सोने की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी के बावजूद बीते हफ्ते अक्षय तृतीया के शुभ मौके पर उपभोक्ताओं और निवेशकों ने जमकर खरीदारी की। इस मौके पर कई ज्वैलर्स ने ग्राहकों को लुभाने के लिए तरह-तरह के डिस्काउंट दिए। वैसे बिना किसी डिस्काउंट या उत्सव के भी भारतीय ग्राहक आमतौर पर सोने के प्रति काफी उदार होते हैं। लेकिन यह सोना जितना खरा होता है, सोने की खरीद उतनी सीधी नहीं है। निवेशकों या ग्राहकों के लिए इस पेचीदे फैसले से पहले कुछ जरूरी बातों की जानकारी आवश्यक है ताकि आप बढ़िया समान के बदले सही भुगतान कर सकें। सोने की हॉलमार्किंग संगठित बाजार में गोल्ड ज्वैलर्स सोने की गुणवत्ता को परखने के लिए हॉलमार्किंग की शर्तों का पालन करते हैं। भारत में ज्वैलर्स को ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंर्डड्स से बीआईएस हॉलमार्क सर्टिफिकेशन मिलती है। देशभर के बड़े और छोटे शहरों में बीआईएस हॉलमार्किंग सेंटर हैं। हॉलमार्क में बीआईएस और ज्वैलर्स के इनिशियल्स के साथ सोने के कैरेट की जानकारी और हॉलमार्किंग की तारीख रहती है। इतना ही नहीं, आभूषण के पिछले भाग में, अगूंठी के बीच में या चूड़ी के भीतरी हिस्से में सोने से जुड़ी जानकारी रहती है। भारत में अब भी हॉलमार्किंग की प्रक्रिया अनिवार्य नहीं है, इसलिए सोने के आभूषण बगैर कोई क्वालिटी मार्क के बेचे जाते हैं। रीटेल ज्वैलरी चेन रीवा के मैनेजिंग डायरेक्टर संजीव अग्रवाल के मुताबिक, 'इस मामले में ग्राहकों को दुकानदारों की बात मानने के बजाय हॉलमार्क पर ज्यादा जोर देना चाहिए।' उन्होंने बताया, 'बगैर हॉलमार्क के आभूषण बेचने वाले कई दुकानदार ग्राहकों को बताते हैं कि हॉलमार्किंग पर बहुत ज्यादा खर्च आता है और इससे गहने और महंगे हो जाते हैं।' संजीव अग्रवाल ने बताया, 'यह सही नहीं है। हॉलमार्किंग में बहुत मामूली शुल्क लगता है, लेकिन सबसे अहम बात यह है कि बीआईएस मार्क से सोने की गुणवत्ता पक्की हो जाती है।' अगर कोई दुकानदार हॉलमार्क के गहने देने से इनकार करता है तो दूसरे स्टोर जाकर बीआईएस मार्क के गहने खरीदने चाहिए। उद्योग के जानकारों का अनुमान है कि बाजार में हॉलमार्क्ड सोने के आभूषणों की हिस्सेदारी 15-20 फीसदी है। क्यों महत्वपूर्ण है हॉलमार्किंग? कुछ ज्वैलर्स 19 कैरेट के गोल्ड ज्वैलरी को 22 कैरेट का बताकर बेच सकते हैं। इस लिहाज से आपको कम गुणवत्ता वाले गहनों पर ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। यह बात आपको तब पता चलेगी, जब आप इसके बदले नए गहने लेने दूसरे स्टोर जाएंगे। रीवा ज्वैलर्स के संजय अग्रवाल ने बताया, 'बीआईएस के आंकड़ों से पता चला है कि आज भी देश के छोटे शहरों और दूरदराज इलाकों में ज्वैलर्स 19 कैरेट के गोल्ड को 22 कैरेट बताकर उसकी बिक्री करते हैं। इस तरह की जालसाजी को ग्राहक तभी पकड़ पाएंगे जब वह हॉलमार्क्ड होगा या फिर उसे कैरेट मीटर का सहारा लेना होगा।' इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ज्वैलरी के डायरेक्टर वेदांत जटिया ने बताया, 'सोना काफी कीमती होता है और इन दिनों तो काफी महंगा हो चला है। सभी ज्वैलर्स आभूषण खुद से नहीं बनाते हैं। अपनी जरूरत के हिसाब से वे सूरत या कोयम्बटूर जैसे प्रमुख शहरों से आभूषणों की आउटसोर्सिंग करते हैं।' उन्होंने बताया, 'एक छोटा गहना भी कई लोगों के हाथों से होकर ग्राहक के पास आता है, इसलिए ग्राहकों को हॉलमार्क सर्टिफिकेट वाले गहनों की मांग करनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वह बढ़िया चीज का सही भुगतान कर रहा है।' बिल के लिए जोर डालें असली बिल की पर्ची नहीं लेकर आप भले ही सौ या हजार रुपए बचा लें, लेकिन ऐसा करके आप अनजाने में घटिया क्वॉलिटी के सोने महंगे दाम पर खरीद लेते हैं। इसलिए आपको दुकानदार से बिल जरूर लेनी चाहिए, जिसमें खरीद की तारीख से लेकर कैरेट, सोने का वजन और मेकिंग चार्जेज का ब्योरा लिखा रहता है। अगर बिल के ब्योरे के मुताबिक, खरीदा गया आभूषण सही नहीं होता है तो आप इस सुबूत के दम पर ज्वैलर के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। जटिया ने बताया, 'अक्सर ज्वैलर ग्राहकों को समझाते रहते हैं कि बिल नहीं लेने पर आपको आभूषण 1 फीसदी सस्ते मिलेंगे। आमतौर पर ग्राहकों को उसी स्टोर से आभूषण खरीदने चाहिए, जो कर भुगतान के साथ वैट नंबर रखते हों।' पुराने के बदले नए पुराने गहनों को बेचकर नए गहने सभी लोग खरीदते हैं। फैशन बदलने, पुराने आभूषणों से मोहभंग और नए कलेक्शन को लेकर प्राय: लोग ऐसा करते हैं। लेकिन यह जानना जरूरी है कि एक्सचेंज के समय पुराने सोने की पूरी कीमत नहीं मिलती है। हॉलमार्किंग भारत में बहुत नया कॉन्सेप्ट है। 5-6 साल पहले खरीदे गए गहनों में बीआईएस मार्क नहीं होता है, इसलिए जब आप एक्सचेंज के लिए किसी ज्वैलर्स के पास जाएंगे तो वह उसकी गुणवत्ता और वजन की जांच करता है। शहरी इलाकों के ज्वैलर सोने की गुणवत्ता जांचने के लिए कैरेट मीटर का इस्तेमाल करते हैं। यह एक ऐसा टूल है जो आभूषण में सोने का वजन मापता है। छोटे शहरों के ज्वैलर स्टोर के सहारे आभूषण की गुणवत्ता और उसमें सोने का वजन अंश मापते हैं। इस प्रक्रिया के बाद वे आपको सोने का बायबैक वैल्यू बता देंगे। आप बायबैक कीमत से सहमत हैं तो ज्वैलर उसी कीमत के नए जेवर आपको दे देगा। 24 कैरेट का सोना दुलर्भ संगठित बाजार में ज्वैलरी स्टोर आमतौर पर 22 कैरेट के सोने की बिक्री करते हैं। जटिया ने बताया, '24 कैरेट का सोना बहुत नरम होता है।' 24 कैरेट में 99.9 फीसदी गोल्ड होता है, जिसका इस्तेमाल कलाकृतियों में होता है। 22 कैरेट में 91.6 फीसदी सोने की मात्रा होती है। जटिया ने बताया, 'ऐसे बहुत कम ज्वैलर हैं जो 24 कैरेट सोने की बिक्री करते हैं, क्योंकि नरम होने के कारण 24 कैरेट गोल्ड का इस्तेमाल हीरे जड़ित आभूषणों में नहीं होता है। थोड़ा सा भी मोड़ने पर उसके टूटने की आशंका रहती है।' सोना खरीदने से पहले उस दिन बाजार में सोने का भाव पता करना चाहिए। इसके अलावा मेकिंग चार्जेज, वजन और कैरेट की जानकारी के साथ स्टोर की बॉयबैक पॉलिसी भी पता होनी चाहिए। यह तब और अच्छा माना जाएगा सोने से जुड़ी सारी जानकारी ज्वैलर आपको एक पेपर पर दे। (ET Hindi)
31 अगस्त 2011
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