वाली ज्वैलरी डिजाइनर मोनिका कपूर के मुताबिक आजकल सोने की ज्वैलरी में इस तरह के स्टोन का इस्तेमाल किया जा रहा है जो एकदम सोने में फिट हो जाएं और हल्की ज्वैलरी को हैवी लुक दिया जा सके।
उनका कहना है कि इस बार के वेडिंग सीजन में इस तरह की ज्वैलरी ज्यादा दिखाई देगी। इस तरह के डिजाइंस 14 कैरेट से लेकर 18 कैरेट तक शुद्धता की ज्वैलरी में भी ज्यादा देखने को मिलेगी। उम्मीद है कि मेट्रो और टियर वन शहरों में इस तरह की ज्वैलरी की खरीदारी काफी बढ़ेगी।
अन्य ज्वैलरी डिजाइनर रूही नंदा ने बताया कि कम कीमत पर हैवी लुक वाली ज्वैलरी चाहने वाले ग्राहकों के लिए इस वेडिंग सीजन में स्टोन वर्क वाली व कम सोने से बनाई गई ज्वैलरी अच्छा विकल्प रहेगी। इस तरह की ज्वैलरी में डिजाइनिंग ज्यादा होने के कारण मेकिंग चार्ज थोड़ा ज्यादा रहता है। उनका कहना है कि शादी में गहने खरीदने ही पड़ते हैं, ऐसे में मध्यम वर्ग के लिए इस तरह की ज्वैलरी काफी सुविधाजनक रहेगी।
एवेन्यू मोंटेग ज्वैलरी ब्रांड के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट एस. के. पुरी के मुताबिक आजकल सोने की हैवी ज्वैलरी आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है। ऐसे में ग्राहकों को ऐसे विकल्प चाहिए, जो उनकी फैशन की जरूरतों को बखूबी पूरा कर सकें और उनके बजट में हों। इसी कारण 14 से 18 कैरेट सोने की ज्वैलरी में स्टोन और डायमंड लगाकर बनाई गई वेडिंग ज्वैलरी ग्राहकों की फैशन जरूरतों को बखूबी पूरा कर सकती है।
हालांकि, आज भी निवेश के मद्देनजर ग्राहक 22 कैरेट की सोने की ज्वैलरी खरीदना चाहता है, लेकिन महंगी होने के कारण इस तरह की ज्वैलरी अब ग्राहकों के बीच इतनी लोकप्रिय नहीं रह सकेगी। (Business Bhaskar)

'कर चुकाने के बाद ही हो सदस्यता हस्तांतरित'

मुंबई September 27, 2011
जिंस डेरिवेटिव्स बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने जिंस एक्सचेंजों से कहा है कि सदस्यता के हस्तांतरण या बिक्री से पहले सदस्यों द्वारा बकाया कर का भुगतान सुनिश्चित किया जाए। करीब एक सप्ताह पहले अपने सदस्य एक्सचेंजों को जारी किए गए सर्कुलर में एफएमसी ने उनके पास संबंधित सदस्यों द्वारा आंशिक या संपूर्ण सदस्यता के हस्तांतरण के लिए किए गए आवेदन के साथ अतिरिक्त शपथ-पत्र लेने को कहा है। इस शपथ-पत्र में यह सुनिश्चित किया जाए कि संबंधित सदस्य ने पूर्ण या आंशिक सदस्यता के हस्तांतरण से पहले सभी कर देनदारियां चुकता कर दी हैं।एक्सचेंज के एक अधिकारी ने कहा कि 'हालांकि अगर उनके किसी सदस्य के खिलाफ कर चोरी का मामला आता है तो एफएमसी ने इसके लिए एक्सचेंजों को जिम्मेदार नहीं बनाया है। जिंस एक्सचेंज अपने सदस्यों की कर देनदारी के भुगतान के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।'उन्होंने कहा कि हालांकि यह केवल सदस्यों से ली जाने वाली अतिरिक्त शपथ है, जिसे सदस्यता में बदलाव के बाद नियामक को भेजा जाएगा। एफएमसी सख्त दिशानिर्देशों के अभाव और विभिन्न करों जैसे आयकर, ट्रांजेक्शन टैक्स, बिक्री कर, मूल्य संवर्धित कर आदि का बोझ संबंधित सदस्यों पर डालने के कारण सदस्य इन करों का भुगतान किए बिना अपनी सदस्यता बेच रहे थे। अब तक न ही एफएमसी और न ही जिंस एक्सचेंजों को अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत संबंधित टैक्स अथॉरिटीज से स्पष्ट निर्देश मिले। इसके कारण कर भुगतान के बिना किसी प्रमाण के सदस्यता स्थानांतरित की जा रही थी। सभी एक्सचेंजों के सदस्यता हस्तांतरण के नियम अलग-अलग हैं। यह एक्सचेंज द्वारा तय मापदंडों पर निर्भर करता है। लेकिन किसी भी एक्सचेंज से उसके द्वारा विभिन्न अथॉरिटीज को भुगतान किए गए कर के बारे में स्पष्ट शपथ नहीं मांगी जा रही है। आवेदक और लाभार्थी के बारे में विभिन्न पहलुओं की जांच करने के बाद एक्सचेंज पूर्ण या आंशिक हिस्सेदारी हस्तांतरित करते हैं। लेकिन वर्तमान दिशानिर्देशों के तहत आवेदक सदस्य द्वारा चुकाए गए कर के कारण सदस्यता के हस्तांतरण पर प्रश्न नहीं खड़ा किया जा सकता है।हस्तांतरण के साथ ही कंपनी का नाम बदलता है और लाभार्थी कंपनी कंपनी पर लागू टैक्स स्लैब में भी परिवर्तन होता है। इसके परिणामस्वरूप आवेदक कंपनी द्वारा कर चोरी करने की ज्यादा संभावना होती है।एक्सचेंज के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि 'एफएमसी ने यह सुनिश्तित करने की कोशिश की है कि सभी सदस्य सभी कर नियमों का पालन करें। यह दूसरी शर्त है, जिसका पालन करने के लिए नियामक ने कहा है।'हालांकि जिंस एक्सचेंज सदस्यता के हस्तांतरण से पहले सदस्यों के वित्तीय ब्यौरों का लेखा-जोखा नहीं करेंगे। कुछ सदस्यों के खातों की जांच में एफएमसी ने पाया कि उन्होंने सदस्यता में बदलाव किए बिना संबंधित प्राधिकरणों को कर का भुगतान नहीं किया। इसके साथ ही नियामक ने जिंस वायदा कारोबार में और अधिक पारदर्शिता लाने और सदस्यों द्वारा विभिन्न कर अथॉरिटीज के दिशानिर्देशों का पालन कराने की कोशिश की है। नियामक अन्य कर अथॉरिटीज जैसे आयकर, बिक्री कर आदि को आंकड़े भेजने पर विचार कर रहा है, जिससे सभी सरकारी विभाग सहयोगात्मक रूप से कार्य कर सकें। (BS Hindi)

घटती आवक से कपास किसानों को मिल रहे बेहतर दाम

चंडीगढ़ September 27, 2011
पंजाब के किसान चांदी काट रहे हैं, क्योंकि राज्य की मंडियों में कपास की कम आवक के कारण इसके भाव पिछले साल की समान अवधि की तुलना में काफी ऊंचे बने हुए हैं। 26 सितंबर 2011 तक राज्य की मंडियों में कपास की आवक पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 32 फीसदी कम रही है। मंडी बोर्ड द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार, लॉन्ग स्टेपल कपास की औसत कीमत 2,800-4,865 रुपये और मीडियम स्टेपल की कीमत 3,400-4,345 रुपये के बीच चल रही है।इस साल 26 सितंबर तक के आंकड़ों के अनुसार, राज्य की मंडियों में 74,197 क्विंटल (करीब 14,839 गांठों) की आवक हुई है, जबकि पिछले वर्ष समान अवधि तक 1.09 लाख क्विंटल ( 21,779 गांठों) की आवक हो चुकी थी।इन आंकड़ों के हिसाब से आवक में पिछले साल के मुकाबले 32 फीसदी गिरावट रही है। विशेषज्ञों ने कहा कि कम आवक और अधिक मांग की वजह से किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत मिल रही है। वर्तमान में राज्य में कपास की खरीद निजी 'खिलाडिय़ों' के अलावा सरकारी एजेंसी भारतीय कपास निगम (सीसीआई) द्वारा की जाती है। मार्कफेड द्वारा राज्य की मंडियों में खरीद शुरू की जानी बाकी है। निजी खरीदारों में कपड़ा मिलों और निजी कारोबारियों का दबदबा बना हुआ है। निजी कारोबारी और मिल मालिकों द्वारा इस साल 26 सितंबर तक 74,197 क्विंटल कपास की खरीद की गई है। जबकि पिछले साल की समान अवधि तक वे 1.09 लाख क्विंटल कपास की खरीद कर चुके थे। कारोबारियों का अनुमान है कि आने वाले समय में कपास की कीमतें और बढ़ेंगी, क्योंकि बारिश से फसल प्रभावित हुई है।यह उल्लेखनीय है कि इस साल पंजाब में कपास की बुआई 5.50 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो पिछले साल 4.83 लाख हेक्टेयर रही थी। भारी बारिश और खराब मौसम के कारण राज्य के कुछ हिस्सों में कपास की फसल प्रभावित हुई है। मोटे अनुमानों के मुताबिक, पंजाब में कपास का 90,000 हेक्टेयर रकबा प्रभावित हुआ है। हालांकि नुकसान के सही आंकड़े अभी आने बाकी हैं।इस साल अगस्त के अंतिम और सितंबर के पहले सप्ताह में बारिश से पंजाब में कपास की फसल को नुकसान पहुंचा है। इससे पहले बिजनेस स्टैंडर्ड ने खबर प्रकाशित की थी कि लगातार बारिश से कपास की फसल को नुकसान होने के साथ ही चुनने के काम में देरी होगी। इससे बाजार में कपास की आवक में भी देरी होगी। (BS Hindi)

बंपर उत्पादन की आस में चीनी की घटी मिठास

नई दिल्ली September 27, 2011
पेराई सत्र 2011-12 के दौरान देश में चीनी की बंपर उत्पादन होने की संभावना है, जिसका असर चीनी की कीमतों पर देखा जा रहा है। कारोबारियों का कहना है कि आमतौर पर त्योहारी सत्र शुरू होने के साथ ही चीनी के दाम चढऩे लगते है, लेकिन इस बार चीनी की कीमतें सुस्त हैं। उनके मुताबिक बीते 3 माह से सरकार बाजार में मांग के मुकाबले ज्यादा चीनी का कोटा जारी कर रही है। सरकार अगस्त के लिए 17 लाख और सितंबर के लिए 19.31 लाख टन का कोटा जारी कर चुकी है। साथ ही उत्पादन बढऩे की आस के चलते स्टॉकिस्ट बाजार से गायब हैं, लिहाजा चीनी की कीमतों में गिरावट आई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम गिरने से भी घरेलू बाजार में कीमतों में गिरावट को बल मिला है। मुख्य चीनी उत्पादक देश ब्राजील के पहले एथेनॉल पर ज्यादा जोर देने की खबर थी, लेकिन अब इसके चीनी पर बल देने की रिपोर्ट आ रही है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी के दाम गिरे हैं। चीनी का कारोबार करने वाली कंपनी एसएनबी एंटरप्राइजेज के सुधीर भालोटिया ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि सरकार ने अगस्त और सितंबर माह के लिए क्रमश: 17 लाख टन और 19.31 लाख टन चीनी का कोटा जारी किया है, जो बाजार में मांग के मुकाबले काफी ज्यादा है। इस वजह से बाजार में चीनी की आपूर्ति बढ़ गई है, जिससे महीने भर में चीनी के दाम 100 रुपये प्रति क्विंटल गिर चुके हैं। बालाजी ट्रेडर्स के आर. पी. गर्ग बताते है कि ज्यादा आपूर्ति के बीच आगामी पेराई सत्र में चीनी का रिकॉर्ड उत्पादन होने का अनुमान है,जिससे चीनी की कीमतों में गिरावट का रुख है।महीने भर में उत्तर प्रदेश में एक्स फैक्ट्री चीनी के दाम 100 रुपये गिरकर 2,775-2,825 रुपये और दिल्ली में भाव इतने ही घटकर 2880-2950 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। बकौल भालोटिया ब्राजील के चीनी उत्पादन पर जोर देने की वजह से अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी चीनी के दाम करीब 50 डॉलर गिरकर 750-755 डॉलर प्रति पर आ गए हैं। भालोटिया के अनुसार आने वाले दिनों में चीनी की कीमतों में थोड़ा सुधार तो हो सकता है, लेकिन ज्यादा तेजी की उम्मीद नही है। चीनी कारोबारी देशराज कुमार भी चीनी के मूल्यों में तेजी की संभावना को नकारते हैं। (BS Hindi)

रेणुका शुगर्स ने खरीदा महंगा गन्ना

मुंबई September 27, 2011
पिछले वर्ष उत्तम किस्म के गन्ने की खरीद के कारण श्री रेणुका शुगर्स (एसआरएस) के लिए गन्ने की खरीद अन्य कंपनियों के मुकाबले महंगी रही। कंपनी ने पिछले सीजन में गन्ने की खरीद के लिए औसत कीमत 2,831 रुपये प्रति टन चुकाई। जबकि दूसरी सबसे अधिक औसत कीमत सिंभावली शुगर्स लिमिटेड (एसएसएल) द्वारा 2,647 रुपये प्रति टन चुकाई गई। हालांकि एसआरएस द्वारा चुकाई गई कीमत उद्योग की औसत वसूली 28,000-29,000 रुपये प्रति टन के समान ही रही। उद्योग की औसत प्राप्ति करीब 10 फीसदी रही, जिसका मतलब है कि 100 टन गन्ने की पेराई से 10 टन चीनी का उत्पादन हुआ। एक विश्लेषक ने कहा कि 'किसानों को चुकाई गई गन्ने की कीमत महाराष्ट्र की कीमतों के समान ही रही। महराष्ट्र में रिकवरी 11.5 फीसदी रही, जबकि उत्तर प्रदेश स्थित में स्थित ज्यादातर कंपनियोंं की रिकवरी 9.5 फीसदी रही।' आमतौर पर हर साल केंद्र सरकार गन्ने का उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) तय करती है। सीजन 2010-11 के लिए सरकार ने एफआरपी 1,450 रुये प्रति टन तय किया है, जो इससे पिछले वर्ष के एफआरपी 1,392.50 रुपये से मामूली अधिक है। लेकिन एफआरपी को न्यूनतम कीमत मानते हुए चीनी मिलें अपने क्षेत्र के किसानों के साथ बेंचमार्क रिकवरी 9.5 फीसदी के समान कीमतें तय करने के लिए किसानों से सौदेबाजी करती हैं।उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु समेत प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में संबंधित राज्य सरकारें चीनी मिलों के साथ बातचीत कर गन्ने की कीमतें तय करती हैं, जो हमेशा एफआरपी से ज्यादा होती हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने 9.5 फीसदी रिकवरी वाले गन्ने की कीमत 2,050 रुपये तय की थी। लेकिन ज्यादातर मिलों ने गन्ने की ज्यादा उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए बेंचमार्क कीमत से ज्यादा कीमत चुकाई। इसके अलावा उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में गन्ना राजनीतिक एजेंडे में भी सबसे ऊपर रहता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 'कंपनी (रेणुका शुगर्स) प्रभावी जोखिम प्रबंधन और भारतीय रिफाइनरियों के पूर्ण क्षमता के साथ परिचालन के जरिए ऑपरेटिंग नकदी प्रवाह बढ़ाकर बैलेंस शीट पर कर्ज का बोझ कम करने की योजना बना रही है। कंपनी की योजना ब्राजीलियाई कंपनी के अधिग्रहण के टर्नअराउंड को पूरा करने की है।' वहीं सिंभोली शुगर्स के एक अधिकारी ने कहा कि उन्होंने पिछले साल किसानों को 9.5 फीसदी रिकवरी वाले गन्ने की कीमत 205 रुपये प्रति क्विंटल चुकाई। उन्होंने कहा कि ज्यादा रिकवरी पर उसी अनुपात में और अधिक कीमत चुकानी पड़ी। (B S Hindi)

22 सितंबर 2011

ओएमएसएस में गेहूं का भाव 305 रुपये तक सस्ता होगा

फैसला - सरकार ने गेहूं के बिक्री भाव में परिवहन लागत आधी घटाईगेहूं में राहतमणिपुर में सबसे ज्यादा 305.66 रुपये घटकर भाव 1425,05 रुपये प्रति क्विंटल रहेगादिल्ली में भाव 66.38 रुपये घटकर 1,185.77 रुपये प्रति क्विंटल रह जाएगाचंडीगढ़, पंजाब, राजस्थान, यूपी और हरियाणा में बिक्री मूल्य 1,170 रुपये प्रति क्विंटल होगामध्य प्रदेश में गेहूं 1,170 रुपये और छत्तीसगढ़ में 1,237.49 रुपये प्रति क्विंटल होगाकेंद्र सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत गेहूं के बिक्री मूल्य में 66.38 से 305.66 रुपये प्रति क्विंटल तक की कमी की है। सरकारी गेहूं सस्ता होने से खुले बाजार में गेहूं और आटा, मैदा की कीमतों में गिरावट आने की संभावना बन गई है। ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में परिवहन लागत की आधी कीमत जोड़कर बिक्री मूल्य तय करने का फैसला किया है। उत्पादक राज्यों में गेहूं के बिक्री मूल्य में परिवहन लागत नहीं जोड़ी गई है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार ने ओएमएसएस के तहत बिक्री के लिए 15 लाख टन गेहूं का आवंटन 30 सितंबर 2012 तक के लिए किया है। इसके अलावा राज्य सरकारों के लिए 10 लाख टन गेहूं और 10 लाख टन चावल का आवंटन किया है। राज्य सरकारों को इस गेहूं और चावल का उठान 30 सितंबर 2012 तक करना है।
राज्य सरकारों के लिए गेहूं का आवंटन एमएसपी 1,170 रुपये प्रति क्विंटल के आधार पर किया जाएगा जबकि चावल का बिक्री भाव 1,492 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। सरकारी गेहूं की बिक्री कीमतों में ज्यादा कमी मणिपुर में 305.66 रुपये प्रति क्विंटल की होगी। मणिपुर में ओएमएसएस के तहत गेहूं का बिक्री भाव अभी 1,730.71 रुपये प्रति क्विंटल था जो अब घटकर 1,425.05 रुपये प्रति क्विंटल रह जाएगा।
दिल्ली में गेहूं की कीमतों में 66.38 रुपये की कमी आकर बिक्री भाव 1,185.77 रुपये प्रति क्विंटल रह जाएगा। राजस्थान, चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा में इसका बिक्री भाव 1,170 रुपये प्रति क्विंटल रह जाएगा। इसी तरह से मध्य प्रदेश में ओएमएसएस के तहत गेहूं का बिक्री भाव 134.98 रुपये घटकर 1,170 रुपये और छत्तीसगढ़ में 118.09 रुपये कम होकर 1,237.49 रुपये प्रति क्विंटल रह जायेगा।
उत्तर प्रदेश में इसकी कीमतों में 112.21 रुपये की कमी आकर भाव 1,170 रुपये प्रति क्विंटल रह जाएगा। गेहूं के खरीद राज्यों में ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री भाव में परिवहन लागत को नहीं जोड़ा गया है। ओएमएसएस के तहत रिटेल उपभोक्ताओं को आवंटित करने के लिए राज्यों को गेहूं का आवंटन एमएसपी 1,170 रुपये प्रति क्विंटल के आधार पर किया जाएगा।
इससे दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के लिए दाम 5.63 रुपये से 71.72 रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ जाएगा।
मध्य प्रदेश में रिटेल उपभोक्ता को आवंटन के लिए अभी भाव 1,164.37 रुपये, दिल्ली के लिए 1,111.54 रुपये, चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा के लिए 1,098.28 रुपये प्रति क्विंटल था। लेकिन अब इसका भाव बढ़कर 1,170 रुपये प्रति क्विंटल हो जायेगा। (Business Bhaskar.....R S Rana)

आवक बढऩे से सस्ता होगा प्याज

नई दिल्ली September 21, 2011
प्याज के निर्यात पर रोक हटने के बावजूद घरेलू बाजार में इसके सस्ता होने की संभावना है। कारोबारियों का कहना है कि पिछले 10-12 दिनों से महाराष्ट्र में हड़ताल के चलते प्याज बाजार में नहीं आ पाया और अब हड़ताल समाप्त होने से मंडियों में इसकी आवक का दबाव बढ़ेगा। साथ ही अगले 10 दिनों में महाराष्ट्र में प्याज की नई आवक भी शुरू हो जाएगी, जिससे इसके दामों में और गिरावट आ सकती है। निर्यातकों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाकिस्तान और चीन के प्याज की तुलना में भारतीय प्याज ज्यादा होने से निर्यात गिरेगा। निर्यातक सरकार से प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी)में कमी की मांग कर रहे हैं। नासिक जिला कांदा (प्याज) कारोबारी संघ के सदस्य और पिंपलगांव मंडी के प्याज कारोबारी महेंद्र ठक्कर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि निर्यात खुलने के पहले दिन पिंपलगांव, लासलगांव, नासिक की मंडियों में प्याज के दाम 1000-1050 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर खुले। निर्यात खुलने के बारे में सभी किसानों को जानकारी न होने के कारण जिले की अलग-अलग मंडियों में 150-200 ट्रॉली (प्रत्येक ट्रॉली करीब 3 टन)की आवक हुई है। उनका कहना है कि किसान बीते 12 दिनों से प्याज मंडियों में नहीं ला पाए हैं। ऐसे में गुरुवार को मंडियों में आवक बढ़कर 500 ट्राली तक हो सकती है और भारी आवक के दबाव में प्याज के दाम 50 रुपये प्रति क्ंिवटल तक गिर सकते हैं। दिल्ली की आजादपुर मंडी स्थित आलू-प्याज कारोबारी संघ(पोमा) के महासचिव राजेंद्र शर्मा का कहना है कि वैसे तो इन दिनों महाराष्ट्र से दिल्ली में प्याज नहीं आती है। फिर भी वहां हड़ताल के चलते मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान से बीते दिनों में प्याज की आवक कम हुई थी, लेकिन अब हड़ताल समाप्त होते ही मंडी में प्याज की आवक 70 गाड़ी से बढ़कर 115 गाड़ी हो गई है। आजादपुर मंडी में इसके थोक भाव 700-1600 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। (BS Hindi)

'नए साल में 246 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान'

नई दिल्ली September 21, 2011
खाद्य मंत्री के वी थॉमस ने बुधवार को कहा कि अक्टूबर से शुरू होने वाले 2011-12 के फसल विपणन वर्ष में भारत में 246 लाख टन चीनी उत्पादन का अनुमान है, जो पिछले साल के मुकाबले महज 1.23 फीसदी ज्यादा है। सरकार ने हालांकि चीनी उत्पादन का जो अनुमान जाहिर किया है वह उद्योग द्वारा लगाए गए अनुमान के मुकाबले करीब 14 लाख टन कम है।थॉमस ने संवाददाताओं से कहा - इस हफ्ते हमने चीनी उत्पादन के मामले में अग्रणी 11 राज्यों के चीनी आयुक्तों व कृषि विभाग के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की और इस बैठक से अनुमान जाहिर हुआ कि अगले फसल वर्ष में 246 लाख टन चीनी का उत्पादन हो सकता है। थॉमस ने कहा कि साल 2011-12 में गन्ने का रकबा 50.2 लाख हेक्टेयर रहने की संभावना है, जो पिछले साल के मुकाबले 1.63 फीसदी ज्यादा है। इस साल करीब 34.22 करोड़ टन गन्ना उत्पादन की संभावना है जबकि पिछले साल 33.91 करोड़ टन गन्ने का उत्पादन हुआ था। थॉमस ने कहा कि अगले साल के उत्पादन का यह पहला अनुमान है और समय के साथ इसमें घटबढ़ हो सकती है।उन्होंने कहा कि उद्योग को साल 2011-12 में ज्यादा उत्पादन की संभावना नर आ रही है, लेकिन मुझे लगता है कि 246 लाख टन से कम उत्पादन नहीं होगा क्योंकि यह संकीर्ण अनुमान है। चीनी निर्यात की अनुमति पर खाद्य मंत्री ने कहा कि त्योहारी सीजन समापप्त होने के बाद ही इस पर विचार किया जाएगा। सरकार ने ओजीएल के तहत इस साल अब तक 15 लाख टन चीनी निर्यात की अनुमति दी है, लेकिन उद्योग को लगता है कि उत्पादन बढऩे के अनुमान के चलते और निर्यात की अनुमति मिलनी चाहिए।खाद्य तेल उद्योग द्वारा रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी की मांग पर थॉमस ने कहा कि हमें उद्योग का ज्ञापन मिल गया है और हमने यह मामला वित्त व वाणिज्य मंत्रालय के सामने रख दिया है। (BS Hindi)

21 सितंबर 2011

इंडोनेशिया की नई टैक्स दरों से खाद्य तेल कंपनियां संकट में

टैक्स का फंडाइंडोनेशिया ने सीपीओ पर टैक्स बढ़ाकर तेल कंपनियों की मुश्किल बढ़ाईआरबीडी पर टैक्स कम होने से भी भारतीय निर्माता को होगी परेशानीखाद्य तेलों के भारतीय उत्पादकों और कारोबारियों ने इंडोनेशिया द्वारा क्रूड पाम तेल (सीपीओ) के निर्यात पर टैक्स बढ़ाए जाने पर आपत्ति की है और सरकार से मांग की है कि उसे रिफाइंड पामोलीन (आरबीडी) के आयात पर शुल्क बढ़ा देना चाहिए।
इंडोनेशिया ने सीपीओ के निर्यात पर टैक्स 1.5 फीसदी बढ़ाकर 16.5 फीसदी कर दिया है जबकि आरबीडी के निर्यात पर टैक्स 15 फीसदी से घटाकर 8 फीसदी कर दिया है। सॉल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईएआई) ने कहा है कि सरकार को आरबीडी के आयात पर शुल्क बढ़ाकर 16.5 फीसदी कर देना चाहिए। इस समय आरबीडी के आयात पर 7.50 फीसदी आयात शुल्क लगता है। एसोसिएशन का कहना है कि आरबीडी पर आयात शुल्क 484 डॉलर से बढ़ाकर 1,150 डॉलर प्रति टन कर देना चाहिए।
एसोसिएशन के अनुसार इंडोनेशिया में क्रूड पाम तेल पर 16.5 फीसदी और पैक्ड रिफाइंड तेल पर सिर्फ दो फीसदी डिफरेंशियल ड्यूटी लगने से भारतीय तेल उत्पादक कंपनियों के लिए इंडोनेशियाई कंपनियों के सामने प्रतिस्पर्धा में टिक पाना मुश्किल हो गया है। इंडोनेशिया में नया ड्यूटी ढांचा लागू होने के बाद वहां से आयातित आरबीडी पाम तेल करीब 152 डॉलर प्रति टन सस्ता पड़ेगा। भारत में तेल उत्पादक कंपनियां क्रूड पाम तेल आयात करके उसकी प्रोसेसिंग करती हैं और रिफाइंड पाम तेल बनाती हैं।
इंडोनेशिया ने ड्यूटी में बदलाव करके भारतीय तेल कंपनियों के लिए व्यापार करना मुश्किल कर दिया है। जेमिनी एडिबल्स एंड फैट्स इंडिया प्रा. लि. के मैनेजिंग डायरेक्टर प्रदीप चौधरी ने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि इंडोनेशिया आरबीडी सिर्फ 10-20 डॉलर प्रति टन सस्ता रखेगा। इतने अंतर से ही भारतीय खाद्य तेल उद्योग मुश्किल में पड़ जाएगा। (Business Bhaskar)

एफसीआई का 353 लाख टन चावल खरीद लक्ष्य

नया सीजन पहली अक्टूबर से उत्पादक राज्यों में खरीद शुरू होगीपिछले विपणन सीजन में 335.16 लाख टन चावल की खरीद हुई थी कॉमन वेरायटी त्र 1,080 व ए-ग्रेड त्र 1,110 एमएसपी हुआ तयभारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने नए खरीद विपणन सीजन 2011-12 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर 353 लाख टन चावल की खरीद का लक्ष्य तय किया है। जबकि पिछले खरीद सीजन में केंद्र सरकार ने 335.16 लाख टन चावल की खरीद की थी। अगले माह से मंडियों में धान की आवक शुरू होने के साथ ही सरकारी एजेंसियां धान की खरीद शुरू कर देंगी।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू खरीफ में धान की बुवाई में बढ़ोतरी हुई है जबकि मौसम भी अभी तक फसल के अनुकूल बना हुआ है। ऐसे में पैदावार में बढ़ोतरी होने की संभावना है। इसीलिए खरीद का लक्ष्य पिछले विपणन सीजन की तुलना में 5.3 फीसदी ज्यादा रखा गया है।
उन्होंने बताया कि एमएसपी पर धान की खरीद पहली अक्टूबर से शुरू होगी। एफसीआई धान की खरीद के लिए राज्यों की एजेंसियों के साथ मिलकर तैयारियां कर रही हैं। धान की खरीद मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश और बिहार में होने की संभावना है।
कृषि मंत्रालय के अनुसार चालू खरीफ में धान की बुवाई बढ़कर 369 लाख हैक्टेयर में हुई है। पिछले साल की तुलना में बुवाई 32.55 लाख हैक्टेयर ज्यादा क्षेत्रफल में हुई है। जबकि पहली अक्टूबर से शुरू होने वाले विपणन सीजन के लिए केंद्र सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 80 रुपये बढ़ाकर कॉमन वेरायटी के लिए भाव 1,080 रुपये और ए-ग्रेड के लिए 1,110 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है।
केंद्रीय पूल में एक सितंबर को 227.14 लाख टन चावल का स्टॉक मौजूद है जो तय मानक बफर के मुकाबले ज्यादा है। एक अक्टूबर को केंद्रीय पूल में 52 लाख टन बफर के अलावा 20 लाख टन रिजर्व को मिलाकर कुल 72 लाख टन चावल का स्टॉक होना चाहिए। केंद्रीय पूल में एक सितंबर को कुल खाद्यान्न का 564.52 लाख टन का स्टॉक बचा हुआ है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

प्याज निर्यात पर रोक हटी

फैसलेदलहन, खाद्य तेलों पर स्टॉक लिमिट की अवधि एक साल बढ़ीचीनी पर स्टॉक लिमिट अवधि दो महीने के लिए बढ़ाई गईचावल, धान पर स्टॉक लिमिट हटाने के लिए राज्यों से होगी बातकेंद्र सरकार ने प्याज निर्यात पर लगी रोक को हटा लिया है। लेकिन बढ़ती महंगाई से चिंतित सरकार ने दलहन और खाद्य तेलों पर लगी स्टॉक लिमिट की अवधि एक साल के लिए बढ़ा दी है। चीनी पर स्टॉक लिमिट दो महीने के लिए बढ़ाई गई है जबकि चावल और धान पर लिमिट हटाने के लिए राज्यों से विचार-विमर्श किया जायेगा।
इसके अलावा सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना के तहत गेहूं के बिक्री भाव में भी कटौती की है।खाद्य मामलों पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह की मंगलवार की बैठक में ये फैसले किए गए।
बैठक के बाद खाद्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के.वी. थॉमस ने बताया कि प्याज निर्यात पर रोक हटा ली गई है। चीनी पर स्टॉक लिमिट की अवधि दो महीने बढ़ाकर 30 नवंबर 2011 तक कर दी गई है। दलहन और खाद्य तेलों पर स्टॉक लिमिट की अवधि को एक साल बढ़ाकर 30 सितंबर 2012 तक कर दिया गया है।
चावल और धान पर स्टॉक लिमिट हटाने के संबंध में राज्यों से विचार-विमर्श के बाद ही कोई फैसला लिया जायेगा। चीनी, दलहन, चावल और खाद्य तेलों पर स्टॉक लिमिट की अवधि 30 सितंबर 2011 को समाप्त हो रही थी। ओएमएसएस के तहत गेहूं के बिक्री भावों में कटौती की गई है। ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री की अवधि भी 30 सितंबर 2011 को समाप्त हो रही थी। (Business Bhaskar....R S Rana)

देश का चाय आयात 22 फीसदी घटा

नई दिल्ली September 20, 2011
मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल से जुलाई के दौरान देश का चाय आयात घटकर 51.9 लाख किलोग्राम रह गया, जो पिछले साल की इसी अवधि से 22 फीसदी कम है। चाय बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार इससे पिछले साल इसी अवधि में कुल 66.2 लाख किलोग्राम चाय का आयात किया गया था। भारत दुनिया का सबसे अधिक चाय की खपत करने वाला देश है, जबकि यहां चाय का आयात पूरी तरह दूसरे देशों को निर्यात करने के लिए किया जाता है। वित्त वर्ष 2011-12 के शुरूआती चार माह में चीन, केन्या, मलावी, वियतनाम, श्रीलंका, ईरान, अर्जेंटीना और नेपाल से किया जाने वाले चाय आयात में गिरावट आई। जुलाई 2011 के दौरान देश के चाय आयात में 19 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई और यह 16.7 लाख किलो पर आ गया, जो पिछले साल इसी माह में 20.6 लाख किलो था। (BS Hindi)

खाद्य तेल के आयात शुल्क में संशोधन की मांग

नई दिल्ली September 20, 2011
भारतीय खाद्य तेल उद्योग को इंडोनेशिया का भय सताने लगा है, लिहाजा उद्योग ने सरकार से रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क में तत्काल संशोधन करने का अनुरोध किया है ताकि घरेलू रिफाइनरों की कीमत पर रिफाइंड खाद्य तेल की संभावित बाढ़ को रोका जा सके।खाद्य तेल उद्योग ने सरकार से रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क को मौजूदा 7.73 फीसदी से बढ़ाकर 16.5 फीसदी करने और खाद्य तेल की टैरिफ वैल्यू पर चार साल से ज्यादा समय से लगी पाबंदी हटाने की मांग की है।आयात शुल्क में संशोधन की मांग इंडोनेशिया (भारत को पाम तेल की आपूर्ति करने वाले बड़े देशों में से एक) द्वारा उठाए गए कदमों के बाद हुई है, जिसके तहत इंडोनेशिया ने पैकेज्ड रिफाइंड पाम तेल पर निर्यात शुल्क 15 फीसदी से घटाकर 2 फीसदी कर दिया है। साथ ही थोक पाम तेल पर निर्यात शुल्क अब 8 फीसदी की दर से वसूला जाएगा। नई दरें 1 अक्टूबर से लागू होंगी। साथ ही वह कच्चे पाम तेल पर आयात शुल्क 15 फीसदी से बढ़ाकर 16.5 फीसदी करने जा रहा है।भारतीय खाद्य तेल उद्योग ने अक्टूबर में समाप्त होने वाले मौजूदा तेल विपणन वर्ष में कुल आयातित 85 लाख टन में से करीब 60 लाख टन पाम तेल का आयात इंडोनेशिया से किया है। उद्योग को लगता है कि अगर इंडोनेशिया से रिफाइंड पाम तेल की बाढ़ को नहीं रोका गया तो इसका नुकसान घरेलू रिफाइनिंग उद्योग को उठाना पड़ेगा।उद्योग ने रिफाइंड पाम तेल के टैरिफ वैल्यू में भी संशोधन करने की मांग की है क्योंकि वास्तविक शुल्क के मुकाबले प्रभावी शुल्क कम है और रिफाइंड पाम तेल के आयात पर लगाम कसने के लिए इसमें भी संशोधन जरूरी है। मौजूदा समय में रिफाइंड पाम तेल का टैरिफ वैल्यू 484 डॉलर प्रति टन तय है, वहीं पाम तेल की मौजूदा बाजार कीमत 1150 डॉलर प्रति टन है। इसके चलते प्रभावी आयात शुल्क महज 3.5 फीसदी बैठता है, जबकि कागजों पर यह 7.73 फीसदी नजर आता है।सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष सुशील गोयनका ने कहा - यह धारणा सही नहीं है कि इस समय रिफाइंड पाम तेल पर आयात शुल्क बढ़ाने से पहले से ही मजबूत रही महंगाई पर दबाव बढ़ेगा, क्योंंकि घरेलू खाद्य तेल कंपनियों के पास कच्चे तेल को शोधित करने की पर्याप्त क्षमता है। उन्होंने कहा कि खाद्य तेल उद्योग के पास कुल 2 करोड़ टन तेल शोधित करने की क्षमता है, वहीं इसकी आपूर्ति काफी कम है।भारतीय खाद्य तेल उद्योग करीब 90,000 करोड़ रुपये का है और इसमें रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, अदाणी विल्मर, आईटीसी जैसी बड़ी कंपनियां भी शामिल हैं। खाद्य तेल उद्योग घरेलू मांग को पूरा करने के लिए ज्यादातर कच्चे पाम व सोया तेल का आयात करता है और उसे अपनी इकाई में शोधित करता है। साथ ही यह देश में उत्पादित तिलहन मसलन सोयाबीन, मूंगफली और सरसों की भी पेराई करता है, लेकिन कुल कारोबार में इसका हिस्सा काफी कम है क्योंकि तिलहन का स्थानीय उत्पादन 240-270 लाख टन सालाना पर स्थिर है जबकि खाद्य तेल की मांग सालाना करीब 4-5 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है। स्थानीय रूप से उत्पादित तिलहन से देश की कुल खाद्य तेल जरूरत का आधा ही पूरा हो सकता है। भारत में सालाना 110-130 लाख टन खाद्य तेल की जरूरत होती है, जिसमें से करीब 70-80 लाख टन का आयात होता है। एक ओर जहां पाम तेल का आयात इंडोनेशिया व मलयेशिया से होता है, वहीं सोया तेल का आयात ब्राजील व अर्जेंटीना से होता है।अक्टूबर में समाप्त होने वाले तेल विपणन वर्ष 2010-11 में देश मेंं कुल 80-82 लाख टन खाद्य तेल का आयात हुआ, जबकि एक साल पहले य ह करीब 70-75 लाख टन था। रुचि सोया इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक दिनेश सहारा ने कहा - साल 2010-11 के तेल विपणन वर्ष में हमें लगता है कि कुल आयात बढ़कर 90-92 लाख टन पर पहुंच जाएगा। उद्योग को लग रहा है कि अगर शुल्क में संशोधन नहीं हुआ तो त्योहारी सीजन में खाद्य तेल की किल्लत हो सकती है क्योंंकि इंडोनेशिया के पास इतनी क्षमता नहीं है कि वह भारत की रिफाइंड खाद्य तेल की जरूरतों को पूरा कर सके। (BS Hindi)

16 सितंबर 2011

निवेश मांग से सोने में आएगा उफान

मुंबई September 15, 2011
गोल्ड फील्ड मिनरल सर्विसेज (जीएफएमएस) ने कहा है कि सोने में बढ़ते निवेश मांग के चलते साल के आखिर तक कीमतें बेंचमार्क 2000 डॉलर प्रति आउंस के पार चली जाएंगी। हालांकि जीएफएमएस ने निकट भविष्य में इसमें गिरावट की संभावना जताई है। जीएफएमएस वैश्विक स्तर पर स्वतंत्र कंसल्टेंसी फर्म है और गुरुवार को इस बाबत अनुमान जताया है।लंदन में जीएफएमएस गोल्ड सर्वे पर रिपोर्ट जारी करते हुए जीएफएमएस के वैश्विक प्रमुख (मेटल एनालिटिक्स) फिलिप क्लैपविज्क ने कहा - वैश्विक स्तर पर सोने में निवेश की मांग से इसकी कीमतें बढ़ रही हैं। मौजूदा हालात ने सोने में निवेश के लिए सही वातावरण तैयार किया है, ऐसे में सोने की कीमतें एक दिन के कारोबार में 1900 डॉलर प्रति आउंस के पार जाने का मतलब समझा जा सकता है। सॉवरिन कर्ज संकट का समाधान नहीं निकलने और आर्थिक मोर्चे पर बुरी खबरों के चलते सोने के प्रति निवेशकों का लगाव जारी रहने की संभावना है। उन्होंने कहा कि ये सभी चीजें सोने की कीमतें 2000 डॉलर के पार चले जाने का आधार बनाती हैं।कॉमेक्स वायदा में 7 सितंबर को 1923.7 डॉलर प्रति आउंस को छूने के बाद मुनाफावसूली के चलते सोना 1809 डॉलर प्रति आउंस के आसपास आ गया है।सोने में निवेश के विभिन्न जरियों कुल निवेश मांग मौजूदा कैलेंडर वर्ष की दूसरी छमाही में रिकॉर्ड 1000 टन के पार जाने का अनुमान है जबकि पिछले साल की समान अवधि में यह 624 टन रहा था। 1815 डॉलर प्रति आउंस के भाव को मानते हुए निवेश की कुल कीमत साल 2011 की दूसरी छमाही में 60 अरब डॉलर को पार कर जाएगी, जो पहली छमाही में 29 अरब डॉलर रही है। क्लैपविज्क ने कहा - कुछ लोगों को लग सकता है कि पहली छमाही का आंकड़ा थोड़ा है, लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि साल 2011 की शुरुआत में मुनाफावसूली के चलते सोने की तेजी पटरी से उतर गई थी और शेयर बाजार में अच्छी खासी तेजी थी। सोवरेन कर्ज संकट गहराने के बाद निवेशकों के नजरिये में भारी बदलाव आया। यूरो जोन का संकट अटलांटिक पार कर गया और अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग में गिरावट आ गई। इसे देखते हुए सोने में निवेश की मांग बढऩे लगी।इससे पहले वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के प्रबंध निदेशक एम. ग्रब ने कहा था - यूरोपीय कर्ज संकट, अमेरिकी कर्ज, महंगाई के दबाव और पश्चिमी देशों में आर्थिक विकास की सुस्त रफ्तार से आने वाले दिनों में निवेश की मांग में काफी ज्यादा बढ़ोतरी होने की संभावना है।अगस्त में वैश्विक अर्थव्यवस्था में गिरावट आने, कम ब्याज दरें (वास्तविकता में नकारात्मक), औद्योगिक दुनिया में महंगाई के खतरे और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं में महंगाई के उच्च स्तर पर पहुंचने के साथ-साथ उत्तरी अफ्रीका व पश्चिम एशिया में संघर्ष ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। पहली छमाही में आधिकारिक खरीद ने भी इस दावे को समर्थन प्रदान किया है, जहां कुल खरीद 200 टन की रही, जबकि साल 2010 में कुल 77 टन सोना खरीदा गया था।a (BS Hindi)

डिफॉल्टर पर लगी 5 साल की पाबंदी

मुंबई September 15, 2011
जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने डिफॉल्ट करने वाले सदस्यों के दोबारा प्रवेश पर 5 साल की पाबंदी लगा दी है। ये सदस्य 5 साल तक किसी भी एक्सचेंज की सदस्यता हासिल नहीं कर पाएंगे। 13 सितंबर को जारी निर्देश में एफएमसी ने एक्सचेंजों से कहा है कि वह डिफॉल्टर की सूचना दूसरे एक्सचेंजों के साथ साझा करे और दावों के निपटान में उनकी मदद करे ताकि वह सदस्य एक एक्सचेंज में डिफॉल्ट करने के बाद दूसरे एक्सचेंज में कारोबार न कर सके।आज के समय में एफएमसी का दिशानिर्देश इस मुद्दे पर मौन है। लेकिन साल 2003 में वायदा कारोबार की अनुमति दिए जाने के बाद से ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जिसमें डिफॉल्ट करने वाले सदस्यों ने दोबारा पंजीकरण कराया हो। इस दिशानिर्देश से पहले हालांकि एक एक्सचेंज में डिफॉल्ट करने वाला सदस्य एक्सचेंजों के बीच सूचना के आदान प्रदान न होने और एक्सचेंजों के बीच एकरूपता नहीं होने के चलते दूसरे एक्सचेंज की सदस्यता हासिल कर लेता था और कारोबार चलाता था। चूंकि हर एक्सचेंज अपने दिशानिर्देश से संचालित होता है, लिहाजा एक एक्सचेंज का डिफॉल्टर दूसरे एक्सचेंज द्वारा कभी भी दंडित नहीं किया गया है।ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक (जिंस) ने कहा - यह सकारात्मक कदम है क्योंकि एक एक्सचेंज में डिफॉल्ट करने वाले सदस्य को दूसरे एक्सचेंज के प्लैटफॉर्म का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं मिल पाएगी। एफएमसी के निर्देश में कहा गया है - अगर एक सदस्य किसी एक्सचेंज में डिफॉल्टर घोषित हुआ है तो संबंधित एक्सचेंज तत्काल दूसरे एक्सचेंजों को इस बाबत पूरी सूचना देगा। नियामक ने कहा है कि डिफॉल्ट करने वाला सदस्य अगर कंपनी हैं तो उसके मामले में कुछ कदम उठाने होंगे। इस कंपनी के प्रमोटर और इसकी हिस्सेदारी के साथ-साथ दूसरी सूचनाएं उन्हें तत्काल दूसरे एक्सचेंजों के साथ साझा करनी होगी। अगर डिफॉल्ट करने वाले ब्रोकर का सहयोगी दूसरे जिंस एक्सचेंज का सदस्य हो तो इसके खिलाफ कदम उठाने के लिए संबंधित एक्सचेंज प्रासंगिक तथ्य की जांच करने के बाद खुद फैसला लेगा। एफएमसी ने स्पष्ट किया है कि अगर डिफॉल्ट करने वाला सदस्य किसी और एक्सचेंज का सदस्य हो तो दूसरे एक्सचेंजों में भी उसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया जाना चाहिए।एक विश्लेषक ने कहा - इससे जिंस एक्सचेंजों में मजबूती आएगी और कारोबार में अतिरिक्त पारदर्शिता नजर आएगी। जिंस एक्सचेंजों में इससे वास्तविक कारोबार को प्रोत्साहन मिलेगा। एफएमसी ने कहा है कि डिफॉल्ट करने वाले सदस्य की संपत्ति का जुड़ाव उसके दायित्व से होना चाहिए और इसके जरिए हर एक्सचेंज के दावों का निपटान होना चाहिए। नैशनल कमोडिटी ऐंड डेरिवेटिव एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) के चीफ बिजनेस अफसर विजय कुमार ने कहा - 'कभी कभार ही कोई सदस्य डिफॉल्टर घोषित होता है। यह जरूरी नहीं है कि वह उत्पाद आधारित हो बल्कि वह घटना विशेष पर आधारित हो सकता है। अगर देर शाम किसी खास जिंसों की कीमतों में होने वाले उतारचढ़ाव के चलते मार्जिन की वसूली नहीं हो पाती है तो फिर क्लाइंट के डिफॉल्ट होने की संभावना ज्यादा होती है। ऐसे में यह एफएमसी का स्वागतयोग्य कदम है।' सभी जिंस एक्सचेंजों को अपने नियमों में उपयुक्त संशोधन करने का निर्देश एफएमसी ने दिया है। (BS Hindi)

280 फीसदी बढ़ गया रबर का निर्यात

कोच्चि September 14, 2011
चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-अगस्त अवधि के दौरान प्राकृतिक रबर के निर्यात में 280 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रबर बोर्ड के आंकड़ों के मुताबिक संदर्भित अवधि में कुल निर्यात 12,219 टन रहा है, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 4,364 टन रहा था।घरेलू बाजार में प्राकृतिक रबर की कीमतों में गिरावट की वजह से निर्यात में भारी बढ़ोतरी हुई है। ऊंची कीमतों और निम्न गुणवत्ता समेत कई वजहों से भारत से प्राकृतिक रबर के निर्यात की स्थिति कमजोर बनी हुई थी। वर्ष 2010 के कुछ महीनों में निर्यात लगभग नगण्य भी रहा। इस साल अगस्त में निर्यात बढ़कर 1,082 टन रहा, जो पिछले वर्ष के समान महीने में केवल 17 टन रहा था। इस साल जुलाई में 779 टन प्राकृतिक रबर का निर्यात हुआ, जो जुलाई 2010 में मात्र 24 टन था। चालू वित्त वर्ष की कुछ समयावधियों में भारतीय प्राकृतिक रबर की कीमतें विदेशी खरीदारों के लिए फायदेमंद थीं, क्योंकि घरेलू कीमतें 17-19 रुपये प्रति किलोग्राम कम बनी हुई थीं। इस वित्त वर्ष के शेष महीनों में भी निर्यात बढऩे की संभावना है, क्योंकि वैश्विक कीमतें भारत से अधिक बनी हुई हैं। भारतीय प्राकृतिक रबर की गुणवत्ता अच्छी नहीं होने के कारण वैश्विक बाजार में इसे ज्यादा ग्राहक नहीं मिलते हैं। लेकिन कीमतों में 12-15 रुपये प्रति किलोग्राम की गिरावट आने पर भारत विदेशी खरीदारों के लिए आकर्षक केंद्र बन जाएगा। घरेलू खपत ज्यादा होने के कारण भारत वैश्विक निर्यात बाजार का प्रमुख खिलाड़ी नहीं है।विदेशी बाजारों में ऊंची कीमतें होने के कारण इस वित्त वर्ष की अप्रैल-अगस्त अवधि में प्राकृतिक रबर का आयात घटा है। इस दौरान देश में इसका आयात 11 फीसदी गिरकर 76,116 टन रहा है, जो पिछले साल की समान अवधि में 85,058 टन रहा था। हालांकि इस पर आयात शुल्क को 20 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया गया है। विदेशी बाजारों में ऊंची कीमतों के कारण घरेलू खरीदारों के लिए आयात भी फायदे का सौदा नहीं है। उद्योग ने निश्चित स्टॉक बनाए रखने और रबर की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए शुल्क मुक्त आयात की मांग की है। लेकिन राजनीतिक बाधाओं, विशेष रूप से रबर उत्पादक राज्य केरल के कारण सरकार शुल्क मुक्त आयात की स्वीकृति देने की स्थिति में नहीं है। (BS Hindi)

कपास में उफान से कारोबारी हैरान

मुंबई September 14, 2011
भारी बारिश के चलते कपास उत्पादक राज्यों से फसल खराब होने की आ रही खबरों के बावजूद इस बार घरेलू और वैश्विक बाजार में बंपर पैदावार की उम्मीद है। वहीं मंडियों में भी पर्याप्त भंडार है, फिर भी कपास की कीमतों में तेजी देखी जा रही है। बाजार के जानकार इसे नई फसल के आने से पहले सटोरियों की चालमान रहे हैं।कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक पिछले एक माह में कपास की कीमतें करीब 22 फीसदी तक चढ़ चुकी हैं। 1 अगस्त को शंकर-6 कपास की कीमत 32,000 रुपये प्रति कैंडी थी जो 31 अगस्त को बढ़कर 36,500 रुपये और 12 सितंबर को 40,000 रुपये प्रति कैंडी पहुंच गई। इसी तरह डीसीएच 32 की कीमत 1 अगस्त को 54,500 रुपये से बढ़कर 1 सितंबर को 56,000 रुपये प्रति कैंडी पहुंच गई। हालांकि 13 सितंबर तक इसकी कीमत घटकर 55,000 रुपये प्रति कैंंडी रह गई। कॉटन एसोसिएशन के किशोरीलाल झुनझनवाला कहते हैं कि अच्छे मॉनसून की वजह से इस बार कपास का रकबा भी बढ़ा है। इसके बावजूद कीमतों में जो उछाल दिखाई दे रहा है वह निर्यात कोटा बढ़ाए जाने को लेकर चल रही रसाकस्सी की वजह से सेंटीमेंटल बढ़त मानी जा सकती है।भारत मर्चेंट चेंबर के अध्यक्ष राजीव सिंघल कहते हैं कि कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार कपास की बुआई 118.90 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल इस समय तक 108.9 लाख हेक्टेयर में बुआई हुई थी। वहीं किसानों ने बीटी कॉटन का इस्तेमाल ज्यादा किया है जिससे उत्पादन बढऩे की संभावना है। मंडियों में भी कपास का पर्याप्त भंडार है। ऐसे में कीमतों में अचानक तेजी सवाल खड़ा करता है।हरियाणा, पंजाब और महाराष्ट्र एवं मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में लगातार हो रही बारिश की वजह से कपास की फसल खराब होने की बात कही जा रही है लेकिन बाजार के जानकार इससे सहमत नहीं हैं। किशोरी लाल जी कहते हैं कि मौसम कपास के अनुकूल है जिससे उत्पादन बढ़ेगा। कारोबारियों का कहना है कि फसल खराब होने और निर्यात की अटकलों को हवा देकर सटोरियों ने कीमतें बढ़ाई हैं। अगले 10-15 दिन में कपास की नई फसल बाजार में आनी शुरू हो जाएगी और कीमतों में गिरावट आएगी।कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार इस बार 363 लाख गांठ कपास का उत्पादन होगा जबकि पिछले साल 332.25 लाख गांठ कपास का उत्पादन हुआ था। यही वजह है कि पर्याप्त भंडार के चलते सरकार ने कपास के निर्यात को हरी झंडी दी है। (BS Hindi)

अनाज उत्पादन में बढ़ोतरी की उम्मीद

नई दिल्ली September 14, 2011
कृषि मंत्रालय ने कहा है कि रकबे में बढ़ोतरी और अनुकूल मौसम के चलते मौजूदा खरीफ सीजन में करीब 12.38 टन अनाज उत्पादन की उम्मीद है जबकि पिछले साल 12.02 करोड़ टन अनाज का उत्पादन हुआ था। बेहतर उत्पादन से खाद्यान्न की बढ़ती कीमतों से जूझ रही सरकार को थोड़ी राहत मिल सकती है।खाद्यान्न का ज्यादा उत्पादन चावल के रिकॉर्ड पैदावार की पृष्ठभूमि में होगा, जो साल 2011-12 (जुलाई-जून) में 8.71 करोड़ टन रहने की संभावना है, जबकि पिछले साल 8.06 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था।फसल वर्ष 2011-12 (खरीफ व रबी) में देश में रिकॉर्ड 10.2 करोड़ टन चावल उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है, जो साल 2010-11 में उत्पादित 9.53 करोड़ टन के मुकाबले ज्यादा है। साल 2008-09 के खरीफ सीजन में भारत में रिकॉर्ड 8.49 करोड़ टन चावल का उत्पादन हुआ था, हालांकि उसके बाद से उत्पादन में गिरावट आती रही है।जुलाई में शुरू साल 2011-12 के फसल विपणन सीजन के लिए प्रथम अग्रिम अनुमान जारी करते हुए कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा -विगत के प्रदर्शन को देखते हुए हमें लगता है कि साल 2011-12 (खरीफ व रबी) में देश में रिकॉर्ड 24.5 करोड़ टन खाद्यान्न का उत्पादन हो सकता है। हालांकि महंगाई पर आशावादिता धूमिल पड़ सकती है क्योंकि मौजूदा सीजन में मॉनसून के आगमन में देरी और बेहतर रिटर्न की खातिर आकर्षक फसलों की ओर किसानों के रुझान के चलते दालों के साथ-साथ मोटे अनाज के उत्पादन में कमी का अनुमान है।इस खरीफ सीजन में 64.3 लाख टन दालों के उत्पादन का अनुमान है, जो पिछले साल के 71.2 लाख टन के मुकाबले कम है। इसी तरह 3.04 करोड़ टन मोटे अनाज के उत्पादन का अनुमान है, जो पिछले साल की समान अवधि में उत्पादित 3.24 करोड़ टन के मुकाबले कम है।आधिकारिक बयान में कहा गया है कि फसल वर्ष 2011-12 में 2.08 करोड़ टन तिलहन उत्पादन का अनुमान है, जो पिछले साल के 2.02 करोड़ टन के मुकाबले ज्यादा है। इस अवधि में 56.2 लाख टन मूंगफली उत्पादन का अनुमान है जबकि पिछले साल 56.5 लाख टन मूंगफली का उत्पादन हुआ था। सोयाबीन का उत्पादन 1.25 करोड़ टन रहने की संभावना है जबकि पिछले साल 1.26 करोड़ टन सोयाबीन का उत्पादन हुआ था।दलहन में अरहर का उत्पादन 29 लाख टन रहने का अनुमान है जबकि पिछले साल 28.9 लाख टन अरहर का उत्पादन हुआ था। वहीं 12 लाख टन मूंग का उत्पादन हो सकता है जबकि पिछले साल 15.2 लाख टन मूंग का उत्पादन हुआ था। (BS Hinsi)

प्याज निर्यात का मामला अदालत में

मुंबई September 14, 2011
पांच दिन पहले विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा जारी किए गए निर्यात प्रतिबंध के आदेश के खिलाफ दो प्याज निर्यातक समूहों ने बंबई उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की हैं। इन दोनों मामलों की सुनवाई 20 और 21 सितंबर को होगी। ये प्याज निर्यातक उस खेप के लिए अंतरिम राहत की मांग कर रहे हैं, जिसके लिए सरकार द्वारा पहले ही अनापत्ति प्रमाण-पत्र (एनओसी) जारी किए जा चुके हैं और यह माल बंदरगाहों पर कंटेनरों में भराई के विभिन्न चरणों में है। याचिका दायर करने वाले मुंबई स्थित निर्यातक ने नाम सार्वजनिक न करने की शर्त पर बताया कि 'हमने सीमा शुल्क आयुक्त और डीजीएफटी को पक्षकार बनाया है। न्यायालय ने बुधवार को पहली बार सुनवाई की। अंतिम सुनवाई 21 सितंबर को होगी और उसी दिन आदेश जारी किया जाएगा।'शहरी क्षेत्रों में खुदरा कीमतें बढऩे के कारण डीजीएफटी ने 9 सितंबर को सभी प्रकार के प्याज निर्यात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का आदेश जारी किया था। यह कदम न्यूनतम निर्यात कीमत में अचानक 175 डॉलर की वृद्धि कर इसे 375 डॉलर प्रति टन करने के एक दिन बाद उठाया गया। कारोबारियों का कहना है कि सरकार ने वास्तविक स्थिति का जायजा लिए बिना जल्दबाजी में यह निर्णय लिया है। कारोबारियों को इतने जल्द प्रतिबंध नहीं लगाने की उम्मीद थी। इसके कारण वे विदेशी कारोबारियों विशेष रूप से दुबई, के साथ 45,000 टन प्याज के अनुबंध कर चुके थे। ये कारोबारी निर्यात के विभिन्न चरणों में थे, क्योंकि इनमें से लगभग सभी को सीमा शुल्क विभाग और अन्य नियामकीय प्राधिकरणों से अनापत्ति प्रमाण-पत्र (एनओसी) मिल चुके थे। एक निर्यातक ने कहा कि 'हम अनुबंधों को पूरा करने के लिए 2,600 टन प्याज कंटेनरों में भरने के लिए पहले ही बंदरगाह पर भेज चुके थे। निर्यात प्रतिबंध से न केवल निर्यात पर चोट पहुंची है, बल्कि इस प्याज को वापस गादामों में पहुंचाने की लागत का बोझ उन्हें उठाना पड़ा है।' मामला दर्ज कराने वाले दूसरे निर्यातक ने कहा कि इससे विश्व में भारत की छवि खराब हुई है। किसी भी समय प्रतिबंध लगने की संभावना के कारण भविष्य में कोई भी आयातक हम पर विश्वास नहीं करेगा। वहीं, बुधवार को दूसरे दिन भी नासिक मंडी बंद रही। लेकिन वाशी कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) बाजार में कीमतें सीमित दायरे में ही रहीं। यहां अच्छी किस्म की प्याज का भाव 11-12 रुपये प्रति किलोग्राम रहा। वाशी एपीएमसी में प्याज की कीमतें सामान्य हैं। हालांकि खुदरा बाजार में कीमतें पिछले कुछ दिनों में दुगुनी 22-24 रुपये प्रति किलोग्राम हो चुकी हैं। इसकी वजह गोदामों से आपूर्ति में गिरावट आना है। कई छुट्टियां होने की वजह से गोदामों से हाजिर मंडियों में सभी जिंसों की आपूर्ति प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा कि नया फसल सीजन अक्टूबर के अंत तक शुरू होने की संभावना है और उपभोक्ताओं को करीब एक महीने और जिंसों की तेज कीमतों का सामना करना पड़ेगा। कम कीमतों से स्टाकिस्ट स्टॉक करने से परहेज करेंगे, जिससे प्याज की कीमतें फसल की कटाई के समय 2 रुपये प्रति किलोग्राम तक आ सकती हैं। देश में नाशिक के प्याज की आपूर्ति में 30 फीसदी योगदान होता है। (BS Hindi)

संकट को अनुमति

सफेद सोने के विदेशी बीजों से किसानों के जीवन में अंधेरा देश में कपास बीज की बीटी किस्मों से किसानों और खेती के संकट चरम पर





पेटलावद के किसान जयंतीलाल सेप्टा ने तीन साल पहले स्थानीय बीज विक्रेता की सलाह पर कपास का विदेशी जीन परिवर्धित बीज बोना शुरू किया था कि इससे कपास की पैदावार दो गुनी हो जायेगी और फसल को नुकसान पहुंचाने वाली डेंडू छेदक इल्ली (बॉलवार्म) का प्रकोप भी कम होगा। पहले साल तो यह दावा उन्हें सच ही लगा क्योंकि तब खेत में सफेद सोना लहलहा गया था, दूसरे साल उन्हें उतना लाभ नहीं हुआ तो हानि भी नहीं हुई, परन्तु तीसरे साल सपने टूटते ही नजर आये क्योंकि डेंडू छेदक इल्ली ने अमेरिका से आयातित इस बीज के तत्वों से लड़ने की क्षमता विकसित कर ली। बहुराष्ट्रीय कम्पनी मोनसेंटो ने बीटी कपास में जैव तकनीक से ऐसे तत्व (जीन) प्रवेश करा दिये हैं जो जहरीले होते हैं और जब यह बीज फसल का रूप लेते हैं तो हर हिस्से में जहर का प्रसार हो जाता है। इस तरह के तत्व बीज में डालने का मकसद बॉलवार्म (डेंडू इल्ली) से फसल को बचाना रहा है ताकि किसानों को मनमाने दामों पर यह बीज बेंचा जा सके। इस परिस्थिति में व्यापक स्तर पर बीटी कपास के बीजों के फायदे के मिथ्या प्रचार में किसानों का भी उपयोग किया गया। झाबुआ के जामली गांव के लच्छीराम के एक एकड़ के खेत में 4 क्विंटल कपास हुआ परन्तु जब कम्पनी ने रंगीन विज्ञापन छपवाया, तब उसमें यह बताया गया कि लच्छीराम के यहां एक एकड़ में पन्द्रह क्विंटल की पैदावार हुई है। इसी तरह धार के दसई गांव के कन्हैयालाल पाटीदार के यहां सात क्विंटल के बजाये 23 क्विंटल का उत्पादन दिखाया गया। राजौद में तो एक पान के विक्रेता को ही किसान के रूप में पेष कर दिया गया।
बीटी कपास यानि क्या ?
• बीटी कपास जैनेटिक ढंग से तैयार की गई कपास है इसमें ऐसे जीन्स शामिल किए गए हैं जो मिट्टी में पाये जाने वाले बैक्टीरियम से लिए गए हैं। बीटी कपास में इस तरह के तत्व पाये जाते हैं जिनमें भारी मात्रा में नशीली चीजें पायी जाती हैं और जब इसकी फसल तैयार होने लगती है तो पौधे के हर भाग में वह नशीली चीज फैल जाती है। इसत तरह की नषीली चीज डालने का असल मकसद यह है कि बाल वार्म नामक कीटाणू से पौधे को बचाया जाय। ये कीटाणू कपास में बहुतायत में पाये जाते हैं। ...... बाल वार्म इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। उससे अति विकसित कीट बनते हैं और कीटनाशक का अधिक छिड़काव करना किसानों की लागत बढ़ाता है। • .... आर. एफ. एस. टी. आई. ने महाराष्ट्र , मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और कर्नाटक में जो अध्ययन किया उससे पता चला कि मानसेन्टो का कपास अमेरिकी बाल वार्म से पौधों का बचाव नहीं करता और फसल पर जेसिड्स, ऐफिड्स, सफेद मक्खी और कीट पतंगों जैसे गैर-लक्षित कीट के हमने भी 250 से 300 प्रतिशत बढ़ गये। इसके अलावा बीटी पौधे जड़ में सड़न की बीमारी के भी शिकार हुए।
- नवधान्य की पुस्तिका 'कृषि व किसानों का विकास या विनाश?'
बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ किस कदर अब गांव की खेती-बाड़ी की व्यवस्था को घ्वस्त कर रही हैं इसकी तस्वीर अब मालवा-निमाड़ के कोने-कोने में नजर आने लगी है। जहां एक ओर उदारीकरण की नीतियों के अन्तर्गत किसानों को राज, समाज और बाजार में किसी का भी संरक्षण नहीं मिल रहा है तो वहीं दूसरी ओर औद्योगिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की राह में नीति बनाने वाले पलक पांवड़े बिछाये बैठे हैं। तमाम विरोधों के बावजूद भारत सरकार की जैनेटिक इंजीनियरिंग अनुमति समिति ने आंध्र प्रदेश को छोड़कर देश के सभी राज्यों में बी.टी. कॉटन बीजों के उपयोग की अनुमति दे दी। आंध्र प्रदेश सरकार ने किसानों की आत्म हत्या के बाद इन बीजों के उपयोग का विरोध किया था। वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश सरकार ने इसके उपयोग की अनुशंसा की। यह अपने आप में बहुत विरोधाभासी स्थिति है कि जिस बीज के उपयोग के कारण एक राज्य में किसान आत्म हत्या कर रहे हों उसी बीज से दूसरे राज्य में खुशहाली कैसे आयेगी। रिसर्च फाउण्डेशन फॉर टेक्नोलॉजी, साइंस एण्ड इकोलॉजी के अध्ययन से पता चलता है कि महाराष्ट्र के यवतमाल जिले में पंधारकावदा तहसील के बोयथ गांव में रामकृष्णपति को पचास एकड़ क्षेत्र में बोये बीटी कपास पर बालवार्म नियंत्रण के लिए दो बार और फिर कीटो को नष्ट करने के लिए सात बार छिड़काव करना पड़ा। एक एकड़ में कीट नाशक के छिड़काव पर एक बार में सात सौ रूपये का खर्च आता है। संकट की इस तेज रफ्तार को रोकना होगा क्योंकि कपास तो एक अखाद्य फसल है और जिस तरह से मक्का जैसी खाद्यान्न फसल के लिए बीटी बीजों के उपयोग की तैयार चल रही है यदि वह क्रियान्वित हुई तो इससे जीवन के लिए संकट खड़ा हो जायेगा।
आज से ठीक तीन साल पहले सरकार ने विवादित तकनीक के जरिये बदले गये चरित्र वाले बीजों के उपयोग को अनुमति देकर किसानों के लिये एक नये संकट की शुरूआत कर दी थी। अब तक कृषि एक पारम्परिक व्यवस्था का हिस्सा रही है जिसमें किसान अपने ही उत्पादन में से सर्वश्रेष्ठ गुणवत्ताा वाले दानों को संरक्षित कर उनका बीज के रूप में उपयोग करता रहा। उसे बीज खरीदने के लिये कभी बाजार का रूख नहीं करना पड़ा। परन्तु भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया में इन कम्पनियों को खेती के बाजार पर कब्जा जमाने का अवसर मिलने लगा। वर्ष 2002 में भारत सरकार की जैनेटिक इंजीनियरिंग अनुमति समिति ने सुप्रीम कोर्ट में मामला लम्बित होने और पर्यावरण के तमाम विवादों के बावजूद जीन परिवर्धित बीजों को खेतों में उपयोग करने की अनुमति देकर संकट को वैधानिक रूप से संरक्षण प्रदान कर दिया। अमेरिकी कम्पनी मोनसेन्टो ने भारतीय कम्पनी महिको के साथ माहिको-मोनसेंटो बायोटेक इंडिया लिमिटेड कम्पनी बनाई और तीन किस्म के कपास बीजों को बाजार में उतारा। शुरूआती दौर में किसानों ने इन नये जैव तकनीक से बने बीजों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। तब आक्रामक और भ्रामक प्रचार के जरिये इस दावे को गांव-गांव तक पहुंचाया कि इन तीन किस्म के बीजों की फसल को डेंडू छेदक इल्ली (बोलवर्म) किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा सकेगी और किसानों को कीटनाशकों पर व्यय नहीं करना पड़ेगा। अब तक किसानों के अपने बीजों से 7 से 8 एकड़ कपास का उत्पादन होता रहा है परन्तु बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने विज्ञापनों में दावा किया कि प्रयोगशाला में तैयार इन बीजों से उत्पादन 14 से 16 क्विंटल प्रति एकड़ हो जायेगा। इस प्रक्रिया में सबसे पहले तहसील और गांवों के स्तर पर कृषि सामग्री के विक्रेताओं के मानस को ज्यादा कमीशन के जरिये परिवर्तित किया गया। यही विक्रेता गांव के किसानों के सतत सम्पर्क में रहते हैं और छोटे किसानों को कर्ज देते रहे हैं। ऐसे में उनकी सलाह पर किसानों ने घ्यान देना शुरू किया और पहली बार इन बीटी कपास के बीजों का उपयोग किया। शुरूआती वर्ष में तो उन्हें फायदा हुआ परन्तु दूसरे वर्ष फायदेमंद मानसून होने के बावजूद जब मैक-12, मैक-162 और मैक-184 बीटी की बुआई की तो जल्दी ही उनकी उम्मीदें और सपने ध्वस्त हाने शुरू हो गये। यूं तो कम्पनी का दावा यह था कि डेंडू छेदक इल्ली (बॉलवर्म) इसको कोई नुकसान पहुंचा नहीं सकेगी परन्तु झाबुआ के रायपुरिया के किसान मांगीलाल पाटीदार उन हजारों किसानों में से एक हैं जिन्हें फसल बचाने के लिये चार से पांच बार कीटनाशक का छिड़काव करना पड़ा। इसके बावजूद भी उन्हें 2.17 क्विंटल कपास की पैदावार मिली जबकि गैर-बीटी कपास बीज बोने वालों का उत्पादन 2.57 क्विंटल प्रति एकड़ रहा। यहां अंतर केवल मात्रा का ही नहीं है बल्कि इस कपास की गुणवत्ताा भी अच्छी नहीं रही जिसके कारण उनहें बाजार में कम फसल के साथ-साथ 40 फीसदी कम दाम भी मिला। बीज स्वराज अभियान के ताजा अध्ययन से पता चला कि छोटी जोत होने के कारण 95 फीसदी बीटी कपास उगाने वाले किसान कम्पनी के इस निर्देश का पालन नहीं करते हैं कि बीटी कपास के साथ-साथ खेत के किनारे के 20 फीसदी हिस्से में गैर बीटी कपास बोना जरूरी है और इन परिस्थितियों में पर-परागण (क्रॉस पालीनेशन) के कारण होने वाले जीन हस्तांतरण से जैविक प्रदूषण का खतरा बढ़ गया है। बाबूलाल पाटीदार को कपास में तो घाटा हुआ ही परन्तु संकट यहीं समाप्त नहीं हुआ और जब उन्होनें उसी खेत में गेहूं बोया तो उसके पौधे हरे न होकर पीले होते गये और दाना छोटा होने के कारण उसके कोई दाम नहीं रह गये। किसानों की दुखदायी कहानी कई हिस्सों में बंटी हुई है। हर कोई कहता है कि 450 ग्राम बीज के पैकेट इस बार बाजार में दो हजार रूपये का मिला क्योंकि दूसरी किस्म के बीज मौके पर दुकानों से हटा लिये गये और सरकार की नजर इस कालाबाजारी पर पड़ी ही नहीं।
यह तो किसान की कहानी थी उन्हीं की जुबानी। जब हम देश और प्रदेश के स्तर पर विश्लेषण करते हैं तो स्थिति की भयावहता और स्पष्ट हो जाती है। वर्ष 2002 बीटी कपास के बीज की परम्परा आने के ठीक दो साल पहले मध्यप्रदेश में 170 किलो की 4.16 लाख गांठों का उत्पादन हुआ था, तब एक हेक्टेयर में 442 किलो कपास का उत्पादन होता था परन्तु बीटी कपास का उपयोग शुरू होने के दूसरे साल बाद ही प्रदेश में यह उत्पादन घट कर 3.79 लाख गांठ और 350 किलो प्रति हेक्टेयर पर आ गया। इसके विपरीत भारत सरकार के पर्यावरण और जैव प्रोद्योगिकी विभाग ने बायोटैक कन्सोर्टियम इण्डिया लिमिटेड के साथ मिलकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को लाभ पहुचाने के उद्देश्य से खूब प्रसार कर यह बताया कि वर्ष 2004 में देश भर में बीटी कपास के 13.10 लाख पैकेट बेचे गये हैं जो कि वर्ष 2003 से छह गुना अधिक है, यानी किसानों की बर्बादी भी इतनी ही रफ्तार से बढ़ रही है। वर्ष 2003 में 1.25 लाख किसानों ने बीटी कपास बोया था जबकि 2004 में यह संख्या बढकर 6.18 लाख हो गई। मध्यप्रदेश (2.20 लाख पैकट) गुजरात (3.30 लाख पैकेट) और महाराष्ट्र (5.10 लाख पैकेट) इस घातक तकनीक से बने बीज का उपयोग करने वाले राज्य है। बीज का उपयोग छह गुना बढ़ा है परन्तु कपास का उत्पादन कम हुआ है और किसानों की लागत बढ़ने से घाटा भी बढा है। अब तो बाजार में बीटी कपास के दाम भी देशी कपास से 33 फीसदी कम मिल रहे हैं। बीटी कपास की भारत में यात्रा • भारत में विदेशी तकनीक से बना बीज आयात करने का आवेदन - अक्टूबर 1994 • आयात की अनुमति भारत सरकार ने दी - मार्च 1995 • आयात शुरू हुआ - वर्ष 1996 • प्रयोगशाला और एक सीमित क्षेत्र में प्रयोग शुरू - वर्ष 1996-97 • 5 सीमित क्षेत्रों में प्रयोग - वर्ष 1997-98 • बीज में मौजूद विशैले तत्वों का आई.टी.आर.सी. लखनऊ द्वारा अध्ययन - वर्ष 1997-98 • भारत सरकार की जैनेटिक इंजीनियरिंग अनुमति समिति ने तीन बीटी हाईब्रिड किस्मों के बीज की व्यापार की तीनवर्ष की अवधि के लिए अनुमति दी। यह अनुमति आंध्रप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, मध्यप्रदेष, महाराष्ट्र और तमिलनाडु राज्यों के लिए दी गई - वर्ष 2002 • तीन उत्तरी राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में महिको, रासी और अंकुर बीज कम्पनी के तीन किस्मों के बीजों के व्यापारी उपयोग की अनुमति भारत सरकार ने दी ये तीनों कम्पनियां मानसेंटो से सम्बध्द हैं - 4 मार्च,2005 • नकारात्मक अनुभवों के बावजूद बीटी किस्म के बीजों के व्यापार की पुन: अनुमति दी गई - 3 मई 2005 • आंध्रप्रदेश सरकार के विरोध के बाद बीटी किस्मों के बीजों के उपयोग पर केवल उसी राज्य में प्रतिबन्ध लगा - 3 मई 2005 बीटी से सम्बन्धित अध्ययनों के मुख्य निष्कर्ष • वर्ष 2002 में बीटी किस्म के कपास बीजों की अनुमति देने के साथ ही अनुमति समिति ने मध्यप्रदेश के खण्डवा जिले के कसानों का अध्ययन कर भविष्य में बीज की असफलता के संकेत दे दिये थे। • आंध्रप्रदेश के वारंगल जिले में इसके उपयोग के कारण खेती की लागत बढ़ी और किसान भारी कर्जे में डूब गये। डेक्कन डेवलपमेंट सोसायटी ने इस बर्बादी को सिध्द किया। • आल इण्डिया कोआर्डीनेटेड कॉटन इम्प्रूवमेंट प्रोजेक्ट ने वर्ष 2004-2005 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि बीटी बीज बीमारियों से मुक्त नहीं हैं और यह दावा गलत है कि उस पर कीटों का प्रभाव नहीं पड़ता है। • बीज स्वराज अभियान से जुड़ी संस्थाओं सम्पर्क और वास्प्स ने मध्यप्रदेश में कपास उत्पादक किसानों के साथ सहभागी अध्ययन कर सिध्द किया कि इससे न केवल किसानों को घाटा हो रहा है बल्कि भारतीय कृषि व्यवस्था को आघात पहुंचाने के उद्देश्य से बहुराष्ट्रीय कम्पनियां प्रचार के उग्र तरीके अपनाकर किसानों को आतंकित भी कर रही हैं। • जीन कैम्पेन ने भी अपने अध्ययन से सिध्द किया कि बीटी किस्में कृषि व्यवस्था और पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाल रही हैं।
हम आंध्रप्रदेश के महबूब नगर और बारंगल जिलों के हालात से वाकिफ हो ही चुके हैं जहां हजारों किसान बीटी कपास को अपना जीवन भेंट कर आत्म हत्या कर चुके हैं। और इस पर सरकार ने बयान दिया है कि किसान घाटे के कारण नहीं बल्कि बीमा का लाभ लेने के लिये आत्महत्या कर रहे हैं। मध्यप्रदेश भी इसी अनुभव को दोहराने जा रहा है क्योंकि अब जेनेटिक इंजीनियरिंग अनुमति समिति विनाशकारी अनुभवों के बावजूद नये सिरे से 10 बीटी बीजों की किस्मों को खेत में उपयोग करने के लिए बाजार में बेचने की अनुमति देने जा रही है। यह तय है कि सरकार किसान और पर्यावरण विरोधी नीति बनाकर उसके दुष्प्रभावों को स्वीकार करना ही नहीं चाहती है। या तो वह बाजार के भारी दबाव में है या फिर किसान हित से ज्यादा निजी हित का उन पर प्रभाव है। और निश्चित रूप से तमाम नकारात्मक अनुभवों के बावजूद कृषि विश्वविद्यालय के गोपनीय अध्ययन के आधार पर वह जल्दी ही इन घातक बीजों के पुन: भविष्य में उपयोग के लिये अनुमति प्रदान करने जा रही है। जनप्रतिनिधियों को यह महसूस करना होगा कि भारत के खेत और किसान विनाशकारी तकनीकों की प्रयोगशाला बन गये हैं, अन्यथा उनकी भूमिका बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हाथ में बंधी कठपुतली से कुछ ज्यादा नहीं होगी। भारत सरकार का चिंतनीय रूख
• तमाम अध्ययनों, जनसंगठनों के विरोध और किसानों की आत्महत्या के मामलों को नजरअंदाज करते हुए 3 मई 2005 को जैनेटिक इंजीनियरिंग अनुमति समिति ने आंध्रप्रदेश को छोड़कर अन्य 5 राज्यों में बीटी कपास के व्यापार की फिर अनुमति दे दी। • आंध्रप्रदेश सरकार ने भारी दबाव में इन बीजों के विरोध में अपनी रिपोर्ट समिति को भेजी। अन्य चार राज्यों, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र ने मिश्रित रिपोर्ट भेजी यानि विरोध नहीं किया। गुजरात ने अपनी रिपोर्ट समिति को भेजी ही नहीं। • चार राज्यों की मिश्रित रिपोर्ट के कारण भी समिति ने वहां मैक-12, मैक-162, मैक- 184 बीटी किस्मों के बीजों के व्यापार और उपयोग की अनुमति दे दी। • यह एक विरोधाभासी स्थिति है कि सभी राज्यों में किसानों को नुकसान पहुंचाने वाले बीजों के उपयोग पर केवल आंधप्रदेश में प्रतिबंध क्यों है और अन्य राज्यों में इसके उपयोग की अनुमति क्यों? (Media for rigths)

12 सितंबर 2011

कॉटन में तेजी की नई लहर

अंतरराष्ट्रीय बाजार की तेजी और घरेलू उत्पादक क्षेत्रों में भारी बारिश होने के कारण कॉटन के मूल्य में तेजी की नई लहर आ गई है। विदेश में कॉटन की कीमतों में 13.44 फीसदी की तेजी आने से निर्यातकों की मांग बढ़ गई है जिससे घरेलू बाजार में पिछले एक महीने में कॉटन के दाम 5,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी 356 किलो) तक बढ़ गए हैं।
अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कॉटन का भाव बढ़कर शनिवार को 40,000 से 40,500 रुपये प्रति कैंडी हो गया। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में अत्यधिक बारिश होने के कारण कपास की फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। ऐसे में मौजूदा कीमतों में और भी आठ-दस फीसदी की तेजी आने की संभावना है।
केसीटी एंड एसोसिएट के मैनेजिंग डायरेक्टर राकेश राठी ने बताया कि न्यूयॉर्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में कॉटन का भाव आठ अगस्त को 99.57 सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुआ था। जबकि सात सितंबर को इसका भाव बढ़कर 112.47 सेंट प्रति पाउंड तक पहुंच गया। अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढऩे से घरेलू निर्यातकों की खरीद बढ़ गई है। उत्तर भारत के राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में फसल खराब होने के कारण कपास की तुड़ाई में तेजी नहीं आ पा रही है। इसीलिए तेजी को बल मिल रहा है।
मुक्तसर कॉटन प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर नवीन ग्रोवर ने बताया कि सरकार ने नए सीजन के लिए कॉटन का ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) में निर्यात खोल रखा है इससे निर्यातकों की मांग बराबर बनी रहेगी। उधर पाकिस्तान के सिंध प्रांत में भारी बारिश और बाढ़ से करीब 15 से 20 लाख गांठ का नुकसान होने की आशंका है। जिससे पाकिस्तान में कपास की कीमतों में करीब 15 फीसदी की तेजी आकर भाव 6,400 रुपये प्रति 40 किलो हो गए।
इससे घरेलू बाजार में कॉटन की तेजी को बल मिल रहा है। घरेलू यार्न मिलों की मांग भी बढ़ी हुई है। पिछले एक महीने में अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कॉटन की कीमतों में 5,000 रुपये की तेजी आकर भाव 40,000 से 40,500 रुपये प्रति कैंडी हो गए। आठ अगस्त को इसका भाव 35,000 से 35,500 रुपये प्रति कैंडी था।
कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सीएआई) के आरंभिक अनुमान के अनुसार वर्ष 2011-12 में देश में 363.75 लाख गांठ (एक गांठ 170 किलो) कॉटन की पैदावार होने का अनुमान है। चालू सीजन में बुवाई में 10 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल बुवाई 120 लाख हैक्टेयर में हुई है। देश में कॉटन की सालाना घरेलू खपत 268 लाख गांठ होने का अनुमान है। लेकिन हाल की बारिश से कपास उत्पादन का अनुमान गड़बड़ा सकता है। (Business Bhaskar....R S Rana)

सोने की बढ़ती चमक से कारोबारी पस्त

मुंबई September 09, 2011
दिनोदिन महंगे होते सोने-चांदी की वजह से त्योहारी मौसम में भी जेवरात के शोरूम खाली पड़े हैं। कभी-कभार दुकानों पर पहुंचने वाले ग्राहक भी गहनों की जगह सिक्के और बिस्कुट को तरजीह दे रहे हैं। शादी-ब्याह का सीजन आने वाला है, लेकिन इतने चढ़े भाव पर गहनों का ऑर्डर कोई नहीं दे रहा। इस वजह से ज्वैलरों के लिए रोजाना का खर्च निकालना भी दूभर हो रहा है।इस साल की शुरुआत में सोने का औसत भाव 20,000 रुपये प्रति 10 ग्राम था, जो जुलाई में 22,500 रुपये तक पहुंच पाया था। लेकिन महज 2 महीने में यह 28,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गया, जिससे आम आदमी दूर भाग रहा है।मुंबई ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कुमार जैन कहते हैं कि लोग इस भाव पर ज्वैलरी खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। इसी वजह से त्योहारी सीजन ज्वैलरी के लिए फ्लॉप हो गया है। भाव में भारी उतारचढ़ाव की वजह से शादी-ब्याह के सीजन की बुकिंग भी नहीं हो रही है। उन्होंने बताया, 'चलन यही है कि जिस दिन बुकिंग होती है, उसी दिन के भाव पर जेवरात दिए जाते हैं। लेकिन 1 ही दिन में सैकड़ों रुपयों के उतार चढ़ाव की वजह से अब डिलिवरी वाले दिन के हिसाब से भाव तय किया जा रहा है। इस वजह से अक्टूबर-नवंबर के लिए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। जवेरी बाजार और दागिना बाजार में भी ग्राहक नहीं आ रहे हैं। थोक बाजार की प्रमुख ज्वैलरी कंपनी संगम चेन के निदेशक रमेश सोलंकी कहते हैं, 'बाजार में सोने की मांग है, गहनों की नहीं क्योंकि लोग सोने की गिन्नी और बिस्कुट खरीद रहे हैं। त्योहारों में लोग गहनों के बजाय कम वजन की गिन्नी तोहफे में देना पसंद कर रहे हैं क्योंकि ये सस्ते पड़ते हैं और बेचने पर इनका दाम ज्यादा मिलता है। 10 ग्राम की गिन्नी पर ज्वैलर 100 रुपये अतिरिक्त लेते हैं, जबकि गहनों में बतौर मेकिंग चार्ज 200 से 1,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक देने पड़ते हैं। बेचते समय गहनों की पूरी कीमत भी नहीं मिलती।महंगे सोने ने छोटे आभूषण विक्रेताओं की हालत पतली कर दी है। कृष्णा ज्वैलर्स के मनु भाई कहते हैं कि 2 महीने दुकान का खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है। ग्राहक आएं न आएं, दुकान का किराया, बिजली का बिल, कर्मचारियों का वेतन तो देना ही होता है। वह निराश होकर कहते हैं कि दूसरा धंधा ढूंढना होगा। (BS Hindi)

मॉनसून की वापसी में देरी से खरीफ फसलें होंगी प्रभावित

नई दिल्ली September 11, 2011
चार महीने की अपनी यात्रा के आखिरी चरण में दक्षिण पश्चिम मॉनसून और मजबूत नजर आ रहा है, लिहाजा देर से मॉनसून की वापसी का खरीफ की खड़ी फसल पर पडऩे वाले प्रभाव की बाबत चिंता जताई जा रही है। हालांकि मॉनसून सीजन के आखिर में बारिश की तीव्रता में बढ़ोतरी का फायदा आगामी रबी सीजन में मिलेगा क्योंकि इसके चलते मिट्टी में पर्याप्त नमी बनी रहेगी। लेकिन अगर मॉनसून के लौटने में देरी होती है तो खरीफ उत्पादन पर इसका थोड़ा असर पड़ सकता है। दक्षिण भारत में धान की फसल को नुकसान पहुंचने की खबरें हैं। भारतीय मौसम विभाग ने कहा है कि 7 सितंबर को समाप्त हफ्ते में मध्य व दक्षिणी प्रायद्वीप के ज्यादातर हिस्सों में दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सामान्य से ज्यादा मजबूत रहा है। इस साल 7 सितंबर तक देश मेंं कुल बारिश लंबी अवधि की औसत बारिश का 103 फीसदी रहा है। लंबी अवधि की औसत बारिश का आकलन 50 साल की औसत बारिश के आधार पर होता है और यह 89 सेंटीमीटर अनुमानित है। लंबी अवधि की औसत बारिश का 96-104 फीसदी बारिश सामान्य मानी जाती है।झमाझम बारिश का सबसे ज्यादा लाभ मध्य व दक्षिणी प्रायद्वीप को मिला है। 1 जून से 7 सितंबर तक मध्य भारत में कुल बारिश सामान्य से 12 फीसदी ज्यादा हुई है, जबकि दक्षिण भारत में सामान्य से 8 फीसदी ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई है। यह दिलचस्प है कि मौसम विभाग ने अपनी भविष्यवाणी में कहा था कि देश में सितंबर के दौरान कुल बारिश एलपीए (लंबी अवधि का औसत) का 90 फीसदी होगी। सितंबर के पहले हफ्ते में वास्तविक बारिश सामान्य से 39 फीसदी ज्यादा रही है। भविष्यवाणी में हालांकि कहा गया था कि बारिश की तीव्रता में बढ़ोतरी तभी होगी जब कमजोर ला नीना की स्थिति एक बार फिर उभरेगी। लगता है कि ला नीना की स्थिति पूरी अवधि में कमजोर बनी रहेगी।7 सितंबर को समाप्त हफ्ते में मोटे अनाज व दलहन का रकबा पिछले साल के मुकाबले क्रमश: 8.2 व 10.77 फीसदी कम रहा है। उधर, तिलहन, गन्ना और कपास का रकबा पिछले साल के मुकाबले क्रमश: 3 फीसदी, 4.2 फीसदी व 9.18 फीसदी ज्यादा रहा है। (BS Hindi)

खाद्य सुरक्षा से जुड़ी असुरक्षा

July 28, 2011
खाद्य सुरक्षा विधेयक के तैयार किए जा रहे मसौदों में जिस एक बात पर सहमति दिखती है, वह है भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की वृहतर भूमिका। एफसीआई न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज की खरीद करता है और उसे उचित मूल्य की दुकानों के जरिए तथा खाद्य संबंधी अन्य योजनाओं मसलन विद्यालयों में दोपहर भोजन और आईसीडीएस में बाल पोषण आदि के लिए वितरित करता है। चूंकि इसकी वितरण कीमत खरीद कीमत से भी कम होती है इसलिए एफसीआई पूरी तरह सब्सिडी पर ही निर्भर रहता है। साल दर साल एफसीआई का बजट अनुमान जरूरत से कम ही रह जाता है। इस वर्ष दबाव और बढ़ गया है क्योंकि जबरदस्त पैदावार होने का मतलब है एफसीआई को अधिक मात्रा में अनाज खरीदना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि बाजार में कीमतों का रुझान नकारात्मक होने के चलते किसान अपना अधिकांश अनाज सरकार को ही बेचना चाहेंगे। इसके अलावा सरकार ने गेहूं की कीमतों पर किसानों को बोनस देने की घोषणा की है। यह एक दुष्चक्र है। देश में उत्पादन बढ़ता है, समर्थन मूल्य में इजाफा किया जाता है, भारी मात्रा में सरकारी खरीद की जाती है और सब्सिडी का बोझ भी बढ़ जाता है। इसका महंगाई पर दो तरफा असर पड़ता है। जबरदस्त पैदावार का कमजोर खाद्यान्न कीमतों पर मामूली असर पड़ता है जबकि बढ़ती सब्सिडी का महंगाई में सकारात्मक योगदान होता है। यह सब कुछ ऐसे समय में हो रहा है जबकि बीते कुछ वर्ष से देश में लगातार महंगाई को काबू करने के प्रयास किए जा रहे हैं, खासतौर पर खाद्यान्न महंगाई को। खाद्य सुरक्षा विधेयक की वजह से कीमतों पर दबाव और बढ़ेगा क्योंकि अब सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि वह हर हाल में पहले से अधिक अनाज खरीद कर रखे। सरकार ने इस बात से इनकार किया है कि एफसीआई नकदी के संकट से गुजर रहा है और इसके बजाय उसने दावा किया है कि एफसीआई ने तो अब तक अंतिम तिमाही के दौरान किए आवंटन को ही पूरा खर्च नहीं किया है। हालांकि उसने इस बात से इनकार नहीं किया है कि इस काम के लिए बजट में अनुमानित धन की अपेक्षा अधिक धन की आवश्यकता होगी। ऐसी चर्चा चल रही है कि एफसीआई को ऋण उपलब्ध कराने वाले बैंकों को ऋण सीमा बढ़ानी चाहिए। अभी यह सीमा 35,000 करोड़ रुपये की है। इस बीच, आरबीआई ने बीते 16 महीनों में ब्याज दरों में 16 दफा इजाफा किया है! इसका भी एफसीआई और उसके सब्सिडी बिल की लागत पर असर पड़ेगा। हाल में संपन्न इंडिया पॉलिसी फोरम में पेश किए गए सार्वजनिक वितरण प्रणाली संबंधी एक प्रपत्र में व्यवस्था में लीकेज की खामियों के अलावा एफसीआई की अक्षमता को भी रेखांकित किया गया। इससे खाद्य कीमतों में महंगाई का दबाव बढ़ता है क्योंकि इस अक्षमता में खाद्यान्न का दुरुपयोग होने जैसी बातें भी शामिल होती हैं। खाद्य सुरक्षा विधेयक एक बेहतर मौका था जिसके जरिए किसानों की मदद के विकल्पों पर विचार हो सकता था और साथ ही साथ गरीबों को सस्ता भोजन उपलब्ध कराया जा सकता था। खैर, नकदी हस्तांतरण जैसे प्रयोगों के बजाय इस विधेयक में मौजूदा वितरण व्यवस्था की अहम भूमिका है। सन 80 के दशक से ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली की क्षमताओं को लेकर तमाम तरह के अनुमान लगाए जा सकते हैं। हर दशक के दौरान अक्षमता का स्तर बढ़ता गया और हर वर्ष हम इस प्रणाली की भूमिका में इजाफा करते गए! नई समस्याओं के लिए पुराने तरीके के हल लागू करने में हमें दक्षता हासिल होती चली गई, खासतौर पर तब जबकि ये हल अतीत में कोई खास सफल साबित नहीं हुए थे। (BS Hindi)

10 सितंबर 2011

चाय का उत्पादन 8 फीसदी बढ़ा, निर्यात घटा

नई दिल्ली September 09, 2011
देश का चाय उत्पादन जुलाई माह में आठ प्रतिशत बढ़कर 13.32 करोड़ किलोग्राम रहा है। हालांकि माह के दौरान चाय निर्यात 8 फीसदी घटकर 1.52 करोड़ किलोग्राम रह गया। चाय बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल जुलाई में चाय का उत्पादन 12.31 करोड़ किलोग्राम रहा था, जबकि निर्यात 1.65 करोड़ किलोग्राम का हुआ था। चालू साल की जनवरी से जुलाई की अवधि में चाय का उत्पादन 6 फीसदी के इजाफे के साथ 49.15 करोड़ किलोग्राम रहा है, जो इससे पिछले साल की इसी अवधि में 46.21 करोड़ किलोग्राम रहा था। इस अवधि में चाय का निर्यात 16 फीसदी घटकर 8.98 करोड़ किलोग्राम रह गया है, जो जनवरी-जुलाई, 2010 के दौरान 10.72 करोड़ किलोग्राम रहा था। जुलाई माह में अखिल भारतीय स्तर पर चाय का उत्पादन उत्तर और दक्षिण भारत में उत्पादन बढऩे की वजह से बढ़ा है। उत्तर भारत में उत्पादन 9 फीसदी बढ़कर 11.19 करोड़ किलोग्राम रहा, जो एक साल पहले इसी अवधि में 10.28 करोड़ किलोग्राम था। इसी तरह दक्षिण भारत में उत्पादन पांच प्रतिशत बढ़कर 2.13 करोड़ किलोग्राम पर पहुंच गया, जो एक साल पहले समीक्षाधीन अवधि में 2.03 करोड़ किलोग्राम था। (BS Hindi)

प्याज आ गया जमीन पर मगर तेवर आसमान पर

नई दिल्ली/मुंबई September 09, 2011
प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगाने के केंद्र सरकार के कदम से देश भर में आज प्याज के थोक दाम 20 फीसदी नीचे आ गए। लेकिन महाराष्टï्र के प्याज कारोबारियों के तेवर ऊंचे हो गए। देश के कुल प्याज उत्पादन में 30 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले नासिक जिले की मंडियों में सरकारी कदमों के विरोध में आज से 16 सितंबर तक के लिए हड़ताल कर दी गई। मांग नहीं माने जाने पर कारोबारी हड़ताल आगे बढ़ाने की धमकी दे रहे हैं, जिसमें किसान भी उनके साथ हो गए हैं।मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह ने प्याज के निर्यात पर गुरुवार को अगले आदेश तक के लिए पाबंदी लगा दी। इसी मंगलवार को सरकार ने प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 175 डॉलर बढ़ाकर 475 डॉलर प्रति टन किया था।नासिक जिला कांदा (प्याज) कारोबारी संघ के सदस्य और पिंपलगांव मंडी के प्याज कारोबारी महेंद्र ठक्कर ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि प्याज निर्यात पर पांबदी के विरोध में शुक्रवार को नासिक जिले की नासिक, लासलगांव, पिंपलगांव, मनवाड़, कलवल समेत तमाम मंडियों में कारोबारियों ने हड़ताल कर दी। किसानों के संगठन इंडो ऐग्रो प्रोड्यूस एक्सपोर्टर्स चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अजित शाह ने बताया कि हड़ताल नासिक की सभी मंडियों में फैल सकती है। उन्होंने कहा कि सितंबर और अक्टूबर में आम तौर पर आपूर्ति कम ही होती है, लेकिन सरकार उसी को आधार बनाकर निर्यात पर पाबंदी लगा रही है। किसान अपना नुकसान देखकर इस हड़ताल का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि निर्यात बंद होने से दाम गिरे तो उनका जबरदस्त नुकसान होगा। अखिल भारतीय सब्जी उत्पादक संघ के अध्यक्ष और महाराष्टï्र के किसान श्रीराम गढ़वे के मुताबिक देश में अभी 18 लाख टन प्याज का भंडार मौजूद है और किसानों के लिए भंडारण की लागत बढ़ गई है। ऐसे में किसान दाम गिरने पर घाटे में रहेंगे।शाह ने बताया कि किसान आम तौर पर अप्रैल में 5-6 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर प्याज खरीद कर बिक्री सत्र (जुलाई-अक्टूबर) के लिए भंडारण करते हैं। भंडारण का खर्च 1 रुपये प्रति किग्रा होता है और सूखने पर प्याज का 30 फीसदी वजन कम हो जाता है। इस तरह प्याज की लागत 8 से 9 रुपये प्रति किग्रा बैठती है और अभी इसका दाम 10 रुपये प्रति किग्रा ही मिल रहा है। अगर निर्यात पर पाबंदी जारी रही तो दाम गिरेंगे और किसानों का भïा बैठ जाएगा।मुंबई में रिजवी एक्सपोट्र्स के मालिक यूसुफ रिजवी ने बताया कि 10-15 दिन में छुट्टिïयों की वजह से आवक घटी है। लेकिन सरकार ने कारोबारियों का पहलू जाने बिना कठोर निर्णय ले लिया। कारोबारी बताते हैं कि इस सीजन में आम तौर पर भंडारण के बाद प्याज की कीमत 10 से 11 रुपये प्रति किग्रा होती है। निर्यात पर पाबंदी से दाम गिरे हैं कि स्टॉकिस्ट अब भंडारण ही नहीं करेंगे। दिल्ली की आजादपुर मंडी में आम दिनों की तरह काम चला, लेकिन कीमतें नीचे आईं। प्याज कारोबारी रवींद्र शर्मा ने बताया कि प्याज के थोक भाव 200 रुपये गिरकर 500 से 1,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। ठक्कर के मुताबिक पिंपलगांव, नासिक, लासलगांव में प्याज के दाम 2 दिन में 200-250 रुपये गिरकर 800-1,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गए हैं। (BS Hindi)

निर्यात से बेहतर प्रतिफल की आस

नई दिल्ली September 09, 2011
देर से ही सही, 20 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन गैर-बासमती चावल निर्यात की अनुमति मिलने के बाद निर्यातकों के चेहरे खिल गए हैं। सरकार ने हालांकि करीब 5 महीने की देरी से निर्यात की अनुमति दी है, लेकिन निर्यातकों को लग रहा है कि उन्हें इस बार उचित रिटर्न मिलेगा। उधर, सरकार ने शुक्रवार को औपचारिक रूप से गेहूं-चावल निर्यात के लिए अधिसूचना जारी कर दी।निर्यात का सबसे अच्छा समय मार्च होता क्योंकि तब वैश्विक बाजार में गेहूं की भारी किल्लत थी, लेकिन कारोबारियों को लगता है कि अभी भी निर्यात के बेहतर मौके हैं। भारतीय गेहूं का निर्यात दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों व पश्चिम एशिया जैसे पारंपरिक गंतïव्य में हो सकता है क्योंकि इन बाजारों में रूसी गेहूं और ऑस्ट्रेलियाई गेहूं के मुकाबले भारतीय गेहूं सस्ता होगा। वैश्विक बाजार में ये दोनों देश भारत के प्रतिस्पर्धी हैं। कारोबारियों ने कहा कि पश्चिम एशियाई देशों में रूसी ब्लैक सी गेहूं 320 डॉलर प्रति टन (मालभाड़ा समेत) पर उपलब्ध है, वहीं भारतीय गेहूं 310-315 डॉलर प्रति टन के आसपास उपलब्ध होगा। इसी तरह पश्चिम एशियाई देशों में ऑस्ट्रेलियाई गेहूं 350 डॉलर प्रति टन पर बिक रहा है और यहां भी भारतीय गेहूं 30-35 डॉलर प्रति टन सस्ता होगा। एक वरिष्ठ कारोबारी ने कहा - कुल मिलाकर हमें लगता था कि मार्च में हमने मौके गंवा दिए, लेकिन सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है। चावल के मामले में कारोबारियों को लगता है कि भारतीय चावल प्रतिस्पर्धी एशियाई देशों बांग्लादेश व पाकिस्तान के मुकाबले करीब 75 डॉलर प्रति टन सस्ता होगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुरुवार को बेंचमार्क थाइलैंड 100 फीसदी बी ग्रेड सफेद चावल की कीमत 640 डॉलर प्रति टन थी और अक्टूबर 2008 के बाद यह सर्वोच्च स्तर है।गुरुवार को सरकार ने 20 लाख टन गेहूं और 20 लाख टन गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति ओजीएल के तहत दी है, इस तरह से सरकार ने 3 साल से ज्यादा समय से अनाज निर्यात पर लगाई पाबंदी हटाई है। निर्यात पर पाबंदी साल 2007 में लगाई गई थी क्योंकि राज्य की एजेंसियों द्वारा कम खरीद के चलते घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ गई थीं।जुलाई में भी सरकार ने 10 लाख टन गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी थी, लेकिन कानूनी लड़ाई में उलझ जाने के चलते निर्यात नहीं हो पाया। निर्यात को ओजीएल के तहत रखने का मतलब यह हुआ कि जुलाई में पैदा हुई समस्याएं इस बार न हों और आसानी से निर्यात हो सके।समय-समय पर विभिन्न हलकों से निर्यात पर पाबंदी हटाने की मांग की जाती रही है क्योंकि चावल व गेहूं की खरीद रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचनी शुरू हो गई है। लेकिन सरकार चिंतित नहीं हुई क्योंकि इससे घरेलू बाजार में कीमतें बढ़ सकती थी। निर्यात पर इसलिए भी रोक जारी रही क्योंकि सरकार प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत अनाज की जरूरतों को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में थी।प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत आवश्यकता पूरी करने के लिए अनाज की सालाना खरीद बढ़ाने के चलते भी निर्यात पर पाबंदी जारी रही। (BS Hindi)

सोने की बढ़ती चमक से कारोबारी पस्त

मुंबई September 09, 2011
दिनोदिन महंगे होते सोने-चांदी की वजह से त्योहारी मौसम में भी जेवरात के शोरूम खाली पड़े हैं। कभी-कभार दुकानों पर पहुंचने वाले ग्राहक भी गहनों की जगह सिक्के और बिस्कुट को तरजीह दे रहे हैं। शादी-ब्याह का सीजन आने वाला है, लेकिन इतने चढ़े भाव पर गहनों का ऑर्डर कोई नहीं दे रहा। इस वजह से ज्वैलरों के लिए रोजाना का खर्च निकालना भी दूभर हो रहा है।इस साल की शुरुआत में सोने का औसत भाव 20,000 रुपये प्रति 10 ग्राम था, जो जुलाई में 22,500 रुपये तक पहुंच पाया था। लेकिन महज 2 महीने में यह 28,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक पहुंच गया, जिससे आम आदमी दूर भाग रहा है।मुंबई ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कुमार जैन कहते हैं कि लोग इस भाव पर ज्वैलरी खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। इसी वजह से त्योहारी सीजन ज्वैलरी के लिए फ्लॉप हो गया है। भाव में भारी उतारचढ़ाव की वजह से शादी-ब्याह के सीजन की बुकिंग भी नहीं हो रही है। उन्होंने बताया, 'चलन यही है कि जिस दिन बुकिंग होती है, उसी दिन के भाव पर जेवरात दिए जाते हैं। लेकिन 1 ही दिन में सैकड़ों रुपयों के उतार चढ़ाव की वजह से अब डिलिवरी वाले दिन के हिसाब से भाव तय किया जा रहा है। इस वजह से अक्टूबर-नवंबर के लिए ऑर्डर नहीं मिल रहे हैं। जवेरी बाजार और दागिना बाजार में भी ग्राहक नहीं आ रहे हैं। थोक बाजार की प्रमुख ज्वैलरी कंपनी संगम चेन के निदेशक रमेश सोलंकी कहते हैं, 'बाजार में सोने की मांग है, गहनों की नहीं क्योंकि लोग सोने की गिन्नी और बिस्कुट खरीद रहे हैं। त्योहारों में लोग गहनों के बजाय कम वजन की गिन्नी तोहफे में देना पसंद कर रहे हैं क्योंकि ये सस्ते पड़ते हैं और बेचने पर इनका दाम ज्यादा मिलता है। 10 ग्राम की गिन्नी पर ज्वैलर 100 रुपये अतिरिक्त लेते हैं, जबकि गहनों में बतौर मेकिंग चार्ज 200 से 1,000 रुपये प्रति 10 ग्राम तक देने पड़ते हैं। बेचते समय गहनों की पूरी कीमत भी नहीं मिलती।महंगे सोने ने छोटे आभूषण विक्रेताओं की हालत पतली कर दी है। कृष्णा ज्वैलर्स के मनु भाई कहते हैं कि 2 महीने दुकान का खर्च निकालना भी मुश्किल हो गया है। ग्राहक आएं न आएं, दुकान का किराया, बिजली का बिल, कर्मचारियों का वेतन तो देना ही होता है। वह निराश होकर कहते हैं कि दूसरा धंधा ढूंढना होगा। (BS Hindi)

प्याज निर्यात पर रोक के खिलाफ हड़ताल

एहतियात - सरकार ने पहले एमईपी बढ़ाया फिर निर्यात रोकाबाजार का हालसात सितंबर को लासलगांव और मनमांड़ मंडियों में प्याज का भाव 925 से 1,225 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि आठ सितंबर को भाव घटकर 675 से 1,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। दिल्ली की आजादपुर मंडी में शुक्रवार को प्याज का भाव घटकर 800 से 1,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गया।
केंद्र सरकार द्वारा प्याज के निर्यात पर रोक लगा देने से नाराज किसानों ने शुक्रवार को नासिक की मंडियों में प्याज की बिक्री नहीं की। नाराज किसानों ने प्याज की प्रमुख मंडियों लासलगांव, पिम्पलगांव, कलवान और मनमांड तथा एपीएमसी की अन्य मंडियों में भी प्याज की बिक्री नहीं होने दी। सरकार ने सात सितंबर को प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) 175 डॉलर बढ़ाकर 475 डॉलर प्रति टन तय किया था जबकि आठ सितंबर को निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगा दी।
लासलगांव के किसान दीपक बाजीराव ने बताया कि पिछले दो दिनों में प्याज की कीमतों में 200 से 250 रुपये प्रति क्विंटल का मंदा आ चुका है जबकि नई फसल की आवक शुरू ही हुई है। आगामी दिनों में आवक बढऩे पर कीमतों में और मंदा आएगा जिससे किसानों की लागत भी वसूल नहीं हो रही है। इसीलिए किसान ने शुक्रवार को मंडी में प्याज न बेचने का फैसला किया है।
सात सितंबर को लासलगांव और मनमांड़ मंडियों में प्याज का भाव 925 से 1,225 रुपये प्रति क्विंटल था जबकि आठ सितंबर को भाव घटकर 675 से 1,000 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। दिल्ली की आजादपुर मंडी में शुक्रवार को प्याज का भाव घटकर 800 से 1,600 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। प्याज की आवक शुक्रवार को 85 मोटरों की रही। दिल्ली में आवक राजस्थान, हरियाणा और मध्य प्रदेश से हो रही है।
महाराष्ट्र से दिल्ली में आवक चार-पांच मोटरों की हो रही है। मौसम साफ होने के बाद आगामी दिनों में महाराष्ट्र से प्याज की आवक बढऩे की संभावना है। प्याज का उत्पादन बढ़कर 151.3 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 145.6 लाख टन का उत्पादन हुआ था। (Business Bhaskar....R S Rana)

गेहूं व गैर-बासमती चावल के निर्यात पर रोक हटी

अहम फैसला 'ओजीएल' के तहत किया जाएगा गेहूं और गैर-बासमती चावल का निर्यातएमएमटीसी, एसटीसी, पीईसी व नेफेड के माध्यम से होना है खाद्य तेलों का आयात
केंद्र सरकार ने गेहूं और गैर-बासमती चावल के निर्यात पर लगी रोक को पूरी तरह से हटा लिया है। हालांकि, फुटकर बाजार में दाम बढऩे से चिंतित सरकार ने प्याज के निर्यात पर रोक लगा दी है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए दस लाख टन खाद्य तेलों के आयात की अवधि को भी 30 सितंबर 2012 तक बढ़ा दिया गया है।
खाद्य मामलों पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की बैठक गुरुवार को हुई। बैठक के बाद एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि गेहूं और गैर-बासमती चावल का निर्यात ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत किया जाएगा। उन्होंने बताया कि सरकार ने प्याज के निर्यात पर तुरंत प्रभाव से रोक लगा दी है। वहीं, राज्य सरकारों को पीडीएस में आवंटित करने के लिए दस लाख टन खाद्य तेलों की आयात अवधि एक साल बढ़ा दी गई है।
आयात की अवधि 30 सितंबर 2011 को समाप्त हो रही है। इसका आयात सार्वजनिक कंपनियों एमएमटीसी, एसटीसी, पीईसी और नेफेड के माध्यम से किया जाना है। घरेलू बाजार में खाद्यान्न के दाम बढऩे के कारण सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात पर अप्रैल 2008 में रोक लगाई थी। वहीं, गेहूं के निर्यात पर वर्ष 2007 से ही रोक लगी हुई है।
सरकार ने गत 11 जुलाई को दस लाख टन गैर-बासमती चावल के निर्यात को मंजूरी दी थी, लेकिन निर्यातकों द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में केस दायर कर देने से अभी तक निर्यात शुरू नहीं हो पाया है। प्याज की तेजी रोकने के लिए भी सरकार ने 7 सितंबर को इसके न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को 175 डॉलर बढ़ाकर 475 डॉलर प्रति टन तय कर दिया था। (Business Bhaskar....R S Rana)

गैर-बासमती चावल का निर्यात ईडीआई बंदरगाहों से

केंद्र सरकार ने ओपन जरनल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत गैर-बासमती चावल के निर्यात की जो अनुमति दी है, इसका निर्यात इलेक्ट्रॉनिक डाटा इंटरचेंज (ईडीआई) बंदरगाहों के जरिये ही किया जाएगा। निर्यातक इस चावल की खरीद खुले बाजार से करेंगे। लेकिन घरेलू बाजार में स्टॉक ज्यादा होने और नई फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होने की संभावना से इसकी कीमतों में ज्यादा तेजी की संभावना नहीं है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गैर-बासमती चावल का निर्यात ईडीआई बंदरगाहों के माध्यम से ही किया जाएगा, ताकि सरकार के पास निर्यात के पंजीकरण की पूरी जानकारी रहे। इस चावल की खरीद निर्यातकों को खुले बाजार से करनी होगी।
खुरानिया एग्रो के मैनेजिंग डायरेक्टर आर. खुरानिया ने बताया कि घरेलू बाजार में गैर-बासमती चावल का स्टॉक ज्यादा है जबकि अगले महीने से नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी। बुवाई में बढ़ोतरी और अनुकूल मौसम से पैदावार भी बढऩे की संभावना है।
इसलिए मौजूदा कीमतों में ज्यादा तेजी की संभावना नहीं है। दिल्ली में परमल कच्चा चावल की कीमतें 1,825 से 1,875 रुपये प्रति क्विंटल व परमल वंड की कीमतें 1,925 से 1,975 रुपये प्रति क्विंटल है। आईआर-8 चावल की कीमतें 1,850 से 1,800 रुपये प्रति क्विंटल है। कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2010-11 में चावल का उत्पादन अनुमान 953.2 लाख टन होने का अनुमान है।
जबकि चालू खरीफ में धान की रोपाई में 32.55 लाख हैक्टेयर की बढ़ोतरी होकर कुल रोपाई 369 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल है इसीलिए चावल का रिकार्ड उत्पादन होने का अनुमान है। पहली सितंबर को केंद्रीय पूल में भी 227.14 लाख टन चावल का स्टॉक बचा हुआ है जो तय मानकों बफर के मुकाबले ज्यादा है। (Business Bhaskar....R S Rana)

08 सितंबर 2011

क्लाइंट कोड मोडिफिकेशन पर ज्यादा जुर्माने का प्रस्ताव

मुंबई September 07, 2011
क्लाइंट कोड के मोडिफिकेशन की वर्तमान गतिविधियों को देखते हुए जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) क्लाइंट कोड मोडिफिकेशन के लिए संशोधित दिशानिर्देश इस माह के अंत तक जारी करने की योजना बना रहा है। इस मसले पर जिंस एक्सचेंजों के साथ हुई एफएमसी की बैठक में भाग लेने वाले दो लोगों ने बताया कि क्लाइंट कोड मोडिफिकेशन की तेज बढ़ोतरी को रोकने के लिए संशोधित दिशानिर्देश 1 अक्टूबर से पहले आने की संभावना है। अकेले 2010-11 में ही सभी जिंस एक्सचेंजों ने आश्चर्यजनक रूप से 30,000 करोड़ रुपये की ट्रेड वैल्यू में मोडिफिकेशन दर्ज की है, जो पिछले वित्त वर्ष में बहुत कम थी। दिशानिर्देशों में महत्वपूर्ण बदलाव आम गड़बडिय़ों में कमी के रूप में आने की संभावना है। उदाहरण के लिए टाइप की गलतियों के मामले में क्लाइंटों पर कोई जुर्माना नहीं लगेगा। इस समय ऐसा नहीं है। वर्तमान दिशानिर्देश 23 जुलाई 2007 को लागू किए गए थे। इनमें एफएमसी ने कारोबारी सत्र के समाप्त होने के बाद इंट्रा डे क्लाइंट कोड मोडिफिकेशन को 15 मिनट के लिए स्वीकृति देने का निर्देश दिया था। नियामक ने सभी प्रकार के क्लाइंट कोड मोडिफिकेशन के लिए मामूली जुर्माना तय किया था।एक्सचेंज के अधिकारियों के अनुसार, इस समय छोटी सी गलती के लिए भी जुर्माना लगाया जाता है। नए दिशानिर्देशों में इसमें छूट दी जा सकती है। खुद को सही साबित करने का बोझ संबंधित बदलावों के साथ खत्म हो जाएगा।वर्तमान में कुल ऑर्डरों के एक फीसदी से कम दैनिक क्लाइंट कोड चेंज पर जुर्माना नहीं लगाया जाता है। जबकि कुल मैच ऑर्डरों के 1-5 फीसदी होने पर एफएमसी 500 रुपये और 5-10 फीसदी होने पर 1,000 रुपये का जुर्माना लगाता है। दैनिक क्लाइंट कोड परिवर्तन कुल ऑर्डरों के 10 फीसदी से ज्यादा होने की दशा में नियामक ने 10,000 रुपये के जुर्माने का प्रïावधान रखा है। (BS Hindi)

एफसीआई को धान भंडारण के लिए करनी होगी जद्दोजहद

लबालब है अनाजएफसीआई के पास 31 जुलाई की कुल भंडारण क्षमता 334.47 लाख टन की है। इसके अलावा राज्य सरकारों के पास करीब 250 लाख टन से ज्यादा की भंडारण क्षमता है जबकि केंद्रीय पूल में एक अगस्त को 611.46 लाख टन खाद्यान्न मौजूद है।भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की भंडारण क्षमता के मुकाबले केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का स्टॉक ज्यादा है। ऐसे में खरीफ विपणन सीजन वर्ष 2011-12 में अक्टूबर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदे जाने वाले धान के भंडारण में एफसीआई को काफी जद्दोजहद करनी पड़ सकती है। एफसीआई के पास 31 जुलाई की कुल भंडारण क्षमता 334.47 लाख टन की है। इसके अलावा राज्य सरकारों के पास करीब 250 लाख टन से ज्यादा की भंडारण क्षमता है जबकि केंद्रीय पूल में एक अगस्त को 611.46 लाख टन खाद्यान्न मौजूद है।
एफसीआई ने विपणन सीजन वर्ष 2010-11 में 333.55 लाख टन धान की खरीद की थी। चालू खरीफ में धान की रोपाई बढ़कर 357 लाख हेक्टेयर में हो चुकी है जोकि पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 38.75 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल है इसीलिए पैदावार में बढ़ोतरी होने के आसार हैं।
चालू विपणन सीजन के लिए केंद्र सरकार ने धान का एमएसपी 80 रुपये बढ़ाकर कोमन वेरायटी के लिए भाव 1,080 रुपये और ए-ग्रेड के लिए 1,110 रुपये प्रति क्विंटल तय किया है। ऐसे में चालू विपणन सीजन में खरीद पिछले साल से बढऩे की संभावना है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि मार्च 2012 तक 40 लाख टन की अतिरिक्त भंडारण क्षमता तैयार हो जायेगी। केंद्र सरकार ने पीईजी के तहत आगामी दो साल में 152 लाख टन की अतिरिक्त भंडारण क्षमता तैयार करने की योजना बनाई है।
उन्होंने बताया कि पंजाब और हरियाणा में पीईजी के तहत बनने वाले गोदामों में निवेशकों का अच्छा उत्साह मिल रहा है। पंजाब में करीब 23 लाख टन भंडारण क्षमता के गोदामों को मंजूरी मिल चुकी है तथा हाल ही में 22 लाख टन के लिए निविदा मांग गई थी उसमें 55 लाख टन की भंडारण क्षमता के लिए निविदा प्राप्त हुई हैं।
इसी तरह से हरियाणा में करीब दस लाख टन की भंडारण क्षमता को मंजूरी दी जा चुकी है। एफसीआई के अनुसार एक अगस्त को प्रमुख उत्पादक राज्यों पंजाब में खाद्यान्न का कुल 213.98 लाख टन का स्टॉक मौजूद है जबकि 31 जुलाई के आधार पर पंजाब में एफसीआई के पास भंडारण क्षमता 81.53 लाख टन है। इसी तरह से हरियाणा में भंडारण क्षमता 27.11 लाख टन की है जबकि खाद्यान्न का स्टॉक 98.77 लाख टन है।
राजस्थान में एफसीआई की भंडारण क्षमता 21.11 लाख टन की है तथा खाद्यान्न का स्टॉक राज्य में 22.72 लाख टन है। उत्तर प्रदेश में खाद्यान्न का स्टॉक 41.03 लाख टन और एफसीआई के पास भंडारण क्षमता 47.25 लाख टन की है। राज्य सरकारों की भंडारण क्षमता अलग है। (Business Bhaskar....R S Rana)

प्याज के एमईपी में 175 डॉलर की बढ़ोतरी

प्याज की कीमतों में आई तेजी रोकने के लिए सरकार ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) में 175 डॉलर की बढ़ोतरी कर भाव 400 डॉलर प्रति टन तय कर दिया है।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) की अधिसूचना के अनुसार सामान्य किस्म के साथ ही बंगलुरू रोज और कृष्णापुरम प्याज का एमईपी 475 डॉलर प्रति टन होगा। अभी सामान्य किस्म के प्याज का एमईपी 300 डॉलर प्रति टन था।
उपभोक्ता मामले विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि घरेलू बाजार में आपूर्ति बढ़ाने और निर्यात को हतोत्साहित करने के लिए एमईपी में बढ़ोतरी की गई है।
हालांकि चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में प्याज का निर्यात 33.7 फीसदी कम रहा है। अप्रैल से जुलाई के दौरान देश से 4.52 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 6.82 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ था। उन्होंने बताया कि कीमतों पर निगरानी रखने के लिए हर पंद्रह दिन बाद स्थिति की समीक्षा की जायेगी।
अगस्त महीने में भी सरकार ने प्याज के एमईपी में दो बार बढ़ोतरी की थी। प्रतिकूल मौसम के कारण प्याज की फसल में एक माह की देरी होने से महीने भर में ही थोक कीमतों में लगभग 25 फीसदी की तेजी आई है। दिल्ली की आजादपुर मंडी में प्याज की थोक कीमतें बढ़कर 600 से 1750 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। पिछले सप्ताहभर से खराब मौसम के कारण पड़ोसी राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और हरियाणा से भी आवक प्रभावित हुई है।
सरकार ने घरेलू बाजार में प्याज की कीमतों में आई भारी तेजी के कारण दिसंबर 2010 में निर्यात पर रोक लगा दी थी। दिसंबर 2010 में खुदरा बाजार में प्याज का भाव बढ़कर 80 से 85 रुपये प्रति किलो हो गया था। तथा दाम घटने के बाद 17 फरवरी को प्याज के निर्यात पर लगी रोक को हटाया गया था। पाकिस्तान और चीन का प्याज सस्ता होने के कारण भारत से निर्यात कम हो रहा है। (Business Bhaskar)

गन्ने का एफआरपी बढ़ेगा

कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी)ने गन्ना का फेयर एंड रिम्यूनेरेटिव प्राइस (एफआरपी) बढ़ाने की सलाह दी है। सीएसीपी ने यह सलाह गन्ना उत्पादन लागत में वृद्धि के मद्देनजर वर्ष 2012-13 शुगर वर्ष (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ना का एफआरपी बढ़ाकर 170 रुपये प्रति क्विंटल कर देने की सलाह दी है।
सीएसीपी एक संवैधानिक संगठन है और इसका काम प्रमुख कृषि उत्पादों पर सरकार को कीमत निर्धारण करने में सलाह देने का है। सीएसीपी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हमने वर्ष 2012-13 सीजन के लिए गन्ना की एफआरपी बहुत अधिक बढ़ाकर 170 रुपये प्रति क्विंटल करने की सलाह दी है। हमने सरकार को ऐसी सलाह उत्पादन की बढ़ रही लागतों, श्रम मूल्य और दूसरे कारकों को देखते हुए दी है।
वर्ष 2011-12 में शुगर सीजन के शुरूआती महीनों में या शुरूआत के कुछ महीनों में एफआरपी 145 रुपये प्रति क्विंटल रखने की सिफारिश की जिसे सीएसीपी ने बढ़ाने की सिफारिश की है। गन्ना का एफआरपी मूल्य वर्ष 2012 के अक्टूबर से लागू किया जाएगा। गन्ना किसानों के लिए एफआरपी कानूनी गारंटी वाला न्यूनतम मूल्य होता है।हालांकि चीनी मिल मालिक अगर चाहें तो किसानों को गन्ना के लिए एफआरपी से ज्यादा मूल्य की पेशकश कर सकते हैं।
गन्ना किसानों के लिए एफआरपी किसानों के मार्जिन को ध्यान में रखकर किया जाता है। इसके अन्तर्गत गन्ना के उत्पादन की लागत और परिवहन खर्च आदि को शामिल किया जाता है। एफआरपी को 9.5 प्रतिशत की बुनियादी रिकवरी दर से जोड़कर तय किया जाता है।
एक रुपये 46 पैसे के हरेक प्रीमियम पर 0.1 फीसदी बढ़कर रिकवरी 9.5 फीसदी से ज्यादा का हो जाता है। रिकवरी रेट गन्ना की पेराई से उत्पन्न कुल गन्ना की मात्रा के आधार पर तय होता है। सामान्य तौर पर सीएसीपी की सिफारिश के आधार पर सरकार गन्ना का मूल्य तय करती है। (Dainik Bhaskar)

03 सितंबर 2011

टायर निर्माताओं की मांग से फिर बढऩे लगा रबर का मूल्य

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली

विदेशी बाजार - हफ्ते भर में थाईलैंड में भाव बढ़कर 217 रुपये किलो हो गएघरेलू उत्पादन की स्थितिचालू महीने से नेचुरल रबर के उत्पादन का पीक सीजन शुरू हो जाएगा। बीते जुलाई में उत्पादन 7.2 फीसदी बढ़कर 62,700 टन हो गया। चालू वित्त वर्ष के पहले चार माह में रबर का उत्पादन बढ़कर 238,400 टन हो गया।नेचुरल रबर की कीमतों में पिछले सप्ताहभर में करीब सात फीसदी की तेजी आ चुकी है। कोट्टायम में शुक्रवार को नेचुरल रबर के दाम बढ़कर 208 से 216 रुपये प्रति किलो हो गए जबकि 27 अगस्त को भाव 195 से 202 रुपये प्रति किलो थे। हालांकि चालू महीने से नेचुरल रबर के उत्पादन का पीक सीजन शुरू हो जाएगा लेकिन टायर निर्माताओं की मांग बढऩे से कीमतों में तेजी आई है।
हरिसंस मलयालम लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज कपूर ने बताया कि घरेलू बाजार में नेचुरल रबर में टायर निर्माताओं की मांग बढऩे लगी है जिससे कीमतों में तेजी आई है। हालांकि चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में उत्पादन 5.8 फीसदी बढ़ा है और खपत में इस दौरान 4.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। उन्होंने बताया कि चालू महीने से नेचुरल रबर के उत्पादन का पीक सीजन शुरू हो जाएगा लेकिन इस दौरान खपत में बढ़ोतरी की संभावना है जिससे तेजी को बल मिला है।
भारतीय रबर बोर्ड के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहले चार महीनों अप्रैल से जुलाई के दौरान नेचुरल रबर का उत्पादन बढ़कर 238,400 टन का हुआ है। पिछले साल की समान अवधि में 225,250 टन का उत्पादन हुआ था। इस दौरान खपत में 4.8 फीसदी की बढ़ोतरी होकर कुल खपत 323,875 टन की हुई है। पहले चार महीनों में नेचुरल रबर का आयात बढ़कर 62,056 टन का हुआ है। जबकि पिछले साल की समान अवधि में 56,208 टन का ही आयात हुआ था।
इसका निर्यात भी अप्रैल से जुलाई के दौरान 4,347 टन से बढ़कर 9,504 टन का हुआ है। जुलाई में नेचुरल रबर का उत्पादन 7.2 फीसदी बढ़कर 62,700 टन का हुआ है। पिछले साल जुलाई में 58,500 टन का उत्पादन हुआ था।
ऑल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के चेयरमैन एम. एल. गुप्ता ने बताया कि अप्रैल महीने में नेचुरल रबर की कीमतें बढ़कर 238-240 रुपये प्रति किलो के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी लेकिन उसके बाद कीमतें घटकर अगस्त के आखिर में 191-198 रुपये प्रति किलो रह गई थी।
लेकिन फिर से कीमतें बढऩी शुरू हो गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी में पिछले सप्ताह भर में नेचुरल रबर के दाम 214 रुपये से सुधरकर 217 रुपये प्रति किलो (भारतीय मुद्रा में) हो गए हैं। (Business Bahskar.....R S Rana)

चांदी हुई महंगी तो घट गया लक्ष्मी-गणेश का वजन

आर.एस. राणा नई दिल्ली
महंगाई की मार गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियों पर भी दिखने लगी है। इस दिवाली पर ग्राहकों को कम वजन की गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों वाले सिक्के, नोट और बर्तन ज्यादा मिलेंगे। चांदी की कीमतों में पिछले एक साल में 108 फीसदी की तेजी आ चुकी है। इससे त्यौहारी सीजन में होने वाली कुल बिक्री पर मात्रात्मक रूप से असर पडऩे की आशंका है।जालान एंड कंपनी के मैनेजर केवल चंद ने बताया कि पिछले एक साल में चांदी की कीमत दोगुनी हो गई है। इसका असर त्यौहारी सीजन में मिल रहे ऑर्डरों पर भी पड़ रहा है। नवरात्रों और दिवाली के लिए ज्वैलर्स के 70 से 75 फीसदी ऑर्डर कम वजन के आ रहे हैं। पांच, दस, पंद्रह और बीस ग्राम के सिक्कों की ज्यादा मांग है। इसी तरह पांच, दस और पंद्रह ग्राम के नोटों की मांग ज्यादा है। मेटा ज्वैल क्राफ्ट्स के मैनेजिंग डायरेक्टर एम के शर्मा ने बताया कि चांदी की ऊंची कीमत के कारण ज्वैलर्स कम वजन के गिफ्ट आइटम ज्यादा बनवा रहे हैं। गणेश-लक्ष्मी की 125 ग्राम, 150 ग्राम और 200 ग्राम की मूर्तियों की मांग ज्यादा है। पिछले साल 200 से 500 ग्राम की मूर्तियों की मांग ज्यादा थी। उन्होंने बताया कि पिछले साल के मुकाबले कुल बिक्री रुपये के हिसाब से तो 15 से 20 फीसदी बढऩे की संभावना है लेकिन मात्रा के हिसाब से इसमें कमी आयेगी।पर्ल (इंडिया) इंटरनेशनल के मैनेजिंग डायरेक्टर रवि शंकर पारिख ने बताया कि पिछले साल इन दिनों रोजाना 10 से 15 किलो चांदी का कारोबार हो रहा था। लेकिन दाम बढऩे से इस साल यह घटकर दो से चार किलो रह गया है। दिवाली पर चांदी के सिक्के, नोट, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों की मांग तो अच्छी रहेगी लेकिन डिनर सैट, डिब्बे और गिफ्ट आइटम की मांग में कमी आने की आशंका है।पटेल एंड कंपनी के मैनेजर विशाल पटेल ने बताया कि महंगाई के कारण गणेश और लक्ष्मी की मूर्तियां मोम और क्रिस्टल में बनाकर उन पर चांदी का घोल चढ़ा रहे हैं। इसमें चांदी की मात्रा कम होने के कारण ग्राहक को सस्ते दाम पर मिल जाएगी। दिवाली पर चांदी और सोने की खरीद को शुभ माना जाता है इसीलिए ग्राहक खरीद तो करेंगे लेकिन कीमतें दोगुनी होने से कम वजन के सिक्के, नोट, बर्तन आदि खरीदेंगे। इसलिए ज्वैलर्स कम वजन के ज्यादा आर्डर दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि दस ग्राम के चांदी के सिक्के की कीमत 700 रुपये है जबकि पिछले साल इसका दाम 350 रुपये था। चांदी का भाव बढ़कर 64,500 रुपये प्रति किलो हो गया है। १ सितंबर 2010 को 30,950 रुपये था। (Business Bhaskar....R S Rana)

02 सितंबर 2011

कपास निर्यात अगले सीजन में भी जारी रहने के आसार

आर.एस. राणा नई दिल्ली

उम्मीद - बंपर उत्पादन का अनुमान होने से कृषि मंत्रालय ने की सिफारिशमौजूदा सीजन में निर्यात:- सरकार ने पहले 55 लाख गांठ कपास निर्यात की अनुमति दी थी। उसके बाद 10 लाख गांठ और कपास निर्यात को अनुमति दी गई। डीजीएफटी की शर्तों के खिलाफ निर्यातकों की याचिका पर हाईकोर्ट ने निर्यात पर प्रतिबंध कर दिया। इसके बाद डीजीएफटी ने दो अगस्त को चालू सीजन के बाकी दो महीनों के लिए मात्रात्मक प्रतिबंध हटा लिया।
सरकार ओपन जरनल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत कपास के निर्यात की अवधि को सितंबर से आगे बढ़ा सकती है। अक्टूबर से कपास का नया सीजन शुरू हो जाएगा। कृषि मंत्रालय ने कपास के बंपर उत्पादन की संभावना को देखते हुए अगले सीजन में कपास के ओजीएल के तहत निर्यात की सिफारिश की है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू खरीफ में कपास की बुवाई बढ़कर 118.5 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 107.53 लाख हैक्टेयर में बुवाई हुई थी। अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल रहा है ऐसे में कपास का बंपर उत्पादन होने की संभावना है। इसीलिए आगामी कपास सीजन में ओजीएल के तहत निर्यात जारी रखनी की सिफारिश की गई है।
खाद्य मामलों पर प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की आगामी बैठक में इस पर निर्णय लिया जायेगा। टैक्सटाइल कमिश्नर ए बी जोशी ने भी नए मार्किट सीजन में कपास का उत्पादन 9 फीसदी बढ़कर 355 लाख गांठ (एक गांठ-170 किलो) होने का अनुमान लगाया है।
चालू सीजन में देश में कपास का उत्पादन 325 गांठ हुआ है। उन्होंने बताया कि चालू सीजन में देश में 90 फीसदी क्षेत्रफल में बीटी कपास की बुवाई हुई है। सरकार ने चालू सीजन में पहले 55 लाख गांठ कपास निर्यात की अनुमति दी थी। उसके बाद 10 लाख गांठ और कपास निर्यात को अनुमति दी गई थी।
अतिरिक्त 10 लाख गांठ के निर्यात के लिए विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा निर्यातकों पर लगाई गई शर्तों के खिलाफ निर्यातक मुंबई हाईकोर्ट में चले गए थे। उसके बाद डीजीएफटी ने दो अगस्त को चालू सीजन के बाकि दो महीनों के लिए कपास निर्यात पर लगा मात्रात्मक प्रतिबंध हटा लिया था। अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव 37,000 से 37,500 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) की हुई है जबकि अप्रैल में भाव ऊपर में 61,000 से 61,500 रुपये प्रति कैंडी हो गए थे।
उधर न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में मई महीने के वायदा अनुबंध में कॉटन का भाव चार अप्रैल को 196.49 सेंट प्रति पाउंड पर बंद हुआ था। जबकि 29 अगस्त को अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में इसका भाव 104.77 सेंट प्रति पाउंड रह गया। (Business Bhaskar....R S Rana)

प्याज की तेजी एक महीने और सताएगी उपभोक्ताओं को


खबरदार - अगर सरकार ने मूल्य वृद्धि रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाएमहंगाई का तड़काप्याज की तेजी ने महंगाई की दर पहुंचाई दोहरे अंक मेंपिछले एक पखवाड़े में ही प्याज के दाम 25 फीसदी बढ़ेउत्पादक क्षेत्रों का हालमहाराष्ट्र व गुजरात से आने वाली प्याज की फसल एक माह लेट हो रही है। यह प्याज सितंबर में मंडियों में आ जाती है लेकिन इस साल मानसूनी बारिश शुरू होने में देरी होने के कारण इन उत्पादक क्षेत्रों में प्याज की बुवाई लेट हो गई।प्याज के मूल्य में भारी बढ़ोतरी ने देश में महंगाई की दर को पांच माह के अंतराल पर फिर से दोहरे अंक में पहुंचा दी है। अगर सरकार ने प्याज की तेजी थामने के लिए प्रभावी उपाय नहीं किए तो सितंबर भर उपभोक्ताओं को प्याज की तेजी सताती रहेगी। एहतियाती कदम नहीं उठाए गए तो सितंबर में प्याज के दाम और बढऩे का अंदेशा है क्योंकि महाराष्ट्र व गुजरात से आने वाली प्याज की फसल एक माह लेट हो रही है।
यह प्याज सितंबर में मंडियों में आ जाती है लेकिन इस साल मानसूनी बारिश शुरू होने में देरी होने के कारण इन उत्पादक क्षेत्रों में प्याज की बुवाई लेट हो गई। मौजूदा तेजी के पीछे भी यही कारण है। इस साल नई फसल एक माह की देरी से आने की संभावना है। तब तक तेजी जारी रह सकती है।राष्ट्रीय राजधानी में प्याज के खुदरा दाम बढ़कर 25 रुपये प्रति किलो हो गए हैं।
पिछले एक पखवाड़े में इसके मूल्य में करीब 25 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। 15 अगस्त के आसपास प्याज के दाम करीब 20 रुपये प्रति किलो थे। 20 अगस्त को समाप्त सप्ताह में प्याज के दाम पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 57 फीसदी ज्यादा रहे। आजादपुर स्थित थोक फल व सब्जी मंडी के कारोबारियों के अनुसार मूल्य में बढ़ोतरी मुख्य रूप से आवक कम होने के कारण हो रही है। पिछले सीजन की फसल की प्याज का स्टॉक तेजी से खत्म हो रहा है।
हर साल सितंबर में प्याज की नई फसल आने लगती है लेकिन इस साल देरी होने की संभावना है। ऑनियन मर्चेंट्स एसोसिएशन के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने बताया कि प्याज के थोक दाम 800 से 1600 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। नेशनल हॉर्टीकल्चरल रिसर्च डेवलपमेंट काउंसिल के अनुसार चेन्नई, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ और पटना में प्याज के दाम पिछले एक पखवाड़े में करीब 300-400 रुपये प्रति क्विंटल बढ़े हैं।
आजादपुर मंडी की ऑनियन एसोसिएशन के अध्यक्ष बुद्धि राज ने बताया कि इन दिनों मंडी में रोजाना करीब 60 ट्रक (प्रति टन 15 टन) प्याज की आवक हो रही है। यह सप्लाई खपत के मुकाबले कम है। उधर काउंसिल के डायरेक्टर आर. पी. गुप्ता ने बताया कि महाराष्ट्र और गुजरात के उत्पादक क्षेत्रों में प्याज की फसल लेट हो गई है क्योंकि इन क्षेत्रों में मानसून देरी से सक्रिय हुआ।
अनुमान है कि फसल करीब एक माह की देरी से मंडियों में पहुंचेगी। अगस्त के अंत में महाराष्ट्र व गुजरात में अच्छी बारिश हुई है। इससे प्याज की पछैती फसल का रकबा बढऩे की संभावना है। उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र के नागपुर स्थित प्रमुख उत्पादक मंडियों पिंपलगांव और लासलगांव के गोदामों में प्याज का पर्याप्त स्टॉक है क्योंकि पिछले रबी सीजन में प्याज की पछैती फसल भी अच्छी रही थी। (Business Bhaskar)

सरकारी गेहूं का बिक्री भाव घटने की संभावना

आर.एस. राणा नई दिल्ली

गेहूं का उठान धीमा होने से गेहूं मूल्य 100-125 रुपये प्रति क्विंटल घटाया जा सकता है : अधिकारीकेंद्रीय पूल से गेहूं के उठान में तेजी लाने के लिए सरकार खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) के तहत भावों में कटौती कर सकती है। वर्तमान में ओएमएसएस के तहत गेहूं की बिक्री एक्विजिशन लागत (एमएसपी एवं खरीद में आने वाले अन्य खर्चे तथा परिवहन लागत को मिलाकर) के आधार पर की जा रही है।
सितंबर के बाद ओएमएसएस के तहत गेहूं के बिक्री भाव एमएसपी प्लस परिवहन लागत के आधार पर तय किए जा सकते हैं। अगर सरकार ऐसा करती है तो ओएमएसएस के तहत गेहूं के बिक्री भाव में 100-125 रुपये प्रति क्विंटल की कमी आ सकती है।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार केंद्रीय पूल से गेहूं का उठाव नहीं हो पा रहा है इसीलिए ओएमएसएस के तहत गेहूं की कीमतों में कटौती करने की सिफारिश की गई है।
अप्रैल के बाद से ओएमएसएस के तहत गेहूं का उठाव रुक सा गया है। जनवरी से सितंबर के दौरान ओएमएसएस के तहत बिक्री के लिए सरकार ने 12.69 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था लेकिन 16 अगस्त तक इसमें से केवल 6.79 लाख टन गेहूं की ही बिक्री हो पाई है।
सितंबर में बिक्री की अवधि समाप्त हो रही है ऐसे में अक्टूबर से बिक्री के लिए अलग से मात्रा तय की जाएगी, साथ ही भावों में भी कटौती की जा सकती है। हालांकि इसका निर्णय खाद्य मामलों पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के अधिकार प्राप्त समूह (ईजीओएम) की आगामी बैठक में लिया जाएगा। एफसीआई के गोदामों से गेहूं का उठाव न होने का कारण खुले बाजार के मुकाबले भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) का बिक्री भाव ज्यादा होना है।
दिल्ली में ओएमएसएस के तहत निविदा भरने के लिए गेहूं का बिक्री भाव 1252.15 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि लारेंस रोड पर गेहूं 1,150-1,160 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है जोकि एमएसपी से भी कम है। चालू विपणन सीजन के लिए सरकार ने गेहूं की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 1,170 रुपये प्रति क्विंटल (बोनस सहित) तय किया हुआ है।
चालू गेहूं विपणन सीजन 2011-12 में भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने एमएसपी पर 281.44 लाख टन गेहूं की रिकार्ड खरीद की है। केंद्रीय पूल में एक अगस्त को खाद्यान्न का कुल 611.46 लाख टन का स्टॉक मौजूद है। इसमें 358.75 लाख टन गेहूं का स्टॉक है। सरकार को खरीफ में धान की सरकारी खरीद शुरू करनी है लेकिन सरकार के गोदाम पहले से ही भरे हुए हैं। (Business Bhaskar..R S Rana)

राशन के नाम पर एक अरब से ज्यादा की रिश्वत

देश के गांवों में रहने वाले गरीबों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुडी़ सेवाओं के लिए पिछले वर्ष डेढ़ अरब रुपए से ज्यादा की रिश्वत देनी पडी़।
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राशन कार्ड बनवाने से लेकर कार्ड में नए नाम शामिल करने जैसे कामों के लिए ग्रामीणों को पांच रुपए से लेकर 800 रुपए तक की रिश्वत देनी पडी़।
सेंटर फार मीडिया स्टडीज की ओर से कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। सर्वेक्षण के अनुसार 12 राज्यों के नौ करोड़ 40 लाख 60 हजार परिवारों में से एक करोड़ 80 लाख एक हजार परिवारों को पिछले वर्ष एक अरब 56 करोड़ 80 लाख रुपए की रिश्वत देनी पडी़।
पीडीएस सेवाओं के लिए रिश्वत सबसे ज्यादा 60 प्रतिशत लोगों ने भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य छत्तीसगढ़ में दी। इसके बाद जनता दल (यूनाइटेड) शासित बिहार और तत्कालीन वाम मोर्चा शासित पश्चिम बंगाल में 43.43 प्रतिशत ग्रामीणों को पीडीएस सेवाओं के लिए सरकारी बाबुओं की जेबें गर्म पडीं।
इनके अलावा महाराष्ट्र में 25.2 प्रतिशत, राजस्थान में 23.3 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 18.8 प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश में 17.6 प्रतिशत लोगों ने इन सेवाओं के लिए रिश्वत दी।
सबसे ज्यादा 37 प्रतिशत लोगों को नया राशन कार्ड बनवाने के लिए रिश्वत देनी पडी़ जबकि 28 प्रतिशत ने राशन कार्ड लेने तक के लिए रिश्वत दी। सर्वेक्षण में 12 राज्यों के 2000 गांवों के 614 परिवारों को शामिल किया गया।
करीब 42 प्रतिशत ग्रामीणों का मानना है कि पिछले एक वर्ष में इन सेवाओं में भ्रष्टाचार बढा़ है। बिहार में 62 प्रतिशत और छत्तीसगढ़ तथा उत्तर प्रदेश में 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवार मानते हैं कि पीडीएस सेवाओं में भ्रष्टाचार बढा़ है।
सरकारी आंकडों के अनुसार पीडीएस के तहत आवंटित राशन, गेहूं, चावल का 90 प्रतिशत वितरण कर दिया गया लेकिन सर्वेक्षण से पता लगा है कि 50 प्रतिशत से भी कम परिवारों ने इन दुकानों से राशन लिया। इससे स्पष्ट होता है कि पीडीएस में अनियमितता को लेकर सुप्रीम कोर्ट, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) तथा गैर सरकारी संगठनों की ओर से लगातार चिंता व्यक्त करने तथा पिछले पांच वर्षों में सरकार के तमाम उपायों के बावजूद गरीबों को सस्ती दर पर अनाज उपलब्ध कराने के लिए आवंटित अनाज की खुले बाजार में अवैध बिक्री बदस्तूर जारी है।
केंद्र सरकार ने अनाज की हेराफेरी को रोकने के लिए प्रशिक्षण, अनुसंधान, निगरानी और अभिनव योजना शुरू की थी लेकिन वर्ष 2007-08 के मुकाबले 2008-09 में न सिर्फ इस योजना में बजट व्यय कम हुआ बल्कि आवंटित राशि को पूरा खर्च भी नहीं किया गया। पीडीएस अनाज को ले जा रहे वाहनों पर नजर रखने के लिए ग्लोबल पोजिशनिंग प्रणाली शुरू करने की योजना बनाई थी लेकिन वर्ष 2008-09 तक केंद्र सरकार को राज्यों की ओर से अनुमानित राशि सम्बन्धी प्रस्ताव प्राप्त नहीं हो सके थे। (Live Hindustan)