नई दिल्ली July 31, 2011
मल्टीब्रांड रिटेल कारोबार में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को सचिवों की समिति (सीओएस) ने कड़ी शर्तों के साथ अनुमति दे दी है। इन नियमों के तहत एफडीआई की न्यूनतम सीमा तय और चुनिंदा शहरों में ही स्टोर खोलने की अनुमति दी गई है। इसके साथ ही राज्यों में एफडीआई वाले रिटेल स्टोरों को अनुमति देने का फैसला राज्य सरकार को दिया गया है। राज्य सरकार को ही छोटे स्तर के उद्यमों और किराना स्टोरों की सुरक्षा के लिए प्रावधान तय करने का अधिकार दिया गया है। सीओएस अब खुदरा एफडीआई में किए गए बदलाव के बारे में मसौदा तैयार कर इसे अंतिम अनुमति के लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के पास भेजेगा। मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को अंतिम अनुमति देने का अधिकार कैबिनेट समिति के ही पास है। औद्योगिक नीति एवं संवद्र्घन विभाग (डीआईपीपी) के एक वरिष्ठï अधिकारी ने बताया कि सीओएस ने उनकी अधिकतर सिफारिशें मान ली गई हैं। अधिकारी ने कहा, 'मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को अनुमति देने के लिए हमने जो शर्तें रखी थीं सीओएस ने उनमें से ज्यादातर शर्तें मंजूर कर ली हैं।Ó विभाग के एक और अधिकारी ने बताया कि अब सिर्फ इस बात पर विवाद था कि एफडीआई की अधिकतम सीमा 49 फीसदी रखी जाए या 51 फीसदी। अधिकारी ने बताया, 'लेकिन अब यह विवाद सुलझा लिया गया है। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि इसमें भी एकल ब्रांड रिटेलिंग के बराबर ही एफडीआई को अनुमति मिलेगी।Óविभाग ने मल्टीब्रांड खुदरा में न्यूनतम 10 करोड़ डॉलर के एफडीआई को अनुमति दी है। इसके साथ ही एफडीआई वाले मल्टीब्रांड स्टोर उन्हीं शहरों में खोले जा सकते हैं, जिनकी आबादी 2011 की जनगणना के आधार पर 10 लाख से अधिक है। 2001 की जनगणना के अनुसार इस दायरे में फरीदाबाद, वडोदरा, इंदौर, जबलपुर, अमृतसर, इलाहाबाद, वाराणसी, राजकोट समेत 35 शहर आते हैं। जबकि 2011 की जनगणना के आधार पर इन शहरों की संख्या और अधिक हो सकती है। हालांकि इस मामले पर पहले समिति में मतभेद थे लेकिन अब वरिष्ठï स्तर पर सभी राज्यों की राजधानियों में मल्टीब्रांड एफडीआई को अनुमति देने पर सहमति बनती नजर आ रही है। जबकि इससे पहले कुछ मंत्री इसे महज 6 महानगरों तक ही सीमित करने की सिफारिश कर रहे थे, जिससे इस पर आसानी से निगरानी रखी जा सके। विभाग ने ऐसे रिटेल स्टोरों को सिर्फ उन्हीं राज्यों में शुरू किए जाने की सिफारिश की थी, जो एफडीआई को अनुमति देंगे। सीओएस ने इससे सहमति जता दी है। इस नीति को लागू करना भी राज्य की जिम्मेदारी होगी। समिति ने इस सिफारिश को भी मंजूरी दी है, जिसके तहत विदेशी निवेशक बैक एंड सेवाओं में निवेश करने के लिए एक अलग कंपनी भी बना सकता है। लेकिन प्रस्तावित एफडीआई का कम से कम 50 फीसदी बैक एंड बुनियादी सेवाओं में निवेश करना जरूरी होगा। हालांकि इस राह में भारतीय जनता पार्टी शासित प्रदेश रोड़ा बन सकते हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में तृणमूल की सरकार भी मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई का विरोध कर रही है। औद्योगिक नीति एवं संवद्र्घन विभाग द्वारा कई विभागों के सदस्यों को मिलाकर बनाई गई समिति ने देश भर से इस मामले पर 175 लोगों की प्रतिक्रिया ली और उसका विश्लेषण किया। विश्लेषण में पता चला कि इस कदम का विरोध करने वाले 109 प्रतिभागियों में से 73 छोटे कारोबारी और रिटेल संगठन थे। इसके अलावा स्थानीय विनिर्माताओं और गैर सरकारी संगठनों ने भी पहल का विरोध किया है। जबकि फिक्की, सीआईआई और भारतीय रिटेल संगठनों ने मल्टीब्रांड में एफडीआई को कारोबार के लिए बेहतरीन पहल बताते हुए इसका समर्थन किया है। (BS Hindi)
04 अगस्त 2011
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