नई दिल्ली।
खाद्यान्न की बर्बादी रोकने और किसानों को फसल का बाजार मूल्य दिलाने के उद्देश्य से शुरू की गई ग्रामीण गोदाम योजना एक दशक बीतने के बावजूद परवान नहीं चढ़ पाई है। ढांचागत सुविधाएं न होने से योजना में किसानों की भागीदारी नाममात्र ही है जबकि सब्सिडी के चलते निजी क्षेत्र इसका सर्वाधिक लाभ उठा रहा है। स्थिति यह है कि दशक बाद भी इस योजना से न ही किसान लाभान्वित हो रहे हैं और न ही यह अपने उद्देश्य पर खरी उतरी है। अधिक सब्सिडी के बावजूद इस योजना में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की हिस्सेदारी शून्य है।1068 गोदाम बनाने का निर्धारित लक्ष्यवित्त मंत्री ने बजटीय (2011-12) चर्चा में भले ही ग्रामीण गोदाम योजना का इस वर्ष के लिए 24 लाख टन क्षमता युक्त 1068 गोदाम बनाने का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने का दावा किया है। लेकिन आंकड़ों के अनुसार इस योजना में किसानों की भागीदारी सीमित है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अब तक 174 गोदाम बनाए गए हैं। जिसमें किसानों ने सिर्फ 38 और किसान कंपनियों ने 14 गोदाम बनाए हैं। इसका कारण किसानों पर पूंजी का अभाव और भूमि की अधिकतम मूल्य सीमा मात्र दस फीसदी होना है। 763.19 करोड़ रुपये की सब्सिडीबात यदि सब्सिडी की हो तो केंद्र सरकार वर्ष 2001 से मार्च 2010 तक 763.19 करोड़ रुपये की राशि जारी कर चुकी है। जिसमें अधिकतम मध्यप्रदेश 117.81 करोड़, महाराष्ट्र 95.11 करोड़ रुपये, गुजरात 67.46 करोड़ और यूपी को 28.40 रुपये दिए जा चुके हैं। किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पवार का कहना है कि गोदामों में भंडारण का लाभ व्यापारी वर्ग ही उठा रहे हैं। किसान यदि ग्रामीण गोदामों में भंडारण करते भी हैं तो उन्हें रसीद नहीं मिलती, और यदि रसीद की व्यवस्था भी हो जाए उसके बदले उन्हें ऋण भी नहीं मिलता। बैंक यदि किसानों को भंडारित अनाज के बदले ऋण देने को तैयार होते भी हैं तो वह भी कुल भंडारित अनाज के 75 फीसदी का मूल्यांकन करते हैं और कर्ज पर 12.5 फीसदी का ब्याज वसूल करते हैं। यही कारण है कि किसान इस योजना से दूर हैं। (Amar Ujala)
17 अगस्त 2011
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